Sunday, 19 June 2016

कुंडली से जाने क्यूँ नहीं बन पाता अपना घर......

क्यों नहीं बन पाता स्वयं का मकान जाने कुंडली से -
हर व्यक्ति की चाह होती है कि उसका अपना मकान है। आधी से ज्यादा दुनिया किराये के मकानों में रहती है और कई लोगो का पूरा जीवन अपने मकान का स्वप्न देखते हुए ही बीत जाता है तो कुछ किरायेदार, जबरदस्ती मकान मालिक बने बैठे हैं। इसका भी ज्योतिषीय कारक होता है। जन्मपत्री में भूमि का कारक ग्रह मंगल है। जन्मपत्री का चैथा भाव भूमि व मकान से संबंधित है। घर का सुख देखने के लिए मुख्यतः चतुर्थ स्थान को देखा जाता है। साथ ही गुरु, शुक्र और चंद्र के बल का विचार भी किया जाता है। जब चतुर्थेश उच्च का, मूलत्रिकोण, स्वग्रही, उच्च का शुभ ग्रहों से युत हो तो अवश्य ही मकान सुख मिलेगा। जब भी मकान से संबंधित इन क्षेत्रों का स्वामी षष्ठम स्थान में हो जाता है तो मकान से संबंधित ऋण अर्थात् किराया पटाने का योग बनता है अर्थात् मकान किराये पर रहता है अतः यदि इस प्रकार चतुर्थेष और षष्ठेष का योग किसी भी प्रकार से बना रहे तो व्यक्ति ताउम्र किराये के मकान में बिता देता है। वहीं यदि इस योग में चर राषि हो तो मकान बदलते रहने का योग बनता है और अचल राषि हेाने पर किराये का भी मकान स्थिर प्रवृत्ति का होता है। जब छठवे स्थान का स्वामी चतुर्थ स्थान में गुरू के साथ गोचर में आ जाए या इस प्रकार का योग बने तो किराये के मकान का ही स्वामी बनने का योग बनता है। इस प्रकार कुंडली के विष्लेषण से किराये के मकान में रहने या उसी मकान का स्वामी बनना ज्ञात किया जा सकता है।

Sitare Hamare Saptahik Rashifal 20 26 June 2016

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Tuesday, 14 June 2016

क्या आप अपना काम सहीं समय पर पूरा नहीं कर पाते -जाने अपनी कुंडली से -

क्या आप अपना काम सहीं समय पर पूरा नहीं कर पाते -जाने अपनी कुंडली से -
कई लोग अपना रूटिन का कार्य भी दौड़ते भागते पूरा करते हैं तो कई लोग बड़े इत्मीनान से सावधानी के साथ अपना कार्य गुणवत्ता के साथ पूर्ण करते हैं। कई बार लोग बिल की लाईन में भी अंतिम तिथि को पहुॅचते हैं और परेशान होते है। वहीं कुछ आराम से कार्य समय पर निपटाकर सुख से रहते हैं। समय की शक्ति अद्भुत है। धन से भी महत्वपूर्ण है, समय की संपदा। इसलिए समय को व्यर्थ न जाने दीजिए। समय ही महानता के उच्चतम शिखर तक चढ़ने का सोपान है और सूर्य जैसे ग्रहों के अनुरूप नियम तथा नियमित रह कर समय का सदुपयोग करने से ही सफलता प्राप्त हो सकती है अतः किसी की कुंडली में एकादष स्थान से उसके समय के मूल्य को आंका जा सकता है। जिस भी व्यक्ति की कुंडली में एकादष स्थान का स्वामी उच्च, शुभ तथा अनुकूल स्थान पर हो अथवा शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो ऐसा जातक अपने कार्य में नियमित होता है तथा यदि उसका तीसरा स्थान भी शुभ हो तो ऐसे जातक की एकाग्रता भी अच्छी होती है यदि इसके साथ ही भाग्य स्थान भी अनुकूल हो तो ऐसे जातक को सफलता प्राप्ति में आसानी होती है अतः यदि आपका भाग्य अनुकूल हो साथ ही तीसरा स्थान एकाग्रता भी दे रहा हो तो एकादष स्थान को अनुकूल करने से आपको अवष्य ही सफलता प्राप्त हो सकती है। यदि आप अपने समय का सदुपयोग ना कर पा रहे हों तो एकादष स्थान के स्वामी ग्रह तथा उस स्थान पर उपस्थित ग्रह की स्थिति तथा उस स्थान से संबंधित ग्रह की दषा और अंतरदषा की जानकारी प्राप्त कर उससे संबंधित ग्रह शांति, मंत्रजाप तथा दान से आप अपने जीवन में समय का सदुपयोग कर अपने जीवन में सफलता प्राप्ति का रास्ता आसान कर सकते हैं। साथ ही कालपुरूष की कुंडली के अनुसार शनि की शांति, मंत्रजाप तथा काली वस्तुओं के दान करने चाहिए।

आपकी महत्वाकांक्षा कहीं आपको पतन के मार्ग पर तो नहीं ले जा रहीं???

आपकी महत्वाकांक्षा कहीं आपको पतन के मार्ग पर तो नहीं ले जा रहीं???
महत्वाकांक्षा ही व्यक्ति से नैतिक-अनैतिक, वैधानिक-अवैधानिक, सामाजिक-असाजिक कार्य कराती है। महत्वाकांक्षी होना अच्छी बात है किंतु अति सर्वत्र वर्जयेत् अर्थात् अपनी सामथ्र्य से अधिक की चाह अथवा गलत तरीके से महत्वाकांक्षा की पूर्ति पतन की ओर ले जा सकती है। कई बार ये महत्वाकांक्षा कानूनी शिकंजे का कारण भी बनती है। कइ विषय पर्र बार सामान्य कारण तो कई बार कोई विवाद, कोई गुनाह, संपत्ति से संबंधित झगड़े इत्यादि का होना आपकी कुंडली में स्पष्ट परिलक्षित होता है। अगर इस प्रकार के कोई प्रकरण न्यायालय तक पहुॅच जाए तो उसमें जय प्राप्त होगी या पराजय का मुॅह देखना पड़ सकता है अथवा सामाजिक प्रतिष्ठा प्रभावित हो सकती है इसका पूर्ण आकलन ज्योतिष द्वारा किया जाना संभव है। सामान्यतः कोर्ट-कचहरी, शत्रु प्रतिद्वंदी आदि का विचार छठे भाव से किया जाता है। सजा का विचार अष्टम व द्वादश स्थान से इसके अतिरिक्त दसम स्थान से यश, पद, प्रतिष्ठा, कीर्ति आदि का विचार किया जाता है। साथ ही सप्तम स्थान में साझेदारी तथा विरोधियों का प्रभाव भी देखा जाता है। इन स्थान पर यदि कू्रर, प्रतिकूल ग्रह बैठे हों तो प्रथमतया न्यायालयीन प्रकरण बनती है। इनकी दशाओं एवं अंतदशाओं में निर्णय की स्थिति में जय-पराजय का निर्धारण किया जा सकता है। इसके साथ ही षष्ठेश एवं अष्टमेश किस स्थिति में है उससे किस प्रकार का प्रकरण होगा तथा क्या फल मिलेगा इसका निर्धारण किया जा सकता है। जिन ग्रहों की विपरीत स्थिति या परिस्थितियों में कष्ट उत्पन्न हों, उसके ग्रहों की स्थिति, दशाओं का ज्ञान कर उसके अनुरूप आवश्यक उपाय जीवन में कष्टों की समाप्ति कर जीवन सुखमय बनाता हैं

आपत स्थिति से बचाव हेतु करें महामृत्युंजय मंत्र जाप -

महामृत्युंजय मंत्र जप व उपासना का बहुत ही महत्व है। किसी प्रकार की अनिष्ट की आशंका हो अर्थात् अष्टमस्थ राहु की दशा चल रही हो, मारकेश आदि की दशा चल रही हो या लगने पर, किसी भी प्रकार की भयंकर बीमारी से आक्रान्त होने पर मतलब रोगेश की दशा, अंतरदशा, अपने बन्धु-बन्धुओं तथा इष्ट-मित्रों पर किसी भी प्रकार का संकट आने वाला हो। किसी प्रकार से वियोग होने पर, स्वदेश, राज्य व धन सम्पत्ति विनष्ट होने की स्थिति में, अकाल मृत्यु की शान्ति एवं अपने उपर किसी तरह की मिथ्या दोषारोपण लगने पर, उद्विग्न चित्त एंव धार्मिक कार्यो से मन विचलित होने पर महामृत्युंजय मन्त्र का जप स्त्रोत पाठ, भगवान शंकर की आराधना से सद्बुद्धि, मनःशान्ति, रोग मुक्ति एंव सवर्था सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है। काम्य उपासना के रूप में भी इस मंत्र का जप किया जाता है। यह मंत्र निम्न प्रकार से है-
एकाक्षरी (1) मंत्र- हौं। त्र्यक्षरी (3) मंत्र- ॐ जूं सः। चतुराक्षरी (4) मंत्र- ॐ वं जूं सः। नवाक्षरी (9) मंत्र- ॐ जूं सः पालय पालय। दशाक्षरी (10) मंत्र- ॐ जूं सः मां पालय पालय।
वेदोक्त मंत्र- महामृत्युंजय का वेदोक्त मंत्र निम्नलिखित है-
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृताम् ॥
इस मंत्र में 32 शब्दों का प्रयोग हुआ है और इसी मंत्र में ॐ लगा देने से 33 शब्द हो जाते हैं। इसे श्त्रयस्त्रिशाक्षरी या तैंतीस अक्षरी मंत्र कहते हैं। श्री वशिष्ठजी ने इन 33 शब्दों के 33 देवता अर्थात् शक्तियाँ निश्चित की हैं जो कि निम्नलिखित हैं।
इस मंत्र में 8 वसु, 11 रुद्र, 12 आदित्य 1 प्रजापति तथा 1 वषट को माना है। क्योंकि शब्द ही मंत्र है और मंत्र ही शक्ति है। इस मंत्र में आया प्रत्येक शब्द अपने आप में एक संपूर्ण अर्थ लिए हुए होता है और देवादि का बोध कराता है। अतः आपद स्थिति से बचाव हेतु महामृत्युंजय जप साधना ही एक मात्र उपाय है। इस प्रकार जीवन में कुछ भी असामान्य हो तो अर्थात् ग्रह दशाएॅ अनुकूल ना हो तो महामृत्युंजय जाप से कष्टों से बचा जा सकता है।

क्या आप बार बार असफल हो रहे हैं???? ले ज्योतिष्य सुझाव

ज्योतिषीय गुणाभाग द्वारा बचें असफल होने से -
जब भी असफलता या खराब रिजल्ट का सामना करना पड़ता है तब लगभग सभी इसका दोष दूसरो को या परिस्थिति या अपने भाग्य को दे तो देते हैं किंतु कभी भी आत्मविश्लेषण करने का प्रयास नहीं करते। जब भी किसी की कुंडली का परीक्षण किया जाए तो दिखाई देता है कि वह व्यक्ति यदि असफल है तो इसके पीछे का वास्तविक कारण क्या हो सकता है। जैसे कि किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु की दशा चल रही हो और उसकी कुंडली में राहु लग्न, तीसरे, अष्टम, भाग्य स्थान में हो तो उसके जीवन में निरंतर प्रयास की कमी तथा अपनी क्षमता का वास्तविक ज्ञान का अंदाजा लगाये बिना कम प्रयास तथा कम क्षमता के साथ बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के प्रयास में असफलता को दर्शाता है इसी प्रकार यदि शुक्र की दशा चल रही हो तो भौतिक संसाधन के प्रति झुकाव के कारण अपने लक्ष्य में निरंतर ना रहना भी असफलता का कारण हो सकता है। यदि शनि की दशा चले और शनि तीसरे, सातवे या दसम स्थान में हो तो मानसिक भटकाव के कारण सफलता में थोड़ी कमी रह जाती है। अतः यदि सफलता प्राप्त करनी है तो कुंडली का विश्लेषण कराया जाकर उक्त ग्रहो की शांति कराना चाहिए। चलित दशाओं के मंत्रों का जाप, दान एवं रत्न धारण करने से असफलता से बचा जाकर सफलता पायी जा सकती है।

क्या आपके होनहार बच्चे का प्रदर्शन खराब हो रहा है-दिखाएॅ कुंडली

क्या आपके होनहार बच्चे का प्रदर्शन खराब हो रहा है-दिखाएॅ उसकी कुंडली
स्कूल षिक्षा तक बहुत अच्छा प्रदर्षन करने वाला अचानक अपने एजुकेषन में गिरावट ले आता है तथा इससे कैरियर में तो प्रभाव पड़ता ही है साथ ही मनोबल भी प्रभावित होता हैं अतः यदि आपके भी उच्च षिक्षा या कैरियर बनाने की उम्र में पढ़ाई प्रभावित हो रही हो या षिक्षा में गिरावट दिखाई दे रही हो तो सर्वप्रथम व्यवहार तथा दैनिक रूटिन पर नजर डालें। इसमें क्या अंतर आया है, उसका निरीक्षण करने के साथ ही कुंडली किसी विद्धान ज्योतिष से दिखा कर यह पता करें कि क्या कुंडली में शनि, राहु या शुक्र प्रभावकारी है। यदि कुंडली में शनि, राहु या शुक्र दूसरे, तीसरे, अष्टम या भाग्यस्थान में हो साथ ही इनकी दषा, अंतरदषा या प्रत्यंतरदषा चल रही हो तो गणित या फिजिक्स जैसे विषय की पढ़ाई प्रभावित होती है साथ ही ऐसे लोगों के जीवन में कल्पनाषक्ति प्रधान हो जाती है। युवा उम्र का असर उस के साथ ही इन ग्रहो का प्रभावकारी होना एजुकेषन या कैरियर में बाधक हो सकता है। यदि इस प्रकार की बाधा दिखाइ्र दे तो शांति के लिए भृगुरा पूजन साथ ही हनुमान चालीसा का पाठ एवं नियमित तौर पर काउंसिलिंग कराने से कैरियर की बाधाएॅ समाप्त होकर अच्छी सफलता प्राप्त की जा सकती है।




युवा बच्चों का बिगड़ता हुआ व्यवहार.........उसके ज्योतिष्य उपाय

युवा बच्चो का व्यवहार तथा ज्योतिषीय उपाय-
हर अभिभावक की दिली तमन्ना होती है कि उनके बच्चो को कभी किसी चीज की कमी ना हों, जो उन्हें नहीं हासिल हुआ, उसका अभाव उनके बच्चे को कभी भी ना हों। इसी चाहत में वे मांग करने के पहले से ही अपने बच्चे की सभी ख्वाहिशे पूरी करने का प्रयास करते हैं। बच्चों को जरूरत से ज्यादा साधन संपन्न करने के कारण बच्चो में संघर्ष का भाव नहीं रह जाता, जिससे उन्हें अच्छा करने या बड़ा बनने की उत्सुकता नहीं पनप पाती और वे जीवन में सफल होने के लिए कोई प्रयास नहीं करते। अगर आपका भी बच्चा सभी सुख सुविधा में जी रहा है और मेहनत करने से जी चुरा रहा हो तो देखें कि क्या उसके व्यवहार में एक अच्छा नागरिक या समाज तथा परिवार के प्रति कर्तव्यबोध है यदि नहीं तो सबसे पहले उसके जीवन से सुखसाधन कम कर संर्घष का माहौल प्रदान करें। किसी भी बच्चे की कुंडली में अगर लग्न, तीसरे, एकादश अथवा द्वादश स्थान में राहु या शुक्र हो तथा युवा उम्र में इन ग्रह दशा चल जाये तो सुख सुविधा का दुरूपयोग होता है। इसी प्रकार यदि लग्न, तीसरे, पंचम, सप्तम, दशम स्थान में शनि हो तथा शनि की दशा चल जाए तो सुविधासंपन्न करना घातक हो सकता है। अतः अपने बच्चे की कुंडली दिखाने के उपरांत ही उसके जीवन में आवश्यक सुविधा का समावेश करें तथा इस प्रकार की ग्रह दशाओं में ग्रह की शांति के साथ अपने बच्चे की काउंसिलिंग कराना तथा भृगुराशांति कराना चाहिए। मंगल के मंत्रों का जाप करना भी आवश्यक उपाय है।




समाज पर बढ़ता व्यसन का असर.....

समाज पर बढ़ता व्यसन का असर और उसके ज्योतिषीय कारण और निवारण
किसी भी जातक के जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति के अलावा उसके ग्रह दषाओं के अनुरूप उसका व्यवहार तथा कर्म निर्धारित होता है... चूॅकि इंसान के जीवन में ग्रहो का प्रभाव होता है अतः ग्रहो की स्थिति एवं उनकी दशाएॅ अंतरदशाएॅ तथा उसकी ग्रह दषाओं का पूरा असर उसके जीवन पर दिखाई देता है...किसी भी व्यक्ति की मनःस्थिति के साथ उसके जीवन में परिस्थिति का बहुत महत्व होता है। अतः यदि किसी का तृतीयेश अथवा पंचमेश विपरीत कारक हो या सप्तमेश अथवा द्वितीयेश की स्थिति भी अथवा अनुकूल ना हो अथवा क्रूर ग्रहों से पापाक्रांत होकर छठवे आठवे या बारहवे स्थान पर हो जाए तो व्यक्ति कमजोर मानसिकता का होता है अतः ऐसी स्थिति में परेशानी या कष्ट की स्थिति में मानसिक संबल या परेशानी को दूर रखने के लिए व्यसन करने लगते हैं। कई बार शौक में भी व्यसन की आदत लत बन जाती है। इस प्रकार यदि व्यसन जीवन में परेशानी का सबब बन रहा हो तो ग्रह दशाओं का विश्लेषण कराया जाना चाहिए। उन ग्रह की शांति विशेषकर बुध की शांति, मंत्रजाप तथा दान करने से व्यसन से मुक्ति पाई जा सकती है।

आप क्यूँ अंधविश्वास के फेर में आ जाते है????

आप क्यूँ अंधविश्वास के फेर में आ जाते है???? जाने इसके ज्योतिष्य कारण व् उपाय
कोई छिक के डर से रूक जाता है तो किसी को बिल्ली का रास्ता काटना अपशकुन लगता है तो कोई टोक देने से नाराज हो जाता है ऐसी कई बातें हैं जो बहुत छोटी होते हुए भी कई बार हानि या परेशानी का सबब बन सकती हैं अतः किसी भी जातक में आस्था या विश्वास कब अन्धविश्वास में बदल जायेगा इसकी गणना उस जातक की कुंडली के नवम भाव से देखा जाता है यदि नवम भाव और तीसरा भाव कमजोर, नीच या क्रूर ग्रहों से पापाक्रांत हो तो व्यक्ति परेशानी या हताशा की स्थिति में आस्था से अंधविश्वास की राह में चला जाता है... यदि कोई व्यक्ति जरूरत से ज्यादा अंधविष्वासी हो तो उसके तीसरे तथा नवम स्थान का अंकलन कर उसके अनुरूप उपाय करने से इन अंधविष्वासों से छुटकारा पाया जा सकता है....कालपुरूष की कुंडली में नवम स्थान गुरू का है अतः जगत्गुरू श्रीकृष्ण की उपासना, पूजा तथा दही माखन का दान करने से इस प्रकार के अंधविश्वास से बचा जा सकता है...

क्या आपका बच्चा लगातार मोबाईल पर होता है????जाने ज्योतिष्य कारण व् उपाय

अगर आपका बच्चा लगातार मोबाईल पर होता है तो दिखाये उसकी कुंडली-
ये पूरा ब्रह्माण्ड चुंबकीय शक्ति पर ही टीका है इसका एक रूप इलक्ट्रोमेगनेटिक फोर्स भी है। वैज्ञानिक धारणाएँ भी हैं कि विनाश का कारण चुम्बकीय शक्ति का असन्तुलन है। मोबाइल टावर से निकालने वाली तरंगों से कई दिक्कतें हो सकती हैं। इससे सिरदर्द, सिर में झनझनाहट, लगातार थकान महसूस करना, चक्कर आना, डिप्रेशन, नींद न आना, आंखों में ड्राइनेस, काम में ध्यान न लगाना, कानों का बजना, सुनने में कमी, याददाश्त में कमी, पाचन की गड़बड़ी, अनियमित धड़कन, जोड़ों में दर्द, लंबे समय के बाद प्रजनन क्षमता में कमी, कैंसर, ब्रेन ट्यूमर और मिसकैरेज की आशंका भी हो सकती है। मोबाईल पर लगातार लगे रहना फोन पर बातें, गेम खेलना आजकल हर बच्चे का शौक बन गया है। कम उम्र में इस प्रकार की स्थिति लगातार बीमारी ही नहीं सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन को भी बाधित करती है। इस प्रकार मोबाईल पर लगातार व्यस्त रहने को अगर ज्योतिष से देखा जाए तो किसी भी व्यक्ति के लग्न, तीसरे अथवा एकादश स्थान में राहु हो तो ऐसी स्थिति में एडिकशन की हद तक चला जाता है। अतः राहु की शांति कराकर जीवन में आत्मनियंत्रण करने से परेशानी से बचा जा सकता है।

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Monday, 13 June 2016

पारिवारिक जीवन में कष्ट....कराएं पितृ दोषों की शांति

शुचिनाम श्रीमतां गेहे योग भ्रष्ट प्रजायते अर्थात् जो परम् भाग्यषाली हैं वे श्रीमंतो के घर में जन्म लेते हैं... जिन बच्चों का ग्रह नक्षत्र उत्तम होता है, उनका जन्म तथा परवरिष भी उसी श्रेणी का होता है... कहा तो यहाॅ तक जाता है कि जिस व्यक्ति के प्रारब्ध में कष्ट लिखा होता है उसका जन्म विपरीत ग्रह नक्षत्र एवं कष्टित परिवार में होता है... गरूड पुराण में वर्णन है और देखने में भी आया है कि जिनके प्रारब्ध उत्तम नहीं होते उन्हें बचपन से ही कष्ट सहना होता है.... उनका जन्म परिवार के विपरीत परिस्थितियों में होता है और जिन्हें बड़ी उम्र में कष्ट सहना होता है, उनका कार्य व्यवसाय या बच्चों का भाग्य बाधित हो जाता है... इससे जाहिर होता है कि आपका प्रारब्ध कभी ही आप पर असर दिखा सकता है...अतः अपने भाग्यवृद्धि तथा सुख समृद्धि हेतु अपने कर्म अच्छे रखने चाहिए..इसके साथ ही पितृदोष की शांति कराना चाहिए तथा अन्नदान करना चाहिए।

कैसे रखे खुद को सेल्फ मोटिवेट......ज्योतिष्य उपाय

किसी भी जातक का लग्न और तीसरा स्थान यदि उच्च, स्वग्रही या मित्रराषि में हो तो ऐसे लोग सेल्फ मोटिवेटिव होते हैं और अपनी उन्नति के लिए लगातार प्रयास करते हुए अपने कार्य में महारत हासिल करते रहते हैं। यदि गुरू या शुभ ग्रह लग्न में अनुकूल हो तो व्यक्ति को स्वयं ही ज्ञान व आध्यात्म के रास्ते पर जाने को प्रेरित करता है। यदि इसपर पाप प्रभाव न हो तो व्यक्ति स्व-परिश्रम तथा स्व-प्रेरणा से ज्ञानार्जन करता है। अपने बड़ों से सलाह लेना तथा दूसरों को भी मार्गदर्षन देने में सक्षम होता है। यदि गुरू का संबंध तीसरे स्थान या बुध के साथ बनें तो वाणी या बातों के आधार पर प्रेरित होकर सफल होता है वहीं यदि गुरू का संबंध मंगल के साथ बने तो कौषल द्वारा मार्गदर्षक प्राप्त करता है शुक्र के साथ अनुकूल संबंध बनने पर कला या आर्ट के माध्यम से उन्नति प्राप्त करता है चंद्रमा के साथ संबंध बनने पर लेखन द्वारा सफलता पाता है। अतः लग्न या तीसरे स्थान का उत्तम स्थिति में होना सफलता का द्योतक होता है। लग्नेष या तृतीयेष यदि 6, 8 या 12 भाव में हो तो प्रायः ऐसे लोगों को स्वप्ररेणा से वंचित ही रहना पड़ता है। वही यदि लग्न में राहु या शनि जैसे ग्रह हों तो बच्चा अपनी मर्जी का करने का आदि होता है, जो भी अनुषासन के बाहर रहकर कार्य करता है। अगर ऐसे जातको को जो किसी भी प्रकार से स्वप्रेरणा या स्वविवेक के अधीन कार्य करने के आदी नहीं होते, ऐसे बच्चे जिनके अभिभावक अपने बच्चों के पीछे लगकर उन्हें कार्य कराते हैं, उनकी कुंडलियों का विष्लेषण कराकर प्रारंभ से ही उनके जीवन में सेल्फ मोटिवेषन लाने का प्रयास करना चाहिए साथ ही अगर ऐसी स्थिति ना बने तो कुंडली के ग्रहों का विष्लेषण कराया जाकर उचित उपाय लेने से स्वयं कार्य करने तथा अनुषासन में रहकर उन्नति के रास्ते खुलते हैं।

करें पूर्ण समय का सदुपयोग....पाएं जीवन में सफलता......

समय की शक्ति अद्भुत है। खोया हुआ मान, स्वास्थ्य, भूली हुई विद्या, छिना हुआ धन फिर आ सकता है, परंतु बीता हुआ समय कदापि नहीं लौट सकता। धन से भी महत्वपूर्ण है, समय की संपदा। इसलिए समय को व्यर्थ न जाने दीजिए। समय ही महानता के उच्चतम शिखर तक चढ़ने का सोपान है और सूर्य जैसे ग्रहों के अनुरूप नियम तथा नियमित रह कर समय का सदुपयोग करने से ही सफलता प्राप्त हो सकती है अतः किसी की कुंडली में एकादष स्थान से उसके समय के मूल्य को आंका जा सकता है। जिस भी व्यक्ति की कुंडली में एकादष स्थान का स्वामी उच्च, शुभ तथा अनुकूल स्थान पर हो अथवा शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो ऐसा जातक अपने कार्य में नियमित होता है तथा यदि उसका तीसरा स्थान भी शुभ हो तो ऐसे जातक की एकाग्रता भी अच्छी होती है यदि इसके साथ ही भाग्य स्थान भी अनुकूल हो तो ऐसे जातक को सफलता प्राप्ति में आसानी होती है अतः यदि आपका भाग्य अनुकूल हो साथ ही तीसरा स्थान एकाग्रता भी दे रहा हो तो एकादष स्थान को अनुकूल करने से आपको अवष्य ही सफलता प्राप्त हो सकती है। यदि आप अपने समय का सदुपयोग ना कर पा रहे हों तो एकादष स्थान के स्वामी ग्रह तथा उस स्थान पर उपस्थित ग्रह की स्थिति तथा उस स्थान से संबंधित ग्रह की दषा और अंतरदषा की जानकारी प्राप्त कर उससे संबंधित ग्रह शांति, मंत्रजाप तथा दान से आप अपने जीवन में समय का सदुपयोग कर अपने जीवन में सफलता प्राप्ति का रास्ता आसान कर सकते हैं। साथ ही कालपुरूष की कुंडली के अनुसार शनि की शांति, मंत्रजाप तथा काली वस्तुओं के दान करने चाहिए।


जीवन में लिए गए निर्णय ही आपके भविष्य का निर्धारण करते हैं............

आपके निर्णय ही करते हैं आपके भविष्य का निर्धारण -
मनुष्य का जीवन उसके निर्णयों पर आधारित है। हर व्यक्ति को दो या अधिक विकल्पों में से किसी एक को चुनता है और बाद में उसका वही चुनाव उसके आगे के जीवन की दिशा और दशा को निर्धारित करता है। एक सही व सामयिक निर्णय जीवन को समृद्धि के शिखर पर पहुँचा सकता है तो गलत निर्णय बर्बादी के कगार पर ले जा सकता है। कुशलता का अर्थ ही सही काम, सही ढंग से, सही व्यक्तियों द्वारा, सही स्थान व सही समय पर होना है। निर्णय लेना अनिवार्य है किन्तु सही समय पर सही निर्णय लेना सक्षम व कुशल प्रबंधक का ही कार्य है। इसे हम ज्योतिषीय गणना में कालपुरूष की कुंडली द्वार उसके लग्नेष, तृतीयेष, भाग्येष और एकादषेष द्वारा देख सकते हैं। अगर किसी जातक की कुंडली में ये स्थान उच्च तथा उसके स्वामी अनुकूल स्थिति में हों तो उसके निर्णय सही साबित होते हैं और अगर क्रूर ग्रहों से आक्रांत होकर पाप स्थानों पर बैठ जाये तो निर्णय गलत हो जाता है। किंतु कई बार ऐसे विपरीत बैठे ग्रह दषाओं में लिए गए निर्णय बेहद कष्टकारी साबित होते हैं, जिसे कहा जा सकता है कि विनाष काले विपरीत बुद्धि। जैसे किसी की राहु की दषा प्रारंभ हो रही हो या होने वाली हो तो वह नौकरी छोड़ने या व्यापार करने का निर्णय ले ले, जिसमें हानि की संभावना शतप्रतिषत होती है।

क्या आपके इनकम में बार बाधाएँ आ रही है????????जाने ज्योतिष्य वजहों से........

जब आये इनकम में बाधा तब करें ज्योतिषीय उपाय -
आज के भौतिक युग में प्रत्येक व्यक्ति की एक ही मनोकामना होती है की उसकी आर्थिक स्थिति सुदृढ रहें तथा जीवन में हर संभव सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती रहे। किसी व्यक्ति के पास कितनी धन संपत्ति होगी तथा उसकी आर्थिक स्थिति तथा आय का योग तथा नियमित साधन कितना तथा कैसा होगा इसकी पूरी जानकारी उस व्यक्ति की कुंडली से जाना जा सकता है। व्यक्ति की कुंडली में क्रमशः दूसरे व ग्यारहवें भाव को धन स्थान व आय स्थान कहा जाता है। इसके साथ ही आर्थिक स्थिति की गणना के लिए चैथे व दसवें स्थान की शुभता भी देखी जाती है। यदि इन स्थानों के कारक प्रबल हों तो अपना फल देते ही हैं। निर्बल होने पर अर्थाभाव बना रहता है विशेषतर यदि धनेश सुखेश या लाभेश छठे आठवें या बारहवें स्थान में हो या इसके स्वामियों से युति करें तो धनाभाव कर्ज व परेशानी बनी ही रहती है। जब भी आय में बाधा आयें या खर्चे बढ़ने लगे तो अपनी कुंडली का विश्लेषण कराकर आवश्यक ज्योतिषीय उपाय लेना चाहिए। जिसमें विशेषकर ऋणमोचक मंगल स्त्रोत का पाठ, मंगल का व्रत तथा लाल वस्तुओं का दान करना चाहिए।

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Sitare Hamare Saptahik Rashifal 13 19 June 2016

Sunday, 12 June 2016

बदनामी का सामना क्यों करना पड़ता है........ जाने ग्रह दशाओं से

बदनामी किसी भी इंसान के लिए सबसे बुरा वक्त कहा जा सकता है। कई बार जीवन में आप कुछ भी गलत नहीं कर रहे होते हैं किंतु जब कालचक्र की गति विपरीत होती है, तब उसके निशाने पर आ ही जाते हैं। सामान्य वक्त में कुछ जातक जरूर कुछ गलत या कार्य या गतिविधियों में लिप्त होते हैं हालांकि तब उन पर कोई भी दाग प्रत्यक्षतः नहीं लगता और वह साफ-साफ बच निकलता है किंतु बुरा वक्त उन्हें भी नहीं छोड़ता और ऐसे में उनका छोटा अपराध भी जग जाहिर हो जाता है। एक और परिस्थिति तब आती है जबकि आप तो किसी के बारे में अच्छा सोचते हों और अच्छा करते भी हों किंतु वही इंसान आपके बारे में गलत धारणा बैठा ले.........राहु अथवा द्वितीयेश, तृतीयेश, अष्टमेश या भाग्येश के ग्रहों का संबंध या दृष्टि संबंध बने या शनि, गुरू जैसे ग्रह राहु से पापाक्रांत हो और उन ग्रहों की दशाएॅ चले तो व्यक्ति मतिभ्रम का शिकार बनता है, अपने को श्रेष्ठ समझने लगता है और परिणामस्वरूप उसके द्वारा अक्सर गलतियां ही होती हैं। राहु जब किसी क्रूर या पापी ग्रह के साथ होते हैं तो ऐसे में उनका बुरा प्रभाव अधिक भयावह रूप से सामने आता है..........यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली के अनुसार ऐसी स्थिति बने तो ऐसे में उसे कलंक, बेवजह बदनामी का सामना करना ही पड़ता है। यदि इस दरमियान किसे जातक का आचरण सही नहीं है तो उसे इसका दण्ड जरूर मिलता है......अतः जानते बुझते या अनजाने में भी इस प्रकार की स्थिति बन रही हो, तो जातक को पितृशांति करानी चाहिए। पापाक्रांत ग्रहों को शांत करने के लिए मंत्रजाप, दान तथा व्रत-पूजन करना चाहिए।

कठिन परिस्थितियों का सामना करें अपनी कुंडली के ग्रहयोग को मजबूत करें

जब जीवन की कठिन परिस्थितियां हमें लम्बे समय तक पीड़ा पहुंचाती है तो हम असहाय महसूस करने लगते हैं और जीवन में एक निराशावादी दृष्टिकोण अपना लेते हैं. हमारा दिमाग हमें यह विश्वास दिला देता है कि हमारी समस्याएं काफी गम्भीर है और इसे कभी भी खत्म नहीं किया जा सकता है कठिनाई एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत व्यक्ति सुदृढ़, प्रबुद्ध एवं अनुभवी बनता है। कठिनाइयाँ जीवन की कसौटी हैं, जिनमें हमारे आदर्श, नैतिकता एवं शक्तियों का मूल्यांकन होता है। मनुष्य जब तक जीवित है, उसे परिवर्तनशील उतार -चढ़ाव और बनने-बिगड़ने वाली अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना ही होगा। विपत्तियाँ संसार का स्वाभाविक धर्म है। वे आती हैं और सदा आती रहेंगी। इन कठिनाईयों के आने से निराषावादी बन रहे हों तो अपनी कुंडली के तृतीय भाव का विष्लेशण कराकर उस स्थान पर उपस्थित ग्रह और उसके स्वामी ग्रह की स्थिति का आकलन कर उन ग्रहों को अनुकूल बनाकर निराषावादी दृश्टिकोण से निकलकर आषापूर्ण प्रक्रिया को अपनाते हुए परिस्थितियों को अपनी क्षमता के अनुसार उपाय लेने से जीवन में उपस्थित कठिनाईयों से दूर रहा जा सकता है।

सफलता पाने के ज्योतिषीय मंत्र -

सफलता पाने के ज्योतिषीय मंत्र -
जिंदगी में सफलता पाने में दो चीजें बेहद अहम भूमिका निभाती हैं, समय और ᅤर्जा। सही समय पर अगर आप अपनी ᅤर्जा को सकारात्मक दिशा में मोड़ दें, तो दुनिया में कोई भी ताकत आपको आपकी इच्छित सफलता पाने से नहीं रोक सकता। आप की इस स्वप्न को पूरा करने में ज्योतिषीय गणना का बेहद अहम योगदान होता है। सबसे पहले आप पता करें की आपकी उर्जा की दिशा और दशा क्या है, इसके लिए अपनी कुंडली के लग्न, तीसरे एवं भाग्यस्थान के ग्रहों का विश्लेषण करालें साथ ही समय अर्थात् अपनी कुंडली में चल रही ग्रह दशाओं का आकलन कराकर पता लगा लें कि आपके लिए इस समय और इस समय की उर्जा किस क्षेत्र में आपके लिए सफलता का मार्ग प्रशस्त करेगी। इस प्रकार ज्योतिषीय गणना आपके जीवन में सफलता का स्वाद जरूर चखा देगी। अतः तत्काल ज्योतिषीय गणना करायें और मनचाही सफलता प्राप्त करें।

उच्च शिक्षा में विषय चयन में परेशानियाँ?????????ले ज्योतिष्य सलाह

किस विषय का चयन कर आगे पढ़े ????
अगर कोई जातक ग्यारहवीं में गया हो या फिर काॅलेज में आगे पढ़ाई जारी रखनी है तो हर किसी का एक ही सवाल होता है कि किस विषय में आगे पढ़ाई जारी रखी जाए। अगर यहीं प्रश्न आपके दिमाग में भी पैदा हो रहा हो तो अपनी कुंडली या अपने बच्चे की कुंडली दिखाकर यह ज्ञात कर लें कि आगे किस फिल्ड में पढ़ाई जारी रखी जाए जिससे लगातार सफलता मिले और पढ़ाई समाप्त होने के उपरांत रोजगार भी आसानी से और अच्छी प्राप्त हो सकें। तब सबसे यह देख लें कि आपकी भविष्य में क्या दशा चलने वाली है अगर काॅलेज में प्रवेश करते ही आपकी शुक्र, राहु अथवा शनि की दशा चलेगी तो निश्चित ही आपको पढ़ाई में बाधा आ सकती है अतः तकनिकी विषय में पकड़ अच्छी होने के बावजूद भी इन ग्रह दशाओं में सफलता प्राप्त करना मुश्किल होता है साथ ही अगर ये ग्रह लग्न, तीसरे, पंचम, सप्तम अथवा एकादश स्थान पर हों तो पढ़ाई में बाधा आती ही है। इसके अलावा आपकी कुंडली में उच्च के ग्रह कौन से हैं जो आपकी आय के साधन बनेंगे, उन ग्रहों से संबंधित विषय में पढ़ाई कर अपने जीवन में निरंतर सफलता प्राप्त की जा सकती है।

क्या लगातार आपके इलेक्टानिक उपकरण ख़राब हो रहे हैं????????ले ज्योतिष्य सलाह...............

क्या आपके यहाॅ इलेक्टानिक वस्तुएॅ लगातार खराब हो रही है -
ग्रह, नक्षत्र अपनके जीवन पर ही नहीं वरन् अपसे जुझी वस्तुओं पर भी पूरा प्रभाव डालते हैं। अगर आपका मोबाईल लगातार खराब हो रहा हों इसके अलावा आपके घर पर फ्रीज, आॅरो, टीवी, लाईट इत्यादि इलेक्टानिक वस्तुएॅ लगातार रिपेयर में जा रही हों अथवा एक चीज सुधरवाने पर दूसरी बिगड़ रही हो, तो यह बहुत सामान्य बात नहीं है। इस प्रकार से वस्तुओं के लगातार खराब होने का ज्योतिषीय कारक होता है। अगर आपकी भी इलेक्टानिक चीजें लगातार खराब हो रही हों अथवा एक के बाद एक चीजें मरम्मत में जा रही हों तो अपनी कुंडली का ज्योतिषीय विश्लेषण किसी विद्धान आचार्य से कराकर देख लें कि कहीं आपकी राहु की दशा तो नहीं चल रही है और आपकी कुंडली में राहु लग्न, दूसरे, तीसरे, छठवे, आठवे, भाग्य या एकादश स्थान पर तो नहीं है। अगर इन स्थानों पर राहु हो और राहु की दशा चलें तो घर पर अव्यवस्था चलती है और चीजें लगातार मरम्मत में जाती रहती है। अतः वस्तुओं के मरम्मत कराने के साथ राहु की शांति, सूक्ष्म जीवों की सेवा करनी चाहिए।

क्या आपके अपने बाॅस से नहीं पटती????????जाने ज्योतिष्य वजह...........

बाॅस से नहीं पटतीः ज्योतिषीय कारक-
कई बार अच्छा कार्य करने के बाद भी बाॅस खुश नहीं होते और कमी निकालते रहते है। किसी किसी को कार्यबोझ अधिक होने के बाद भी बाॅस छोटी-छोटी बातें जैसे छुट्टी स्वीकृत करना जैसे कार्यो के लिए भी सहयोग नहीं करते वहीं कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें बाॅस हर संभव सहयोग तथा कार्य ना करने पर ही पसंद करते हैं। इसके पीछे ज्योतिषीय कारण देखा जाए तो यदि किसी जातक के दशम स्थान जहाॅ से बाॅस तथा कर्म का क्षेत्र देखा जाता है। यदि उस स्थान का स्वामी सूर्य या शनि होकर किसी भी प्रकार से एक दूसरे से पापाक्रांत हो जाए तो ऐसे में बाॅस से कभी नहीं पटती उसी प्रकार यदि सूर्य या शुक्र अथवा गुरू या शुक्र हो जाए तो भी इसी प्रकार की स्थिति बनती है। इसी प्रकार यदि लग्न, चतुर्थ, अष्टम अथवा दशम स्थान में शनि हो तो ऐसे में बाॅस के साथ इगो के कारण नापंसदी बनती है। इस प्रकार यदि आपके भी बाॅस से पटरी नहीं जम रही हो तो अपनी कुंडली का विश्लेषण कराकर सूर्य, शनि जैसे ग्रहों की शांति कराकर अपने बाॅस से दोस्ती की जा सकती है।

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Saturday, 11 June 2016

क्यूँ होते है रिश्तों में अनबन??????जाने ज्योतिष द्वारा

प्रेम में पंगा क्यू ????
सृष्टि के आरंभ से ही नर और नारी में परस्पर आकर्षण विद्यमान रहा है, जिसे आधुनिक काल में प्रेम का नाम दिया जाता है। जब भी कोई अपनी पसंद रखता तब वह प्रेम करता है। यह प्रेम जब माता-पिता, भाई-बहनों, दोस्त-रिष्तेदारों से हो सकता है तब किसी से भी होता है। ज्योतिषीय रूप देखा जाए तो प्रेम करने हेतु लग्न, तीसरे, पंचम, सप्तम, दसम या द्वादष स्थान में शनि अथवा गुरू, शुक्र, चंद्रमा, राहु या सप्तमेष अथवा द्वादषेष शनि से आक्रांत हो तो ऐसे लोगों को प्यार जरूर होता है। चूॅकि शनि स्वायत्तषासी बनाता है अतः प्रेम के बाद स्वयं की स्वेछा से कार्य करने के कारण अपने प्यार से ही पंगा भी कर लेते हैं। अतः जो ग्रह प्यार का कारक है वहीं ग्रह प्यार में पंगा भी देता है। अतः अगर किसी के प्यार में पंगा हो जाए तो उसे तत्काल शनि की शांति कराना चाहिए। इसके साथ शनि के मंत्रों का जाप, काली चीजों का दान एवं व्रत करना चाहिए। इससे प्यार हो और वह प्यार निभ भी जाए

क्या आपको मन नहीं लगता?????जाने ज्योतिष्य उपाय................

मन नहीं लगता -
मन नहीं लगता या नहीं लग रहा ये अकसर सुनने में आता है। मन अति चंचल है। कहा जाता है कि मन के हारे हार है और मन के जीते जीत। अतः मन किसी व्यक्ति में इतना मायने रखता है। और कई बार मन कुछ भी करने को नहीं करता है। मन की भटकन को रोकने के लिए ज्योतिष कारगर साबित होता है। मन को हम कुंडली के तीसरे स्थान से देखते है। अगर किसी का तीसरा स्थान विपरीत स्थिति में या कू्रर ग्रहों के साथ हो तो ऐसा व्यक्ति मन के अधीन रहने का आदी होता है और अपने जीवन में अनुषासन नहीं रख पाता जिसके कारण सफलता प्राप्ति नहीं होती और परेषान रहता है। वहीं यदि किसी का तीसरा स्थान अनुकूल स्थिति में और सौम्य ग्रह हो या सौम्य ग्रह की दृष्टि हो तो ऐसे लोग हमेषा मन को काबू में रख पाते हैं। अतः यदि आपका मन भी बहुत चंचल हो तो अपने तीसरे स्थान के ग्रहों का विष्लेषण कराकर उस ग्रह की शांति कराना चाहिए साथ ही तीसरे स्थान का स्वामी बुध होता है अतः बुद्धि को साकारात्मक रखने एवं लगातार क्रियाषील रहने के लिए बुध से संबधित मंत्रजाप, दान करना भी मन को रूकने में सफल हो सकता है।

दान करें जीवन का कल्याण होगा

कीर्तिभवति दानेन तथा आरोग्यम हिंसया त्रिजशुश्रुषया राज्यं द्विजत्वं चाऽपि पुष्कलम। पानीमस्य प्रदानेन कीर्तिर्भवति शाश्वती अन्नस्य तु प्रदानेन तृप्तयन्ते कामभोगतः।। दान से यश, अहिंसा से आरोग्य तथा ब्राह्मणों की सेवा से राज्य तथा अतिशय ब्रह्मत्व की प्राप्ति होती है। जलदान करने से मनुष्य को अक्षय कीर्ति प्राप्त होती है। अन्नदान करने से मनुष्य को काम और भोग से पूर्ण तृप्ति मिलती है। दानी व्यक्ति को जीवन में अर्थ, काम एवं मोक्ष सभी कुछ प्राप्त होता है। कलयुग में कैसे भी दिया गया दान मोक्षकारक होता है। तुलसी दासजी ने कहा है- प्रगट चार पद धर्म कहि कलिमहि एक प्रधान येन केन विधि दिन्है दान काही कल्याण। दान की महिमा का अन्त नहीं संसार से कर्ण जैसा उदाहरण दानी के रूप में कोई नहीं। दान के विषय में चर्चा करने से पूर्व एक बात स्पष्ट करना चाहते है। कमाएं नीति से, खर्च करें रीति से, दान करें प्रीति से। ‘‘दान मगर कल्याण’’ यह वाक्य सामान्यतः हमें सुनने को मिल जाता है, किन्तु सामान्य व्यक्ति के मन में अनेकों प्रश्न उठ खड़े होते हैं- 1. दान क्या है ? 2. दान क्यों करें ? 3. दान का महत्व क्या है ? 4. दान कैसे करें ? 5. दान किसको करें ? 6. दान का फल क्या होता है ? परमात्मा ने प्रत्येक प्राणी को जीवित रहने के लिए, परिवार का पालन पोषण करने के लिए जीविका प्रदान की है लेकिन संसार में ऐसे प्राणियों की भी कमी नहीं है जो अत्यन्त निर्धन हैं, लाचार हैं, असहाय हैं, अपंग हैं तथा अशक्त हैं। उन प्राणियों के जीवन की रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है क्योंकि परम पिता परमेश्वर ने हमें इस योग्य बनाया है कि हम अपने परिवार के पालन पोषण के साथ-साथ, अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद भी, अन्य मजबूर तथा अशक्त लोगों की मदद कर सकें। मनुष्य के अतिरिक्त जीव-जन्तु जो स्वयं अपने भोजन की व्यवस्था नहीं कर सकते हैं, उनकी जिम्मेदारी भी भगवान ने मानव को दी है। इसलिए मानव मात्र का परम कर्तव्य है कि वह अपने परिवार के अतिरिक्त जीव-जंतुओं आदि के लिए भी भोजन का प्रबन्ध करे युग के अनुसार दान देने के तरीकों में भी परिवर्तन आया है जैसे- 1. सतयुग में दान- आदर के साथ श्रद्धापूर्वक किसी के घर जाकर दिया जाता था। यह उत्तम दान कहलाता है। 2. त्रेता युग में दान- इस युग में पात्र को अपने घर बुलाकर सम्मान पूर्वक दान दिया जाता था। 3. द्वापर युग में- याचना करने पर अर्थात मांगने के बाद दान दिया जाता था। 4. कलयुग में दान- तहलकर अर्थात काम लेने के बाद दान दिया जाता है जो लगभग निष्फल होता है । अतः हर युग में दान का महत्व रहा है। अलग-अलग ढंग से दान किया जाता रहा है परन्तु जब हमको ज्ञान हो चुका है तो क्यों न उत्तम प्रकार का दान आदर सहित दरिद्र के घर जाकर सम्मान पूर्वक दिया जाये, जिसका पूर्ण फल प्राप्त होता है। परमात्मा भी प्रसन्न होंगे तथा आपको भी खुशी मिलेगी। दान क्यों करें ? - लगभग सभी धर्मों के अनुसार हमें अपनी आय का कुछ भाग अवश्य ही दान करना चाहिए। ऐसा सभी धर्म ग्रन्थों में लिखा हुआ है तथा हम अपने पूर्वजों तथा बुजुर्गों से सुनते आए हैं कि हमें अपनी कमाई में से कुछ न कुछ भाग अवश्य ही दान करना चाहिए। भोजन बनाने के बाद भगवान को भोग लगाए बिना ग्रहण करना पाप समान माना जाता है। अतः भगवान को भोग लगाने के बाद आश्रित जीव-जंतुओं का भाग निकालना चाहिए। इस क्रिया को हम सभी के पूर्वज (दादी, नानी आदि) करते चले आए हैं। किसी भी त्योहार, तिथि विशेष (अमावस्या, पूर्णिमा, एकादशी आदि) पर तो ब्राह्मण, पंडित, पुजारी आदि को भोजन कराकर दक्षिणा देना हमारा परम कर्तव्य माना जाता है। हमारे शास्त्रों के अनुसार भी इस प्रकार से किया गया दान आवश्यक तथा उत्तम होता है। इस प्रथा को हम अपने आस पास सभी स्थानों पर देखते चले आए हैं। दान किसी पर अहसान करके नहीं करना चाहिए क्योंकि यह तो हमारी स्वेच्छा तथा श्रद्धा पर निर्भर होता है तथा दान देते समय अपने दुखों, कष्टों, दारिद्र््य आदि को कम किया जाना ही जातक का उद्देश्य होता है। अनिष्ट ग्रहों की शांति तथा विभिन्न प्रकार के कष्ट निवारण के लिए भी दान किया जाता है। अपनी आय का कुछ भाग दान करने से आत्म शुद्धि तथा धन की वृद्धि अवश्य ही होती है। यह परम सत्य है कि दान अपने स्वयं के कल्याण के लिए ही किया जाता है। दान से दरिद्रता दूर होती है, यहाँ तक कि अगला जन्म तक सुधर जाता है। दान देने से कभी भी कमी नहीं आती है क्योंकि किसी भी प्रकार से किया गया दान कभी भी खाली नहीं जाता है अपितु अगले जन्म तक उसका फल-प्रतिफल प्राप्त होता है। दान पुण्य कर्मों के एकत्रीकरण का उपाय भी है तथा अपने द्वारा किए गए अशुभ कर्मों का पाश्चाताप भी है। अशुभ कर्मों के निवारण के अनेकों सहज व सटीक उपाय हैं परन्तु उन सभी में सबसे महत्वपूर्ण उपाय दान है। अतः दान जब भी किया जाये सबको दिखाकर, प्रचार प्रसार करके कभी नहीं करना चाहिए, इस प्रकार से किया गया दान व्यर्थ हो जाता है क्योंकि सभी जानते हैं कि दान इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि एक हाथ से दान किया जाये तो दूसरे हाथ को पता भी न चले। इसीलिए हमारे समाज ने गुप्त दान को सबसे अधिक महत्वपूर्ण स्थान दिया है। इस सम्बन्ध में एक छोटी सी कथा प्रचलित है- सीताराम नामक व्यक्ति मृत्योपरांत जब यमराज के दरबार मे पहुँचा तो यमराज ने फैसला सुनाते हुये कहा कि आप नर्क में जाइए तो सीताराम अड़ गया कि मैं नर्क में नहीं जाऊँगा। मैंने तो पृथ्वी पर रहकर अनेकों धार्मिक कार्य किए हैं, असीमित दान किया है, अनेकों मंदिर, धर्मशालाएँ, विद्यालय आदि बनवाए हैं, अनेकों यज्ञ आदि किए हैं, निर्धनों को कम्बल बांटे हैं तथा अनेकों बार लंगर आदि की व्यवस्था की है तब फिर मुझे नर्क में क्यों भेजा जा रहा है। यमराज ने हँसकर कहा कि तुमने ठीक ही कहा है कि तुमने अनेकों धार्मिक तथा कल्याणकारी कार्य किए हैं, परन्तु तुमने वे सभी कार्य अपना नाम कमाने अर्थात अपनी प्रसिद्धि के लिए किए हैं। सीताराम तुमने ध्यान नहीं दिया कि तुमने स्थान-स्थान पर अपना नाम लिखवाया है अर्थात तुम्हारे द्वारा किया गया प्रत्येक दान स्वार्थ से परिपूर्ण था तथा स्वार्थ पूर्वक किया गया दान दान नहीं कहलाता है। अतः तुम्हें नर्क भोगना ही पड़ेगा। इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि दान हमेशा गुप्त रूप से करना चाहिए, दान के बारे में किसी को भी पता नहीं चलना चाहिए तभी हम दान के उचित फल के भागीदार होंगे। गीता में भी कहा गया है कि कर्म करके फल की इच्छा भगवान के ऊपर छोड़ देनी चाहिए। कहा भी है- दान दीन को दीजिये, जासे मिटे दरिद्र की पीर। औषधि वाको दीजिये, जासे होवे निरोगी शरीर ।। दान किसको दें ? -यह भी एक विशिष्ट प्रश्न है। दान देने के मुख्यतः दो नियम हैं जिनका हमें दान देते समय ध्यान रखना चाहिए - प्रथम - श्रद्धा तथा द्वितीय - पात्रता। श्रद्धा से तात्पर्य है कि हमारा कितना मन है अर्थात हमारी कितनी क्षमता है। क्षमता से कम या अधिक दिया गया दान दान नहीं अपितु पाप कहलाता है। इसको हम एक उदाहरण से भली भाँति समझ सकते हैं, यदि किसी जातक की क्षमता पचास रूपये दान करने की है तो उसे पचास रूपये ही दान करने चाहिए। पचास के स्थान पर दस रूपये अथवा सौ रूपये दान करना दान नहीं अपितु पाप है। दान कार्य शुद्ध तथा प्रसन्न मन से किया जाना चाहिए। बिना श्रद्धा के मुसीबत अथवा बोझ समझ कर दान कभी भी नहीं करना चाहिए, इससे तो अच्छा है कि दान कार्य किया ही न जाये। किसी को अहसान जताकर कभी भी दान नहीं देना चाहिए। शुद्ध हृदय से दान देने से अपने हृदय को भी शांति मिलती है तथा दान लेने वाला भी खुश होकर मन से दुआ देता है, यह जरूरी नहीं कि उस दुआ की शब्दों के द्वारा ही अभिव्यक्ति हो। दान का दूसरा नियम पात्रता है अर्थात हम दान किसको दे रहे हैं वह दान की हुई वस्तु का उपभोग कर पाएगा या नहीं। इस तथ्य को हम इस प्रकार से समझ सकते हैं कि किसी देहात में बान से बुनी चारपाई पर सोने वाले व्यक्ति को शहर में डनलप के गद्दे पर यदि सोने के लिए कहा जाये तो उसे सारी रात नींद नहीं आएगी करवटें ही बदलता रहेगा। इसी प्रकार गरीब भिक्षुक को जो फटे-पुराने वस्त्रों में रहता है यदि नया वस्त्र पहनने को दिया जाये तो वह वस्त्र उसको काटेगा, वह उस वस्त्र को पहन नहीं पाएगा या तो वह उसे बेच देगा या फेंक देगा, उसे तो फटे पुराने घिसे हुये ही वस्त्र पसन्द आएंगे। भरे पेट वाले को भोजन खिलाने से उसके मन से कोई दुआ नहीं निकलती है अपितु यदि भूखे पेट वाले दरिद्र व्यक्ति को भोजन खिलाया जाये तो वह पूर्णतः तृप्त होकर मन से दुआएँ ही देगा। दान भोजन का ही नहीं किसी भी वस्तु का हो सकता है। रोगी के लिए औषधि, अशिक्षित के लिए शिक्षा, भूखे को भोजन, निर्वस्त्र को वस्त्र कहने का तात्पर्य यह है कि जिस के पास जिस वस्तु की कमी है और वह उसको प्राप्त करने में असमर्थ है तो अमुक जातक को अमुक वस्तु की व्यवस्था करा देना भी दान ही श्रेणी में आता है। अतः दान देते समय विशेष ध्यान देना चाहिए कि दान उचित पात्र को ही दिया जाये। विभिन्न ग्रहों का दान किसको कब दें ? - दान क्या दें ? - नव ग्रहों की शांति के लिए ज्योतिष शास्त्र में अनेक उपाय सुझाए गए हैं जैसे- मंत्र, जाप, हवन, दान, औषधि स्नान, तीर्थ, व्रत, यंत्र-मंत्र, नग आदि। इनमें से दान सबसे सरलतम उपाय है जो जातक को अपनी कुण्डली विश्लेषण के उपरान्त अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए समय-समय पर करते रहना चाहिए। पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार मानव को सुख दुख प्राप्त होते हैं। मानव अनेकों प्रकार की समस्याओं का सामना करता रहता है। पूर्णतः कष्ट निवारण का तो कोई भी सामथ्र्य नहीं रखता है किन्तु उपाय दान आदि से कष्ट कम अवश्य हो जाता है। नवग्रहों से सम्बन्धित दान की जाने वाली वस्तुओं के विषय में यों अधिकांश लोग जानते हैं फिर भी जन साधारण की जानकारी के लिए यह जानकारी उपयोगी एवं आवश्यक सिद्ध हो सकती है। दान का फल किसी वस्तु का दान करने से क्या फल मिलता है, इसको हम निम्न तालिका से जान सकते हैं। जिस वस्तु या खाद्य पदार्थ का दान किया जाता है, उस दिन उसका भोग-उपभोग नहीं करना चाहिए। वस्तु या पदार्थ त्याग के दिन इच्छानुसार बढ़ाए जा सकते हैं, जैसे- तीन दिन, एक सप्ताह, एक माह अथवा चालीस दिन या चातुर्मास। यदि आपका धन कहीं अटका हुआ है तो- 1. पूर्णिमा के दिन चन्द्र ग्रह के निमित्त दान करें। 2. सोमवार के दिन सफेद वस्त्रों का दान करें। 3. मंगलवार के दिन चैराहे पर सरसों का तेल डालें। 4. बुधवार के दिन गणेश जी को लड्डू का भोग लगाकर बाल गोपालों को बांटे/दान करें। 5. शनिवार के दिन अदरक अथवा सरसों के तेल का दान करें। दान के नियम- 1. दान उचित पात्र को ही दें। 2. दान श्रद्धापूर्वक दें। 3. दान शुद्ध हृदय से दें। 4. दान किसी भी प्रकार का प्रचार करके न करें। 5. दान अपनी कुण्डली का विश्लेषण कराके उचित पात्र को दें। 6. दान दिन/ वार के अनुसार करें। 7. दान शत्रु ग्रहों का न करें। 8. दान उच्च के ग्रहों का न करें। 9. दान नीच के ग्रहों का अवश्य ही करें। 10. दान कुण्डली में स्थित षष्टम, अष्टम तथा द्वादश भावों के स्वामियों का हमेशा करें। 11. दान सवेरे के समय बिना मुंह जूठा किए अर्थात् बिना खाये-पिये ही करें। 12. दान घर से बाहर निकलते समय ही देना चाहिए। 13. दान अनजान/अजनबी व्यक्ति को ही करना चाहिए। 14. दान किसी दरिद्र व जरूरतमन्द को ही करें। 15. दान ऐसे व्यक्ति को करना चाहिए जो दोबारा न दिखे या न मिले। 16. दान की गई वस्तु को उस दिन ग्रहण न करें। 17. दान अपनी क्षमता के अनुसार ही करें। 18. दान करके कभी भी न जताएं। 19. दान इस प्रकार से करें कि एक हाथ से करें तो दूसरे हाथ को पता भी न चले। 20. दान करके भूल जाएं उसे कभी याद न करें। 21. दान का हिसाब न लगाएं।

अस्त ग्रहों का कुंडली पर प्रभाव

सूर्य को ग्रहों का राजा कहा जाता है। जो ग्रह सूर्य से एक निष्चित अंषों पर स्थित होने पर अपने राजा के तेज और ओज से ढंक जाता है और क्षितिज पर दृष्टिगोचर नहीं होता तो उसका प्रभाव नगण्य हो जाता है। भारतीय फलित ज्योतिष में ग्रहों की दस अवस्थाएं हैं। दीप्त, स्वस्थ, मुदित, शक्त, षान्त, पीडित, दीन, विकल, खल और भीत। जब ग्रह अस्त हो तो विकल कहलाता है। अस्त होने का दोष सभी ग्रहों को है। सूर्य से ग्रह के बीच एक निष्चित अंषों की दूरी रह जाने पर उस ग्रह को अस्त होने का दोष माना जाता है। चन्द्रमा जब सूर्य से 12 अंष के अंतर्गत होता है तो अस्त माना जाता है। इसी प्रकार मंगल 7 अंषों पर, बुध 13 अंषों पर, बृहस्पति 11 अंषो पर, शुक्र 9 अंष और शनि 15 अंष में आ जाने पर अस्त होते हैं। ये प्राचीन मान्यताएं हैं। वर्तमान में कुछ विद्वानों का मत है कि ग्रह को तभी अस्त मानना चाहिये जबकि वह सूर्य से 3 अंष या इससे कम अंषों की दूरी पर हो। जो ग्रह सूर्य से न्यूनतम अंषों से पृथक होगा उसे उसी अनुपात में अस्त होने का दोष लगेगा। चन्द्रमा और बुध अस्त होने की स्थिति:- बुध प्रायः अस्त रहता है क्योंकि वह सूर्य के निकट रहता है। यही कारण है कि इसे अस्त होने का दोष नहीं लगता। बुध और सूर्य की युति को बुधादित्य योग के नाम से जाना जाता है। यह एक शुभ योग है। चन्द्रमा पृथ्वी का उपग्रह है। प्रत्येक माह की पूर्णिमा के उपरांत चंद्रमा और सूर्य के मध्य के अंष कम होने लगते हैं। अमावस्या के समय चन्द्रमा और सूर्य लगभग समान अंषों पर होते हैं। चंद्रमा जब सूर्य से 12 अंशों से कम दूर होता है तो अस्त होने का दोष माना जाता है परन्तु चन्द्रमा को तभी शुभ फलदायी समझना चाहिये जबकि वह न्यूनतम 70 अंष दूर हो। यदि चंद्रमा और सूर्य के बीच इससे कम अंशों का अन्तर होता है तो चंद्रमा स्वयं बली न होकर उस राषि या ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है जिस से कि वह प्रभावित हो। यह शुभ स्थिति नहीं है। चंद्रमा जितना सूर्य के निकट होगा उतनी उसकी कलायें कम होंगी। अस्त ग्रह जीवन के दो पहलुओं पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। जन्म लग्न में विभिन्न भावांे से अलग-अलग पहलुओं को देखा जाता है। जब कोई ग्रह अस्त होता है तो उसके नैसर्गिक गुण प्रभावित होते हैं। साथ ही वह जिस भाव का स्वामी होता है उसके फलांे में भी विलंब करता है। जैसे यदि बृहस्पति अस्त है और वह सप्तमेष है तो न केवल स्त्री सुख में बाधा बल्कि जातक में भी विवेकषीलता का अभाव होगा। इस प्रकार जब शुक्र चतुर्थेष होकर अस्त हो और अष्टमस्थ हो तो जातक में यौन शक्ति का अभाव होता है। यौन रोग होते हैं, माता के सुख में न्यूनता आती है। वाहन और भवन सुख में भी कमी आती है। अस्त ग्रह को बली नहीं समझना चाहिये। यदि सूर्य से अस्त ग्रह का अंषात्मक अंतर 3 अंष से अधिक है तो अस्त होने का दोष नष्ट हो जाता है। अस्त ग्रह सदैव दुष्फल देते हैं। कुछ स्थितियां ऐसी भी होती हैं जबकि अस्त ग्रह जिसका वह स्वामी है, के लिये शुभ स्थिति में होता है। सभी भावों में गुण दोष होते हैं परन्तु त्रिक भावों में अषुभ फलों की अधिकता होती है। हमारे विद्वानों का मानना है कि अस्त ग्रह त्रिक भावों 6-8-12 में हों तो फलों की वृद्धि होती है अर्थात ये भाव अपने अषुभ परिणामों को प्रकट नहीं कर पाते। इसका दूसरा पक्ष भी है। जब इन भावों अर्थात 6-8-12 के स्वामी अस्त हों तो समृद्धि आती है और सफलता मिलती है। यह स्थिति विपरीत राजयोग होती है।

नक्षत्र और उसके द्वारा फलकथन

नक्षत्र तारा समूहों से बने हैं। आकाश में जो असंख्य तारक मंडल विभिन्न रूपों और आकारों में दिखलाई पड़ते हैं, वे ही नक्षत्र कहे जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र में ये नक्षत्र एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। इनमें हमारे सूर्य से भी कई गुना बड़े सूर्य तथा तारे हैं। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्रों की संख्या 27 मानी गई है, कहीं अभिजीत को लेकर 28 भी मानते हैं। 27 और 28 दोनों का उपयोग प्राचीन काल से आज तक हो रहा है। इनमें से प्रत्येक नक्षत्र का क्षेत्र 13 अंश 20 कला का है। इस प्रकार 27 नक्षत्रों में 360 अंश पूरे होते हैं। ‘अभिजित’ नक्षत्र का क्षेत्र इन्हीं के मध्य उत्तराषाढ़ा के चतुर्थ चरण और श्रवण के आरंभ के 1/15 भाग को मिला कर होता है। इसका कुल क्षेत्र 4 अंश 13 मिनट 20 सेकेंड है। नक्षत्रों का हमारे जीवन तथा हमारे व्यक्तित्व पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। हमारे जातक शास्त्र के अध्याय 9 श्लोक संख्या 85, 86, 87,88, 89, 90 तथा 91 में प्रत्येक नक्षत्र में जन्मे मनुष्य के स्वभाव तथा व्यक्तित्व के बारे में साफ-साफ लिखा है। श्लोक संख्या 85 अश्विन्यामतिबुद्ध वित्तविनयपज्ञ्र यशस्वी सुखी याम्यक्र्षे विकलोऽन्यदारनिरतः क्रूरः कृतघ्नो धनी। तेजस्वी बहुलोद्भवः प्रभुसमोऽमूर्खश्च विद्याधनी नक्षत्र तारा समूहों से बने हैं। आकाश में जो असंख्य तारक मंडल विभिन्न रूपों और आकारों में दिखलाई पड़ते हैं, वे ही नक्षत्र कहे जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र में ये नक्षत्र एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। इनमें हमारे सूर्य से भी कई गुना बड़े सूर्य तथा तारे हैं। रोहिण्यां। पररन्ध्रवित् कृशतनुर्बोधी परस्त्रीरतः।। अर्थात्- अश्विनी नक्षत्र में जन्म हो तो मनुष्य बहुत बुद्धिमान, धनी, विनीत, यशस्वी, सुखी होता है। भरणी नक्षत्र में जन्म हो तो विकल, बेहाल, परस्त्रीरत, क्रूर, कृतघ्न व धनी होता है। कृत्तिका नक्षत्र में तेजस्वी, राजा के समान, बुद्धिमान, विद्यारूपी धनवाला होता है। रोहिणी नक्षत्र में दूसरों के दोषों को जानने वाला, पतला शरीर, बुद्धिमान, परस्त्रीरत होता है। श्लोक संख्या 86 चान्द्रे सौग्यमनोऽदनः कुटिलदृक् कामातुरो रोगवान् आद्र्रा यामध्नश्चला ऽ कबलः क्षुद्रक्रियाशीलवान्। मूढ़ात्मा च पुनर्वसौ धनबलख्यातः कविः कामुकः तिष्ये विप्रसुरप्रियः सधनधी राजप्रियो बन्धुमान्।। अर्थात - मृगशिरा नक्षत्र में सौम्य विचारों वाला,भ्रमणशील, तीव्र नजरों वाला अर्थात् नजर से ही दूसरों को प्रभावित करने वाला, कामातुर, रोगी होता है। आद्र्रा नक्षत्र में धनहीन, चंचल विचारों वाला, बहुत बलशाली, निन्दित कार्य करने वाला होता है। पुनर्वसु नक्षत्र में किसी-किसी बात में अनाड़ी, प्रसिद्ध धनी, कवि हृदय व कामुक होता है। पष्य मबा्र ह्मणा व दवे ताआ का सत्कार करन वाला, धनी व बु द्धमानराजपिय्र , बंधु-बांधवों से युक्त होता है। श्लोक संख्या 87 सार्पो मूढ़मतिः कृतघ्नवचनः कोपी दुराचारवान् गर्वी पष्यरतः कलत्रवशगा मानी मधायां धनी। फल्गुन्यां चपलः कुकर्मचरितस्त्यागी दृढ़ः कामुको भोगी चोत्तरफल्गुनीभजनितो मानी कृतज्ञः सुधीः। अर्थात् - आश्लेषा नक्षत्र में मूढ़बुद्धि, कृतघ्नतापूर्ण वचन बोलने वाला, क्रोधी, दुराचारी होता है। मघा नक्षत्र में घमंडी, पुण्यकर्मों में रत, स्त्री क वश म रहन वाला, स्वाभिमानी, धनी होता है। पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में चंचल बुद्धि, कुकर्मी, त्यागी, दृढ़ विचारों वाला व कामुक होता है। उत्तराफाल्गुनी में भोगवान्, मानी, कृतज्ञ व सद्बुद्धि वाला होता है। श्लोक संख्या 88 हस्तक्र्षे यदि कामधर्मनिरतः प्राज्ञोपकर्ता धनी चित्रायामतिगुप्तशीलनिरतो मानी परस्त्रीरतः। स्वात्यां देवमहीसुरप्रियकरो भोगी धनी मन्दधीः गर्वी दारवशो जितारिरधिकक्रोधी विशाखोद्भवः ।। अर्थात् - हस्त नक्षत्र में सांसारिक भोगों में रत, बुद्धिमान, जनों का उपकारी, धनी होता है। चित्रा नक्षत्र में बहुत गुप्त रूप से आचरण करने वाला, छुपा रूस्तम, स्वाभिमानी, परस्त्री में रत होता है। स्वाति नक्षत्र में देवों व ब्राह्मणों का हितकारी, भोगवान, मंदबुद्धि, धनी होता है। विशाखा नक्षत्र में घमंडी, स्त्री के वश में रहने वाला, शत्रुजेता, अधिक क्रोधी होता है। श्लोक संख्या 89 मैत्रे सुप्रियवाग् धनी सुखरतः पूज्यो यशस्वी विभुः ज्येष्ठायामतिकोपवान् परवधूसक्तो विभुर्धार्मिकः। मूलक्र्षे पटुवाग्विधूतकुशलो धूर्तः कृतघ्नो धनी पूर्वाषाढ़भवोऽविकारचरितो मानी सुखी शान्तधीः।। अर्थात् - अनुराधा नक्षत्र म प्रियभाषी, धनी, सुखभोगों वाला, पूज्य, यशस्वी, समर्थ होता है। ज्येष्ठा नक्षत्र में बहुत क्रोधी, परस्त्री में रत, समर्थ व धार्मिक होता है। मूल नक्षत्र में कुशल वक्ता, शुभहीन, धूर्त, कृतघ्न व धनी होता है। पूर्वाषाढ़ नक्षत्र में विकृत चरित्रवाला, मानी, सुखी व शांत मन होता है। श्लोक संख्या 90 मान्यः शान्तगुणः सुखी च धनवान् व श् व क्ष जः प डितः श्राण् या द्विजदेवभक्तिनिरतो राजा धनी धर्मवान्। आ श् लुर्वसुमान् वसूडुजनितः पीनोरूकंठः सुखी कालज्ञः शततारको द्भवनरःशान्तोऽल्पभुक्साहसी।। अर्थात्- उत्तराषाढा़ नक्षत्र म मान्यवर, शान्तचित्त, गुणवान्, सुखी, धनी व विद्व न होता है। श्रवण नक्षत्र में ब्राह्मणों व देवताओं की भक्ति से युक्त, राजा, धनी व धार्मिक होता है। धनिष्ठा नक्षत्र में आशावान्, धनवान्, मोटी गर्दन वाला, सुखी होता है। शतभिषा नक्षत्र म उत्पन्न व्यक्ति समय की चाल को पहचानने वाला अथवा ज्योतिषी, शांत, कम खाने वाला, साहसी होता है। श्लोक संख्या 91 पूर्वप्रोष्ठपदि प्रगल्भवचनो धूर्तो भयार्तो मृदु श्चाहिर्बुध्न्यजमानवो मृदुगुणस्त्यागी धनी पंडितः। रेवत्यामुरूलांछनोपगतनुः कामातुर सुन्दरो। मंत्री पुत्रकलमित्रसहितो जातः स्थिरश्रीरतः।। अर्थात- पूर्वभाद्रपद नक्षत्र में प्रगल्भ वचन बोलने वाला, धूर्त, भयभीत, कोमल स्वभाव वाला होता है। उत्तरभाद्रपद में कोमल स्वभाव वाला, त्यागशील, धनी व विद्वान होता है। रेवती नक्षत्र में जन्म होने पर जांघों में चिह्न वाला, कामातुर, सुंदर, मंत्री (मंत्र प्रयोक्ता या सलाहकार), स्त्री, पुत्र, मित्रों से युक्त, स्थिर स्वभाव, धन लालसा वाला होता है।

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Friday, 10 June 2016

क्या शादी बार बार टूट रही है???????कराएं कुंडली विश्लेषण

शादी टूट रही हो तो करायें कुंडली का विष्लेषण -
विवाह की उम्र में अच्छा जीवनसाथी मिल जायें और विवाह तय हो जाएॅ। इससे ज्यादा खुशी का पल पूरे परिवार के कुछ नहीं होता किंतु कई बार सब कुछ अच्छा चलते चलते अचानक किसी मामूली बात पर भी रिश्ता टूट जाता है। सामाजिक तौर पर कारण चाहे जो भी बताया जाए, किंतु सच है कि ज्योतिषीय दृष्टि से देखा जाए तो किसी जातक की कुंडली में अगर लग्न, तीसरे, पंचम, सप्तम या दसम स्थान पर शनि हो अथवा गुरू, शुक्र, चंद्रमा जैसे सौम्य ग्रह शनि से आक्रांत हो अथवा शनि की दशा चल रही हो तो रिश्ता तय होकर टूट सकता है। अतः कुंडली का विवेचन किसी विद्धान ज्योतिष से कराकर पहले ग्रह शांति कराना चाहिए, इसके लिए लड़के का अर्क विवाह के साथ कात्यायनी मंत्र का जाप और लड़की का कुंभ विवाह के साथ मंगल का व्रत करने से विवाह लगने में आने वाली परेशानी से बचा जा सकता है साथ ही योग्य जीवनसाथी का साथ मिलने के योग बनते हैं।

बच्चों के व्यव्हार से परेशान ??????करे ज्योतिष्य उपाय.........

बच्चों के व्यवहार से परेषान होकर हाॅस्टल में डालने के फैसले पर करें पुर्नविचार और करायें कुंडली का विष्लेषण -
ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चे के व्यवहार तथा दोस्ती या गलत आदतों के कारण बच्चों को हाॅस्टल में डालने का फैसला करते हैं या बच्चा अपने दोस्तो का देखा देखी बाहर पढ़ने की जिद करता है। अगर ऐसा है, तो सोचने की बात है कि अगर आप अपने बच्चे को नियंत्रित नहीं कर पा रहे हैं और भी अभिभावको ने भी यहीं फैसला लिया होगा, जो अपने बच्चो से परेषान होंगे और ऐसे बच्चो का पूरा समूह एक जगह एकत्रित होकर आखिर क्या कर सकता है। आखिर बाहर पढ़ने के नाम पर दिखावा क्यों करें? लाखों खर्च करके बाहर के कथित संस्थानों में एडमिशन लेने की बजाय घर-शहर के करीब रहते हुए अपेक्षाकृत किसी बेहतर संस्थान में पढ़ाई करके भी करियर की राह चमकदार बनाई जा सकती है। किंतु बच्चें और कई बार अभिभावक भी इसके लिए सोचे बिना अपने बच्चें को घर से दूर भेजते हैं किंतु बाहर जाकर बच्चा पढ़ाई से दूर डिप्रेषन और गलत संगत का षिकार हो जाता है। अतः किसी भी बच्चे को घर से दूर रहने के लिए उसके ज्योतिषीय विष्लेषण कराया जाकर उसके लग्न, तीसरा और एकादष स्थान का विष्लेषण कराकर देखें कि अगर उसका तीसरा या एकादष स्थान छठवे, आठवें या बारहवें स्थान अथवा सातवें स्थान पर हो जाए तो ऐसे लोग दूसरों के उपर भरोसा कर अपना जीवन खराब कर बैठते है। अतः ऐसी स्थिति में दूर भेजने के अपने फैसले से पूर्व कुंडली दिखा लें।

रमल ज्योतिष

रमल प्रश्न ज्योतिष वास्तव में रमल ज्योतिष भारतीय मूल का शास्त्र है। नेपोलियन प्रश्न प्रणाली का मूल स्रोत भी रमल विद्या ही है। पांडवों के दरबार में मय भी इस विद्या में प्रवीण थे। परमपूज्य आद्य शंकराचार्य भी इस शास्त्र का गहन ग्यान रखते थे। रमल शास्त्र के आधार पर ही, राजा सुधन्वा के दरबार में बंद घट में क्या रखा गया था इसका सही सही जवाब दिया था। महाराष्ट्र के परम आध्यात्मिक गुरु एवं संत महात्मा गुलवणी महाराजजी की मृत्यु किस दिन होगी, इसे एक रमलज्ञ ने पहले ही बता दिय था। महाराष्ट्र की राजनीति के नेता श्रीसुधाकरराव नाईक मुखयमंत्री बनेंगे ऐसी भविष्यवाणी भालचंद्र विद्यालय की एक छात्रा ने रमलशास्त्र की सहायता से की थी जो सही निकली। श्री नाईक जी के बाद कौन बनेगा महाराष्ट्र का मुखयमंत्री इस का सही अनुमान भी इसी शास्त्र के सहारे निकाला था। नेपोलियन प्रश्नप्रणाली का मूल स्रोत भी रमलविद्या ही है। ईस्वीसन की पहली अथवा दूसरी सदी में अन्य विद्याओं के साथ अरब इस शास्त्र को अपने देश ले गए ऐसा हिंदुओं का दावा है। इस शास्त्र का प्रसार यवन मौलवियों ने किया इसलिये इसे 'यवनीय ज्योतिष' भी कहा जाता है। इस शास्त्र के प्रचार एवं प्रसार में आदम, दानियल, लुकमान, हाकीम आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। विश्वविजेता सिकंदर के साथ मौलवी सुरखाव हमेशा रहा करते थे। उसके अपने ज्योतिष सलाहकार मौलवी सुरखान हमेशा रहा करते थे। सिंकंदर के साथ वे भी भारत आए तब से इस शास्त्र का प्रचार प्रसार भारत में हुआ ऐसा यवनों का मानना है। जन कल्याण के लिये उपयुक्त अन्य शास्त्रों जैसा ही इस शास्त्र का उद्गम उमा-महेश्वर के द्वारा हुआ है। ऐसा माना जाता है । माता-पावर्ती ने भगवान शंकर से सर्वकालीन शास्त्रों का ज्ञान विशद करने की विनती की और इस शास्त्र का जन्म हुआ। द्वापर युग के उत्तरार्द्ध में किसी विद्वान युवक ने शिवजी की प्रखर आराधना की और शिवजी के प्रसन्न होने पर उनसे भूत, वर्तमान एवं भविष्य को जानने का ज्ञान प्राप्त होने का वरदान मांगा। शिवजी ने तब उसे 'पूर्व रचित रमल विद्या' के ज्ञान का वरदान दिया और कहा कि पृथ्वी पर इस ज्ञान के उद्गाता के रूप में तुम्हें सम्मान मिलेगा और तुम 'आदम' नाम से जाने जाओगे। यथा समय आदम के अनुयायियों ने इस विद्या का प्रचार एवं प्रसार किया। इसीलिये भारतीय इस बात का दावा करते हैं कि इस रमलविद्या का उदगम एवं इस शास्त्र का प्रसार भी यहीं पर हुआ है। पुरातन काल से पांसे इस्तेमाल होने की वजह से इसे रमलशास्त्र कहा जाता है ऐसा भी ज्ञानी लोगों का मानना है। हम भारतीयों की तरह यवन भी इस बात का दावा करते हैं कि यह शास्त्र उनके देश से ही सभी जगहों पर पहुंचा है। उनके अनुसार हजरत दानियल अल् हिस सलाम ने राजस्थान के रेगिस्तान में मुहम्मद पैगंबर की इबादत की ओर नेमते मांगी कि, '' या खुदा, भारत में इस्लाम को पुखता बनाने के लिये मुझ पर मेहर नजर कर। ऐसा इल्म दे कि जिसकी वजह से आम लोग मुझ पर बे-इंतिहा यकीन करें और मैं इस्लाम की जड़ें मजबूत कर सकूं।'' दानियल की इस प्रार्थना से खुश होकर हजरत जिब्राइल अलियस सलाम (पैगंबर के दूत) प्रगट हुए और उन्होंने दानियल को रेगिस्तान की रेती में अपने पंजों को हथेली की ओर से दबाने के लिये आज्ञा दी। उस दबास से रेती में जो आकृति निर्माण हुई उसी के गहरे अभ्यास से इस शास्त्र का निर्माण हुआ। रमल शब्द का अर्थ भी रेती है। चूंकि रेत में इस शास्त्र का निर्माण हुआ, इसलिए इसे 'रमल शास्त्र' कहा जाता है। यवन लोगों का यह दावा उनके द्वारा प्रचार एवं प्रसार करने की वजह से किया जाता है। दोनों पक्षों का विचार करने पर किस पर विश्वास जताया जाय यह मुद्दा विवादास्पद हो सकता है। सत्य कुछ भी हो हमारा मतलब तो इस शास्त्र के गहन अध्ययन से जुड़ा हैं। फिलहाल यह शास्त्र पिछड़ गया ऐसा लगता है। इसका एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि, प्रचलित समाज में इसके बारे में फैली अफवाएं ! उदाहरण के तौर पर यह कहा जाता है कि, इस शास्त्र के आधार से यदि भविष्य बतलाया जाय तब उस व्यक्ति के वंश का नाश (निर्वेश) हो जाता हैं, उस व्यक्ति का अंत काल दुःखद हो जाता है, उसे पागलपन के झटके लगते है, ईश्वर की अवकृपा होती है एवं उसके पूरे कुटुंब कबीले को बहुत से क्लेश एवं दुख झेलने पड़ते हैं। इसवी सन् बीस के शतक के मध्य से यह शास्त्र बड़ी तेजी से पिछड़ता गया। (केवल महाराष्ट्र में ही नहीं वरन् पूरे भारत भर में मिला कर कुल सात-आठ रमल विशेषज्ञ हैं। पिछले कुछ सालों से दो-तीन ज्योतिष संस्थाओं ने यह विषय प्रचार हेतु अपनाया है। रमल कुंडली में सोलह स्थान होते हैं जबकि फलित ज्योतिष कुंडली बारह स्थानों की होती है। कुंडली का यहां मतलब 'जंत्री' होता हैं। रमल जंत्री तैयार करने की अनेक पद्धतियों में से 'पासो' को फैंक कर तैयार होने वाली जंत्री की पद्धति सर्वश्रेष्ठ आंकी गई है। 'पॉसा' तैयार करने के लिये तांबा, पीतल, चांदी, निकल, सोना, सीसा और लोहा इन सात धातु का प्रमाणित मिश्रण इस्तेमाल होता है। इन पासों को तैयार करने की विघि का प्रमाण सहित, आकार एवं खुदाई सहित ''रमल प्रवेश'' नामक पुस्तक में दर्शाया गया है। रमल शास्त्र का मूलाधार-पृथ्वी, जल, तेज और वायु-चार तत्व हैं। इन चार तत्वों, नव ग्रह, और रमल जंत्री के सोलह स्थान आदि का मेल पाकर भविष्य कथन किया जाता है। कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नों के जवाब पाने के लिये एक बहुत ही सरल पद्धति का अवलंबन किया जाता है। जबाव अगर सही सही पाना हो तो प्रश्नकर्ता को प्रश्न भी आंतरिक सत्यता से पूछना अति आवश्यक होता है। अनुभव यही कुछ दर्शाते हैं। प्रस्तुत लेख में पासो के अलावा प्रश्न का उत्तर पाने के लिये बहुत ही आसान तरीका बताया गया है। पासों के बदले 1 से 16 अंक अलग-अलग लिखे हुए पत्तों का इस्तेमाल किया है। यह सोलह पत्ते आप ताश के पत्ताों से भी चुन सकते हैं। प्रत्येक पत्ते की एक ओर कागज चिपकाकर उस पर 1 से 16 अंक लिख लें। ताश के पत्तों के अलावा कोई भी सोलह पत्ते आप ले सकते हैं। उदाहरण सोलह व्जिीटिंग कार्डस, जिस पर 1 से 16 अंक लिखे हों। 1 से 16 अंक रमल जंत्री के सोलह स्थानों के तथा सोलह शकलों के निर्देशक हैं। जैसे अंक 1 लह्मान शकल, 2 अंक कबजतुल 3. खारीज शकल, 4 अंक जमात शकल, 5 अंक फरहा शकल, 9 अंक बयाज शकल, 5 अंक फरहा शकल, 6 अंक उकला हुमरा शकल, 9 अंक बयाज शकल, 10 अंक नुस्ततुल् खारीज शकल, 11 अंक नुस्ततुल् दाखील शकल, 12 अंक उत्पतुल खारीज शकल, 13 अंक नकी शकल, 14 अंक उत्पतुल दाखील, 15 अंक इज्जतमा शकल का, 16 अंक तारीख शकल का निर्देशक हैं। यह सोलह शकलों का विभाजन साबीन स्वरूप के चार, दाखील स्वरूप के चार, मुनाकलिब स्वरूप के चार और खारीज स्वरूप के चार शकलों में किया हैं। उसके नाम और क्रमांक - साबीत स्वरूप के चार शकल (जमात नामका शकल जिसका क्रमांक 9 है और इज्जतमा नामका शकल जिसका क्रमांक 15 है), दाखील स्वरूप के चार शकल (कबजतूल दाखील जिसका क्रमांक 2 है, अंकीश नामका शकल जिसका क्रमांक 11 है, नुस्ततुल दाखील जिसका क्रमांक 14 है) खारीज स्वरूप के चार शकल (लह्यान नामका शकल जिसका क्रमांक 1 है, कबजतूल खारीज नामका शकल जिसका क्रमांक 3 है, नुस्ततुल खारीज नामका शकल जिसका क्रमांक 10 है और उत्पतुल खारीज जिसका क्रमांक 12 है) मुनाकलीब स्वरूप के चार शकल (फरहा नामका शकल जिसका क्रमांक 5 है, उकला नामका शकल जिसका क्रमांक 13 है और तारीख नामका शकल जिसका क्रमांक 16 है। प्रश्नों का विभाजन 'आगम' और 'निर्गम' ऐसे दो हिस्सो में किया हैं। आगम स्वरूप के प्रश्नों का जबाब हां में आने के लिए 'साबीत' (जमात (4), हुमरा (8), ब्याज (9), इज्जतमा (15) ये) अथवा 'दाखील' (कबजतूल दाखील (11), उत्पतुल दाखील (14) ये) शकलों में से कोई भी एक शकल आना जरूरी है। उदाहरण के लिए नसीब में संतान सुख है या नहीं? क्या नौकरी मिलेगी? क्या मकान बनेगा? क्या नई कारकी खरीदी हो पाएगी? धनलाभ होगा? ऊर्जा मिलेगी ये प्रश्न आगम स्वरूप में आते हैं। अतः इस प्रकार के प्रश्नों का उत्तर हां में आने के लिये 2, 4, 7, 8, 9, 11, 14, 15 क्रमांकवाला कोई भी एक पत्ता आना चाहिए। 'निर्गम' स्वरूप के प्रश्नों का जवाब हां में आने के लिए खारीज (लह्यान (1) कबजतूल खारीज (3), नुस्ततुल खारीज (10) उत्पतुल खारीज (12) ये) अथवा मुनाकलीब (फरहा (5), उकला (6), नकी (13), तारीख (16) ये शकलों में से कोई भी एक शकल आना चाहिए। क्या रोग ठीक हो जाएगा? विदेश यात्रा होगी? किरायेदार मकान छोड़के जाएगा? ऋणमुक्त होने का अवसर है? ये प्रश्न निर्गम स्वरूप में आते हैं। अतः इस प्रकार के प्रश्नों का उत्तर हां में आने के लिए 1, 3, 5, 6, 10, 12, 13, 16 क्रमांकवाला कोई भी एक पत्ता आना चाहिए। अधिक स्पष्टीकरण के लिए निम्न उदाहरण दृष्टव्य है। 1 धन का लाभ होगा क्या? इस प्रश्न का हां में उत्तर आने के लिए प्रश्न कर्ता को 2, 4, 7, 8, 9, 11, 14, 15 क्रमांकवाला कोई भी एक पत्ता निकालना जरूरी है। प्रश्न 'आगम' स्वयप का रहने से दाखील या साबीत शकलों का क्रमांक आना जरूरी है। यहां नियम के अनुसार 2, 7, 11 और 14 क्रमांक दाखील शकल के स्वरूप के है। 4, 8, 9 और 15 क्रमांक साबीत शकल के स्वरूप के है। 2. क्या बीमारी से छुटकारा मिलेगा? इस प्रश्न का 'हां' में उत्तर आने के लिए प्रश्नकर्त्ता को 1, 3, 5, 6, 10, 12, 13, 16 क्रमांक वाला कोई भी एक पत्ता निकालना जरूरी है। प्रश्न निर्गम स्वरूप का रहने से जवाब हां में आने के लिए खारीज या मुनाकलिब शकलों का क्रमांक आना जरूरी है। यहां नियम के अनुसार 1, 3, 10 और 12 क्रमांक खारीज शकल के रूवरूप के हैं। 5, 6, 13 और 16 क्रमांक मुनाकलीब शकल क स्वरूप के हैं। प्रश्न का उत्तर पाने के लिये जातक ने (पृच्छक) सोलह पत्तों में से कोई भी एक पत्ता चुनना है। पत्ता चुनने का तरीका सोलह पत्ते फेंटकर जातक के सामने रखने के बाद, जातक उसमें का एक पत्ता चुन लेता है। अंक लिखा हुआ भाग नीचा होने से कौन सा अंक का पत्ता चुना जाता हे यह चुनने के समय मालूम नहीं होता है। पत्ता चुनने के बाद जो अंक आता है उस अंक के अनुसार उत्तर मिल जाता है। इस तरह आप किसी भी प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। इस भविष्य कथन में एक त्रुटि है; 'कालनिर्णय' इसमें नहीं किया जाता। जिस प्रश्न का उत्तर 'हां' या 'ना' में है उसके लिए ही यह 'रमल प्रश्न ज्योतिष' है। जिन्हें ज्योतिष नहीं आता उनके लिये तो वरदान है। वैसे भी 'रमल ज्योतिष' बहुत ही आसान है। कोई भी जिज्ञासु व्यक्ति केवल एक ही दिन में उसे सीख सकता है।

किस वस्तु का व्यापार करें किससे हो लाभ

व्यापार से धन कमाने के लिये किस माध्यम से प्राप्त होने का योग है, इसके लिए कुंडली लग्न अथवा चन्द्रमा से दद्गाम में कौन सा ग्रह बलवान है। उसी ग्रह के अनुसार व्यापार से धन प्राप्त होगा। लग्न तथा दद्गाम में कौन अधिक बलवान है। जो अधिक बलवान हो उससे दद्गाम में कौन सी राद्गिा पड़ती है। उस राद्गिा का स्वामी किस नवांद्गा में बैठा है उसका स्वामी जो ग्रह होगा, उसी ग्रह से संबंधित व्यापार से धन प्राप्त होगा। इनके अतिरिक्त यह भी देख लेना चाहिये कि नौकरी अथवा व्यापार किस दिद्गाा में सफल होगा। यदि ग्रह बलबान हो तो नौकरी अथवा व्यापार से धन आसानी से प्राप्त हो जाता है। किंतु नवांद्गा का स्वामी दुर्बल हो तो थोड़े धन की प्राप्ति होती है। किस दिद्गाा में व्यापार करने से धन की प्राप्ति होगी। इसके लिए दद्गाम स्थान में जो राद्गिा है, उससे संबंधित दिद्गाा में धन की प्राप्ति होगी। यदि यह राद्गिा या नवांश राद्गिा अपने स्वामी से युत या दृष्ट हो तो जातक अपने देद्गा में रहकर कार्य व्यापार से धनोपार्जन करने में सफल रहेगा। यदि दद्गामेद्गा स्थिर नवांश में हो तो जातक अपने देद्गा में रहकर कार्य-व्यापार से धनोपार्जन करने में सफल रहता है। किन्तु दद्गाम राद्गिा या नवांद्गा राद्गिा में अपने स्वामी के साथ और भी ग्रह बैठें हो या अन्य ग्रहों से दृष्ट हों अथवा भाव का स्वामी चर राद्गिा में हो तो विदेद्गा में व्यापार से ही भाग्योदय होता है अर्थात् ऐसा जातक अपनी जन्मभूमि में कार्य-व्यापार में सफल नहीं होगा। यदि भाग्येद्गा द्विस्वभाव वाली राद्गिायों जैसे मिथुन, कन्या, धनु, और मीन में हो तो जातक कभी घर, कभी परदेद्गा में रहकर दोनों जगह से धन कमा लेता है। यह भी विचार कर लेना चाहिए कि व्यापार में साझेदारी सफल रहेगी अथवा नहीं। यदि सफल होगी तो किस राद्गिा, नक्षत्र के व्यक्ति के साथ व्यापार करना उचित होगा। कौन से ग्रह दुर्बल हैं और कैसे उनको बलबान बनाया जाये ताकि कार्य व्यापार में मनवांछित सफलता प्राप्त हो सके। कुंडली में दद्गाा, अंतर दद्गाा देख लेनी चाहिये। व्यापार हेतु चयन किये गए स्थान अथवा नया निर्माण करवा रहे हैं, तब भी यह आवद्गयक है कि उसका वास्तु निरीक्षण करा लें यदि दोष हो तो पूर्व में समाधान करा लें। यदि असमंजस में है कि नौकरी करें या व्यापार करे, किससे धन कमा सकते है तो इसके लिये कुंडली के द्वारा विवेचना करा लेनी चाहिये। और यदि किसी प्रकार की कमी या दोष नजर आते हैं, तो उनका उपाय कर लेना चाहिये। कौन ग्रह किस व्यापार से लाभ करायेगा सूर्य-नौकरी द्वारा, सरकारी सेवा से ऊनी वस्त्र, दवा, धातु, मंत्र जप, सट्टा, चालाकी ,धोखा, झूठ बोलकर या किसी सम्मानित व्यक्ति की नौकरी करने आदि से। चन्द्रमा-जल से उत्पन्न पदार्थ जैसे मोती, मछली, सिंघाड़ा, खेती से, गाय, भैंस के दूध-दही, तीर्थाटन, किसी स्त्री के आश्रय से या वस्त्र की खरीद फरोखत आदि से। मंगल-लोहा, तांबा, विविध धातु व्यापार, विद्युत उपकरण, पुलिस सेवा, फौज, डकैती, सर्राफ, रेस्टोरेन्ट, शस्त्र के द्वारा, साहस के कार्यों से , मुखबिरी या चोरी आदि से। बुध-पुस्तक लेखन, ज्योतिष, पांडित्य, वेद पाठ, लेखाकार, कम्प्यूटर, गणित, दलाली आदि से। गुरु-ब्राहणों के आश्रय से, देवालय, मठ, मंदिर, राजदरबार, धार्मिक व्याखयान, ब्याज, बैंक, व्यापार आदि। शुक्र-कंप्यूटर, दूरसंचार, फिल्म जगत, सौन्दर्य प्रसाधन, वाद्ययंत्र, महिला, नेत्री, अभिनेत्री, कविता, गीत-संगीत, भोग विलास के अन्य साधन आदि। शनि-नौकरी करें, नौकरो से काम करायें, नीच जन, दुष्टजनों से धन प्राप्त हो, रिद्गवत, अन्याय, अधर्म, लकड़ी, फर्नीचर आदि के कार्यों से।

अंक ज्योतिष का विभिन्न ज्योतिषीय विधाओं से संबंध

ब्रह्मा द्वारा रचित इस सृष्टि में सूक्ष्म से सूक्ष्मतर सभी किसी न किसी रूप में सामंजस्य रखते हैं। हमारी भारतीय आध्यात्मिक परंपराएं, अंकों के शुभ-अशुभ फलों का समन्वय जहां विश्व के अन्य धर्मों के साहित्य एवं मान्यताओं से समानता रखता है वहीं हस्त, ज्योतिष, वास्तु एवं फलित ज्योतिष सभी में अंक शास्त्र का प्रभाव देखा जा सकता है। आइए जानें अंकशास्त्र का विभिन्न ज्योतिषीय विद्याओं के साथ आपसी संबंध... हमारे ऋषि अगस्त्य, ऋषि पराशर रूपी महान वैज्ञानिकों ने हजारों वर्ष पूर्व से ही पौराणिक ग्रंथों के विवरणों तथा प्रचीन परंपराओं के इतिहास को इस भारतीय उपमहाद्वीप को विभिन्न ज्योतिषीय पद्धतियों का इन विद्याओं का केंद्र बनाया था। विश्व के प्राचीन साहित्य, पूर्व एवं वर्तमान समय के परंपराओं के इतिहास की ओर यदि दृष्टि डालें तो विभिन्न ज्योतिषीय पद्धतियों यथा फलित ज्योतिष, सामुद्रिक ज्योतिष, हस्त ज्योतिष, अंक ज्योतिष एवं वास्तु विद्यायें संपूर्ण विश्व तक केवल फैली हुई ही नहीं, वरन् इनमें आपसी तौर पर परंपरागत समानताएं भी पाई गई है। जैसे भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं में अंक 7 को शुभ माना जाना, 7 वार, 7 चक्र, 7 दिन, विवाह में अग्नि के 7 फेरे, 7 द्वीप (सप्त द्वीप), 7 पाताल। इसी भांति यहूदियों की धार्मिक परंपराओं में भी अंक 7 की महत्ता तथा 7ग7त्र49 की संख्या को भी काफी प्रभावशाली माना जाता है। अंकशास्त्र की यह विद्या मूलांक, भाग्यांक एवं नामांक जैसी तीन पद्धतियों में प्रचलित है। सदियों से मानव जाति का स्वभाव ऐसा रहा है कि वह प्रत्येक बार कुछ नया जानना चाहता है। आसानी से प्रत्येक मनुष्य संतुष्ट नहीं होता। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से विश्लेषण करने पर यह ज्ञात होता है कि मानव की उपर्युक्त जिज्ञासा ने ही उसे ज्योतिष शास्त्रों के विभिन्न विद्याओं के गंभीर रहस्योद्घाटन के लिए प्रवृत्त किया है। इस शास्त्र की परिभाषा समय-समय पर विभिन्न रूपों में मानी जाती रही है। समय के साथ-साथ यह परिभाषा और अधिक विकसित होती गई। नक्षत्रों की आकृति, स्वरूप, गुण एवं प्रभाव का परिज्ञान प्राप्त करना ज्योतिष माना जाने लगा। आदि काल में नक्षत्रों के शुभाशुभ फलानुसार कार्यों का विवेचन एवं ऋतु, अयन, दिनमान लग्नादि शुभाशुभ अनुसार विधायक कार्यों को करने का ज्ञान प्राप्त करना भी इस शास्त्र की परिभाषा में परिणित हो गया। सूर्य प्रज्ञप्ति, ज्योतिष करण्यक, वेदांग ज्योतिष, हस्त ज्योतिष, अंक ज्योतिष, प्रश्न ज्योतिष आदि। प्रभृति ग्रंथों के प्रणयन तक ज्योतिष के गणित और फलित ये दो भेद स्पष्ट नहीं हुए थे और ये परिभाषायें केवल यहीं तक सीमित नहीं रहीं, अपितु ज्ञानोन्नति के साथ-साथ विकसित हुई। राशि और ग्रहों के स्वरूप, रंग, दिशा, तत्व, धातु आदि के विवेचन भी इसके अंतर्गत आ गये। समय के साथ-साथ इस विषय के अनेकों गं्रंथ हाथों में आये। होरा ग्रंथों में जातक के जन्म नक्षत्रों, जन्म लग्नादि व द्वादश भावों के बारे में ज्ञान हुआ, मध्य युग में संहिताओं की परिभाषा, होरा, गणित और शकुन-अपशकुन के रूप मंें मानी गई। किंतु संहिता शास्त्र का जन्म आदिकाल से ही हुआ था जिसकी परिभाषाओं का क्षेत्र उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया। इसी भांति प्रश्नशास्त्र, तत्काल फल बतानेवाला शास्त्र साबित हुआ। ऋग्वेद संहिता में ‘चक्र’ शब्द सामने आया जो राशि चक्र का बोधक है। इसी भांति उत्तरोत्तर ज्योतिष शास्त्र की कई शाखाएं विकसित होती गई जैसे सामुद्रिक शास्त्र, प्रश्नशास्त्र, अंक शास्त्र, लाल किताब, संहितादि। फलित ज्योतिष के साथ-साथ धीरे-धीरे अधिकांश विद्वानों का ध्यान बहुत प्राचीनकाल से ही सामुद्रिक शास्त्र, अंकशास्त्र और वास्तुशास्त्र के समानताओं की ओर गया और इन पर उन्होंने अनेकानेक शोध किये और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि ”किसी भी परिणाम का प्रारंभ और अंत अंक ही है। अंक शास्त्र से यह जाना जा सकता है कि जातक/जातिका के लिए भूत, भविष्य, वर्तमान समय में क्या कुछ उनके जीवन में घटित हुआ, हो रहा है और होगा ? अंक ज्योतिष का वर्तमान रूप पाश्चात्य सभ्यता की देन है, जिसके अंतर्गत इस्वी सन की तारीख से मूलांक, तारीख, माह, और सन के अलग-अलग अंकों के योग के संपूर्ण योग से भाग्यांक और अंग्रेजी के अक्षरों के अंकों को जोड़कर नामांक ज्ञात कर फलादेश किया जाता है। इनमें विभिन्न विद्वानों के नामांक अंक कुछ भिन्न हैं। कुछ आधुनिक विद्वानों ने सामुद्रिक शास्त्रानुसार कई जातक/जातिकाओं के हाथों की रेखाओं व विभिन्न ग्रहों के पर्वतों का अध्ययन कर उनके मूलांक, भाग्यांक एवं नामांक का विश्लेषण कर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि किस अंक से कौन-कौन अंक प्रभावित हैं ? उनके तथ्यों के आधार पर मैंने भी कुछ जातक/जातिकाओं के हस्तरेखाओं एवं विभिन्न ग्रहों के पर्वतों का अध्ययन कर उनके मूलांक/भाग्यांक /नामांक का विश्लेषण कर इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि अंकशास्त्र, सामुद्रिक शास्त्र एवं उनके घर के वास्तु सामंजस्य संबंधी फलादेश में बहुत ही समानताएं हैं और खास करके उनके करियर निर्धारण संबंधी फलादेश में भी बहुत सी समानताएं हैं। अंकशास्त्र, सामुद्रिक शास्त्र एवं वास्तुशास्त्र में समानताएं अंकशास्त्र, हस्तरेखा शास्त्र एवं वास्तु शास्त्र के आधार पर विभिन्न मूलांकों के जातक/जातिकाओं का तुलनात्मक अध्ययन निम्नानुसार प्रस्तुत कर रहा हूं। सुविज्ञ पाठक/साधक/विद्वान इसका अध्ययन कर अपनी-अपनी हस्तरेखाओं व मूलांक/भाग्यांक/नामांक, निर्धारण कर अपने वर्तमान एवं भविष्य को सुधार सकते हैं। ऐसा करके मुझे कृतार्थ कर अनुगृहीत करने की कृपा करेंगे। मूलांक 1 तारीख: 1, 10, 19, 28, मित्र अंक: 2, 3, 6, 7, 9 सम अंक: 1, 8 शत्रु अंक: 4, 5 पति-पत्नी मित्र अंक: 2, 7, 5 पति-पत्नी सम अंक: 3, 9, 4 पति-पत्नी शत्रु अंक: 6, 8 यदि किसी जातक की हथेली में सूर्य पर्वत व सूर्य रेखा साफ सुथरी हो और उसकी संख्या एक से अधिक हो, सूर्य रेखा, भाग्य रेखा या जीवन रेखा में विलीन हो रही हो तो वह जातक/जातिका सूर्य प्रधान होता है। ऐसे जातक/ जातिकाओं का जन्म अवश्य ही 1, 10, 19 या 28 तारीख को हुआ होता है। सूर्य रेखा पर छोटा वृत्त या साफ-सुथरा त्रिभुज हो व उसके नीचे साफ-सुथरी सूर्य रेखा हो तो भी ऐसे जातक का सूर्य बहुत सशक्त होता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार ऐसे जातक के गृह आवास के शुभ रंग सुनहरे, पीलीे एवं तांबाई सुनहरे, भूरे रंग से संबंधित होते हैं। ऐसे लोग अत्यधिक मेहनती होते हैं। ये सरकारी नौकरी, राजनीति, समाज सेवा आदि क्षेत्रों में उन्नति करते हैं। मूलांक 2 तारीख: 2, 11, 20, 29, मित्र अंक: 1, 2, 4, 6, 7, 9 सम अंक: 3, 8 शत्रु अंक: 5 पति-पत्नी मित्र अंक: 5, 6, 8 पति-पत्नी सम अंक: 1, 4 पति-पत्नी शत्रु अंक: 7, 9 यदि किसी जातक की हथेली में चंद्र पर्वत उत्तम हो, उस पर कटाव न होकर आड़ी रेखाएं हों व साफ सुथरी हों तो ऐसे जातक/जातिकाओं के जन्म अवश्य ही 8, 11, 20 या 29 तारीख को हुआ होता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार ऐसे जातक के गृह आवास के शुभ रंग हल्के से गहरे, हरे, सफेद व क्रीम रंग से संबंधित होते हैं। ऐसे व्यक्ति विशिष्ट कल्पना शक्ति संपन्न होते हैं। ये अधिकांशतः आर्किटेक्ट, डिजाइनर व फिल्म निर्देशक होते देखे गए हैं। मूलांक 3 तारीख: 3, 12, 21, 30 मित्र अंक: 1, 5, 6, 9 सम अंक: 2, 4, 7 शत्रु अंक: 3, 8 पति-पत्नी मित्र अंक: 2, 7, 8, 9 पति-पत्नी सम अंक: 1, 4 पति-पत्नी शत्रु अंक: 5, 6 यदि किसी जातक/जातिकाओं की हथेली में गुरु पर्वत उभरा हुआ हो व शनि पर्वत की ओर से थोड़ा उभार लिए हुए हों, गुरु की अंगुली सूर्य की अंगुली से बड़ी हो, सीधी हो तो ऐसे जातक/जातिकाएं गुरु प्रधान होते हैं। ऐसे लोगों का जन्म अवश्य ही 3, 12, 21 या 30 तारीख को हुआ होता है। धन, शिक्षा एवं आय के साधन ऐसे लोगों को प्रचुर मात्रा में प्राप्त होते हैं। वास्तु शास्त्रानुसार ऐसे जातक के गृह आवास के शुभ रंग-पीले, परपल, गुलाबी और जामुनी रंगों से संबंधित होते हैं। ऐसे लोगों में बचपन से ही नेतृत्व करने की क्षमताएं होती है। ये मरते दम तक सामाजिक कार्यों में लगे रहते हैं। साहस, शक्ति, दृढ़ता और आत्मविश्वास आदि के ये धनी होते हैं। ऐसे लोग अपने परिवारों मित्रों व स्वजनों की सहायता करने में अग्रणी होते हैं। अपनी विलक्षण प्रभाव क्षमता से ये शत्रु को भी अपना मित्र बना लेते हैं। मूलांक 4 तारीख: 4, 13, 22, 31, मित्र अंक: 2, 4, 6, 7, 8, 9 सम अंक: 3, 5 शत्रु अंक: 1 पति-पत्नी मित्र अंक: 2, 5, 7 पति-पत्नी सम अंक: 1, 9 पति-पत्नी शत्रु अंक: 1, 6, 8 यदि किसी जातक/जातिका के हाथ में गुरु पर्वत उठा हुआ हो और उस स्थान पर कटाव न हो, शनि पर्वत के नीचे हृदय रेखा व मस्तिष्क रेखा के नीचे का राहु पर्वत उच्च हो, उस पर्वत पर कोई भी दोष न हो या उस पर त्रिभुज या चतुष्कोण हो तो ऐसे जातकों का जन्म अवश्य ही 4, 13, 22, 31 तारीख को हुआ होता है। वास्तुशास्त्रानुसार ऐसे जातक एवं उनके गृह आवास के शुभ रंग स्लेटी व हल्का नीला रंग लिए हुए से संबंधित होते हैं। ऐसे जातक/जातिकाएं अपने जीवन काल में अनैतिक रूप से धन अधिक कमाते हैं। ऐसे बहुत ही कम अवसर आते हैं जिनमें कभी कभार ही नैतिक कर्मों द्वारा धनार्जन करते हों। ये अपने जीवन काल में संघर्षशील रहते हैं। ये अत्यधिक आधुनिक विचारधाराओं वाले, पुरानी प्रथाओं के विरोधी, हर बात को विपरीत निगाह से देखने वाले, झगड़ालू प्रवृत्ति के न होने के बावजूद भी ये बहुतों को शत्रु बना लेने की प्रवृत्ति वाले, भिखारी से करोड़ पति या करोड़पति से भिखारी बनने संबंधी स्थिति वाले होते हैं। मूलांक 5 तारीख: 5, 14, 23 मित्र अंक: 3 सम अंक: 4, 6, 7, 8, 9 शत्रु अंक: 1, 2, 5 पति-पत्नी मित्र अंक: 1, 4, 3 पति-पत्नी सम अंक: 2, 7, 6 पति-पत्नी शत्रु अंक: 8, 9 यदि किसी जातक/जातिका की हथेली में बुध पर्वत की स्थिति अच्छी हो, उस पर सीधी रेखाएं हों, बुध की अंगुली सीधी हो उस क्षेत्र पर कटाव या जाल न हो तो जातक/जातिका की वाकशक्ति, बुद्धिमता, तर्कशक्ति बहुत अच्छी होती है ऐसे लोगों का जन्म अवश्य ही 5, 14 एवं 23 तारीख को हुआ होता है। वास्तुशास्त्रानुसार ऐसे लोगों व उनके गृह आवास के शुभ रंग सफेद स्लेटी और सभी रंगों के हल्के शेड से संबंधित रंग होते हैं। शुभ लक्षणों से युक्त ऐसे लोगों की वाणी बहुत मीठी होती है। ऐसे लोग ज्ञानी, आजीवन मित्रता निभाने वाले, कल्पनाशील, सूझबूझ वाले व हमेशा तनावग्रस्त रहने वाले होते हैं। ऐसे लोग शारीरिक श्र्रम की अपेक्षा मानसिक श्रम अधिक करते हैं। धनोपार्जन के लिए ऐसे लोग कई बार अपना व्यवसाय बदलते रहते हैं। ये शत्रुता तो नहीं करते लेकिन यदि कोई इनसे दुश्मनी करता है तो ये उनका विनाश अवश्य कर डालते हैं। मूलांक 6 तारीख: 6, 15, 24 मित्र अंक: 1, 2, 3, 4, 6, 9 सम अंक: 5, 7, 8 पति-पत्नी मित्र अंक: 3 पति-पत्नी सम अंक: 1, 2, 4, 5, 7, 8 पति-पत्नी शत्रु अंक: 9 यदि किसी जातक/जातिका के हथेली में शुक्र पर्वत साफ सुथरा, उभार लिए हुए या उसको जीवन रेखा पूर्ण रूप से घेरती हो, उस पर मोटी-मोटी रेखाएं न हों, जीवन रेखा एवं मंगल रेखा भी साफ सुथरी हों तो ऐसे लोगों का जन्म अवश्य ही 6, 15, 24 तारीख को हुआ होता है। वास्तु शास्त्रानुसार ऐसे लोगों व उनके गृह आवास के शुभ रंग हल्के गहरे नीले व गुलाबी हैं। ऐसे लोगों को धन प्राप्ति के कई साधन जीवन में मिलते रहते हैं। ये रोमांटिक, शांत, ईमानदार, तेज बुद्धि, धनी, निडर, प्रेमी, ऐश्वर्य संपन्न, कामुक, कला के शौकीन, हंसमुख आदि गुणों से संपन्न होते हैं। इनके ही गुणों के अनुकूल नायक/नायिका, गायक/गायिका, चित्रकार आदि होते हैं। मूलांक 7 तारीख: 7, 16, 25 मित्र अंक: 1, 7, 9 सम अंक: 3, 5, 8 पति-पत्नी मित्र अंक: 3, 5, 6, 8 पति-पत्नी सम अंक: 1, 4 पति-पत्नी शत्रु अंक: 2, 9 यदि किसी जातक/जातिका की हथेली में केतु पर्वत उभार लिए हुए हों, साफ सुथरा हो, भाग्य रेखा जीवन रेखा से दूर हो व साफ हो तो ऐसे लोगों का जन्म अवश्य ही 7, 16, 25 तारीख को हुआ होता है। ऐसे लोगों की हथेली में अशुभ लक्षण भी हों तो भी वे कभी भी धन वैभव मान सम्मान प्राप्त करते रहते हैं। किंतु वे बुद्धि आदि का सही उपयोग नहीं कर पाते। ऐसे लोगों को केतु के उपाय अवश्य करनी चाहिए। ऐसे लोग अपनी सबसे अलग पहचान बनाने में सफल होते हैं। ये प्रत्येक व्यक्ति की राज जानने की कला में निपुण होते हैं। ऐसे लोग योजना से जुड़े क्षेत्र, कला या चित्रकला आदि में भी नाम अर्जित करते देखे जाते हैं। वास्तुशास्त्रानुसार ऐसे जातक एवं उनके गृह आवास के शुभ रंग हरा, पीला, सफेद रंग से संबंधित होते हैं। ऐसे व्यक्तित्व के लोग पत्रकारिता, अभिनय, प्लास्टिक, खेल कार्य, चिकित्सा, पर्यटन, औषधि, खनिज आदि से जुड़े कार्यों में विशेष सफल होते देखे जाते हैं। ये लेखन, गायन व संगीत कलाओं के साथ-साथ तंत्र-मंत्रों, ज्योतिष, योगादि, गुप्त विद्याओं में भी दक्ष होते देखे जाते हैं। देखा जाय तो ऐसे लोगों को सर्वगुण संपन्न व्यक्तित्व का स्वामी कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा। ये परंपरा या अवसरवादी नहीं होते, स्पष्टवादी होते हैं। मूलांक 8 तारीख: 8, 17, 26 मित्र अंक: 4, 6 सम अंक: 1, 2, 5, 7, 8, 9 शत्रु अंक: 3 पति-पत्नी मित्र अंक: 3 पति-पत्नी सम अंक: 2, 5, 6, 7, 9 पति-पत्नी शत्रु अंक: 1, 4 यदि किसी जातक/जातिका की हथेली में शनि पर्वत साफ सुथरा, साथ ही भाग्य रेखा भी साफ सुथरी हो, शनि की अंगुली सीधी हो या शनि क्षेत्र पर स्पष्ट रूप से त्रिकोण बना हो व उसके नीचे हृदय रेखा स्पष्ट हो तो ऐसे लोगों का जन्म अवश्य ही 8, 17 या 26 तारीख को हुआ होता है। अन्य लक्षण शुभ हो तो ऐसे लोग धनी व कार्य कुशल साबित होते हैं। ऐसे लोग जुए, लाॅटरी, सट्टे, शेयर आदि से भी लाभ प्राप्त करते हैं। शनि से प्रभावित ये लोग संगीत, काली वस्तुओं व लोहे के व्यापार, ज्योतिष, ट्रांसपोर्ट, कोयला, धर्म-कर्म, बिजली, दवाईयां, चमड़े के व्यवसाय, ठेकेदारी, बागवानी, पुलिस एवं फौज से जुड़े कार्यों में संलग्न रहते हैं। वास्तुशास्त्रानुसार ऐसे जातक एवं उनके गृह आवास के शुभ रंग गहरे स्लेटी, काले, गहरे नीले और जामुनी रंगों से संबंधित होते हैं। यदि शनि पर्वत पर रेखाऐं साफ-सुथरी हों तो ऐसे लोगों को बचपन से ही सभी प्रकार की सुख सुविधाएं मिलने लगती हैं। यदि हाथ में शनि की अंगुली सीधी हो, पर्वत उभार लिए हुए हों, शनि की अंगुली पर केवल तीन ही पर्व हों, अंगुली पतली हो, नाखून साफ सुथरे हों तो ऐसे लोगों पर शनि की विशेष कृपा होती है। पूर्व जन्मों में ऐसे लोग साधु संतों की सेवा व बुजुर्गों के सम्मान, दान पुण्य व दूसरों की मदद करने वाले होते हैं। मूलांक 9 तारीख: 9, 18, 27 मित्र अंक: 1, 2, 3, 4, 6, 7, 9 सम अंक: 5, 8 पति-पत्नी मित्र अंक: 8 पति-पत्नी सम अंक: 1, 2, 3, 4 पति-पत्नी शत्रु अंक: 7, 5 यदि किसी जातक/जातिका की हथेली में उच्च मंगल व निम्न मंगल पर्वत उभार लिए हुए हों, मंगल पर कटाव न हो, पर्वत साफ-सुथरा हो तो ऐसे लोगों का जन्म अवश्य ही 9, 18 व 27 तारीख को हुआ होता है। यदि मंगल पर्वत उन्नत न भी हों, अन्य शुभ लक्षण भी कम हों तो भी ऐसे लोग जिद्दी व शीघ्र गुस्सा करने वाले होते हैं। वास्तुशास्त्रानुसार ऐसे लोगों व उनके गृह आवास के शुभ रंग लाल, गुलाबी, सिंदूरी से संबंधित रोग होते हैं। इस अंक से प्रभावित जातक/जातिकाओं की हथेली में यदि रेखाएं अच्छी हों, मंगल पर्वत उभार लिए हुए हों तो ऐसे व्यक्ति संपत्ति की खरीद फरोख्त, बिल्डिंग मैटेरियल के कार्य करने वाले या किसी बड़े विभाग के चीफ होते हैं। ऐसे लोग अक्सर अति आत्म विश्वास के शिकार भी होते हैं। अधिकांश ऐसे जातक/जातिकाएं अधिकतर मेहनत मजदूरी करके आजीविका चलाने वाले भी होते हैं। प्रायः इस मूलांक वाले लोगों की अंगुलियां मोटी होती है। निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि विभिन्न जातक/ जातिकाओं के हस्तरेखाओं, ग्रहों के पर्वतों, उनके जन्मांक के मूलांकों/भाग्यांकों/नामांकों, वास्तुशास्त्र नियमानुसार जातकों व उनके गृह आवास के नियमानुसार उनके जीवन के कर्म व घटनाओं में काफी कुछ समानताएं लिए हुए होते हैं। किसी-किसी के मूलांकों, तो किसी-किसी के भाग्यांकों, तो किसी-किसी के नामांकों के आधार पर भी हस्तरेखाओं एवं ग्रह पर्वतों में समानताएं होती हैं। यदि किसी प्रकार से जातक/जातिकाओं में ताल-मेल नहीं बैठ रहा हो तो नामांक बदलने के लिए अंतिम अक्षरों में से कुछ परिवर्तन कर नाम को तो बदला जा सकता है किंतु उनके मूलांक व भाग्यांक को नहीं बदला जा सकता। नाम के अंतिम अक्षर में कोई भी उचित अक्षर प्रयोग करके जीवन को अच्छा या सुखमय बनाने का प्रयास किया जा सकता है। उसका आधार अंक कुंडली में यह देखकर किया जा सकता है कि जातक को किस ग्रह और योग की आवश्यकता है। अंक कुंडली वैवाहिक जीवन में भी बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है जो योग लड़की की कुंडली में नही है, वह योग यदि लड़के की कुंडली में हुआ हो तो वह जीवन में सामंजस्य बिठाने में सहायक होता है।

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Monday, 6 June 2016

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Sunday, 5 June 2016

आपके साथ विश्वासघात क्यूँ????? जाने कुंडली से

क्यों होता है विष्वासघात जाने अपनी कुंडली से -
इंसान ने एक-दूसरे पर विश्वास, भरोसा या यकीन करना शायद अपने आभिर्भाव के साथ ही अपना लिया होगा। जिसकी शुरुआत उसके जीवन में शैशवावस्ता से ही हो जाती रही है। वर्तमान समय, मूल रूप से प्रतिस्पर्धा प्रधान हो चुका है और एक-दूसरे से आगे निकलना ही एकमात्र ध्येय रह गया है. इसीलिए रिश्तों का कद दिनों दिन बौना होता जा रहा है. झूठ बोलना या धोखा देना कोई बड़ी बात नहीं रह गई है. आदमी सब समझता है, जानता है, गुनता भी है पर पता नहीं क्यों मौका आने पर फिर झांसे में आ, विश्वास कर धोखा खा जाता है। जब तक होश संभालता है, तब तक तो उसके साथ विष्वासघात हो चुका होता है। लोग षिकायत ही करते रह जाते हैं कि उनके साथ लोग विष्वासघात करते रहते हैं। विष्वासघात को यदि कुंडली से देखा जाए तो यदि छठवे स्थान का स्वामी अपने स्थान से विपरीत कारक हो अथवा सप्तम विपरीत हो जाए तो ऐसे लोगों को विष्वासघात का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा चतुर्थष भी खराब स्थिति में हो तो ऐसे लोगों के साथ अपने ही विष्वासघात करते हैं। अतः यदि किसी के साथ लगातार विष्वासघात हो तो उसे कुंडली दिखाकर अपनी कुंडली के इन स्थानों के ग्रहों की षांति कराना चाहिए।

विभिन्न क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन करने कराएं ग्रहों की शांति

कई क्षेत्र में एक साथ बेहतर प्रर्दशन करने के लिए करें अपने ग्रहों का शांत -
वर्तमान समय में जब जीवन में कार्यों तथा दायित्वों को तीव्र गति से, कम समय में और सफलतापूर्वक पूरा करने की होड़ है। अपने समय के प्रबंधन के लिए हम अनेक उपाय करते हैं। मल्टी-टॉस्किंग एक ऐसा ही उपाय तथा माध्यम है। जो समय प्रबंधन सुनिश्चित करने में हमारी सहायता करता है। हम भारतीय कई भुजाओं वाली देवी दुर्गा तथा ऐसे ही अन्य देवी-देवताओं के बहु-कार्य की संकल्पना से अच्छी तरह परिचित हैं, उनके ये हाथ विभिन्न कार्यों के द्योतक के रूप में प्रसिद्ध हैं। अपना कार्य एक निर्धारित समय-सीमा में सुचारू रूप से पूरा करने में कई कार्य एक साथ सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए आपको अपने समय का बेहतर प्रबंधन करना एवं आपके पास मौजूद प्रत्येक संसाधन का बेहतर उपयोग करना ही आपको मल्टी-टॉस्क बना सकता है और आपको और से बेहतर एवं आगे रखता है। इसके लिए आपको अपने समय प्रबंधन हेतु कुंडली के एकादश स्थान के ग्रहों एवं कई कार्य एक साथ करने के लिए अपने लग्न एवं तीसरे स्थान के स्वामी ग्रहों का आकलन करना चाहिए...इनके अनुकूल करने से आप जीवन में तीव्रगति से कार्य को कम समय में करने में सफल होंगे और और की तुलना में सभी क्षेत्र में आगे होंगे...