Sunday 3 July 2016

पितृदोष और संतान बाधा

संसार में सबसे अधिक गौरवशाली उपाधि मां की ही है। और भारतवर्ष में तो प्रत्येक स्त्री मां बनना अपना परम सौभाग्य समझती है। किंतु कई बार भाग्य साथ नहीं देता। कई मां-बाप ग्रहों की प्रतिकूलता के कारण संतान सुख से वंचित रह जाते हैं। ग्रहों की प्रतिकूलता में एक महत्वपूर्ण योग है ‘पितृ दोष योग’। लग्न कुंडली में किन ग्रहों की स्थिति से पितृ दोष बनता है यह सामान्यतः सभी जानते हैं। किंतु अलग-अलग ग्रहों की स्थिति से निर्मित पितृदोष के उपाय भी पृथक -पृथक प्रणाली से किए जाने चाहिए। संतान प्राप्ति में बाधक पितृदोष कारक ग्रह का प्रभाव लग्न, पंचम, सप्तम एवं नवम भाव पर पड़ता है। पंचम भाव के साथ-साथ सप्तम भाव का विचार शुक्राणु एवं रज के लिए तथा भावत भावम सिद्धांत के अनुसार पंचम से पंचम नवम का अध्ययन आवश्यक है। धर्म एवं भाग्य से ही संतान प्राप्ति होती है अतः नवम भाव का अध्ययन अत्यंत आवश्यक हो जाता है। पितृदोष कारक ग्रहों की निम्न स्थितियों में पितृदोष होता है। - राहु का नवम भाव से संबंध, दृष्टि एवं राशि या नवमेश से संबंध। - बुध का नवम भाव से संबंध। - सूर्य एवं शनि का दृष्टि-युति संबंध अथवा राशि से संबंध। - चंद्र और बुध का राशि दृष्टि या युति संबंध - मेष, वृश्चिक, लग्न और लग्नस्थ मंगल। - गुरु एवं राहु का दृष्टि युति संबंध या राशि संबंध। इनके अतिरिक्त भी कुछ और योग हैं जो पितृदोष के कारक होते हैं। पितृदोष योग के सिद्धांतों पर गौर करें तो ज्ञात होता है कि ऐसे ग्रहों की परिस्थतियों से पितृदोष बनता है जो ग्रह पिता-पुत्र हैं जैसे सूर्य एवं शनि चंद्र एवं बुध, लग्न एवं मंगल (उल्लेखनीय है कि लग्न को पृथ्वी माना जाता है और मंगल को पृथ्वी पुत्र) तथा पापी ग्रह राहु एवं केतु। सूर्य जब मकर या कुंभ राशि में हो, शनि से दृष्ट हो या शनि के साथ हो तो सूर्य जनित पितृदोष होता है। बुध का नवम भाव से संबंध हो तो बुध जनित राहु का संबंध हो तो। राहु जनित पितृ दोष का अध्ययन करके उसके संतान प्राप्ति में बाधा कारक प्रभावों को जानना चाहिए।

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