महामृत्युंजय मंत्र जप व उपासना का बहुत ही महत्व है। किसी प्रकार की अनिष्ट की आशंका हो अर्थात् अष्टमस्थ राहु की दशा चल रही हो, मारकेश आदि की दशा चल रही हो या लगने पर, किसी भी प्रकार की भयंकर बीमारी से आक्रान्त होने पर मतलब रोगेश की दशा, अंतरदशा, अपने बन्धु-बन्धुओं तथा इष्ट-मित्रों पर किसी भी प्रकार का संकट आने वाला हो। किसी प्रकार से वियोग होने पर, स्वदेश, राज्य व धन सम्पत्ति विनष्ट होने की स्थिति में, अकाल मृत्यु की शान्ति एवं अपने उपर किसी तरह की मिथ्या दोषारोपण लगने पर, उद्विग्न चित्त एंव धार्मिक कार्यो से मन विचलित होने पर महामृत्युंजय मन्त्र का जप स्त्रोत पाठ, भगवान शंकर की आराधना से सद्बुद्धि, मनःशान्ति, रोग मुक्ति एंव सवर्था सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है। काम्य उपासना के रूप में भी इस मंत्र का जप किया जाता है। यह मंत्र निम्न प्रकार से है-
एकाक्षरी (1) मंत्र- हौं। त्र्यक्षरी (3) मंत्र- ॐ जूं सः। चतुराक्षरी (4) मंत्र- ॐ वं जूं सः। नवाक्षरी (9) मंत्र- ॐ जूं सः पालय पालय। दशाक्षरी (10) मंत्र- ॐ जूं सः मां पालय पालय।
वेदोक्त मंत्र- महामृत्युंजय का वेदोक्त मंत्र निम्नलिखित है-
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृताम् ॥
इस मंत्र में 32 शब्दों का प्रयोग हुआ है और इसी मंत्र में ॐ लगा देने से 33 शब्द हो जाते हैं। इसे श्त्रयस्त्रिशाक्षरी या तैंतीस अक्षरी मंत्र कहते हैं। श्री वशिष्ठजी ने इन 33 शब्दों के 33 देवता अर्थात् शक्तियाँ निश्चित की हैं जो कि निम्नलिखित हैं।
इस मंत्र में 8 वसु, 11 रुद्र, 12 आदित्य 1 प्रजापति तथा 1 वषट को माना है। क्योंकि शब्द ही मंत्र है और मंत्र ही शक्ति है। इस मंत्र में आया प्रत्येक शब्द अपने आप में एक संपूर्ण अर्थ लिए हुए होता है और देवादि का बोध कराता है। अतः आपद स्थिति से बचाव हेतु महामृत्युंजय जप साधना ही एक मात्र उपाय है। इस प्रकार जीवन में कुछ भी असामान्य हो तो अर्थात् ग्रह दशाएॅ अनुकूल ना हो तो महामृत्युंजय जाप से कष्टों से बचा जा सकता है।
एकाक्षरी (1) मंत्र- हौं। त्र्यक्षरी (3) मंत्र- ॐ जूं सः। चतुराक्षरी (4) मंत्र- ॐ वं जूं सः। नवाक्षरी (9) मंत्र- ॐ जूं सः पालय पालय। दशाक्षरी (10) मंत्र- ॐ जूं सः मां पालय पालय।
वेदोक्त मंत्र- महामृत्युंजय का वेदोक्त मंत्र निम्नलिखित है-
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृताम् ॥
इस मंत्र में 32 शब्दों का प्रयोग हुआ है और इसी मंत्र में ॐ लगा देने से 33 शब्द हो जाते हैं। इसे श्त्रयस्त्रिशाक्षरी या तैंतीस अक्षरी मंत्र कहते हैं। श्री वशिष्ठजी ने इन 33 शब्दों के 33 देवता अर्थात् शक्तियाँ निश्चित की हैं जो कि निम्नलिखित हैं।
इस मंत्र में 8 वसु, 11 रुद्र, 12 आदित्य 1 प्रजापति तथा 1 वषट को माना है। क्योंकि शब्द ही मंत्र है और मंत्र ही शक्ति है। इस मंत्र में आया प्रत्येक शब्द अपने आप में एक संपूर्ण अर्थ लिए हुए होता है और देवादि का बोध कराता है। अतः आपद स्थिति से बचाव हेतु महामृत्युंजय जप साधना ही एक मात्र उपाय है। इस प्रकार जीवन में कुछ भी असामान्य हो तो अर्थात् ग्रह दशाएॅ अनुकूल ना हो तो महामृत्युंजय जाप से कष्टों से बचा जा सकता है।
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