Friday 21 August 2015

कोरबा एक धार्मिक स्थल

कोरबा छत्तीसगढ़ की ऊर्जाधानी भी कहलाती है, क्योंकि यहां छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी (पूर्ववर्ती छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल) और एनटीपीसी के अलावा कई निजी कंपनियों के विद्युत संयंत्र संचालित हैं। यहां की पहचान एशिया के सबसे बड़े खुले कोयला खदान (ओपन कास्ट माइन) गेवरा माइंस की वजह से भी है, जो साउथ ईस्टर्न कोल फिल्ड्स (एसईसीएल) द्वारा कोरबा कोयला क्षेत्र में संचालित कई अंडरग्राउंड और ओपनकास्ट माइन्स में से एक है। इसके अलावा यहां भारत का सबसे बड़ा एल्युमिनियम संयंत्र भारत एल्युमिनियम कंपनी (बालको) स्थित है, जिसे एनडीए शासनकाल में निजी हाथों में सौंप दिया गया था। छत्तीसगढ़ की शक्ति का केन्द्र कोरबा बहुत खूबसूरत स्थान है। इसकी स्थापना 25 मई 1998 ई. को की गई थी। शक्ति का केन्द्र होने के साथ यह प्राकृतिक रूप से भी बहुत आकर्षक है। पर्यटक यहां पर घने जंगलों, पहाड़ों और नदियों आदि के खूबसूरत दृश्य देख सकते हैं। प्राकृतिक रूप से आकर्षक होने के साथ-साथ यह प्राकृतिक संसाधनों से भी भरा पड़ा है। यहां पर कोयले और एल्युमिनियम की बड़ी-बड़ी खदानें हैं। इन खदानों से निकले कोयले और एल्यूयमिनियम का देश-विदेश में निर्यात किया जाता है। यह खदानें इसकी अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। छत्तीसगढ़ की ऊर्जा राजधानी कोरबा अहिरन तथा हसदेव नाम की दो नदियों के संगम पर स्थित है। यह 252 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ की जनसंख्या का ज्यादातर भाग जनजातीय लोगों का है और आदिवासी, गोंड, कवर, बिंजवर, सतनामी, राज गोंड क्षेत्र में पाये जाने वाले कुछ जनजातीय समूह हैं। भारत के प्रमुख पर्वों के अलावा क्षेत्र में पोला, हरेली, कर्मा, देव उठनी आदि स्थानीय जनजातीय पर्व भी मनाये जाते हैं। पोला पर्व बैलों की पूजा के साथ मनाया जाता है। इस पर्व के दौरान बैलों की दौड़ का आयोजन किया जाता है। हरेली सावन के महीने में किसानों द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है। किसान अपने कृषि सम्बन्धी औजारों की पूजा करते हैं।
कई सदी पहले चैतुरगढ़ की वादियों को न केवल सैर सपाटे, उपासना, वन्य प्राणियों के शिकार के लिए तत्कालीन शासको ने पसंद किया था बल्कि यह जगह उन्हें सामरिक दृष्टिकोण से भी काफी भा गयी थी। कालांतर में उन्होंने यहां ऊंची पहाड़ी पर प्राकृतिक किले का निर्माण अपने तरीके से कराया, जो अब भग्र स्थिति में मौजूद है। यही पर स्थित है देवी महिषासुर मर्दिनी का मंदिर, जो लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है।
कोरबा जिला मुख्यालय से 90 किमी दूर स्थित यह स्थान तहसील मुख्यालय पाली से सीधे सडक़ मार्ग से जुड़ा हुआ है। मैकल पर्वत श्रेणी में 22.25 उत्तरीय अक्षांश और 82.15 पूर्व देशांस पर इस स्थान की स्थिति है, जहां महिषासुर मर्दिनी के मंदिर और पत्थरों के प्राचीन किले का निर्माण राजा पृथ्वीदेव प्रथम ने अपने काल में कराया था। वे ईश्वर के परम उपासक थे। अपने शासनकाल में किए गए प्रमुख कार्यों में उन्होंने एक काम चैतुरगढ़ में भी कराया था। समय और परिस्थितियों के साथ संघर्ष करते हुए उक्त स्थान यद्यपि अभी भी अपनी जगह पर बना हुआ है लेकिन उसका स्वरूप काफी हद तक बदल गया है। यह क्षेत्र सामाजिक और सांस्कृतिक विविधता के मामले में धनी है। यह क्षेत्र उत्तम किस्म के रेशम कोसा के उत्पादन के लिये भी लोकप्रिय है जिसका उपयोग उच्च गुणवत्ता वाले कपड़ों के निर्माण में किया जाता है जिनसे फिर वस्त्र और पर्दे बनाये जाते हैं। कोसा साडिय़ाँ विश्व प्रसिद्ध हैं। कोसा साडिय़ों को हाट या स्थानीय बाजारों में बेंचा जाता है।
कोरबा और इसके आसपास के पर्यटक स्थल
छत्तीसगढ़ का कश्मीर : चैतुरगढ़
अलौकिक गुप्त गुफा, झरना, नदी, जलाशय, दिव्य जड़ी-बूटी और औषधीय वृक्ष कंदलओं से परिपूर्ण होने की वजह से चैतुरगढ़ को छत्तीसगढ़ का कश्मीर कहा जाता है। क्योंकि ग्रीष्म ऋतु में भी यहां का तापमान 30 डिग्री सेन्टीग्रेट से ज्यादा नहीं रहता है। अनुपम अलौकिक, प्राकृतिक छटा का वह क्षेत्र दुर्गम भी है। बिलासपुर कोरबा रोड के 50 किलोमीटर दूर ऐतिहासिक जगह पाली है जहां से करीब 125 किलोमीटर दूर लाफा है। लाफा से 30 किलोमीटर ऊंचाई पर है चैतुरगढ़। चैतुरगढ़ में आदिशक्ति मां महिषासुर मर्दिनी का मंदिर, शंकर खोल गुफा दर्शनीय एवं रमणीय स्थल है। इस पर्वत श्रृंखला में चामादहरा, तिनधारी और श्रृंगी झरना अद्वितीय सुंदर है। इस पर्वत श्रृंखला में जटाशंकरी नदी का उद्गम स्थल भी है। इसी नदी के आगे तट पर तुम्माण खोल प्राचीन नाम माणिपुर स्थिर है जो कलचुरी राजाओं की प्रथम राजधानी थी। पौराणिक कथा के अनुसार मातेश्वरी ने चामर चक्षुर, वाण्कल विड़ालक्ष एवं महाप्रतापी महिषासुर का संहार कर कुछ पल इस पर्वत शिखर पर विश्राम पर देवों को मनवांछित वर प्रदान कर माणिक द्वीप में अंतध्र्यान हो गई थी। दुर्गम पहाड़ी पर स्थित होने की वजह से कई वर्षों तक यह क्षेत्र उपेक्षित रहा। सातवीं शताब्दी में वाणवंशीय राजा मल्लदेव ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। इसके बाद जाज्वल्बदेव ने भी मंदिर और किले का जीर्णोद्धार करवाया था। चैतुरगढ़ किले के चार द्वार बताये जाते हैं जिसमें सिंहद्वार के पास महामाया महिषासुर मर्दिनी का मंदिर है तो मेनका द्वार के पास है शंकर खोल गुफा। मंदिर से तीन किलोमीटर दूर शंकर खोल गुफा का प्रवेश द्वार बेहद छोटा है और एक समय में एक ही व्यक्ति लेटकर जा सकता है। गुफा के अंदर शिवलिंग की स्थापना है। कहते हैं कि पर्वत के दक्षिण दिशा में किले का गुप्त द्वार है जो अगम्य है। किंवदंती के अनुसार आदि शक्ति मां महिषासुर मर्दिनी इसे गुप्त द्वार से ही गुप्त पुरी माणिक द्वीप में अंतध्र्यान हुई वहीं धनकुबेर का खजाना इसी द्वार से लाया जाता रहा है। अपने अलौकिक प्राकृतिक छटा के साथ ही चैतुरगढ़ ऐतिहासिक, धार्मिक, पौराणिक, स्थलों के रूप में प्रसिद्ध है। दुर्गम पहाड़ी पर पर्यटन का अपना अलग ही आनंद है। चैतुरगढ़ की तलहटी पर लाफा में प्राचीन महामाया मंदिर और बूढ़ारक्सादेव के दर्शन किए जा सकते हैं। पाली में नौकोनिया तालाब के तट पर प्रसिद्ध प्राचीन शिव मंदिर की स्थापत्य कला आबू के जैन मंदिरों की तरह अद्भूत है। जालीदार गुम्बज एवं स्तम्भों में उत्कीर्ण मूर्तियां कलात्मक एवं सुंदर है। पाली में पर्यटकों के विश्राम हेतु पर्यटन मंडल ने विश्राम गृह का निर्माण किया है।
चैतुरगढ़
चैतुरगढ़ को लाफागढ़ के नाम से भी जाना जाता है। कोरबा जिला मुख्यालय से 70 कि.मी. दूर पाली के पास 3060 मी. ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। इसका निर्माण राजा पृथ्वी देव ने कराया था। यह एक किले जैसा लगता है। इसमें तीन प्रवेश द्वार हैं। इन प्रवेश द्वारों के नाम मेनका, हुमकारा और सिम्हाद्वार हैं। चैतुरगढ़ का क्षेत्रफल 5 वर्ग कि.मी. है और इसमें पांच तालाब हैं। इन पांच तालाबों में तीन तालाब सदाबहार हैं, जो पूरे वर्ष जल से भरे होते हैं। चैतुरगढ़ में महिषासुर मर्दिनी मन्दिर है। मन्दिर के गर्भ में महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा स्थापित की गई है, जिसके बारह हाथ हैं। नवरात्रों में यहां पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। स्थानीय निवासी इस पूजा में बड़ी श्रद्धा से भाग लेते हैं।
मन्दिर के पास खूबसूरत शंकर गुफा भी है, जो लगभग 25 फीट लंबी है। गुफा का प्रवेश द्वार बहुत छोटा है। इसलिए पर्यटकों को गुफा में प्रवेश करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। मन्दिर और गुफा देखने के अलावा पर्यटक इसकी प्राकृतिक सुन्दरता की झलकियां भी देख सकते हैं। वह यहां पर पर वन्य पशु-पक्षियों को देख सकते हैं।
कोसगाईगढ़
कोरबा-कटघोरा रोड पर फुटका पहाड़ की चोटी पर स्थित कोसगाईगढ़ बहुत खूबसूरत है। यह समुद्र तल से 1570 मी. की ऊंचाई पर स्थित है। कोसागाईगढ़ में एक खूबसूरत किला है। इसका प्रवेश द्वार एक गुफा की भांति है और यह इतना संकरा है कि इसमें से एक बार में केवल एक व्यक्ति गुजर सकता है। किले के चारों तरफ घना जंगल है, जिसमें अनेक प्रजाति के वन्य पशु-पक्षियों को देखा जा सकता है। कोसगाईगढ़ में पर्यटक किले के अलावा भी अनेक ऐतिहासिक अवशेषों देख सकते हैं। यहां स्थित माता कोसगाई के मंदिर की अपनी महिमा है, मंदिर में माता की इच्छानुरुप छत नहीं बनाया गया है।
मड़वारानी
कोरबा जिला मुख्यालय से 22 कि.मी. की दूर कोरबा-चांपा रोड पर मड़वारानी मन्दिर स्थित है। यह मन्दिर एक चोटी पर बना हुआ है और मदवरानी देवी को समर्पित है। स्थानीय निवासी के अनुसार सितम्बर-अक्टूबर में नवरात्रों में यहां पर कल्मी के वृक्ष के नीचे ज्वार उगती है। नवरात्रों में यहां पर स्थानीय निवासियों द्वारा भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में स्थानीय निवासियों के साथ पर्यटक भी बड़े उत्साह से भाग लेते हैं।
सर्वमंगला मंदिर
कोरबा शहर से लगा हुआ दुर्गा देवी को समर्पित सर्वमंगला मन्दिर कोरबा के प्रमुख मन्दिरों में से एक है। इसका निर्माण कोरबा के जमींदर राजेश्वर दयाल के पूर्वजों ने कराया था। सर्वमंगला मन्दिर के पास त्रिलोकीनाथ मन्दिर, काली मन्दिर और ज्योति कलश भवन हैं। पर्यटक इन मन्दिरों के दर्शन भी कर सकते हैं। इन मन्दिरों के पास एक गुफा भी जो नदी के नीचे से होकर गुजरती है। कहा जाता है कि रानी धनराज कुंवर देवी इस गुफा का प्रयोग मन्दिरों तक जाने के लिए किया करती थी।
कोरबा और इसके आसपास के क्षेत्र के प्रमुख पर्यटक आकर्षणों में माडवा रानी, कनकी, कोसागईगढ़, केन्डई झरने और चित्तौडग़ढ़ का किला शामिल हैं। यहाँ के मन्दिर और किले देखने लायक हैं। इसके अलावा यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता भी कई पर्यटकों को आकर्षित करती है। सुन्दर केन्डई झरना भी पर्यटकों के लिये लुभावना दृश्य प्रस्तुत करता है। चित्तौडग़ढ़ का किला क्षेत्र का प्रसिद्ध किला है और नव रात्रि के दौरान यहाँ भारी संख्या में पर्यटक आते हैं।
मदवरानी
कोरबा के मुख्यालय से 22 कि.मी. की दूर कोरबा-चम्पा रोड पर सुन्दर मदवरानी मन्दिर स्थित है। यह मन्दिर एक चोटी पर बना हुआ है और मदवरानी देवी को समर्पित है। स्थानीय निवासी के अनुसार सितम्बर-अक्टूबर में नवरात्रों में यहां पर कल्मी के वृक्ष के नीचे ज्वार उगती है। नवरात्रों में यहां पर स्थानीय निवासियों द्वारा भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में स्थानीय निवासियों के साथ पर्यटक भी बड़े उत्साह से भाग लेते हैं।
पाली
बिलासपुर से कोरबा मार्ग पर 50 कि.मी. पर स्थित, प्राचीन नगर। राजा जाजल्यदेव और विक्रमादित्य की नगरी। मुख्य मार्ग पर 9वीं शताब्दी के राजा विक्रमादित्य द्वितीय द्वारा निर्मित खजुराहों कलाकृतियों पर आधारित शिवमंदिर।
चैतुरगढ़ का किला
पाली से 30 कि.मी. दूर विषम भौगोलिक संरचना के बीच चैतुरगढ़ का किला स्थित। कल्चुरी शासन काल के अतंर्गत राजा पृथ्वी देव प्रथम के समय में 821 ईस्वी तथा 1069 ईस्वी के आसपास निर्मित। यह कल्चुरी संरचनाये दुर्गम भौगोलिक स्थिति के कारण अभेद्य। प्रख्यात पुरात्तविद बेगलर ने अपनी किताब में देश के अभेद्य किलों में इसकी गणना की। तीन हजार फीट की ऊँचाई पर गरगज सरोवर तालाब का होना ही पर्यटकों को आश्चर्य में डाल देता हैं चैतुरगढ़ किले की भौगोलिक संरचना ऐसी है कि वहां से सूर्योदय और सूर्यास्त दोनों का मनोहर दृश्य देखा जा सकता है। दुर्गम पहाडिय़ों तथा सघन वनों से आच्छादित, वर्ष भर हरियाली और शीतल जलवायु के कारण ही इसे छत्तीसगढ़ का कश्मीर कहा जाता है।
केंदई जल प्रपात:
कोरबा जिले के साल के घने वन प्रदेश से घिरे केन्दई गांव में यह जल प्रपात स्थित है यहां एक पहाड़ी नदी करीब 200 फुट की ऊंचाई से नीचे गिरकर इस जलप्रपात का निर्माण करती है। इस जलप्रपात को पास में स्थित विशाल शिलाखंड से इस जलप्रपात को देखना एक अलग ही अनुभव प्रदान करता है ।
कनकेश्वर महादेव मंदिर: भोले भंडारी का एक अनोखा धाम
छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में हसदेव नदी के तट पर कनकी नाम का एक छोटा सा गांव है. जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर कनकी का कनकेश्वर महादेव मंदिर धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण स्थान है. इसे चक्रेश्वर महादेव मंदिर भी कहा जाता है. कनकी रायपुर से 197 किलोमीटर की दूरी पर कोरबा जिले में स्थित है.
यहां मान्यता है कि एक गाय रोज जाकर इस शिवलिंग पर दूध चढ़ाती थी. एक दिन गाय को ग्वाले ने ऐसा करते देख लिया. गुस्से में उसने जहां दूध गिर रहा था वहां डंडे से प्रहार कर दिया. जैसे ही उसने डंडा मारा कुछ टूटने की आवाज आई और कनकी (चावल के टुकड़े) के दाने वहां बिखर गए. उस जगह की सफाई करने पर वहां एक टूटा हुआ शिवलिंग मिला. बाद में इसी स्थान पर मंदिर का निर्माण करवाया गया.Ó
उन्होंने बताया कि शिवलिंग के पास कनकी के दाने पड़े होने के कारण मंदिर का नाम कनकेश्वर महादेव रखा गया. मंदिर के स्थापित होने के बाद वहां पर गांव भी बस गया जिसका नाम कनकी रखा गया. हर साल सावन में यहां भोले के भक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ती है.
तुमान
यह पुरातात्विक स्थल कटघोरा से 15 किलोमीटर दूर पेण्डा रोड जटगा पसान मार्ग पर जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर स्थित है। तुमान हैहयवंषी कलचुरी राजाओं की राजधानी रही है। इसे प्राचीन छत्तीसगढ़ की प्रथम राजधानी का गौरव भी प्राप्त है। कलचुरी शासक कोकल्लदेव के सबसे छोटे पुत्र कलिंगराज ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। इनके पुत्र कमलराज और कमलराज के पुत्र रत्नदेव प्रथम तक यह क्षेत्र (1050 ई.तक) राजधानी रही थी। फिर राजधानी रतनपुर चला गया, 1165 ई.में से 1170 ई.तक जाजल्लदेव द्वितीय के समय पुन: राजधानी रहा। इन समयों में यहां रत्नेष्वर, बंकेष्वर आदि मंदिर, राजप्रासाद, तालाब आदि बनवाये गये जिनके अवषेष आज भी है। यहां की मंदिरों में पाए गए मूर्तियों की तुलना भोरमदेव और खजुराहों से होती है। यह क्षेत्र भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण मण्डल रायपुर द्वारा संरक्षित है।
छुरी
यह ऐतिहासिक धार्मिक और पर्यटन दृष्टिकोण से अति महत्वपूर्ण गढ़ जिला मुख्यालय कोरबा से अजगरबहार-देवपहरी लेमरू मार्ग पर अजगर बहार से 6 किलोमीटर और कोरबा से 35 किलोमीटर दूर स्थित है। प्यारेलाल गुप्त जी के अनुसार इस किले का निर्माण 12 वीं शताब्दी में सुरक्षा की दृष्टि को ध्यान में रखकर पहाड़ को काटकर कराया गया था जिसका जिर्णोध्दार 16 वीं शताब्दी में रतनपुर के शासक बाहर साय (बाहरेंद्र साय) के द्वारा कराया गया था। यहां से दो शिलालेख भी मिले हैं जो वर्तमान में नागपुर संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है। पहाड़ के छत पर लगभग 2080 फीट की उंचाई पर कोसगाई देवी का मंदिर है। इसके अलावा भी यहां देखने योग्य गौमुखी झरना, बहराद्वार, उमा महेष्वर, ठाकुर देव मंदिर तोपखाना आदि है। पूर्व में यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण मण्डल द्वारा संरक्षित घोषित किया गया था।
बांगो बांध
जिला मुख्यालय से लगभग 65 किलोमीटर दूर बांगो नामक स्थान पर हसदेव नदी पर एक बांध बनाया गया है जिसे मिनीमाता बांगो बांध के नाम से जाना जाता है। इस बांध की जल ग्रहण क्षमता 3416 घनमीटर है।यहां पानी से 120 मेगावाट बिजली पैदा की जाती है। प्राकृतिक सौंदर्य से यह स्थल परिपूर्ण है।
बुका
यह पर्यटन क्षेत्र कोरबा मुख्यालय से 95 किलोमीटर दूर पुराने अंबिकापुर मार्ग पर कटघोरा से गुरसिया से बुका पहुंच मार्ग पर है। यहां आरामगृह उद्यान और नौकायन की सुविधा है। पर्यटन के लिए बरसात को छोड़कर किसी भी महीने में घूमने लायक है। यहां का प्राकृतिक दृश्य और वातावरण मनोहारी है।
दर्री बराज
कोरबा जिला मुख्यालय से महज 7 किलोमीटर दूर औद्योगिक नगरी कोरबा को जीवित रखने वाली 14 गेट युक्त एक बराज का निर्माण हसदेव नदी पर कियाा गया है और यहीं से सभी उद्योगों को जल प्रदाय किया जाता है। ये सभी प्लांट और ये बराज पर्यटन की दृष्टि से दर्षनीय है।
कुदुरमाल
कोरबा जिलान्तर्गत उरगा से दो कि.मी. पर कबीर पंथियों का तीर्थ स्थल कुदुरमाल है यहाँ कबीर पंथ के धर्म गुरूओं की समाधि है। प्रतिवर्ष यहाँ माघ पूर्णिमा को मेला लगता है और संत समागम होता है।
कैसे पहुंचे
वायु मार्ग
मुम्बई, भोपाल, नागपुर और खजुराहो से रायपुर हवाई अड्डे तक प्रतिदिन वायु सेवा है। रायपुर से पर्यटक आसानी से कोरबा तक पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग
कोरबा सड़क मार्ग द्वारा देश के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुटा हुआ है।
कहां ठहरें
होटल सेन्टर प्वाइंट
लोकेशन: स्टेडियम रोड, ट्रांसपोर्ट नगर
एस.ई.सी.एल. गेस्ट हाऊस
लोकेशन: महिषासुर मर्दिनी मन्दिर के नजदीक
चेतूरागढ़, कोरबा
महिषासुर मर्दिनी मन्दिर
लोकेशन: चेतूरागढ़
Pt.P.S.Tripathi
Mobile No.- 9893363928,9424225005
Landline No.- 0771-4050500
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