Monday 20 June 2016

केमद्रुम योग

जन्मकुंडली में यदि चंद्रमा से द्वादश तथा द्वितीय भाव में सूर्य, राहु-केतु के अतिरिक्त कोई अन्य ग्रह स्थित न हो तो 'क्रेमद्रुम' नामक अशुभ योग निर्मित होता है। इसे ज्योतिष ग्रंथों में सर्वाधिक अशुभ माने जाने वाले योगों में शामिल किया गया है। लेकिन केमद्रुम योग राज योग कब बन जाता है, केमद्रुम योग के बारे में ऐसी मान्यता है कि यह योग जिस जातक की कुंडली में निर्मित होता है उसे आजीवन संघर्ष और अभाव में ही जीवन यापन करना पड़ता है। इसीलिए ज्योतिष के अनेक विद्वान इसे 'दुर्भाग्य का प्रतीक' कहकर परिभाषित करते हैं। लेकिन यह अवधारणा पूर्णतः सत्य नहीं है। व्यवहार में ऐसा पाया गया है कि कुंडली में गजकेसरी, पंचमहापुरुष जैसे शुभ योगों की अनुपस्थिति होने पर भी केमद्रुम योग से युक्त कुंडली के जातक कार्यक्षेत्र में सफलता के साथ-साथ यश और प्रतिष्ठा भी प्राप्त करते हैं। ऐसे में क्या कहा जाये। क्या शास्त्रों में लिखी बातों को असत्य या निर्मूल कहकर केमद्रुम योग की परिभाषा पर प्रश्न चिह्न लगा दिया जाये। वस्तुतः सत्यता यह है कि केमद्रुम योग के बारे में बताने वाले अधिकांश विद्वान इसके नकारात्मक पक्ष पर ही अधिक प्रकाश डालते हैं। जो पूर्णतः असैद्धांतिक एवं अवैज्ञानिक है। यदि हम इसके सकारात्मक पक्ष का गंभीरतापूर्वक विवेचन करें तो हम पाएंगे कि कुछ विशेष योगों की उपस्थिति से केमद्रुम योग भंग होकर राजयोग में परिवर्तित हो जाता है। शास्त्रों में कतिपय ऐसे योगों का उल्लेख भी मिलता है जिनके प्रभाव से केमद्रुम योग भंग होकर राजयोग में बदल जाता है। केमद्रुम योग को भंग करने वाले प्रमुख योग निम्नलिखित हैं। 1. चंद्रमा पर बुध या गुरु की पूर्ण दृष्टि हो अथवा लग्न में बुध या गुरु की स्थिति या दृष्टि हो। 2. चंद्रमा और गुरु के मध्य भाव-परिवर्तन का संबंध बन रहा हो। 3. चंद्रमा-अधिष्ठित राशि का स्वामी चंद्रमा पर दृष्टि डाल रहा हो। 4. चंद्रमा-अधिष्ठित राशि का स्वामी लग्न में स्थित हो। 5. चंद्रमा-अधिष्ठित राशि का स्वामी गुरु से दृष्ट हो। 6. चंद्रमा-अधिष्ठित राशि का स्वामी चंद्रमा से भाव परिवर्तन का संबंध बना रहा हो। 7. चंद्रमा-अधिष्ठित राशि का स्वामी लग्नेश, पंचमेश, सप्तमेश या नवमेश के साथ युति या दृष्टि संबंध बना रहा हो। 8. लग्नेश, पंचमेश, सप्तमेश और नवमेश में से कम से कम किन्ही दो भावेशों का आपस में युति या दृष्टि संबंध बन रहा हो। 9. लग्नेश बुध या गुरु से दृष्ट होकर शुभ स्थिति में हो। 10. चंद्रमा केंद्र में स्वराशिस्थ या उच्च राशिस्थ होकर शुभ स्थिति में हो।

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