Sunday 24 July 2016

कुंडली में बुध ग्रह देता है बुरी आदतें.....

कुछ व्यक्तियों का व्यक्तित्व विशेष ढंग का होता है जिसमें पहले से ही कुछ ऐसे लक्षण विद्यमान रहते हैं, जो उसे शराबी बना देती है और वह तनाव की स्थिति से समायोजित होने के लिए कोई दूसरी सुरक्षात्मक प्रक्रिया का उपयोग नहीं कर पाता। इसे अल्कोहोलिक व्यक्तित्व कहा जाता है। व्यक्ति अपने शराब पीने पर नियंत्रण नहीं रख पाते, इसका कारण मनोवैज्ञानिक है। असामाजिक व्यक्तित्व तथा अवसाद ये दो ऐसे चिकित्सकीय लक्षण है जो अत्यधिक मद्यपान करनेवाले व्यक्तियों में पाये जाते है। ये लक्षण किसी व्यक्ति की कुंडली में दिखाई देती है। यदि किसी जातक की कुंडली में उसका तृतीयेष राहु से पापाक्रांत होकर छठवे, आठवे या बारहवे स्थान पर आ जाए, बुध इन स्थानों का कारक ग्रह हो अथवा अपने स्थान से इन स्थानों पर हो तो ऐसा व्यक्ति तनाव से बचने के लिए अपने आप को नषे में डालता है और लगातार नषे के सेवन से एल्कोहोलिक होता हैं अतः कुंडली का विष्लेषण कराया जाकर तीसरे स्थान के ग्रहों की शांति, मंत्रजाप तथा पूजा तथा रत्न धारण करना चाहिए। अच्छे मार्गदर्षक या साथ में रहना भी तनाव से बाहर निकलने का एक जरिया होता है।

पुराण के अनुसार मंगल ग्रह

इतिहास गवाह है कि ब्रह्मांड का कोई भी ग्रह मानव को इतना रोमांचित व लालायित नहीं कर पाया जितना कि मंगल ग्रह ने किया है। इस लाल रंग के आकर्षक ग्रह के बारे में जानने के लिये वैज्ञानिक हमेषा से उत्सुक रहे हैं। यह उन्हें अचंभित कर उत्तेजना से भरता रहा है। आधुनिक वैज्ञानिक शोधों से भी यह सिद्ध हुआ है कि मंगल ग्रह और पृथ्वी के बीच में कोई समानता है, वो भी इतनी कि यह माना जा रहा है कि कभी बहुत पहले मंगल ग्रह पृथ्वी का ही एक हिस्सा रहा होगा और कालांतर में यह पृथ्वी से अलग हो गया होगा। भारतीय पुराणों के अनुसार भी मंगल ग्रह को ‘‘भौम’’ या ‘‘भूमि-पुत्र’’ अर्थात ‘भूमि का अंश’ भी कहा गया है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि भारतीय पुराणों के लेखक, हमारे महान ऋषि-मुनि आधुनिक वैज्ञानिकों से दूरदृष्टि में बहुत आगे थे। स्वरूप व विशेषतायें:- मंगल ग्रह आग है। इसमें गर्मी है, तेज है क्योंकि यह अग्निपुत्र है। ‘‘बृहत्पाराशर होराशास्त्र’’ के अनुसार - ‘‘क्रूरो रक्तेक्षणो भौमश्चपलादारमूर्तिकः पित्तप्रकृतिकः क्रोधी कृशमध्यतनुर्द्वि ज’’ अर्थात क्रूर, रक्त नेत्र, चंचल, उदारहृदय, पित्तप्रकृति, क्रोधी, कृश मंगल: क्या कहते हैं पुराण डाॅ संजय बुद्धिराजा और मध्यम देह का स्वामी मंगल है. ‘‘नारदीय पुराण’’ के अनुसार - ‘‘क्रूरदृक्तरूणो भौमः पैत्तिकश्चपलस्तथा’’ अर्थात मंगल क्रूर दिखता है, यह युवा है, यह चपल है और साहसी भी है। ‘‘गरूड़ पुराणानुसार’’ एक विशाल रथ पर सवारी करने वाले भूमिपुत्र के रथ का रंग सुनहरा है और यह आठ घोड़ों द्वारा खींचा जाता है जिनमें आग सी चपलता है। इस कारण मंगल साहसी, निडर व तेज है। ‘‘जातकतत्वम्’’ के अनुसार - ‘‘दुष्टदृक् तरूणः कृशमध्यो रक्तसितांगः पैत्तिकश्चलधीरूदारप्रताप्यारः’’ नामावली:- मंगल ग्रह को हमारे हिंदू पुराणों ने कई नाम दिये हैं जो मंगल की विषेषताओं को ही बताते हैं, जैसे कि अंगारक - अग्नि से पैदा हुआ भौम - भूमि का पुत्र कुज - भूमि का पुत्र मंगला - मंगलकारक लोहिता - लाल अग्निभुवः - अग्नि से उत्पन्न महीसुत - भगवान शिव की संतान भू-सुत - भूमि का पुत्र धराज - धरा यानि पृथ्वी पुत्र क्रूरनेत्र - क्रूर आंखों वाला मिर्रीख, लोहितांग, अवनिज, क्षितिनंदन आदि। अर्थात आंखों में कांइयांपन, जवान शरीर, पतली कमर, हल्का रक्त वर्ण, पित्त प्रधान प्रकृति, चंचल बुद्धि, उदार व प्रतापी ये मंगल की विशेषतायें हैं। वातावरण:- मंगल ग्रह के वातावरण को लोहिता अर्थात लाल कहा जाता है। यह नौ रश्मियों युक्त और जलीय स्थल वाला है। ‘‘लोहितो नवरश्मिस्तु स्थानमाप्यं तु तस्य वै’’ जन्म:- ‘‘मत्स्य पुराण’’ अनुसार सभी ग्रह सूर्य की रश्मियों से पैदा हुये हैं। ‘‘संवर्धनस्तु यो रश्मिः स योनिर्लोहितस्य च’’ अर्थात लोहिता यानि मंगल भी सूर्य की उन रश्मियों की पैदावार है जिसे ‘‘संवर्धना’’ कहते हैं। भगवान शिव से संबंध: ‘‘स्कन्द पुराण’’ के अनुसार जब भगवान शिव को सती के मरने का दुख हुआ तो उन्होंने कैलाश पर्वत पर तांडव किया जिससे उनके शरीर में अतिरिक्त ऊष्मा उत्पन्न हुई और माथे से पसीने की एक बूंद पृथ्वी पर गिरी.. इस बूंद से एक बालक उत्पन्न हुआ जिसके शरीर का रंग लाल था, उसकी चार भुजायें थीं, तन से एक विशेष प्रकार की गंध आ रही थी और उसने रोना शुरू कर दिया था। धरती माता ने उस बालक को गोद में लिया और दूध पिलाकर शांत कियाइस बात से भगवान शिव ने प्रसन्न होकर धरती यानि भूमि को वरदान दिया कि यह बालक अब उसके नाम से जाना जायेगा। क्योंकि बालक का पालन पोषण भूमि ने किया था, अतः बालक भूमि-पुत्र, भौम और कुज कहलाया। भगवान शिव के पसीने से मंगल की उत्पत्ति अवंति (उज्जैन) के पास हुई थी। आज भी वहां शिप्रा नदी के तट पर मंगल (मंगलान्था) का मंदिर है। भगवान विष्णु से संबंध:- ‘‘देवी भागवत’’ में बताया गया है कि वराह के रूप में अवतार लेने वाले महाविष्णु की पत्नी भूमि देवी यानि पृथ्वी के पुत्र का नाम मंगल है। अग्नि से संबंध:- एक अन्य पुराण के अनुसार कुमार यानि मंगल, अग्नि और स्वाहा (अग्नि की पत्नी) की संतान है। कुमार कई नामों से जाना जाता है जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं- भौम, गुहा, महासेना, शक्तिधारा, श्रभु, सेनापति। मंगल के कारकत्व:- ‘‘उत्तर कालामृत’’ के अनुसार मंगल से निम्न विषयों का विचार करना चाहिये:- शूरता, भूमि, राज्य, चोर, विरोध, शत्रु, पशु, राजा, क्रोध, विदेशगमन, अग्नि, पित्त, घाव, छोटा कद, रोग, शस्त्र, कडवा, ग्रीष्मऋतु, शील, तांबा, दक्षिण दिशा, सेनाधीश, वृक्ष, भ्राता, दंडाधिकारी, सांप, तर्कशक्ति, गृह आदि। विभिन्न भावों में मंगल के फल ः- ‘‘मानसागरी’’ के अनुसार मंगल के विभिन्न भावों में स्थित होने से निम्न फल मिलते हैं - प्रथम भाव में - शरीर में रोग, चंचल; द्वितीय - तेज और चटोरा ; तृतीय- विद्वान, साहसी; चतुर्थ - कष्ट भोगने वाला, दुखी ; पंचम - धन व संतान की कमी ; षष्ट - बलवान, शत्रु विजेता ; सप्तम - पत्नी से निष्कासित ; अष्टम - स्वस्थ व खुश ; नवम - घायल, भाग्यहीन ; दशम - विद्वान व साहसी ; एकादश - धनी व सम्मानित ; द्वादश - निर्धन व बीमार। मंगल के व्यवसाय:- ‘‘उत्तर कालामृत’’ के अनुसार मंगल ग्रह से संबंधित निम्न व्यवसाय होने चाहिये ः- अग्नि, बिजली, रेडियो, भट्ठी आदि के सभी कार्य। बारूद, बंदूक, तोप तलवार आदि शस्त्रों के कार्य, सेना से संबंधित कार्य, मंगल की पूजा:- मंगल की शांति के लिये निम्न दिन शुभ कहे जाते हैं - मंगलवार मंगल ग्रह के लिये शुभ दिन है। जब कभी शुक्ल पक्ष की चतुर्थी मंगलवार को आती है तो यह दिन मंगल की पूजा के लिये शुभ माना जाता है। इसे अंगारक चतुर्थी भी कहते हैं। ‘‘स्कन्द पुराण’’ के अनुसार षष्ठी तिथि को भी मंगल की पूजा के लिये शुभ कहा जाता है क्योंकि इसी दिन मंगल को सेनापति बनाया गया था। इस दिन मंगल की पूजा करने से धन व पुत्रलाभ मिलता है। ‘‘अपुत्रो लभते पुत्रमधनो पि धनं लभेत’’ यदि अंगारक चतुर्दशी को मंगल की पूजा की जाये तो सौ सूर्य ग्रहणों के बराबर फल की प्राप्ति होती है। मंगल ग्रह की प्रार्थनायें:- ‘‘स्कन्द पुराण’’ के अनुसार अंगारक शक्तिधरो लोहितांगो धरासुतः। कुमारो मंगलो भौमो महाकायो धनप्रदः।। ऋणहर्ता दृष्टिकर्ता रोगकृद्रोगनाशनः। विद्युत्प्रभो व्रणकर कामदो धनहत् कुजः।। सर्वा नश्यति पीडा च तस्य ग्रहकृता ध्रुवम्।।

भाग्य का उदय

भाग्य के साथ देने पर व्यक्ति का पुरूषार्थ भी सफल होता है। एक स्वस्थ, सुशिक्षित, धनी, सुशील पत्नी तथा पुत्रों सहित सुखी जीवन का आनंद लेते व्यक्ति को देखकर सभी उसे भाग्यशाली कहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपना भाग्य (भविष्य) जानने के लिए उत्सुक रहता है। भाग्य व्यक्ति के प्रारब्ध (पिछले जन्म के कर्मफल) को दर्शाता है। जन्मकुंडली के नवम् भाव को भाग्य स्थान माना गया है। नवम् भाव से भाग्य, पिता, पुण्य, धर्म, तीर्थ यात्रा तथा शुभ कार्यों का विचार किया जाता है। नवम भाव कुंडली का सर्वोच्च त्रिकोण स्थान है। उसे लक्ष्मी का स्थान माना गया है। नवम भाव, एकादश (लाभ) भाव से एकादश होने के कारण ‘लाभ का लाभ’, अर्थात जातक के जीवन की बहुमुखी समृद्धि दर्शाता है। ‘मानसागरी’ ग्रंथ के अनुसार:- ‘‘विहाय सर्वं गणकैर्विचिन्त्यो भाग्यालयः केवलमन्न यलात्।’’ अर्थात्’ ‘‘एक ज्योतिषाचार्य को दूसरे सब भावों को छोड़कर केवल नवम् भाव का यत्नपूर्वक विचार करना चाहिए, क्योंकि नवम् भाव का नाम भाग्य है। जब नवम भाव अपने स्वामी या शुभ ग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट हो तो मनुष्य भाग्यशाली होता है। नवमेश भी शुभ ग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट हो तो सर्वदा शुभकारी होता है। यदि पाप ग्रह भी अपनी, मित्र, मूल त्रिकोण अथवा उच्च राशि में नवम् भाव में स्थित हो तो अपने बलानुसार शुभ फल देता है। जैसे शनि भाग्येश होकर भाग्य भाव में स्थित हो तो जातक जीवन पर्यन्त भाग्यशाली रहता है। (भाग्य योग करें सौरे स्थिते च जन्मनि। - मानसागरी)। लग्नेश यदि भाग्य भाव में स्थित हो तब भी जातक परम भाग्यशाली होता है। बृहस्पति नवम भाव का कारक ग्रह है। जब बलवान बृहस्पति नवम भाव में हो, या लग्न, तृतीय अथवा पंचम भाव में स्थित होकर नवम् भाव पर दृष्टिपात करें तो विशेष भाग्यकारक होता है। नवम भाव में सुस्थित बृहस्पति यदि शुक्र और बुध के साथ हो तो पूर्ण शुभ फलदायक होता है। परंतु इन पर शनि, मंगल व राहु की दृष्टि हो तो आधा ही शुभ फल मिलता है। नवम् भाव व नवमेश निर्बल अथवा पीड़ित हो तो जातक भाग्यहीन होता है। भाग्य भाव पंचम भाव लग्न भाव होता है। अतः उसका स्वामी (लग्नेश) भी भाग्यकारक होता है। ‘भावात् भावम्’ सिद्धांत के अनुसार नवम् से नवम् अर्थात पंचम भाव और पंचमेश भी भाग्यकारक होते हैं। ज्ञातव्य है कि नवम और पंचम (त्रिकोण भाव) को लक्ष्मी स्थान की संज्ञा दी गई है। जब ये तीनों ग्रह (नवमेश, लग्नेश और पंचमेश) बलवान हों तथा शुभ भाव में अपनी स्वयं, उच्च, अथवा मूलत्रिकोण राशि में शुभ दृष्ट हों, तो व्यक्ति जीवन पर्यन्त भाग्यशाली होता है। कारक बृहस्पति का संबंध शुभ फल में वृद्धि करता है। भाग्योदय काल त्रिक भावों (6, 8, 12) के अतिरिक्त अन्य भाव में स्थित नवमेश अपने बलानुसार उस भाव के कारकत्व के फल में वृद्धि करता है। नवमेश, नवम भाव स्थित ग्रह तथा नवम भाव पर दृष्टि डालने वाले ग्रहों की दशा में भाग्योदय होता है। ‘फलित मार्तण्ड’ ग्रंथ के अनुसार नवमेश, नवम भाव स्थित ग्रह व नवम भाव पर दृष्टिपात करने वाले बलवान ग्रह अपने निर्धारित वर्ष में जातक का भाग्योदय करते हैं। ग्रहों के भाग्योदय वर्ष इस प्रकार हैंः- सूर्य- 22, चंद्रमा- 24, मंगल- 28, बुध-32, बृहस्पति -16 (40), शुक्र-21 (25), शनि-36, राहु-42 और केतु -48 वर्ष। बृहत पाराशर होरा शास्त्र ग्रंथ के अनुसार 1. भाग्य स्थान में बृहस्पति और भाग्येश केंद्र में हो तो 20वें वर्ष से भाग्योदय होता है। 2. यदि नवमेश द्वितीय भाव में और द्वितीयेश नवम भाव में हो तो 32वें वर्ष से भाग्योदय, वाहन प्राप्ति और यश मिलता है। 3. यदि बुध अपने परमोच्चांश (कन्या राशि-150 ) पर और भाग्येश भाग्य स्थान में हो तो जातक का 36वें वर्ष से भाग्योदय होता है। सौभाग्यकारी गोचर 1. जब गोचर में नवमेश की लग्नेश से युति हो, या फिर परस्पर दृष्टि विनिमय हो अथवा लग्नेश का नवम भाव से गोचर हो तो भाग्योदय होता है। परंतु उस समय नवमेश निर्बल राशि में हो तो शुभ फल नहीं मिलता। 2. नवमेश से त्रिकोण (5, 9) राशि में गुरु का गोचर शुभ फलदायक होता है। 3. जब जन्म राशि से नवम्, पंचम या दशम भाव में चंद्रमा आए उस दिन जातक को शुभ फल की प्राप्ति होती है। उपरोक्त ज्योतिष सूत्रों को दर्शाती कुछ कुंडलियां इस प्रकार हैं:- नवमेश बुध, एकादशेश सूर्य तथा बृहस्पति तृतीय भाव से नवम भाव पर दृष्टिपात कर रहे हैं। योगकारक शनि लग्न में ‘शश’ योग बना रहा है। लग्नेश शुक्र दशमेश चंद्रमा के साथ द्वितीय भाव में है।

दक्षिण दिशा के दुष्प्रभाव

परिवार/व्यवसाय की वृद्धि व घर में सामंजस्य रहता है। - घर का मुख्य द्वार उत्तर में होने के कारण पूरे घर की शांति तथा विकास के लिए लाभदायक है। परन्तु खुली जगह का दक्षिण में तथा उत्तर का बंद होना (सामने दूसरा फ्लैट होने के कारण) उचित नहीं है। इसकी वजह से काम-धन्धों का विकास न होना, बीमारियों का बढ़ना तथा अनावश्यक खर्चे होने लगते हैं। - घर में उत्तर-पूर्व का कटना (शाफ्ट के कारण) बहुत खराब है क्योंकि यह सर्वोत्तम अच्छी व शुद्ध ऊर्जा को समाप्त करता है एवं इस चहुंमुखी विकास के शुभ क्षेत्र के लाभ को भी कम करता है, जहां से हमें शांति, विद्या, बुद्धिमत्ता तथा भगवान का आशीर्वाद मिलता है। परिवार में बच्चों से संबंधित समस्या बनी रह सकती है। - बढ़ा हुआ आग्नेय चोरी और आग की घटनाओं को बढ़ावा देता है। - उत्तर-पूर्व में रसोईघर होने के कारण स्त्री की सेहत तथा परिवार की वृद्धि में कठिनाई आ सकती है। यह दोष भारी व्यय तथा मानसिक अशांति का कारण देखा गया है। - रसोईघर में गैस तथा सिंक एक ही लाइन में होने की वजह से परिवार में मनमुटाव का कारण बन सकता है। गैस तथा सिंक के बीच कम से कम 2 फुट ऊँचा डिवाइडर बनाने से इसका प्रभाव काफी कम हो सकता है। - रसोईघर में सिंक शांति तथा वित्तीय समृद्धि के लिये बहुत उचित है लेकिन गैस का उत्तर में होना आपसी मतभेद तथा अवांछित खर्चों को बढ़ाता है। फ्रिज का स्थान चल सकता है। - दक्षिण-पूर्व के कमरे के शौचालय की सीट का मुख पूर्व की तरफ है जो कि भगवान के आशीर्वाद को कम करता है। इसे बदला जा सकता है। लेकिन इस कमरे के कारण दक्षिण-पूर्व (आग्नेय) का कोण बन्द हो गया था जिससे चोरी, आग दुर्घटना का डर बना रहता है। - विवाहित जोड़े के लिए मुख्य शयन कक्ष दक्षिण-पूर्व जो कि आग का क्षेत्र होता है ठीक नहीं है क्योंकि यह आपसी कलह को बढ़ावा देता है। हालांकि यह अविवाहित बच्चों विशेषकर लड़कों के लिए ठीक होता है। वे यहां ऊर्जा से भरपूर रहते हैं। अभी बच्चों/मेहमान/ पढ़ाई के लिये प्रयोग में ला सकते हैं। - दूसरा कमरा दक्षिण-पश्चिम में है तथा उसका शौचालय दक्षिण में है जो कि बहुत अच्छा है तथा मास्टर बेडरुम के लिये उत्तम है। - लिविंग रुम तथा इसमें रखे फर्नीचर, सामान आदि की व्यवस्था अच्छी है। घर के वास्तु परामर्श द्वारा जीवन व परिवार की समस्याओं का बिना किसी पूर्व जानकारी के, इतना सटीक विवरण सुनकर उनको भी इस भारतीय प्राचीन विद्या में विश्वास जागृत हुआ। पिछले कुछ वर्षों से, जबसे वे लोग यहां आये हैं, घर में तनाव, चोरी, बीमारी, गर्भहानि, अबाॅर्शन के कारण उदासी रहती है। ईशान के कटने को कुछ हद तक शीशा लगाकर कम कर सकते हैं, परन्तु चूंकि अभी जीवन की शुरुआत ही है, इसलिये यह सुझाया गया कि उपरोक्त सब परिवर्तन प्रारंभिक उपचार समझें। अंततोगत्वा दूसरा घर जिसमें ऐसे भारी दोष न हों, वही लेना उचित रहेगा।

कृषि भूमि की कमी और विकास क्या है इसका ज्योतिषीय कारण -

विकास के नाम पर देश की हरियाली पर कुठाराघात किया जा रहा है दुनिया का अमीर से अमीर आदमी भी अन्न खाकर ही जीवित रहता है किंतु इसी अन्न को उगाने वाले किसानों से उपजाउ भूमि अधिग्रहित कर सरकार रोड़, नगर, क्रांकीट की जाल बिछाती जा रही है? आज भी हमारा देश कृषि प्रधान देश है और देश के लिए विकास और अनाज दोनो जरूरी है किसानो को शोषण करके देश का विकास संभव नही है। जमीन से पैदावार तो कर सकते है जमीनी दायरे को बढ़ा नही सकते इस देश का विकास तभी संभव है जब किसानों को शिक्षित किया जाएगा, कृषिभूमि को उरवर बनाने के प्रयास किये जाए क्योंकि किसान से विकास के नाम पर जमीन लेकर मुआवजा तो दे देंगे जो खत्म भी हो जायेगी किंतु पीढ़ियों तक चलने वाली आजीविका कहाॅ से लायेंगे। विकास हो, खूब हो, देश तरक्की करे, आगे बढे। लेकिन विकास का यह कैसा मार्ग है जिस पर किसान, आदिवासी या गांववालों को दबा कर ही आगे ही बढ़ा जा सकता है। ऐसा क्यों हो रहा है जाने इसका ज्योतिषीय कारण क्या है। जब गुरू राहु से पापाक्रांत हो रहा है तो बुद्धिजीवी कहे जाने वाले लोग आमजन विरोधी क्रियाकलाप कर आम जन के हित से परे कार्य करेंगे। चूॅकि मंगल, सूर्य और शुक्र जैसे ग्रह विपरीत हैं तो ताकतवर लोग कमजोर लोगों के हित से परे कार्य करेंगे। जो कि भविष्य में जन आंदोलन का कारण बनेगा। अतः आमजन की सुविधा और कृषि से जुड़े लोगो के हित को सर्वोपरी रखते हुए कार्य करना ही सत्ता और सरकार के साथ समाज की शांति, समृद्धि और सुख के लिए आवष्यक है। 

साप्ताहिक राशिफल 24 जुलाई से 30 जुलाई 2016.........


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Saturday 23 July 2016

रिश्तों में दूरियां का आने के ज्योतिष्य कारण.....

सृष्टि के आरंभ से ही नर और नारी में परस्पर आकर्षण विद्यमान रहा है, जिसे आधुनिक काल में प्रेम का नाम दिया जाता है। जब भी कोई अपनी पसंद रखता तब वह प्रेम करता है। यह प्रेम जब माता-पिता, भाई-बहनों, दोस्त-रिष्तेदारों से हो सकता है तब किसी से भी होता है। इसका कारण होता है कि जब व्यक्ति स्वायत्यशाी हेाता है तो अपनी मर्जी से किसी को पसंद करता है और उससे ही विवाह करता है, और मर्जी का मालिक होने के कारण अपने पार्टनर के साथ भी मनमर्जी चलाने के कारण विवाद की स्थिति निर्मि होती है। ज्योतिषीय रूप देखा जाए तो प्रेम करने हेतु लग्न, तीसरे, पंचम, सप्तम, दसम या द्वादष स्थान में शनि अथवा गुरू, शुक्र, चंद्रमा, राहु या सप्तमेष अथवा द्वादषेष शनि से आक्रांत हो तो ऐसे लोगों को प्यार जरूर होता है। चूॅकि शनि स्वायत्तषासी बनाता है अतः प्रेम के बाद स्वयं की स्वेछा से कार्य करने के कारण अपने प्यार से ही पंगा भी कर लेते हैं। अतः जो ग्रह प्यार का कारक है वहीं ग्रह प्यार में पंगा भी देता है। अतः अगर किसी के प्यार में पंगा हो जाए तो उसे तत्काल शनि की शांति कराना चाहिए। इसके साथ शनि के मंत्रों का जाप, काली चीजों का दान एवं व्रत करना चाहिए। इससे प्यार हो और वह प्यार निभ भी जाए।

कौन से ग्रह शासक को क्रांतिकारी तानाशाह या लोकतांत्रिक बनाते हैं.........

मनुष्य की जन्मकुंडली में स्थित ग्रहों के विभिन्न प्रकार के संयोग और बलाबल के अध्ययन से व्यक्ति विशेष के आचरण, आदर्श और सिद्धांत का तथा उनसे किसी देश या राज्य पर पड़ने वाले प्रभाव का बोध हो सकता है, कौन से ग्रह योग शासक को क्रांतिकारी तानाशाह और कौन सुहृदय लोकतांत्रिक बनाते हैं। धार्मिक, राजनैतिक और सामाजिक क्षेत्र में मनुष्य के चिंतन, दर्शन और कार्यशैली पर आकाशीय ग्रहों की रश्मियों के रुप में कुछ अदृश्य प्रेरणाओं का नियंत्रण होता है, जिससे अनेक प्रकार की विचारधाराओं जैसे - व्यक्तिवाद, आदर्शवाद, समाजवाद, माक्र्सवाद, गांधीवाद और उपयोगितावाद इत्यादि का प्रस्फुटन होता है। मनुष्य की जन्मकुंडली में स्थित ग्रहों के विभिन्न प्रकार के संयोग और बलाबल के अध्ययन से व्यक्ति विशेष के आचरण, आदर्श और सिद्धांत का तथा उनसे किसी देश या राज्य पर पड़ने वाले प्रभाव का बोध हो सकता है, जिससे उस व्यक्ति के सकारात्मक या नकारात्मक दृष्टिकोण में से सार्थकता की उपज की आशा की जा सकती है। ज्योतिषीय ग्रंथों के अनुसार दशम भाव, दशमेश, सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु और शनि की बलवान अवस्था में राजनीतिज्ञों का जन्म होता है। इनमें सर्वप्रथम दशम भाव और इसके स्वामी का बल महत्वपूर्ण होता है, तत्पश्चात अन्य ग्रहों का। सूर्य और चंद्र दोनों शाही ग्रह हैं, जो बली अवस्था में नेतृत्व, अधिकार और सत्ता के कारक होते हैं। सूर्य स्वयं राजा है, जो प्राणियों को अन्न, जल और प्रकाश के रुप में ऊर्जा प्रदान करता है। चंद्र मन का कारक होने के कारण किसी कार्य हेतु व्यक्ति के मन को एकाग्र करता है। मनुष्य का मन अनेक भावनाओं का समुद्र है, जिसमें उसकी अपनी प्रवृत्तियां और इच्छाएं होती हैं, जिनके अनुसार उसकी मानसिकता, व्यवहारिकता और कार्य प्रणाली नियंत्रित होती है। इसलिए चंद्र के माध्यम से मनुष्य के मन का ज्योतिषीय अध्ययन करके उसकी मानसिक शक्ति, प्रवृत्ति और कार्यशैली का बोध हो सकता है तथा किसी कार्य हेतु उसकी विगुणता, न्यूनता या कमियों को दूर करने के उपाय बताये जा सकते हैं। निर्बल चंद्र से मनुष्य का व्यक्तित्व अनेक मानसिक विकृतियों जैसे चिंता, भय, तनाव, द्वेष, ईष्र्या के कारण श्रीहीन होता है, जिसका सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था में कोई स्थान नहीं हैं।राजनीतिज्ञ और खिलाड़ियों के लिए मंगल और राहु की ऊर्जा से विरोध, दबाव और तनाव सहने की क्षमता उत्पन्न होती है। मंगल क्रूर, क्षत्रिय और युद्धप्रिय स्वभाव का होता है जिसके संग अत्याचारी, उच्छृंखल और अचानक घटनाओं को उत्पन्न करने वाला, राहु उद्दीपन का कार्य करता है। जब इन दोनों में से किसी एक या दोनों का संयोग मन-कारक किसी ग्रह से होता है तो मनुष्य की वैचारिकता का विध्वंसक रुप मुखरित होने लगता है। अतः जब किसी व्यक्ति की कुंडली के केंद्र भावों में सूर्य, मंगल, शनि और राहु में से दो या तीन का समूह हो, तो ऐसी युति से क्रांतिकारी वैचारिकता का जन्म होता है, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए एक अभिशाप है, क्योंकि ऐसे व्यक्ति उग्र, उष्ण, उद्विग्न, क्रोधी, अभिमानी, कलहकारी और महत्वाकांक्षी स्वभाव के होते हैं, जिसके कारण वे राजनैतिक क्षेत्र में तानाशाही सिद्ध होते हैं। अर्द्धशताब्दी पूर्व इटली में मुसोलिनी और जर्मनी में हिटलर ऐसे दो घृणास्पद तानाशाही शासक थे, जिनके लिए संपूर्ण विश्व में कोई सम्मान नहीं है। इनकी कुंडलियों का ज्योतिषीय विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि इनके लग्न, लग्नेश और चंद्र पर पाप ग्रहों के प्रभाव होने के कारण इन दोनों का स्वभाव क्रांतिकारी मगर ईष्र्यालु, प्रतिकारी, कलहकारी और युद्धप्रिय था, जिसके कारण वे मानवीय सहृदयता के प्रतिकूल कार्य करते थे। वास्तविकता यह है कि कुंडली में उपर्युक्त ग्रह विन्यास से मनुष्य के अंदर असीम शक्ति का संचार होता है। असीमित शक्ति से मनुष्य के आचरण की शालीनता, सात्विकता, सहिष्णुता, विनम्रता और आत्मीयता का क्षरण होने लगता है, जिसके कारण उसकी राक्षसी प्रवृत्ति प्रभावी होने लगती है। परिणामस्वरुप मनुष्य इस शक्ति का सदुपयोग अपने अन्तःकरण की आवाज अर्थात् अपनी प्रज्ञा और अपने विवेक के अनुसार नहीं कर पाता।

खाने के आदतें और कुंडली का योगदान

अधिकांश माताएं बच्चे के खाने में अनयिमितता या मूडीपन से परेशान रहती हैं इस परेशानी से दूर करने के लिये कुछ बातों पर ध्यान देना आवश्यक है। क्योंकि स्वस्थ रहने के लिये ज्यादा खाना आवश्यक नहीं होता लेकिन अगर आपका बच्चा खाने में अनियमित होने के साथ-साथ शरीरिक रूप से स्वस्थ नहीं है तो यह जरूर विचारणीय प्रश्न है। अगर आप भी ऐसी परेशानी से दो चार हो रहे हैं तो देखें कि आपके बच्चे की कुंडली में शुक्र, राहु जैसे ग्रह मजबूत हों तो मीठा पसंद होता है वहीं शनि जैसे ग्रह होने से तीखा और मसालेदार पसंद होते हुए भी हजम करने में कठिनाई होती है इसी प्रकार गुरू हेाने से सात्विक खाना खाने वाला होगा। इस प्रकार बच्चे की ग्रह स्थिति का आकलन और उसकी पसंद-नापसंद का आकलन कर बेहतर पौष्टिक आहार का चार्ट बनाकर अपने बच्चे की सेहत का ख्याल रखा जा सकता है। 

बुरे सपनों का कारण है राहु

 सपनों की दुनिया भी बड़ी अजीब होती है। हर इंसान अपनी जिंदगी में सपने जरूर देखता है। स्वप्न कभी डरावनें कभी सुंदर तो कभी परेषान करने वाले कुछ भी हो सकते हैं कभी सच्चाई के करीब तो कभी बेहद काल्पनिक। वैज्ञानिक सपनों को स्वप्नावस्था के अवचेतन मस्तिष्क की उपज मानता है वहीं भारतीय ज्योतिष में स्वप्न को अवचेतनावस्था का ही परिणाम मानता है कि मस्तिष्क नहीं अपितु मन की अवचेतन अवस्था का। वैदिक ज्योतिष के अनुसार मन पर चंद्रमा का प्रभाव होता है अतः चंद्रमा जिस भाव में होगा, उसके स्वप्न उस भाव से संबंधित होते हैं। किंतु कई स्वप्न स्थाई होते हैं जैसे सांप, पानी या प्रेत के सपनें इन सपनों का कारण राहु दोष होता है अतः लगातार इस प्रकार के सपने आयें को राहु की शांति कराना चाहिए, काली चीजों का दान एवं मंत्रजाप करने से सपनों के डर से मुक्ति मिलती है।

कालसर्प दोष और द्वादश ज्योतिर्लिंग



कालसर्प दोष से मुक्ति प्राप्ति हेतु सभी प्रभावशाली उपायों का विस्तार से वर्णन करें। यदि इस संबंध मं कोई व्यक्तिगत अनुभव भी रहा है तो उसका भी संक्षिप्त वर्णन करें। इस संबंध में द्वादश ज्योतिर्लिंगों के स्थान, माहात्म्य एवं यात्रा मार्ग का भी वर्णन करें। कालसर्प योग की जन्मांग में उपस्थिति मात्र से जनसामान्य के मन में आतंक और भय की भावना उदित हो जाती है। कालसर्प योग से पीड़ित जन्मांग वाले जातकों का सम्पूर्ण जीवन अभाव, अनवरत अवरोध, निरंतर असफलता, सन्तानहीनता, वैवाहिक जीवन में कष्टादि अनेक अनिष्टों से युक्त हो जाता है। भारतीय ज्योतिषशास्त्र की फलित शाखा सहस्राधिक वर्षों से पीड़ित मानवता के कल्याण हेतु आध्यात्मिक उपायों को भी प्रकट करती रही है। आज जबकि इस योग से पीड़ित जातकों की संख्या करोड़ों में है, तो इस दिशा में ज्योतिषशास्त्र के विद्वानों की जिम्मेदारी और भी अधिक बढ़ जाती है। इस कष्टप्रद योग की शान्ति संबंधी विविध उपायों पर चर्चा से पूर्व इस ज्योतिषीय योग का सामान्य परिचय देना आवश्यक है। कालसर्प योग- किसी भी जातक की जन्मकुण्डली में जब समस्त ग्रह राहु तथा केतु के बीच स्थित रहते हैं तो यह ग्रह स्थिति ‘कालसर्प योग’ के नाम से जानी जाती है। राहु तथा केतु की विभिन्न भावों में स्थिति के आधार पर इनका विशिष्ट नामकरण भी किया गया है जो तालिका से स्पष्ट है- ये बारह प्रकार के कालसर्प योग उदित तथा अनुदित दो प्रकार के होते हैं। राहु के मुख में सातों ग्रहों के आ जाने पर उदित कालसर्प योग होता है जबकि सारे ग्रह राहु के पीछे आने पर अनुदित कालसर्प योग होता है। भारतीय ज्योतिषशास्त्र के प्राचीन मनीषियों ने विभिन्न कुयोगों के वर्णन के साथ-साथ उनकी शान्ति अथवा शमन के लिए भी अनेक मार्ग बताए हैं। इन शान्ति मार्गों में मन्त्र, मणि, औषधि आदि प्रमुख हैं। कालसर्प योग की शान्ति हेतु कई उपायों का वर्णन ज्यातिषशास्त्र के विद्वानों ने किया है। ये उपाय मन्त्र शास्त्र, तन्त्र शास्त्र, लाल किताब आदि पर आधारित हैं। कालसर्प योगों की शान्ति हेतु सर्वाधिक प्रचलित तथा प्रभावी विधियों का क्रमशः वर्णन किया जा रहा है- कालसर्प योग शान्ति अनुष्ठान- कालसर्प योग शान्ति का सम्पूर्ण अनुष्ठान त्रिपिंडी श्राद्ध, नारायण बलि, नागबलि तथा नागपूजन द्वारा सम्पन्न होता है। कालसर्प योग क जन्मांग में उपस्थिति का मूल-कारण पितृशाप माना गया है। अतः पितरों की शान्ति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध आवश्यक है। त्रिपिंडी श्राद्ध संबंधी विस्तृत वर्णन ‘श्राद्ध-चिंतामणि’ ग्रन्थ में उपलब्ध होता है। यदि जातक विवाहित है तो उसे अपनी पत्नी के साथ नवीन श्वेत वस्त्र धारण कर उचित नक्षत्र मुहूर्तादि में त्रिपिंडी श्राद्ध करना चाहिए। इसी प्रकार नारायणबलि-नागबलि का भी विद्वान आचार्यों द्वारा अनुष्ठान करवाना चाहिए। यहाँ यह ध्यातव्य है कि कालसर्प योग + शान्ति उपाय अनन्त कालसर्प योग- बिल्ली की जेर को लाल रंग के कपड़े में डालकर धारण करें। दूध का दान करें। चाँदी की थाली में भोजन करें। काले तथा नीले रंग के कपड़े पहनने से बचें। जेब में लोहे की साबुत गोलियाँ रखना भी लाभप्रद होता है। कुलिक कालसर्प योग- चाँदी की ठोस गोली अपने पास रखें। सोना, केसर अथवा पीली वस्तुएँ धारण करें। चारित्रिक फिसलन से बचें। दोरंगा काला सफेद कंबल धर्म स्थान में दान दें। कान का छेदन भी लाभप्रद होता है। हाथी के पांव की मिट्टी कुएं में डालें। वासुकि कालसर्प योग- हाथी दांत की वस्तु भूल कर भी अपने पास न रखें। चारपाई के पायों पर ताँबे की कील लगवा लें। रात्रि में सिरहाने में अनाज रखें तथा प्रातः यह अनाज पक्षियों को खिला दें। झूठ बोलने से बचें। स्वर्ण की अंगूठी या कोई भी स्वर्ण आभूषण धारण करें। केसर का तिलक लगाएँ। शंखपाद कालसर्प योग- ग्ंगा स्नान करें। चांदी की अंगूठी धारण करना लाभप्रद रहेगा। मकान की छत पर कोयला रखने से बचें। यदि रोग ज्यादा परेशान कर रहे हों तो 400 ग्राम बादाम नदी में प्रवाहित करें। चंदी की डिब्बी में शहद भरकर घर से बाहर सुनसान स्थान में दबा दें। पद्म कालसर्प योग- अपनी पत्नी के साथ समस्त रीति-रिवाजों के साथ दूसरी बार शादी करें। घर में गाय या कोई भी दुधारू पशु पालें। चांदी का छोटा सा ठोस हाथी अपने पास रखें। दहलीज बनाते समय जमीन के नीचे चांदी का पत्तर डाल दें। पराई स्त्री से दूर रहें। नित्य सरस्वती स्तोत्र का पाठ करं। महापद्म कालसर्प योग- घर में पूरा काला कुत्ता पालें। काला चश्मा पहनना शुभ होगा। भाईयों या बहनों के साथ किसी भी रूप में झगड़ा न करें। चाल-चलन पर संयम रखें। कँआरी कन्याओं का आशीर्वाद लेते रहें। सरस्वती की आराधना कष्ट दूर करने मे सहायक होगी। तक्षक कालसर्प योग- भूलकर भी कुत्ता न पालें। चलते पानी में नारियल बहाएँ। विवाह के समय चांदी की ईंट अपनी पत्नी को दें। ध्यान रहे इस ईंट का बेचना विनाश का कारण होता है, अतः हमेशा संभालकर रखें। घर में चांदी की ईंट रखें। किसी बर्तन मे नदी का जल लेकर उसमें एक चांदी का टुकड़ा रखकर धर्मस्थान में दें। ताँबे की वस्तुओं को दान में न दें। ताँबें की गोली अपने पास रखें। कार्कोटक कालसर्प योग- माथे पर तिलक लगाएँ। भड़भूजे की भट्ठी में ताँबे का पैसा डालें। चार नारियल नदी में बहाएँ। बेईमानी से पैसे न कमाएँ। सूखे मेवे चाँदी के बत्र्तन में डालकर धर्मस्थान में दें। जन्म के आठवें मास से कुछ बादाम मंदिर ले जाएँ आधे वहीं छोड़ दें बाकी बचे बादाम अपने पास रख लें। यह क्रिया अगले जन्मदिन आने तक करं। चांदी का चैकोर टुकड़ा जेब में रखें। शंखचूड़ कालसर्प योग- सोना धरण करें। केसर का तिलक लगाएँ। पीला वस्त्र धारण करें। सुबह-सुबह पक्षियों को दाना-पानी डालें। घातक कालसर्प योग- सिर खाली न रखें। टोपी या साफा कोई भी चीज सिर पर हमेशा रखें। सरस्वती का पूजन करें। चांदी का चैकोर टुकड़ा जेब में रखें। सोने की चेन पहनें। हल्दी का तिलक लगाएँ। मसूर दाल (बिना छिलके वाली) नदी में प्रवाहित करें। विषाक्त कालसर्प योग- म्दिर में दान करं। ताँबे या लाल वस्तु दान न दें। अस्त्र-शस्त्र घर में न रखें। सोने की अंगूठी पहनें। चार नारियल को जल में प्रवाह देना इस योग के अशुभ फल में न्यूनता लाएगा। चांदी के ग्लास में पानी पिएं। रात में दूध ना पिएँ। शेषनाग कालसर्प योग- लाल मसूर दाल का दान दें। धर्म स्थान में ताँबे के बर्तन दान में दें। चांदी का ठोस हाथी घर में रखें। सोने की चेन पहनें। सरस्वती का पूजन नीले पुष्पों से करें। कन्या तथा बहन को उपहार देते रहें। द्वादश ज्योतिर्लिंग- द्वादश ज्योतिर्लिंग और उनके स्थान का वर्णन करते हुए शिव पुराण में कहा गया है- सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। उज्जयिन्यां महाकालमोंकारममलेश्वरम्।। परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशंकरम्। सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारूकावने।। वाराणस्यां तु विश्वेशं त्रयम्बकं गौतमीतटे। हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये। स्पष्ट है कि सोमनाथ, श्रीमल्लिकार्जुन, श्रीमहाकाल, श्री ऊँकारेश्वर, श्रीवैद्यनाथ, श्रीभीमशंकर, श्रीरामेश्वम्, श्रीनागेश्वर, श्री विश्वनाथ, श्रीत्रयम्बकेश्वर, श्रीकेदारनाथ और श्रीघुमेश्वर। भारतवर्ष के विभिन्न स्थलों पर विराजमान इन द्वादश ज्योतिर्लिंगों के नामस्मरण मात्र से सात जन्मों का किया गया पापसमूह नष्ट हो जाता है। इन पुण्यस्थलों पर शिवार्चन तथा रूद्राभिषेक अनुष्ठान करने से कालसर्प योग जनित समस्त अनष्टिों का नाश सहज ही हो जाता है। अतः पाठकों की सुविधा हेतु द्वादश ज्योतिर्लिंगों का नामोल्लेख, मन्दिर की स्थिति तथा वहां पहुंचने के मार्ग का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है- 1- श्रीसोमनाथ- यह ज्योतिर्लिंग गुजरात के सौराष्ट्र में स्थित है। प्राचीन ग्रन्थों में इसे ‘प्रभास क्षेत्र’ कहा गया है जो वेरावल के नजदीक है। प्राचीन मान्यता है कि यह मन्दिर सर्वप्रथम स्वयं चन्द्र देव द्वारा बनाया गया था। काल के प्रवाह में यह मन्दिर अनेक बार ध्वस्त हुआ और इसका पुनर्निर्माण भी हुआ। श्रीसोमनाथ के स्थित है। नल्लामाला पहाड़ी में श्रीशैल नामक स्थान पर स्वयं सदाशिव विराजमान हैं। श्रीरामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग के अतिरिक्त इस ज्योतिर्लिंग को भी भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित किया हुआ माना जाता मन्दिर के दर्शन के लिए सड़क मार्ग, रेलमार्ग तथा वायुमार्ग द्वारा जाया जा सकता है। सड़क मार्ग से जाने के लिए नजदीकी स्थान वेरावल (7 किमी.), जूनागढ (85 कि.मी.), पोरबन्दर (122 कि.मी.) भावनगर (266 कि.मी.), अहमदाबाद (465 कि. मी.) मुम्बई (889 कि. मी.) है। इन स्थानों से राज्य परिवहन निगम तथा निजी बस सेवाएं उपलब्ध हैं। वेरावाल रेलवे स्टेशन श्री सोमनाथ मंदिर से सिर्फ 7 कि. मी. की दूरी पर है। सबसे नजदीकी हवाई अड्डा केसोद है, जो मन्दिर से 55 कि.मी. की दूरी पर है। मन्दिर में दर्शन का समय सुबह 6 बजे से रात्रि 9 बजे तक है। 2- श्रीमल्लिकार्जुन- यह ज्योतिर्लिंग आन्ध्रप्रदेश के कर्नूल जिले में है। श्रीशैल हैदराबाद से 232 किमी. दक्षिण में अवस्थित है। नजदीकी हवाई अड्डा हैदराबाद और मापुर नजदीकी रेलवे स्टेशन मारकापुर है। यहां सड़क मार्ग द्वारा भी पहँुचा जा सकता है। राज्य परिवहन निगम की बस सेवाएँ यहाँ पर्याप्त संख्या में उपलब्ध हैं। 3- श्रीमहाकालेश्वर- मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक स्थल उज्जैन में यह ज्योतिर्लिंग अवस्थित है। यहां शिवलिंग दक्षिणाभिमुख हैं जिसके कारण इन्हें दक्षिणमूर्ति भी कहा जाता है। भस्म आरती इस मन्दिर की विशेषता है। इंदौर सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है और उज्जैन जंक्शन निकटतम रेलवे स्टेशन है। राज्य परिवहन निगम के बसों की सेवा यहां पर्याप्त मात्रा में है जिसके द्वारा सड़क मार्ग से यह मन्दिर जुड़ा हुआ है। 4- श्रीओंकारेश्वर- नर्मदा नदी के किनारे यह ज्योतिर्लिंग अवस्थित है। यह स्थान मध्यप्रदेश के खांडवा जिले के महेश्वर नामक स्थान पर है। नजदीकी हवाई अड्डा इंदौर है जो महेश्वर से 91 कि.मी. की दूरी पर है। बरवाहा रेलवे स्टेशन से भी महेश्वर पहुंचा जा सकता है। 5-श्रीभीमाशंकर - यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के पुणे में भावागिरि नामक स्थान पर है। पुणे से इस स्थान की दूरी 110 कि. मी. है। अगस्त से फरवरी के बीच कभी भी इस स्थान पर आया जा सकता है। नजदीकी हवाई अड्डा लौहगांव है। रेल द्वारा यात्रा करनी हो तो करजात रेलवे राजमार्ग संख्या 2 पर अवस्थित है। 6- श्रीवैद्यनाथ- यह ज्योतिर्लिंग झारखण्ड राज्य के देवघर नामक स्थान पर स्थित है जबकि कुछ लोग महाराष्ट्र के परमनी नामक स्थान के पास परली में स्थित ज्योतिर्लिंग को श्रीवैद्यनाथ मानते हैं। झारखण्ड के संथालपरगना क्षेत्र के जसीडीह मध्यप्रदेश के सभी महत्वपूर्ण स्थानांे से यहां सड़क मार्ग द्वारा आ जा सकते हैं। 7- श्रीकेदारनाथ - यह ज्योतिर्लिंग उत्तराखण्ड राज्य में स्थित है। इसकी गणना चार धाम के अन्तर्गत होती है और इसकी स्थापना स्वयं आदिगुरू शंकराचार्य ने की थी। यह मंदिर वर्ष में मात्र छः महीने ही खुला रहता है। 8- श्री काशी विश्वनाथ - उत्तरप्रदेश के बनारस में यह मंदिर स्थित है। यहां प्रत्येक दिन पांच बार आरती होती है। प्रत्येक वर्ष श्रावण मास में लाखों कांवड़िए सुल्तानगंज से गंगाजल लेकर श्रीवैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक करते हैं। 9-श्रीनागेश्वर- गुजरात राज्य के द्वारका में यह ज्योतिर्लिंग स्थित है। यह स्थान बड़ौदा से करीब बारह तेरह मील की दूरी पर है। यहाँ ज्योतिर्लिंग दक्षिणाभिमुख है। 10-श्रीरामेश्वरम् - यह ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु के रामेश्वरम नामक द्वीप पर स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग स्वयं भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित है अतः इस मंदिर का महत्व शैव धर्म के श्रद्धालुओं तथा वैष्णवों के लिए समान रूप से है। 11-श्रीघृष्णेश्वर - महाराष्ट्र के वेरूल नामक स्थान पर यह ज्योतिर्लिंग अवस्थित है। एलोरा की विश्वप्रसिद्ध गुफा के समीप ही यह मंदिर है।

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Monday 18 July 2016

पक्षाघात रोग: ज्योतिष्य कारण व् निवारण

पक्षाघात में शरीर का एक पक्ष क्रियाहीन हो जाता है। मिथ्या आहार विहार के सेवन से वात दोष प्रकुपित होकर शरीर के अर्ध भाग में अधिष्ठित होकर शिरा व स्नायु में स्थान संचय करके उनका शोषण कर देता है। पक्षाधात में रस, रक्त तथा मांस धातु की दृष्टि एवं स्नायु विकृति होती है। पक्षाघात में शिरा सक्रीय होने के कारण पोषणाभाव से मांस धातु का क्षय होने लगता है जिससे प्रभावित भाग कृश व दुर्बल हो जाता है। सम्प्रेषित घटक हेतु - वात प्रकोपक निदान, विषमाग्नि दोष - वात प्रधान त्रिदोषज व्याधि दूष्य-रस, रक्त, मांस, मेद, नाड़ी संस्थान स्रोतस - रसवह, रक्तवह, मांसवह, मेदोवह, प्राणवह स्रोती दृष्टि प्रकार - संग अधिष्ठान - शरीरार्ध रोगमार्ग-मध्यम स्वभाव-सागुकारी/ चिरकारी स ाध् य ास ाध् यत ा -कृ च्छ ू साध्य, याप्य पक्षाघात की विभिन्न अवस्थाएं एकांगघात, पक्षवध, अध् ारांगघात, सर्वांगघात पक्षाघात के लक्षण -शरीर के प्रभावित भाग की चेष्टा का नाश -बोलने में कठिनाई, हनुग्रह, मन्याग्रह, स्तब्ध नेत्र -हस्तपाद संकोच, शरीरार्घ में तीव्र पीड़ा - शिरा स्नायु शोथ, हस्तपाद शोथ, मांस क्षय - मुख, नासा, हनु, नेत्र, भू, ललाट की वक्रता -शिरकम्प, रोमहर्ष, अविरल नेत्रता - हास्य एवं भोजन ग्रहण में कठिनाई पक्षाघात का ज्योतिषीय कारण ज्योतिष के अनुसार किसी भी रोग का कारण व निदान निम्नलिखित तालिका द्वारा किया जाता है- -जन्मजात $ वंशानुक्रम रोग - संचित कार्य के कारण - आधान कुण्डली व जन्मकुण्डली के योगों द्वारा। -महामारी $ संक्रमण $ दुर्घटना- प्रारब्ध कर्म के कारण - दशा आदि द्वारा। -अनुचित आहार विहार - क्रियमाण कर्म - गोचर के द्वारा। क्रियमाण कर्म संचित एवं प्रारब्ध कर्मों के प्रभाव होते हैं अतः ऐसे रोगों का विचार करते समय योग एवं दशा के साथ-साथ गोचर का अध्ययन आवश्यक होता है। पूर्वार्जित अशुभ कर्मों के प्रभाववश आयुर्वेद वर्णित असम्यक आहार-विाहार के सेवन से रोगोत्पत्ति होती है। वीर सिंहावलोक में त्रिशठाचार्य में पक्षाघात को पापकर्मों के प्रभाववश माना है। ज्योतिष के ज्ञान को चिकित्सा में अत्यंत उपयोगिता को ध्यान में रखकर, ‘ज्योतिवैद्यो निरन्तरौ’ कहा है। द्वादश भावों में से प्रथम, षष्ठ, अष्टम एवं द्वादश भाव मनुष्य के स्वास्थ्य व रोगों के विचार से प्रत्यक्षतः संबंधित है। द्वितीय व सप्तम भाव मारक होता है। पक्षाघात के प्रमुख ज्योतिषीय योग - शनि के साथ चंद्रमा का ईसराफ योग हो (शीघ्रगति ग्रह से मंद गति ग्रह आगे हो) -चंद्रमा अस्तगत हो और पापप्रभाव में हो। - षष्ठेश पापाक्रांत हो एवं गुरु से दृष्ट न हो और षष्ठ भाव में पापग्रह हो। -कर्क राशि में स्थित सूर्य पर शनि की दृष्टि हो। - पापग्रहों के साथ चंद्रमा षष्ठ स्थान में हो और इस पर पापग्रहों की दृष्टि हो। -क्षीण चंद्रमा एवं शनि व्यय स्थान में हो। जन्मजात पंगुता के योग -गर्भाधान कुंडली में मीन लग्न हो और उस पर चंद्रमा, मंगल व शनि की दृष्टि हो। -जन्मकुंडली में मीन, वृश्चिक, मेष, कर्क या मकर राशि में पापग्रहों के साथ-साथ शनि व चंद्रमा हो। - पंचम या नवम स्थानों में पाप ग्रहों के साथ शनि -चंद्रमा हो। -शनि व षष्ठेश दोनों 12वें भाव में हो और इन पर पापग्रहों की दृष्टि हो। -षष्ठ स्थान में शनि-सूर्य एवं मंगल साथ हो। मीन राशि व द्वादश भाव पैरों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ग्रहों में चंद्रमा बाल्यावस्था का तथा शनि पैरों का सूचक है। अतः मीन राशि द्वादश भाव, शनि एवं चंद्रमा का षष्ठ स्थान या पाप प्रभाव में होना पैरों के विकार की सूचना देता है। प्रत्यक्ष रोगी दर्शन से इसके अतिरिक्त अनेक पक्षघात रोग ज्ञापक योगों का संकलन किया जा सकता है। पक्षाघात रोगियों के चिकित्सा लाभ का निर्धारण निम्नलिखित स्तर पर किया जाता है। पूर्ण रोग निवृत्ति - 75 प्रतिशत से अधिक लक्षण व चिह्नों में सुधार। प्रशंसनीय सुधार - 51 प्रतिशत से 75 प्रतिशत के बीच लक्षण व चिह्नों में सुधार। सुधार - 25 प्रतिशत से 50 प्रतिशत तक लक्षणों व चिह्नों में सुधार। अलाभ- लक्षणों व चिह्नों में कोई सुधार नहीं। पक्षाघात क्योंकि पूर्वार्जित अशुभ कर्मों के प्रभाववश आहार - विहार के असम्यक प्रयोग से होता है। अतः पक्षाघात का समन्वयात्मक अध्ययन अति आवश्यक है। औषधि प्रयोग के साथ-साथ मंत्र, मणि आदि का प्रयोग अपेक्षित है। पक्षाघात के रोगी को संपूर्ण लाभ दिया जा सकता है।

द्वादशांश से अनिष्ट का सटीक निर्धारण:ज्योतिष्य विवेचन

सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी ने जब से इस संसार की रचना की है तभी से जीवन में प्रत्येक नश्वर आगमों को चाहे वे सजीव हों अथवा निर्जीव, उन्हें विभिन्न अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है। जीवन की इस यात्रा में सबों को अच्छे एवं बुरे समय का स्वाद चखना पड़ता है तथा दोनों परिस्थितियों से होकर गुजरना पड़ता है। यदि हमारा अध्यात्म एवं पराविद्याओं में विश्वास है तो इनके अनुसार जन्म से मृत्युपर्यन्त मनुष्य के जीवन की हर घटना ग्रहों, नक्षत्रों एवं दशाओं आदि द्वारा पूर्णरूपेण निर्देशित होती है। इनके सम्मिलित प्रभाव जीवन में घटित होने वाली हर घटना को प्रभावित करते हैं। आधुनिक भौतिकवादी विश्व में प्रत्येक मनुष्य धनी, सुखी एवं हर प्रकार से संपन्न जीवन जीने की कल्पना करता है तथा उसकी यह आकांक्षा होती है कि उसे वे सभी विलासितापूर्ण सुख-सुविधाएं प्राप्त हों जिनकी उसे आकांक्षा है। किंतु यह हमारे हाथ में नहीं है। हम सिर्फ कर्म कर सकते हैं, फल का निर्धारण हमारी जन्म कुंडली में स्थित ग्रह करते हैं जो हमारे जन्म लेने के साथ हमारी कुंडली में अवतरित होते हैं। जन्म लेने के उपरांत यह अवश्यंभावी हो जाता है कि हमें निरंतर सुख एवं दुख के चक्र से गुजरना है। अब किसके भाग्य में विधाता ने क्या सुख अथवा दुख लिखे हैं इसका विवेचन ज्योतिषी अपने दैवीय ज्ञान, ज्योतिष के गहन एव गूढ़ सिद्धांतों के ज्ञान के आधार पर करते हैं तथा लोगों को परामर्श देकर उनका मार्गदर्शन करते हैं कि उसके जीवन का अमुक समय सुख का है अथवा आने वाला समय दुख का होगा, अतः भावी परेशानियों अथवा आसन्न संकट के प्रति सावधान हो जायें। यदि बुरे समय का ज्ञान पूर्व में ही हो जाय तथा समुचित मार्गदर्शन मिल जाय तो व्यक्ति आने वाले बुरे समय के प्रति सचेत हो सकता है, मानसिक रूप से तैयार हो सकता है अथवा दैवीय उपायों द्वारा तथा अपने कृत्यों द्वारा ईश्वर प्रदत्त इस पीड़ा को कमतर करने में, इसकी तीव्रता एवं विभीषिका को न्यून करने में अवश्य सफल हो सकता है। यद्यपि कि ज्योतिष में अनिष्ट के निर्धारण एवं उनकी भविष्यवाणी के अनेक ज्ञात एवं अज्ञात सूत्र मौजूद हैं, किंतु एक अति महत्वपूर्ण, व्यवहृत एवं सिद्ध तकनीक द्वादशांश चक्र के द्वारा अनिष्ट के निर्धारण का है जिसमें राहु का गोचर देखकर काफी सटीक भविष्यवाणी की जा सकती है। यह तकनीक वर्षों के शोध एवं पर्यवेक्षण के परिणामस्वरूप प्रकाश में आयी है तथा शत-प्रतिशत सही फल देने में सक्षम है। नियम 1: चरण 1: लग्न कुंडली का अष्टमेश देखें। चरण 2: लग्न कुंडली के अष्टमेश की द्वादशांश में स्थिति देखें। चरण 3: राहु का गोचर देखें। जब भी द्वादशांश में लग्न कुंडली के अष्टमेश को राहु गोचर द्वारा प्रभावित करेगा, वह समय काफी घातक अथवा समस्या देने वाला होगा। नियम 2: यदि लग्न कुंडली का अष्टमेश शनि हो तो वैसी स्थिति में नियम में थोड़ा सा परिवर्तन है। ऐसी स्थिति में देखें कि द्वादशांश में शनि कहां अवस्थित है। जब कभी भी राहु की स्थिति गोचर में शनि से तृतीय अथवा दशम भाव में होगी, वह समय जातक के लिए बुरा, कष्टदायक अथवा घातक होगा। निम्नांकित उदाहरण इस सिद्धांत की सत्यता के परिचायक एवं इसकी विश्वसनीयता को सिद्ध करने में सहायक होंगे। लेकिन ज्योतिर्विदों को यह ध्यान रखना अति आवश्यक है कि इस सिद्धांत के अनुसार राहु हर साढ़े सात वर्ष के उपरांत संवेदनशील बिंदु पर गोचर करेगा। अतः फलकथन करते वक्त हमेशा इसे दृष्टिगत रखकर सावधानी बरतनी आवश्यक है। हमेशा ही यह मृत्यु देने वाला तथा अतिघातक नहीं होगा। किंतु इतना तो है कि जातक को बुरी परिस्थितियों का सामना अवश्य करना ही पड़ेगा चाहे इसकी मात्रा कम या अधिक हो।

ज्योतिष में फलादेश कैसे करें....

ज्योतिष में फलादेश कैसे करें? यह विचार आते ही हमारे मस्तिष्क में काफी सारे विचार एक साथ कौंध जाते हैं। किसी ने कोई प्रश्न पूछा तो यह जानना सबसे पहले आवश्यक हो जाता है कि प्रश्न किस भाव से संबंधित है, तो सबसे पहले हम अपना ध्यान भाव की ओर केंद्रित करते हैं कि प्रश्न जिस भाव से संबंधित है, उस भाव में राशि कौन सी है, उसमें कौन से ग्रह स्थित हैं और जो ग्रह स्थित हैं वे उस भाव पर कैसा प्रभाव डाल रहे हैं तथा भाव की राशि के स्वामी के साथ नैसर्गिक रूप से कैसा संबंध बनाते हैं? इसके पश्चात किन-किन ग्रहों की दृष्टि उस भाव पर पड़ रही है, वे ग्रह शुभ हैं या अशुभ? उन ग्रहों का भाव के राशि अधिपति के साथ कैसा संबंध है? यदि किसी ग्रह की दृष्टि न हो और न ही कोई ग्रह उस भाव में स्थित हो तो अगले क्रम में हम अपना ध्यान भावेश पर केंद्रित करते हैं। भावेश शुभ है या अशुभ, वह किस ग्रह के साथ युति या दृष्टि संबंध बना रहा है? वह ग्रह किस भाव तथा राशि में स्थित है। यदि ग्रह शुभ भाव अर्थात केंद्र या त्रिकोण में स्थित होगा तो निश्चित रूप से बली स्थिति में होगा। इसके पश्चात किस राशि में स्थित है, उसके आधार पर निश्चय होगा कि ग्रह क्षीण अवस्था में है या बली अवस्था में है। यदि ग्रह कंेद्र और त्रिकोण में स्थित है तथा मूल त्रिकोण, उच्च राशि, स्वराशि या मित्र राशि में हो तथा बालादि अवस्था में भी उसके अंश 120-150 के मध्य हैं तो ग्रह निश्चित रूप से बली अवस्था में कहलाएगा तथा निश्चित रूप से वह ग्रह जिस भाव का स्वामी होगा उस भाव से संबंधित अच्छे फल देगा। अंत में हम अपना ध्यान उस भाव के कारक पर केंद्रित करेंगे। यदि कारक भी संतोषप्रद या अच्छी स्थिति में हो तो हम निश्चित रूप से कह सकेंगे कि उस प्रश्न का उत्तर सकारात्मक अर्थात ‘हां’ में होगा। इस प्रकार हम देखते हैं कि किसी कुंडली में किसी प्रश्न का उत्तर ‘हां’ होगा या ‘नहीं’ इसके लिए हम कुंडली में प्रश्न से संबंधित भाव, भावेश और कारक पर विचार करते हैं। इस प्रकार उपर्युक्त विश्लेषण के आधार पर कुंडली में योग बन रहा है कि नहीं ज्ञात कर सकते हैं। इसके पश्चात हमें देखना होता है कि कुंडली में योग तो है लेकिन विचाराधीन प्रश्न के उत्तर का फल कब मिलेगा। इसके लिए हम दो तथ्यों पर ध्यान केन्द्रित करते हैं- पहला दशा तथा दूसरा गोचर। जिस ग्रह की दशा चल रही है उस ग्रह के लिए यह देखना होगा कि कुंडली के अनुसार ग्रह विचाराधीन प्रश्न के अनुकूल है या प्रतिकूल तथा ग्रह की कुंडली में क्या स्थिति है-कारक है, बाधक है, योगकारक या अकारक है? इस प्रकार हम दशाक्रम देखकर यह निश्चित कर पाते हैं कि अमुक दशा में विचाराधीन प्रश्न की समस्या का हल हो जाएगा। लेकिन दशा का समय अंतराल काफी अधिक होने के कारण फलादेश और अधिक सटीक हो, इसके लिए हम कुंडली में गोचर का विश्लेषण करते हैं। गोचर का अध्ययन करने के लिए अष्टकवर्ग पद्धति काफी कारगर सिद्ध होती है क्योंकि इसके द्वारा हम गुणात्मक तथा मात्रात्मक दोनों फलों का विश्लेषण गणित के रूप में कर सकते हैं। इससे यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि किसी ग्रह का गोचर तुलनात्मक कितना शुभ होगा या कितना अशुभ होगा। इसके अतिरिक्त अष्टकवर्ग में वेध या विपरीत वेध की समस्या का निराकरण भी बड़ी सुगमता से हो सकता है क्योंकि एक ही समय में एक ग्रह के लिए विभिन्न ग्रहों का गोचर विश्लेषण ग्रह के अष्टकवर्ग में दिया जाता है। अतः ग्रह के वेध या विपरीत वेध के द्वारा उत्पन्न संशयपूर्ण स्थिति का प्रश्न ही नहीं रह जाता। निष्कर्षतः किसी कुंडली का अध्ययन करने के लिए प्रश्न से संबंधित भाव, भावेश और कारक तीनों का अध्ययन करते हैं तथा फल की अवधि जानने के लिए अनुकूल योग, दशा एवं गोचर का विश्लेषण करते हैं। यदि इन बातों को ध्यान में रखा जाए तो फलादेश बड़ी सुगमता से किया जा सकता है।

पितृदोष संबंधी अशुभ योग एवं उनके निवारण के उपाय

पितृदोष से तात्पर्य पितरों की असंतुष्टि से है। जब किसी परिजन के द्वारा अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध इत्यादि कर्म नहीं किया जाए अथवा इन कर्मों को पितरों के द्वारा नकार दिया जाए, तो पितर असंतुष्ट होकर जो हानि पहुंचाते हैं, उसे ही पितृदोष कहते हैं। पितृदोष होने पर अनुकूल ग्रहों की स्थिति, गोचर और दशाएं होने पर भी शुभ फल नहीं मिल पाते। पितृदोष अदृश्य बाधा के रूप में जातक को परेशान करता है और उसके जीवन में सभी क्षेत्रों में उन्नति को बाधित कर देता है। परिजनों के मध्य वैचारिक मतभेद रहते हैं अथवा प्रयासों से कोई शुभ फल प्राप्ति का योग बने तो वह भी अकारण समाप्त हो जाता है। जन्मकुंडली में लग्न, पंचम, अष्टम और द्वादश भाव पितृदोष में विचारणीय होते हैं। सूर्य, चंद्रमा, गुरु, शनि और राहु-केतु की स्थितियां भी विचारणीय होती हैं। इनकी राशियां कर्क, सिंह, धनु, मकर, कुंभ और मीन से संबंधित भी विचार करते हैं। उपर्युक्त राशि ग्रह तथा भावों की विशेष स्थितियों में पितृदोष संबंधी अशुभ योगों का निर्माण होता है। परिवार में मुखिया अथवा बड़े पुत्र की जन्मपत्रिका में यह दोष होने पर अन्य परिजनों की जन्मपत्रिका में भी इससे मिलते-जुलते दोष देखे जा सकते हैं। किस व्यक्ति के पितृयोनि में जाकर असंतुष्ट होने के कारण यह दोष उत्पन्न हो रहा है? इसका विचार भी इन अशुभ योगों से किया जा सकता है। यदि गुरु पितृदोष संबंधी अशुभ योग निर्मित कर रहा है, तो कोई पुरुष पितर रूप मंे पीड़ित कर रहा है जबकि चंद्रमा के द्वारा पितृ दोष निर्मित होने पर किसी स्त्री के द्वारा पितृदोष मानना चाहिए। इसी प्रकार सूर्य से पिता अथवा पितामह, मंगल से भाई अथवा बहन और शुक्र से पत्नी का विचार करना चाहिए। प्रस्तुत लेख में पितृदोष से संबंधित अशुभ योगों का वर्णन किया जा रहा है। जिनकी जन्मपत्रिका में ऐसे योग निर्मित होते हैं, उन्हें पितृदोष के कारण बाधा होती है। 1. जन्मपत्रिका में गुरु निर्बल होकर राहु से युति करता हुआ लग्न, पंचम, अष्टम अथवा द्वादश भाव में स्थित हो तो किसी पुरूष पितर के कारण पितृ दोष होता है। 2. पंचम भाव में सूर्य तुला राशि में कुंभ नवांश में हो और यह भाव पापकर्तरी योग से पीड़ित हो तो पिता अथवा पितामह से संबंधित पितृदोष होता है। 3. अष्टमेश पंचम में हो, सप्तम भाव में शुक्र और शनि की युति बनती हो तथा लग्न में गुरु राहु से युत होकर स्थित हो तो जीवनसाथी से संबंधित पितृदोष होता है। 4. सूर्य अथवा सिंह राशि पापकर्तरी योग से पीड़ित होकर लग्न, पंचम अथवा नवम भाव में स्थित हो और शनि-राहु से भी उनका संबंध हो तो पिता, पितामह अथवा पितामह के कारण पितृ दोष का निर्माण होता है। 5. राहु और चंद्रमा युत होकर पंचम भाव में हो, लग्न और लग्नेश पाप ग्रहों से पीड़ित हों और पंचम भाव में राहु चंद्रमा की स्थिति वृषभ अथवा तुला राशि में हो तो जीवनसाथी से संबंधित पितृदोष होता है। 6. चंद्रमा पाप कर्तरी योग से पीड़ित होकर अष्टम भाव में हो और अष्टम भाव पर पाप ग्रहों का प्रभाव भी हो तो किसी स्त्री से संबंधित पितृदोष होता है। 7. गुरु सिंह राशि में स्थित होकर पंचमेश तथा सूर्य से युति करता हो, लग्न और पंचम भाव में पाप ग्रह हो तो किसी पुरूष पितर के कारण पितृदोष होता है। 8. अष्टम अथवा द्वादश भाव में राहु-गुरु की युति हो तथा सूर्य मंगल और शनि से उनका संबंध हो एवं लग्न तथा पंचम का भी पाप ग्रहों से संबंध हो, तो पुरूष संबंधी पितृ दोष होता है। 9. सूर्य अष्टम भाव में स्थित हो, पंचमेश राहु के साथ स्थित हो और शनि पंचम भाव में हो तो किसी पुरूष के कारण पितृ दोष होता है। 10. षष्ठेश पंचम भाव में हो, दशमेश षष्ठ भाव में हो और राहु-गुरु की युति हो तो पुरूष संबंधी पितृ दोष होता है। 11. लग्न में राहु हो, पंचम भाव में शनि हो और अष्टम भाव में गुरु हो तो पुरुष संबंधी पितृ दोष होता है। 12. चतुर्थ भाव में राहु, पंचम भाव में नीच राशिगत चंद्रमा और एकादश भाव में शनि स्थित हो तो किसी स्त्री पितर से संबंधित पितृदोष होता है। 13. षष्ठेश तथा अष्टमेश लग्न भाव में स्थित हो, पंचम भाव में गुरु-चंद्रमा की युति पाप ग्रहों से युक्त हो तो, किसी स्त्री पितर के कारण पितृ दोष होता है। 14. लग्न पापकर्तरी योग से पीड़ित हो, सप्तम भाव में क्षीण चंद्रमा हो राहु शनि पंचम, अष्टम अथवा द्वादश भाव में स्थित हो तो किसी स्त्री पितर से संबंधित पितृ दोष होता है। 15. कर्क लग्न में शनि एवं चंद्रमा पंचम भाव में स्थित हों, मंगल और राहु की युति करते हुए लग्न, अष्टम या द्वादश भाव में स्थित हो तो किसी स्त्री पितर के कारण पितृ दोष होता है। 16. तृतीयेश पंचम भाव में राहु और मंगल से युति करे तथा पंचमेश अष्टम भाव में स्थित हो तो पितरों में शामिल भाइयों से संबंधित पितृदोष होता है। 17. पंचम भाव में शनि, अष्टम भाव में चंद्रमा तथा मंगल की युति हो और तृतीय भाव नीच राशिगत होकर निर्बल हो, तो पितरों में शामिल भाइयों के कारण पितृदोष होता है। 18. पंचम भाव में मिथुन अथवा कन्या राशि हो और उसमें शनि राहु स्थित हो, द्वादश भाव में मंगल एवं बुध की युति हो तो पितरों में शामिल भाइयों से संबंधित पितृदोष होता है। 19. सप्तमेश अष्टम भाव में हो, शुक्र पंचम भाव में हो तथा गुरु पाप ग्रहों से युत हो तो जीवनसाथी से संबंधित पितृदोष होता है। उक्त पितृदोष निर्मित होने पर व्यक्ति को इनकी शांति के निमित्त उपाय इत्यादि करने से लाभ होता है। जो ग्रह पितृदोष का कारक बना हुआ है, उसकी दशा-अंतर्दशा में इनके फल अधिक मिलते हैं। पितृ दोष निवारण के उपाय पितृ दोष निवृत्ति के लिए किए गए उपायों से ही इनका निवारण हो पाता है। पितृदोष निवारण के उपाय इस प्रकार हैं: 1. यदि आप पितृदोष से पीड़ित हैं तो प्रत्येक अमावस्या को पितरों के निमित्त श्राद्धकर्म करना चाहिए और एक ब्राह्मण को भोजन तथा यथाशक्ति दक्षिणा भी अर्पित करनी चाहिए। 2. अमावस्या को श्राद्ध के साथ ही गुग्गुल मिश्रित धूप अपने पितरों को दिखाकर पूरे घर में घुमानी चाहिए। 3. घर में पितृदोष होने पर शुभ मुहूर्त से प्रारंभ करते हुए प्रतिदिन श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ करना चाहिए। 4. घर में भोजन बनने के बाद सर्वप्रथम गो ग्रास (गाय की रोटी) निकालकर गाय को खिलाना चाहिए। 5. पितृदोष कई प्रकार का होता है, यदि किसी परिजन की मृत्यु के एक वर्ष बाद भी उसे मुक्ति नहीं मिल पायी हो और इस कारण पितृदोष जैसी स्थिति बन गई हो तो उसके निमित्त गया तीर्थ में जाकर श्राद्धकर्म करना चाहिए। 6. अन्त्येष्टिकर्म में हुई त्रुटि के कारण भी पितृदोष हो जाता है। इसका निवारण भी गया तीर्थ में श्राद्ध करने से किया जा सकता है। 7. घर में जहां पीने का जल रखा जाता है, उस स्थान पर विशेष पवित्र्रता रखें। यह स्थान पितरों का माना जाता है। 8. कई बार परिजनों के द्वारा मांस भक्षण, शराब सेवन अथवा कोई अन्य अनैतिक कार्य करने पर भी पितृदोष उत्पन्न हो जाता है। ऐसी स्थिति में शीघ्र ऐसे अनैतिक कार्यों को त्याग देना चाहिए और पितरों से क्षमा प्रार्थना करनी चाहिए, तभी पितृदोष दूर होगा। 9. पितृदोष निवारण के लिए श्राद्धपक्ष में सभी परिजनों के निमित्त श्राद्धादि कर्म अवश्य करना चाहिए और आश्विन अमावस्या को सर्वपितृश्राद्ध में अपने सभी पूर्वजों सहित अन्य मृतक परिजनों का भी श्राद्ध करना चाहिए। 10. मृतक परिजन की पुण्यतिथि पर उनके निमित्त श्राद्धकर्म अवश्य करना चाहिए।

क्या आप कंप्यूटर का व्यवसाय करना चाहते हैं....ज्योतिष्य विश्लेषण



क्या आप कंप्यूटर उपकरण का व्यवसाय करते हैं या करना चाहते हैं जाने किन ज्योतिष कारकों और ग्रहों की स्तिथि से अपने व्यवसाय को बढ़ा सकते है....
वर्तमान समय प्रतियोगिता व स्पर्धा का समय है। इस समय में संतान को व्यवसाय के किस क्षेत्र में भेजा जाये - यह प्रश्न माता पिता के लिये बड़ा जटिल प्रश्न बनता जा रहा है। बच्चे को मेडिकल, इंजीनियरिंग, कला, कानून आदि किस विषय में पढ़ाया जाये कि वह अपने आने वाले समय में अपने व्यवसाय में मान सम्मान, धन दौलत व प्रसिद्धि पा सके। ऐसे अनेक प्रश्न माता पिता के सामने दुविधा पैदा कर देते हैं कि आखिर इन प्रश्नों का उचित व सटीक हल कैसे प्राप्त किया जाये। वर्तमान काल में व्यवसाय के क्षेत्र में परिवर्तन व क्रांति को देखकर कहा जा सकता है कि व्यवसाय चयन से संबंधित जानकारी ज्योतिष शास्त्रों में पर्याप्त नहीं है। इसलिये इस क्षेत्र में निरन्तर शोध की आवश्यकता बनी रहती है। व्यवसाय में क्षेत्रों के इतने आयाम हैं कि प्रस्तुत लेख में इन सभी की चर्चा कर पाना संभव नहीं होगा। किसी भी जन्म कुंडली में दशम भाव ही कर्म का भाव कहलाता है। नवम भाव भाग्य भाव है। अतः व्यवसाय चयन हेतु निम्न बिंदुओं पर प्रकाश डाला जा रहा है - 1. भाव दशम भाव (कर्म का भाव) सप्तम भाव (दशम से दशम) षष्ठ भाव (दशम से नवम यानि कर्म का भाग्य भाव) 2. ग्रह दशमेश ग्रह दशम भाव पर प्रभाव डालने वाले ग्रह सबसे बलवान ग्रह (षड्बली) 3. कारक कम्पयुटर के कारक ग्रह - शुक्र, मंगल, राहू, शनि बुद्धि व गणना का कारक ग्रह - बुध ज्ञानकारक ग्रह - गुरु 4. नवमांश व दशमांश कुंडली नियम - यदि किसी जातक की जन्मकुंडली, नवमांश व दशमांश कुंडली के ऊपर वर्णित भावों में वर्णित ग्रह व कारक ग्रह बली होकर दृष्टि या युति संबंध बनाते हैं तो जातक कम्पयुटर व्यवसाय में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त करता है। संबंधित योग इस प्रकार से हैं - 1.जन्मकुंडली में मंगल, बुध, शुक्र या शनि, दशमेश ग्रह होने चाहियें क्योंकि मंगल कम्पयुटर प्रोग्रामिंग के बारे में बताता है। बुध बु़िद्ध व गणना का कारक है। शुक्र कूटभाषा व यंत्र का कलात्मक उपयोग सिखाता है। शनि भी यंत्र की उचित उपयोगिता दर्शाता है। 2.जन्मकुंडली का दशमेश ग्रह मंगल, बुध, शुक्र या शनि के नवांश में होना चाहिये। 3.मंगल, बुध, शुक्र, शनि व राहू (तकनीक का ग्रह) का नवांश व दशमांश कुंडली में आपस में कोई संबंध होना चाहिये। 4.मंगल, बुध, शुक्र, शनि या राहू ग्रह नवांश व दशमांश कुंडली के षष्ठ, नवम या दशम भावों से संबंधित होने चाहियें। 5.सबसे बलवान ग्रह मंगल, बुध, शुक्र, शनि या राहू होने चाहियें। 6.आत्मकारक ग्रह मंगल, बुध, शुक्र, शनि या राहू में से ही होना चाहिये।

आलस्य देता है राहु -ज्योतिष्य विश्लेषण

आलस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम्।
अधनस्य कुतो मित्रं, अमित्रस्य कुतो सुखम्।।
व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु है आलस्य, अकर्मण्यता ... जो पुरुषार्थ नहीं करता उसे संसार में कुछ नही मिलता.. आलस्य और दुर्भाग्य एक ही वस्तु के दो नाम हैं। जो आलसी है, न श्रम का महत्व समझता है, न समय का मूल्य ऐसे मनुष्य को कोई सफलता नहीं मिल सकती। सौभाग्य का पुरस्कार उनके लिए सुरक्षित है, जो उसका मूल्य चुकाने के लिये तत्पर हैं। यह मूल्य कठोर श्रम के रूप में चुकाना पड़ता है। कभी कभार आलस्य आ जाए तो कोई दोष की बात नहीं कि यह स्वाभाविक मामला है कि शरीर को कभी कभी विश्राम की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन दोष की बात यह है कि आलस्य एक इनसान की पहचान ही बन जाए। अगर ज्योतिष से देखा जाए तो किसी भी व्यक्ति के लग्न, तीसरे अथवा एकादश स्थान में राहु हो तो ऐसी स्थिति में व्यक्ति आलसी प्रवृत्ति का होता है। अतः राहु की शांति कराकर जीवन में आत्मनियंत्रण करने से आलस्य की परेशानी से बचा जा सकता है। 

जाने ज्योतिष द्वारा क्यूँ होता है साझेदारों से कष्ट.......

साझेदारों से कष्ट कारण कुंडली में छुपा -
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में जिस प्रकार ग्रहों में आपस में मित्रता-षत्रुता तथा समता होती है, उसी का असर जीवन में सहयोगियों या साझेदारों फिर वह जीवन में नीति संबंधों का हो या व्यवसायिक संबंधों का सहभागिता, अनुकूलता तथा सहिष्णुता ज्योतिष गणना का विषय है। इसके लिए कार्य से संबंधित क्षेत्र का चयन करते समय अपनी ग्रह स्थितियों के अलावा, अपने ग्रहों की दिषा, दषा तथा स्थिति के अनुरूप व्यक्तियों से नजदीकी या दूरी बनाकर तथा किस व्यक्ति का संबंध किस स्थान है, जानकारी प्राप्त कर उस व्यक्ति से उस स्तर का संबंध बनाकर समस्या से निजात पाया जा सकता है। साझेदारों के चुनाव तथा व्यवहारगत संबंध तथा व्यक्ति का चुनाव कार्यक्षेत्र में लाभ-हानि तथा मानसिक शांति हेतु आवष्यक भूमिका निभाता है।

Sitare Hamare Saptahik Rashifal 18 24 July 2016

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Sunday 17 July 2016

Sun in twelve houses: its astrological impacts

First House
Tall body, nose and forehead high, well proportioned body. Mentally disturbed with spouse and members of in-laws. Fond of tourism, foreign travel. Establishment away from homeland. Financial ups and downs. Gets angry very soon, self-respect, brave, courageous, playful. Problems in marriage. Ambitious, body ache, injury in head, weakeyesight, bald-headed. Whimsical, apprehensive, suspicious. Loss of wealth and property and therefore assets keep on varying. Health problems at the age of 15, mostly suffers from eczema. If debilitated, marriage not possible before age of 24, loss of wealth and son, loss of respect and honour. If exalted, wealth, intellectual ability, darkness before eyes, cataract, squint, Greedy, famous. If Sun in own sign, suffers from night blindness. If aspected by or in conjunction with benefic planets native gets only good results. If Sun in Cancer sign eyes small, if in Aries or Leo sign heart trouble. If in Scorpio or Pisces sign very famous person. If aspected by Mars, suffers from T.B., Asthma. If aspected by Saturn, develops suicidaltendencies. In female horoscope - Angry, self-respect, playful, obstinate, picks up quarrel, argumentative, deprived of husband’s attention. If aspected by Saturn, suicidal tendencies, stubborn, head injury, headache, harsh in speech, dependant on other’s food, ungrateful, ill health in childhood, contact with lower grade people. If exalted or in own sign, luxurious life.
Second House
Slender body, frail constitution, red eyes, extremely lucky, impatience in listening to others. Invests money for a good cause. Does not maintain good relations with members of in-laws. Suffering from ear-nose and throat (ENT) problems. Earns through the business of non-ferrous metals. Penalized by government. Wealth and property acquired by Govt. Defect in speech, stammers, stays in other’s house. Well educated. Embezzles govt. money. Not affectionate with family members and spouse. Wealthy but pays fine to govt. in one form or other. Diseases of mouth. Death of husband after death of wife. If Sun in signs 1, 4, 5, 8, 9, 12 excellent results. If Sun in signs 7, 10, and 11 or in enemy sign then beneficial effect is reduced. Penalized in the age from 17 to 25, loss of money through theft. If in enemy sign or aspected by a malefic, problem in right eye. If aspected by Saturn, poor, danger from thief or govt. If in conjunction with Rahu- very wealthy person. In female horoscope – loss of wealth and family, poor, Throat problems. If Sun in own sign- prosperity. Jealous, quarrelsome, no friends, harsh in talking, without devotion, eyes problems, devoid of marital happiness. If Sun is exalted – wealthy and happy. If Sun in own sign or owner of benefic house – good results.
Third House
Bold, adventurous, dignified, fond of visiting religious places. Oppressed by brothers. Victorious in wars, wrestling and games. Honour from government, poet, intellectual, interested in meditation, yoga. Religious, very hard worker, sportsman, immense ability for occultism. Enmity with relatives, Having loyal servants. Always in company with good looking and charming ladies, having number of disciples to serve. Destroyer of elder brothers, Fear of animals at the age of five, financial gains at the age of 20, having more number of cousin brothers. Comfort of conveyance, interest in science and art, living with brother may be harmful for both. If Sun is weak then chances of fracture in the hand. If Sun is malefic- danger from fire and poison. If sun is aspected by malefic – chances of death of brother/ sister or sister getting widow. If debilitated – ear problems, extravagant in expenditure. In female horoscope:- Begets sons, dignified, luxurious life, sportswoman, proficient in dancing, settles away from the native place, Foreign travel, devoid of happiness from brothers/ sisters. Large breast, loving husband, health normal, good looking, protects others. If Saturn is in sixth house husband is having very high status.
Fourth House
Grieved, handsome, settles away from native place. Defeated, destroyer of father’s property, Desire for learning occult subjects, Devoid of comfort of conveyance. Ill health of mother, self-health suffers, fearful. Heart troubles Devoid of comforts of friends, luxuries, land and property. Employed in govt. service, Handicapped or problem in some vital organ of body. Have sexual relations with number of females. Progress at the age of 22. Efficiency of work improves at the age of 30. Does not get inherited property of father, even if gets, the same is destroyed. Fond of roaming around unnecessarily. Mentally disturbed. Gets company of selfish friends. Difficult to get success in politics, interested in philosophy. Gets honour and wealth from govt. Not in good term with brothers. Likely to face defeat. If aspected by malefic - comfort of conveyance normal. If exalted/ in own sign/ aspected by benefic – honour by Govt. in old age. If with Venus – Raj yog. If with Mars – death after falling from high place or may be an accident. If in sign Scorpio – heat in the body and burning sensation in hands. In female horoscope – difficult life, problem to self and mother. Heat in body and heart, Heavy menses, No charm on the face, Health normal, hatred from opposite sex, Big and long teeth, interested in sculpture, wife of senior officer, less number of children.
Fifth House
Angry disposition, death of first son. Normally one or at the most two sons. Status of one of the son higher than the native. Problems in childhood, wealth in young age. Interested in theatre, cinema etc. Fond of speculative activities, hiking, and trekking. Stomach disorders, intelligent, accumulates wealth by his own efforts. Expert in Tantra mantra. cheat, fraudulent, heart trouble. Devotee of Lord Shiva. If Sun with Rahu/ Ketu –death of sons due to Sarpa Dosha. If in own sign – death of first child or abortion. If in moveable sign – happiness through progeny. If in dual signloss of progeny. If with or aspected by malefic planets – more female issues. If with or aspected by benefic – male progeny, If with Moon or Jupiter – normal happiness through progeny. If in sign Cancer – possibility of having progeny through second marriage. If in Sagittarius sign along with Jupiter – wealth in abundance. If in own sign and Jupiter is posited in 11th house, wealthy. If benefic- speculation gains. In female horoscope – No male progeny, intelligent, problems with first child, famous, scholar, bold, courteous, bulky face, obedient of parents, leader in females, disciplined, charming speech.
Sixth House
Destroyer of enemies, expenditure on friends and person connected with govt., problem to the maternal side. Injured by four legged airmails. Good health, problem of gall bladder/ kidney stones, gastric troubles, kidney problems. Luck favours at the age of 23. Bad luck for maternal uncle, high status, famous, wealth, meritorious. Mental problems, fond of eating good food, very sexy. Teeth get damaged by wood or stone. If with benefic or aspected by benefic- excellent health. If Sun is weak – weak and short lived. If in Taurus, Scorpio or Aquarius signs ailments of throat, heart and back bone. If in Gemini, Virgo, or Pisces sign- cough and T.B. If in Cancer, Libra and Capricorn signs – gastric troubles, arthritis, stomach disorders. If in Sagittarius sign with Mercury – enjoys very high status in society. In female horoscope – wealthy, destroyer of enemies, enemity, quarrelsome, stomach disorder, gastric trouble; dehydration, good looking, good character, religious, extremely popular, lucky, successful in politics.
Seventh House
Hindrance in marriage, problems with spouse, grieved, mentally disturbed. Possibility of second marriage, venereal disease, piles, fistula. Fond of opposite sex, spouse priggish, insulted by spouse. Profit and loss in business, wanders aimlessly, problem from govt. side, wicked spouse. Long separation from spouse. Profit in partnership business. Help from yantra power, fame in society and war. Good income in the age of 24, foreign travels at the age of 25. Involved in activities against Govt., no happiness from conveyance, gets name and fame everywhere. If sun is debilitated– marriage not possible before 24 years. If exalted- educated and intelligent spouse. If malefic or in enemy sign – characterless spouse. If strong or in own sign – single marriage. If in Capricorn sign – problem with spouse. If with Saturn – spouse of doubtful chastity. If with Rahu – loss of wealth in company of females. If with Moon and aspected by Saturn – thorough corrupt. If with Jupiter – enjoys good health, enjoys all material comforts, handsome, rich, fond of jewels. If with Venuscharacterless spouse with the consent of native.
Eighth House
Short life, cheat, cunning, always with mental worries. Short tempered, impatient, and wealthy. Fond of having sexual relation with foreigners. Drunkard, ill health, fond of non- veg food. Loss of money in theft or wealth is destroyed due to native’s laziness. Beloved of fair sex, venereal diseases, widower, fire-accidents. Fear of firearms. Gets money through spouse, problem in right eye, children suffer from ill health, loss of wealth, friends and life. Chances of untimely death during the age of 30-33 years, unsuccessful till the age of 33, suffering equivalent to death at the age of 3, head injury at the age of 10. Unnecessary arguments with colleagues, Death of husband before the death of wife. If with benefic planets – no head injury. If in enemy’s sign- death due to electric shock, snake bite or poison. If in male sign – chastity of wife doubtful. If exalted or in own sign – long life. In female horoscope – widow, sexy, fear of theft and fire. If aspected by Mars death due to fire is certain even if aspected by benefices. Train accident, fond of travelling, settles in foreign country, ill- health. No comforts, poor, bad-deeds, injury or wound in the body, tendency of high blood pressures. Playful, deprived of husband’s attention. If Sun is in own sign – barren or sterile. If with Mars and Venus - involved into prostitution. If with Venus – Characterless. If with Saturn and Venus or with Mars and Venus – either characterless or ascetic provided the difference in longitudes of these planets is not much.
Ninth House
Happy, father short- lived, difference of opinion with father, donor, ascetic, devotee, leader, astrologer, loss of fame, opponent, landlord, lucky, progress with the help of others, long – lived, ill health during childhood, prosperous in adulthood, happiness from conveyance & servants, full benefit of human life. If exalted or in own sign – father long- lived. If debilitated – worries and asceticism, If malefic or in enemy’s sign – harmful for father. If exalted –very lucky, prosperous, luck will help at every stage in life. If with Moon – wealthy, powerful personality. If in Sagittarius sign with Mercury – benefic results. In female horoscope – religious, loss of fortune, fantasies, asceticism, large number of enemies, happy in middle age but unhappy in old age. Harmful if debilitated.
Tenth House
Being digbali gives high status in government, intelligent, govt. recognizes his hard work, problems to mother, own- relatives become opponents, govt. service must, excellent behavior, recognition from govt., generous, enjoys the life, all types of happiness, happiness from progeny and conveyance, angry- disposition, expenditure, progress in politics, successful administrator, happiness from father & relatives, full of the jewels and gems, full benefit of human life, ill health in old age. Separation from near relation or from very dear object at the age of 19. Fame in education after the age of 18. Suffering to father at the age of 28. Fortunate at the age of 30. If in own sign – respect by govt. If lord of Trikona houses – Healthy wealthy. If debilitated – characterless. If in sign Taurus – successful in agriculture. If in sign Cancer – profit through water travel. If in sign Aries or Leo – hunter, violent, builds religious place. If with/ aspected by malefic – sinner. If aspected by any three planets – famous, close to king. If in sign Taurus with Mercury – wealthy. If lord of 10th house and Saturn are in 3rd house – respect, healthy, becomes very famous at an early age. In female horoscope – recognition by govt., devoid of happiness from father, ascetic, always suffering from ill health, interest in dancing and singing, priggish, charitable, progeny.
Eleventh House
Wealthy, long- lived, no sufferings in life, income from govt., sudden gains, enemies are afraid. Officer in bank, treasury, number of enemies – even then victorious. People obey him, beautiful and prosperous wife, learned, stomach – troubles, trust worthy, children create problems, eliminates all malefic effects if birth during daytime. Gets conveyance at the age of 25. High status interested in singing. leader, very beautiful eyes, not helpful for elder brother. If in own sign – income through govt., animals, litigation or thieves. If lord of 4th house – all material comforts and wealth. If weak – malefic results. If in Sagittarius sign or aspected by Moon or Jupiter – marriage with girl of high family. In female horoscope – prosperous, recognition from govt., govt. service or serving in bank or treasury. Gains, comforts, happiness from progeny, artist, self-reliant, with sons and grandsons, proficient in various arts, praised by relatives and brothers, abortions.
Twelfth House
Sinner, corrupt, eyes trouble, bodyache, lazy, mentally sick, journeys, poverty, settles in foreign country or foreign travel must, opponent of father, weak eyesight, financial loss, fine, penalty, imposition of tax, no son, habit of stealing, loss at the age of 28 to 32, disease of private parts at the age of 36, victorious, loss during travel, trouble to uncle or does not maintain cordial relation with uncle, unreligious, deformity of some organ, having illicit relation with other ladies, hunter of birds. Ailments of thigh, wife impotent. If exalted – progeny. If weak – fear of penalty, bondage from govt., loss of wealth, may have to leave own country. If with malefic planets- number of journeys, extravagant, No marital happiness. If Sun a benefic planet or exalted – separation from brothers. If with Saturn and Moon – bankrupt. If with lord of 9th house – fortunate due to father. If with Moon – eyesight of both the eyes weak or may become blind. If in Virgo sign – life more than 75 years. In female horoscope – angry, extravagant, weak eye- sight, settles in foreign country or foreign travel, impolite, expenditure in bad deeds, passionate, fond of liquor, nonvegetarian food. Chastity doubtful.

सितारे हमारे


Sixteen rites in astrology

Sanskaars 1. Grabhaadhan: Conception 2. Punsavana: Fetus protection 3. Simanta: Satisfying wishes of the pregnant Mother 4. Jaat-Karmaa: Child Birth 5. Naamkarma: Naming Child 6. Nishkramana: Taking the child outdoors 7. Annaprashana: Giving the child solid food. 8. Mundan : Hair cutting. 9. Karnavedh: Ear piercing 10. Yagyopaveet: Sacred thread 11. Vedarambh: Study of Vedas and Scriptures 12. Samaavartana: Completing education 13. Vivaah: Marriage 14. Sarvasanskaar: Preparing for Renouncing 15. Sanyas (Awasthadhyan): Renouncing 16. Antyeshti: Last rite, or funeral rites 1. Garbhaadhan : (Conception) To produce a good child, mother and father should have pure thoughts and observe the rules of Shastras. 2. Punsavana : Brahaspati says that the rite should be performed before the baby begins to grow and move in the womb. The word Punsvana occurs in Atharvaveda, where it is used in the literal sense of “giving birth to a male child:. The word “male means soul. The Punsavana is used for welcoming the great soul. This is also called “Garbharakshan”. Garbharakshana is performed to assure that the infant is not miscarried. 3. Simanta : This ceremony should be performed in the fourth month of pregnancy, in the fortnight of waxing moon, when the moon is in conjunction with a Nakshatra that is regarded as “male” or auspicious. A Puja is performed for purification of the atmosphere and as an offering to God for the peace of mother and infant, for giving birth to a peaceful and holy child. This rite is primarily social and festival in nature, intended to keep the pregnant woman in good spirits. The pregnant woman gets gifts of rice and fruits from seven ladies. Kumkum is applied on her cheek to keep her happy so that the child will be affected by her happiness. A future mother should have good thoughts at all times. She should place Picture of ‘Balgopal’ or ‘Laddu Gopal’ in her home. She should read the Gita and other religious books in addition to performing her daily work and should avoid thrilling books and movies. During Solar and lunar eclipses, a woman should not use any kind of weapons. During normal times, she should avoid violent thoughts. Her husband should help keep her peaceful and cheerful. 4. Jaat-Karm : Jaat-karma performed on six or after 11 days from the birth of a child, is for the purification of the house. This is done in order to keep a child in a clean atmosphere where he may not incur any physical or mental problems. It is also called Shashthi. Goddess Shashthi is the protector of children. Jaat-karma is followed with Grah Puja, Homa. 5. Naamkarn : (Naming) Sometime Jaatkarma and Naamkarna are performed together. This ceremony is performed to give a sacred name to the child, assigned according to the 27 Nakshatra and the position of the moon at the time of child’s birth. An appropriate name is given to the child according to the star of birth, and the first letter of the name is taken from the Hora Shatra. 6. Nishkraman : (Taking the child out of the house) This ceremony is performed on or after 40 days, but some shastras allow it at the time of naming ceremony. The child must be blessed with the holy water and Surya Darshan, with the prayer, “salutation to you, Oh divine Sun, who has hundreds of rays and who dispels darkness, may you bring the brightness in the life of the child”. 7. Annaprashana : (Making a child eat cooked food for the first time) Most of the samitis prescribe it the sixth month from birth, when the child first develops teeth. Anna or food is considered as one of the main reasons to make a person commence the good or bad things. The body is made of chemicals, therefore, the kinds of chemical, we put in our bodies will bring out their effect. Sweet porridge or rice pudding can be given to the child if parents are desirous of nourishment, holy luster, swiftness, or splendor. One of them with curd, honey and ghee is given it to the child while reciting Prasad Mantras. 8. Mundan : The ceremony is to be performed on an auspicious day after the age of one year. This ceremony is performed for the development of power better understanding, and for long life. The hair must be disposed of at holy places where no one can find them. 9. Karnavedh : (Piercing the child’s ear holes). With the commencement of Surya Puja; the father should first address the right ear of the child with the mantra “Oh God may we hear bliss with our ears”, performed so that child may listen to good things and to have a good education. 10. Yagyopaveet (Sacred Thread) : The sacred thread ceremony is very significant in the life of a Hindu man. This ceremony initiates the child into an intellectual and spiritual journey. The mother gives birth to the child; this is natural birth. However, when the Guru initiates him by giving Gayatri mantra, this prayer for Buddhi is considered a second birth of the child. this ceremony is known also as Upnayan, ‘the sacred vision’ or ‘new vision’, the vision to see things in a proper way and to know ‘wrong’ and ‘right’. Therefore, Upnayan is essential to handle household life. ‘Yagyopaveet’ (sacred thread) indicates that the child is qualified to perform all the traditional Vedic rites including Pitra Kriya and Tarpan for his forefathers. Yagyopaveet symbolizes three forms of one supreme being, Satoguna Brahma (the creator), Rajoguna Vishnu (the sustainor) and tamsoguna Shiva (the destroyer). The knot is called Brahma-Knot, the Lord who controls these three faces of nature. It also symbolizes the three duties for three debts. (i) Pitra: Debt of parents and ancestors, (ii) Manushya: Debt of society and humanity, (iii) Dev: Debt of Nature and God. The twist in the thread symbolizes strength and honesty. Gayatri Mantra is given to the child who promises to lead a good human life as per the rules of Dharamshastras. Gayatri Mantra is simple prayer to the Sun God to brighten the intellect. The sun represents the creator of the Earth, God. Just as we bathe our body to keep clean every day, so must we bathe our mind with the Gayatri prayer, to keep our mind ever pure, ever inspired. Gayatri Mantra is so powerful that it can destory all negative forces. The ceremony has six parts: - Puja: worshipping the Gods, Havan: sacrifice, Shiksha: teaching the morality and duties in life, Bhiksha: begging as a renounced Brahmchari of Gurukula. Teacher’s teaching has made him renounced minded that he has accepted a life of Vairagya. Diksha: giving the most sacred Gayatri Mantra to the child, and Blessings: child is blessed by all Gods, Goddesses, ancestors, and elders. 11. Vidyaarambha : (Commencement of learning of the alphabet) On the third or fifth year, when Choula is performed, this important ceremony can take place. the Brahman or teacher should start teaching the first lesson after worshipping Saraswati, the Goddess of learning. 12. Samavartan : (Taking the ceremonial bath after finishing Vedic study and returning from the teacher’s house) After learning the rules of life he returns home from his Teacher’s Ashram. When he completes his education about and religion the law of life, his first Ashram Brahmacharya is complete. He is now eligible to enter into the householder stage, and considered a qualified man to get married. 13. Vivah (the marriage) : Vedic Hindu marriage is viewed as sacramental, which is a lifelong commitment of one wife and one husband. It is the strongest bond between a man and a woman, which takes place in the presence of their parents, relatives, and friends. This a commitment for whole lifetime. For a Hindu, marriage is the only way to continue the family, and thereby repay, his debt to his ancestors. The most important thing is that all the Hindu God and Goddesses are also united in this. Marriage is for spiritual growth and a way of learning many things in life through experien’ce. In other words, it is a perfect way of following the holy law of the Creator. There are eight ways of getting married. They are: 1. Brahma: Kanyadan performed by holy parents 2. Daiva: Kanyadan by God-fearing parents 3. Aarsha: Kanyadan by parents with five other gifts 4. Prajaapatya: Kanyadan by honor and respect 5. Asur: Love Marriage 6. Gandharv: Marrying for money 7. Raakshas: Forceful abduction of a maiden. 8. Paishaach: Intercourse in asleep, intoxicated situation Steps to follow for the ceremony: - Vaag-daan, Tilak & Sagun (Engagement): It is a commitment by the bride’s parents to complete the marriage of a future date acceptance by the parents of bridegroom. Ganesh, Navagrah Puja and ‘Chura’ Saant or Shantipath: Lord Ganesh is worshipped for success of the ceremony. Chura is given by the brides’ maternal uncle (Mama) as a blessing and well wishing for her married life. Offering Chunni to the bride to signify that from this time onwards she is the member of the groom’s family. Sehra and vadhu Grahaagaman: Groom’s dressing with Sehra and Garland and proceeding to the bride’s house. Milni: A warm welcome and greeting of the groom’s parents by bride’s parents and other close family members with garlands and gifts mostly cash Aarti is offered to the groom. Jaimala: Formal acceptance of each other by bride and bridegroom with garlands. Madhupark: Reception of bridegroom by bride’s father with yogurt and honey. Sarva Dev Poojan: Lord Ganesh, nine planets, Varuna, Main Kalash, Sun and Kula Devatas are invited and worshipped. In their presence Kanyadan is performed. Kanyadan: (giving away of daughter) Paanigrahan: (Taking the hand of the bride) seven sentences are pronounced by both. Gathbandhan: (Sacred Union of two souls) Aashirvaad: (Blessings) Homa and Laja Hom: (Baked rice grains into the fire) Establishing the fire and offering of Samagri into the fire. In the first four rounds grains are offered in the fire by the bride and bridegroom which are given to her by her brother. That signifies that she is leaving her family to join husband’s family. Parikrama: They take seven rounds around the fire. If all of these are performed separately they take the only four rounds. First four rounds are dedicated for four aims of life i.e. Dharma (follow the rules of religion, duty, morality and spirituality) Artha (wealth for livelihood, to work hard and to earn money with right means) Kaam (love, physical and mental support and satisfaction, dedication between husband and wife throughout life Moksha (liberation from this world of suffering by abiding the law of household life). Saat vachan (Main part of the wedding ceremony): 1. In your grief, I shall fill your heart with courage and strength. In your happiness, I shall rejoice, and I promise you that I will please you always with sweet words and take care of the family and children. 2. We promise that we shall discharge all responsibilities of the household life. 3. You shall be the only person to whom I shall love and respect as my life partner. I will love you with single-minded devotion. 4. I will decorate your life. 5. I will share both in your joys and sorrows. Your love will make me trust and honor you. I will carry out your wishes. 6. In all social acts in every form of enjoyment, we promise that we shall participate. 7. As per God and Holy flame I have become yours. Whatever promises we gave, we have spoken in pure mind. We will be truthful to each other in all things. We will love, respect and honor each other and our marriage will be forever and ever. Hridaya Sparsha: Groom touches the shoulder of bride. Sindhur, Mangalsutra, Suhag, symbolizing her as a married woman and joining of the groom’s family. Blessings: Bride and bridegroom are blessed and congratulated by all the participants. SHANTI PATH : May there be peace in the heavenly region. May there be peace in the atmosphere. May peace reign on the Earth. May the water be soothing and plants be the source of peace to all. May all the enlightened persons bring peace to us. May the vedas spread peace throughout the Universe. May all other objects give us peace and may peace even bring peace to all. May that peace come to us. Om Shanti! Shanti! Shanti! 14. Sarvasanskar & 15. Sanyas (Mahavakyaparisampti): This ceremony is performed at the age of 50, in some cases at the age of 60. With the commencement of this ceremony, a man completes his Grehastha Dharma and enters inot Vanprastha Ashram (forest hermit). Ganesh Puja, havan and Gayatri Yajna is performed. The Priest gives the new uniform and the rules are explained. Yajaman should agree to follow the rules of vanprastha life. There are 17 rules for a Vanaprasthi. 1. No attachments with wife and children. 2. Take bath three times a day and remain peaceful all times. 3. Be satisfied with simplest food. 4. Eat fresh food, which keep mind and body pure. 5. Use cheapest clothing just to cover the body. 6. Accept the heat in summer and cold in winter. 7. Do not do any hair dressing or unreal show. 8. Live in forest or in most simple way. 9. Sleep on a simplest bed or on the floor. 10. Think before consuming the things from where they are, and by which mean they have come. 11. Stay away from violence and the food earned by violent means. 12. Follow the system of sacrifice, Full Moon day fasting, and other monthly observance. 13. Become weak by acceptance of hard penance. 14. Weak body should start shaking with hard penance. 15. Always keep the Lord in the mind. 16. To become a Sanyasi one should perform Prajapatya Yajna and the eight kinds of Shradh before death. 16. ANTYESTI (the Last Rites) 1. By and large, Hindus adopt “Cremation”, i.e. burning at some specified place. Christians bury the body under belief that on the “Day of Judgement”, the dead body will be brought to life and given judgement whether the person will go to eternal Heaven or to eternal Hell. 2. Hindus believe that the dead body is like a piece of cloth or dress which has been given up; that dead body is not going to be revived. There is no particular Day of Judgement: there is no eternal Heaven and no eternal Hell: Left to itself, the dead body will decompose and pollute the environment. It has to be disposed of in a manner which has following ingredients: (a) Respect. (b) Hygienic principles of life. (c) Socially acceptable and beneficial system. 3. Keeping these principles in view, Hindus give ceremonial bath (cleaning) to the dead body, wrap the body in clean cloth or dress, put garlands and sprinkle scents and respectfully take the body to the cremation ground in the company of relatives and friends. Very close and sensitive relatives who cannot stand the sight of confining the body to flames do not accompany the body to the cremation ground. On the way, the accompanying persons chant the slogan: “God is the companion of the departed one. He will take care of the person”. 4. At the cremation ground, some ceremonies are performed with the help of professional family priests and the body is respectfully placed on the fire place. Fire is ignited among holy chantings and prayers, bowing down before fire. Fire is worshipped as a manifestation of God to whom the body is given as the last offering of the human birth. 5. Those who have been to the cremation ground are advised to take bath and change their clothes before getting back to normal work. This is a part of hygiene. In the process of touching the dead body or being close to it, the person might be tainted by harmful bacteria, etc. Also, in the cremation ground, we have dead bodies who are afflicted by various types of diseases or the bodies which have undergone decomposition due to delay in cremation. Fire and Water are the cleaning and purifying Agents of Nature. 6. Ashes (bones) are respectfully collected from the cremation place after 3 days and immersed in holy places at suitable times, with appropriate respect. 7. There are ceremonies for 12 to 13 days, Garud Puran Path, Sapindi, Pind Dan, Kriya Shiv Puja, Narayan Bali for the peaceful journey of the departed soul and with chanting of God’s Names and singing of holy songs to create an atmosphere of soft and soothing adjustment of family members and friends to the new situation with loss of their close relative/friend. 8. There are monthly and annual ceremonies with memories of respect, affection and prayers for the welfare of the departed person. 9. Hindus believe that broadly an individual is composed of: (a) (Soul never gets destroyed: It is immortal. It witnesses birth and death in various bodies. (b) Subtle Body accompanies the Soul, birth after birth, till subtle body gets completely purified and soul merges into the total Universal Consciousness. This subtle body goes out of the gross body, in company of the soul at the time of “death”. This (soul + subtle body) takes rebirth of a type depending on the actions of the individual. A person with good record of actions in the past takes birth in a beautiful, healthy human body, in the family of pious and prosperous persons. A person with record of evil and cruel actions in the past takes birth in one of 84,00,000 types of bodies, including animals, insects, etc. In each body, the person learns to do good in its own capacity and progresses upward to take birth again in human body, learns lessons of Nature and lives a life of nobleness, to be one with God, the Universal Consciousness. 10. Hindus avoid converting the whole or major part of our land surface on the earth into a wide graveyard and to dump one dead body over the other at one place. Cremation is the best method of disposal of a dead body, with due respect, honour and affection Main Methods of Disposal of Dead Body: 1. Bhoo Samadhi (burial underground) 2. Jala Samadhi (water burial) 3. Agni Dah (cremation) Apart from the above three exposures of body for being consumed by vultures and other birds or beasts, being preserved in caves, and mummifying are the three methods which have been used since the ancient times. To bury a holy body (according to Shastras) one should go to the east or north of the village, dig a pit about eight feet deep, then water thereon thrice, spread the dry grass on the bottom of the pit, Deck the dead body with garlands, sandalwood paste and salt, deposit the body in it with prayer, and put a water pot next to the body while reciting the mantras. ANTYESTI CREMATION: The main steps to be followed are as- 1. Bhumi Shuddhi: Purifying place with sesame seeds, Shaligram, Tulasi, Gangajal and Kusha. 2. Kishor Karma: Eldest son with shaved hair. Place on theYagyopaveet(Janeu). 3. Earthee (casket): Under the open sky. 4. Deep Daan: Lighting a lamp near the head of the deceased. 5. Bhuumi Shuddhi: Keeping the floor clean. 6. Shav Sthapan: Deceased’s head should be facing to the North. 7. Snan: Sprinkling the holy water. 8. Alankar: Offering kumkum, sandle wood paste, basil leaves, gold, Ganga water, flowers. 9. Pind Daan: Offering rice balls with sesame seed and Gangajal. FIRST PIND: The first Pind is given in the hand of the deceased at the place of death by the name of Pret, to please the Devas of that place. SECOND PIND: At the door of the place of death, the second pind should be offered by the name Paanth to avoid the disturbance caused by the Bhoots and Prets. The wife then takes four rounds with a coconut in her hand, followed by the four hush carriers. The son first to follow her. THIRD PIND: Half way to crematorium the third Pind should be offered to avoid the disturbances coming from Pishach, Yakshas, Khechars and Devils. At the crematorium the dead body should have his head facing north. After doing a small havan in crematorium, O fire God, you are in the five elements and preserver of the world, may you take this soul to heaven. FOURTH PIND AND FIFTH: After keeping the dead body on the cremation pyre two Pinds should be offered by the name of the deceased, one in the pyre by the name of Bhoot, Rudra daivato and another by the name of Sadhak in the hand. PANCHAK: If a body is being cremated in the Panchak (last five Nakshatras in the almanac) another four pieces of grass must be kept beside the dead body. Holding a fire lamp in his hand, the son should walk around the fire and light the pyre. FOOD : Food is not cooked at home between death and cremation, that can be brought from outside. However, that depends upon individuals situation. After cremation all the family members should take bath and home cooked food must be offered to a cow. This system is repeated for ten days. SUTAK NIVRITTI: Condolence should be observed for nine nights, hence tenth day is Sutak Nirvitti day. On that day Shiva Puja, Pipal Puja, is considered. SAPINDI: (on the twelfth day) Pagadi is another important ceremony. By that the rights are transeferred to the son and he then onwards performs the ceremony till the 12th day, with 52 Pinds. CHAUTHA: (collection of ashes): also known as Marka, Parchawani, and Rasma Pagari. Usually performed on or after the third day of the death. Eldest son or the next of the kin is declared for being responsible in all the financial and other business matters of the deceased. Eldest son is declared the successor. There is a Kriya for thirteen days with daily mourning, Pind-dan, ten days Sutak observance, eleventh day Narayan Bali, twelfth day Dwadashah, and the final part on thirteenth day known as Uthala and Brahman Bhojan. However, in modern days, due to lack of time, people are completing everything in one day. KRIYA: Three Sodashies 52 Pinds) 17 MALIN PINDS: 1st, At the place of death, 2nd, At the door, 3rd, Half the way to the crematorium, 4th & 5th, At the pyre before lighting the pyre, 6th, On the third day at the time of the ashes collection and 7th to 16th, Pinds of ten days given from the first day of funeral rites for each day. MADHYAM PINDS: (On the eleventh day 11 Pindas and 5 for Sapindi) 1. Vishnu, 2. Shiva, 3. Yama, 4. Chandrama, 5. Agni, 6. Kaavya, 7. Kaal, 8. Rudra, 9. Purush Parameshwar, 10. Preta, 11. Vishnu, 12. Brahma, 13. Vishnu, 14. Shiva, 15. Yama, 16. Deceased. UTTAM SHODASHI: Twelve Pinds for twelve months, and fifteenth day (Pakshik), one and half month (tripaakshik), five and a half months (nyun shanmaashik), and eleven and half month’s (nyunabadhik). These sexteen Pinds are offered to the deceased. Also 4 Pinds for Sapindi, 3 for Pret and one for 1 Adhik mas if that come within one year after death. CHILD DEATH: Under the age of 27 months a child must be buried under the ground. Milk is donated in the name of the child. However, if a child is dead in the womb, no rituals are performed. The more Vasana one has while living, mind about the material things, more they need for proper way of Antyesti. SANYASI: A Sanyasi (one who has renounced) needs no Pinds Dan Kriyas. This rite is already performed for him at the time of renouncement ceremony.