Thursday 13 October 2016

ज्वाला देवी मंदिर का रहस्य

हिमाचल प्रदेश में देश के करोड़ों हिंदुओं की आस्था के केंंद्र ज्वालादेवी मंदिर में जल रही प्राकृतिक ज्योति का रहस्य वैज्ञानिक इतने सालों बाद भी नहीं खोज पाए हैं। पिछले अनेक सालों से ऑयल एंड नेचुरल गैस कारपोरेशन लिमिटेड के वैज्ञानिकों ने क्षेत्र के भूगर्भ का कई किलोमीटर तक चप्पा-चप्पा छान मारा, पर कहीं भी गैस और तेल के अंश नहीं मिले। अब ओएनजीसी फिर से एक बार इस रहस्य को जाने के लिए कार्य शुरू कर रहा है।
भूगर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की होती है यहां पूजा:
यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है। यहां पर पृथ्वी के गर्भ से 9 अलग-अलग जगह से ज्वालाएं निकल रही हैं जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया है। इन नौ ज्योतियां को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का प्राथमिक निमार्ण राजा भूमि चंद के करवाया था। बाद में पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निमार्ण कराया।
यहां गिरी थी देवी सती की जीभ:
ज्वालादेवी मंदिर हिमाचल के कांगड़ा जिला में स्थित है। ज्वालादेवी मंदिर को ज्योता वाली का मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवो को जाता है। इसकी गिनती माता के प्रमुख शक्ति पीठों में होती है। मान्यता है यहां देवी सती की जीभ गिरी थी।
अकबर ने ज्योति को बुझाने के लिए खुदवा दी थी नहर:
इस जगह के बारे में एक कथा अकबर और माता के परम भक्त ध्यानु भगत से जुड़ी है। हिमाचल के नादौन ग्राम निवासी माता का एक सेवक ध्यानू भक्त एक हजार यात्रियों सहित माता के दर्शन के लिए जा रहा था। इतना बड़ा दल देखकर बादशाह के सिपाहियों ने चांदनी चौक दिल्ली में उन्हें रोक लिया और अकबर के दरबार में ले जाकर ध्यानु भक्त को पेश किया।
    बादशाह ने पूछा तुम इतने आदमियों को साथ लेकर कहां जा रहे हो। ध्यानू ने हाथ जोड़ कर उत्तर दिया मैं ज्वालामाई के दर्शन के लिए जा रहा हूं मेरे साथ जो लोग हैं, वह भी माता जी के भक्त हैं, और यात्रा पर जा रहे हैं।
    अकबर ने सुनकर कहा यह ज्वालामाई कौन है? और वहां जाने से क्या होगा? ध्यानू भक्त ने उत्तर दिया महाराज ज्वालामाई संसार का पालन करने वाली माता है। वे भक्तों के सच्चे ह्रदय से की गई प्राथनाएं स्वीकार करती हैं। उनका प्रताप ऐसा है उनके स्थान पर बिना तेल-बत्ती के ज्योति जलती रहती है। हम लोग प्रतिवर्ष उनके दर्शन जाते हैं।
    अकबर ने कहा अगर तुम्हारी बंदगी पाक है तो देवी माता जरुर तुम्हारी इज्जत रखेगी। अगर वह तुम जैसे भक्तों का ख्याल न रखे तो फिर तुम्हारी इबादत का क्या फायदा? या तो वह देवी ही यकीन के काबिल नहीं, या फिर तुम्हारी इबादत झूठी है। इम्तहान के लिए हम तुम्हारे घोड़े की गर्दन अलग कर देते है, तुम अपनी देवी से कहकर उसे दोबारा जिन्दा करवा लेना। इस प्रकार घोड़े की गर्दन काट दी गई।
    ध्यानू भक्त ने कोई उपाए न देखकर बादशाह से एक माह की अवधि तक घोड़े के सिर व धड़ को सुरक्षित रखने की प्रार्थना की। अकबर ने ध्यानू भक्त की बात मान ली और उसे यात्रा करने की अनुमति भी मिल गई।
    बादशाह से विदा होकर ध्यानू भक्त अपने साथियों सहित माता के दरबार मे जा उपस्थित हुआ। स्नान-पूजन आदि करने के बाद रात भर जागरण किया। प्रात:काल आरती के समय हाथ जोड़ कर ध्यानू ने प्राथना की कि मातेश्वरी आप अन्तर्यामी हैं। बादशाह मेरी भक्ती की परीक्षा ले रहा है, मेरी लाज रखना, मेरे घोड़े को अपनी कृपा व शक्ति से जीवित कर देना। कहते है की अपने भक्त की लाज रखते हुए माँ ने घोड़े को फिर से जिंदा कर दिया।
    यह सब कुछ देखकर बादशाह अकबर हैरान हो गया। उसने अपनी सेना बुलाई और खुद मंदिर की तरफ चल पड़ा। वहाँ पहुँच कर फिर उसके मन में शंका हुई, उसने अपनी सेना से मंदिर पूरे मंदिर में पानी डलवाया, लेकिन माता की ज्वाला बुझी नहीं। तब जाकर उसे माँ की महिमा का यकीन हुआ और उसने सवा मन (पचास किलो) सोने का छतर चढ़ाया। लेकिन माता ने वह छतर कबूल नहीं किया और वह छतर गिर कर किसी अन्य पदार्थ में परिवर्तित हो गया। आप आज भी वह अकबर का छतर ज्वाला देवी के मंदिर में देख सकते हैं।
गोरख डिब्बी का चमत्कारिक स्थान:
मंदिर का मुख्य द्वार काफी सुंदर एव भव्य है। मंदिर में प्रवेश के साथ ही बाये हाथ पर अकबर नहर है। इस नहर को अकबर ने बनवाया था। उसने मंदिर में प्रज्जवलित ज्योतियों को बुझाने के लिए यह नहर बनवाया था। उसके आगे मंदिर का गर्भ द्वार है जिसके अंदर माता ज्योति के रूम में विराजमान है। थोड़ा ऊपर की ओर जाने पर गोरखनाथ का मंदिर है जिसे गोरख डिब्बी के नाम से जाना जाता है। कहते है की यहाँ गुरु गोरखनाथ जी पधारे थे और कई चमत्कार दिखाए थे। यहाँ पर आज भी एक पानी का कुण्ड है जो देखने में खौलता हुआ लगता है पर वास्तव मे पानी ठंडा है। ज्वालाजी के पास ही में 4.5 कि.मी. की दूरी पर नगिनी माता का मंदिर है। इस मंदिर में जुलाई और अगस्त के माह में मेले का आयोजन किया जाता है। 5 कि.मी. कि दूरी पर रघुनाथ जी का मंदिर है जो राम, लक्ष्मण और सीता को समर्पि है। इस मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा कराया गया था। ज्वालामुखी मंदिर की चोटी पर सोने की परत चढ़ी हुई है।
बादशाह अकबर के बाद ह्रहृत्रष्ट जुटी है रहस्य जानने में:
भारत के आजाद होने के बाद इस मंदिर में ज्वाला निकलने के रहस्य को जाने के लिए हमारे देश के वैज्ञानिकों ने प्रयास शुरू किए। 1959 से ऑयल एंड नेचुरल गैस कारपोरेशन लिमिटेड ज्वालादेवी व इसके आसपास के क्षेत्रों में कुएं खोदकर इस कार्य में जुटी हुई है। ज्वालादेवी के टेढ़ा मंदिर में 1959 में पहली बार कुआं खोदा गया था। उसके बाद 1965 में सुराणी में, बग्गी, बंडोल, घीणा, लंज, सुराणी व कालीधार के जंगलों में खुदाई की गई थी।
चमत्कारिक है ज्वाला:
पृत्वी के गर्भ से इस तरह की ज्वाला निकला वैसे कोई आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि पृथ्वी की अंदरूनी हलचल के कारण पूरी दुनिया में कहीं ज्वाला कहीं गरम पानी निकलता रहता है। कहीं-कहीं तो बाकायदा पावर हाऊस भी बनाए गए हैं, जिनसे बिजली उत्पादित की जाती है। लेकिन यहाँ पर ज्वाला प्राकर्तिक न होकर चमत्कारिक है क्योंकि अंग्रेजी काल में अंग्रेजों ने अपनी तरफ से पूरा जोर लगा दिया कि जमीन के अन्दर से निकलती ‘ऊर्जा’ का इस्तेमाल किया जाए। लेकिन लाख कोशिश करने पर भी वे इस ‘ऊर्जा’ को नहीं ढूंढ पाए। वहीं अकबर लाख कोशिशों के बाद भी इसे बुझा न पाए। यह दोनों बाते यह सिद्ध करती है की यहां ज्वाला चमत्कारी रूप से ही निकलती है ना कि प्राकृतिक रूप से, नहीं तो आज यहां मंदिर की जगह मशीनें लगी होतीं और बिजली का उत्पादन होता।

Wednesday 12 October 2016

नेपाल की जीवित देवी कुमारी

दुनियाभर में बहुत से देश या धर्म ऐसे हैं जहां ईश्वर को सर्वोच्च शक्ति का प्रतीक मानकर पूजा जाता है। कहीं मूर्ति पूजा का विधान है तो कहीं लिखित दस्तावेजों रूपी ग्रंथ को ही ईश्वर माना जाता है। हिन्दू धर्म की बात करें तो यहां विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियों की पूजा की जाती है। इसके अलावा यह धर्म ईश्वर के जीवित अवतारों की भी अवधारणा में विश्वास रखता है।
कुछ समय पहले तक विश्व का एकमात्र हिन्दू राष्ट्र कहा जाने वाला भारत का पड़ोसी मुल्क नेपाल कुछ ऐसी ही कहानी कहता है जो ईश्वर के अवतार पर विश्वास करने पर बल देती है। नेपाल के लोगों को पिछले दिनों भयंकर त्रासदी का सामना करना पड़ा। अत्याधिक तीव्रता से आए भूकंप ने नेपाल की जमीन को हिलाकर रख दिया, हजारों की संख्या में लोग इस प्राकृतिक आपदा की भेंट चढ़ गए। लेकिन एक स्थान ऐसा था जहां मौजूद लोगों पर आंच तक नहीं आई और वह स्थान था जीवित देवी के नाम से प्रख्यात नेपाल की ‘कुमारी देवी’ का मंदिर।
नेपाल में आए विनाशकारी आपदा ने बहुत से लोगों को अपनी चपेट लिया, हजारों लोगों के परिवारों को तबाह कर दिया लेकिन कुछ खुशनसीब लोग ऐसे भी थे जिनका बाल भी बांका नहीं हो सका। स्थानीय लोगों का मानना है कि उस समय वे कुमारी देवी के स्थान पर थे, कुमारी देवी ने ही उनकी जिन्दगी बचाई है।
नेपाल के लोग इन जीवित देवियों, जिन्हें कुमारी देवी कहा जाता है, को महाकाली का स्वरूप मानते हैं और जब तक ये जवान नहीं हो जातीं, अर्थात जब तक इन्हें मासिक धर्म शुरू नहीं हो जाता, तब तक ये कुमारी देवी की पदवी पर रहती हैं और उसके बाद कोई अन्य बालिका कुमारी देवी बनाई जाती है।
नेपाल के लोगों का मानना है कि ये जीवित देवियां आपदा के समय उनकी रक्षा करती हैं। इस मान्यता की शुरुआत 17वीं शताब्दी के आरंभ में ही हो गई थी। तब से लेकर अब तक नेपाल निवासी छोटी बच्चियों को देवी का रूप मानकर उन्हें मंदिरों में रखकर उनकी पूजा करते हैं। उन्हें समाज और अपने परिवारों से अलग रहना पड़ता है।
नेपाल के लोगों की जीवित देवी या कुमारी देवी शाक्य या वज्राचार्य जाति से संबंध रखती हैं, इन्हें नेपाल के नेवारी समुदाय द्वारा पहचाना जाता है। नेपाल में करीब 11 कुमारी देवियां होती हैं जिनमें से रॉयल गॉडेस या कुमारी देवी को सबसे प्रमुख माना गया है।
शाक्य और वज्राचार्य जाति की बच्चियों को 3 वर्ष का होते ही अपने परिवार से अलग कर दिया जाता है और उन्हें ‘कुमारी’ नाम दे दिया जाता है। इसके पश्चात 32 स्तरों पर उनकी परीक्षाएं होती हैं। इन सभी बच्चियों को ‘अविनाशी’ अर्थात जिसका अंत नहीं हो सकता, कहा जाता है।
जिस तरह बौद्ध धर्म के लोग अपने लामा को चुनते हैं उसी तरह कुछ नेपाल की कुमारी देवी का चयन होता है। उनके भीतर कुछ ऐसे लक्षण देखे जाते हैं जो उनके कुमारी देवी बनने की एक कसौटी होते हैं। इसमें उनकी जन्म कुंडली में मौजूद ग्रह-नक्षत्र भी बड़ी भूमिका निभाते हैं।
उनके समक्ष भैंस के कटे सिर को रखा जाता है, इसके अलावा राक्षस का मुखौटा पहने पुरुष वहां नृत्य करते हैं। कोई भी साधारण बच्ची उस दृश्य को देखकर भयभीत हो जाएगी लेकिन जो भी बच्ची बिना किसी डर के वहां रहती है, उसे मां काली का अवतार मानकर कुमारी देवी बनाया जाता है।
कुमारी देवी बनने के बाद उन्हें कुमारी घर में रखा जाता है, जहां रहकर वे अपना ज्यादातर समय पढ़ाई और धार्मिक कार्यों में बिताती हैं। वह केवल त्यौहार के समय ही घर से बाहर निकल सकती हैं लेकिन उनके पांव जमीन पर नहीं पडऩे चाहिए।
‘कुमारी देवी’ की पदवी उनसे तब छीन ली जाती है जब उन्हें या तो मासिक धर्म शुरू हो जाए या फिर किसी अन्य वजह से उनके शरीर से रक्त बहने लगे या फिर मामूली सी खरोंच ही क्यों ना पडज़ाए। कुमारी देवी की पदवी से हटने के बाद उन्हें आजीवन पेंशन तो मिलती है लेकिन नेपाली मान्यताओं के अनुसार यह कहा जाता है कि जो भी पुरुष पूर्व कुमारी देवी से विवाह करता है उसकी मृत्यु कम उम्र में हो जाती है। इसलिए कोई भी पुरुष उनसे विवाह करने के लिए तैयार नहीं होता, जिस कारण उनमें से अधिकांश आजीवन कुंवारी रह जाती हैं।
नेपाल में रहने वाले बौद्ध और हिन्दू धर्म के लोग यह कहते हैं कि ये देवियां हर बुराई और आपदा से उनकी रक्षा करती हैं। इन्हें ईश्वर के समान ही पूजनीय माना जाता है। शाक्य वंश के लोग इन कुमारी देवियों की सुरक्षा का जिम्मा संभालते हैं। जैसे ही बच्चियों को मासिक धर्म शुरू हो जाता है उन्हें कुमारी देवी की पदवी से हटा दिया जाता है और फिर एक नई कुमारी देवी की खोज शुरू की जाती है। पद से निवृत्त हुई कुमारियों को एक सरकारी आवास में रहना होता है। जिस आवास में ये कुमारी देवियां रहती हैं, नेपाल के लोगों के लिए वह स्थान बेहद पवित्र हो जाता है।
वर्तमान समय में मतीना शाक्य को दुर्गा का अवतार मानकर नेपाल की कुमारी देवी के नाम से पूजा जाता है। पूरा नेपाल इन्हें देवी के स्वरूप में पूजता है। जब भी किसी त्यौहार पर कुमारी देवी अपने आवास से बाहर निकलती हैं तब उनकी रक्षा का जिम्मा संभाले हुए शाक्य वंश के लोग उनकी पालकी को अपने कंधे पर उठाकर नगर में घुमाते हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार कुमारी देवी के दर्शन करना बहुत शुभ होता है।

मृत्यु के पहले दुर्योधन ने बताई थी अपनी तीन गलतियां

महाभारत काल में एक खलनायक के रूप में प्रस्तुत हुए हैं दुर्योधन। कौरवों में ज्येष्ठ एवं सबसे श्रेष्ठ कहलाने वाले दुर्योधन, यदि अपने मामा शकुनि की बातों में ना आते तो शायद आज वे महाभारत काल के सबसे बेहतरीन पात्र के रूप में याद किए जाते। क्योंकि उनमें अर्जुन या भीम से कम प्रतिभा नहीं थी, साथ ही वे एक अच्छे मित्र भी साबित हुए थे। लेकिन महाभारत की कहानी ने उन्हें पल-पल ईष्र्या से भरा हुआ बताया। एक ऐसे व्यक्ति के रूप में दर्शाया गया जिसे केवल और केवल स्वार्थ ने घेर रखा था। लेकिन कुछ इतिहासकारों के मुताबिक दुर्योधन वही कर रहे थे जो कौरवों के लिए उत्तम था। खैर हम यहां दुर्योधन की अच्छाई या बुराई की गणना नहीं कर रहे, बल्कि आपको महाभारत का एक ऐसा प्रसंग सुनाने जा रहे हैं जिसके बारे में आपने पहले कभी नहीं जाना होगा।
महाभारत युद्ध पूर्ण रूप से पाण्डवों और कौरवों की लड़ाई थी, जिसमें एक ओर पांच पाण्डव थे तो दूसरी ओर थे 100 कौरव भाई। पाण्डवों के साथ यदि स्वयं नारायण थे तो दूसरी ओर कौरवों की रक्षा के लिए लाखों की तादाद में मौजूद थी नारायणी सेना।
लेकिन इतनी बड़ी सेना के बावजूद भी कौरव युद्ध ना जीत सके। पड़ोसी राज्यों से भी उन्हें काफी मदद मिली। कई शूरवीर योद्धा और राजा उनकी सेना में मौजूद थे, लेकिन पाण्डवों को परास्त करने की शक्ति किसी में ना थी। महाभारत युद्ध के परिणामों को सभी शोधकर्ताओं ने अपने-अपने अंदाज में समझा है। इस युद्ध को करीब से समझने के बाद सभी ने अपना एक अलग निष्कर्ष दिया है और बताया है कि कौरव आखिर क्यूं हारे। लेकिन स्वयं दुर्योधन ने भी अपनी वह खामियां बताई थीं, जिसकी वजह से कौरव युद्ध हारे। उसने बताया कि यदि ये खामियां ना होतीं, तो कौरव विजेता हो सकते थे। दरअसल यह घटना उस समय की है जब खून में लथपथ दुर्योधन रणभूमि में जमीन पर गिरा हुआ था। वह घड़ी दूर नहीं थी जब किसी भी पल वो अपना दम तोड़ सकता था। दुर्योधन जमीन पर पड़े हुए अपने हाथ की तीन अंगुलियों को बार-बार उठाकर कुछ बड़बड़ा रहा था, लेकिन पीड़ा के कारण उसकी ध्वनि साफ सुनाई नहीं दे रही थी। तभी श्रीकृष्ण उसके पास गए और उसकी दुविधा का कारण पूछा।
तब उसने बताया कि उसने महाभारत के युद्ध के दौरान तीन गलतियां की हैं, इन्हीं गलतियों के कारण वह युद्ध नहीं जीत सका। यदि वह पहले ही इन गलतियों को पहचान लेता, तो आज जीत का ताज उसके सिर होता।
श्रीकृष्ण ने सहजता से दुर्योधन से उसकी उन तीन गलतियों के बारे में पूछा तो उसने बताया, पहली गलती यह थी कि दुर्योधन ने स्वयं नारायण के स्थान पर उनकी नारायणी सेना को चुना। यदि नारायण युद्ध में कौरवों के पक्ष में होते, तो आज परिणाम कुछ और ही होता।
दूसरी गलती उसने यह की कि अपनी माता के लाख कहने पर भी वह उनके सामने पेड़ के पत्तों से बना लंगोट पहनकर गया। यदि वह नग्नावस्था में जाता, तो आज उसे कोई भी योद्धा परास्त नहीं कर सकता था।
दुर्योधन के अनुसार तीसरी भूल जो उसने की थी वो थी युद्ध में आखिर में जाने की भूल। यदि वह पहले जाता तो कई बातों को समझ सकता था और शायद उसके भाई और मित्रों की जान बच जाती।
श्रीकृष्ण ने नम्रता से दुर्योधन की यह सारी बात सुनी। फिर उन्होंने उसे समझाया कि ‘हार का मुख्य कारण तुम्हारा अधर्मी व्यवहार और अपनी ही कुलवधू का वस्त्राहरण करवाना था। तुमने स्वयं अपने कर्मों से अपना भाग्य लिखा। यह सुनकर दुर्योधन को अपनी असली गलती का आभास हुआ।

ऋषि पराशर द्वारा बताये गए विभिन्न ज्योतिष्य उपाय

वृहत्त पाराशर ज्योतिषशास्त्र में ऋषि पाराशर ने बहुत सारे उपाय बताए हैं जिनमें उन्होंने यह वर्णन किया है कि किस कारण से वह कष्ट आया है और उसकी निवृत्ति का क्या उपाय हैं। यह उपाय ज्यादातर मंत्र और दान पूजा-पाठ इत्यादि से संबंधित है। उन सब का संक्षिप्त विवरण इस लेख में दिया जा रहा है।
विभिन्न शाप :
संतान नष्ट होने या संतान ना होने को विभिन्न तरह के शाप के परिणाम ऋषि पाराशरजी ने बताया है। ऋषि पाराशर जी ने उल्लेेख किया है कि भगवान शंकर ने स्वयं पार्वती जी को यह उपाय बताए हैं।
1. सर्प का शाप:
बहुत सारे योगों से सर्प शाप का पता चलता है। उनमें राहु पर अधिक बल दिया गया है। कुल आठ योग बताए गए हैं। सर्प शाप से संतान नष्ट होने पर या संतान का अभाव होने पर स्वर्ण की एक नाग प्रतिमा बनाकर विधिपूर्वक पूजा की जाए जिसमें अनुष्ठान, दशंाश हवन, मार्जन, तर्पण, ब्राह्मण भोजन कराके गोदान, भूमि दान, तिल दान, स्वर्ण दान इत्यादि किए जाएं तो नागराज प्रसन्न होकर कुल की वृद्धि करते हैं।
2. पितृ शाप :
गतजन्म में पिता के प्रति किए गए अपराध से जो शाप मिलता है तो संतान का अभाव होता है। इस दोष का पता सूर्य से संबंधित योगों से चलता है और सूर्य के पीड़ित होने या कुपित होने पर ये योग आधारित हैं। निश्चित है कि मंगल और राहु भी गणना में आएंगे। इसी को पितृ दोष या पितर शाप भी कहा गया है। कुल मिलाकर ग्यारह योग हैं।
     इसके लिए गया श्राद्ध करना चाहिए तथा जितने अधिक ब्राह्मणों को भोजन करा सकें, कराएं। यदि कन्या हो तो गाय का दान और कन्या दान करना चाहिए। ऐसे करने से कुल की वृद्धि होगी।
3. मातृ शाप:
पंचमेश और चंद्रमा के संबंधों पर आधारित यह योग संतान का नष्ट होना या संतान का अभाव बताते हैं। इन योगों में निश्चित रूप से मंगल, शनि और राहु का योगदान मिलेगा। यह दोष कुल 13 मिलाकर हंै। इस जन्म में भी यदि कोई माता की अवहेलना करेगा या पीड़ित करेगा तो अगले जन्म में यह दोष देखने को मिलेगा।
4. भ्रातृ शाप:
यदि गतजन्म में भाई के प्रति कोई अपराध किया गया हो तो उसके शाप के कारण इस जन्म में संतान नष्ट होना या संतान का अभाव मिलता है। पंचम भाव, मंगल और राहु से यह दोष देखे जाते हैं। यह दोष कुल मिलाकर तेरह हैं।
उपाय : हरिवंश पुराण का श्रवण करें, चान्द्रायण व्रत करें, कावेरी नदी या अन्य पवित्र नदियों के किनारे शालिग्राम के सामने पीपल वृक्ष उगाएं तथा पूजन करें, पत्नी के हाथ से दस गायों का दान करें और फलदार वृक्षों सहित भूमि का दान करें तो निश्चित रूप से कुल वृद्धि होती है।
5. मामा का शाप:
गतजन्म में यदि मामा के प्रति कोई अपराध किया गया हो तो उसके शाप से संतान का अभाव इस जन्म में देखने को मिलता है। यदि ऐसा होता है कि पंचम भाव में बुध, गुरू, मंगल और राहु मिलते हैं और लग्न में शनि मिलते हैं। इस योग में शनि-बुध का विशेष योगदान होता है। इसके लिए भगवान विष्णु की मूर्ति की स्थापना, तालाब, बावड़ी, कुअंा और बांध को बनवाने से कुल की वृद्धि होती है।
6. ब्रह्म शाप:
गतजन्म में कोई धन या बल के मद में ब्राह्मणों का अपमान करता है तो उसके शाप से इस जन्म में संतान का अभाव होता है या संतान नष्ट होती है। यह कुल मिलाकर सात योग हैं। नवम भाव, गुरू, राहु और पाप ग्रहों को लेकर यह योग देखने को मिलते हैं। योग का निर्णय तो विद्वान ज्योतिषी ही करेंगे परंतु उपाय निम्न बताए गए हैं। इसके लिए चान्द्रायण व्रत, प्रायश्चित करके गोदान, दक्षिणा, स्वर्ण और पंचरत्न तथा अधिकतम ब्राह्मणों को भोजन कराएं तो शाप से निवृत्ति होकर कुल की वृद्धि होती है।
7. पत्नी का शाप:
गतजन्म में पत्नी के द्वारा यदि शाप मिलता है तो इस जन्म में संतान का अभाव होता है। यह ग्यारह योग बताए गए हैं जो सप्तम भाव और उस पर पापग्रहों के प्रभाव से देखे जाते हैं। इसके लिए कन्या दान श्रेष्ठ उपाय बताया गया है। यदि कन्या नहीं हो तो स्वर्ण की लक्ष्मी-नारायण की मूर्ति तथा दस ऐसी गाय जो बछड़े वाली माँ हों तथा शैया, आभूषण, वस्त्र इत्यादि ब्राह्मण जोड़े को देने से पुत्र होता है और कुल वृद्धि होती है।
8. प्रेत शाप:
यह नौ योग बताए गए हैं जिनमें ये वर्णन है कि अगर श्राद्ध का अधिकारी अपने मृत पितरों का श्राद्ध नहीं करता तो वह अगले जन्म में अपुत्र हो जाता है। इस दोष की निवृत्ति के लिए निम्न उपाय हैं। इसके लिये गया में पिण्डदान, रूद्राभिषेक, ब्रह्मा की स्वर्णमय मूर्ति, गाय, चांदी का पात्र तथा नीलमणि दान करना चाहिए।
9. ग्रह दोष:
यदि ग्रह दोष से संतान हानि हो तो बुध और शुक्र के दोष में भगवान शंकर का पूजन, गुरू और चंद्र के दोष में संतान गोपाल का पाठ, यंत्र और औषधि का सेवन, राहु के दोष से कन्या दान, सूर्य के दोष से भगवान विष्णु की आराधना, मंगल और शनि के दोष से षडङग्शतरूद्रीय जप कराने से संतान प्राप्ति होती है और कुल की वृद्धि होती है।
अन्य दोषों के उपाय:
अमावस्या का जन्म:
ऋषि पाराशर जी का मानना है कि अमावस्या के जन्म से घर में दरिद्रता आती है अत: अमावस्या के दिन संतान का जन्म होने पर शांति अवश्य करानी चाहिए। इस उपाय के अंतर्गत विधिपूर्वक कलश स्थापना करके उसमें पंच पल्लव, जड़, छाल और पंचामृत डालकर अभिमंत्रित करके अग्निकोण में स्थापना कर दें फिर सूर्य की सोने की, चंद्रमा की चांदी की मूर्ति बनवाकर स्थापना करें और षोडशोपचार या पंचोपचार से पूजन करें फिर इन ग्रहों की समिधा से हवन करें, माता-पिता का भी अभिषेक करें और सोने, चांदी या गाय की दक्षिणा दें और इसके बाद ब्राह्मण भोजन कराएं। इससे गर्त के ग्रह चंद्रमा एवं सूर्य की शांति होती है और जातक का कल्याण होता है।
कृष्ण चतुर्थी व्रत के उपाय:
चतुर्थी को छ: भागों में बांटा है। प्रथम भाग में जन्म होने पर शुभ होता है, द्वितीय भाग में जन्म हो तो पिता का नाश, तृतीय भाग में जन्म हो तो माता की मृत्यु, चतुर्थ भाग में जन्म हो तो मामा का नाश, पंचम भाग में जन्म हो तो कुल का नाश, छठे भाग में जन्म हो तो धन का नाश या जन्म लेने वाले स्वयं का नाश होता है। इस दोष का निवारण भगवान शिवजी की पूजा से होता है। यथाशक्ति शिव की स्वर्ण प्रतिमा बनाकर महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें। इस जप का विधान थोड़ा सा तकनीकी और कठिन होता है। हवन में सभी ग्रहों की आहुतियां उनके निमित्त समिधा से दी जाती हैं, बाद में स्थापित कलश के जल से माता-पिता का अभिषेक कराया जाता है।
भद्रा इत्यादि में जन्म का दोष:
भद्रा, क्षय तिथि, व्यतिपात, परिघ, वज्र आदि योगों में जन्म तथा यमघंट इत्यादि में जो जातक जन्म लेता है, उसे अशुभ माना गया है। यह दुर्योग जिस दिन हुआ हो, वह दुर्योग जिस दिन आए उसी दिन इसकी शांति करानी आवश्यक है। इस दुर्योग के दिन विष्णु, शंकर इत्यादि की पूजा व अभिषेक शिवजी मंदिर में धूप, घी, दीपदान तथा पीपल वृक्ष की पूजा करके विष्णु भगवान के मंत्र का 108बार हवन कराना चाहिए। पीपल को आयुर्दायक माना गया है। इसके पश्चात् ब्राह्मण भोज कराएं तो व्यक्ति दोष मुक्त हो जाता है।
माता-पिता के नक्षत्र में जन्म:
यदि माता-पिता या सगे भाई-बहिन के नक्षत्र में किसी का भी जन्म हो तो उनमें से किसी को भी मरणतुल्य कष्ट अवश्य होगा। किसी शुभ लग्न में अग्निकोण से ईशान कोण की तरफ जन्म नक्षत्र की सुंदर प्रतिमा बनाकर कलश पर स्थापित करें फिर लाल वस्त्र से ढककर उपरोक्त नक्षत्रों के मंत्र से पूजा-अर्चना करें फिर उसी मंत्र से 108बार घी और समिधा से आहुति दें तथा कलश के जल से पिता, पुत्र और सहोदर का अभिषेक करें। ब्राह्मण भोजन कराएं और दक्षिणा दें इससे उस नक्षत्र की शांति होती है।
संक्रांति जन्म दोष:
ग्रहों की संक्रांतियों के नाम घोरा, ध्वांक्षी, महोदरी, मन्दा, मन्दाकिनी, मिश्रा और राक्षसी इत्यादि हैं। सूर्य की संक्रांति में जन्म लेने वाला दरिद्र हो जाता है इसलिए शांति करानी आवश्यक है। संक्रांति में जन्म का अगर दोष हो तो नवग्रह का यज्ञ करना चाहिए। विधि-विधान के साथ अधिदेव और प्रत्यधिदेव देवता के साथ जिस ग्रह की संक्रांति हो उसकी प्रतिमा को स्थापित कर लें फिर ग्रहों की पूजा करके व हवन करके महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। तिल से हवन कर लेने के बाद माता-पिता का अभिषेक करें और यथाशक्ति ब्राह्मणों को भोजन कराके, दान-दक्षिणा दें इससे संक्रांति जन्म दोष दूर होता है।
ग्रहण काल में जन्म का दोष:
जिसका जन्म ग्रहणकाल में होता है उसे व्याधि, कष्ट, दरिद्रता और मृत्यु का भय होता है। ग्रहण नक्षत्र के स्वामी तथा सूर्यग्रहण में सूर्य की तथा चंद्रग्रहण में चंद्रमा की मूर्ति बनाएं। सूर्य की प्रतिमा सोने की, चंद्रमा की प्रतिमा चांदी तथा राहु की प्रतिमा सीसे की बनाएं। इन ग्रहों के प्रिय विषयों का दान करना चाहिए फिर ग्रह के लिए निमित्त समिधा से हवन करें परंतु नक्षत्र स्वामी के लिए पीपल की समिधा का इस्तेमाल करें। कलश के जल से जातक का अभिषेक करें और ब्राह्मण को भोजन कराएं व दान-दक्षिणा दें। इससे ग्रहणकाल में जन्म दोष दूर होता है।
प्रसव विकार दोष:
यदि निर्धारित समय से कुछ महीने पहले या कुछ महीने बाद प्रसव हो तो इस विकार से ग्राम या राष्ट्र का अनिष्ट होता है। अंगहीन या बिना मस्तिष्क का या अधिक मस्तिष्क वाला जातक जन्म ले या अन्य जानवरों की आकृति वाला जातक जन्म ले तो यह विकार गाँव के लिए आपत्ति लाने वाला होता है। कुल में भी पीड़ा आती है। पाराशर ऐसे प्रसव के लिए अत्यंत कठोर है और ना केवल ऐसी स्त्री बल्कि ऐसे जानवर को भी त्याग देने के लिए कहते हैं। इसके अतिरिक्त 15वें या 16वें वर्ष का गर्भ प्रसव भी अशुभ माना गया है और विनाश कारक होता है। इस विकार की भी शांति का प्रस्ताव किया गया है। ब्रह्मा, विष्णु और रूद्र का पूजन, ग्रह यज्ञ, हवन, अभिषेक और ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए। इस प्रकार से शांति कराने से अनिष्ट से रक्षा होती है।
त्रीतर जन्म विकार:
तीन पुत्र के बाद कन्या का जन्म हो या तीन कन्या के बाद पुत्र का जन्म हो तो पितृ कुल या मातृ कुल में अनिष्ट होता है। इसके लिए जन्म का अशौच बीतने के बाद किसी शुभ दिन किसी धान की ढेरी पर चार कलश की स्थापना करके ब्रह्मा, विष्णु, शंकर और इंद्र की पूजा करनी चाहिए। रूद्र सूक्त और शांति सूक्त का पाठ करना चाहिए फिर हवन करना चाहिए। इससे अनिष्ट शांत होता है।
गण्डान्त विकार:
पूर्णातिथि (5,10,15) के अंत की घड़़ी, नंदा तिथि (1,6,11) के आदि में दो घड़ी कुल मिलाकर चार तिथि को गण्डान्त कहा गया है। इसी प्रकार रेवती और अश्विनी की संधि पर, आश्लेषा और मघा की संधि पर और ज्येष्ठा और मूल की संधि पर चार घ़्ाडी मिलाकर नक्षत्र गण्डान्त कहलाता है। इसी तरह से लग्न गण्डान्त होता है। मीन की आखिरी आधी घटी और मेष की प्रारंभिक आधी घटी, कर्क की आखिरी आधी घटी और सिंह की प्रारंभिक आधी घटी, वृश्चिक की आखिरी आधी घटी तथा धनु की प्रारंभिक आधी घटी लग्न गण्डान्त कहलाती है। इन गण्डान्तों में ज्येष्ठा के अंत में पांच घटी और मूल के आरंभ में आठ घटी महाअशुभ माना गया है। इसके लिए गण्डान्त शांति के बाद ही पिता बालक का मुंह देखें। तिथि गण्डान्त में बैल का दान, नक्षत्र गण्डान्त में बछड़े वाली गाय का दान और लग्न गण्डान्त में सोने का दान करना चाहिए। गण्डान्त के पूर्व भाग में जन्म हो तो पिता के साथ बच्चो का अभिषेक करना चाहिए और यदि दूसरे भाग में जन्म हो तो माता के साथ बालक का अभिषेक करना चाहिए। इन उपायों के अंतर्गत तिथि स्वामी, नक्षत्र स्वामी या लग्न स्वामी का स्वरूप बनाकर, कलश पर पूजा करें और फिर हवन करें व अभिषेक इत्यादि करें।
    लगभग सभी गण्डान्तों में गोदान को एक बहुत सशक्त उपाय माना गया है। ज्येष्ठा गण्ड शांति में इन्द्र सूक्त और महामृत्युंजय का पाठ किया जाता है। मूल, ज्येष्ठा, आश्लेषा और मघा को अति कठिन मानते हुए तीन गायों का दान बताया गया है। रेवती और अश्विनी में दो गायों का दान और अन्य गण्ड नक्षत्रों के दोष या किसी अन्य दुष्ट दोष में एक गाय का दान बताया गया है।
    ज्येष्ठा नक्षत्र की कन्या अपने पति के बड़े भाई का विनाश करती है और विशाखा के चौथे चरण में उत्पन्न कन्या अपने देवर का नाश करती है। अत: इनके विवाह के समय तो अवश्य ही गोदान कराना चाहिए। आश्लेेषा के अंतिम तीन चरणों में जन्म लेने वाली कन्या या पुत्र अपनी सास के लिए अनिष्टकारक होते हैं तथा मूल के प्रथम तीन चरणों में जन्म लेने वाले जातक अपने ससुर को नष्ट करने वाले होते हैं अत: इनकी शांति अवश्य करानी चाहिए। अगर पति से बड़ा भाई ना हो तो यह दोष नहीं लगता है।
    पाराशर अतिरिक्त लगभग सभी होरा ग्रंथ शास्त्रकारों ने ग्रहों की शाति को विशेष महत्व दिया है। फलदीपिका के रचनाकार मंत्रेश्वर जी ने एक स्थान पर लिखा है कि - ‘‘दशापहाराष्टक वर्गगोचरे, ग्रहेषु नृणां विषमस्थितेष्वपि। जपेच्चा तत्प्रीतिकरै: सुकर्मभि:, करोति शान्तिं व्रतदानवन्दनै:।।’’ जब कोई ग्रह अशुभ गोचर करे या अनिष्ट ग्रह की महादशा या अन्तर्दशा हो तो उस ग्रह को प्रसन्न करने के लिए व्रत, दान, वन्दना, जप, शांति आदि द्वारा उसके अशुभ फल का निवारण करना चाहिए।

ज्योतिष शाश्त्र से मधुमेह का इलाज

मधुमेह के रोग को एक वंशानुगत रोग के रूप में भी जाना जाता है. अगर आपके शरीर में इन्सुलिन की मात्रा की कमी है तब ये रोग आपको घेरता है. आप दवाओ के सहारे इस रोग पर कुछ हद तक काबू पा सकते है. अगर आप ज्योतिषीय मान्यताओ की तरफ ध्यान देते है तो इसके अनुसार आप पाओगे कि अगर जलीय राशी जैसे कि कर्क, वृश्चिक या मीन और शुक्र राशी जैसे कि तुला में दो या दो से अधिक पापी ग्रहों ने प्रवेश कर रखा है तो इन राशी के लोगो को मधुमेह के रोग की आशंका बहुत ज्यादा है. अगर इन राशियों के शुक्र के साथ ब्रस्पति या चंद्रमा दूषित है या त्रिक भाव में है तब भी आपको मधुमेह हो सकता है. शत्रु राशी या क्रूर ग्रहों जैसे राहू, शनि, सूर्य, और मंगल ने आपकी राशी में प्रवेश कर रखा है तब भी आपको मधुमेह हो सकता है.
    ज्योतिष उपायों के अनुसार मधुमेह के रोग से मुक्त होने के लिए आप सोलह शुक्रवार तक पूर्ण मन से किसी मंदिर या जरूरतमंद व्यक्ति को सफेद चावल का दान करे. इसके अलावा आप ú शुं शुक्राय नम: मंत्र की एक माला का जाप करे. इसी तरह आप ब्रहस्पति और चंद्रमा की वस्तुओं का भी दान करे. आप शाम के समय या फिर रात्रि में महामृत्युंजय मंत्र का भी जाप अवश्य करें. साथ ही आप पुष्प नक्षत्र में जामुनों को इक्कठा करें और फिर उनका सेवन करे. आप करेले के पाउडर को प्रतिदिन सुबह दूध के साथ मिला कर उसका सेवन करे ऐसा करने से भी आपको मधुमेह के रोग से मुक्ति में लाभ मिलेगा.
    ज्योतिष शास्त्र में कई बार उन लोगों को भी मधुमेह के रोग की शिकायत मिली है जिनकी कुंडली में लग्न पर शनि-केतु की पाप की दृष्टी देखी गई हो. अगर वृश्चिक राशी के चतुर्थ स्थान में शुक्र-शनि की युति, मीन पर सूर्य व मंगल की दृष्टी हो, साथ ही तुला राशी के लोगो पर राहू स्थित हो कर चन्द्रमा पर दृष्टी रखे तो इस स्थिती में इन सब लोगो की इज्जत, प्रतिष्टा को हानि होती है साथ ही इन लोगों को मधुमेह के रोग का भी खतरा होता है.
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मधुमेह के कारण:
ज्योतिष शास्त्र में अगर मीन राशी के जातकों की राशी में बुध पर सूर्य की दृष्टी हो या ब्रहस्पति लग्नेश के साथ छठे भाव में हो या फिर इन जातकों के दशम भाव में मंगल-शनि की युक्ति या मंगल दशम स्थान पर शनि पर दृष्टी रख रहा हो तो इस स्थिति में भी ये रोग हो सकता है. इन सबके अलावा अगर लग्नेश शत्रु राशी में, नीचे का या लगन व मग्नेश पाप ग्रहों से दृष्टी मिला रहा हो व शुक्र आठवे घर में विराजमान हो तब भी इस रोग का खतरा है, कुछ मामलों में अगर चतुर्थ भाव में वृश्चिक राशी में शनि-शुक्र की युति भी मधुमेह के रोग का एक बड़ा कारण बन सकती है.
* अगर आप औषधि का सेवन कर रहे है या हवन करने का विचार कर रहे है तो उसके लिए शुभ नक्षत्र का इंतजार करे.
* अगर आप औषधियों का सेवन आरम्भ कर रहे है तो उनके किये अश्वनी, पुण्य, हस्त, और अभिजित नक्षत्रो का चयन करे और उन्ही नक्षत्रो में सेवन आरम्भ करे.
* अगर आपके गोचरीय ग्रहों में आपको अशुभता दिखाई दे रही है तो आप पहले उन्हें औषधीय स्नान करके शुभ कर ले.
* अगर आपके ग्रह दूषित है तो आप हवन करा सकते है, सूर्य की शांति के लिए आपको समिधा, आक या मंदार की डालियों का सेवन करना चाहिए, चंद्रमा की शांति के लिए आप पलाश, मंगल की शांति के लिए खरीद या खैर, बुध की शांति के लिए अपामार्ग या चिचिढा, गुरु की शांति के लिए पीपल, शुक्र की शांति के लिए उदुम्बर या गुलर, शनि की शांति के लिए खेजड़ी या शमी, रहू के लिए दूर्वा और अंत में केतु की शांति के लिए आप कुशा की समिधा, सरल, सनिग्ध डाली हे हवन की प्रक्रिया ले लिए इस्तेमाल करनी चाहिए, इसके साथ साथ ग्रहों के मंत्रो के साथ ही हमे यज्ञाआहुति देनी चाहिए. तभी आपको आपके द्वारा कराए गये हवन का पूरा लाभ मिल सकेगा और आपको मधुमेह के रोग से बचने में आपकी सहायता कर सकेगा.
    उपरलिखित मधुमेह के रोग के होने के कारण और उनसे बचने या मुक्ति पाने के उपायों को पड़ कर आप अपने आप को मधुमेह जैसी भयंकर बीमारी से बचा सकते है और एक रोगमुक्त जीवन जी सकते है.
वास्तु शास्त्र में मधुमेह:
* वास्तु शास्त्र के अनुसार मधुमेह से बचाव के लिए आपको अपने घर के मध्य भाग को लोहे के जाल, बेकार सामान, और स्टोर से बचाना होगा.
* आपको अपने घर की उत्तर-पूर्व दिशा में नीले फूल वाला पौधा लगाने से भी लाभ प्राप्त हो सकता है.
* याद रखे कि आप कभी भी भूल कर भी अपने बेडरूम में खाना न खाए.
* मधुमेह से बचने के लिए आप अपने बेडरूम में कभी भी जूते या चप्पल पहन कर न जाये और न ही कभी पुराने जूते चप्पलो को अपने बेडरूम में रखे.
* आप अपने पीने के पानी के लिए मिट्टी के घड़े का इस्तेमाल करे और घड़े में तुलसी के सात पत्तो को डालना न भूले, उसके बाद ही घड़े के जल का इस्तेमाल करें.
* मधुमेह से बचाव हेतु आप प्रतिदिन एक बार अपनी माँ के हाथो से बने खाने का सेवन जरुर करे.
* आप अपने घर के मुखिया, अपने पिता का हमेशा आदर करे, उन्हें सम्मान दे और उनका सदैव कहना माने.
* मधुमेह से मुक्ति पाने के लिए आप हर मंगलवार के दिन अपने मित्रो को मिठाई देना न भूले.
* आप ब्रहस्पति देव की हल्दी की एक गांठ को सिलबट्टे पर पीस ले फिर उसमे शहद मिला कर प्रतिदिन सुबह खाली पेट ले, ऐसा करने से भी आपको मधुमेह के रोग से मुक्ति मिलेगी.
* आप प्रत्येक रविवार के दिन प्रात: सुबह सूर्य को जल दे, उसके बाद आप बंदरो को गुड खिलाये इससे भी आपको मधुमेह में लाभ मिलेगा.
* आप अपने घर के ईशानकोण से लोह धातु से निर्मित हर वास्तु को हटा दे.
    मधुमेह से बचने के लिए आप इन सब उपायों का इस्तेमाल कर सकते है और इन उपायों को करने से आपको महसूस होगा के आपका मधुमेह का रोग कितनी जल्दी ठीक हो रहा है और आप रोग मुक्त हो रहे है.

आर्थिक परेशानियों या पैसों की तंगी:करें ज्योतिष्य उपाय

पैसों की तंगी और आर्थिक परेशानियों से जूझते लोगों के लिए हमारे प्राचीन ज्योतिष विद्या में कारगर उपाय हैं जिनसे इन समस्याओं से निज़ात पाया जा सकता है। यह उपाय 12 राशियों के अनुसार बताए गए हैं। यह उपाय अगर अपने ईष्ट का स्मरण कर भक्ति भाव से पूजन और नियमितता से किए जाएं तो अवश्य ही धन संकट का समाधान होता है और हां हमारे वेदों और पुराणों में भी कर्म की आवश्यकता के बारे में बताया गया है तो धर्म के साथ कर्म अवश्य करें। सफलता जरूर मिलेगी।
मेष- मेष राशि वाले जातकों को शाम के समय घर के मुख्य द्वार पर तेल का दीपक प्रज्ज्वलित करना चाहिए। अधिक फायदे के लिए उसमें दो काली मिर्च डाल दें। इस उपाय से जल्दी ही आर्थिक परेशानी दूर होती है। इसके अलावा अगर धन संबंधी कोई मामला अटका है तो उसमें भी फायदा होता है।
वृषभ- राशि वाले जातकों को आर्थिक फायदे के लिए पीपल के 5 पत्ते लेकर उन पर पीला चंदन लगाना चाहिए। इन पत्तों को किसी नदी या बहते हुए जल में बहाने से आर्थिक संकट शर्तिया दूर होता है। जमा पूंजी में वृद्धि करने, बढ़ाने के लिए पीपल के पेड़ पर चंदन लगाए और जल चढ़ाएं।
मिथुन- राशि वाले जातकों को व्यापार या घर में धन वृद्धि के लिए बरगद के पांच फल लाकर उसे लाल चंदन में रंग कर नए लाल वस्त्र में कुछ सिक्कों के साथ बांध कर अपने घर अथवा दुकान के अग्रभाग में लगाना चाहिए इससे कल्पनातीत धन की प्राप्ति होती है।
कर्क- राशि वाले जातकों को धन प्राप्ति के लिए संध्या के समय पीपल के वृक्ष के नीचे तेल का पंचमुखी दिया जलाना चाहिए। इसके बाद करबद्ध होकर माता लक्ष्मी से धन लाभ की प्रार्थना करें। अचानक धन की प्राप्ति होगी।
सिंह- राशि वाले जातक यदि आर्थिक नुकसान झेल रहे हैं और कुछ भी सही नहीं चल रहा है तो उनके लिए एक उपाय है कि वे कौढ़डि़य़ों को हल्दी के घोल में भिगो कर उन्हें अपने पूजा घर में रखें, लेकिन इससे पूर्व लक्ष्मी जी के साथ उसकी पूजा करें।
कन्या- राशि वाले जातकों के लिए बहुत ही सुंदर उपाय है। आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए- दो कमलगट्टे लेकर उन्हें माता लक्ष्मी के मंदिर में अर्पित करते हुए धन प्राप्ति की कामना करें।
तुला- तुला राशि वाले जातकों के लिए धन प्राप्ति हेतु सरल उपाय है। आपको शुक्र-पुष्य नक्षत्र का इंतजार करना होगा। इस शुभ नक्षत्र में लक्ष्मी मंदिर जाकर उन्हें पांच नारियल चढ़ाएं और सभी को नारियल का प्रसाद बांटे। हां एक साबूत नारियल को अपने पास रख लें। उसे आप बहते जल में बहा दें।
वृश्चिक- वृश्चिक राशि वाले जातक का स्वामी ग्रह मंगल होता है। वे हमेशा अपने दिमाग में उलझे रहते हैं। यदि वे कर्ज की उलझन में फंसे हैं तो संध्या काल किसी भी विष्णु-लक्ष्मी मंदिर में जाएं और वहां का जल एक पात्र में भर कर ले आएं, बाद में उसे पीपल के पेड़ की जड़ों में चढ़ा दें। इसके अलावा वह चाहें तो बड़ के पत्ते पर आटे का दिया जला कर उसे हनुमान जी के मंदिर में पांच मंगलवार को रखें।
धनु- धनु राशि वाले जातक यदि अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करना चाहते हैं तो गुलर के ग्यारह पत्तों को नाड़े से बांधकर किसी बरगद के वृक्ष पर बांध दें। आपकी मनोकामना पूरी होगी। इसके अलावा पीली कौडय़िां भी जेब में रख सकते हैं।
मकर- मकर राशि के जातकों के लिए आर्थिक तंगी से निजात पाने के लिए बहुत ही उत्तम उपाय है। उसके लिए आप शाम को आक की रूई का दीपक या एक रोटी अपने ऊपर से 21 बार उतार (वार) कर किसी तिराहे पर रख सकते हैं। इससे घर में बरकत रहने लगेगी।
कुंभ- कुंभ राशि के जातकों के लिए धन प्राप्त करने के बहुत ही सुंदर उपाय है। आप विष्णु-लक्ष्मी की संयुक्त रूप से प्रार्थना-पूजन करें। जहां पूजन करें वहीं रात भर जागरण करें। आपकी आर्थिक तंगी दूर हो जाएगी।
मीन- मीन राशि के जातकों के लिए धन लाभ हेतु बहुत ही सरल उपाय है। आप काली हल्दी की पूजा कर उसे अपने गल्ले में रखें और प्रतिदिन उसकी पूजा करें। यदि व्यापार में लाभ नहीं हो रहा है तो यह समस्या दूर हो जाएगी।

आर्थिक परेशानियों या पैसों की तंगी:करें ज्योतिष्य उपाय

    पैसों की तंगी और आर्थिक परेशानियों से जूझते     लोगों के लिए हमारे प्राचीन ज्योतिष विद्या में कारगर उपाय हैं जिनसे इन समस्याओं से निज़ात पाया जा सकता है। यह उपाय 12 राशियों के अनुसार बताए गए हैं। यह उपाय अगर अपने ईष्ट का स्मरण कर भक्ति भाव से पूजन और नियमितता से किए जाएं तो अवश्य ही धन संकट का समाधान होता है और हां हमारे वेदों और पुराणों में भी कर्म की आवश्यकता के बारे में बताया गया है तो धर्म के साथ कर्म अवश्य करें। सफलता जरूर मिलेगी।
मेष- मेष राशि वाले जातकों को शाम के समय घर के मुख्य द्वार पर तेल का दीपक प्रज्ज्वलित करना चाहिए। अधिक फायदे के लिए उसमें दो काली मिर्च डाल दें। इस उपाय से जल्दी ही आर्थिक परेशानी दूर होती है। इसके अलावा अगर धन संबंधी कोई मामला अटका है तो उसमें भी फायदा होता है।
वृषभ- राशि वाले जातकों को आर्थिक फायदे के लिए पीपल के 5 पत्ते लेकर उन पर पीला चंदन लगाना चाहिए। इन पत्तों को किसी नदी या बहते हुए जल में बहाने से आर्थिक संकट शर्तिया दूर होता है। जमा पूंजी में वृद्धि करने, बढ़ाने के लिए पीपल के पेड़ पर चंदन लगाए और जल चढ़ाएं।
मिथुन- राशि वाले जातकों को व्यापार या घर में धन वृद्धि के लिए बरगद के पांच फल लाकर उसे लाल चंदन में रंग कर नए लाल वस्त्र में कुछ सिक्कों के साथ बांध कर अपने घर अथवा दुकान के अग्रभाग में लगाना चाहिए इससे कल्पनातीत धन की प्राप्ति होती है।
कर्क- राशि वाले जातकों को धन प्राप्ति के लिए संध्या के समय पीपल के वृक्ष के नीचे तेल का पंचमुखी दिया जलाना चाहिए। इसके बाद करबद्ध होकर माता लक्ष्मी से धन लाभ की प्रार्थना करें। अचानक धन की प्राप्ति होगी।
सिंह- राशि वाले जातक यदि आर्थिक नुकसान झेल रहे हैं और कुछ भी सही नहीं चल रहा है तो उनके लिए एक उपाय है कि वे कौढ़डि़य़ों को हल्दी के घोल में भिगो कर उन्हें अपने पूजा घर में रखें, लेकिन इससे पूर्व लक्ष्मी जी के साथ उसकी पूजा करें।
कन्या- राशि वाले जातकों के लिए बहुत ही सुंदर उपाय है। आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए- दो कमलगट्टे लेकर उन्हें माता लक्ष्मी के मंदिर में अर्पित करते हुए धन प्राप्ति की कामना करें।
तुला- तुला राशि वाले जातकों के लिए धन प्राप्ति हेतु सरल उपाय है। आपको शुक्र-पुष्य नक्षत्र का इंतजार करना होगा। इस शुभ नक्षत्र में लक्ष्मी मंदिर जाकर उन्हें पांच नारियल चढ़ाएं और सभी को नारियल का प्रसाद बांटे। हां एक साबूत नारियल को अपने पास रख लें। उसे आप बहते जल में बहा दें।
वृश्चिक- वृश्चिक राशि वाले जातक का स्वामी ग्रह मंगल होता है। वे हमेशा अपने दिमाग में उलझे रहते हैं। यदि वे कर्ज की उलझन में फंसे हैं तो संध्या काल किसी भी विष्णु-लक्ष्मी मंदिर में जाएं और वहां का जल एक पात्र में भर कर ले आएं, बाद में उसे पीपल के पेड़ की जड़ों में चढ़ा दें। इसके अलावा वह चाहें तो बड़ के पत्ते पर आटे का दिया जला कर उसे हनुमान जी के मंदिर में पांच मंगलवार को रखें।
धनु- धनु राशि वाले जातक यदि अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करना चाहते हैं तो गुलर के ग्यारह पत्तों को नाड़े से बांधकर किसी बरगद के वृक्ष पर बांध दें। आपकी मनोकामना पूरी होगी। इसके अलावा पीली कौडय़िां भी जेब में रख सकते हैं।
मकर- मकर राशि के जातकों के लिए आर्थिक तंगी से निजात पाने के लिए बहुत ही उत्तम उपाय है। उसके लिए आप शाम को आक की रूई का दीपक या एक रोटी अपने ऊपर से 21 बार उतार (वार) कर किसी तिराहे पर रख सकते हैं। इससे घर में बरकत रहने लगेगी।
कुंभ- कुंभ राशि के जातकों के लिए धन प्राप्त करने के बहुत ही सुंदर उपाय है। आप विष्णु-लक्ष्मी की संयुक्त रूप से प्रार्थना-पूजन करें। जहां पूजन करें वहीं रात भर जागरण करें। आपकी आर्थिक तंगी दूर हो जाएगी।
मीन- मीन राशि के जातकों के लिए धन लाभ हेतु बहुत ही सरल उपाय है। आप काली हल्दी की पूजा कर उसे अपने गल्ले में रखें और प्रतिदिन उसकी पूजा करें। यदि व्यापार में लाभ नहीं हो रहा है तो यह समस्या दूर हो जाएगी।

लक्ष्मी कृपा पाने के उपाय

    शास्त्रों के अनुसार झाड़ू को भी महालक्ष्मी     का ही एक स्वरूप माना गया है। झाड़ू से दरिद्रता रूपी गंदगी को बाहर किया जाता है। जिन घरों के कोने-कोने में भी सफाई रहती है, वहां का वातावरण सकारात्मक रहता है। घर के कई वास्तु दोष भी दूर होते हैं। साथ ही, इनसे जुड़ी कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो महालक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त की जा सकती है। देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए घर के आसपास किसी भी मंदिर में तीन झाड़ू रख आएं। यह पुराने समय से चली आ रही परंपरा है। पुराने समय में लोग अक्सर मंदिरों में झाड़ू दान किया करते थे।
ध्यान रखें ये बातें:
* मंदिर में झाड़ू सुबह ब्रह्म मुहूर्त में रखना चाहिए।
* यह काम किसी विशेष दिन करना चाहिए। विशेष दिन जैसे कोई त्योहार, ज्योतिष के शुभ योग या शुक्रवार को।
* इस काम को बिना किसी को बताए गुप्त रूप से करना चाहिए। शास्त्रों में गुप्त दान का विशेष महत्व बताया गया है।
* जिस दिन यह काम करना हो, उसके एक दिन पहले ही बाजार से 3 झाड़ू खरीदकर ले आना चाहिए।
घर में पोंछा लगाते समय करें ये उपाय:
जब भी घर में पोंछा लगाते है, तब पानी में थोड़ा-सा नमक भी मिला लेना चाहिए। नमक मिले हुए पानी से पोंछा लगाने पर फर्श के सूक्ष्म कीटाणु नष्ट होंगे। साथ ही, घर की नकारात्मक ऊर्जा भी खत्म हो जाएगी। घर का वातावरण पवित्र होगा और जिन घरों में पवित्रता रहती है, वहां लक्ष्मी का आगमन होता है। पुरानी मान्यता है कि गुरुवार को घर में पोंछा न लगाएं ऐसा करने से लक्ष्मी रूठ जाती है। शेष सभी दिनों में पोंछा लगाना चाहिए।
घर में झाड़ू कहां और कैसे रखें:
झाड़ू से घर में प्रवेश करने वाली बुरी अथवा नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है। अत: इसके संबंध ध्यान रखें कि:
* खुले स्थान पर झाड़ू रखना अपशकुन माना जाता है, इसलिए इसे छिपा कर रखें।
* भोजन कक्ष में झाड़ू न रखें, क्योंकि इससे घर का अनाज जल्दी खत्म हो सकता है। साथ ही, स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
* यदि अपने घर के बाहर हर रोज रात के समय दरवाजे के सामने झाड़ू रखते हैं तो इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश नहीं करती है। ये काम केवल रात के समय ही करना चाहिए। दिन में झाड़ू छिपा कर रखें।
झाड़ू से जुड़े शकुन-अपशकुन:
* अगर कोई बच्चा घर में अचानक झाड़ू लगा रहा है तो समझना चाहिए अनचाहे मेहमान घर में आने वाले हैं।
* सूर्यास्त के बाद घर में झाड़ू पोंछा गलती से भी नहीं लगाना चाहिए। ऐसा करना अपशकुन माना जाता है।
* झाड़ू पर गलती से भी पैर नहीं रखना चाहिए। ऐसा होने पर लक्ष्मी रूठ जाती हैं। यह अपशकुन है।
* कभी भी गाय या अन्य जानवर को झाड़ू से नहीं मारना चाहिए। यह अपशकुन माना गया है।
* कोई भी सदस्य किसी खास कार्य के लिए घर से निकला हो तो उसके जाने के तुरंत बाद घर में झाड़ू नहीं लगाना चाहिए। ऐसा करने पर उस व्यक्ति को असफलता का सामना करना पड़ सकता है।
* झाड़ू को कभी भी खड़ी करके नहीं रखना चाहिए। यह अपशकुन माना गया है।
* हम जब भी किसी नए घर में प्रवेश करें, उस समय नई झाड़ू लेकर ही घर के अंदर जाना चाहिए। यह शुभ शकुन माना जाता है। इससे नए घर में सुख-समृद्धि और बरकत बनी रहेगी।

ज्योतिष उपायों से चमक सकती है किस्मत

ज्योतिष शास्त्र के अंतर्गत अनेक ऐसे छोटे व आसान उपाय बताए गए हैं, जिन्हें करने से जीवन की हर परेशानी दूर हो सकती हैं। बहुत से लोग इन उपायों के बारे में या तो जानते नहीं है और यदि जानते हैं तो इन पर विश्वास नहीं करते। इन उपायों पर विश्वास करने के लिए जरूरी है स्वयं पर विश्वास करना।
तंत्र शास्त्र व ज्योतिष के अनुसार, यदि ये उपाय सच्चे मन से किए जाएं तो जल्दी ही इनका सकारात्मक प्रभाव देखा जा सकता है। आज हम आपको कुछ ऐसे ही छोटे और अचूक उपाय बता रहे हैं, जिन्हें सच्चे मन से करने से आपकी जिंदगी की हर परेशानी दूर हो सकती है। ये उपाय इस प्रकार हैं-
1. रोज सुबह उठकर अपनी हथेलियां देखें:
रोज सुबह जब आप उठें तो सबसे पहले दोनों हाथों की हथेलियों को कुछ क्षण देखकर चेहरे पर तीन चार बार फेरे। धर्म ग्रंथों के अनुसार, हथेली के ऊपरी भाग में मां लक्ष्मी, बीच में मां सरस्वती व नीचे के भाग (मणि बंध) में भगवान विष्णु का स्थान होता है। इसलिए रोज सुबह उठते ही अपनी हथेली देखने से भाग्य चमक उठता है।
2. पहली रोटी गाय को दें:
भोजन के लिए बनाई जा रही रोटी में से पहली रोटी गाय को दें। धर्म ग्रंथों के अनुसार, गाय में सभी देवताओं का निवास माना गया है। अगर प्रतिदिन गाय को रोटी दी जाए तो सभी देवता प्रसन्न होते हैं और आपकी हर मनोकामना पूरी कर सकते हैं।
3. चीटियों को आटा डालें:
अगर आप चाहते हैं कि आपकी किस्मत चमक जाए तो रोज चीटियों को शक्कर मिला हुआ आटा डालें। ऐसा करने से आपके पाप कर्मों का क्षय होगा और पुण्य कर्म उदय होंगे। यही पुण्य कर्म आपकी मनोकामना पूर्ति में सहायक होंगे।
4. देवताओं को फूलों से सजाएं:
घर में स्थापित देवी-देवताओं को रोज फूलों से सजाना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि फूल ताजे ही हो। सच्चे मन से देवी-देवताओं को फूल आदि अर्पित करने से वे प्रसन्न होते हैं व व्यक्ति के जीवन की हर परेशानी दूर कर सकते हैं। स्नान करने के बाद तोड़े गए फूल ही भगवान को चढ़ाना चाहिए, ऐसा नियम है।
5. सुबह करें झाड़ू-पोछा:
घर को हमेशा साफ-स्वच्छ रखना चाहिए। रोज सुबह झाड़ू-पोछा करें। सूर्यास्त के बाद झाड़ू-पोछा नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से मां लक्ष्मी रूठ जाती हैं और व्यक्ति को आर्थिक हानि का सामना भी करना पड़ सकता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, जो व्यक्ति सूर्यास्त के बाद झाड़ू-पोछा करता है, देवी लक्ष्मी उस घर में निवास नहीं करती और वहां से चली जाती हैं।
6. मछलियों को आटे की गोलियां खिलाएं:
अपने घर के आस-पास कोई ऐसा तालाब, झील या नदी का चयन करें, जहां बहुत सी मछलियां हों। यहां रोज जाकर आटे की गोलियां मछलियों को खिलाएं। मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने का यह बहुत ही अचूक उपाय है। नियमित रूप से जो यह उपाय करता है, कुछ ही दिनों में उसकी परेशानियां दूर होने लगती हैं।
7. माता-पिता का आशीर्वाद लें:
रोज जब भी घर से निकले तो उसके पहले अपने माता-पिता और घर के बड़े बुजुर्गों के पैर छूकर आशीर्वाद लें। ऐसा करने से आपकी कुंडली में स्थित सभी विपरीत ग्रह आपके अनुकूल हो जाएंगे और शुभ फल प्रदान करेंगे। माता-पिता के आशीर्वाद से आप पर आने वाला संकट टल जाएगा और आपके काम बनते चले जाएंगे।
8. पीपल पर जल चढ़ाएं:
रोज सुबह स्नान आदि करने के बाद पीपल के पेड़ पर एक लोटा जल चढ़ाएं। मान्यता है कि पीपल में भगवान विष्णु का वास होता है। रोज ये उपाय करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और शुभ फल प्रदान करते हैं। इस पेड़ का महत्व इसी बात से जाना जा सकता है कि अर्जुन को गीता को उपदेश देते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं को पेड़ों में पीपल बताया था।
9. घर खाली हाथ न जाएं:
बाहर से जब भी आप घर में प्रवेश करें तो कभी खाली हाथ ना जाएं। घर में हमेशा कुछ ना कुछ लेकर प्रवेश करें। चाहे वह पेड़ का पत्ता ही क्यों न हो।

ज्योतिष में शनि राहु का संबंध

राहु का नाम केतु के साथ लिया जाता है परंतु इन दोनों ग्रहों में जितना विभेद है उतनी ही समानता राहु एवं शनि में है. शनि और राहु इन दोनों ग्रहों को पाप ग्रह के रूप में माना जाता है. ज्योतिषशास्त्र में शनि और राहु को एक विचार एवं गुणों वाला भी माना गया है. आमतौर पर इन दोनों ही ग्रहों को दु:ख एवं कष्ट का कारक समझा जाता है. लेकिन, ये दोनों ही ग्रह कुण्डली में बलवान हों तो राजयोग के समान फल देते हैं . राहु केतु में कुछ समानता हैं तो कुछ विभिन्नताएं भी हैं फिर भी ज्योतिषशास्त्र के बहुत से विद्वानों की सामान्य धारण है कि शनि एवं राहु एक समान ग्रह हैं. दोनों ही ग्रह एक समान फल देते हैं.
शनि राहु में समानता
शनि एवं राहु दोनों ही कार्मिक ग्रह माने जाते है . कर्मिक का अर्थ होता है कर्म के अनुरूप फल देने वाला. नवग्रहों में शनि देव को दण्डनायक का पद प्राप्त है जो व्यक्ति को उनके पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार सजा भी देते हैं और पुरष्कार भी. राहु का फल भी शनि की भांति पूर्व जन्म के अनुसार मिलता है. राहु व्यक्ति के पूर्व जन्म के गुणों एवं विशेषताओं को लेकर आता है.
शनि एवं राहु दोनों ही ग्रह दु:ख, कष्ट, रोग एवं आर्थिक परेशानी देने वाले होते हैं. परंतु, जन्मपत्री में ये दोनों अगर शुभ स्थिति में हों तो बड़े से बड़ा राजयोग भी इनके समान फल नहीं दे सकता. यह व्यक्ति को प्रखर बुद्धि, चतुराई, तकनीकी योग्यता प्रदान कर धन-दौलत से परिपूर्ण बना सकते हैं. ऊँचा पद, मान-सम्मान एवं पद प्रतिष्ठा सब कुछ इन्हें प्राप्त होता है.
शनि राहु में भेद
शनि राहु में कुछ समानताएं हैं तो इनमें अंतर भी हैं. शनि का भौतिक अस्तित्व है अर्थात यह पिण्ड के रूप में मौजूद हैं जबकि राहु एक आभाषीय बिन्दु है इसका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है. मकर एवं कुम्भ इन दोनों राशियों का स्वामित्व शनि को प्राप्त है जबकि राहु की अपनी कोई राशि नहीं है. राहु जिस राशि में बैठता है उसे अपने अधिकार में कर लेता है.
शनि देव की गति मंद होने के कारण शनि का फल विलम्ब से अथवा धीरे-धीरे प्राप्त होता है जबकि राहु जल्दी फल देने वाला ग्रह है . यह एक पल में अमीर बना देता है तो दूसरे ही पल कंगाल बनाने की भी योग्यता रखता है. शनि देव का गुण है कि यह व्यक्ति को ईमानदारी एवं मेहनत से आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं तो राहु चतुराई एवं आसान तरीकों से सफलता पाने का विचार उत्पन्न करता है.
शनि राहु में विभेद के साथ समानता
शनि एवं राहु में एक बहुत ही रोचक विभेद एवं समनता है. राहु वृष राशि में उच्च का होता है और वृश्चिक में नीच का तो शनि तुला में उच्च होते हैं एवं मेष में नीच होते हैं. इस तरह दोनों ही शुक्र की एक राशि में उच्च के होते हैं और मंगल की एक राशि में नीच के हो जाते हैं.

गजकेसरी योग के फल

गुरु-चन्द्र का एक दुसरे से केन्द्र में होना गजकेसरी योग का निर्माण करता है. गजकेसरी योग व्यक्ति की वाकशक्ति में वृ्द्धि होती है. इसकी शुभता से धन, संमृ्द्धि व संतान की संभावनाओं को भी सहयोग प्राप्त होता है. गुरु सभी ग्रहों में सबसे शुभ ग्रह है.
इन्हें शुभता, धन, व सम्मान का कारक ग्रह कहा जाता है. इसी प्रकार चन्द्र को भी धन वृ्द्धि का ग्रह कहा जाता है. दोनों के संयोग से बनने वाले गजकेसरी योग से व्यक्ति को अथाह धन प्राप्ति की संभावनाएं बनती है. परन्तु गजकेसरी योग से मिलने वाले फल सदैव सभी के लिये एक समान नहीं होते है.
अनेक कारणों से गजकेसरी योग के फल प्रभावित होते है. कई बार यह योग कुण्डली में बन रहे अन्य योगों के फलस्वरुप भंग हो रहा होता है. तथा इससे मिलने वाले फलों में कमी हो रही होती है. परन्तु योगयुक्त व्यक्ति को इसकी जानकारी नहीं होती है.
गजकेसरी योग का फलादेश करते समय किस प्रकार की बातों का ध्यान रखना चाहिए. आईये यह जानने का प्रयास करते है.
"गजकेसरी योग" फलादेश सावधानियां
1. गुरु-चन्द्र स्वामित्व
गजकेसरी योग से मिलने वाले फलों का विचार करते समय विश्लेषणकर्ता इस बात पर ध्यान देता है कि चन्द्र तथा गुरु किन भावों के स्वामी है. इसमें भी गुरु की राशियां किन भावों में स्थित है, इसका प्रभाव योग की शुभता पर विशेष रुप से पडता है.
जन्म कुण्डली में चन्द व गुरु की राशि शुभ भावों में होंने पर गजकेसरी योग की शुभता में वृ्द्धि व अशुभ भावों में इनकी राशियां स्थित होने पर योग की शुभता कुछ कम होती है.
2. चन्द्र नकारात्मक स्थिति
जब कुण्डली में चन्द्र पीडित होना गजकेसरी योग के अनुकुल नहीं समझा जाता है. अगर चन्द्र केमद्रुम योग में न हों, चन्द्र से प्रथम, द्वितीय अथवा द्वादश भाव में कोई ग्रह नहीं होने पर चन्द्र के साथ-साथ गजकेसरी योग के बल में भी वृ्द्धि होती है.
इसके अलावा चन्द का गण्डान्त में होना, पाप ग्रहों से द्रष्टि संबन्ध में होना, या नीच का होना गजकेसरी योग के फलों को प्रभावित कर सकता है.
3. गुरु, चन्द्र के अशुभ योग
कुण्डली में जब ग्रुरु से चन्द छठे, आंठवे या बारहवें भाव में होंने पर शकट योग बनता है. यह योग क्योकि गुरु से चन्द्र की षडाष्टक स्थिति में होने पर बनता है इसलिये अनिष्टकारी होता है.
इसलिये गजकेसरी योग भी शुभ भावों में बनने पर विशेष शुभ फल देता है. तथा गुरु व चन्द्र की स्थिति इसके विपरीत होने पर गजकेसरी योग की शुभता में कमी होती है.
4. गजकेसरी योग व केमद्रुम योग
गजकेसरी योग क्योकि गुरु से चन्द्र के केन्द्र में होने पर बनता है. इस योग के अन्य नियमों का वर्णन इससे पहले दिया जा चुका है. इन नियमों में यह भी सम्मिलित करना चाहिए. कि चन्द्र के दोनों ओर के भावों में सूर्य, राहू-केतु के अलावा अन्य पांच ग्रहों में से कोई भी ग्रह स्थित होना चाहिए.
5. गुरु नकारात्मक स्थिति
गुरु का वक्री होने पर गजकेसरी योग की गुणवता में कमी होती है. जो पाप ग्रह इनसे युति, द्रष्टि संबन्ध बना रहा हों उस ग्रह की अशुभ विशेषताएं योग में आने की संभावनाएं रहती है.
6. गुरु-चन्द सकारात्मक पक्ष-
अगर गुरु अथवा चन्द्र उच्च, गुरु सुस्थिति में हों तो यह गजकेसरी योग व्यक्ति को उतम फल देगा. व अगर चन्द अथवा गुरु दोनों में से कोई अपनी मूलत्रिकोण राशि में स्थित हों, अच्छे भाव में हों और दूसरा ग्रह भी शुभ स्थिति में हों तब भी गजकेसरी योग की शुभता बनी रहती है.
7. "गजकेसरी योग' दशाओं का प्रभाव
सभी योगों के फल इनसे संबन्धित ग्रहों कि दशाओं में ही प्राप्त होते है. कई बार किसी व्यक्ति की कुण्डली में अनेक धनयोग व राजयोग विधमान होते है. परन्तु उस व्यक्ति को अगर धनयोग व राजयोग बना रहे, ग्रहों की महादशा न मिलें तो व्यक्ति के लिये ये योग व्यर्थ सिद्ध होते है. इसी प्रकार गजकेसरी योग के फल भी व्यक्ति को गुरु व चन्द्र की महादशा प्राप्त होने पर ही प्राप्त होते है.
व्यवहारिक रुप में यह देखने में आया है कि गजकेसरी योग के सर्वोतम फल उन्हीं व्यक्तियों को प्राप्त हुए है. जिनकी कुण्डली में यह योग बन रहा हों तथा जिनका जन्म गुरु या चन्द्र की महादशा में हुआ हों. उस अवस्था में गजकेसरी योग विशेष रुप से लाभकारी रहता है.
इसके अलावा गजकेसरी योग के व्यक्तियों को जन्म के समय गुरु या चन्द्र की अन्तर्दशा प्राप्त होना भी शुभ फलकारी होता है. या फिर गुरु में गुरु की महादशा या चन्द्र में चन्द्र कि महादशा में जन्म होने पर भी गजकेसरी योग का व्यक्ति अपने जीवन में धन व यश की प्राप्ति करता है.

Saturday 8 October 2016

Lagna represents the characteristics of a person

The ascendant or lagna sign represents the characteristics of the person. The nature of the signs was briefly mentioned. Once the ascendant is known, the signs of the other houses and hence general characteristics of relations and affairs pertaining to those houses are also possible to predict. The satire are briefly given below for each lagna.
ASCENDANT ARIES/MESH LAGNA
In the Kaal Purush Kundali, Aries ruled by Mars is the natural sign of the first house. The ascendent sign of the person as also the signs of all the houses in this case. therefore, remain exactly the same as in the Kaal Purush Kundals‘. The person with Aries lagna is full of vigour, dynamic and assertive.
The second house of family is Taurus. Taurus is for sincerity. S/ he is sincere towards family. The third house of travels is Gemini, a movable sign. Hence, the person will enjoy short travels/changes. The fourth house of home is Cancer. A Cancerian is anyway fond of home. The fifth house of children is Leo, Leo being like a lion/ lioness protects his/ her children. The sixth house of disease is Virgo representing navel/ stomach region. Hence, s/ he is prone to stomach disorders.
The seventh house of spouse is Libra, Libra stands for sophistication in love. In addition to sophistication, a Libran spouse is reasonable, compromising and cooperative. S/ he has higher-class upbringing with the desired luxury and refinement in life. The eighth house of genitals is Scorpio, Scorpio is passionate about sex. The ninth house of Dharma is Sagittarius ruled by Jupiter and imparts a religious outlook. The tenth house of karma is Capricorn. Capricorn is hardworking and sincere in work. But s/ he is self-centered and may favour own kith and kin. The eleventh house of gains and friendship is Aquarius. An Aquarian prefers own personal freedom in friendship. The twelfth house is Pisces ruled by Jupiter. Likes to go on pilgrimages and spends on worthy causes.
ASCENDENT TAURUS/ VRISHABHA LAGNA
Taurus ruled by Venus is the natural sign of the second house. Hence the native with Taurus lagna is fond of good food. S/ he is also sincere, earthly, practical and sensual. The third house is Cancer, representing homeliness. Any travel, therefore, is only to visit family and friends. The fourth house is Leo. Leo is for royalty. Likes royal atmosphere in home. The fifth house is Virgo. Virgo is for perfection. Children are hard working and perfect. The sixth house is Libra. Likes pleasant work conditions. Libra represents Bastz‘. The weak point of health is, therefore, kidneys and urinary system. The seventh house is Scorpio. Spouse should be a passionate lover. The eighth house of death is Sagittarius ruled by Jupiter. Sagittarius governs foreign lands. Therefore, peacefull easy death in a foreign land or on a journey at mature age is predicted. The ninth house is Capricorn ruled by Saturn. Likes justice to all and is philosophical in religious matters. The tenth house is Aquarius. Suitable professions are teaching and research. But one is devoid of sincerity. The eleventh house of friends is Pisces ruled by Jupiter. Has few but noble friends.
ASCENDANT GEMINI /MITHUNA LAGNA
Gemini ruled by Mercury is the natural sign of the third house of throat, short travels communication, valour, etc. Hence, the native is sociable, gossipy and fond of conversation, singing, reading, writing, not fond of outdoor life, preferring to stay indoors. Mithuna means sexual intercourse. Geminians are therefore fond of sexual pleasures.
The fourth house is Virgo. S/ he is a perfectionist at home. The filth house of love is Libra. Prefers stable and sophisticated love life. The sixth house is Scorpio. Likes passionate involvement in work. Weak points of health are lower abdominal, genital and anus areas. The seventh house is Sagittarius. Has noble partner of outgoing nature. The eighth house is Capricorn ruled by Saturn. Natural death in very old age is predicted. The ninth house is Aquarius and hence the native is not much inclined towards religion. The tenth house is Pisces, which signifies success in solitary professions. The eleventh house is Aries. Likes friends full of vigour.
ASCENDANT CANCER/KARKA LAGNA
Cancer ruled by the Moon is the natural sign of the fourth house of mother, home, happiness and heart. Native with Cancer lagna is, therefore, basically a heart dominated home loving person. The sun governs classes while the Moon governs masses. Hence, s/he is a man/woman of masses/people.
The second house is Leo representing royalty. Gets wealth / financial success as a result of support of influential people. The third house is Virgo, seeks perfection in whatever s/ he does. The fourth house is Libra. Likes sophistication and luxury in home. The fith house of love is Scorpio. Is a passionate lover. Love may, however, result in quarrels. The sixth house of work is Sagittarius. Likes to work where travel or outdoor life is involved. Weak point of health is blood circulation and thighs. The seventh house is Capricorn ruled by Saturn. Likes a sober person as spouse. The ninth house of long travel and Dharma is Pisces, a watery sign ruled by Jupiter. Likes cruises on sea/ rivers. ls religiously inclined. The tenth house is Aries. Provides dynamism in work. May act foolishly. Should try to maintain amiable atmosphere. The eleventh house is Taurus. Likes good hearted, sincere and informal friends.
ASCENDANT LEO/SINGN LAGNA
Leo ruled by Sun is the natural sign of fifth house of mind, education, children and love life. A Leo is a man/woman of class and royal nature. Has a steady mind. Is proud and valorous. Loves in style. Dotes over and protects his/ her children. The fourth house is Scorpio. Is emotional and irascible at home. The fifth house is Sagittarius, a movable sign, but ruled by Jupiter. May have lot of love affairs. But settles down after finding a suitable partner. The sixth house is Capricorn ruled by Saturn. Unceasingly and patiently devotes to work. Weak point of health is gas trouble, and knees. May suffer from arthritis. The seventh house is Aquarius. Spouse is unconventional and is of independent nature. The eighth house of death is Pisces. Should be careful of water. The ninth house is Aries. Likes adventure travels. The tenth house is Taurus signifying honesty, simplicity and sincerity in work. Person is liked by all. The eleventh house is Gemini. Likes talkative friends. The tweth house is Cancer. Native may have problems from the home front.
ASCENDANT VIRGO/KANYA LAGNA
Virgo ruled by Mercury is the natural sign of sixth house of diseases, enemies and work. A Virgoan is predisposed to illness. Is suitable for medical and social service. Always seeks precision and perfection. Is sweet and feminine in nature. The fourth house is Sagittarius. Sagittarius stands for foreigners. Hence, may set up home abroad. The fifth house is Capricorn. Takes care to have unproblematic love affairs.The sixth house is Aquarius. Will be a professional. May opt for teaching and research. Is good for medical profession.
The seventh house is Pisces. Seeks a loving, tender and compassionate partner. The eighth house is Aries ruled by Mars. Haste could prove dangerous to life. The ninth house is Taurus. Has fixed ideas of philosophy. Never changes principles, The tenth house is Gemini. There are frequent changes in profession/ place of work. Person adhere to rules Loves all. The eleventh house is Cancer. Has sincere friends. But family comes first. The twelth house is Leo. Problems with authority/ superiors are predicted.
ASCENDANT LIBRA/ TULA LAGNA
Libra is the natural sign of the seventh house of partnership. One is good as a business partner. Lives with a degree of luxury and sophistication. Is rational, reasonable, compromisingand cooperative. Balance is the rule of life. But in trying to do so, may fall between two stools.
The fourth house is Capricorn. Prefers to settle down in home in contemplation. The fifth house is Aquarius. Does not like routine style love affair. The sixth house is Pisces. Weak point is emotional health. The seventh house is Aries. Spouse will be active and dynamic. The eighth house is Taurus. Hence natural death after happy old age is predicted. The ninth house of long travels is Gemini, natural sign of third house of travels. Hence, one is very fond of travelling. The tenth house is Cancer ruled by Moon that represents masses. Likes a career that involves dealing with common people. Person is lenient and merciful. The eleventh house is Leo that represents classes. Friends are people of class/ status.
ASCENDANT SCORPIO/ VRISHCHZKA LAGNA
Scorpio is the natural sign of the eighth house of genitals. Sexuality is most important in his/ her life. Is dominated by passions and intense emotions. Scorpio is secretive. S/he is a born detective. The second house is Sagittarius. Wealth from foreign sources is predicted. The third house is Capricorn. Is methodical in activities. The fourth house is Aquarius. Prefers own freedom. Does not like to conform to the rules of homely life. The fifth house is Pisces. Idealist in love. The sixth house is Aries. Has ability to command in work. Aries represents heard. Hence, headache, fevers, etc. The seventh house is Taurus. Seeks amorous, attractive and sincere spouse. The eighth house is Gemini, natural sign of third house of throat/ lungs. Hence, chronic lungs problem. So one must not smoke. It can cause death. The ninth house is watery sign Cancer. Likes sea voyage. The tenth house isLeo. Shows leadership qualities in profession. Expects high standards from others also. The eleventh house is Virgo. Likes friends who are intelligent and perfect.
ASCENDANT SAGITTARIUS/DHANU LAGNA
Sagittarius ruled by Jupiter is the natural sign of the ninth house of long travels and spirituality. A Sagittarian enjoys outdoor life, foreign lands and travel. Does not like restricted atmosphere. Is outgoing, jovial, magnanimous and broad—minded. The second house is Capricorn ruled by Saturn. Wealth comes only by hard labour. The fourth house is Pisces. Likes ideal home life. The fifth house is Aries. Children are healthy and strong. Has vigorous love life. The sixth house is Taurus. Is honest and trust—worthy at work. Weak point is face/ mouth. The seventh house is Gemini. Early marriage. Wife is good in conversation, and is fond of sex life. The eighth house is Cancer natural sign of fourth house of heart. Heart trouble can be fatal. The tenth house of karma is Virgo ruled by Mercury. Medical, social work, business, computational work are suitable. The eleventh house is Libra. Likes sophisticated balanced friends.
ASCENDANT CAPRICORN/MAKARA LAGNA
A Capricornian ruled by Saturn has lot of mental stamina. S/he is slow but steady. Is a disciplined, justice loving and nonsense person. Spends life all the time instructing self on a right path. Usually, lives up to a mature old age. May suffer from gas trouble. The fourth house is Aries. Wields authority in the family. The fifth house is Taurus. Is sincere in love. Has sweet loving children. The sixth house is Gemini ruled by Mercury. Likesa job that requires lot of conversation and travels. Weak points of health are throat and nervous system. The seventh house is Cancer. Spouse is emotional. However, the native with Capricorn lagna is usually attached to an older. man/ woman. The tenth house is Libra. Diplomatic and popular in work. Judicial service is suitable. The twelfth house is Sagittarius. One may have problems with foreigners or matters pertaining to foreign countries.
ASCENDANT AQUARIUS/KUIMBHA LAGNA
Aquarius is ruled by malefics Saturn and Uranus. It is the natural sign of the eleventh house of income, gains and friends. Aquarian is, therefore, a group conscious person having many friends. Is a good teacher, researcher and/ or professional. Most of all, s/ he loves own freedom and does not like routine way of living. Is unconventional. And is peevish in nature, greedy of others wealth and may be a stealthy sinner. The third house is Aries. ls, therefore, always ready to take initiative. The fourth house is Taurus. Is sincere in taking care of home and possessions. The fifth house is Gemini. Changeable in love. The sixth house is Cancer. Likes jobs that bring Contact with people. Weak point of health is heart. The seventh house is Leo. Partner is of regal nature and personality. The eighth house is Virgo. Death is natural after a happy old age. The tenth house is Scorpio. ls curious and suspecting by nature in work. Professions involving investigations are suitable. The eleventh house is Sagittarius. Friends are decent, jovial people.
ASCENDANT PISCES/MEENA LAGNA
Pisces ruledby benefics Jupiter and Neptune is the natural sign of twelth house of expenditure, loss, renunciation and abroad. Pisceans have attractive fish-like eyes. They are learned, grate and always content with their spouse. They hardly have any extra-marital relation. They gain from water-borne and foreign products. A Piscean is highly righteous, sincere. noble. compassionate, idealistic, tender. loving, understanding and imaginative person. S/ he respects orthodox principles and looks for love of the pure and perfect kind that is though difficult to get. The Second house is Aries. Financial success is through initiative and energy. The third house is Taurus, a fixed sign. Is not much fond of travel. The fourth house is Gemini. Hence, frequently changes home. The fifth house is Cancer. Very often in love until s/ he finds a suitable partner. After that, no more flirting. Would like to raise a family and have loving children. The sixth house is Leo. Will command authority at work. Weak point of health is stomach. The seventh house is Virgo. Spouse should be perfect in all respects. The eighth house is Libra, Natural death after happy old age. The ninth house is Scorpio. Likes sea voyages The tenth house is Sagittarius. Professions involving teaching outdoor life, and foreign countries are suitable. One is basically engaged in benevolent profession. The eleventh house is Capricorn. Prefers stable friendships with wise and composed people.

Thursday 6 October 2016

कर्क लग्न में शनि का प्रभाव

पराशरी ज्योतिष के सामान्य नियम के अनुसार ग्रहों के फल भाव, राशि व ग्रह पर अन्य ग्रहों की दृष्टि, युति व स्थिति से प्रभावित होते है. शनि तीसरे, छठे, दसवें व ग्यारहवें भाव में शुभ फल देते है. शनि आयु भाव अर्थात अष्टम भाव के कारक ग्रह है. इस भाव में शनि सामान्यता: अनुकुल फल देते है. शेष भावों में शनि के फलों को शुभ नहीं कहा गया है.
कर्क लग्न के लिये शनि सप्तमेश व अष्टमेश भाव के स्वामी होते है. इस लग्न के लिये शनि कुण्डली के बारह भावों में स्थित होकर किस प्रकार के फल दे सकते है. आईये यह जानने का प्रयास करते है.
प्रथम भाव में शनि के फल -शनि कुण्डली के प्रथम भाव में होने पर व्यक्ति का स्वास्थ्य मध्यम रहने की संभावनाएं बनती है. भाई -बहनों के सुख में कमी हो सकती है. व्यक्ति की हिम्मत और साहस में वृ्द्धि होती है. व्यक्ति को अपने जीवन साथी से सुख प्राप्त होता है. पर वैवाहिक जीवन में कुछ रुकावटें बनी रह सकती है. व्यक्ति को आजिविका के क्षेत्र में बाधाएं आने की संभावनाएं बनती है. व्यक्ति के लाभों में बढोतरी होती है.
द्वितीय भाव में शनि के फल - इस योग के व्यक्ति को माता का पूर्ण सुख प्राप्त होने की संभावनाएं बनती है. जमीन व भूमि के विषयों से भी सुख प्राप्त होता है. पर व्यक्ति को अपने परिवार के सदस्यों से परेशानियां हो सकती है. ऎश्वर्य पूर्ण जीवन व्यतीत करने के अवसर प्राप्त हो सकते है. इसके कारण व्ययों की अधिकता व संचय में कमी हो सकती है. दांम्पत्य जीवन के सुख में कमी हो सकती है.
तृतीय भाव में शनि के फल -कर्क लग्न के व्यक्ति की कुण्डली में शनि तीसरे भाव में हों, उस व्यक्ति के स्वभाव में क्रोध का भाव हो सकता है. उसके पराक्रम में भी बढोतरी होने की सम्भावनाएं बनती है. भाई-बहनों से संबन्ध मधुर न रहने के योग बनते है. तथा समय पर उसे अपने मित्रों का सहयोग न मिलने की भी संभावनाएं बनती है.
शनि का तीसरे भाव में होना व्यक्ति की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करता है. इसके फलस्वरुप उसके व्ययों में बढोतरी हो सकती है. बाहरी व्यक्तियों से संबन्ध मधुर न रहने के योग बनते है. उसके धन में कमी हो सकती है. व्यापारिक क्षेत्र में बाधाएं आ सकती है. तथा व्यक्ति का मन धार्मिक कार्यो में नहीं लगता है.
चतुर्थ भाव में शनि के फल - कर्क लग्न के व्यक्ति के चतुर्थ भाव में शनि व्यक्ति के अपनी माता के सुख में कमी करते है. उसके अपनी माता से विवाद पूर्ण संबन्ध हो सकते है. भूमि- भवन के मामलों में चिन्ताएं बढती है. परन्तु प्रयास करने से बाद में स्थिति सामान्य हो जाती है. इस योग के व्यक्ति के व्यापार में बाधाएं आने की संभावनाएं बनती है.
इस स्थिति में व्यक्ति को अपने शत्रुओं से कष्ट प्राप्त हो सकते है. ऎसे में व्यक्ति अगर हिम्मत से काम लें तो शत्रुओं को परास्त करने में सफल होता है. उसका दांम्पत्य जीवन कलह पूर्ण हो सकता है. सरकारी नियमों का सख्ती से पालन करना उसके लिये हितकारी रहता है.
पंचम भाव में शनि के फल -कर्क लग्न के पंचम भाव में वृ्श्चिक राशि आती है. इस भाव में शनि व्यक्ति को प्रेम में असफलता दे सकते है. पंचम भाव क्योकि शिक्षा का भाव भी है. इसलिये शिक्षा में भी रुकावटें आने के योग बनते है. व्यक्ति अपने मनोबल को उच्च रखे तो वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकता है. इस योग के व्यक्ति का जीवन साथी शिक्षित व चिंतन शील होने की संभावनाएं बनती है.
व्यक्ति के धन संचय में कमी हो सकती है. आजिविका क्षेत्र थोडा सा प्रभावित होता है. पर आय सामान्य रहती है. यह योग व्यक्ति को सदैव चिन्तित रहने की संभावनाएं देता है.
छठे भाव में शनि के फल- कर्क लग्न, धनु राशि, छठे भाव में शनि व्यक्ति कि आजिविका को अनुकुल रखता है. इस योग के फलस्वरुप व्यक्ति के नौकरी करने की संभावनाएं बनती है. उसके अपने दांम्पत्य जीवन में मतभेद हो सकते है. विदेश स्थानों से लाभ प्राप्त हो सकते है. तथा व्ययों की अधिकता हो सकती है. इस योग का व्यक्ति अपने पुरुषार्थ तथा बुद्धि से लाभ प्राप्त करने में सफल होता है.
सप्तम भाव में शनि के फल -यह योग व्यक्ति के व्यापार को अच्छा बनाये रखने में सफल होता है. व्यक्ति को अपने ग्रहस्थ जीवन में सुख की कुछ कमी हो सकती है. धन में भी कमी हो सकती है. मेहनत व प्रयास में कमी न करना हितकारी रहता है.
अष्टम भाव में शनि के फल -इस भाव में शनि अपनी स्वराशि कुम्भ राशि में स्थित होने के कारण व्यक्ति की आयु में वृ्द्धि करता है. व्यक्ति के जीवन साथी के स्वास्थ्य में कमी हो सकती है. उसे भूमि संबन्धी विषयों में परेशानियां हो सकती है. पिता और सरकारी पक्ष से कष्ट प्राप्त हो सकते है. विधा व संतान विषयों में भी कठिनाईयां हो सकती है. इन से संबन्धित सुखों में कमी हो सकती है.
नवम भाव में शनि के फल -आमदनी के स्त्रोत ठीक रहते है. शत्रु पर प्रभाव बना रहता है. जीवन साथी का सुख प्राप्त होता है. व्यक्ति को व्यापार से लाभ प्राप्त हो सकता है. व्यक्ति का स्वास्थ्य मध्यम रहने की संभावनाएं बनती है. उसे अपने भाई- बहनों से कम सहयोग प्राप्त होता है. यह योग व्यक्ति के अपने छोटे भाई बहनों से संबन्ध मधुर न रहने की संभावनाएं देता है.
दशम भाव में शनि के फल पिता का पूर्ण सहयोग प्राप्त नहीं होता है. सरकार की ओर से भी परेशानियां आ सकती है. व्यक्ति के ग्रहस्थ जीवन सुख में कमी हो सकती है. तथा उसके स्वयं के स्वास्थ्य में कमी की संभावनाएं बनती है. व्यवसायिक क्षेत्र से आमदनी अनुकुल प्राप्त होती है.
एकादश भाव में शनि के फल -स्वास्थ्य मध्यम रहता है. उसके शिक्षा क्षेत्र में रुकावटें आ सकती है. यह योग व्यक्ति की बुद्धिमता में वृ्द्धि करता है. व्यक्ति अपने परिश्रम व चतुराई से अपने आय में वृ्द्धि करने में सफल होता है.
द्वादश भाव में शनि के फल- आमदनी से खर्च अधिक होता है. हमेशा किसी न किसी समस्या में फंसे रहते है. जीवन साथी के सुख में कमी हो सकती है. परिवार के सदस्यों से सहयोग व सुख कम प्राप्त होने की सम्भावनाएं बनती है.

सिंह लग्न में शनि का प्रभाव

वैदिक ज्योतिष से किसी भी ग्रह से मिलने वाले फलों को जानने के लिये संबन्धित ग्रह की स्थिति का संपूर्ण विश्लेषण किया जाता है. सभी ग्रह कुछ निश्चित भावों में होने पर शुभ फल देते है तथा कुछ भावों में ग्रहों की स्थिति मध्यम स्तर के शुभ फल दे सकती है. तथा इसके अतिरिक्त कुण्डली के कुछ विशेष भावों में ग्रहों की स्थिति सर्वथा प्रतिकूल फल देने वाली कही गई है.
इसी प्रकार सभी ग्रह अपनी स्वराशि, मित्र राशि, उच्च राशि में हों तो शुभफल देने की क्षमता रखते है. सम राशि में होने पर मिले- जुले फल देते है. या वे शत्रु राशि, राशिअंत, नीच राशि में हों, तो शुभ फल देने में असमर्थ होते है. अन्य अनेक कारणों से ग्रहों से मिलने वाले फल प्रभावित होते है.
प्रथम भाव में शनि के फल - सिंह लग्न के स्वामी सूर्य व शनि के मध्य शत्रुवत संबन्ध होने के कारण इस राशि में लग्न भाव में स्थित हों तो व्यक्ति को स्वास्थ्य संबन्धी परेशानियां हो सकती है. आजिविका के लिये यह योग सामान्य फल देता है. तथा शनि के प्रथम भाव में होने पर व्यक्ति के अपने जीवन साथी से अनुकुल संबन्ध न रहने की सम्भावनाएं बनती है. जिसके कारण व्यक्ति की मानसिक परेशानियों में वृ्द्धि हो सकती है.
द्वितीय भाव में शनि के फल - द्वितीय भाव, कन्या राशि में शनि होने पर व्यक्ति को भूमि- भवन के मामलों में कठिनाईयों को झेलना पड सकता है. उसके जीवन साथी के स्वास्थ्य में कमी हो सकती है. इस योग के प्रभाव से धन संबन्धी विषयों में सहयोग प्राप्त होगा. तथा धन के बढने की भी संभावनाएं बन सकती है. यह योग होने पर व्यक्ति को अपनी माता के साथ मधुर संबन्ध बनाये रखने का प्रयास करना चाहिए. आजिविका क्षेत्र में सामान्य से अधिक मेहनत करनी पड सकती है. तथा कार्यभार भी अधिक होने कि संभावनाएं बनती है.
तृ्तीय भाव में शनि के फल -इस योग के फलस्वरुप व्यक्ति के आय से अधिक व्यय हो सकते है. जिसके कारण व्यक्ति को संचय में परेशानियां हो सकती है. कार्यो में उसे अपने भाईयों का सहयोग मिलता है. व्यक्ति को पराक्रम व पुरुषार्थ से सफलता व उन्नति प्राप्त होने की संभावनाएं बनती है. तथा शिक्षा क्षेत्र के लिये यह योग शुभ फलकारी न होने के कारण व्यक्ति को इस क्षेत्र में बाधाएं दे सकता है. संतान से भी कष्ट प्राप्त हो सकते है.
चतुर्थ भाव में शनि के फल- सिंह लग्न के चतुर्थ भाव में शनि व्यक्ति को व्यापार व आजिविका क्षेत्र में अनुकुल फल देता है. पर इस योग के कारण व्यक्ति के स्वास्थ्य में कमी हो सकती है. भूमि या मकान संबन्धित मामलों के अपने पक्ष में फैसला होने की संभावनाएं बनती है. प्रयास करने से इन विषयों की योजनाओं को पूरा करने में सफलता मिलती है. आय के भी सामान्य रहने के योग बनते है.
पंचम भाव में शनि के फल- व्यक्ति को शिक्षा के क्षेत्र में सफलता मिलती है. शनि के प्रभाव के कारण संतान देर से प्राप्त हो सकती है. व्यक्ति को पिता का सुख कम मिलता है. कई अवसरों पर पिता से मिलने वाले सहयोग में भी कमी हो सकती है. व्यक्ति के अपने जीवन साथी से संबन्ध मधुर रहते है. आजिविका क्षेत्र में कई बार बद्लाव करना पड सकता है. बुद्धिमानी, चतुराई से व्यक्ति अपने संचय में वृ्द्धि करने में सफल हो सकता है.
छठे भाव में शनि के फल -दैनिक कार्यो में परेशानियां बनी रहती है. प्रतिदिन के व्ययों के लिये रोकड में कमी का कई बार सामना करना पड सकता है. व्यक्ति का अपने शत्रुओं पर प्रभाव बना रहता है. मेहनत से व्यक्ति को उन्नती की प्राप्ति होती है. पर इस योग के व्यक्ति को अपने छोटे- भाई- बहनों के सुख में कमी अनुभव हो सकती है.
सप्तम भाव में शनि के फल -माता-पिता से सुख -सहयोग कम मिलने की संभावनाएं बनती है. व्यक्ति को अपने जीवन साथी से कष्ट मिल सकते है. उसे अपने व्यापार में बाधाओं की स्थिति से गुजरना पड सकता है. योग के कारण व्यक्ति के भाग्य में भी मन्द गति से वृ्द्धि होती है. तथा जीवन में अधिक संघर्ष का सामना करना पड सकता है.
अष्टम भाव में शनि के फल -सिंह लग्न की कुण्डली के अष्टम भाव में शनि हों तो व्यक्ति को समय के साथ चलने का प्रयास करना चाहिए. अत्यधिक रुढिवादी होना उसके लिये सही नहीं होता है. यह योग व्यक्ति की आय को बाधित कर सकता है. इन बाधाओं को दूर करने के लिये व्यक्ति को अपनी मेहनत में वृ्द्धि करनी चाहिए.
नवम भाव में शनि के फल -यह योग व्यक्ति को जीवन में बार-बार बाधाएं व परेशानियां दे सकता है. भाग्य भाव में शनि व्यक्ति के स्वास्थ्य में मध्यम स्तर की कमी कर सकता है. उसके अपने जीवन साथी के साथ संबन्ध मधुर न रहने की संभावनाएं बनती है. लडाई -झगडें हो सकते है. आय के लिये शनि का यह योग प्रतिकूल नहीं रहता है.
दशम भाव में शनि के फल -यह योग व्यक्ति के अपने पिता से संबन्ध मधुर न रहने कि संभावनाएं देता है. सिंह लग्न कि कुण्डली में शनि जब दशम भाव में स्थित हों तो उसे कानूनी नियमों व करों का सख्ती से पालन करना चाहिए. व्यक्ति के व्यय अधिक हो सकते है. पुरुषार्थ व मेहनत में वृ्द्धि करने से वह कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है. इसके फलस्वरुप व्यक्ति के दांम्पत्य जीवन में मिला-जुला प्रभाव बना रहता है. शनि के प्रभाव से उसके अपनी माता के सुख में कमी हो सकती है.
एकादश भाव में शनि के फल- व्यक्ति की आ में मन्द गति से मगर लम्बी अवधि तक वृ्द्धि होती है. उसके विवाहित जीवन में परेशानियां बनी रहती है. व्यवसाय में आरम्भ में हानि के बाद लाभ प्राप्त हो सकते है. नौकरी में होने पर व्यक्ति को पूर्ण प्रयास करने से लाभ प्राप्त हो सकते है.
द्वादश भाव में शनि के फल- व्यक्ति के परिवार से बाहर के लोगों के साथ संबन्ध मधुर न रहने के योग बनते है. व्यापार में अडचने मिलने की संभावनाएं बनती है. उसे धन-संचय में कठिनाईयों का सामना करना पड सकता है. परन्तु आय के क्षेत्र में लाभ प्राप्त होते है.

कन्या लग्न में शनि का महत्व

प्रत्येक जन्म कुण्डली में 12 भाव होते है. जिन्हें कुण्डली के "घर" भी कहा जाता है. सभी कुण्डली में भाव स्थिर रहते है. पर इन भावों में स्थित राशियां लग्न के अनुसार बदलती रहती है. कुण्डली के प्रथम भाव को लग्न भाव कहते है. तथा इसी भाव से कुण्डली के अन्य भावों की राशियां निर्धारित होती है. लग्न भाव केन्द्र व त्रिकोण भाव दोनों का होता है. तथा कुण्डली का आरम्भ भी इसी भाव से होने के कारण यह भाव विशेष महत्व रखता है.
जब कुण्डली में किसी एक भाव, राशि में स्थित ग्रह से मिलने वाले फलों का विचार किया जाता है. तो सर्वप्रथम यह देखा जाता है कि ग्रह कुण्डली के किस भाव में स्थित है, उस भाव में कौन सी राशि है, तथा उस राशि स्वामी से ग्रह के किस प्रकार के संबन्ध है. इसके अतिरिक्त इस ग्रह से अन्य आठ ग्रहों से किसी भी ग्रह का कोई संबन्ध बन रहा है या नहीं. इन सभी बातों का विचार करने के बाद ही यह निर्धारित किया जाता है कि ग्रह से किस प्रकार के फल प्राप्त हो सकते है.
प्रथम भाव में शनि के फल - व्यक्ति का स्वास्थ्य प्राय: कमजोर हो सकता है. शिक्षा क्षेत्र के लिये शनि का कन्या लग्न में प्रथम भाव में होना उतम होता है. यह योग व्यक्ति के संतान सुख में वृ्द्धि कर सकता है. इस स्थिति में आलस्य में कमी करना व्यक्ति के लिये हितकारी होता है. व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में संघर्ष और परिश्रम द्वारा उन्नति प्राप्त हो सकती है.
द्वितीय भाव में शनि के फल - जिस व्यक्ति कि कुण्डली में यह योग बन रहा हों, उस व्यक्ति के धन में बढोतरी हो सकती है. ऎसा व्यक्ति अपने परिवार व कुटुम्ब आदि विषयों में अधिक खर्च कर सकता है. यह योग व्यक्ति को जीवन के आजिविका के क्षेत्र में परेशानियों के बाद उन्नति प्राप्त होने की संभावनाएं देता है.
तृ्तीय भाव में शनि के फल- वृ्श्चिक राशि, तीसरे भाव में शनि अपने शत्रु मंगल की राशि में होता है. जिसके कारण शत्रुओं से हानि होने की संभावना बनती है. व्यक्ति को अपने भाई- बहनों से कम सुख प्राप्त होता है. ऎसे में व्यक्ति के मित्र भी समय पर सहयोग नहीं करते है. विधा क्षेत्र से व्यक्ति को अनुकुल फल प्राप्त होने की संभावनाएं बनती है. तथा व्यक्ति की विधा भी उतम हो सकती है. व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में कुछ चिन्ताएं बनी रह सकती है. संतान पक्ष से सुख में कमी हो सकती है. इसके फलस्वरुप व्यक्ति के व्यय अधिक हो सकते है. तथा सामान्यत: व्यक्ति का जीवन संघर्षमय रहने की संभावनाएं बन सकती है.
चतुर्थ भाव में शनि के फल -माता के सुख में कमी हो सकती है. भूमि संबन्धी मामले होते है. व्यक्ति को व्यापार के क्षेत्र में अडचनें आ सकती है. व्यक्ति का स्वास्थ्य मध्यम स्तर का हो सकता है. मेहनत में बढोतरी कर व्यक्ति शनि के अशुभ फलों में कमी कर सकता है. परन्तु आलस्य करने पर व्यक्ति के जीवन में परेशानियां बढने कि संभावना रहती है. अपनी पूरी क्षमता से प्रयासरत रहने से व्यक्ति के सुखों में वृ्द्धि की संभावनाएं बन सकती है.
पंचम भाव में शनि के फल -इस भाव में शनि की स्थिति व्यक्ति को विधा के क्षेत्र में बाधाएं दे सकती है. यह योग व्यक्ति को गलत तरीकों से शिक्षा क्षेत्र में आगे बढने की प्रवृ्ति दे सकता है. इस स्थिति में व्यक्ति मेहनत के अतिरिक्त अन्य तरीकों से शिक्षा क्षेत्र में सफल होने का प्रयास कर सकता है. व्यक्ति धन संचय में सफल हो सकता है. पर व्यक्ति को मेहनत में कमी न करने से ही यह योग व्यक्ति को शुभ फल देता है.
छठे भाव में शनि के फल - छठे भाव में शनि कुम्भ राशि में हों तो व्यक्ति को दुर्घटनाओं से सावधान रहना चाहिए. शिक्षा के क्षेत्र में पूर्ण संघर्ष करना इस योग के व्यक्ति के लिये लाभकारी रहता है. व्यक्ति के शत्रु उसके लिये कष्ट का कारण बन सकते है. तथा धैर्य के साथ शत्रुओं का सामना करने से व्यक्ति को विजय प्राप्त होती है.
सप्तम भाव में शनि के फल -यह योग व्यक्ति को जन्म स्थान से दुर रहने पर उन्नति के योग बनते है. स्वास्थ्य मध्यम रहने की संभावनाएं बनती है. कार्यक्षेत्र में सफल होने के लिये व्यक्ति को मेहनत के साथ साथ बुद्धि का प्रयोग भी करना लाभकारी रहता है. उसे अपने जीवन साथी संबन्धी विषयों में चिन्ता हो सकती है. तथा व्यक्ति को भूमि संबन्धी मामलों में परेशानियां का सामना करना पड सकता है.
अष्टम भाव में शनि के फल -मेष राशि में शनि अष्टम भाव में हों तो व्यक्ति की शिक्षा में कमी हो सकती है. व्यक्ति के स्वभाव में चतुराई का भाव होने की संभावनाएं बन सकती है. व्यक्ति को असमय की घटनाओं का सामना करना पड सकता है. इस स्थिति में व्यक्ति को दुर्घटनाओं से बचके रहना चाहिए. धन व सुख-सुविधाओं के विषयों में व्यक्ति को कठोर परिश्रम करना पड सकता है.
नवम भाव में शनि के फल -व्यक्ति बौद्धिक कार्यो के कारण अपने भाग्य की उन्नती करने में सफल होता है. विवादों से बचने के प्रयास करना चाहिए. यह योग व्यक्ति को नीति निपुण बनाये रखने में सहायक होता है. योग के प्रभाव से व्यक्ति के स्वभाव में चतुराई के भाव में वृ्द्धि हो सकती है. तथा शनि के नवम भाव में होने पर व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रभाव शाली बना रह सकता है. व्यक्ति के व्यय अधिक हो सकते है. साथ ही साथ आय भी अधिक होने कि संभावनाएं बनती है.
दशम भाव में शनि के फल- व्यक्ति के मान-सम्मान में बढोतरी होती है. व्ययों के बढने से आर्थिक चिन्ताएं परेशान कर सकती है. व्यक्ति के माता के सुख में कमी हो सकती है. जीवन साथी का स्वास्थ्य मध्यम हो सकता है. कठिन परिश्रम करने से व्यक्ति के कार्यों की बाधाओं में कमी हो सकती है.
एकादश भाव में शनि के फल -दुर्घटना होने के भय रहते है. व्यक्ति को शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है. जिसके फलस्वरुप उसके लाभों में बढोतरी हो सकती है. इस योग के व्यक्ति को अपने व्ययों पर नियन्त्रण रहता है. योग की शुभता से व्यक्ति के संतान सुख में वृ्द्धि होती है. स्वास्थ्य में कमी हो सकती है.
द्वादश भाव में शनि के फल -व्यक्ति को विदेशों से हानि होने की संभावनाएं बनती है. बुद्धि प्रयोग से व्यक्ति के भाग्य में वृ्द्धि होती है. धन वृ्द्धि के लिये भी यह योग अनुकुल रहता है. पर रोगो के उपचार में धन का व्यय अधिक हो सकता है.