ज्योतिष शास्त्र में शनि की स्थिति अन्य सभी ग्रहों की तुलना में सबसे अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है. क्योकि अन्य ग्रहों से मिलने वाले फल कुछ सीमित समय के लिय होते है. इसलिये अन्य ग्रहों के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन की सामान्यता: सामान्य घटनाएं ही प्रभावित होती है. पर शनि इसके विपरीत फल देते है.
शनि के विषय में यह कहा जाता है कि वे जिस भाव में स्थित होते है. तथा जिन भावों से दृष्टि संबन्ध बनाते है. उनके फल देर से ही सही पर अवश्य प्राप्त होते है. शनि से मिलने वाले फल भी राशियों के कारकतत्वों से प्रभावित होते है. इसलिये जन्म कुण्डली से शनि के फलों का विचार करते समय इस ग्रह से संबन्ध बनाने वाले अन्य सभी ग्रहों की स्थिति का भी विश्लेषण करना चाहिए.
वृ्षभ लग्न के व्यक्ति के लिये शनि के विभिन्न भावों का प्रभाव
प्रथम भाव में शनि के फल
वृ्षभ लग्न के प्रथम भाव में शनि स्थित होने पर व्यक्ति का स्वास्थ्य ठीक न रहने की संभावनाएं बनती है. व्यक्ति को भाग्य का सहयोग कार्यो में प्राप्त होता है. पिता का सहयोग मिल सकता है. उसकी मान-प्रतिष्ठा में भी वृ्द्धि होती है. सरकारी नियमों के पालन से लाभ हो सकता है. व्यक्ति के भाई - बहनों से प्राप्त होने वाले सुख में कमी हो सकती है. पर व्यक्ति के पराक्रम में वृ्द्धि होती है. व्यवसायिक क्षेत्र में भी अडचने आने की संभावनाएं बनती है.
वृ्षभ लग्न के प्रथम भाव में शनि स्थित होने पर व्यक्ति का स्वास्थ्य ठीक न रहने की संभावनाएं बनती है. व्यक्ति को भाग्य का सहयोग कार्यो में प्राप्त होता है. पिता का सहयोग मिल सकता है. उसकी मान-प्रतिष्ठा में भी वृ्द्धि होती है. सरकारी नियमों के पालन से लाभ हो सकता है. व्यक्ति के भाई - बहनों से प्राप्त होने वाले सुख में कमी हो सकती है. पर व्यक्ति के पराक्रम में वृ्द्धि होती है. व्यवसायिक क्षेत्र में भी अडचने आने की संभावनाएं बनती है.
द्वितीय भाव में शनि के फल
वृ्षभ लग्न के द्वितीय भाव में शनि अपने मित्र बुध की मिथुन राशि में होने के कारण उतम फल देते है. उसके धन व कुटुम्ब की वृ्द्धि होती है. कार्यक्षेत्र में लाभ प्राप्त होने की संभावना रहती है. व्यक्ति की आय में बढोतरी होती है. किन्तु यह योग व्यक्ति के अपनी माता से संम्बधों की मधुरता को कम कर सकता है. उसके परिवारिक सुख में भी कमी हो सकती है.
वृ्षभ लग्न के द्वितीय भाव में शनि अपने मित्र बुध की मिथुन राशि में होने के कारण उतम फल देते है. उसके धन व कुटुम्ब की वृ्द्धि होती है. कार्यक्षेत्र में लाभ प्राप्त होने की संभावना रहती है. व्यक्ति की आय में बढोतरी होती है. किन्तु यह योग व्यक्ति के अपनी माता से संम्बधों की मधुरता को कम कर सकता है. उसके परिवारिक सुख में भी कमी हो सकती है.
तृ्तीय भाव में शनि के फल
भाई -बहनों के साथ व्यवहार मध्यम स्तर के रहते है. पराक्रम में वृ्द्धि होती है. भाग्य का सहयोग मिलता है. संतान विषयों से कष्ट प्राप्त हो सकते है. विधा के क्षेत्र में भी सफलता प्राप्त होती है. आय और व्यय में अधिक अन्तर न होने के कारण संचय में कमी रहती है. विदेश स्थान से कार्य करने पर असफलता मिल सकती है.
भाई -बहनों के साथ व्यवहार मध्यम स्तर के रहते है. पराक्रम में वृ्द्धि होती है. भाग्य का सहयोग मिलता है. संतान विषयों से कष्ट प्राप्त हो सकते है. विधा के क्षेत्र में भी सफलता प्राप्त होती है. आय और व्यय में अधिक अन्तर न होने के कारण संचय में कमी रहती है. विदेश स्थान से कार्य करने पर असफलता मिल सकती है.
चतुर्थ भाव में शनि के फल
भवन, माता, भूमि के सुख में कमी, माता के साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार, शत्रुओं पर प्रभाव बनाये रखना. मामा के द्वारा लाभ प्राप्त, व्यवसाय के क्षेत्र में सफल, सम्मान प्राप्ति के योग, धार्मिक क्रियाओं में रुचि में कमी हो सकती है. शारीरिक कष्ट प्राप्त हो सकते है.
भवन, माता, भूमि के सुख में कमी, माता के साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार, शत्रुओं पर प्रभाव बनाये रखना. मामा के द्वारा लाभ प्राप्त, व्यवसाय के क्षेत्र में सफल, सम्मान प्राप्ति के योग, धार्मिक क्रियाओं में रुचि में कमी हो सकती है. शारीरिक कष्ट प्राप्त हो सकते है.
पंचम भाव में शनि के फल
विधा, बुद्धि के क्षेत्रों में सफलता. संतान का सहयोग, बुद्धि द्वारा व्यवसायिक कार्य पूर्ण होते है. जीवन साथी के कारण कष्ट प्राप्त हो सकते है. आय में कमी हो सकती है. परिवर के सदस्यों से लाभ प्राप्त हो सकते है. ऎसे व्यक्ति को अपने बुद्धि के बल पर यश प्राप्त हो सकता है. प्रतिष्ठा व सफलता प्राप्त हो सकती है.
विधा, बुद्धि के क्षेत्रों में सफलता. संतान का सहयोग, बुद्धि द्वारा व्यवसायिक कार्य पूर्ण होते है. जीवन साथी के कारण कष्ट प्राप्त हो सकते है. आय में कमी हो सकती है. परिवर के सदस्यों से लाभ प्राप्त हो सकते है. ऎसे व्यक्ति को अपने बुद्धि के बल पर यश प्राप्त हो सकता है. प्रतिष्ठा व सफलता प्राप्त हो सकती है.
छठे भाव में शनि के फल
शत्रुओं पर विजय, लाभों में वृ्द्धि, कार्यक्षेत्र में सम्मान प्राप्त हो सकता है. व्यवसाय में लाभ प्राप्त हो सकते है. पिता से संम्बध मधुर न रहने की सम्भावनाएं बनती है. व्यय अधिक हो सकते है. परिवार के बाहर के व्यक्तियों से सम्बध अनुकुल नहीं रहते है. उसके भाई- बहन भी व्यक्ति से असंतुष्ट हो सकते है. पराक्रम में वृ्द्धि होती है. परन्तु व्यय के कारण व्यक्ति कि चिन्ताओं में वृ्द्धि होती है.
शत्रुओं पर विजय, लाभों में वृ्द्धि, कार्यक्षेत्र में सम्मान प्राप्त हो सकता है. व्यवसाय में लाभ प्राप्त हो सकते है. पिता से संम्बध मधुर न रहने की सम्भावनाएं बनती है. व्यय अधिक हो सकते है. परिवार के बाहर के व्यक्तियों से सम्बध अनुकुल नहीं रहते है. उसके भाई- बहन भी व्यक्ति से असंतुष्ट हो सकते है. पराक्रम में वृ्द्धि होती है. परन्तु व्यय के कारण व्यक्ति कि चिन्ताओं में वृ्द्धि होती है.
सप्तम भाव में शनि के फल
व्यवसाय के क्षेत्र में कठिनाई से लाभ व उन्नति प्राप्त होती है. पुरुषार्थ करने से व्यक्ति का भाग्य बळी होता है. धर्म के नियमों का पालन करता है. पारिवारिक जीवन में सुख की प्राप्ति होती है. माता-पिता, जगह- जमीन आदि के सुखों में कमी आती है.
व्यवसाय के क्षेत्र में कठिनाई से लाभ व उन्नति प्राप्त होती है. पुरुषार्थ करने से व्यक्ति का भाग्य बळी होता है. धर्म के नियमों का पालन करता है. पारिवारिक जीवन में सुख की प्राप्ति होती है. माता-पिता, जगह- जमीन आदि के सुखों में कमी आती है.
अष्टम भाव में शनि के फल
कार्यक्षेत्र में कठिनाईयों का सामना करना पडता है. माता-पिता के साथ भी व्यवहार मधुर न रहने की संभावनाएं बनती है. धर्म गतिविधियों में रुचि कम हो सकती है. व्यक्ति को शिक्षा के क्षेत्र में सफलता प्राप्त हो सकती है. पर सफलता की राहें यहां भी आसान नहीं होती है.
कार्यक्षेत्र में कठिनाईयों का सामना करना पडता है. माता-पिता के साथ भी व्यवहार मधुर न रहने की संभावनाएं बनती है. धर्म गतिविधियों में रुचि कम हो सकती है. व्यक्ति को शिक्षा के क्षेत्र में सफलता प्राप्त हो सकती है. पर सफलता की राहें यहां भी आसान नहीं होती है.
नवम भाव में शनि के फल
मान- प्रतिष्ठा में वृ्द्धि, सभी के साथ अच्छा व्यवहार, धर्म में रुचि, पुरुषार्थ में वृ्द्धि, भाग्य में वृ्द्धि होती है. इस योग के व्यक्ति के स्वभाव में परिश्रम भाव की कमी होती है.
मान- प्रतिष्ठा में वृ्द्धि, सभी के साथ अच्छा व्यवहार, धर्म में रुचि, पुरुषार्थ में वृ्द्धि, भाग्य में वृ्द्धि होती है. इस योग के व्यक्ति के स्वभाव में परिश्रम भाव की कमी होती है.
दशम भाव में शनि के फल
कार्यक्षेत्र की ओर से सम्मान प्राप्त, पिता का सम्मान, मान प्रतिष्ठा कि प्राप्ति, धर्म के कार्य में रुचि, धन खर्च अधिक होता है. चिंताओं में बढोतरी हो सकता है. जीवन साथी के साथ संबन्ध मधुर रहने की संभावनाएं बनती है. माता व परिवारिक जीवन में सुख की कमी हो सकती है. कठोर परिश्रम से भाग्य का पूर्ण सहयोग प्राप्त हो सकता है.
कार्यक्षेत्र की ओर से सम्मान प्राप्त, पिता का सम्मान, मान प्रतिष्ठा कि प्राप्ति, धर्म के कार्य में रुचि, धन खर्च अधिक होता है. चिंताओं में बढोतरी हो सकता है. जीवन साथी के साथ संबन्ध मधुर रहने की संभावनाएं बनती है. माता व परिवारिक जीवन में सुख की कमी हो सकती है. कठोर परिश्रम से भाग्य का पूर्ण सहयोग प्राप्त हो सकता है.
एकादश भाव में शनि के फल
विधा-बुद्धि के क्षेत्र में सम्मान की प्राप्ति, आय में बाधाएं, लाभ प्राप्ति में अडचनें, स्थास्थ्य अनुकुल हो सकता है. परिश्रम करने से व्यक्ति अपने सफलता कि बाधाओं में कमी कर सकता है.
विधा-बुद्धि के क्षेत्र में सम्मान की प्राप्ति, आय में बाधाएं, लाभ प्राप्ति में अडचनें, स्थास्थ्य अनुकुल हो सकता है. परिश्रम करने से व्यक्ति अपने सफलता कि बाधाओं में कमी कर सकता है.
द्वादश भाव में शनि के फल
पडौसियों से संबन्ध मधुर नहीं रहते है. स्वास्थ्य मध्यम स्तर का रहता है. शत्रु पक्ष प्रबल हो सकते है. व्यक्ति के मन में अशान्ति रहने की संभावना रहती है. कई कार्यो में भाग्य का सहयोग प्राप्त हो सकता है. इस योग के होने पर व्यक्ति को परिश्रम में कमी करने से बचना चाहिए.
पडौसियों से संबन्ध मधुर नहीं रहते है. स्वास्थ्य मध्यम स्तर का रहता है. शत्रु पक्ष प्रबल हो सकते है. व्यक्ति के मन में अशान्ति रहने की संभावना रहती है. कई कार्यो में भाग्य का सहयोग प्राप्त हो सकता है. इस योग के होने पर व्यक्ति को परिश्रम में कमी करने से बचना चाहिए.
No comments:
Post a Comment