Tuesday 28 June 2016

श्राद्ध से पायें पंचकोटी फल.......

श्राद्ध संबंधित शास्त्र पद्म पुराण, लिंग पुराण, मत्स्य पुराण, अग्नि पुराण व मदन पारीजात के अनुसार जब कभी पितृपक्ष के दौरान सूर्य व राहू अथवा सूर्य अथवा केतु की युति होती है अथवा सूर्य पर राहू अथवा केतू की दृष्टि पड़ती है तो गज छाया योग निर्मित होता है। गज छाया योग में पितृकर्म, श्राद्धकर्म, तर्पण कर्म, पिण्डकर्म व पितृकर्म करने से पंचकोटी फल प्राप्त होता है। गज छाया में पितृकर्म करने से पितृगण को शांति प्राप्त होती है। इस समय कन्या का सूर्य राहु से पापाक्रांत है अतः गजछाया योग में किए गए श्राद्धकर्म या पितृकर्म को विधि पूर्वक करने से सभी प्रकार के पाप-शाप से मुक्ति पाई जा सकती है। 30 सितम्बर को तृतीया का श्राद्ध है। इसे महा भरणी भी कहते हैं। जिस भी व्यक्ति की मृत्यु तृतीय तिथि (शुक्ल पक्ष कृष्ण पक्ष) के दिन होती हैं उनका श्राद्ध इसी दिन किया जाता हैं।
श्राद्ध पक्ष पूजा विधि-
 सामग्री:
 कुशा, कुशा का आसन, काली तिल, गंगा जल, जनैउ, ताम्बे का बर्तन, जौ, सुपारी, कच्चा दूध -
    सबसे पहले स्वयं को पवित्र करते हैं जिसके लिए खुद पर गंगा जल छिड़कते हैं उसके उपरांत कुशा को अनामिका (रिंग फिंगर) में बाँधते हैं। जनेऊ धारण करे, ताम्बे के पात्र में फूल, कच्चा दूध, जल ले अपना आसान पूर्व पश्चिम में रखे व कुशा का मुख पूर्व दिशा में रखे हाथों में चावल एवं सुपारी लेकर भगवान का मनन करे उनका आव्हान करें। दक्षिण दिशा में मुख कर पितरो का आव्हान करें, इसके लिए हाथ में काली तिल रखे। अपने गोत्र का उच्चारण करें साथ ही जिसके लिए श्राद्ध विधि कर रहे हैं उनके गोत्र एवम नाम का उच्चारण करें और तीन बार तर्पण विधि पूरी करें अगर नाम ज्ञात न हो तो भगवान का नाम लेकर तर्पण विधि करें।
    तर्पण के बाद धूप डालने के लिए कंडा ले, उसमें गुड़ एवम घी डाले। बनाये गए भोजन का एक भाग धूप में दे उसके आलावा एक भाग गाय, कुत्ते, कौए, पीपल एवं देवताओं के लिए निकाले। इस प्रकार भोजन की आहुति के साथ विधि पूरी की जाती है।

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