Saturday 8 April 2017

कुम्भ लग्न कुंडली में शनि का प्रभाव

ज्योतिष शास्त्र में कुल नौ ग्रह है. तथा सभी ग्रहों की अपनी विशेषताएं है. ग्रह के फलों का विचार करने के लिये सबसे पहले ग्रह की शुभता व अशुभता निर्धारित की जाती है. ज्योतिष के सामान्त नियम के अनुसार शुभ ग्रह केन्द्र- त्रिकोंण भाव में होने पर शुभ फल देते है. इसके विपरीत अशुभ ग्रह इसके अतिरिक्त अन्य भावों में हों तो शुभ फलकारी कहे गये है.
लग्न भाव में लग्नेश हो, तो लग्न भाव को बल प्राप्त होता है. इसी प्रकार लग्नेश का त्रिक भावों में स्थित होना व्यक्ति के स्वास्थ्य में कमी का कारण बन सकता है. शनि को आयु का कारक ग्रह कहा गया है. इस भाव से शनि का संबन्ध बनने पर व्यक्ति की आयु में वृ्द्धि की संभावनाएं रहती है. इसी प्रकार धन भावों से गुरु का संबध व्यक्ति के धन में बढोतरी करता है. कुम्भ लग्न में शनि कुण्डली के विभिन्न भावों में किस प्रकार के फल दे सकता है
प्रथम भाव में शनि के फल
कुम्भ लग्न की कुण्डली में शनि लग्न भाव में हों, तो व्यक्ति के स्वास्थ्य सुख में वृ्द्धि होती है. आत्मबल भी बढता है. योग के कारण व्यक्ति के धन संबन्धी परेशानियों में कमी होती है. व्ययों की अधिकता हो सकती है. यह योग कुण्डली में होने पर व्यक्ति को दुर्घटनाओं से सावधान रहना चाहिए. वैवाहिक जीवन सुखमय न रहने की संभावनाएं बनती है. व्यापार क्षेत्र भी बाधित हो सकता है. पर अधिनस्थों से सहयोग प्राप्त हो सकता है.
द्वितीय भाव में शनि के फल
धन संचय करने के लिये व्यक्ति को अत्यधिक परिश्रम करना पड सकता है. माता-भूमि आदि का सुख मिलता है. व्यापार से आय प्राप्ति की इच्छा हो सकती है. पर व्यक्ति को इस क्षेत्र में परेशानियों का सामना करना पड सकता है.
तृ्तीय भाव में शनि के फल
व्यक्ति के पराक्रम में वृ्द्धि होती है. शिक्षा के बाधायें आने के बाद सफलता प्राप्ति की संभावनाएं बनती है. भाग्य का सहयोग भी व्यक्ति को प्राप्त होता है. व्यक्ति को धर्म के कार्यो में रुचि रहती है. इसके साथ ही व्ययों के बढने की भी संभावनाएं बनती है.
चतुर्थ भाव में शनि के फल
कुम्भ लग्न की कुण्डली के चतुर्थ भाव में शनि की स्थिति होने पर व्यक्ति को माता- भूमि के सुख में कमी हो सकती है. उसका स्वास्थ्य ठीक रहता है. शत्रु प्रबल हो सकते है. व्यापार में परेशानियों के साथ व्यक्ति सफलता की ओर अग्रसर रहता है. बुद्धि व परिश्रम से व्यक्ति को समाज में उच्च स्थान प्राप्त होता है.
पंचम भाव में शनि के फल
विधा के क्षेत्र में सफलता प्राप्ति में व्यक्ति को कुछ दिक्कतें हो सकती है. व्यापार में अडचनें आ सकती है. आय में कमी की संभावनाएं बनी हुई है. धन संचय भी सरलता से नहीं होता है.
छठे भाव में शनि के फल
कठोर परिश्रम द्वारा उन्नती, शत्रु शक्तिशाली होते है. व्यक्ति में दया भाव अधिक होने के कारण व्यक्ति अपने शत्रुओं पर भी कठोर नहीं होता है. स्वभाव से व्यक्ति अत्यधिक चिन्ता करने वाला होता है.
सप्तम भाव में शनि के फल
भाग्य में उतार-चढाव की स्थिति लगी रहती है. मान-प्रतिष्ठा प्राप्त होती है. परन्तु कुछ समय बाद इसमें भी कमी हो जाती है. दांम्पत्य जीवन में भी परेशानियां लगी रहती है.
अष्टम भाव में शनि के फल
व्यक्ति को असाध्य रोग हो सकते है. लम्बी अवधि के रोग भी हो सकते है. वाहनों का प्रयोग करते समय दुर्घटनाओं से बचके रहना चाहिए. व्यापार में चोरी जैसी घटनाएं हो सकती है. शिक्षा क्षेत्र बाधित हो सकता है. ऋणों से कष्ट बढने की संभावनाएं बनती है.
नवम भाव में शनि के फल
मेहनत से उन्नती का मार्ग खुलता है. भाग्य का सहयोग प्राप्त होता है. स्वभाव में मधुरता की कमी होने के कारण व्यक्ति की परेशानियों में बढोतरी होती है.
दशम भाव में शनि के फल
अत्यधिक मेहनत के बाद सफलता प्राप्त हो सकती है. व्ययों की अधिकता हो सकती है. पर यह योग व्यक्ति के सुखों में बढोतरी कर सकता है.
एकादश भाव में शनि के फल
आमदनी कम हो सकती है. पर व्यक्ति अपने आत्मबल व मनोबल के द्वारा आय में वृ्द्धि करने में सफल होता है. मान- प्रतिष्ठा की प्राप्ति की संभावनाएं बनती है. व्यक्ति के भौतिक सुखों में वृ्द्धि होती है.
द्वादश भाव में शनि के फल
व्यय अधिक हो सकते है. धन संचय में कमी हो सकती है. व्यक्ति को शत्रुओं द्वारा कष्ट प्राप्त हो सकता है. ऋणों के बढने की भी संभावनाएं बनती है. यह योग व्यक्ति की धार्मिक आस्था में बढोतरी करता है. व्यक्ति के जीवन में सुखों की अधिकता रहती है.

Sitare Hamare Saptahik Rashifal 3 April To 9 April 2017

Astrology Sitare Hamare on 08 April 2017

Friday 7 April 2017

मकर लग्न कुंडली में शनि का प्रभाव

ज्योतिष में कुल 12 भाव, 12 राशियां, 9 ग्रह, 27 नक्षत्र होते है. इन सभी के मेल से बनी कुण्ड्ली से व्यक्ति का भविष्य निर्धारित होता है. व्यक्ति को इन में से जिन ग्रहों की दशा - अन्तर्दशा का प्रभाव व्यक्ति पर चल रहा होता है. उन्हीं भाव से संबन्धित घटना घटित होने की संभावनाएं बनती है. सभी 12 भावों के अपने कारकतत्व होते है. जो स्थिर प्रकृ्ति के है.
सभी कुण्डली के लिये भावों के कारकतत्व एक समान रहते है. तथा इसी प्रकार राशियों की भी अपनी विशेषताएं होती है. जो स्थिर है. तथा जिनके गुण लग्न बदलने से परिवर्तित नहीं होते है.
भाव व राशियों के तरह ग्रहों की भी विशेषताएं होती है. जिनसे ग्रह की शुभता व अशुभता का निर्धारण होता है. पर ग्रह भाव, राशियों में अपनी स्थिति के अनुसार अपने फलों को बदल लेते है. विशेष रुप से लग्नेश व महादशा स्वामी से ग्रह के संबन्ध फलों को प्रभावित करते है. मकर लग्न की कुण्डली के 12 भावों में शनि इस प्रकार के फल दे सकता है
प्रथम भाव में शनि के फल
मकर लग्न के प्रथम भाव में शनि स्थित होने पर व्यक्ति के स्वास्थ्य सुख में वृ्द्धि होती है. व्यक्ति स्वभाव से स्वाभिमानी होता है. स्वराशि का शनि व्यक्ति के पराक्रम में वृ्द्धि करने में सहयोग करता है. इस योग के फलस्वरुप व्यक्ति के व्यापार में परेशानियां आने की संभावना बनती है. वैवाहिक जीवन के आरम्भ में कष्ट प्राप्त हो सकते है. परन्तु बाद में स्थिति सामान्य होकर व्यक्ति को अपने जीवन साथी का सहयोग प्राप्त होने की संभावनाएं बनती है. अधिनस्थों का सहयोग भी प्राप्त होता है.
द्वितीय भाव में शनि के फल -
व्यक्ति धन संचय करने में सफल होता है. व्यक्ति को अपने परिवार के सदस्यों का सुख प्राप्त होता है. परन्तु माता के सुख में कमी की संभावनाएं बनती है. भूमि- भवन संबन्धी मामलों से भी समस्याएं आ सकती है. इस योग से आयु में कुछ कमी हो सकती है. पर आय वृ्द्धि को सहयोग प्राप्त होता है.
तृ्तीय भाव में शनि के फल
पराक्रम भाव में मंगल की मेष राशि में शनि व्यक्ति के पराक्रम में वृ्द्धि करता है. पर इस योग के कारण व्यक्ति को अपने भाई -बहनों का सुख कम मिल सकता है. व्यक्ति के भाग्य व शिक्षा क्षेत्र में बाधाएं बनी रहती है. व्यक्ति के व्यय भी बढ सकते है.
चतुर्थ भाव में शनि के फल
व्यक्ति को अपनी माता का सुख कम मिल सकता है. तथा उसे घर से दूर रहना पड सकता है. शनि के इस भाव में होने से व्यक्ति के धन में कमी हो सकती है. शत्रु पक्ष भी व्यक्ति को हानि पहुंचा सकते है. व्यापार व आय के स्त्रोत ठीक रहने की संभावनाएं बनती है. योग के कारण व्यक्ति का स्वास्थ्य मध्यम स्तर का हो सकता है.
पंचम भाव में शनि के फल
शिक्षा, योग्यता, संतान आदि से सुख प्राप्त हो सकते है. विवाहित जीवन में अडचनें आ सकती है. यह योग होने पर व्यक्ति को साझेदारी व्यापार से बचना चाहिए. अन्यथा व्यापार में हानि हो सकती है. आय का स्तर मध्यम रहने के योग बनते है. पर व्यक्ति को धन से सुख की प्राप्ति होती है. इस योग के कारण व्यक्ति के द्वारा किये गये व्यय व्यर्थ विषयों पर नहीं होते है.
छठे भाव में शनि के फल
व्यक्ति का स्वास्थ्य मध्यम स्तर का हो सकता है. उसे शारीरिक परिश्रम अधिक करना पड सकता है. तथा व्ययों के भी अधिक होने की संभावनाएं बनती है. यह योग व्यक्ति को चिन्तित रहने का स्वभाव दे सकता है. व इसके कारण उसके धन में कमी हो सकती है.
सप्तम भाव में शनि के फल
जिस व्यक्ति की कुण्ड्ली में सप्तम भाव में शनि स्थित हों, उस व्यक्ति का स्वास्थ्य मध्यम रहने की संभावनाएं बनती है. व्यक्ति को शत्रुओं द्वारा कष्ट प्राप्त हो सकते है. पर भाग्य का सहयोग व्यक्ति को प्राप्त होता है. जीवन साथी से व्यक्ति को सुख प्राप्त होता है. पर साथ ही साथ व्यक्ति को व्यापारिक क्षेत्रों में परेशानियां बनी रह सकती है. व्यक्ति की आय बाधित हो सकती है. मेहनत व लगन से व्यक्ति अपने कार्यो को पूर्ण करने में सफल होता है.
अष्टम भाव में शनि के फल
मकर लग्न के अष्टम भाव में सिंह राशि में शनि व्यक्ति के पिता के स्वास्थ्य में कमी कर सकता है. इस योग के व्यक्ति को अपने पिता का सहयोग कम मिलने की संभावनाएं बनती है. इसके अतिरिक्त मतभेद भी हो सकते है. परिवार के अन्य सदस्यों के सहयोग में बढोतरी होती है. इस योग के फलस्वरुप व्यक्ति के संचय में भी वृ्द्धि को सहयोग प्राप्त होता है. आजिविका क्षेत्र के फल देर से प्राप्त होते है. इसके कारण संतान में कमी हो सकती है.
नवम भाव में शनि के फल
कन्या राशि नवम भाव में शनि की स्थिति व्यक्ति को भाग्य का सहयोग प्राप्त होने की संभावनाएं देती है. व्यक्ति अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में सफल होता है. व्यक्ति को आय क्षेत्र में परेशानियां आ सकती है. पराक्रम को बनाये रखने से व्यक्ति अपने कार्यक्षेत्र की बाधाओं को दूर करने में सफल होता है. व्यक्ति के अपने छोटे भाई बहनों से संबन्ध मधुर न रहने की संभावनाएं बनती है.
दशम भाव में शनि के फल
यह योग व्यक्ति को व्यापार क्षेत्र में सहयोगी रहता है. उसे अपने कार्यक्षेत्र में भी अच्छी सफलता मिलने की संभावनाएं बनती है. मान-सम्मान प्राप्ति के लिये भी यह योग व्यक्ति के अनुकुल रहता है. व्यक्ति के व्यय अधिक हो सकते है. तथा उसे माता- भूमि का पूर्ण सुख न मिलें, इस प्रकार के संयोग भी बनते है. वैवाहिक जीवन में कुछ बाधाएं बनी रह सकती है.
एकादश भाव में शनि के फल
व्यक्ति का स्वास्थ्य ठीक रहता है. तथा व्यक्ति के आत्मबल में भी वृ्द्धि होती है. मान-सम्मान प्रपति की संम्भावनाएं बनती है. योग के कारण व्यक्ति के व्यय बढ सकते है. तथा व्यक्ति को धन संग्रह में अत्यधिक रुचि हो सकती है. शिक्षा क्षेत्र में सफलता मिलने की संभावनाएं बनती है. यह योग होने पर व्यक्ति को दुर्घटनाओं से बचने का प्रयास करना चाहिए. आयु में कमी हो सकती है.
द्वादश भाव में शनि के फल
शनि द्वादश भाव में धनु राशि में होने पर व्यक्ति को सरकारी कार्यो से कष्ट प्राप्त हो सकते है. संचय करनें में भी परेशानियां हो सकती है. शत्रु पर व्यक्ति अपना प्रभाव बनाये रखता है. यह योग सामान्यत: व्यक्ति के भाग्य में वृ्द्धि करता है.

धनु लग्न की कुंडली में शनि का प्रभाव

पराशर ऋषि के अनुसार ग्रह अपनी स्थिति, युति व दृष्टि के अनुसार फल देते है. इसके अतिरिक्त शुभ ग्रह केन्द्र भावों में व अशुभ ग्रह केन्द्र , त्रिकोण के अलावा अन्य भावों में शुभ फल देने वाले कहे गये है. कारक ग्रह अपने भाव को देखे तो भाव को बल प्राप्त होता है. भाव को भावेश देखे तब भी भाव बली होता है. ग्रह से शुभ ग्रह दृष्टि संबन्ध बनाये तो ग्रह की अशुभता में कमी व शुभता में वृ्द्धि होती है. इसके विपरीत ग्रह से कोई भी अशुभ ग्रह संबन्ध बनाये तो फल इसके विपरीत प्राप्त होते है.
ऋषि पराशर के इन नियमों को धनु लग्न की कुण्डली में लगाने का प्रयास करते है.
प्रथम भाव में शनि के फल
मकर लग्न में व्यक्ति का स्वास्थ्य मध्यम स्तर का रहने की संभावनाएं बनती है. व्यक्ति के मान-सम्मान और प्रतिष्ठा में बढोतरी के योग बनते है. योग के फलस्वरुप व्यक्ति के सुखों में बढोतरी होती है.
द्वितीय भाव में शनि के फल
यह योग व्यक्ति के पराक्रम में कमी कर सकता है. व्यक्ति को धन संचय करने में सफलता प्राप्त होती है. आय भी संतोषजनक होने की संभावनाएं बनती है. व्यक्ति को अपनी माता से संबन्धों को मधुर बनाये रखने का प्रयास करना चाहिए. कार्यक्षेत्र के कार्यो में आलस्य का भाव दिखाने से बचना चाहिए.
तृ्तीय भाव में शनि के फल
व्यक्ति को विदेश से लाभ प्राप्त हो सकते है. इस योग के कारण व्यक्ति के व्ययों में बढोतरी हो सकती है. परिश्रम करने से ही उन्नती की संम्भावनाएं बनती है. व्यक्ति को शिक्षा क्षेत्र में परेशानियों का सामना करना पड सकता है.
चतुर्थ भाव में शनि के फल
व्यक्ति को माता से मिलने वाले सुख में कमी हो सकती है. परिवार से भी कम सहयोग प्राप्ति के योग बनते है. यह योग व्यक्त के स्वास्थ्य में कमी कर सकता है. व्यक्ति को व्यापार में मध्यम स्तर की सफलता मिलने की संभावनाएं बनती है. व्यवसायिक क्षेत्र में मान-सम्मान व यश प्राप्त हो सकता है.
पंचम भाव में शनि के फल
शिक्षा भाव में बाधाओं के बाद भी व्यक्ति को सफलता प्राप्त होती है. आय का स्तर उतम रहता है. व्यक्ति को परिवारिक जनों के कारण कष्ट प्राप्त हो सकता है. संतान के सुख में भी कमी हो सकती है.
छठे भाव में शनि के फल
व्यक्ति को जीवन के अनेक क्षेत्रों में धोखे मिल सकते है. कोर्ट-कचहरी के मामलों में सफलता मिलने की संभावनाएं बनती है. व्यक्ति के व्यय अधिक हो सकते है. कार्यक्षेत्र में पुरुषार्थ को बनाये रखना लाभकारी रहता है.
सप्तम भाव में शनि के फल
व्यक्ति का परिवारिक जीवन सुखमय रहने की संभावनाएं बनती है. व्यापार से आय प्राप्त हो सकती है. भाग्य का सहयोग कुछ देर से प्राप्त होने के योग बनते है. स्वास्थ्य संबन्धी परेशानियां भी आ सकती है.
अष्टम भाव में शनि के फल
इस भाव में शनि व्यक्ति कि आयु में बढोतरी करता है. प्रतिदिन के कार्यो में दिक्कतें हो सकती है. शिक्षा क्षेत्र में रुकावटों का सामना करना पडता है. तथा कार्यक्षेत्र में हौसला बनाये रखने से उन्नती प्राप्त हो सकती है.
नवम भाव में शनि के फल
व्यक्ति को जीवन में संघर्ष की स्थिति का सामना करना पड सकता है. भाग्य का सहयोग मिलता है. पर व्यक्ति की धार्मिक आस्था में कमी रहने की संभावनाएं बनती है. आय मध्यम स्तर की होने की संभावनाएं बनती है.
दशम भाव में शनि के फल
योग के फलस्वरुप व्यक्ति को मान-सम्मान, पिता का सहयोग मिलने की संभावनाएं बनती है. व्यक्ति के व्यय भी अधिक रहते है. भूमि-भवन के विषयों में विवाद उत्पन्न हो सकते है.
एकादश भाव में शनि के फल
धनु लग्न के एकादश भाव में शनि होने पर व्यक्ति की आय में बढोतरी के योग बनते है. स्वास्थ्य के प्रभावित होने की भी संभावनाएं बनती है. परिवारिक जीवन में परेशानियां बनी रह सकती है.
द्वादश भाव में शनि के फल
व्यक्ति के व्यय अधिक हो सकते है. भाई -बहनों से पूर्ण सुख -सहयोग प्राप्त हो सकता है. व्यक्ति अपने शत्रुओं को पराजित करने में सफल होता है. तथा बुद्धि का कुश्लता से प्रयोग करने पर व्यक्ति की आय में बढोतरी होने के योग बनते है.

Astrology Sitare Hamare on 07 April 2017

Thursday 6 April 2017

वृ्श्चिक लग्न कुण्डली में शनि का प्रभाव

शनि सभी ग्रहों में सबसे मन्द गति ग्रह है. इसलिये शनि के फल दीर्घकाल तक प्राप्त होते है. इसके अतिरिक्त व्यक्ति के जीवन में किसी भी घटना के घटित होने के लिये शनि के गोचर का विशेष विचार किया जाता है. यहीं कारण है कि शनि को काल कहा जाता है.
जन्म कुण्डली में शनि जिस भाव व जिस राशि में स्थित होता है. उसके अनुसार व्यक्ति को शनि के फल मिलने की संभावनाएं बनती है. शनि से मिलने वाले फलों को समझने के लियेस सबसे पहले जन्म कुण्डली में शनि के लग्नेश से संबन्धों को देखा जाता है. उसके पश्चात शनि किस भाव में स्थित है यह देखा जाता है. तथा अन्त में भाव की राशि, अन्य ग्रहों से शनि के संबन्ध का विचार किया जाता है.
वृ्श्चिक लग्न की कुण्डली में शनि 12 भावों में किस प्रकार के फल दे सकता है.
प्रथम भाव में शनि के फल
वृ्श्चिक लग्न कि कुण्डली में शनि लग्न भाव में हों, तो व्यक्ति के स्वभाव में उग्रता का भाव हो सकता है. इस योग का व्यक्ति स्वभाव से शान्त होता है. व्यक्ति का अपने शत्रुओं पर प्रभाव बना रहता है. उसके वैवाहिक जीवन में उतार-चढाव आने की संभावनाएं बनती है. व्यक्ति के अपने पिआ के साथ मतभेद हो सकते है. तथा सरकारी क्षेत्रों से परेशानियां हो सकती है. व्यापार के क्षेत्र में आरम्भ में असफलता परन्तु धैर्य से काम लेने से, बाद में सफलता मिलने की संभावनाएं बनती है.
द्वितीय भाव में शनि के फल
वृ्श्चिक लग्न के दूसरे भाव में धनु राशि होती है. इस भाव में शनि हो तो व्यक्ति को शेयर बाजार से लाभ प्राप्त हो सकता है. अन्य अचानक से भी धन लाभ होने के योग बनते है. इस योग के कारण व्यक्ति की आय मध्यम स्तर की हो सकती है. व्यक्ति योग्य, कुशल व श्रेष्ठ कार्यो को करने में रुचि लेता है.
उसे अपने परिजनों के कारण कष्टों का सामना करना पड सकता है. इस भाव से शनि अपनी तीसरी दृष्टि से माता के भाव में स्थित अपनी राशि से संम्बन्ध बनाने के कारण मातृ्भाव को बली कर रहा होता है. जिसके कारण व्यक्ति के मातृसुख में वृ्द्धि व सुख-सुविधाओं में भी बढोतरी होने की संभावनाएं बनती है.
तृ्तीय भाव में शनि के फल
व्यक्ति के पराक्रम में बढोतरी होती है. उसके शिक्षा क्षेत्र में बाधाएं आ सकती है. व्यापारिक क्षेत्र भी इसके कारण प्रभावित हो सकता है. व्यक्ति कठिनाईयों के साथ जीवन में आगे बढता है. यह योग व्यक्ति के भाग्य में कमी का कारण बन सकता है.
चतुर्थ भाव में शनि के फल
वृश्चिक लग्न के चतुर्थ भाव में शनि कुम्भ राशि में स्थित होता है. इस स्थिति में व्यक्ति को माता का पूर्ण सुख मिलने की संभावनाएं बनती है. भूमि-भवन के विषयों से भी लाभ प्राप्त हो सकते है. व्यक्ति का शत्रु बली हो सकते है. जिसके कारण व्यक्ति को हानि हो सकती है. व्यक्ति का स्वास्थ्य मध्यम स्तर का होता है. तथा आजिविका क्षेत्र में मेहनत से उन्नती प्राप्त हो सकती है.
पंचम भाव में शनि के फल
व्यक्ति को शिक्षा के लिये घर से दूर जाना पड सकता है. यह योग व्यक्ति को विदेश में शिक्षा प्राप्ति की संभावनाएं देता है. व्यक्ति को अपनी माता से कम सुख प्राप्त हो सकता है. स्वास्थ्य में कुछ कमी हो सकती है. तथा आय के स्तोत्र उतम रहने की संभावनाएं बनती है.
छठे भाव में शनि के फल
व्यक्ति के शत्रु अधिक शक्तिशाली होते है. इसलिये प्रतियोगियों से पराजय का सामना करना पड सकता है. रोग व ऋण संबन्धी विषय व्यक्ति को परेशान कर सकते है. धैर्य, हिम्मत व साहस को बनाये रखने से विजय व लाभ दोनों होने कि संभावनाएं बनती है.
सप्तम भाव में शनि के फल
भाई- बहनों के सुख में कमी, स्वास्थ्य मध्यम स्तर का होता है. धार्मिक कार्यो में रुचि कम होती है. जीवन साथी का सुख प्राप्त होता है. तथा व्यापार में भी लाभ प्राप्ति के संयोग बनते है. भाग्य का सहयोग प्राप्त होता है. व्यक्ति को शारीरिक मेहनत अधिक करनी पड सकती है. अधिक भाग-दौड के कारण स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है.
अष्टम भाव में शनि के फल
व्यक्ति को दीर्घकालानी रोग होने की संभावनाएं रहती है. इस योग के कारण व्यक्ति की आय में बढोतरी हो सकती है. व्यक्ति की आय उतम स्तर कि हो सकती है. शिक्षा में कमी हो सकती है. संतान का सुख मतभेदों के साथ प्राप्त होता है.
नवम भाव में शनि के फल
भाग्य की उन्नति होती है. पर भाग्य में उतार-चढाव बने रहते है. व्यक्ति अपने शत्रुओं को परेशान करने में सफल होता है. आय बाधित होकर प्राप्त होती है.
दशम भाव में शनि के फल
पिता के साथ मतभेद, सरकारी नियमों से कष्ट, व्यापार में परेशानियां, तथा आय में बढोतरी होती है.
एकादश भाव में शनि के फल
विधा के क्षेत्र में अडचनें, आयु में वृ्द्धि, आय उतम स्तर कि होती है. व्यक्ति को सभी प्रकार के सुख प्राप्त होने की संभावनाएं बनती है.
द्वादश भाव में शनि के फल
माता, भाई बहनों से कम सुख मिलने की संभावनाएं बनती है. आयु में बढोतरी होती है. ऎश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करने के अवसर प्राप्त हो सकते है.

तुला लग्न कुंडली में शनि का प्रभाव

किसी भी ग्रह के फलों का विचार करने के लिये ग्रह की स्थिति, युति व दृष्टि का विश्लेषण किया जाता है. ज्योतिष शास्त्र में सभी नौ ग्रहों के अपने गुण व विशेषताएं है. इसलिये ग्रह अपने गुण व विशेषताओं से भी प्रभावित होते है. जैसे:- गुरु को धन, ज्ञान व संतान का कारक ग्रह कहा जाता है. गुरु प्रभावित दशा अवधि में व्यक्ति को इन सभी कारक वस्तुओं की प्राप्ति की संभावनाएं बनती है. इसी प्रकार अन्य ग्रह भी अपने कारकतत्वों के अनुरुप फल देते है.
शनि को पापी व अशुभ ग्रह कहा जाता है. शनि तीसरे, छठे, दशम व एकादश भाव में शुभ फल देने वाले कहे गहे है. इसके अतिरिक्त पराशरी ज्योतिष का यह सामान्य सिद्धान्त है कि पापी ग्रह बली होकर शुभ भावों में हों, तो ओर भी अधिक कष्टकारी हो जाते है.
प्रथम भाव में शनि के फल
तुला लग्न, प्रथम भाव में शनि व्यक्ति के स्वास्थ्य को अनुकुल रखने में सहयोग करता है. इस योग की शुभता से व्यक्ति की शिक्षा में भी वृ्द्धि होने की संभावनाएं बनती है. उसे मान-सम्मान, यश, प्रतिष्ठा की प्राप्ति हो सकती है. परन्तु यह योग होने पर व्यक्ति को अपनी चारित्रिक विशेषताओं को बनाये रखने का प्रयास करना चाहिए. व्यक्ति को व्यापार क्षेत्र में कुछ परेशानियों का सामना करना पड सकता है.
द्वितीय भाव में शनि के फल
यह योग व्यक्ति को अपने जन्म स्थान से दूर रख सकता है. व्यक्ति स्वभाव से दूसरे के लिये त्याग करने वाला हो सकता है. योग के शुभ फलों प्राप्त करने के लिये व्यक्ति को अपनी माता के सम्मान में कमी नहीं करनी चाहिए. माता का सम्मान करने पर व्यक्ति के सुखों में वृ्द्धि होती है. मान -सम्मान, यश, प्रतिष्ठा दोनों की प्राप्ति होती है. व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में अत्यन्त कठिनाईयों का सामना करना पड सकता है. विपरीत परिस्थितियों में धैर्य बनाये रखने से कार्यक्षेत्र की बाधाओं में कमी होने की संभावनाएं बनती है.
तृतीय भाव में शनि के फल
अत्यन्त मेहनत करने के बाद ही सफलता प्राप्ति हो सकती है. व्यक्ति के सभी के साथ कटुतापूर्ण व्यवहार हो सकता है. पर व्यक्ति ज्ञानी व विद्वान होता है. अपनी योग्यता का पूर्ण उपयोग करने से व्यक्ति के कष्टों में कमी हो सकती है.
चतुर्थ भाव में शनि के फल
शिक्षा पक्ष से यह योग व्यक्ति के लिये शुभ फल देने वाला होता है. व्यक्ति के संतान सुख में भी वृ्द्धि हो सकती है. पर उसके अपनी माता के साथ कुछ मतभेद हो सकते है. भूमि सम्बन्धी विवाद परेशान कर सकते है. इस योग का व्यक्ति अपने शत्रुओं पर अपना प्रभाव बनाये रखता है. स्वभाव में जिद्द व स्वतन्त्रता का भाव होने की संभावनाएं बनती है.
पंचम भाव में शनि के फल
तुला लग्न कि कुण्डली में शनि पंचम भाव में होने पर व्यक्ति के ज्ञान क्षमता में वृ्द्धि करता है. उसे छुपी हुई विधाओं को जानने में रुचि हो सकती है. माता का पूर्ण सुख प्राप्त होने की भी संभावनाएं बनती है. पर ये सभी शुभ फल व्यक्ति को प्रयास करने से ही प्राप्त होते है.
छठे भाव में शनि के फल
व्यक्ति को बाहरी स्थानों अर्थात विदेश स्थानों से लाभ प्राप्त हो सकते है. पर व्यक्ति के शत्रु अधिक शक्तिशाली होते है. इसलिये व्यक्ति को अपने शत्रुओं से हानि हो सकती है. व्ययों के अधिक होने के भी योग बनते है. आलस्य करना इस लग्न के व्यक्तियों के लिये लाभकारी नहीं रहता है. पुरुषार्थ करते रहने से उन्नती की रुकावटों में कमी होती है.
सप्तम भाव में शनि के फल
तुला लग्न के व्यक्ति की कुण्डली में जब शनि सप्तम भाव में हो, तो व्यक्ति के स्वास्थ्य सुख में वृ्द्धि होती है. व्यक्ति को शत्रु पक्ष के कार्यो से सावधान रहना चाहिए. यह योग व्यक्ति के व्यवसाय में अडचनें लेकर आ सकता है. व्यक्ति को अधिक परिश्रम करना पड सकता है. तथा मेहनत के अनुरुप सुख न मिलने की भी संभावनाएं बनती है.
अष्टम भाव में शनि के फल
व्यक्ति के जीवन का अधिकतर भाग संघर्ष में व्यतीत होता है. उसे अपने भाई-बहनों का प्यार कम मिलने की संभावनाएं बनती है. समय पर मित्रों व भाई-बहनों का सहयोग न मिलें यह भी हो सकता है. व्यक्ति को विधा के क्षेत्र में भी बाधाओं का सामना करना पड सकता है. पर व्यक्ति कि शिक्षा उतम व व्यक्ति विद्वान हो सकता है. यह योग होने पर व्यक्ति को जन्म स्थान से दूर रहने पर उन्नति प्राप्ति कि संभावनाएं बनती है. उसके अपने जीवन साथी से मतभेद हो सकते है. जीवन के अनेक क्षेत्रों में कठिनाईयों को झेलते हुए व्यक्ति सफलता की सीढियां चढता है. यह योग व्यक्ति के संतान सुख में भी वृ्द्धि करता है. इस योग के व्यक्ति के स्वभाव में स्वार्थ का भाव न होने की संभावनाएं बनती है. अर्थात व्यक्ति में दया व निस्वार्थ सेवा का भाव हो सकता है.
नवम भाव में शनि के फल
तुला लग्न की कुण्डली के नवम भाव में शनि होने पर व्यक्ति को अपने शत्रुओं से कष्टों का सामना करना पड सकता है. पर व्यक्ति अपनी बुद्धि के बल पर अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में सफल हो सकता है. सफलता के लिये परिश्रम अधिक करना पड सकता है. व्यक्ति को संघर्ष के बाद सुख प्राप्त होने की सम्भावनाएं बनती है.
दशम भाव में शनि के फल
धन, मकान, माता-पिता आदि से अल्प सुख मिलने के योग बनते है. आय मध्यम स्तर की हो सकती है. व्ययों के अधिक होने की संभावनाएं बनती है. दांम्पत्य जीवन के लिये भी यह योग अनुकुल नहीं होता है. व्यक्ति की संतान होती है. पर मतभेद हो सकते है.
एकादश भाव में शनि के फल
कठिनाईयों के साथ आय की प्राप्ति, स्वास्थ्य ठीक रहता है. कार्यक्षेत्र में उन्नती का मार्ग रुकावटों से होकर जाता है. व्यक्ति कुछ स्वार्थी हो सकता है. यह योग व्यक्ति की चिन्ताओं में वृ्द्धि कर सकता है. तथा व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारियों का अहसास कम होने कि संभावनाएं बनती है.
द्वादश भाव में शनि के फल
व्यक्ति की वाणी में जोश व तेज हो सकता है. व्यय अधिक हो सकते है. तथा आय में मन्द गति से वृ्द्धि होने की सम्भावनाएं बनती है. व्यक्ति को बौद्धिक कार्यो में सहयोग कम मिलने की संभावनाएं बनती है. योग के फल्स्वरुप व्यक्ति के जीवन के संघर्ष में वृ्द्धि होती है.

कन्या लग्न कुंडली में शनि का प्रभाव

प्रत्येक जन्म कुण्डली में 12 भाव होते है. जिन्हें कुण्डली के "घर" भी कहा जाता है. सभी कुण्डली में भाव स्थिर रहते है. पर इन भावों में स्थित राशियां लग्न के अनुसार बदलती रहती है. कुण्डली के प्रथम भाव को लग्न भाव कहते है. तथा इसी भाव से कुण्डली के अन्य भावों की राशियां निर्धारित होती है. लग्न भाव केन्द्र व त्रिकोण भाव दोनों का होता है. तथा कुण्डली का आरम्भ भी इसी भाव से होने के कारण यह भाव विशेष महत्व रखता है.
जब कुण्डली में किसी एक भाव, राशि में स्थित ग्रह से मिलने वाले फलों का विचार किया जाता है. तो सर्वप्रथम यह देखा जाता है कि ग्रह कुण्डली के किस भाव में स्थित है, उस भाव में कौन सी राशि है, तथा उस राशि स्वामी से ग्रह के किस प्रकार के संबन्ध है. इसके अतिरिक्त इस ग्रह से अन्य आठ ग्रहों से किसी भी ग्रह का कोई संबन्ध बन रहा है या नहीं. इन सभी बातों का विचार करने के बाद ही यह निर्धारित किया जाता है कि ग्रह से किस प्रकार के फल प्राप्त हो सकते है.
प्रथम भाव में शनि के फल
व्यक्ति का स्वास्थ्य प्राय: कमजोर हो सकता है. शिक्षा क्षेत्र के लिये शनि का कन्या लग्न में प्रथम भाव में होना उतम होता है. यह योग व्यक्ति के संतान सुख में वृ्द्धि कर सकता है. इस स्थिति में आलस्य में कमी करना व्यक्ति के लिये हितकारी होता है. व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में संघर्ष और परिश्रम द्वारा उन्नति प्राप्त हो सकती है.
द्वितीय भाव में शनि के फल
जिस व्यक्ति कि कुण्डली में यह योग बन रहा हों, उस व्यक्ति के धन में बढोतरी हो सकती है. ऎसा व्यक्ति अपने परिवार व कुटुम्ब आदि विषयों में अधिक खर्च कर सकता है. यह योग व्यक्ति को जीवन के आजिविका के क्षेत्र में परेशानियों के बाद उन्नति प्राप्त होने की संभावनाएं देता है.
तृ्तीय भाव में शनि के फल
वृ्श्चिक राशि, तीसरे भाव में शनि अपने शत्रु मंगल की राशि में होता है. जिसके कारण शत्रुओं से हानि होने की संभावना बनती है. व्यक्ति को अपने भाई- बहनों से कम सुख प्राप्त होता है. ऎसे में व्यक्ति के मित्र भी समय पर सहयोग नहीं करते है. विधा क्षेत्र से व्यक्ति को अनुकुल फल प्राप्त होने की संभावनाएं बनती है. तथा व्यक्ति की विधा भी उतम हो सकती है. व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में कुछ चिन्ताएं बनी रह सकती है. संतान पक्ष से सुख में कमी हो सकती है. इसके फलस्वरुप व्यक्ति के व्यय अधिक हो सकते है. तथा सामान्यत: व्यक्ति का जीवन संघर्षमय रहने की संभावनाएं बन सकती है.
चतुर्थ भाव में शनि के फल
माता के सुख में कमी हो सकती है. भूमि संबन्धी मामले होते है. व्यक्ति को व्यापार के क्षेत्र में अडचनें आ सकती है. व्यक्ति का स्वास्थ्य मध्यम स्तर का हो सकता है. मेहनत में बढोतरी कर व्यक्ति शनि के अशुभ फलों में कमी कर सकता है. परन्तु आलस्य करने पर व्यक्ति के जीवन में परेशानियां बढने कि संभावना रहती है. अपनी पूरी क्षमता से प्रयासरत रहने से व्यक्ति के सुखों में वृ्द्धि की संभावनाएं बन सकती है.
पंचम भाव में शनि के फल
इस भाव में शनि की स्थिति व्यक्ति को विधा के क्षेत्र में बाधाएं दे सकती है. यह योग व्यक्ति को गलत तरीकों से शिक्षा क्षेत्र में आगे बढने की प्रवृ्ति दे सकता है. इस स्थिति में व्यक्ति मेहनत के अतिरिक्त अन्य तरीकों से शिक्षा क्षेत्र में सफल होने का प्रयास कर सकता है. व्यक्ति धन संचय में सफल हो सकता है. पर व्यक्ति को मेहनत में कमी न करने से ही यह योग व्यक्ति को शुभ फल देता है.
छठे भाव में शनि के फल
छठे भाव में शनि कुम्भ राशि में हों तो व्यक्ति को दुर्घटनाओं से सावधान रहना चाहिए. शिक्षा के क्षेत्र में पूर्ण संघर्ष करना इस योग के व्यक्ति के लिये लाभकारी रहता है. व्यक्ति के शत्रु उसके लिये कष्ट का कारण बन सकते है. तथा धैर्य के साथ शत्रुओं का सामना करने से व्यक्ति को विजय प्राप्त होती है.
सप्तम भाव में शनि के फल
यह योग व्यक्ति को जन्म स्थान से दुर रहने पर उन्नति के योग बनते है. स्वास्थ्य मध्यम रहने की संभावनाएं बनती है. कार्यक्षेत्र में सफल होने के लिये व्यक्ति को मेहनत के साथ साथ बुद्धि का प्रयोग भी करना लाभकारी रहता है. उसे अपने जीवन साथी संबन्धी विषयों में चिन्ता हो सकती है. तथा व्यक्ति को भूमि संबन्धी मामलों में परेशानियां का सामना करना पड सकता है.
अष्टम भाव में शनि के फल
मेष राशि में शनि अष्टम भाव में हों तो व्यक्ति की शिक्षा में कमी हो सकती है. व्यक्ति के स्वभाव में चतुराई का भाव होने की संभावनाएं बन सकती है. व्यक्ति को असमय की घटनाओं का सामना करना पड सकता है. इस स्थिति में व्यक्ति को दुर्घटनाओं से बचके रहना चाहिए. धन व सुख-सुविधाओं के विषयों में व्यक्ति को कठोर परिश्रम करना पड सकता है.
नवम भाव में शनि के फल
व्यक्ति बौद्धिक कार्यो के कारण अपने भाग्य की उन्नती करने में सफल होता है. विवादों से बचने के प्रयास करना चाहिए. यह योग व्यक्ति को नीति निपुण बनाये रखने में सहायक होता है. योग के प्रभाव से व्यक्ति के स्वभाव में चतुराई के भाव में वृ्द्धि हो सकती है. तथा शनि के नवम भाव में होने पर व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रभाव शाली बना रह सकता है. व्यक्ति के व्यय अधिक हो सकते है. साथ ही साथ आय भी अधिक होने कि संभावनाएं बनती है.
दशम भाव में शनि के फल
व्यक्ति के मान-सम्मान में बढोतरी होती है. व्ययों के बढने से आर्थिक चिन्ताएं परेशान कर सकती है. व्यक्ति के माता के सुख में कमी हो सकती है. जीवन साथी का स्वास्थ्य मध्यम हो सकता है. कठिन परिश्रम करने से व्यक्ति के कार्यों की बाधाओं में कमी हो सकती है.
एकादश भाव में शनि के फल
दुर्घटना होने के भय रहते है. व्यक्ति को शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है. जिसके फलस्वरुप उसके लाभों में बढोतरी हो सकती है. इस योग के व्यक्ति को अपने व्ययों पर नियन्त्रण रहता है. योग की शुभता से व्यक्ति के संतान सुख में वृ्द्धि होती है. स्वास्थ्य में कमी हो सकती है.
द्वादश भाव में शनि के फल
व्यक्ति को विदेशों से हानि होने की संभावनाएं बनती है. बुद्धि प्रयोग से व्यक्ति के भाग्य में वृ्द्धि होती है. धन वृ्द्धि के लिये भी यह योग अनुकुल रहता है. पर रोगो के उपचार में धन का व्यय अधिक हो सकता है.

कामदा एकदशी व्रत

कामदा एकदशी व्रत चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी के नाम से जाना जाता है. वर्ष 2017 में 7 अप्रैल को यह व्रत किया जायेगा. यह एकादशी कामनाओं की पूर्ति को दर्शाती है. इस व्रत को करने से पापों का नाश होता है तथा साधक की इच्छा एवं कामना पूर्ण होती है. इस एकादशी के फलों के विषय में कहा जाता है, कि यह एकादशी व्यक्ति के पापों को समाप्त कर देती है. कामदा एकादशी के प्रभाव से पापों का शमन होता है और संतान की प्राप्ति होती है. इस व्रत को करने से परलोक में स्वर्ग की प्राप्ति होती है.
कामदा एकादशी पूजन
चैत्र शुक्ल पक्ष कि एकादशी तिथि में इस व्रत को करने से पहले कि रात्रि अर्थात दशमी तिथि से ही सात्विकता एवं शुद्धता का आचरण अपनाना चाहिए. भूमि पर ही शयन करना चाहिए. दशमी तिथि के दिन से ही व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए. एकादशी व्रत करने के लिये व्यक्ति को प्रात: उठकर, अपने नित्य कर्म करने के उपरांत भगवान श्री विष्णु जी की पूजा करनी चाहिए इसके साथ ही सत्यनारायण कथा का पाठ करना चाहिए.
कामदा एकादशी व्रत विधि
हिन्दू धर्म ग्रन्थों के अनुसार कामदा एकादशी के दिन स्नानादि से शुद्ध होकर व्रत संकल्प लेना चाहिए। इसके पश्चात भगवान विष्णु का फल, फूल, दूध, पंचामृत, तिल आदि से पूजन करने की सलाह दी गई है। रात में सोना नहीं चाहिए बल्कि भजन- कीर्तन करते हुए रात बितानी चाहिए। अगले दिन यानि पारण के दिन पुनः पूजन कर ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए। दक्षिणा देकर ब्राह्मण को विदा करने के बाद भोजन ग्रहण कर उपवास खोलना चाहिए।
कामदा एकादशी पौराणिक कथा
कामदा एकादशी के संदर्भ में पौराणिक मतानुसार एक कथा है जिसमें पुण्डरीक नामक राजा था, उसकी भोगिनीपुर नाम कि नगरी थी. वहां पर अनेक अप्सरा, गंधर्व आदि वास करते थें. उसी जगह ललिता और ललित नाम के स्त्री-पुरुष अत्यन्त वैभवशाली घर में निवास करते थे. उन दोनों का एक-दूसरे से बहुत अधिक प्रेम था. एक समय राजा पुंडरिक गंधर्व सहित सभा में शोभायमान थे. उस जगह ललित गंधर्व भी उनके साथ गाना गा रहा था. उसकी प्रियतमा ललिता उस जगह पर नहीं थी. इससे ललित उसको याद करने लगा.ध्यान हटने से उसके गाने की लय टूट गई. यह देख कर राजा को क्रोध आ गया. ओर राजा पुंडरीक ने उसे श्राप दे दिया. मेरे सामने गाते हुए भी तू अपनी स्त्री का स्मरण कर रहा है. जा तू अभी से राक्षस हो जा, अपने कर्म के फल अब तू भोगेगा. राजा पुण्डरीक के श्राप से वह ललित गंधर्व उसी समय राक्षस हो गया, उसका मुख भयानक हो गया और अपने कर्म का फल वह भोगने लगा.अपने प्रियतम का जब ललिता ने यह हाल देख तो वह बहुत दु;खी हुई. अपने पति के उद्धार करने के लिये वह विन्धाजल पर्वत पर एक ऋषि के आश्रम जाती है और ऋषि से विनती करने लगी. उसके करूणा भरे विलाप से व्यथित हो ऋषि उसे कहते हैं कि हे कन्या शीघ्र ही चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी आने वाली है. उस एकादशी के व्रत का पालन करने से, तुम्हारे पति को इस श्राप से मुक्ति मिलेगी. मुनि की यह बात सुनकर, ललिता ने आनन्द पूर्वक उसका पालन किया. और द्वादशी के दिन ब्राह्मणों के सामने अपने व्रत का फल अपने पति को दे दिया, और भगवान से प्रार्थना करने लगी.
हे प्रभो, मैनें जो यह व्रत किया है, उसका फल मेरे पति को मिले, जिससे वह इस श्राप से मुक्त हों. एकादशी का फल प्राप्त होते ही, उसका पति राक्षस योनि से छुट गया. और अपने पुराने रुप में वापस आ गया. इस प्रकार इस वर को करने से व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट हो जाते है तथा कामनाओं की सिद्धि होती है.

सिंह लग्न के कुंडली में शनि का प्रभाव

वैदिक ज्योतिष से किसी भी ग्रह से मिलने वाले फलों को जानने के लिये संबन्धित ग्रह की स्थिति का संपूर्ण विश्लेषण किया जाता है. सभी ग्रह कुछ निश्चित भावों में होने पर शुभ फल देते है तथा कुछ भावों में ग्रहों की स्थिति मध्यम स्तर के शुभ फल दे सकती है. तथा इसके अतिरिक्त कुण्डली के कुछ विशेष भावों में ग्रहों की स्थिति सर्वथा प्रतिकूल फल देने वाली कही गई है.
इसी प्रकार सभी ग्रह अपनी स्वराशि, मित्र राशि, उच्च राशि में हों तो शुभफल देने की क्षमता रखते है. सम राशि में होने पर मिले- जुले फल देते है. या वे शत्रु राशि, राशिगत, नीच राशि में हों, तो शुभ फल देने में असमर्थ होते है. अन्य अनेक कारणों से ग्रहों से मिलने वाले फल प्रभावित होते है.
प्रथम भाव में शनि के फल
सिंह लग्न के स्वामी सूर्य व शनि के मध्य शत्रुवत संबन्ध होने के कारण इस राशि में लग्न भाव में स्थित हों तो व्यक्ति को स्वास्थ्य संबन्धी परेशानियां हो सकती है. आजिविका के लिये यह योग सामान्य फल देता है. तथा शनि के प्रथम भाव में होने पर व्यक्ति के अपने जीवन साथी से अनुकुल संबन्ध न रहने की सम्भावनाएं बनती है. जिसके कारण व्यक्ति की मानसिक परेशानियों में वृ्द्धि हो सकती है.
द्वितीय भाव में शनि के फल
द्वितीय भाव, कन्या राशि में शनि होने पर व्यक्ति को भूमि- भवन के मामलों में कठिनाईयों को झेलना पड सकता है. उसके जीवन साथी के स्वास्थ्य में कमी हो सकती है. इस योग के प्रभाव से धन संबन्धी विषयों में सहयोग प्राप्त होगा. तथा धन के बढने की भी संभावनाएं बन सकती है. यह योग होने पर व्यक्ति को अपनी माता के साथ मधुर संबन्ध बनाये रखने का प्रयास करना चाहिए. आजिविका क्षेत्र में सामान्य से अधिक मेहनत करनी पड सकती है. तथा कार्यभार भी अधिक होने कि संभावनाएं बनती है.
तृ्तीय भाव में शनि के फल
इस योग के फलस्वरुप व्यक्ति के आय से अधिक व्यय हो सकते है. जिसके कारण व्यक्ति को संचय में परेशानियां हो सकती है. कार्यो में उसे अपने भाईयों का सहयोग मिलता है. व्यक्ति को पराक्रम व पुरुषार्थ से सफलता व उन्नति प्राप्त होने की संभावनाएं बनती है. तथा शिक्षा क्षेत्र के लिये यह योग शुभ फलकारी न होने के कारण व्यक्ति को इस क्षेत्र में बाधाएं दे सकता है. संतान से भी कष्ट प्राप्त हो सकते है.
चतुर्थ भाव में शनि के फल
सिंह लग्न के चतुर्थ भाव में शनि व्यक्ति को व्यापार व आजिविका क्षेत्र में अनुकुल फल देता है. पर इस योग के कारण व्यक्ति के स्वास्थ्य में कमी हो सकती है. भूमि या मकान संबन्धित मामलों के अपने पक्ष में फैसला होने की संभावनाएं बनती है. प्रयास करने से इन विषयों की योजनाओं को पूरा करने में सफलता मिलती है. आय के भी सामान्य रहने के योग बनते है.
पंचम भाव में शनि के फल
व्यक्ति को शिक्षा के क्षेत्र में सफलता मिलती है. शनि के प्रभाव के कारण संतान देर से प्राप्त हो सकती है. व्यक्ति को पिता का सुख कम मिलता है. कई अवसरों पर पिता से मिलने वाले सहयोग में भी कमी हो सकती है. व्यक्ति के अपने जीवन साथी से संबन्ध मधुर रहते है. आजिविका क्षेत्र में कई बार बद्लाव करना पड सकता है. बुद्धिमानी, चतुराई से व्यक्ति अपने संचय में वृ्द्धि करने में सफल हो सकता है.
छठे भाव में शनि के फल
दैनिक कार्यो में परेशानियां बनी रहती है. प्रतिदिन के व्ययों के लिये रोकड में कमी का कई बार सामना करना पड सकता है. व्यक्ति का अपने शत्रुओं पर प्रभाव बना रहता है. मेहनत से व्यक्ति को उन्नती की प्राप्ति होती है. पर इस योग के व्यक्ति को अपने छोटे- भाई- बहनों के सुख में कमी अनुभव हो सकती है.
सप्तम भाव में शनि के फल
माता-पिता से सुख -सहयोग कम मिलने की संभावनाएं बनती है. व्यक्ति को अपने जीवन साथी से कष्ट मिल सकते है. उसे अपने व्यापार में बाधाओं की स्थिति से गुजरना पड सकता है. योग के कारण व्यक्ति के भाग्य में भी मन्द गति से वृ्द्धि होती है. तथा जीवन में अधिक संघर्ष का सामना करना पड सकता है.
अष्टम भाव में शनि के फल
सिंह लग्न की कुण्डली के अष्टम भाव में शनि हों तो व्यक्ति को समय के साथ चलने का प्रयास करना चाहिए. अत्यधिक रुढिवादी होना उसके लिये सही नहीं होता है. यह योग व्यक्ति की आय को बाधित कर सकता है. इन बाधाओं को दूर करने के लिये व्यक्ति को अपनी मेहनत में वृ्द्धि करनी चाहिए.
नवम भाव में शनि के फल
यह योग व्यक्ति को जीवन में बार-बार बाधाएं व परेशानियां दे सकता है. भाग्य भाव में शनि व्यक्ति के स्वास्थ्य में मध्यम स्तर की कमी कर सकता है. उसके अपने जीवन साथी के साथ संबन्ध मधुर न रहने की संभावनाएं बनती है. लडाई -झगडें हो सकते है. आय के लिये शनि का यह योग प्रतिकूल नहीं रहता है.
दशम भाव में शनि के फल
यह योग व्यक्ति के अपने पिता से संबन्ध मधुर न रहने कि संभावनाएं देता है. सिंह लग्न कि कुण्डली में शनि जब दशम भाव में स्थित हों तो उसे कानूनी नियमों व करों का सख्ती से पालन करना चाहिए. व्यक्ति के व्यय अधिक हो सकते है. पुरुषार्थ व मेहनत में वृ्द्धि करने से वह कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है. इसके फलस्वरुप व्यक्ति के दांम्पत्य जीवन में मिला-जुला प्रभाव बना रहता है. शनि के प्रभाव से उसके अपनी माता के सुख में कमी हो सकती है.
एकादश भाव में शनि के फल
व्यक्ति की आ में मन्द गति से मगर लम्बी अवधि तक वृ्द्धि होती है. उसके विवाहित जीवन में परेशानियां बनी रहती है. व्यवसाय में आरम्भ में हानि के बाद लाभ प्राप्त हो सकते है. नौकरी में होने पर व्यक्ति को पूर्ण प्रयास करने से लाभ प्राप्त हो सकते है.
द्वादश भाव में शनि के फल
व्यक्ति के परिवार से बाहर के लोगों के साथ संबन्ध मधुर न रहने के योग बनते है. व्यापार में अडचने मिलने की संभावनाएं बनती है. उसे धन-संचय में कठिनाईयों का सामना करना पड सकता है. परन्तु आय के क्षेत्र में लाभ प्राप्त होते है.

Tuesday 4 April 2017

कर्क लग्न में शनि का प्रभाव

पराशरी ज्योतिष के सामान्य नियम के अनुसार ग्रहों के फल भाव, राशि व ग्रह पर अन्य ग्रहों की दृष्टि, युति व स्थिति से प्रभावित होते है. शनि तीसरे, छठे, दसवें व ग्यारहवें भाव में शुभ फल देते है. शनि आयु भाव अर्थात अष्टम भाव के कारक ग्रह है. इस भाव में शनि सामान्यता: अनुकुल फल देते है. शेष भावों में शनि के फलों को शुभ नहीं कहा गया है.
कर्क लग्न के लिये शनि सप्तमेश व अष्टमेश भाव के स्वामी होते है. विभिन्न भावों में प्रभाव
प्रथम भाव में शनि के फल
शनि कुण्डली के प्रथम भाव में होने पर व्यक्ति का स्वास्थ्य मध्यम रहने की संभावनाएं बनती है. भाई -बहनों के सुख में कमी हो सकती है. व्यक्ति की हिम्मत और साहस में वृ्द्धि होती है. व्यक्ति को अपने जीवन साथी से सुख प्राप्त होता है. पर वैवाहिक जीवन में कुछ रुकावटें बनी रह सकती है. व्यक्ति को आजिविका के क्षेत्र में बाधाएं आने की संभावनाएं बनती है. व्यक्ति के लाभों में बढोतरी होती है.
द्वितीय भाव में शनि के फल
इस योग के व्यक्ति को माता का पूर्ण सुख प्राप्त होने की संभावनाएं बनती है. जमीन व भूमि के विषयों से भी सुख प्राप्त होता है. पर व्यक्ति को अपने परिवार के सदस्यों से परेशानियां हो सकती है. ऎश्वर्य पूर्ण जीवन व्यतीत करने के अवसर प्राप्त हो सकते है. इसके कारण व्ययों की अधिकता व संचय में कमी हो सकती है. दांम्पत्य जीवन के सुख में कमी हो सकती है.
तृतीय भाव में शनि के फल
कर्क लग्न के व्यक्ति की कुण्डली में शनि तीसरे भाव में हों, उस व्यक्ति के स्वभाव में क्रोध का भाव हो सकता है. उसके पराक्रम में भी बढोतरी होने की सम्भावनाएं बनती है. भाई-बहनों से संबन्ध मधुर न रहने के योग बनते है. तथा समय पर उसे अपने मित्रों का सहयोग न मिलने की भी संभावनाएं बनती है.
शनि का तीसरे भाव में होना व्यक्ति की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करता है. इसके फलस्वरुप उसके व्ययों में बढोतरी हो सकती है. बाहरी व्यक्तियों से संबन्ध मधुर न रहने के योग बनते है. उसके धन में कमी हो सकती है. व्यापारिक क्षेत्र में बाधाएं आ सकती है. तथा व्यक्ति का मन धार्मिक कार्यो में नहीं लगता है.
चतुर्थ भाव में शनि के फल
कर्क लग्न के व्यक्ति के चतुर्थ भाव में शनि व्यक्ति के अपनी माता के सुख में कमी करते है. उसके अपनी माता से विवाद पूर्ण संबन्ध हो सकते है. भूमि- भवन के मामलों में चिन्ताएं बढती है. परन्तु प्रयास करने से बाद में स्थिति सामान्य हो जाती है. इस योग के व्यक्ति के व्यापार में बाधाएं आने की संभावनाएं बनती है. इस स्थिति में व्यक्ति को अपने शत्रुओं से कष्ट प्राप्त हो सकते है. ऎसे में व्यक्ति अगर हिम्मत से काम लें तो शत्रुओं को परास्त करने में सफल होता है. उसका दांम्पत्य जीवन कलह पूर्ण हो सकता है. सरकारी नियमों का सख्ती से पालन करना उसके लिये हितकारी रहता है.
पंचम भाव में शनि के फल
कर्क लग्न के पंचम भाव में वृ्श्चिक राशि आती है. इस भाव में शनि व्यक्ति को प्रेम में असफलता दे सकते है. पंचम भाव क्योकि शिक्षा का भाव भी है. इसलिये शिक्षा में भी रुकावटें आने के योग बनते है. व्यक्ति अपने मनोबल को उच्च रखे तो वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकता है. इस योग के व्यक्ति का जीवन साथी शिक्षित व चिंतन शील होने की संभावनाएं बनती है. व्यक्ति के धन संचय में कमी हो सकती है. आजिविका क्षेत्र थोडा सा प्रभावित होता है. पर आय सामान्य रहती है. यह योग व्यक्ति को सदैव चिन्तित रहने की संभावनाएं देता है.
छठे भाव में शनि के फल
कर्क लग्न, धनु राशि, छठे भाव में शनि व्यक्ति कि आजिविका को अनुकुल रखता है. इस योग के फलस्वरुप व्यक्ति के नौकरी करने की संभावनाएं बनती है. उसके अपने दांम्पत्य जीवन में मतभेद हो सकते है. विदेश स्थानों से लाभ प्राप्त हो सकते है. तथा व्ययों की अधिकता हो सकती है. इस योग का व्यक्ति अपने पुरुषार्थ तथा बुद्धि से लाभ प्राप्त करने में सफल होता है.
सप्तम भाव में शनि के फल
यह योग व्यक्ति के व्यापार को अच्छा बनाये रखने में सफल होता है. व्यक्ति को अपने ग्रहस्थ जीवन में सुख की कुछ कमी हो सकती है. धन में भी कमी हो सकती है. मेहनत व प्रयास में कमी न करना हितकारी रहता है.
अष्टम भाव में शनि के फल
इस भाव में शनि अपनी स्वराशि कुम्भ राशि में स्थित होने के कारण व्यक्ति की आयु में वृ्द्धि करता है. व्यक्ति के जीवन साथी के स्वास्थ्य में कमी हो सकती है. उसे भूमि संबन्धी विषयों में परेशानियां हो सकती है. पिता और सरकारी पक्ष से कष्ट प्राप्त हो सकते है. विधा व संतान विषयों में भी कठिनाईयां हो सकती है. इन से संबन्धित सुखों में कमी हो सकती है.
नवम भाव में शनि के फल
आमदनी के स्त्रोत ठीक रहते है. शत्रु पर प्रभाव बना रहता है. जीवन साथी का सुख प्राप्त होता है. व्यक्ति को व्यापार से लाभ प्राप्त हो सकता है. व्यक्ति का स्वास्थ्य मध्यम रहने की संभावनाएं बनती है. उसे अपने भाई- बहनों से कम सहयोग प्राप्त होता है. यह योग व्यक्ति के अपने छोटे भाई बहनों से संबन्ध मधुर न रहने की संभावनाएं देता है.
दशम भाव में शनि के फल
पिता का पूर्ण सहयोग प्राप्त नहीं होता है. सरकार की ओर से भी परेशानियां आ सकती है. व्यक्ति के ग्रहस्थ जीवन सुख में कमी हो सकती है. तथा उसके स्वयं के स्वास्थ्य में कमी की संभावनाएं बनती है. व्यवसायिक क्षेत्र से आमदनी अनुकुल प्राप्त होती है.
एकादश भाव में शनि के फल
स्वास्थ्य मध्यम रहता है. उसके शिक्षा क्षेत्र में रुकावटें आ सकती है. यह योग व्यक्ति की बुद्धिमता में वृ्द्धि करता है. व्यक्ति अपने परिश्रम व चतुराई से अपने आय में वृ्द्धि करने में सफल होता है.
द्वादश भाव में शनि के फल
आमदनी से खर्च अधिक होता है. हमेशा किसी न किसी समस्या में फंसे रहते है. जीवन साथी के सुख में कमी हो सकती है. परिवार के सदस्यों से सहयोग व सुख कम प्राप्त होने की सम्भावनाएं बनती है.

वृषभ लग्न में शनि का प्रभाव

ज्योतिष शास्त्र में शनि की स्थिति अन्य सभी ग्रहों की तुलना में सबसे अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है. क्योकि अन्य ग्रहों से मिलने वाले फल कुछ सीमित समय के लिय होते है. इसलिये अन्य ग्रहों के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन की सामान्यता: सामान्य घटनाएं ही प्रभावित होती है. पर शनि इसके विपरीत फल देते है.
शनि के विषय में यह कहा जाता है कि वे जिस भाव में स्थित होते है. तथा जिन भावों से दृष्टि संबन्ध बनाते है. उनके फल देर से ही सही पर अवश्य प्राप्त होते है. शनि से मिलने वाले फल भी राशियों के कारकतत्वों से प्रभावित होते है. इसलिये जन्म कुण्डली से शनि के फलों का विचार करते समय इस ग्रह से संबन्ध बनाने वाले अन्य सभी ग्रहों की स्थिति का भी विश्लेषण करना चाहिए.
वृ्षभ लग्न के व्यक्ति के लिये शनि के विभिन्न भावों का प्रभाव
प्रथम भाव में शनि के फल
वृ्षभ लग्न के प्रथम भाव में शनि स्थित होने पर व्यक्ति का स्वास्थ्य ठीक न रहने की संभावनाएं बनती है. व्यक्ति को भाग्य का सहयोग कार्यो में प्राप्त होता है. पिता का सहयोग मिल सकता है. उसकी मान-प्रतिष्ठा में भी वृ्द्धि होती है. सरकारी नियमों के पालन से लाभ हो सकता है. व्यक्ति के भाई - बहनों से प्राप्त होने वाले सुख में कमी हो सकती है. पर व्यक्ति के पराक्रम में वृ्द्धि होती है. व्यवसायिक क्षेत्र में भी अडचने आने की संभावनाएं बनती है.
द्वितीय भाव में शनि के फल
वृ्षभ लग्न के द्वितीय भाव में शनि अपने मित्र बुध की मिथुन राशि में होने के कारण उतम फल देते है. उसके धन व कुटुम्ब की वृ्द्धि होती है. कार्यक्षेत्र में लाभ प्राप्त होने की संभावना रहती है. व्यक्ति की आय में बढोतरी होती है. किन्तु यह योग व्यक्ति के अपनी माता से संम्बधों की मधुरता को कम कर सकता है. उसके परिवारिक सुख में भी कमी हो सकती है.
तृ्तीय भाव में शनि के फल
भाई -बहनों के साथ व्यवहार मध्यम स्तर के रहते है. पराक्रम में वृ्द्धि होती है. भाग्य का सहयोग मिलता है. संतान विषयों से कष्ट प्राप्त हो सकते है. विधा के क्षेत्र में भी सफलता प्राप्त होती है. आय और व्यय में अधिक अन्तर न होने के कारण संचय में कमी रहती है. विदेश स्थान से कार्य करने पर असफलता मिल सकती है.
चतुर्थ भाव में शनि के फल
भवन, माता, भूमि के सुख में कमी, माता के साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार, शत्रुओं पर प्रभाव बनाये रखना. मामा के द्वारा लाभ प्राप्त, व्यवसाय के क्षेत्र में सफल, सम्मान प्राप्ति के योग, धार्मिक क्रियाओं में रुचि में कमी हो सकती है. शारीरिक कष्ट प्राप्त हो सकते है.
पंचम भाव में शनि के फल
विधा, बुद्धि के क्षेत्रों में सफलता. संतान का सहयोग, बुद्धि द्वारा व्यवसायिक कार्य पूर्ण होते है. जीवन साथी के कारण कष्ट प्राप्त हो सकते है. आय में कमी हो सकती है. परिवर के सदस्यों से लाभ प्राप्त हो सकते है. ऎसे व्यक्ति को अपने बुद्धि के बल पर यश प्राप्त हो सकता है. प्रतिष्ठा व सफलता प्राप्त हो सकती है.
छठे भाव में शनि के फल
शत्रुओं पर विजय, लाभों में वृ्द्धि, कार्यक्षेत्र में सम्मान प्राप्त हो सकता है. व्यवसाय में लाभ प्राप्त हो सकते है. पिता से संम्बध मधुर न रहने की सम्भावनाएं बनती है. व्यय अधिक हो सकते है. परिवार के बाहर के व्यक्तियों से सम्बध अनुकुल नहीं रहते है. उसके भाई- बहन भी व्यक्ति से असंतुष्ट हो सकते है. पराक्रम में वृ्द्धि होती है. परन्तु व्यय के कारण व्यक्ति कि चिन्ताओं में वृ्द्धि होती है.
सप्तम भाव में शनि के फल
व्यवसाय के क्षेत्र में कठिनाई से लाभ व उन्नति प्राप्त होती है. पुरुषार्थ करने से व्यक्ति का भाग्य बळी होता है. धर्म के नियमों का पालन करता है. पारिवारिक जीवन में सुख की प्राप्ति होती है. माता-पिता, जगह- जमीन आदि के सुखों में कमी आती है.
अष्टम भाव में शनि के फल
कार्यक्षेत्र में कठिनाईयों का सामना करना पडता है. माता-पिता के साथ भी व्यवहार मधुर न रहने की संभावनाएं बनती है. धर्म गतिविधियों में रुचि कम हो सकती है. व्यक्ति को शिक्षा के क्षेत्र में सफलता प्राप्त हो सकती है. पर सफलता की राहें यहां भी आसान नहीं होती है.
नवम भाव में शनि के फल
मान- प्रतिष्ठा में वृ्द्धि, सभी के साथ अच्छा व्यवहार, धर्म में रुचि, पुरुषार्थ में वृ्द्धि, भाग्य में वृ्द्धि होती है. इस योग के व्यक्ति के स्वभाव में परिश्रम भाव की कमी होती है.
दशम भाव में शनि के फल
कार्यक्षेत्र की ओर से सम्मान प्राप्त, पिता का सम्मान, मान प्रतिष्ठा कि प्राप्ति, धर्म के कार्य में रुचि, धन खर्च अधिक होता है. चिंताओं में बढोतरी हो सकता है. जीवन साथी के साथ संबन्ध मधुर रहने की संभावनाएं बनती है. माता व परिवारिक जीवन में सुख की कमी हो सकती है. कठोर परिश्रम से भाग्य का पूर्ण सहयोग प्राप्त हो सकता है.
एकादश भाव में शनि के फल
विधा-बुद्धि के क्षेत्र में सम्मान की प्राप्ति, आय में बाधाएं, लाभ प्राप्ति में अडचनें, स्थास्थ्य अनुकुल हो सकता है. परिश्रम करने से व्यक्ति अपने सफलता कि बाधाओं में कमी कर सकता है.
द्वादश भाव में शनि के फल
पडौसियों से संबन्ध मधुर नहीं रहते है. स्वास्थ्य मध्यम स्तर का रहता है. शत्रु पक्ष प्रबल हो सकते है. व्यक्ति के मन में अशान्ति रहने की संभावना रहती है. कई कार्यो में भाग्य का सहयोग प्राप्त हो सकता है. इस योग के होने पर व्यक्ति को परिश्रम में कमी करने से बचना चाहिए.

मेष लग्न में शनि का प्रभाव

ज्योतिष में सभी ग्रह, प्रत्येक के लिये समान फल देने वाले नहीं होते है. जैसा कि सर्वविदित है कि सभी ग्रह जन्म कुण्डली में अपनी स्थिति, युति व दृ्ष्टि के अनुसार फल देते है. किसी ग्रह से प्राप्त होने वाले फलों का विश्लेषण करते समय इन सभी बातों के साथ साथ ग्रह की मित्र, शत्रु, सम क्षेत्री, उच्च स्थिति, नीच स्थिति तथा ग्रह अवस्था का भी विचार करना चाहिए.
कुल नौ ग्रहों में से शनि भी एक ग्रह है. शनि एक मन्द गति ग्रह है. इसलिये शनि से मिलने वाले फल लम्बी अवधि तक प्राप्त होते है. शनि एक राशि में लगभग ढाई वर्ष रहते है. पर इसका अर्थ यह नहीं है कि पूरे ढाई वर्ष तक व्यक्ति को एक से ही फल प्राप्त होते है. या फिर शनि प्रभावित व्यक्ति के जीवन में एक सी ही घटनाएं घटित होती है.
विभिन्न भावों में शनि के फल
प्रथम भाव में शनि के फल
शनि अगर किसी व्यक्ति की जन्म कुण्डली के प्रथम भाव अर्थात शरीर भाव में स्थित होंने पर वे अपने शत्रु मंगल (कालपुरुष की कुण्डळी के अनुसार) की राशि में होते है. इस स्थिति में शनि के प्रभाव से व्यक्ति की मान- प्रतिष्ठा तथा आमदनी के क्षेत्र में कमी आती है. सरकारी नियमों के कारण भी उसे कुछ कष्टों का सामना करना पड सकता है. व्यक्ति के अपने छोटे - भाई बहनों से मधुर संबन्ध न रहने के योग बनते है. पराक्रम से किये गये कार्यो में भी असफलता न मिलने कि संभावनाएं बनती है. परन्तु दांम्पत्य जीवन में सहयोग तथा पिता की ओर से स्नेह प्राप्त होता है. आजिविका के क्षेत्र में सफलता प्राप्ति के लिये शनि का दशम भाव से दृष्टि सम्बन्ध सामान्य बाधाएं, देने के साथ साथ उन्नति भी देता है.
द्वितीय भाव में शनि के फल
अगर किसी व्यक्ति की जन्म कुण्डली में शनि द्वितीय भाव में स्थित हों तो इस योग के फलस्वरुप व्यक्ति को आर्थिक क्षेत्र में सफलता मिलने की संम्भावनाएं बनती है. कालपुरुष कुण्डली में शनि दुसरे भाव में अपने मित्र शुक्र की राशि में होता है. मित्र राशि में शनि व्यक्ति को पुरातत्व विषयों से लाभ के संयोग दे सकता है.यहां से शनि अपनी तीसरी दृष्टि से सुख भाव, मातृभाव को देख रहे होते है. जिसके कारण व्यक्ति को माता तथा भूमि संबन्धी परेशानियां दे सकता है. यह योग व्यक्ति की आय में वृ्द्धि करता है.
तृतीय भाव में शनि के फल
कुण्डली के तीसरे भाव में शनि पराक्रम भाव में होकर व्यक्ति के पराक्रम में बढोतरी करते है. जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग हों, उस व्यक्ति को अपने भाई बहनों से सुख -सहयोग प्रात्प होता है. पिता से लाभ प्राप्त होते है. विधा व संतान के विषयों में व्ययों में बढोतरी होती है.
चतुर्थ भाव में शनि के फल
माता द्वारा व भूमि संबन्धी कार्यो में असंतोषजनक सफलता प्राप्त हो सकती है. व्यक्ति को पिता से सहयोग, व्यवसाय में वृ्द्धि व प्रतिष्ठा प्राप्त होती है. पर इस योग के फलस्वरुप व्यक्ति के स्वास्थ्य में कमी रहने की संभावनाएं बनती है.
पंचम भाव में शनि के फल
जन्म कुण्डली के इस भाव में शनि व्यक्ति को विधा-बुद्धि के क्षेत्र में सफलता देता है. पर व्यक्ति के अपनी संतान के साथ मतभेद रहने की संभावनाएं बनती है. उसे जीवन साथी के सहयोग से व्यवसाय में लाभ प्राप्त हो सकता है. योग के प्रभाव से व्यक्ति की आय अच्छी और परिवार के साथ संबन्ध भी अच्छे होते है.
छठे भाव में शनि के फल
छठे भाव में शनि व्यक्ति को पिता के साथ मतभेद देते है. सरकारी कामों में अडचनें आने की संभावनाएं बनती है. इसके कारण व्यक्ति की अच्छी आमदनी, शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है. स्वास्थ्य के लिये यह योग अनुकुल नहीं होता है. व्यक्ति के व्यय अधिक व पडौसियों से तनाव पूर्ण संबन्ध हो सकते है. यह योग व्यक्ति की हिम्मत व प्रभाव को बनाये रखने में सहयोग करता है.
सप्तम भाव में शनि के फल
व्यवसाय में लाभ, पिता से भी लाभ, दांम्पत्य जीवन सुखमय पर सामान्य परेशानियां ग्रहस्थ जीवन में बनी रहती है. व्यक्ति का स्वास्थ्य मध्यम, घरेलू व भूमि संबधी सुखों में कमी होती है. इस भाव से शनि व्यक्ति के भाग्य में कमी कर सकता है.
अष्टम भाव में शनि के फल
आयु उतम परन्तु आमदनी कम, पिता से लाभ, अधिक परिश्रम के बाद धन लाभ, परिवार पर व्यय, शिक्षा व संतान विषयों में बाधाएं आने की संभावनाएं रहती है. यह योग व्यक्ति के संचय में देरी कर सकता है.
नवम भाव में शनि के फल
भाग्य उन्नती में आरम्भ में रुकावटें तथा बाद में वृ्द्धि हो सकती है. व्यक्ति अपने पुरुषार्थ से अपने धन, आर्थिक स्थिति और संपति में वृ्द्धि होती है. शत्रुओं पर विजय, हिम्मत व प्रभाव में वृ्द्धि होती है.
दशम भाव में शनि के फल
पिता से विशेष लाभ, व्ययों में वृ्द्धि, स्वास्थ्य में कमी हो सकती है. पडौसियों से मधुर संबन्ध न रहने की सम्भावनाएं बनती है. भवन, माता, जमीन से कष्ट प्राप्त हो सकता है. व्यापार को सहयोग प्राप्त होता है. और भौतिक सुख -सुविधाओं के साधनों में भी वृ्द्धि होती है.
एकादश भाव में शनि के फल
आमदनी में वृ्द्धि, सरकारी क्षेत्रों से लाभ, रोग होने की संभावनाएं, विधा क्षेत्र मेम रुकावटें, संतान के स्वास्थ्य में कमी हो सकती है. पर दैनिक जीवन में परेशानियां बनी रहती है.
द्वादश भाव में शनि के फल
धन का व्यय अधिक, पिता के स्वास्थ्य में कमी हो सकती है. सरकारी नियमों से परेशानियां हो सकती है. परिवार के सदस्यों को कष्ट प्राप्त हो सकते है. भाग्य उन्नति में बाधाएं आती है. शत्रु पक्ष पर अपना प्रभाव बना रहता है.

श्री रामनवमी व्रत

रामनवमी के दिन जो व्यक्ति पूरे दिन उपवास रखकर भगवान श्रीराम की पूजा करता है, तथा अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार दान-पुण्य करता है, वह अनेक जन्मों के पापों को भस्म करने में समर्थ होता है।

विधि

रामनवमी का व्रत महिलाओं के द्वारा किया जाता है। इस दिन व्रत करने वाली महिला को प्रात: सुबह उठना चाहिए। घर की साफ-सफाई कर घर में गंगाजल छिड़क कर शुद्ध कर लेना चाहिए। इसके पश्चात स्नान करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद एक लकड़ी के चौकोर टुकड़े पर सतिया बनाकर एक जल से भरा गिलास रखना चाहिए और अपनी अंगुली से चाँदी का छल्ला निकाल कर रखना चाहिए। इसे प्रतीक रुप से गणेशजी माना जाता है। व्रत कथा सुनते समय हाथ में गेहूँ-बाजरा आदि के दाने लेकर कहानी सुनने का भी महत्व कहा गया है। रामनवमी के व्रत के दिन मंदिर में अथवा मकान पर ध्वजा, पताका, तोरण और बंदनवार आदि से सजाने का विशेष विधि-विधान है। व्रत के दिन कलश स्थापना और राम जी के परिवार की पूजा करनी चाहिए, और भगवान श्री राम का दिनभर भजन, स्मरण, स्तोत्रपाठ, दान, पुण्य, हवन, पितृश्राद्व और उत्सव किया जाना चाहिए।

रामनवमी व्रत कथा


राम, सीता और लक्ष्मण वन में जा रहे थे। सीता जी और लक्ष्मण को थका हुआ देखकर राम जी ने थोड़ा रुककर आराम करने का विचार किया और एक बुढ़िया के घर गए। बुढिया सूत कात रही थी। बुढ़िया ने उनकी आवभगत की और बैठाया, स्नान-ध्यान करवाकर भोजन करवाया। राम जी ने कहा- बुढिया माई, "पहले मेरा हंस मोती चुगाओ, तो में भी करूं।" बुढ़िया बेचारी के पास मोती कहाँ से आवें, सूत कात कर ग़रीब गुज़ारा करती थी। अतिथि को ना कहना भी वह ठीक नहीं समझती थी। दुविधा में पड़ गई। अत: दिल को मज़बूत कर राजा के पास पहुँच गई। और अंजली मोती देने के लिये विनती करने लगी। राजा अचम्भे में पड़ा कि इसके पास खाने को दाने नहीं हैं और मोती उधार मांग रही है। इस स्थिति में बुढ़िया से मोती वापस प्राप्त होने का तो सवाल ही नहीं उठता। आखिर राजा ने अपने नौकरों से कहकर बुढ़िया को मोती दिला दिये।बुढ़िया मोती लेकर घर आई, हंस को मोती चुगाए और मेहमानों की आवभगत की। रात को आराम कर सवेरे राम जी, सीता जी और लक्ष्मण जी जाने लगे। राम जी ने जाते हुए उसके पानी रखने की जगह पर मोतियों का एक पेड़ लगा दिया। दिन बीतते गये और पेड़ बड़ा हुआ, पेड़ बढ़ने लगा, पर बुढ़िया को कु़छ पता नहीं चला। मोती के पेड़ से पास-पड़ौस के लोग चुग-चुगकर मोती ले जाने लगे।
एक दिन जब बुढ़िया उसके नीचे बैठी सूत कात रही थी। तो उसकी गोद में एक मोती आकर गिरा। बुढ़िया को तब ज्ञात हुआ। उसने जल्दी से मोती बांधे और अपने कपड़े में बांधकर वह क़िले की ओर ले चली़। उसने मोती की पोटली राजा के सामने रख दी। इतने सारे मोती देख राजा अचम्भे में पड़ गया। उसके पूछने पर बुढ़िया ने राजा को सारी बात बता दी। राजा के मन में लालच आ गया। वह बुढ़िया से मोती का पेड़ मांगने लगा। बुढ़िया ने कहा कि आस-पास के सभी लोग ले जाते हैं। आप भी चाहे तो ले लें। मुझे क्या करना है। राजा ने तुरन्त पेड़ मंगवाया और अपने दरबार में लगवा दिया। पर रामजी की मर्जी, मोतियों की जगह कांटे हो गये और आते-आते लोगों के कपड़े उन कांटों से ख़राब होने लगे। एक दिन रानी की ऐड़ी में एक कांटा चुभ गया और पीड़ा करने लगा। राजा ने पेड़ उठवाकर बुढ़िया के घर वापस भिजवा दिया। पेड़ पर पहले की तरह से मोती लगने लगे। बुढ़िया आराम से रहती और ख़ूब मोती बांटती।

व्रत का फल

श्री रामनवमी का व्रत करने से व्यक्ति के ज्ञान में वृ्द्धि होती है। उसकी धैर्य शक्ति का विस्तार होता है। इसके अतिरिक्त उपवासक को विचार शक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, भक्ति और पवित्रता की भी वृ्द्धि होती है। इस व्रत के विषय में कहा जाता है, कि जब इस व्रत को निष्काम भाव से किया जाता है। और आजीवन किया जाता है, तो इस व्रत के फल सर्वाधिक प्राप्त होते हैं। रामनवमी और जन्माष्टमी तो उल्लासपूर्वक मनाते हैं पर उनके कर्म व संदेश को नहीं अपनाते। कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया गीता ज्ञान आज सिर्फ एक ग्रंथ बनकर रह गया है। तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में भगवान राम के जीवन का वर्णन करते हुए बताया है कि श्रीराम प्रातः अपने माता-पिता के चरण स्पर्श करते थे जबकि आज चरण स्पर्श तो दूर बच्चे माता-पिता की बात तक नहीं मानते।

रामनवमी 2017






रामनवमी

रामनवमी एक ऐसा पर्व है जिसपर चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को प्रतिवर्ष नये विक्रम संवत्सर का प्रारंभ होता है और उसके आठ दिन बाद ही चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी को एक पर्व राम जन्मोत्सव का जिसे रामनवमी के नाम से जाना जाता है, समस्त देश में मनाया जाता है। इस देश की राम और कृष्ण दो ऐसी महिमाशाली विभूतियाँ रही हैं जिनका अमिट प्रभाव समूचे भारत के जनमानस पर सदियों से अनवरत चला आ रहा है।
रामनवमी, भगवान राम की स्‍मृति को समर्पित है। राम सदाचार के प्रतीक हैं, और इन्हें "मर्यादा पुरुषोतम" कहा जाता है। रामनवमी को राम के जन्‍मदिन की स्‍मृति में मनाया जाता है। राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है, जो पृथ्वी पर अजेय रावण (मनुष्‍य रूप में असुर राजा) से युद्ध लड़ने के लिए आए। राम राज्‍य (राम का शासन) शांति व समृद्धि की अवधि का पर्यायवाची बन गया है। रामनवमी के दिन, श्रद्धालु बड़ी संख्‍या में उनके जन्‍मोत्‍सव को मनाने के लिए राम जी की मूर्तियों को पालने में झुलाते हैं। इस महान राजा की काव्‍य तुलसी रामायण में राम की कहानी का वर्णन है।

रामनवमी पूजन

रामनवमी का पूजन शुद्ध और सात्विक रुप से भक्तों के लिए विशष महत्व रखता है इस दिन प्रात:कल स्नान इत्यादि से निवृत हो भगवान राम का स्मरण करते हुए भक्त लोग व्रत एवं उपवास का पालन करते हैं. इस दिन राम जी का भजन एवं पूजन किया जाता है. भक्त लोग मंदिरों इत्यादि में भगवान राम जी की कथा का श्रवण एवं किर्तन किया जाता है. इसके साथ ही साथ भंडारे और प्रसाद को भक्तों के समक्ष वितरित किया जाता है. भगवान राम का संपूर्ण जीवन ही लोक कल्याण को समर्पित रहा. उनकी कथा को सुन भक्तगण भाव विभोर हो जाते हैं व प्रभू के भजनों को भजते हुए रामनवमी का पर्व मनाते हैं.

राम जन्म की कथा

हिन्दु धर्म शास्त्रो के अनुसार त्रेतायुग में रावण के अत्याचारो को समाप्त करने तथा धर्म की पुन: स्थापना के लिये भगवान विष्णु ने मृत्यु लोक में श्री राम के रुप में अवतार लिया था. श्रीराम चन्द्र जी का जन्म चैत्र शुक्ल की नवमी के दिन राजा दशरथ के घर में हुआ था. उनके जन्म पश्चात संपूर्ण सृष्टि उन्हीं के रंग में रंगी दिखाई पड़ती थी.चारों ओर आनंद का वातावरण छा गया था प्रकृति भी मानो प्रभु श्री राम का स्वागत करने मे ललायित हो रही थी. भगवान श्री राम का जन्म धरती पर राक्षसो के संहार के लिये हुआ था. त्रेता युग मे रावण तथा राक्षसो द्वारा मचाये आतंक को खत्म करने के लिये श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम के रुप में अवतरित हुये. इन्हे रघुकुल नंदन भी कहा जाता है.

रामनवमी का महत्व

रामनवमी के त्यौहार का महत्व हिंदु धर्म सभयता में महत्वपूर्ण रहा है. इस पर्व के साथ ही मा दुर्गा के नवरात्रों का समापन भी जुडा़ है. इस तथ्य से हमें ज्ञात होता है कि भगवान श्री राम जी ने भी देवी दुर्गा की पूज अकी थी और उनके द्वारा कि गई शक्ति पूजा ने उन्हें धर्म युद्ध ने उन्हें विजय प्रदान की. इस प्रकार इन दो महत्वपूर्ण त्यौहारों का एक साथ होना पर्व की महत्ता को और भी अधिक बढा़ देता है. कहा जाता है कि इसी दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ भी किया था.रामनवमी का व्रत पापों का क्षय करने वाला और शुभ फल प्रदान करने वाला होता है. राम नवमी के उपलक्ष्य पर देश भर में पूजा पाठ और भजन किर्तनों का आयोजन होता है. देश के कोने कोने में रामनवमी पर्व की गूंज सुनाई पड़ती है. इस दिन लोग उपवास करके भजन कीर्तन से भगवान राम को याद करते है. राम जन्म भूमि अयोध्या में यह पर्व बडे हर्षो उल्लास के साथ मनाया जाता है. वहां सरयु नदी में स्नान करके सभी भक्त भगवान श्री राम जी का आशिर्वाद प्राप्त करते हैं.

Astrology Sitare Hamare on 4 April 2017 !! Navratri Day 8

Sunday 2 April 2017

Sitare Hamare Saptahik Rashifal 3 April To 9 April 2017

राशि एवं लग्न अनुसार जाने शीघ्र विवाह के उपाय


ज्योतिष शास्त्र जहां विवाह में विलंब कारक ग्रह स्थितियों का विश्लेषण करता है, वहीं शीघ्र विवाह के लिए उपायों का निर्देश भी देता है। सर्वप्रथम जन्मकुंडली का सूक्ष्म अध्ययन कर यह पता लगाना चाहिए कि व्यक्ति के विवाह कराने में कौन सा ग्रह मुख्य रूप से उत्तरादायी है। उस ग्रह पर किन शुभ एवं अशुभ ग्रहों का प्रभाव है। अशुभ प्रभावों को समाप्त करने के लिए अशुभ ग्रहों से संबंधित दान लड़के या लड़की के हाथ से कराना चाहिए। विवाह में विलंब में शनि की प्रमुख भूमिका होती है। अतः शनि का उपाय करने से भी शीघ्र विवाह की स्थितियां बनती हैं। जिनकी सहायता से शीघ्र विवाह की स्थितियां बनती है। - मेष राशि के लोगों को विवाह की वार्ता के समय लाल या गुलाबी रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए। - वृष राशि के लोगों को विवाह वार्ता के समय हल्के रंग के वस्त्र तथा चमकीले आभूषण पहनने चाहिए। यदि कोई नया वस्त्र धारण किया जाए तो भी अच्छा रहेगा। - मिथुन राशि के लोगों को विवाह वार्ता के समय हरे रंग के वस्त्र तथा पारंपरिक पोशाक ही पहननी चाहिए। कोई नया वस्त्र धारण नहीं करना चाहिए। - कर्क राशि के लोगों को विवाह वार्ता के समय सफेद रंग का कोई वस्त्र अवश्य पहनना चाहिए। वस्त्र नया एवं चमकीला नहीं होना चाहिए। - सिंह राशि के लोगों को विवाह वार्ता के समय हल्के गुलाबी या हल्के हरे रंग के वस्त्रों का उपयोग करना चाहिए। - कन्या राशि के लोगों को विवाह वार्ता के समय हरे, सफेद एवं सौम्य रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए। - तुला राशि के लोगों को विवाह वार्ता के समय नये वस्त्र धारण करने चाहिए। उन्हें सफेद, गुलाबी एवं पीले रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए। - वृश्चिक राशि के लोगों के लिए विवाह वार्ता के समय लाल रंग के वस्त्र धारण करना शुभ होता है। - धनु राशि के लोगों के लिए विवाह वार्ता के समय पीले रंग के वस्त्र धारण करना शुभ होता है। - मकर राशि के लोगों के लिए विवाह वार्ता के समय आसमानी एवं कुछ नीले रंग के वस्त्र पहनना शुभ होता है। - कुंभ राशि के लोगों के लिए विवाह वार्ता के समय बैंगनी या गहरे नीले रंग की पोशाक पहनना शुभ होता है। - मीन राशि के लोगों के लिए विवाह वार्ता के समय पीले रंग की पोशाक पहनना शुभ है। विवाह वार्ता के समय जब वर पक्ष के लोग कन्या को और कन्या पक्ष के लोग वर को देखने के लिए जाएं, तब वर और कन्या दोनों को ही अपने वस्त्राभूषणों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। उन्हें अपनी राशि से संबंधित शुभ रंग के वस्त्र पहनने चाहिए। विवाह वार्ता के स्थान का चयन करने के लिए जन्मकुंडली के सातवें भाव में स्थित राशि की प्रकृति का अध्ययन करना चाहिए। मेषादि विभिन्न लग्नों के लोगों के लिए विवाह वार्ता हेतु कौन सा स्थान अधिक उपयुक्त होगा इसका विवरण नीचे दिया जा रहा है। मेष लग्न: विवाह के घर में तुला राशि होने के कारण इस लग्न के लोगों को विवाह वार्ता के लिए किसी पर्यटन या मनोरंजन स्थल का चयन करना चाहिए। किसी रिश्तेदार का साफ सुथरा घर भी ठीक रहेगा। वृष लग्न: विवाह के घर में वृश्चिक राशि होने के कारण इन्हें विवाह वार्ता के लिए किसी होटल, गेस्ट हाउस या किसी अन्य महत्वपूर्ण भवन का चयन करना चाहिए। मिथुन लग्न: विवाह के घर में धनु राशि होने के कारण इस लग्न के लोगों को विवाह वार्ता के लिए किसी मंदिर या धर्मस्थल का चयन करना चाहिए। कर्क लग्न: विवाह के घर में मकर राशि होने के कारण इन्हें विवाह वार्ता के लिए किसी प्राचीन भवन का चयन करना चाहिए। सिंह लग्न: विवाह के घर में कुंभ राशि होने के कारण इन्हें विवाह वार्ता के लिए किसी प्रसिद्ध और प्राचीन स्थान का चयन करना चाहिए। कन्या लग्न: विवाह के घर में मीन राशि होने के कारण इन्हें विवाह वार्ता के लिए किसी मंदिर या धर्मस्थान का चयन करना चाहिए। तुला लग्न: विवाह के घर में मेष राशि के होने के कारण इनके लिए विवाह वार्ता के लिए किसी कुंटुंबी जन का घर उपयुक्त रहेगा। इसके अतिरिक्त किसी होटल, गेस्ट हाउस या धर्मशाला का चयन कर सकते हैं। वृश्चिक लग्न: विवाह के घर में वृष राशि होने के कारण इस लग्न के लोगों को विवाह वार्ता के लिए किसी मनोरंजन स्थल, पार्क या पर्यटन स्थल का चयन करना चाहिए। धनु लग्न: विवाह के घर में मिथुन राशि होने के कारण इन्हें विवाह वार्ता के लिए किसी प्राकृतिक सौंदर्य युक्त स्थान जैसे बाग, बगीचे या हरे भरे स्थान का चयन करना चाहिए। मकर लग्न: विवाह के घर में कर्क राशि होने के कारण इन्हें विवाह वार्ता के लिए किसी नदी या तालाब के समीप किसी स्थान का चयन करना चाहिए। कुंभ लग्न: विवाह के घर में सिंह राशि होने के कारण इस राशि के लोगों को विवाह वार्ता के लिए किसी प्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित स्थान का चयन करना चाहिए। मीन लग्न: विवाह के घर में कन्या राशि होने के काण इनके लिए विवाह वार्ता के लिए किसी प्राकृतिक सौंदर्य युक्त स्थान या किसी मित्र अथवा रिश्तेदार का घर उपयुक्त रहेगा। जिस कन्या के विवाह में विलंब हो चुका हो उसके माता-पिता जब भी विवाह की वार्ता के लिए घर से जाएं, उस समय उसे अपने बाल खुले रखने चाहिए तथा माथे पर लाल चंदन की बिंदी लगानी चाहिए। विवाह भाव का स्वामी ग्रह जिस समय गोचर में अस्त या वक्री हो, उस समय विवाह की बातचीत नहीं करनी चाहिए। ऐसे समय में विवाह तय होने की संभावना निर्बल रहती है। गोचर में जब विवाह भाव का स्वामी बली हो, उस समय विवाह की बातचीत करने से सकारात्मक परिणाम सामने आते हैं। यदि शनि ग्रह के विवाह भाव में होने के कारण या उस पर शनि की दृष्टि के कारण विलंब हो रहा हो तो कन्या को शनिवार को कड़वे तेल में अपनी परछाईं देखकर तेल दान करना चाहिए। यह प्रयोग सात शनिवार को निंरतर करना चाहिए।

ज्योतिष में चक्र

विविध चक्रों के आधार पर भविष्य फलदर्शन की परिपाटी प्राचीन समय से आज तक चली आ रही है। जन्म समय प्रश्न, समय गोचर वर्ष फल, विविध प्रकार के मुहूर्त इत्यादि के समय ज्योतिष शास्त्र सम्मत अथवा ज्योतिष शास्त्र वर्णित विविध प्रकार के चक्रों का उपयोग, फलादेश के लिए करना, प्रचलन में है। सुदर्शन चक्र: सुदर्शन चक्र पद्धति में जन्मकालिक लग्न, चंद्र लग्न एवं सूर्य लग्न का एक साथ उत्पन्न अर्थात संभूत, संतुलित प्रभाव का आकलन किया जाता है। जन्म कालिक लग्न, चंद्र व सूर्य इन तीनों के बलाबल पर ध्यान दिए बिना ग्रहों के शुभाशुभत्व का विचार पूर्ण रूप से नहीं किया जा सकता। सूर्य आत्म कारक, चंद्रमा मन का अधिपति और जन्म लग्न शरीर रूप है। ये तीनों जातक के शुभाशुभत्व के आधारभूत हैं। इनके बलहीन होने से सुयोगों वाली कुंडली भी अशुभ ही रहेगी। इस विधि से फलादेश का जो निष्कर्ष निकलेगा वह तीनों लग्नों का मिश्रित निश्चयात्मक फल होगा। इस पद्धति में ग्रहों की वास्तविक समसामयिक स्थिति ही दर्शाई जाती है। जिस भाव का फलादेश करना हो उसे लग्न मानकर सम्मिलित रूप में विचार करना चाहिए। ऐसे भाव में जो ग्रह स्थित होते हैं उनके आधार पर फलादेश किया जाता है। ग्रह विहीन भाव का शुभाशुभात्व दृष्टिकारक ग्रहों के आधार पर करते हैं। दृष्टि कारक एकाकी ग्रह स्व-बलानुसार फलप्रदाता माना गया है जबकि भाव पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि रहने पर सर्वप्रबल ग्रह तदनुसार फलप्रदाता रहेगा। सुदर्शन पद्धति में विचार करते समय जितने ज्यादा शुभ ग्रहों की अभीष्ट भाव पर दृष्टि होगी, उसका फल उतना ही ज्यादा शुभ और जितने ज्यादा पापग्रहों की दृष्टि होगी उतना ही ज्यादा अनिष्टकर होगा। किसी भी ग्रह की दृष्टि न होने पर भावेश के अनुसार फलादेश करना चाहिए। सुदर्शन चक्र से फलकथन के सामान्य सिद्धांत: - शुभ ग्रह जिस भाव में विराजमान होते हैं उस स्थान की सदैव वृद्धि करते हैं। - इस पद्धति में चक्र के जिस भाव से केंद्र, त्रिकोण, षष्ठम, अष्टम या द्वादश भाव में शुभ ग्रह विराजमान हों उस भाव की वृद्धि करते हैं। - किसी भाव से केंद्र, त्रिकोण, (पंचम-नवम) अथवा आठवें स्थान में पापग्रह स्थित होने पर उस भाव को बिगाड़ देते हैं, उस भाव की शुभता को नष्ट कर देते हैं। इस संबंध में यह हाल राहु का भी है। - इसी प्रकार जिस भाव में राहु विराजमान होगा उस भाव की वृद्धि अवरुद्ध कर उसे नष्ट कर देगा। - अन्य पापग्रह भी जिस भाव में विराजमान होते हैं वे भी उस भाव या स्थान की हानि करते हैं। - अपनी स्वोच्च-राशि, स्वराशि अथवा मूल-त्रिकोण राशि में बैठे हुए अशुभ ग्रह अशुभ फल नहीं देते। - स्व-राशि, स्वोच्च-राशि या अपनी मूल-त्रिकोण राशि में बैठे हुए किसी भी शुभाशुभ ग्रह का साथी बनकर बैठा राहु भाव-नाशी नहीं होता। इस पद्धति में सूर्य-कुंडली के लग्न भाव स्थित सूर्य को पापी नहीं कहते। फलादेश करते समय सप्त वर्ग/अष्टक वर्ग का ध्यान रखते हुए भी विचार करना चाहिए। सप्तवर्गानुसार शुभ एवं अशुभ वर्गों का निश्चय कर दृष्टि, योग, स्वामित्व आदि देखकर किसी भी अभीष्ट भाव का फल कथन करना चाहिए। शुभ वर्गाधिक्य होने से अशुभ ग्रह भी शुभ हो जाते हैं और अशुभ वर्गाधिक्य होने से शुभ ग्रह भी अनिष्ट फलकारी हो जाते हैं।

Astrology Sitare Hamare on 2 April 2017 !! Navratri Day 6

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