Sunday 3 July 2016

आत्मविश्वास तथा आत्मनिर्णय का विकास कैसे......जाने ज्योतिष्य तथ्यों से

यह सच है कि मनुष्य को एक दूसरे के सहयोग की अपेक्षा होती है किंतु मनुष्य का सबसे बड़ा संबल उसका आत्मविष्वास ही होता है। निष्चित ही बच्चे को माता-पिता गुरू का संरक्षण एवं सहयोग आवष्यक है किंतु चलने के अभ्यास हेतु। चलना तथा गिरना तो बच्चे के विकास का अभिन्न अंग है। केवल माता-पिता, गुरू के सहयोग से आत्मविष्वास जागृत करें तथा स्वयं अपना दीपक बने और अपना कार्य पूर्ण ईमानदारी तथा आत्मविष्वास पैदा कर अपना, अपनो तथा समाज के हित में कार्य करें अर्थात् अप्प दीपो भव अथवा अपना दीपक स्वयं बनें। क्यो किसी जातक के इसकी क्षमता है अथवा कम क्षमता को विकसित कैसें करें कि आत्मविष्वास तथा आत्मनिर्णय का विस्तार हो सके इसके लिए किसी भी जातक की कुंडली में लग्न, दूसरे, तीसरे तथा एकादष स्थान के ग्रहों तथा इन स्थानों पर मौजूद ग्रहों का आकलन करने से ज्ञात होता है अगर किसी जातक की कुंडली में लग्न या तीसरा स्थान स्वयं विपरीत हो जाए अथवा इस स्थान पर क्रूर ग्रह हो तो ऐसे जातक के जीवन में आत्मविष्वास तथा आत्मसंयम की कमी के कारण जीवन में सफलता दूर रहती है इसी प्रकार एकादष स्थान का स्वामी क्रूर ग्रहों से पापक्रांत हो अथवा छठवे, आठवे या बारहवे स्थान में हो जाए तो ऐसे लोग अनियमित दिनचर्या के कारण अपनी योग्यता का पूर्ण उपयोग नहीं कर पाते अर्थात् स्वयं अपने जीवन में प्रकाष का समय तथा आवष्यकतानुसार उपयोग नहीं कर पाते जिसके कारण परेषान रहते हैं। इन सभी स्थितियों से बचने के लिए जीवन में आत्मसंयम तथा अनुषासन के साथ ग्रह शांति करनी चाहिए। बाल्य अवस्था में मंगल के मंत्रजाप तथा बड़ो का आदर तथा युवा अवस्था में शनि के मंत्रों का जाप, दान तथा अनुषाासन रखना चाहिए

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