कामदा एकदशी व्रत चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी के नाम से जाना जाता है. वर्ष 2017 में 7 अप्रैल को यह व्रत किया जायेगा. यह एकादशी कामनाओं की पूर्ति को दर्शाती है. इस व्रत को करने से पापों का नाश होता है तथा साधक की इच्छा एवं कामना पूर्ण होती है. इस एकादशी के फलों के विषय में कहा जाता है, कि यह एकादशी व्यक्ति के पापों को समाप्त कर देती है. कामदा एकादशी के प्रभाव से पापों का शमन होता है और संतान की प्राप्ति होती है. इस व्रत को करने से परलोक में स्वर्ग की प्राप्ति होती है.
कामदा एकादशी पूजन
चैत्र शुक्ल पक्ष कि एकादशी तिथि में इस व्रत को करने से पहले कि रात्रि अर्थात दशमी तिथि से ही सात्विकता एवं शुद्धता का आचरण अपनाना चाहिए. भूमि पर ही शयन करना चाहिए. दशमी तिथि के दिन से ही व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए. एकादशी व्रत करने के लिये व्यक्ति को प्रात: उठकर, अपने नित्य कर्म करने के उपरांत भगवान श्री विष्णु जी की पूजा करनी चाहिए इसके साथ ही सत्यनारायण कथा का पाठ करना चाहिए.
चैत्र शुक्ल पक्ष कि एकादशी तिथि में इस व्रत को करने से पहले कि रात्रि अर्थात दशमी तिथि से ही सात्विकता एवं शुद्धता का आचरण अपनाना चाहिए. भूमि पर ही शयन करना चाहिए. दशमी तिथि के दिन से ही व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए. एकादशी व्रत करने के लिये व्यक्ति को प्रात: उठकर, अपने नित्य कर्म करने के उपरांत भगवान श्री विष्णु जी की पूजा करनी चाहिए इसके साथ ही सत्यनारायण कथा का पाठ करना चाहिए.
कामदा एकादशी व्रत विधि
हिन्दू धर्म ग्रन्थों के अनुसार कामदा एकादशी के दिन स्नानादि से शुद्ध होकर व्रत संकल्प लेना चाहिए। इसके पश्चात भगवान विष्णु का फल, फूल, दूध, पंचामृत, तिल आदि से पूजन करने की सलाह दी गई है। रात में सोना नहीं चाहिए बल्कि भजन- कीर्तन करते हुए रात बितानी चाहिए। अगले दिन यानि पारण के दिन पुनः पूजन कर ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए। दक्षिणा देकर ब्राह्मण को विदा करने के बाद भोजन ग्रहण कर उपवास खोलना चाहिए।
हिन्दू धर्म ग्रन्थों के अनुसार कामदा एकादशी के दिन स्नानादि से शुद्ध होकर व्रत संकल्प लेना चाहिए। इसके पश्चात भगवान विष्णु का फल, फूल, दूध, पंचामृत, तिल आदि से पूजन करने की सलाह दी गई है। रात में सोना नहीं चाहिए बल्कि भजन- कीर्तन करते हुए रात बितानी चाहिए। अगले दिन यानि पारण के दिन पुनः पूजन कर ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए। दक्षिणा देकर ब्राह्मण को विदा करने के बाद भोजन ग्रहण कर उपवास खोलना चाहिए।
कामदा एकादशी पौराणिक कथा
कामदा एकादशी के संदर्भ में पौराणिक मतानुसार एक कथा है जिसमें पुण्डरीक नामक राजा था, उसकी भोगिनीपुर नाम कि नगरी थी. वहां पर अनेक अप्सरा, गंधर्व आदि वास करते थें. उसी जगह ललिता और ललित नाम के स्त्री-पुरुष अत्यन्त वैभवशाली घर में निवास करते थे. उन दोनों का एक-दूसरे से बहुत अधिक प्रेम था. एक समय राजा पुंडरिक गंधर्व सहित सभा में शोभायमान थे. उस जगह ललित गंधर्व भी उनके साथ गाना गा रहा था. उसकी प्रियतमा ललिता उस जगह पर नहीं थी. इससे ललित उसको याद करने लगा.ध्यान हटने से उसके गाने की लय टूट गई. यह देख कर राजा को क्रोध आ गया. ओर राजा पुंडरीक ने उसे श्राप दे दिया. मेरे सामने गाते हुए भी तू अपनी स्त्री का स्मरण कर रहा है. जा तू अभी से राक्षस हो जा, अपने कर्म के फल अब तू भोगेगा. राजा पुण्डरीक के श्राप से वह ललित गंधर्व उसी समय राक्षस हो गया, उसका मुख भयानक हो गया और अपने कर्म का फल वह भोगने लगा.अपने प्रियतम का जब ललिता ने यह हाल देख तो वह बहुत दु;खी हुई. अपने पति के उद्धार करने के लिये वह विन्धाजल पर्वत पर एक ऋषि के आश्रम जाती है और ऋषि से विनती करने लगी. उसके करूणा भरे विलाप से व्यथित हो ऋषि उसे कहते हैं कि हे कन्या शीघ्र ही चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी आने वाली है. उस एकादशी के व्रत का पालन करने से, तुम्हारे पति को इस श्राप से मुक्ति मिलेगी. मुनि की यह बात सुनकर, ललिता ने आनन्द पूर्वक उसका पालन किया. और द्वादशी के दिन ब्राह्मणों के सामने अपने व्रत का फल अपने पति को दे दिया, और भगवान से प्रार्थना करने लगी.
हे प्रभो, मैनें जो यह व्रत किया है, उसका फल मेरे पति को मिले, जिससे वह इस श्राप से मुक्त हों. एकादशी का फल प्राप्त होते ही, उसका पति राक्षस योनि से छुट गया. और अपने पुराने रुप में वापस आ गया. इस प्रकार इस वर को करने से व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट हो जाते है तथा कामनाओं की सिद्धि होती है.
कामदा एकादशी के संदर्भ में पौराणिक मतानुसार एक कथा है जिसमें पुण्डरीक नामक राजा था, उसकी भोगिनीपुर नाम कि नगरी थी. वहां पर अनेक अप्सरा, गंधर्व आदि वास करते थें. उसी जगह ललिता और ललित नाम के स्त्री-पुरुष अत्यन्त वैभवशाली घर में निवास करते थे. उन दोनों का एक-दूसरे से बहुत अधिक प्रेम था. एक समय राजा पुंडरिक गंधर्व सहित सभा में शोभायमान थे. उस जगह ललित गंधर्व भी उनके साथ गाना गा रहा था. उसकी प्रियतमा ललिता उस जगह पर नहीं थी. इससे ललित उसको याद करने लगा.ध्यान हटने से उसके गाने की लय टूट गई. यह देख कर राजा को क्रोध आ गया. ओर राजा पुंडरीक ने उसे श्राप दे दिया. मेरे सामने गाते हुए भी तू अपनी स्त्री का स्मरण कर रहा है. जा तू अभी से राक्षस हो जा, अपने कर्म के फल अब तू भोगेगा. राजा पुण्डरीक के श्राप से वह ललित गंधर्व उसी समय राक्षस हो गया, उसका मुख भयानक हो गया और अपने कर्म का फल वह भोगने लगा.अपने प्रियतम का जब ललिता ने यह हाल देख तो वह बहुत दु;खी हुई. अपने पति के उद्धार करने के लिये वह विन्धाजल पर्वत पर एक ऋषि के आश्रम जाती है और ऋषि से विनती करने लगी. उसके करूणा भरे विलाप से व्यथित हो ऋषि उसे कहते हैं कि हे कन्या शीघ्र ही चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी आने वाली है. उस एकादशी के व्रत का पालन करने से, तुम्हारे पति को इस श्राप से मुक्ति मिलेगी. मुनि की यह बात सुनकर, ललिता ने आनन्द पूर्वक उसका पालन किया. और द्वादशी के दिन ब्राह्मणों के सामने अपने व्रत का फल अपने पति को दे दिया, और भगवान से प्रार्थना करने लगी.
हे प्रभो, मैनें जो यह व्रत किया है, उसका फल मेरे पति को मिले, जिससे वह इस श्राप से मुक्त हों. एकादशी का फल प्राप्त होते ही, उसका पति राक्षस योनि से छुट गया. और अपने पुराने रुप में वापस आ गया. इस प्रकार इस वर को करने से व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट हो जाते है तथा कामनाओं की सिद्धि होती है.
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