यह मानस रोग के साथ-साथ मस्तिष्क रोग भी है। इसे उन्माद भी कहते है। अनुष्ठान पध्दति केे अनुसार लग्न में चन्द्रमा को जब शनि या राहु देखते हो, तो जातक अपने को अकेला अनुभव करता है, जिससे रोग का आरम्भ होता हैं। यह रोग निराशा, दुःख, दर्द, शोक या पिशाच आदि से भी होता हैं। इस रोग के मुख्य लक्षण है - अधिक भोजन, हंसना, शोर मचाना, गाना, ज्यादा पानी पीना, ज्यादा बात करना, कभी-कभी अधिक बुध्दिमानी का कार्य करना आदि। जातक की लग्न कुण्डली में ग्रहों का निम्न संयोग इस बीमारी के लिए उत्तरदायी है -
1. लग्न में बृहस्पति।
2. शनि, मंगल सप्तम में, चन्द्रमा शनि या राहु के साथ 12 वों भाव में।
3. शनि लग्न में मंगल 5 या 7 वें में।
4. अत्यधिक कमजोर चन्द्रमा, पापी ग्रह लग्न 5 या 9 में।
5. शनि लग्न में, मंगल 3,6,8,12 भाव में।
6. कमजोर बुध 3,6,8,12 भाव में।
7. अष्टम का स्वामी चन्द्रमा या शुक्र के साथ 2,6,8,11,12 में।
8. राहु या केतु मंगल के साथ हो या उसे दूषित करते हो।
9. चन्द्रमा, बुध लग्न में।
10. सूर्य लग्न में, मंगल के साथ, राहु या शनि 8 वें में।
11. कमजोर चन्द्रमा मंगल के साथ, राहु या शनि 8 वें में।
12. चन्द्रमा, बुध एक साथ 6,8,12 में।
13. सूर्य, चन्द्रमा, लग्न या 5 या 9 में।
14. चन्द्रमा, शनि, केतु एक साथ मंगल से दृष्ट हों।
15. बृहस्पति, शनि 12 वें भाव में।
1. लग्न में बृहस्पति।
2. शनि, मंगल सप्तम में, चन्द्रमा शनि या राहु के साथ 12 वों भाव में।
3. शनि लग्न में मंगल 5 या 7 वें में।
4. अत्यधिक कमजोर चन्द्रमा, पापी ग्रह लग्न 5 या 9 में।
5. शनि लग्न में, मंगल 3,6,8,12 भाव में।
6. कमजोर बुध 3,6,8,12 भाव में।
7. अष्टम का स्वामी चन्द्रमा या शुक्र के साथ 2,6,8,11,12 में।
8. राहु या केतु मंगल के साथ हो या उसे दूषित करते हो।
9. चन्द्रमा, बुध लग्न में।
10. सूर्य लग्न में, मंगल के साथ, राहु या शनि 8 वें में।
11. कमजोर चन्द्रमा मंगल के साथ, राहु या शनि 8 वें में।
12. चन्द्रमा, बुध एक साथ 6,8,12 में।
13. सूर्य, चन्द्रमा, लग्न या 5 या 9 में।
14. चन्द्रमा, शनि, केतु एक साथ मंगल से दृष्ट हों।
15. बृहस्पति, शनि 12 वें भाव में।
सामुद्रिक शास्त्र में इस रोग के निम्न लक्षण बताये गये है -
1. शनि पर्वत पर लाली एवं नक्षत्र का चिन्ह हो।
2. शनि पर्वत पर चन्द्रमा का निशान तथा पर्वत उत्पन्न हो।
3. मस्तिष्क रेखा पर यव हो।
4. आयु रेखा नीली तथा नख छोटे एवं लाल हो।
5. चन्द्रमा तथा मंगल पर्वत उत्पन्न हो।
6. मध्यमा के दूसरे पर्व पर नक्षत्र का निशान हो।
7. आयु रेखा को बहुत सी रेखा काटती हो।
8. शनि की अंगुली का पर्व अधिक लम्बा हो।
2. शनि पर्वत पर चन्द्रमा का निशान तथा पर्वत उत्पन्न हो।
3. मस्तिष्क रेखा पर यव हो।
4. आयु रेखा नीली तथा नख छोटे एवं लाल हो।
5. चन्द्रमा तथा मंगल पर्वत उत्पन्न हो।
6. मध्यमा के दूसरे पर्व पर नक्षत्र का निशान हो।
7. आयु रेखा को बहुत सी रेखा काटती हो।
8. शनि की अंगुली का पर्व अधिक लम्बा हो।
उपाय -
इस रोग की चिकित्सा ज्यादा महंगी और इस रोग को ठीक होने में ज्यादा समय लगता है। रंग, औषधि, स्नान, यज्ञ, दान आदि से भी इसकी चिकित्सा की जाती है। ज्योतिष के अनुसार इस रोग के निम्न उपाय है -
1. पन्ना 6 रत्ती, पीला पोखराज 4 रत्ती, मोती 5 रत्ती का पहनना चाहिए।
2. जब चन्द्रमा वृष में हो तो अनन्तमूल की जड़ लाल कपड़े में गले में धारण करें।
3. रोगी के कमरे में पर्दा, चादर हरे रंग का प्रयोग करें।
4. लाल रंग से रोगी को बचाये।
2. जब चन्द्रमा वृष में हो तो अनन्तमूल की जड़ लाल कपड़े में गले में धारण करें।
3. रोगी के कमरे में पर्दा, चादर हरे रंग का प्रयोग करें।
4. लाल रंग से रोगी को बचाये।
Pt.P.S Tripathi
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