Wednesday 22 February 2017

वास्तु द्वारा व्यवसाय को बढ़ाने के उपाय

वास्तु में प्रत्येक दिशा किसी न किसी ग्रह द्वारा शासित होता है। अतः किसी भी व्यवसाय को तत्संबंधी दिशाओं एवं ग्रहों के अनुकूल रहने पर विशेष लाभ मिलता है। प्रश्न: पूर्व दिशा में किस तरह का व्यवसाय करना चाहिए? उत्तर: ग्रहों में सूर्य पूर्व दिशा का स्वामी होता है।दवा, औषधि आदि के लिए पूर्व की दिशा सबसे उपयुक्त है। दवाइयां उत्तर एवं पूर्व के रैक पर रखें। उत्तर-पूर्व के निकट सूर्य की जीवनदायिनी किरणें सर्वप्रथम पड़ती हैं जो कि दवाइयां को ऊर्जापूर्ण बनाए रखती है जिसके सेवन से मनुष्य शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करता है।आयुर्वेदिक एवं यूनानी दवा का संबंध सूर्य ग्रह से है, अतः इसे पूर्व दिशा की रैक पर रखना लाभप्रद होता है। इस तरह के भूखंड पर ऊनी वस्त्र, अनाज की आढ़त, आटा पीसने की चक्की तथा आटा मिलों का कार्य काफी लाभप्रद होता है। प्रश्न: उत्तर पूर्व दिशा में किस तरह का व्यवसाय या कार्य करना चाहिए ? उत्तर: उत्तर पूर्व दिशा का ग्रह स्वामी गुरू है जो कि आध्यात्मिक एवं सात्विक विचारों के प्रणेता हैं। उत्तर-पूर्व दिशा अभिमुख भूखंड शिक्षक, प्राध्यापक, धर्मोपदेशक, पुजारी, धर्मप्रमुख, प्राच्य एवं गुप्त विद्याओं के जानकार, न्यायाधीश, वकील, शासन से संबंधित कार्य करने वाले, बैंकिंग व्यवस्था से संबंधित कार्य, धार्मिक संस्थान, ज्योतिष से संबंधित कार्यों के लिए लाभप्रद होता है। आध्यात्मिक ग्रंथों की छपाई के कार्य के लिए यह दिशा विशेष लाभकारी होता है। साथ ही बिजली के पंखों की फैक्ट्री लगाना भी लाभप्रद होता है। आध्यात्मिक ग्रंथों की छपाई के कार्य के लिए यह दिशा विशेष लाभकारी होता है। साथ ही बिजली के पंखों की फैक्ट्री लगाना भी जलाषय एवं फव्वारांे को व्यवस्थित कर लगाया जाता है। धनागमन के प्रतीक फव्वारों एवं जलाषयों को बड़ी सूझ-बूझ के साथ लगाया जाता है क्योंकि यदि पानी का निकास गलत ढंग से हो, तो घर का सारा धन गलत ढंग से चला जायेगा। प्रश्न: भारी पत्थर एवं मूर्तियां घर में लगाने से क्या लाभ होता है ? उत्तर: भवन के दक्षिण-पष्चिम को भारी करने के लिए भारी पत्थरों, चट्टानों एवं मूर्तियों का सहारा लिया जाता है। कई बार तो पति-पत्नी के अलगाव, निरंतर यात्राओं एवं अस्थायित्व का दोष वांछित दिषा कोण को भारी करने पर रहस्यमयी ढंग से स्वतः ही समाप्त हो जाता है। प्रश्न: जीवित कछुआ पालने या कछुए की मूर्ति घर में लगाने से क्या लाभ होता है ? उत्तर: एक जीवित कछुआ पालने या कछुए की मूर्ति या फोटो अपने घर की उत्तर दिषा में रखने या लगाने से जीवन में सुख समृद्धि को बढ़ावा मिलता है। कछुए का मुंह पूर्व की तरफ रखना चाहिए। यह आयु को बढ़ाता है। घर की उत्तर दिशा में किसी तालाब या पानी के टब में कछुए का होना पूरे घर वाले की समृद्धि एवं आयु के लिए शुभ फलदायी होता है।

करें गुणवत्ता में विकास: ज्योतिष्य उपाय

मनुष्य को बुरा कहलाने से नहीं डरना चाहिए, किन्तु बुरा होने या बुरे काम करने से डरना चाहिए, जबकि होता इसके ठीक विपरीत है। लोग-बुरे कर्म करने से उतना नहीं डरते जितना इस बात से डरते हैं कि कोई बुरा न कह दे। मनुष्य का यह स्वभाव हो गया है कि वह स्वयं भले दूसरों की निंदा-आलोचना करता रहे, किन्तु स्वयं अपनी निंदा-आलोचना उसे पसंद नहीं है। कोई थोडी सी उसकी आलोचना करे तो वह दुखी ही नहीं क्रुद्ध भी हो जाता है। यहाॅ तक कि आलोचना करने वाले को अपना विरोधी तक मान लेता है, भले ही वह आलोचना कितनी ही सही क्यों न हो और उसकी भलाई के लिए ही क्यों न की गई हो। जबकि यह मानना चाहिए कि निंदक व्यक्ति हमारी निदा करके हमें सावधान कर रहा है तथा हमारे दोषो को निकालने की हमें प्रेरणा दे रहा है।
इस संबंध में यदि कुंडली का विष्लेषण किया जाए तो यदि किसी व्यक्ति के तीसरे स्थान का स्वामी अनुकूल, उच्च तथा सौम्य ग्रहों से संरक्षित हो तो ऐसे व्यक्ति बुराई को भी भलाई में बदलने में सक्षम होते हैं वहीं यदि किसी जातक का तीसरा स्थान विपरीत कारक हो अथवा राहु जैसे ग्रहों से पापक्रांत हो तो ऐसे लोग किसी की छोटी सी बात या आलोचना सहन नहीं कर पाते और क्रोधित हो जाते हैं अतः आपको अपने हित में या किसी की कहीं कोई छोटी बात भी बुरी लगती है तो अपनी कुंडली का विष्लेषण करा लें तथा कुंडली में इस प्रकार की कोई ग्रह स्थिति बन रही हो तो तीसरे स्थान के स्वामी अथवा कालपुरूष की कुंडली में तीसरे स्थान के स्वामी ग्रह बुध अर्थात् गणेषजी की उपासना, गणपति अर्थव का पाठ का हरी मूंग का दान करने से आलोचना को साकारात्मक लेकर अपनी बुराई को धीरे-धीरे दूर करने का प्रयास करने से आप निरंतर बुराई से बचते हुए सफलता प्राप्त करेंगे तथा लोगों के बीच लोकप्रिय भी होंगे।

असफल होने का मूल कारण जाने ज्योतिषीय गणना

हर व्यक्ति का व्यवहार तय होता है और वह अपने व्यवहार के अनुसार ही हर कार्य तथा निर्णय करता और लेता है और व्यक्ति की संकल्प शक्ति एवं निर्णय लेने की क्षमता में सामंजस्य होता है। संकल्प शक्ति की कमी के कारण व्यक्ति अपनी इच्छाओं एवं आकांक्षओं की पूर्ति में कमी पाता है। संकल्प शक्ति की कमी के कारण सही निर्णय लेने की क्षमता भी प्रभावित होती है एवं व्यक्ति अपनी इच्छाओं तथा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सही निर्णय नहीं ले पाता है। व्यक्ति की तार्किक क्षमता एवं बौद्धिक क्षमता प्रबल होने पर भी उस की संकल्प शक्ति एवं कार्य के प्रति एकाग्रता मे कमी के कारण सफलता मिलने मे देरी हो सकती है। परंतु इसका प्रमुख कारण यह है कि उन की संकल्प शक्ति एवं इच्छा शक्ति मे कमी है और इसे केवल मेहनत एवं कठिन परिश्रम से ही जीता जा सकता है। किंतु इसका ज्योतिषीय कारण भी है अगर किसी व्यक्ति का तृतीयेश, पंचमेश एवं एकादशेश विपरीत कारक हो अथवा क्रूर ग्रहों से पापाक्रंात हो तो ऐसे व्यक्ति में संकल्पशक्ति तथा एकाग्रता की कमी के कारण विफलता आती है अतः इन ग्रहों की शांति, संबंधित ग्रह का दान एवं मंत्रजाप कर संकल्पशक्ति को दृढ तथा एकाग्रता में वृद्धि का असफलता को सफलता में बदला जा सकता है। साथ ही व्यक्ति की सफलता उसके सामाजिक उन्नति का भी कारक होता है। अतः संतुष्टि तथा उन्नति से ही सामाजिक सौहाद्र्य बनाये रखा जा सकता है अतः सामाजिक तौर पर शांति एवं व्यवस्था बनाये रखने के लिए भी ग्रह शांति जरूरी है।

Tuesday 21 February 2017

संपूर्ण सुख हेतु -कुंडली में करें गुरू को प्रबल

धन से अधिक महत्व चरित्र का माना गया है। अमेरिका के प्रसिद्ध विचारक इमर्सन ने लिखा है था कि ‘उत्तम चरित्र ही सबसे बड़ा धन है।’ इसी तरह ग्रीन नामक विद्वान का कथन था, ‘चरित्र को सुधारना ही मनुष्य का परम लक्ष्य होना चाहिए।’ स्वामी विवेकानंद प्रायः युवाओं को संबोधित करते हुए कहा करते थे, ‘युवाओ! उठो! जागो! अपने चरित्र का विकास करो।’ इस तरह विभिन्न विद्वानों ने चरित्र के महत्व पर प्रकाश डाला है और मानव जीवन में इसे सर्वोपरि माना है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का चरित्र इसीलिए आकर्षक और प्रभावशाली था कि उन्होंने सदैव अपने चरित्र का ख्याल रखा। वस्तुतः आज इसी चरित्र को बनाए रखने की परम आवश्यकता है। हम चाहें किसी भी क्षेत्र में कार्य कर रहे हों, किसी भी पद पर अपना योगदान कर रहे हों, हमें चरित्र को बनाकर और बचाकर रखना चाहिए। भारतीय संस्कृति की यही तो विशेषता रही है। यही संस्कृति ‘बहुजन हिताय’ और ‘बहुजन सुखाय’ और ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की पावन भावना का विकास करती है। यही मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म है। जितने भी महापुरुष हुए, उन सभी ने अपने बाल्यकाल से ही चरित्र की रक्षा का ध्यान रखा। मनुष्य का चरित्र विचार और आचार दोनों से मिलकर बनता है। संसार में बहुत से ऐसे लोग पाए जा सकते हैं, जिनके विचार बड़े ही उदात्त, महान और आदर्शपूर्ण होते हैं, किन्तु उनकी क्रियाएँ उसके अनुरूप नहीं होती। विचार पवित्र हों और कर्म अपावन तो यह सच्चरित्रता नहीं हुई। इसी प्रकार बहुत से लोग ऊपर से बड़े ही सत्यवादी, आदर्शवादी और धर्म- कर्म वाले दीखते हैं, किन्तु उनके भीतर कलुषपूर्ण विचारधारा बहती रहती है। ऐसे व्यक्ति भी सच्चे चरित्र वाले नहीं माने जा सकते। सच्चा चरित्रवान वही माना जायेगा और वास्तव में वही होता भी है, जो विचार और आचार दोनों को समान रूप से उच्च और पुनीत रखकर चलता है। चरित्र मनुष्य की सर्वोपरि सम्पत्ति है। विचारकों का कहना है कि ‘‘धन चला गया, कुछ नहीं गया। स्वास्थ्य चला गया, कुछ चला गया। किन्तु यदि चरित्र चला गया तो सब कुछ चला गया।’’ विचारकों का यह कथन शत- प्रतिशत भाव से अक्षरशः सत्य है। संयत इच्छाशक्ति से प्रेरित सदाचार का नाम ही चरित्र है। चरित्र मानव जीवन की स्थायी निधि है। जीवन में सफलता का आधार मनुष्य का चरित्र ही है। चरित्र मानव जीवन की स्थायी निधि है। सेवा, दया, परोपकार, उदारता, त्याग, शिष्टाचार और सद्व्यवहार आदि चरित्र के बाह्य अंग हैं, तो सद्भाव, उत्कृष्ट चिंतन, नियमित-व्यवस्थित जीवन, शांत-गंभीर मनोदशा चरित्र के परोक्ष अंग हैं। किसी व्यक्ति के विचार इच्छाएं, आकांक्षाएं और आचरण जैसा होता है, उन्हीं के अनुरूप चरित्र का निर्माण होता है। ज्योतिष में संपूर्ण चरित्र का निर्माण विभिन्न स्थानों एवं विभिन्न ग्रहों की अनुकूल स्थिति तथा संयोजन का परिणाम होती है, माना जाता है कि व्यक्ति की कुंडली सब कुछ बया करती है अतः यदि किसी जातक के चरित्र को जानना है तो उसके लग्न, तीसरे, पंचम, सप्तम एवं एकादश स्थान के ग्रह, इन स्थानों में उपस्थित ग्रह एवं ग्रहों के पाप प्रभाव से देखा जा सकता है। अगर ये स्थान उच्च, अनुकूल तथा सौम्य ग्रहों के साथ हों तो चरित्र का आकार अनुकूल दिशा में बढता है वहीं पर यदि इन क्षेत्रों पर कू्रर ग्रहों एवं प्रतिकूल स्थिति में हो जाए तो उसका चरित्र दुषित हो सकता है। चरित्र के निर्माण में वैसे तो सभी ग्रहों का संपूर्ण प्रभाव होता है किंतु गुरू संपूर्ण ग्रहों में सबसे महत्वपूर्ण ग्रह है। अतः यदि गुरू दूषित हो जाए अथवा उपरोक्त स्थानों का स्वामी होकर राहु जैसे पाप ग्रहों से पापाक्रांत होकर छठवे, आठवे या बारहवे स्थान पर हो जाए तो चरित्र को बचाकर रखना बहुत कठिन हो जाता है। अतः बचपन से ही चरित्र के निर्माण का ध्यान रखना चाहिए साथ ही गुरू एवं अन्य समस्त ग्रहों की अनुकूलता, जातक के व्यवहार का बारीकी से अध्ययन करने के लिए ज्योतिषीय गणना जरूर कराना चाहिए। इसके साथ गोचर के ग्रहों तथा समय काल परिस्थिति के अनुरूप इन समस्त ग्रहों तथा इन ग्रहों की दशाओं को ज्ञात कर उचित ज्योतिषीय उपाय द्वारा चरित्र को सुधारा जा सकता है, जो ना केवल व्यक्ति अपितु परिवार उसके उपरांत समाज एवं देश को बचाया जा सकता है।

विवाह पंचमी - राम सीता का विवाह उत्सव

मार्गशीष शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को विवाह पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों में इस दिन का बड़ा महत्व बताया गया है क्योंकि आज ही के दिन त्रेता युग में भगवान राम और सीता का विवाह हुआ था। भारत के साथ ही नेपाल में भी विभिन्न मंदिरों और स्थानों पर विवाह पंचमी को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। पौराणिक धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसी तिथि को भगवान राम ने जनक नंदिनी सीता से विवाह किया था। तुलसीदासजी कहते हैं कि श्रीराम ने विवाह द्वारा मन के तीनों विकारों काम, क्रोध और लोभ से उत्पन्न समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया है। हिंदू पौराणिक कथाओं में राम और सीता की महत्ता को देखते हुए इनके सम्मान में ही विवाह पंचमी का शुभ मांगलिक त्योहार मनाया जाता है। त्रेता युग में पृथ्वी पर राक्षसों का अत्याचार अपनी चरम सीमा पर था। उस समय मुनि विश्वामित्र अपने यज्ञ की रक्षा करने के उद्देश्य से अयोध्या के महाराज दशरथ से उनके पुत्रों राम एवं लक्ष्मण जी को माँग कर ले गए। यज्ञ की समाप्ति के पश्चात विश्वामित्र जी जनक पुरी के रास्ते से वापसी आने के समय राजा जनक के सीता स्वयंवर की उद्घोषणा की जानकारी मिली। मुनि विश्वामित्र ने राम एवं लक्ष्मण जी को साथ लेकर सीता के स्वयंवर में पधारें। सीता स्वयंवर में राजा जनक जी ने उद्घोषणा की जो भी शिव जी के धनुष को भंग कर देगा उसके साथ सीता के विवाह का संकल्प कर लिया। स्वयंवर में बहुत राजा महाराजाओं ने अपने वीरता का परिचय दिया परन्तु विफल रहे। इधर जनक जी चिंतित होकर घोषणा की लगता है यह पृथ्वी वीरों से विहीन हो गयी है, तभी मुनि विश्वामित्र ने राम को शिव धनुष भंग करने का आदेश दिया। राम जी ने मुनि विश्वामित्र जी की आज्ञा मानकर शिव जी की मन ही मन स्तुति कर शिव धनुष को एक ही बार में भंग कर दिया। उसके उपरान्त राजा जनक ने सीता का विवाह बड़े उत्साह एवं धूम धाम के साथ राम जी से कर दिया। साथ ही दशरथ के तीन पुत्रों भरत के साथ माध्वी, लक्ष्मण के साथ उर्मिला एवं शत्रुघ्न जी के साथ सुतकीर्ति का विवाह भी बड़े हर्ष एवं धूम धाम के साथ कर दिया। सीता की जन्मभूमि जनकपुर और राम जन्मभूमि अयोध्या, इन दोनों ही जगहों पर विवाह पंचमी के दिन को पूरी भव्यता के साथ मनाया जाता है। इस पवित्र विवाह का स्मरण करते हुए इस दिन शहर भर में हजारों दीए जलाए जाते हैं और बड़े पैमाने पर विवाह झांकियां निकाली जाती हैं। भृगु संहिता में विवाह पंचमी के दिन को विवाह के लिए अबूझ मुहूर्त के रूप में बताया गया है। इसके बावजूद लोग इस दिन अपनी बेटियों की शादी करना पसंद नहीं करते। इसके पीछे उनकी धारणा यह है कि इस दिन विवाह होने से की वजह से ही देवी सीता और भगवान राम को वैवाहिक जीवन का पूर्ण सुख नहीं मिला था इसलिए लोग कुंडली दिखाकर किसी विद्धान ज्योतिष की सलाह से ही विवाह का शुभ मूहुर्त निकालते हैं किंतु मार्गशीर्ष पक्ष की शुक्ल पक्ष की पंचमी राम-जानकी विवाह के उपलब्ध में विवाह पंचमी के रूप में आज भी मनाया जाता है।

विवाह पंचमी - राम सीता का विवाह उत्सव

मार्गशीष शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को विवाह पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों में इस दिन का बड़ा महत्व बताया गया है क्योंकि आज ही के दिन त्रेता युग में भगवान राम और सीता का विवाह हुआ था। भारत के साथ ही नेपाल में भी विभिन्न मंदिरों और स्थानों पर विवाह पंचमी को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। पौराणिक धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसी तिथि को भगवान राम ने जनक नंदिनी सीता से विवाह किया था। तुलसीदासजी कहते हैं कि श्रीराम ने विवाह द्वारा मन के तीनों विकारों काम, क्रोध और लोभ से उत्पन्न समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया है। हिंदू पौराणिक कथाओं में राम और सीता की महत्ता को देखते हुए इनके सम्मान में ही विवाह पंचमी का शुभ मांगलिक त्योहार मनाया जाता है। त्रेता युग में पृथ्वी पर राक्षसों का अत्याचार अपनी चरम सीमा पर था। उस समय मुनि विश्वामित्र अपने यज्ञ की रक्षा करने के उद्देश्य से अयोध्या के महाराज दशरथ से उनके पुत्रों राम एवं लक्ष्मण जी को माँग कर ले गए। यज्ञ की समाप्ति के पश्चात विश्वामित्र जी जनक पुरी के रास्ते से वापसी आने के समय राजा जनक के सीता स्वयंवर की उद्घोषणा की जानकारी मिली। मुनि विश्वामित्र ने राम एवं लक्ष्मण जी को साथ लेकर सीता के स्वयंवर में पधारें। सीता स्वयंवर में राजा जनक जी ने उद्घोषणा की जो भी शिव जी के धनुष को भंग कर देगा उसके साथ सीता के विवाह का संकल्प कर लिया। स्वयंवर में बहुत राजा महाराजाओं ने अपने वीरता का परिचय दिया परन्तु विफल रहे। इधर जनक जी चिंतित होकर घोषणा की लगता है यह पृथ्वी वीरों से विहीन हो गयी है, तभी मुनि विश्वामित्र ने राम को शिव धनुष भंग करने का आदेश दिया। राम जी ने मुनि विश्वामित्र जी की आज्ञा मानकर शिव जी की मन ही मन स्तुति कर शिव धनुष को एक ही बार में भंग कर दिया। उसके उपरान्त राजा जनक ने सीता का विवाह बड़े उत्साह एवं धूम धाम के साथ राम जी से कर दिया। साथ ही दशरथ के तीन पुत्रों भरत के साथ माध्वी, लक्ष्मण के साथ उर्मिला एवं शत्रुघ्न जी के साथ सुतकीर्ति का विवाह भी बड़े हर्ष एवं धूम धाम के साथ कर दिया। सीता की जन्मभूमि जनकपुर और राम जन्मभूमि अयोध्या, इन दोनों ही जगहों पर विवाह पंचमी के दिन को पूरी भव्यता के साथ मनाया जाता है। इस पवित्र विवाह का स्मरण करते हुए इस दिन शहर भर में हजारों दीए जलाए जाते हैं और बड़े पैमाने पर विवाह झांकियां निकाली जाती हैं। भृगु संहिता में विवाह पंचमी के दिन को विवाह के लिए अबूझ मुहूर्त के रूप में बताया गया है। इसके बावजूद लोग इस दिन अपनी बेटियों की शादी करना पसंद नहीं करते। इसके पीछे उनकी धारणा यह है कि इस दिन विवाह होने से की वजह से ही देवी सीता और भगवान राम को वैवाहिक जीवन का पूर्ण सुख नहीं मिला था इसलिए लोग कुंडली दिखाकर किसी विद्धान ज्योतिष की सलाह से ही विवाह का शुभ मूहुर्त निकालते हैं किंतु मार्गशीर्ष पक्ष की शुक्ल पक्ष की पंचमी राम-जानकी विवाह के उपलब्ध में विवाह पंचमी के रूप में आज भी मनाया जाता है।

मित्र सप्तमी का पर्व चर्म तथा नेत्र रोगों से मुक्ति

मित्र सप्तमी का त्योहार मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन मनाया जाता है। सूर्य देव की पूजा का पर्व सूर्य सप्तमी एक प्रमुख हिन्दू पर्व है। सूर्योपासना का यह पर्व संपूर्ण भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता रहा है। सूर्य भगवान के अनेक नाम हैं जिनमें से उन्हें मित्र नाम से भी संबोधित किया जाता है, अतः इस दिन सप्तमी को मित्र सप्तमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भास्कर भगवान की पूजा-उपासना की जाती है। भगवान सूर्य की आराधना करते हुए लोग गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर के किनारे सूर्य देव को जल देते हैं।
पौराणिक महत्व -
सूर्य देव को महर्षि कश्यप और अदिति का पुत्र कहा गया है। इनके जन्म के विषय में कहा जाता है कि एक समय दैत्यों का प्रभुत्व बढने के कारण स्वर्ग पर दैत्यों का आधिपत्य स्थापित हो जाता है। देवों की दुर्दशा देखकर देव-माता अदिति भगवान सूर्य की उपासना करती हैं। अदिति की तपस्या से प्रसन्न हो भगवान सूर्य उन्हें वरदान देते हैं कि वह उनके पुत्र रूप में जन्म लेंगे तथा उनके देवों की रक्षा करेंगे। इस प्रकार भगवान के कथन अनुसार देवी अदिति के गर्भ से भगवान सूर्य का जन्म होता है। वह देवताओं के नायक बनते हैं और असुरों को परास्त कर देवों का प्रभुत्व कायम करते हैं। नारद मुनि के कथन अनुसार जो व्यक्ति मित्र सप्तमी का व्रत करता है तथा अपने पापों की क्षमा मांगता है सूर्य भगवान उससे प्रसन्न हो उसे पुनः नेत्र ज्योति प्रदान करते है। इस प्रकार यह मित्र सप्तमी पर्व सभी सुखों को प्रदान करने वाला व्रत है। सप्तमी व्रत भगवान सूर्य की उपासना का पर्व है। सप्तमी के दिन इस पर्व का आयोजन मार्गशीर्ष माह के आरंभ के साथ ही शुरू हो जाता है। इस पर्व के उपलक्ष्य में भगवान सूर्य की पूजा का विशेष महत्व होता है। मित्र सप्तमी व्रत में भगवान सूर्य की पूजा उपासना की जाती है, इस दिन व्रती अपने सभी कार्यों को पूर्ण कर भगवान आदित्य का पूजन करता है व उन्हें जल से अघ्र्य दिया जाता है। सूर्य भगवान का षोडशोपचार पूजन करते हैं। पूजा में फल, विभिन्न प्रकार के पकवान एवं मिष्ठान को शामिल किया जाता है। सप्तमी को फलाहार करके अष्टमी को मिष्ठान ग्रहण करते हुए व्रत पारण करें। इस व्रत को करने से आरोग्य व आयु की प्राप्ति होती है। इस दिन सूर्य की किरणों को अवश्य ग्रहण करना चाहिए। पूजन और अघ्र्य देने के समय सूर्य की किरणें अवश्य देखनी चाहिए। मित्र सप्तमी महत्व मित्र सप्तमी पर्व के अवसर पर परिवार के सभी सदस्य स्वच्छता का विशेष ध्यान रखते हैं। मित्र सप्तमी पर्व के दिन पूजा का सामान तैयार किया जाता है जिसमें सभी प्रकार के फल, दूधकेसर, कुमकुम बादाम इत्यादि को रखा जाता है। इस व्रत का बहुत महत्व रहा है। इसे करने से घर में धन धान्य की वृद्धि होती है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है। इस व्रत को करने से चर्म तथा नेत्र रोगों से मुक्ति मिलती है।

किस्मत का तारा चमकायें करें अनुकूल उपाय

हम जो चाहते है उसको पाने के लिए हम हर कोशिश करते है कि वह हमें प्राप्त हो जाए। लेकिन कभी-कभी अधिक कोशिश करने के बाद भी हम असफल हो जाते है। और इसका पूरा दोष अपनी किस्मत में डाल देते है कि हमारी किस्मत खराब है। इसके बाद हम और फिर किसी भी तरह की कोशिश नहीं करते है और बैठ जाते है कि अब सब खुद ठीक होगा। ऐसा क्यूं होता है कि कभी-कभी अपने काम में जान तक झोंक देने वाले को सफलता नहीं मिलती और किसी-किसी को छोटी कोशिश से ही बुलंदियां मिल जाती हैं। क्यूं कोई मुकद्दर का सिकंदर कहलाता है और क्यूं कोई किस्मत का गरीब कहलाता है। क्यूं लोग भाग्यशाली या दुर्भाग्यशाली कहे जाते हैं। सामान्यतौर पर यह बता पाना किसी के भी बस की बात नहीं होती है किंतु इसे ज्योतिषीय शास्त्र द्वारा बताया जा सकता है। जब किसी भी व्यक्ति की कुंडली में उसका भाग्येश उच्च या अनुकूल स्थिति में हो तो भाग्येश की दशा या अंतरदशा में उसके जीवन में अचानक उन्नति तथा सफलता के योग बनते हैं और यदि इसके साथ ही लग्नेश, तृतीयेश या एकादशेश भी अनुकूल तथा उच्चस्थ हों तो निश्चित ही किस्मत बदलती है और लोग मुकद्दर का सिकंदर कहते हैं। भाग्य का साथ पाने और मेहनत के बाद भी असफलता को सफलता में बदलने के लिए पितृ शांति कराना चाहिए क्योंकि हमाने शास्त्र में माना जाता है किसी भी व्यक्ति की समृद्धि का कारण उसके पितरों का आर्शीवाद होता है।

ल्यूकोडर्मा: ज्योतिष्य विश्लेषण


श्वित्र कोई भयंकर या जानलेवा रोग नहीं है, एक आम समस्या है फिर भी पीड़ित के मन में हीन भावनाएं उत्पन्न होती हैं जिससे पीड़ित सार्वजनिक रूप से सामने आने से कतराते हैं। आयुर्वेद में त्वचा पर आने वाले सफेद दाग-धब्बों को श्वित्र कहते हैं। आम भाषा में इसे फुलेरी भी कहते हैं। लेकिन आधुनिक विज्ञान में इसे ‘ल्यूकोडर्मा’ कहते हैं। हमारी त्वचा की दो परतें होती हैं बाह्य और भीतरी। भीतरी परत के नीचे के भाग में मेलानोफोल कोशिका में एक तत्व होता है जिसे मेलेनिन कहते हैं। इस तत्व का मुख्य कार्य त्वचा को प्राकृतिक वर्ण प्रदान करना होता है। जब यह तत्व विकृत हो जाता है तब श्वित्र रोग होता है। मेलेनिन तत्व के कण त्वचा के भीतर, नीचे की सतह में उत्पन्न होते हैं और वे ही ऊपर आकर त्वचा को प्राकृतिक वर्ण प्रदान करते हैं। त्वचा के जितने भागों में इन कणों का अभाव होता है, वहां सफेद दाग दिखाई देते हैं और अगर पूरे शरीर की त्वचा में ही मेलेनिन का अभाव हो, तो उस व्यक्ति का पूरा शरीर सफेद दिखाई देता है। यहां तक कि आंखों का काला भाग भी सफेद लगता है और सारे बाल भी सफेद हो जाते हैं। रोग के कारण: आयुर्वेद में पाप कर्मों को रोग का कारण कहा गया है। साथ ही दूध-दही, दूध-मछली जैसे विभिन्न गुण युक्त चीजों को आपस में मिलाकर खाने से भी यह रोग हो सकता है। पेट में कृमि, आंव, टाइफाइड, पीलिया, तपेदिक आदि रोगों के बाद भी इस रोग की उत्पत्ति हो सकती है। श्वित्र की उत्पत्ति आनुवंशिक भी होती है। अगर माता-पिता में से एक या दोनों श्वित्र से पीड़ित हों, तो उनकी संतानों मंे भी रोग उत्पन्न होने की आशंका रहती है। आयुर्वेद के अनुसार श्वित्र रोग में कफ की प्रधानता होती है। त्वचा की छोटी-छोटी शिराओं में अवरोध के कारण मेलेनिन त्वचा उत्पन्न नहीं हो पाता है जिससे श्वित्र रोग उत्पन्न हो जाता है।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण ज्योतिषीय दृष्टि से त्वचा का कारक चंद्र और बुध ग्रह है। शुक्र ग्रह त्वचा को निखारता है, सुंदर बनाता है। मंगल ग्रह शरीर में उन तत्वों की उत्पत्ति करता है जो त्वचा को प्राकृतिक वर्ण बनाए रखने में सहायक होता है। यदि जन्मकुंडली में लग्नेश, लग्न और संबंधित ग्रह दुष्प्रभावों में हों तो ऐसे रोग की संभावनाएं बढ़ जाती हंै। विभिन्न लग्नों में श्वित्र रोग: मेष लग्न: लग्नेश मंगल, राहु-केतु से युक्त षष्ठ या अष्टम भाव में हो और बुध लग्न में शनि से युक्त या दृष्ट हो। शुक्र अस्त हो तो जातक को श्वित्र रोग हो सकता है। वृष लग्न: लग्नेश शुक्र अस्त होकर अष्टम भाव में वक्री मंगल लग्न में और सप्तम भाव में बुध हो, राहु तृतीय या पंचम भाव में हो तो जातक को त्वचा संबंधित रोग होता है। मिथुन लग्न: लग्न और लग्नेश दोनों वक्री मंगल से दृष्ट या युक्त हो, चंद्र राहु-केतु से युक्त चतुर्थ या पंचम भाव में हो, शुक्र अस्त हो या नीच का हो तो जातक को श्वित्र रोग हो सकता है। कर्क लग्न: बुध-शनि लग्न में, चंद्र सप्तम भाव में, सूर्य द्वितीय भाव में, शुक्र राहु से युक्त तृतीय भाव में हो तो जातक को सफेद दाग हो सकते हैं। सिंह लग्न: लग्नेश सूर्य राहु या केतु से युक्त षष्ठ या सप्तम भाव में हो, शुक्र अष्टम भाव में, बुध अस्त हो, चंद्र शनि से युक्त या दृष्ट चतुर्थ या एकादश भाव में हो तो जातक को त्वचा संबंधित रोग होता है। कन्या लग्न: मंगल लग्न में या लग्न पर दृष्टि, राहु से युक्त होकर दे, बुध अस्त हो, चंद्र पर राहु या केतु की दृष्टि हो, गुरु केंद्र में हो तो जातक को श्वित्र रोग हो सकता है। तुला लग्न: गुरु लग्न में राहु से युक्त हो, शुक्र षष्ठ, सप्तम या अष्टम भाव में अस्त हो, चंद्र मंगल से युक्त होकर केंद्र में हो तो जातक को त्वचा संबंधित रोग हो सकता है। वृश्चिक लग्न: राहु से युक्त, बुध लग्न में हो या लग्न पर दृष्टि दे, शुक्र-चंद्र, शनि से युक्त या दृष्ट हो तो जातक को त्वचा रोग, श्वित्र जैसा रोग हो सकता है। धनु लग्न: शुक्र बुध लग्न में राहु केतु से युक्त या दृष्ट हो, गुरु चंद्र से युक्त अष्टम भाव में हो तो जातक को श्वित्र रोग हो सकता है। मकर लग्न: गुरु षष्ठ भाव में, चंद्र से युक्त राहु से दृष्ट हो, शनि चतुर्थ भाव में सूर्य से अस्त हो, बुध, शुक्र, तृतीय या पंचम भाव में हो तो जातक को श्वित्र रोग का सामना करना पड़ता है। कुंभ लग्न:श्गुरु चंद्र लग्न में हो, मंगल षष्ठ भाव में राहु से युक्त हो, बुध शुक्र चतुर्थ भाव में अस्त हो, शनि द्वितीय भाव में हो तो जातक को श्वित्र रोग हो सकता है। मीन लग्न: शुक्र लग्न में शनि राहु-केतु से युक्त चतुर्थ, सप्तम या एकादश भाव में हो, चंद्र षष्ठ भाव में हो और बुध अस्त होकर द्वादश भाव में हो तो जातक को श्वित्र रोग हो सकता है। उपरोक्त सभी योगों (संबंधित ग्रहों की) में दशा-अंतर्दशा एवं गोचर के प्रतिकूल रहने से रोग होते हैं। उसके उपरांत जातक को रोग से राहत मिल जाती है।

किस्मत का तारा चमकायें करें अनुकूल उपाय

हम जो चाहते है उसको पाने के लिए हम हर कोशिश करते है कि वह हमें प्राप्त हो जाए। लेकिन कभी-कभी अधिक कोशिश करने के बाद भी हम असफल हो जाते है। और इसका पूरा दोष अपनी किस्मत में डाल देते है कि हमारी किस्मत खराब है। इसके बाद हम और फिर किसी भी तरह की कोशिश नहीं करते है और बैठ जाते है कि अब सब खुद ठीक होगा। ऐसा क्यूं होता है कि कभी-कभी अपने काम में जान तक झोंक देने वाले को सफलता नहीं मिलती और किसी-किसी को छोटी कोशिश से ही बुलंदियां मिल जाती हैं। क्यूं कोई मुकद्दर का सिकंदर कहलाता है और क्यूं कोई किस्मत का गरीब कहलाता है। क्यूं लोग भाग्यशाली या दुर्भाग्यशाली कहे जाते हैं। सामान्यतौर पर यह बता पाना किसी के भी बस की बात नहीं होती है किंतु इसे ज्योतिषीय शास्त्र द्वारा बताया जा सकता है। जब किसी भी व्यक्ति की कुंडली में उसका भाग्येश उच्च या अनुकूल स्थिति में हो तो भाग्येश की दशा या अंतरदशा में उसके जीवन में अचानक उन्नति तथा सफलता के योग बनते हैं और यदि इसके साथ ही लग्नेश, तृतीयेश या एकादशेश भी अनुकूल तथा उच्चस्थ हों तो निश्चित ही किस्मत बदलती है और लोग मुकद्दर का सिकंदर कहते हैं। भाग्य का साथ पाने और मेहनत के बाद भी असफलता को सफलता में बदलने के लिए पितृ शांति कराना चाहिए क्योंकि हमाने शास्त्र में माना जाता है किसी भी व्यक्ति की समृद्धि का कारण उसके पितरों का आर्शीवाद होता है।

जीवन में भटकाव

संसार में समय को सबसे अमूल्य वस्तु माना गया है। धन - सम्पति खो जाने पर उन्हें परिश्रम करके दोबारा प्राप्त किया जा सकता है पर समय खो जाने पर पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता है। अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत - कह कर समय के महत्व को समझाया गया हैं। समय का सदुपयोग करने का महत्व बताया गया है। हमें सावधान भी किया गया है कि यदि समय पर कर्म करने से चूक जाएंगे, समय का सदुपयोग नही करेंगे तो बाद में यह अभिशाप बन जाएगा। समय का पंछी एक बार हाथ से छूट जाने के बाद दुबारा कभी भी पकड़ में नहीं आता। समय का सदुपयोग ही सफलता का प्रतीक हैं। समझदार व्यक्ति समय का एक पल भी बेकार नहीं करते। कभी यह भी नही सोचते कि कल करेंगे। समय ही वास्तव में जीवन और उसका कर्म हैं। किंतु युवा होते बच्चें सालभर बिना अध्ययन किए बिता देते हैं और अब जब परीक्षा का समय शुरू होने वाला है तो परेशान होते हैं कि तैयारी पूरी नहीं हुई। अगर ऐसा आपके साथ ही हो रहा हो तो अब पछताए हो क्या कहावत चरितार्थ नहीं होना चाहिए बल्कि समय रहते पछताने से बचने का उपाय करना चाहिए। इसके लिए किसी विद्वान ज्योतिषीय से कुंडली की ग्रह दषा जानें तथा पता लगायें कि शुक्र, राहु, सप्तमेष, पंचमेष की दषा तो नहीं चल रही है और इनमें से कोई ग्रह विपरीत स्थिति में या नीच का होकर तो नहीं बैठा है। अगर ऐसी कोई स्थिति दिखाई दे तो उपयुक्त उपाय तथा थोड़े से अनुषासन से भटकाव पर काबू पाते हुए उसके लक्ष्य के प्रति एकाग्रता बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। और पछताने से बचना चाहिए।

नीचस्थ लग्नेश और रोग

मानव जीवन और रोग का अटूट संबंध है। विश्व में ऐसा कोई जातक नहीं है, जिसे कभी कोई रोग न हुआ हो, चाहे वह छोटा रोग हो, चाहे बड़ा। पूर्व जन्म के अशुभ कर्मों के कारण जातक को रोग होते हैं। ज्योतिष के आधार पर रोग, उसकी तीव्रता तथा उसके समयावधि का आकलन किया जा सकता है। प्रत्येक राशि, नक्षत्र, ग्रह और भाव किसी न किसी रोग के कारक होते हैं। ज्योतिष की वह शाखा, जो राशि, नक्षत्र ग्रह तथा भाव के आधार पर रोग का ज्ञान कराती है, चिकित्सा ज्योतिष कहलाती है। यों तो ज्योतिष में रोगों से संबंधित असंख्य योग हैं। परंतु यहां ऐसे योग का उल्लेख किया जा रहा है, जिसमें स्वयं लग्नेश (तनु भाव का स्वामी) अपनी विशिष्ट स्थिति के कारण, स्वयं रोगोत्पत्ति का कारण बन जाता है। इस योग को निम्न रूप में व्यक्त किया जा सकता है। ‘‘जन्म लग्नेश जिस भाव में नीचस्थ हो कर स्थित होता है, वह काल पुरुष के उसी भाव से संबंधित अंग में जातक को रोग देता है।’’ जन्म लग्नेश की नीच राशि में स्थिति विभिन्न लग्नों की जन्मकुंडलियों में यहां उद्धृत तालिका के अनुसार हो सकती है। जन्मकुंडली में तीन भाव ऐसे हैं, जिनमें कोई भी ग्रह लग्नेश हो कर नीच राशिस्थ नहीं हो सकता है। ये तीन भाव हैं लग्न, षष्ठ और अष्टम। इसका अर्थ यह हुआ कि कोई भी ग्रह अपनी स्वयं की राशि, अथवा अपनी राशि से षष्ठ, या अष्टम राशि में नीचस्थ नहीं होता। लग्न सिर का, षष्ठ भाव गुर्दे अंतड़ियों और अपेंडिक्स का तथा अष्टम भाव गुदा और अंडकोषों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उपर्युक्त तीनों भाव उक्त सूत्र के अपवाद हैं। रोग की तीव्रता: नीचस्थ लग्नेश द्वारा उत्पन्न रोग की तीव्रता पर निम्न बातों का प्रभाव पड़ता है: यदि नीचस्थ लग्नेश पर युति, दृष्टि, या मध्यत्व द्वारा शुभ प्रभाव अधिक हो, तो काल पुरुष से संबंधित अंग में रोग की तीव्रता न्यून होती है। यदि नीचस्थ लग्नेश नवांश में उच्च हो, तो भी रोग की तीव्रता न्यून होती है। यदि नीचस्थ लग्नेश पर युति, दृष्टि या मध्यत्व द्वारा अशुभ प्रभाव अधिक हो, तो रोग की तीव्रता अधिक होती है। यदि नीचस्थ लग्नेश नवांश में नीचस्थ हो, तो भी रोग की तीव्रता अधिक होती है। यदि नीचस्थ लग्नेश नवांश कुंडली में त्रिक भावों (6, 8, 12) में हो, तो भी रोग की तीव्रता अधिक होती है। यदि नीचस्थ लग्नेश निरयण भाव चलित में अगले भाव में चला जाए, तो रोग का प्रभाव अगले भाव से संबंधित अंग पर भी होगा। यदि नीचस्थ लग्नेश निरयण भाव चलित में पिछले भाव में रह जाए, तो रोग का प्रभाव पिछले भाव से संबंधित अंग पर भी होगा। उपर्युक्त कथन से स्पष्ट है कि नीचस्थ लग्नेश का रोग से संबंधित फलादेश करने से पहले सभी बिंदुओं पर भली भांति विचार कर लेना चाहिए।

विशोंत्तरी दशाफल

ग्रहों की नैसर्गिक श्रेणियां ग्रहों की नैसर्गिक श्रेणियां दो हैं- ;पद्ध सौम्य शुभ ग्रह - गुरु, चंद्र, शुक्र, बुध ;पपद्ध पाप ग्रह- सूर्य, मंगल, शनि, राहु व केतु। ग्रहों की ये दो श्रेणियां विंशोत्तरी दशा में काम नहीं देती, क्योंकि सौम्य व पाप श्रेणी के ग्रह आपस में शत्रुता व मित्रता दोनों ही रखते हैं, अतः फलादेश में गलती हो सकती है, फलादेश की इस त्रुटि को दूर करने हेतु महर्षि पराशर ने ग्रहों की निम्न चार श्रेणियां बनाईं- ;पद्ध पहली श्रेणी में ग्रह सदा शुभ फल देते हैं। इसमें त्रिकोण (5, 9, 1 भाव) के स्वामी शामिल हैं। यदि इन भावों के स्वामी नैसर्गिक पाप ग्रह-सूर्य, मंगल, शनि हो तो भी वे अपनी विंशोत्तरी दशा, भुक्ति में सदा शुभ फल करते हैं। यदि नैसर्गिक शुभ ग्रह सौम्य ग्रह-गुरु, चंद्र, शुक्र, बुध हो तो सोने पे सुहागा अर्थात सुनहरा समय होता है। ;पपद्ध द्वितीय श्रेणी के ग्रह सदा अशुभ फल देते हंै। इसमें 3, 6, 11 भाव के स्वामियों का समावेश है। यदि इन भावों के स्वामी नैसर्गिक सौम्य ग्रह-गुरु, चंद्र, शुक्र व बुध हों तो भी अशुभ फल करेंगे और यदि इन भावों के स्वामी नैसर्गिक पाप ग्रह सूर्य, मंगल, शनि आदि हो तो अशुभता का क्या कहना? यानि अशुभता अत्यधिक होगी। ;पपपद्ध तृतीय श्रेणी में ग्रह सदा तटस्थ रहते हैं इसमें केंद्र (4, 7, 10) के स्वामियों का समावेश है। इससे ग्रह शुभ या अशुभ होकर तटस्थ हो जाता है। चतुर्थ श्रेणी में ग्रह कभी शुभ तो कभी अशुभ फल करते हैं ये द्वितीय व द्वादश भाव के स्वामी हैं। अन्य नियम पाप ग्रह सूर्य, मंगल और शनि तीनों से अधिष्ठित राशियों के ये स्वामी और द्वादशेश तथा राहु व केतु ये सभी ग्रह पृथक प्रभाव देते हैं। ये जिस भाव आदि पर प्रभाव (युक्ति दृष्टि) डालते हैं, उससे संबंधित पृथकता या हानि देते हैं। उदाहरण- यदि इनका प्रभाव सप्तम भाव, स्वामी व कारक शुक्र या गुरु हो तो जातक अपने जीवनसाथी से पृथक हो जाता है आदि। किसी भी राशि, भाव, अथवा ग्रह पर उससे दशम भाव में स्थित ग्रह का प्रभाव सदा रहता है। इसे केंद्रीय प्रभाव कहते हैं। यदि दशमस्थ ग्रह अच्छा या बुरा है तो इसका प्रभाव क्रमशः अच्छा (शुभ) या अशुभ (बुरा) रहेगा। प्रत्येक ग्रह अपने स्थान से सप्तम भाव, इसमें स्थित राशि व ग्रह को पूर्ण दृष्टि से देखते हैं जिससे इनमें प्रभाव (अच्छा/बुरा) आ जाता है। नैसर्गिक सौम्य ग्रहों - चंद्र, शुक्र व बुध (गुरु को छोड़कर) की केवल एक ही पूर्ण दृष्टि सप्तम होती है। पाप ग्रहों में सूर्य (क्रूर ग्रह) की केवल एक दृष्टि, सप्तम होती है। इसके अलावा पाप ग्रहों में मंगल, शनि, राहु व केतु तथा सौम्य ग्रह गुरु की अन्य दृष्टियां भी होती हैं। गुरु की 5, 9 दृष्टि, मंगल की 4, 8, शनि की 3, 10, राहु व केतु की 5, 9 दृष्टियां भी होती हैं अर्थात इन पर प्रभाव रहता है। जब राहु व केतु किसी भी भाव में अकेले स्थित हो अर्थात् युक्ति या दृष्टि द्वारा किसी अन्य ग्रह से प्रभावित न हो तो क्रमशः शनि व मंगल का प्रभाव रखते हैं। यदि राहु व केतु किसी भी भाव में अन्य ग्रह के साथ युति या दृष्टि में हो तो उस ग्रह का भी साथ में प्रभाव रखते हैं। राहु व केतु अधिष्ठित राशियों के स्वामी क्रमशः शनि व मंगल के प्रभाव को लेकर कार्य करते हैं। जैसे- यदि केतु ग्रह, तुला राशि में स्थित हो तो तुला राशि का स्वामी शुक्र, केतु का भी काम करेगा अर्थात् जिस भाव पर युक्ति दृष्टि द्वारा प्रभाव डालेगा उसपर केतु का मारणात्मक अथवा आघात्मक प्रभाव भी रहेगा। किसी भी राशि का स्वामी उस राशि में स्थित ग्रह या ग्रहों के प्रभाव को लेकर कार्य करता है। उदाहरण : यदि मीन राशि में सूर्य और शनि स्थित हो तो गुरु (मीन राशि स्वामी) में पृथकताजनक (सूर्य व शनि के कारण) प्रभाव आ जाता है और उसकी दृष्टि लाभ देने के बजाय उल्टे हानि करती है। यह नियम हर ग्रह पर लागू होता है। नैसर्गिक सौम्य ग्रह चंद्र, गुरु, बुध, शुक्र सौम्य ग्रह तथा पाप ग्रह- मंगल, सूर्य, शनि, राहु व केतु है। सूर्य व चंद्र कुछ अलग फल भी प्रदान करते हैं। सूर्य ग्रह पाप ग्रह नहीं क्रूर ग्रह है अतः धर्म आदि के विवेचन में सात्विकता आदि विचार देता है और चंद्र ग्रह अमावस्या के आस-पास (घटी तिथि) निर्बल, क्षीण व पापी, अशुभ फल करता है, मन-मस्तिष्क कमजोर करता है। बुध ग्रह अकेला शुभ होता है पापी ग्रहों के साथ अशुभ फल करता है। बाकि ग्रहों के फल उपरोक्त पाराशर के अनुसार समान हैं। Û इस नियम को निम्न सारणी से समझ सकते हैं- भाव भाव स्वामी का तत्व 1, 5, 9 अग्नि 2, 6, 10 पृथ्वी 3, 7, 11 वायु 4, 8, 12 जल उपरा ेक्त सारणी स े स्पष्ट ह ै कि उपरोक्त भाव के स्वामी संबंधित तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। उदाहरण सूर्य अग्नि रूप (तत्व) होते हुए भी यदि 4, 8, 12 भाव का स्वामी हो ता े यह अग्नि का प ्रतिनिधित्व न करके जल का प्रतिनिधित्व करेगा, परंतु यदि किसी राशि में कोई ग्रह स्थित हो तो उस राशि का स्वामी, उस ग्रह से संबंधित तत्व के अनुसार प्रभाव करेगा, न कि अपनी प्रवृत्ति के अनुसार। जैसे- यदि द्वादश भाव में तुला राशि में अग्नि, तत्व सूर्य व मंगल स्थित हो तो शुक्र जल रूप में कार्य न करके अग्नि रूप में कार्य करेगा। यह नियम थोड़ा विपरीत प्रकृति के अनुसार प्रभाव देता है। जन्मकुंडली में 1, 2, 4, 5, 7, 9, 10, 11 भाव शुभ संज्ञक हैं अर्थात् धन के विचार में इनके भावेश बली हों तो धनदायक होते हैं। शेष भाव - 3, 6, 8, 12, भाव अशुभ संज्ञक हैं। यदि इनके स्वामी बली हों तो आर्थिक हानि होती है। जब कोई ग्रह उपरोक्त शुभ भावों का स्वामी होकर केंद्रादि शुभ भावों में अपनी उच्च, स्वगृही या मित्र राशि में अपनी राशियों से शुभ स्थानों में, नवांश आदि शुभ वर्गों में, वक्री होकर शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट होकर जिस राशि को देखता हुआ स्थित होता है तो वह बली होता है और जिस भाव का स्वामी होता है उसके लिये शुभ करता है। जब कोई ग्रह शुभ भावों का स्वामी तो हो परंतु 3, 6, 8, 12 भावों में स्थित होकर निर्बल अर्थात् नीच या शत्रु राशि में स्थित हो, अपनी राशियों से अशुभ स्थानों में स्थित होकर बाल या मृत आदि अवस्था में होता हुआ, पाप प्रभाव (युक्ति दृष्टि द्वारा) में हो, अशुभ नवमांश वर्गो में स्थित हो, सूर्य के निकट हो, दशानाथ से षडाष्टक आदि अनिष्ट स्थिति में हो, दिग्बल आदि से हीन, पापी ग्रहों से प्रभावित (युक्ति या दृष्टि द्वारा) हो तो वह ग्रह निर्बल होता है और जिस भाव का स्वामी होता है उसके लिए अपनी दशा, भुक्ति से अशुभ फल करता है। जब कोई ग्रह तृतीय आदि अनिष्ट भावों का स्वामी होता है परंतु उपरोक्त रूप से बली होता है तो तृतीय आदि भावों के लिये शुभ फल देने के कारण धन के लिये अशुभ सिद्ध होता है परंतु जब वह ग्रह उपरोक्त रूप से निर्बल हो तो धन के लिये शुभ हो जाता है। जब नवमेश, लग्न में स्थित हो तो जातक इनकी दशा में विदेश यात्राएं बहुत करता है।दशा, गोचर में दशा प्रभावी रहती है तथा गोचर भी दशा के अनुसार ही फल करता है। दशाफल नियमों में एक नियम और है जो कालसर्प योग या पितृदोष के प्रभाव को कुछ कम कर देता है। यदि कुंडली में पंचमहापुरूष के योग- मंगल से रूचक, बुध से भद्र, गुरु से हंस, शुक्र से मालव्य, शनि से शश व बुधादित्य तथा गजकेसरी योग हो। श्रीमोदी जी की कुंडली में पितृदोष (ग्रहण च चंद्र योग) है तथा साथ ही शुभ योग रूचक, बुधादित्य व गजकेसरी योग भी है। ग्रहो भावराशिदृग्योग जीविकादि फलं स्वदशान्तर्दशाया ददाति।। ग्रहों का भावफल, राशिफल, दृष्टिफल, योगफल एवं जीविकादी से शुभाशुभ फल संबंधित ग्रहों की दशा-अंतर्दशा में प्राप्त होता है। (जातक तत्त्वम) विशोंत्तरी दशा में यूं तो सभी ग्रह अपने षड्बल के अनुसार फल करते हैं परंतु यदि स्थिति वश षड्बल उपलब्ध न हो तो ग्रह से संबंधित कुछ तथ्यों का अध्ययन कर फल विचार किया जाता है। अब प्रश्नानुसार ग्रह स्थिति, युति, राशि, स्वामित्व, दृष्टियां, योग, गोचर, नक्षत्र स्वामित्व आदि सभी स्थितियों में विशोंत्तरी दशा फल के कुछ प्रमुख नियमों की चर्चा करेंगे। ग्रह स्थिति दशानाथ ग्रह की स्थिति, उस ग्रह के द्वारा अधिष्ठित भाव पर निर्भर करती है। ग्रह को केंद्र व त्रिकोण (1,4,5,7,9,10) भाव स्थिति का विशेष लाभ मिलता है क्योंकि शुभ भाव कहलाते हैं इसलिए इन भावों में स्थित ग्रह दशाकाल में शुभ फलदायक होते हैं। 2, 3, 6, 8, 11, 12 भाव, अशुभ भाव कहलाते हैं इन भावों में स्थित ग्रह, दशाकाल में अशुभ फलदायक होते हैं। दशानाथ जिस भाव में स्थित है उस भाव स्वामी के साथ नैसर्गिक संबंधों के अनुसार फल पर प्रभाव होता है। दशानाथ ग्रह यदि भाव आरंभ से भाव मध्य के बीच स्थित हैं तो यह दशाकाल में अपनी भाव स्थिति के अनुसार पूर्ण फल देते हैं। दशानाथ ग्रह भाव मध्य से भाव विराम संधि के बीच ग्रह उच्चगत, स्वक्षेत्री आदि होने पर भी वह अपने दशाकाल में पूर्ण फल नहीं दे पाते हैं। युति कुंडली में यदि दो या दो से ज्यादा ग्रह एक ही भाव या राशि में एक साथ होते हैं तो उसे ग्रहों की युति के नाम से जाना जाता है। दशानाथ, यदि नैसर्गिक शुभ ग्रहों, योगकारक व मित्र ग्रहों से युत हो तो फल में वृद्धि व शीघ्र फलदायक होते हैं। दशानाथ ग्रह, पाप युक्त होने पर, दशाकाल में थोड़ा अरिष्ट फल या हानि जरूर होती है। दशानाथ ग्रह, नैसर्गिक अशुभ/ पाप, अस्त, नीच व वक्री ग्रहों से युत होने पर फल में कमी व देरी होती है। राशि स्वामित्व दशानाथ ग्रह, जिस राशि में स्थित है उस राशि तथा राशि स्वामी के अनुसार फल करता है। दशानाथ पर राशि के स्वभाव, गुण-धर्म-दोष आदि से भी ग्रहफल प्रभावित होता है जैसे यदि दशानाथ ग्रह चंद्र जल कारक ग्रह के जल राशि में स्थित होने पर फल में वृद्धि व अग्नि राशि में स्थित होने पर निश्चित रूप से फल में कमी होगी। योगकारक व शुभ ग्रहों की राशि में स्थित ग्रह दशाकाल के दौरान शुभ फल करता है। उच्च राशि, स्वराशि, मित्रराशि स्थित ग्रह की दशा काल के दौरान शुभ फल प्राप्त होते हैं। नीचराशि, शत्रु क्षेत्री, वक्री, अस्त ग्रहों की दशा में जातक पाप कर्मों के लिए आसानी से आकर्षित हो जाता है इसलिए ऐसे ग्रहों की दशाकाल के समय बदनामी का डर रहता है। इस काल में अधिष्ठित भाव संबंधित रोग का भय भी रहता है। नीच राशिगत ग्रह की नीच राशि का स्वामी यदि नीच राशि को देखे या स्वराशि में हो तो नीचगत ग्रह की दशा भी शुभ हो जाती है क्योंकि उसका नीच भंग हो जाता है। दृष्टियां दशानाथ ग्रहों पर नैसर्गिक शुभ, योगकारक व मित्र ग्रहों की दृष्टि, ग्रह के फल में वृद्धि करती है तथा अस्त, वक्री, अकारक, बाधक, पाप व शत्रु ग्रहों की दृष्टि ग्रह फल में कमी या बाधा का कारण बनती है। योग कुंडली में सभी ग्रहों की विभिन्न भावों में युति, परस्पर स्थिति व निश्चित अंशों की दूरी से योग बनाते हैं। यह शुभ व अशुभ दोनों प्रकार के होते हैं जैसे गुरु व राहु एक साथ होने पर चांडाल योग, सूर्य व बुध में निश्चित अंशों की दूरी से बुध-आदित्य योग, चंद्र व गुरु की परस्पर केंद्र स्थिति से गजकेसरी योग व चंद्र के द्वि-द्वादश भाव में यदि कोई ग्रह न हो तो केमद्रुम नामक योग बनाता है। इसी प्रकार से कुंडली में विभिन्न ग्रह स्थितियों के अनुसार योगों का अध्ययन किया जाता है। यह सभी योग संबंधित ग्रहों की दशा में ही प्रभावी होते हैं। जन्मकुंडली दशानाथ ग्रह, शुभ या अशुभ जिस योग का अवयय होगा उसके अनुसार ही फल करेगा। गोचर: दशानाथ की गोचर स्थिति भी फल विचार में विशेष स्थान रखती है। किसी भी ग्रह के फल में गोचर और दशा का विशेष योगदान होता है। गोचर फल अध्ययन के लिए अष्टकवर्ग की सहायता ली जाती है। दशानाथ ग्रह जिस राशि में है यदि अष्टकवर्ग में उस राशि को 5 से 8 रेखाएं प्राप्त हों तो उस ग्रह की दशाकाल के दौरान गोचर में ग्रह उस स्थिति में आने पर उत्कृष्ट फल देता है। दशानाथ ग्रह की अधिष्ठित राशि को अष्टकवर्ग में 4 रेखाएं प्राप्त हों तो उस ग्रह की दशा व गोचर के दौरान शुभ-अशुभ समान फल मिलते हैं। दशानाथ ग्रह की राशि को अष्टकवर्ग में शून्य से 3 रेखाएं प्राप्त हों तो उस ग्रह की दशा व गोचर काल में अशुभ या देरी से फल मिलते हैं। नक्षत्र स्वामित्व दशानाथ ग्रह जन्म कुंडली में जिस ग्रह के नक्षत्र में स्थित होता है उस नक्षत्र स्वामी का भी फलादेश पर प्रभाव होता है। नक्षत्र स्वामी के साथ ग्रह विशेष के नैसर्गिक संबंध के अनुसार ही फल पर प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त जन्म नक्षत्र से दूसरा नक्षत्र संपत, छठा नक्षत्र साधक, आठवां नक्षत्र मित्र तथा नवम नक्षत्र परम मित्र कहलाता है। इन नक्षत्रों के स्वामी ग्रहों की दशाएं शुभ होती हैं तथा समृद्धि व संपत्ति में वृद्धि करने वाली होती हैं। इनके अतिरिक्त नक्षत्र स्वामी अपने पंचधा मैत्री संबंध के अनुसार ही दशाकाल में फल को प्रभावित करेंगे। दशाफल निर्णय में सभी सामान्य और विशेष सिद्धांतों को ध्यान में रखकर ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए।

Sunday 19 February 2017

सरकारी नौकरी प्रदाता: सूर्यदेव

युवाओं की प्रथम मनोभावना यही रहती है कि जीवन में एक निश्चित आय-स्रोत की सुनिश्चितता हो। आर्थिक सम्पन्नता एवं विपन्नता व्यक्ति के जीवन का महत्वपूर्ण पहलू है। प्रत्येक युवा ऐसे कार्यक्षेत्र का चयन चाहता है जहाँ आर्थिक सम्पन्नता के साथ उसकी सामाजिक सुरक्षा भी सुनिश्चित हो सके। इसलिए जो भी, जिस प्रकार की शिक्षा ग्रहण कर पाता है उसी शिक्षा-जनित स्रोतों के माध्यम से सरकारी नौकरी प्राप्त करने के लिए लालायित रहता है क्योंकि सरकारी नौकरी मंे अच्छे आर्थिक परिलाभों के साथ-साथ पूर्ण सामाजिक सुरक्षा भी प्राप्त हो जाती है। इस दिशा में सभी युवा अथक परिश्रम एवं अध्ययन करते हंै परन्तु सरकारी क्षेत्र मे नौकरी प्राप्त करने में कम ही युवा सफल हो पाते हैं, ऐसा क्यों होता है? बढ़ती बेरोजगारी ने इस समस्या को और भी विकराल बना दिया है। आर्थिक मारामारी के दौर में अभिभावक लाखों रूपया व्यय कर प्रतियोंिगता परीक्षाओं की तैयारी करवाते हैं। सभी अभिभावक चाहते हैं कि उनके बच्चे प्रतियोगी परीक्षा में अच्छे अंक पाकर सरकारी क्षेत्र में किसी ऊँचे ओहदे पर बैठे। मेहनत समान रूप से भी करते हैं लेकिन कुछ ही युवा प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल हो पाते हैं। यद्यपि आजीविका का अर्जन सभी अपने-अपने ढंग से करते हैं लेकिन सरकारी नौकरी अर्जित करने का सौभाग्य कम ही युवाओं को मिल पाता है। तुलसीदास जी ने अपने महाकाव्य में वर्णित किया है कि - जनम मरन सब दुखसुख भोगा। हानि लाभु प्रिय मिलन वियोगा।। काल करम बस होहीं गोसाई । बरबस राति दिवस की नांई ।। ओमप्रकाश शर्मा प्रत्येक व्यक्ति अपने भविष्यकाल के बारे में जानना चाहता है कि उसका भावी जीवनकाल कैसा रहेगा ? खासतौर पर युवा बेरोजगार यह जानने के लिए उत्सुक रहता है कि उसकी आजीविका का कार्यक्षेत्र कौन सा होगा ? इस आधार पर मनुष्य द्वारा अर्जित फल कर्म एवं काल पर निर्भर है। कर्म से मानव अपने प्रारब्ध को संशोधित कर सकता है । निश्चित समय पर किए गए कर्म सुफल प्रदान करने वाले तथा असमय किए गए कार्य कुफलदायी सिद्ध होते हैं। कर्म से ही व्यक्ति की पहचान होती है तथा समय पर कर्म करने पर सफलता प्राप्त होती है।ज्योतिष सूचना शास्त्र है। यह व्यक्ति के कर्मफल की सूचना प्रदान करता है। जन्म कुण्डली के ग्रह योग एवं ग्रह स्थितियों के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि जातक किस क्षेत्र में कर्म करेगा? उसकी आजीविका किस स्रोत के माध्यम से प्राप्त होगी। आजीविका, राजकीय पद, राजकीय सम्मान, राज्य कृपा प्राप्ति का विचार करने के लिए जन्मकुण्डली के दषम भाव का अध्ययन किया जाता है। प्रसिद्ध ग्रंथ जातकतत्वम् के अनुसार - राज्यपदव्यापारमुद्रानृपमानराज्यपितृमहत्पदाप्तिपुण्याज्ञाकीर्ति- वृष्टिप्रवृतिप्रवासकर्माजीवजानु पूत्र्यादिदषमाच्चिन्त्यम् ।। दशम भाव में स्थित ग्रह, दृष्टि, युति तथा दशमेश ग्रह के बलाबल का परीक्षण कर आजीविका के क्षेत्र का निर्धारण करने के शास्त्रीय निर्देश हैं। पद-प्रतिष्ठा किस प्रकार की होगी इसका अनुमान लगाने के लिए पंचम-नवम भाव का विचार किया जाता है। धन की स्थिति, मात्रा एवं आय की स्थिति का अनुमान लगाने के लिए द्वितीय-एकादश भाव पर विचार किया जाता है। राज्य कृपा, राजा, राज्य सुख का प्रदाता ग्रह सूर्य को माना गया है। दशम भाव का चर कारक दशमेश ग्रह माना जाता है। दशम भाव के चार स्थिर कारक ग्रह हैं, सूर्य, बुध, गुरू एवं शनि ग्रह, जो आजीविका निर्धारण के अनिवार्य विचारणीय अंग हैं। मंगल भी दशम भाव में बली माना जाता है। इन स्थिर कारक एवं चर कारक ग्रहों की स्थिति जातक के संपूर्ण आजीविका क्षेत्र सहित सफलता-असफलता की गाथा बयां करते हंै। इस प्रकार आजीविका क्षेत्र के साथ आर्थिक स्त्रोतों का अनुमान किसी एक भाव या एक ग्रह से नहीं लगाया जा सकता है, इसके लिए विभिन्न भावों एवं ग्रहों के आपसी सम्बन्धों के समग्र अध्ययन की आवश्यकता होती है। यहाँ हम ऐसे ग्रह योगों की चर्चा करेंगे जो सरकारी क्षेत्र में नौकरी प्राप्ति में सहायक सिद्ध होते हैं। ज्योतिष के प्राचीन गं्रथ जातकतत्वम् के अनुसार - सार्केऽंशे राजकार्यकर्ता ।। केन्द्रेऽर्के राजकार्यकर्ता ।। केन्द्रे कोणे चन्द्रे राजकार्यकर्ता ।। राज्येशे लाभे केन्द्रे वा राजकार्यकर्ता ।। लग्नाम्बुगे जीवे राजकार्यकर्ता ।। इस आधार पर कारकांश कुण्डली के केन्द्र त्रिकोण में सूर्य स्थित हो तो मनुष्य राजकार्यकर्ता होता है। केन्द्र-त्रिकोण में बलवान चन्द्रमा होने पर जातक सरकारी क्षेत्र से आजीविका अर्जित करता है। दशमेश ग्रह बलवान होकर लग्न से केन्द्र अथवा लाभ भाव में स्थित हो तो जातक सरकारी कर्मचारी होता है। जन्मकुण्डली में लग्न अथवा चतुर्थ भाव में गुरू बलवान होकर स्थित हो तो सरकारी क्षेत्र में नौकरी दिलवाने में सहायक सिद्ध होते हैं । जन्मकुण्डली में सभी सातों ग्रहों की स्थिति महत्वपूर्ण होती है। इनमें कोई भी एक बली ग्रह राजकीय क्षेत्र से आजीविका या सरकारी पद प्राप्ति में सहायक हो जाता है। प्राथमिक अनुसंधान से प्राप्त निष्कर्षों के अनुसार सूर्य, चन्द्रमा, गुरू, शनि एवं मंगल उत्तरोत्तर रूप से राजकीय नौकरी दिलाने में सहायक सिद्ध होते हैं। सूर्य एवं गुरू तो निश्चित रूप से राजकीय धन से ही रोजी-रोटी देने वाले ग्रह हंै। गुरू धन, समृद्धि एवं सूर्य ऊर्जा, जीवनशक्ति, इच्छाशक्ति, राज्य एवं अधिकार का नैसर्गिक कारक है। इसी प्रकार बुध विद्या, बुद्धि, वाक्शक्ति, व्यापार, संचार, लेखन का तथा शनि ग्रह श्रम एवं अध्यवसाय का नैसर्गिक कारक ग्रह है ।

कारकांश लग्न और ग्रहों की चाल



कारकांश लग्न में सूर्य व राहु की युति हो व शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो व्यक्ति विषवैद्य अर्थात चिकित्सक होता है। कारकांश लग्न में सूर्य व शुक्र दोनों की दृष्टि हो तो व्यक्ति राजा अथवा सरकार का विश्वसनीय होता है। कारकांश लग्न व केतु दोनों पर शुक्र की दृष्टि हो तो व्यक्ति दीक्षा ग्रहण करता है कर्मकाण्डी, यज्ञ, हवन करने वाला होता है।कारकांश लग्न में केतु हो उस पर बुध शनि की दृष्टि हो तो जातक नपुंसक होता है। यदि शुक्र बुध की दृष्टि हो तो जातक दासी पुत्र (नजायज संतान) होता है। कारकांश लग्न में केतु केवल शनि द्वारा दृष्ट हो तो वह व्यक्ति कपटी होता है अर्थात् जैसा वह दिखता है वैसा नहीं होता।यदि कारकांश लग्न से चतुर्थ भाव में चंद्र हो और उस पर शुक्र, मंगल, केतु (किसी भी एक की) दृष्टि हो तो व्यक्ति कुष्ट रोगी होता है। कारकांश लग्न से चतुर्थ में केतु हो तो जातक सूक्ष्म यंत्रों को बनाने वाला (घड़ी साज) मंगल हो तो हथियार रखने वाला शनि हो तो निशानेबाज (धर्नुधारी) राहु हो तो लोहे से समान बनाने वाला होता है।कारकांश लग्न से पंचम भाव में शुुक्र हो तो व्यक्ति कवि, वक्ता या साहित्यकार होता है यदि गुरु हो तो बहुत से विषयों का जानकार विद्वान होता है। यदि शुक्र चंद्र हो तो लेखक, मंगल हो तो तर्कशास्त्री, वकील तथा सूर्य हो तो वेदों का ज्ञाता एवं गायक होता है।कारकांश से सप्तम भाव में गुरु और चंद्र हो तो जातक की पत्नी सुंदर व उसे चाहने वाली होती है, शनि हो तो उम्र में बड़ी रोगी अथवा तपस्विनी होती है। बुध हो तो गायन, वादन कला में निपुण होती है। (10) कारकांश से दशम भाव में बुध हो या बुध की दृष्टि हो तो जातक अपने पेशे में प्रसिद्ध होता है यदि बुध हो और उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो जातक वकील, जज होता है अर्थात विवादों को हल करने वाला होता है। कारकांश लग्न से बाहरवें सूर्य और केतु हो तो जातक शिव भक्त चंद्र हो तो गौरी भक्त, मंगल हो तो कार्तिकेय, बुध और शनि हो तो विष्णु भक्त, गुरु हो तो शिव गौरी (दोनों) शुक्र हो तो लक्ष्मी भक्त या उपासक होता है, राहु हो तो तामसिक भक्ति केतु हो तो गणेश भक्ति वाला होता है। इस प्रकार बहुत से अन्य योग भी दिये गये हैं जिनसे काफी कुछ जानकारी व्यक्ति विशेष के बारे में जानी जा सकती है यहां यह भी ध्यान रखें कि यह सारे फलादेश आज के संदर्भ में समयानुसार परिवर्तन के साथ समझे जा सकते हैं वहीं दृष्टि यहां पर जैमिनी मानी गई है पराशरीय नहीं। आइये अब कुछ उदाहरण से इन्हें समझने का प्रयास करते हैं। यहां आत्मकारक ग्रह चंद्रमा है जो नवांश में मिथुन राशि में ही है अतः कारकांश लग्न मिथुन हुआ जिसके प्रभाव से जातक गायन का शौक रखता है (व्यवसायिक गायन भी किया है) तथा लग्न पर शुक्र चंद्र के प्रभाव से जीविका विद्या द्वारा (शिक्षण व्यवसाय) अर्जित करता है। राहु केतु के पंचम पर प्रभाव होने से जातक गणित विषय की अच्छी जानकारी रखता है। आत्मकारक ग्रह चंद्रमा है जो नवांश में वृश्चिक राशि में गया है अतः कारकांश लग्न वृश्चिक हुआ तथा जिस पर मंगल चंद्र व राहु का प्रभाव है, जातक मां के सुख से वंचित रहा (वृश्चिक लग्न) तथा अग्नि व रसायन धातु कार्य करने वाला (स्वर्णकार) मंगल प्रभाव समस्त भोगों को भोगने वाला धनी (चंद्र प्रभाव) रहा है पचंम भाव पर गुरु का प्रभाव तथा कर्म भाव में शनि ने उन्हें अपने क्षेत्र में बहुत प्रसिद्धि व कई विषयों का जानकार बनाया है। जातक वास्तु, ज्योतिष व धर्म संबंधी जानकारी विद्वता से रखते हैं। आत्मकारक शुक्र है जो मेष राशि नवांश में है अतः कारकांश लग्न मेष हुआ। जिस पर शुक्र चंद्र का स्पष्ट प्रभाव है जातक के पास बहुत चल अचल सम्पत्ति है तथा जातक विद्या के क्षेत्र (शुक्र चंद्र प्रभाव) में है दशम पर सूर्य सरकार द्वारा लाभ दर्शाता है। यह जातक दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर है लग्न कुंडली पर ज्यादातर व्यवसाय का योग दिखता है नौकरी का नहीं अतः कारकांश लग्न सटीक फल दर्शा रहा है। आत्मकारक शुक्र नवांश में मिथुन राशि में है अतः कारकांश लग्न मिथुन हुआ जिस पर सूर्य बुध का प्रभाव है वही दशम पर भी सूर्य बुध का ही प्रभाव है बुध का मुख्य प्रभाव दशम व लग्न पर होने से जातक वकील से जज बना, पचंम भाव में मंगल, शुक्र व राहु केतु के प्रभाव ने कानून विद्या की अच्छी जानकारी व तर्क ज्ञान में दक्षता तथा वक्ता बनाया है। आत्मकारक मंगल है जो सिंह नवांश में है अतः कारकांश लग्न सिंह हुआ जिस पर गुरु मंगल का प्रभाव है जिससे जातक समझदार, व्यवहारिक व जोशीला है दशम शनि (केन्द्र भाव) जातक को प्रसिद्ध एवं अपने कार्य में दक्ष बना रहे हैं पंचम भाव पर राहु, केतु व बुध नीच के प्रभाव से जातक ने ज्यादा शिक्षा नहीं पाई है वहीं नवम भाव सूर्य (उच्च) से सरकार से लाभ तथा बड़ों का आदर सम्मान करना सिखाया है। यह पत्रिका सचिन तेंदुलकर की है। लग्न पर सूर्य शुक्र प्रभाव सरकार से जबरदस्त लाभ एवं सम्मान दिलवाता है। लग्न कुंडली में सप्तमेश नीच राशि होकर बैठा है, विवाह कारक शुक्र सूर्य से अष्टम में पीड़ित है (सूर्य कारकांश लग्न या स्वामी है) गुरु सप्तमेश की शनि (पंचमेश) पर दृष्टि भी है जो आयु में बड़ी जीवन साथी होना तथा प्रेम संबंध होना बता रही है।

प्राकृतिक आपदा का ज्योतिष्य कारण

भारतीय ज्योतिष शास्त्र के प्रवर्तक आचार्यों ने अपनी मेधा शक्ति द्वारा न केवल मनुष्य-मात्र अपितु संपूर्ण विष्व से संबंधित शुभाषुभ फलादेष करने की विधि को विकसित किया। सृष्टि के आरंभ से ही प्राकृतिक आपदाओं ने विष्व की कई विकसित और विकासषील सभ्यताओं को नष्ट कर दिया है अथवा उसे अपूरणीय क्षति पहुँचाई है। वैज्ञानिक शोध भी यह सिद्ध करते हैं कि प्राकृतिक आपदाओं ने ही डायनासोर सदृष विषाल जीवों का अस्तित्व ही समाप्त कर दिया था। आज की परिस्थिति भी उस प्राचीन कालीन विवषता से भिन्न नहीं है। वत्र्तमान परिदृष्य पर दृष्टिपात करें तो स्पष्ट हो जाता है कि ये प्राकृतिक आपदाएँ आकस्मिक रूप स े आती हैं और उस क्षेत्र विषेष की मानव सभ्यता, सम्पत्ति, सामाजिक व आर्थिक स्वरूप को तहस-नहस कर देती हैं तथा अपना व्यापक व विनाषकारी प्रभाव छोड़ जाती हैं। आज के युग को वैज्ञानिक युग कहा जाता है फिर भी इन प्राकृतिक आपदाओं के समक्ष मनुष्य असहाय नजर आता है। जब इन प्राकृतिक आपदाओं के पूर्वानुमान का प्रष्न उठता है तो वैज्ञानिक विकास का दंभ भरने वाले आधुनिक बुद्धिजीवियों का पूर्वानुमान प्रायः गलत ही सिद्ध होता है। भारतीय ज्योतिष षास्त्र इस विषय पर मौन नहीं है और प्रायः इसकी सभी शाखाओं यथा फलित, संहिता, प्रष्न, शकुन, स्वरविज्ञान, हस्तपरीक्षण द्वारा इन प्राकृतिक आपदाओं का सफल और सटीक पूर्वानुमान किया जा सकता है। भूकम्प, ज्वालामुखी विस्फोट, बाढ़, चक्रवाती तूफान, सुनामी, सूखा, बादल का फटना, भ ूस्खलन, उल्कापात, वज्रपात, हिमस्खलन आदि घटनाओं की गणना हम प्राकृतिक आपदाओं के रूप में कर सकते हैं। इन आपदाओं के पूर्वानुमान तथा समाज पर इनके व्यापक प्रभाव का अध्ययन ज्योतिष शास्त्र के संहिता स्कन्ध में अत्यन्त विस्तार से किया गया है। मनुष्यों में पापों के आधिक्य और अविनय से ही ये उपद्रव या उत्पात होते हैं। मनुष्यों के इन पापकर्म तथा अविनय से देवगण अप्रसन्न होते हैं तथा इन उत्पातों को उत्पन्न करते हैं। अब विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं को ज्योतिष षास्त्र की विभिन्न विधाओं या स्कंध द्वारा पूर्वानुमान विधि को क्रमषः प्रस्तुत करते हैं। प्राकृतिक आपदाओं के पूर्वानुमान में प्रयुक्त विभिन्न प्रमुख ज्योतिष षास्त्रीय सिद्धांत- संहिता ज्योतिष में नवग्रहों के विभिन्न नक्षत्रों में चार द्वारा प्राकृतिक आपदा विषयक फलादेष की विधियाँ बताई गई हैं। विभिन्न ग्रहों के आपसी युति व दृष्टि संबंध भी इन विनाषकारी घटनाओं की पूर्व सूचना देने में समर्थ हैं। विभिन्न चक्रों के निर्माण द्वारा अतिवृष्टि अनावृष्टि, भूकम्प, निर्घात, दिग्दाह, भूकम्प आदि का फलादेश बताने की विधि नरपतिजयचर्या स्वरा ेदय ग्रंथ में उपलब्ध होती है। विभिन्न वृक्षों में लगने वाले फल अथवा पुष्पों की मात्रा द्वारा उपरोक्त विषयक फलादेष किया जा सकता है, इसका वर्णन वराहमिहिराचार्य ने अपने ग्रंथ वाराहीसंहिता के फलकुसुमलताध्याय में की है। काकतन्त्र की विभिन्न विधियाँ इन आपदाओं का पूर्वानुमान करने में सक्षम है। हस्तसंजीवनी ग्रन्थ प्रष्नकत्र्ता द्वारा हस्तस्पर्ष तथा चेष्टाओं से भी बाढ़, सूखा, भूकम्प आदि का फलादेष करना बताता है। शकुन शास्त्र में विभिन्न जीव-जन्तुओं के व्यवहारों के अध्ययन द्वारा इन प्राकृतिक घटनाओं के पूर्वानुमान की विधि बताई गई है। संहिता ग्रन्थों में सूर्यग्रहण, चंद्र ग्रहण, ग्रहों के मार्गो तथा वक्री होने, संक्रान्ति, ग्रहयुद्ध, पूर्णिमा तथा अमावस्या तिथियों को मौसम में आकस्मिक बदलाव के दृष्टिकोण से अत्यन्त संवेदनषील माना गया है। ज्योतिषशास्त्र की उपरोक्त विधियों का आश्रय लेकर तथा ऋषि प्रणीत ग्रन्थों को आधार मानकर विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के पूर्वानुमान में सहायक सिद्धांतों तथा बिंदुओं को क्रमवार रूप से प्रस्तुत किया जा रहा है। अतिवृष्टि/बाढ़- यदि आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन सूर्यास्त के समय पष्चिम दिषा से हवा बहे तो उस वर्ष अतिवृष्टि होती है। वर्षा ऋतु में यदि राषि चक्र में बुध व शुक्र के समीप सूर्य हो तो अत्यधिक वृष्टि होती है। बुध और शुक्र समीप हों तो भी अतिवृष्टि। जब राषि चक्र में सूर्य से पीछे या आगे समस्त ग्रह हों तो भूमि समुद्र के समान बन जाती है। त्रिनाड़ी चक्र में जब समस्त शुभ व पाप ग्रह एक नाड़ी में हों तो अत्यधिक वृष्टि। सप्तनाड़ी चक्र के जलनाड़ी में शुक्र व चंद्रमा के होने पर अतिवृष्टि। वर्षा ऋतु में जिस दिन एक ही नक्षत्र में कई ग्रह अथवा समस्त ग्रह एकत्रित हों तो अतिवृष्टि। अमृत नाड़ी में यदि चंद्रमा के साथ 4 या अधिक ग्रह स्थित हों तो सात दिन तक निरंतर घनघोर वृष्टि होती है। चंद्रमा व भौम एक नाड़ी में, गुरू के उदय व अस्त में, मार्गी होने के समय, वक्री होने पर और संगम हो जाने पर जल नाड़ी में समस्त ग्रह हों तो अत्यधिक वृष्टि। अर्जुन वृक्ष पर यदि पुष्पादि का आधिक्य हो तो उस वर्ष प्रभूतवृष्टि प्रश्नकालीन लग्न में जलराषि में स्थित चंद्रमा पर बलवान शुक्र की दृष्टि भारी वर्षा कराता है। सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, शनि व राहु जलीय राषियों में हो और शुक्र, बुध स्थिर राषि में हो तो भीषण वर्षा होती है। वर्षा के प्रष्नकालीन शकुन में कृष्ण गौ या भरे हुए कृष्ण घड़े का दर्षन हो तो प्रभूत वृष्टि। यदि प्रष्न कारक पाँच अंगुली के स्पर्ष में अंगूठे का स्पर्ष करे तो महावृष्टि। काक बलिपिण्ड द्वारा यदि पूर्वानुमान किया जाये तो जलपिण्ड ग्रहण करने पर प्रभूत वर्षा। काक यदि वृक्ष के अग्रभाग पर घोंसला बनाए तो अति वर्षा। भूस्खलन- चंद्रमा अनुराधा नक्षत्र में हो तथा बुध व मंगल पुष्य नक्षत्र में हो तो भूस्खलन का भय। अत्यधिक वर्षा के ग्रहयोग पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन योग का निर्माण करते हैं। ग्रहों का जलीय, प्रचण्ड व सौम्य नाड़ी में होना भी भूस्खलन का भय उत्पन्न करते हैं। चंद्रमा वृष्चिक या धनु राषि तथा शुक्र सिंह में हो तो हिमस्खलन या भूस्खलन की संभावना। भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदा का मूल कारण शनि और राहु की युति को माना जा सकता है। राहु को वन तथा पर्वतीय प्रदेष का स्वामी माना जाता है और शनि के साथ युति इसे प्रबल भूस्खलन का कारण बनाता है। प्रबल वृष्टि योगों का इस ग्रह युति के साथ उपस्थित होना इसकी विनाषकता को और अधिक बढ़ा देता है। केदारनाथ त्रासदी में उपर्युक्त ग्रहयोग द्रष्टव्य हैं। सुनामी- सप्तनाड़ी चक्र, त्रिनाड़ी चक्र के सूक्ष्म विष्लेषण द्वारा इस प्राकृतिक आपदा का पूर्वानुमान किया जा सकता है। समुद्र के अंदर आने वाले भूकंप इस आपदा के प्रमुख कारण हैं। अतः समुद्री इलाकों में भूकंप के ग्रहयोग, गोचर, शकुन या प्रष्नादि द्वारा इस आपदा का पूर्वानुमान किया जाता है। द्वयाधिक ग्रहों के दहन, पवन, प्रचंड, सौम्य, नीर या दहन नाड़ियों में होना इस योग को प्रबलता प्रदान करता है। सूर्य और शनि यदि वृष्चिक अथवा मेष राषि में स्थित हों तो समुद्री तूफान का योग बनता है। सूर्य ग्रहण व चंद्र ग्रहण के समय मंगल, बुध व शनि का आपस में संबंध हो तो सुनामी का भय होता है। इसी तरह, राहु व केतु के मध्य चार या अधिक ग्रह अषुभ स्वामियों के नक्षत्र पर हों तथा शनि का मंगल, गुरु अथवा बुध के साथ संबंध बन रहा हो तो भी समुद्री तूफान का भय होता है। धूलिवर्षा- गुरु, शनि, शुक्र तथा बुध एक ही राषि में स्थित हों तो धूलिवर्षा का योग बनता है। उल्का पतन: सूर्य से पाँचवें या सातवें चंद्रमा और छठे स्थान में मंगल हो तो उल्कापात होता है। यदि शुभ ग्रह मित्र भावों में स्थित न हों तो पर्वतों पर विद्युत्पात होता है। अनावृष्टि/सूखा- आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन सूर्यास्त के समय आग्नेय कोण अथवा दक्षिण दिषा से वायु चले तो उस वर्ष अनावृष्टि होती है तथा ध् ाान्यों का विनाष होता है। इसी दिन और इसी समय यदि नैर्ऋत्य कोण से हवा बहे तो भी अनावृष्टि होती है। सूर्य के अगली राषि में यदि मंगल हो तो अनावृष्टि का योग बनता है। बुध और शुक्र के मध्य सूर्य स्थित हो तो सूखा। त्रिनाड़ी चक्र में नपुंसक ग्रह तथा स्त्री ग्रह एक ही नाड़ी में हों तो अनावृष्टि। वर्षा ऋतु में जब चन्द्रमा व शुक्र एक ही राषि में पाप ग्रह से दृष्ट या युक्त हों तो अल्पवृष्टि या अनावृष्टि। चंद्रमा यदि केवल पापग्रह से मिले तो अल्पवृष्टि। सप्तनाड़ी चक्र के जिस नाड़ी में केवल पापग्रह स्थित हों तो उसमें वृष्टि का अभाव होता है। जिस वर्ष शीषम में अधिक फल लगें तो दुर्भिक्ष का भय। निचुल वृक्ष में फल-फूल अधिक हों तो अनावृष्टि। यदि लताओं के पत्रों में छिद्र, शुष्कता व रूक्षता हों तो उस वर्ष वृष्टि का अभाव। यदि खैर के वृक्ष में पुष्पादि की वृद्धि हो तो अकाल का प्रकोप। वर्षा के प्रष्न लग्न में चतुर्थ भाव में शनि और राहु हो तो उस वर्ष महाघोर दुर्भिक्ष। यदि प्रष्नकारक पाँच अंगुली के स्पर्ष में अनामिका को स्पर्ष करे तो अत्यल्प वृष्टि। काकबलि पिंड में यदि कौआ वायव्य कोण का पिंड भक्षण करे तो अनावृष्टि। यदि त्रिपिण्ड में से अंगार पिण्ड ग्रहण करे तो वृष्टि का अभाव। काक वृक्ष के नीचे थड़ में घर बनाए तो अनावृष्टि और अकाल। किसी वृक्ष, भवन, वल्मीक के कोटर में घोंसला बनाए तो अकाल का प्रबल भय। मंगल आष्लेषा नक्षत्र में हो तो अकाल। तूफान- आषाढ़ पूर्णिमा के दिन सूर्यास्त के समय वायव्य कोण से वायु चले तो उस वर्ष आंधी का भय होता है। बुध के साथ मंगल या शनि का योग हो तो तूफान के साथ-साथ अग्नि भय भी होता है। त्रिनाड़ी चक्र की एक ही नाड़ी में नपुंसक व स्त्री ग्रहों का योग हो तो तीव्र वायु चलती है, इसी प्रकार समस्त पुरुष ग्रह एक ही नाड़ी में हो तो भी वायु का प्रकोप होता है। सप्तनाड़ी चक्र के चण्ड अथवा वायु नाड़ी में ग्रह हों तो आंधी तुफान का भय। विषाखा, अनुराधा व ज्येष्ठा अर्थात् नपुंसक नक्षत्रों में योग होने पर तीव्र वायु चलती है और प्रभूत विनाष होता है। कपित्थ वृक्ष में फल-फूल अधिक हों तो उस वर्ष वायु का प्रकोप। कौआ वृक्ष के वायव्य कोण की शाखा पर घोंसला बनाए तो आंधी-तूफान का भय। नैर्ऋत्य कोण का घोंसला भी आंधी-झंझावात का भय उत्पन्न करता है। अक्षय तृतीया के दिन की ग्रहस्थिति के अनुसार भौमचक्र का निर्माण करें, इस चक्र में राहु जहाँ , उस नक्षत्र के अक्षरानुसार जो देष व स्थान हों वहाँ बवंडर, आंधी आदि का प्रकोप। दो या उससे अधिक ग्रह जल राषि, दहन नाड़ी, प्रचंड नाड़ी और सौम्य नाड़ियों में हो तो तूफान का भय। चंद्र बुध की युति हो तथा सूर्य मूल नक्षत्र में हो, जब बृहस्पति और बुध सूर्य के साथ स्थित होकर स्वराषियों में स्थित ग्रहों के अनुवत्र्ती हों तो भयंकर तूफान आता है। इसी प्रकार मनुष्य, सर्प तथा छोटे जंतु युद्ध करते दिखाई दें तो भी तूफान का भय होता है। भूकंप- जहाँ तक ज्योतिषश्षास्त्र के ग्रन्थों का प्रष्न है इन ग्रन्थों में भूकंप के कारणों की अपेक्षा भूकंप के पूर्वानुमान के संबंध में अधिक चर्चा की गई है। ग्रहचार अध्यायों में यथा भौमचार, शनिचार, राहु चार, ग ्रहणाध्याय आदि में विभिन्न ग्रहस्थितियों की अत्यन्त विस्तृत चर्चा की गई है जो संभावित भूकंप के द्योतक माने गए हैं। शकुन शास्त्र के विभिन्न ग्रन्थों यथा वसन्तराज शकुन में भी इस संदर्भ में चर्चा की गई है। भूकंप से पूर्व पषुपक्षियों के व्यवहार में आने वाले परिवर्तनों को भी भूकंप पूर्वानुमान की सहायक सामग्री के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। सभी ग्रहों की युति एक ही राषियों में हो। शनि मंगल तथा राहु केंद्र, 2/12 या 6/8 में हों। राहु से मंगल सातवें हो, मंगल से बुध पांचवे हो, चंद्रमा बुध से चैथे हो अथवा केंद्र में कहीं भी हो तो भूकंप योग बनता है। यदि मंगल पूर्वा-फाल्गुनी नक्षत्र में उदय करता है अथवा उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में वक्री होता है तथा रोहिणी नक्षत्र मंे अस्त होता है तो संपूर्ण पृथ्वी मंडल का भ्रमण अथवा भूकंप होता है। यदि मंगल मघा एवं रोहिणी नक्षत्र के योगतारा का भेदन करता है तो भूकंप होता है। विजय संवत्सर में भूकम्प के योग बनते हैं। धनु राषि में बृहस्पति के जाने पर भूकंप आता है। शनि जब मीन राषि में हो तो भी भूकंप होते हैं। वृष तथा वृष्चिक राषि का भूकंप से विषेष संबंध दृष्टिगत होता है। गुरू, शनि, हर्षल तथा नेपच्यून स्थिर राषि मे हो, विषेषकर वृष तथा वृष्चिक राषियों में। ग्रहणकालीन राषि से चतुर्थ राषि यदि स्थिर राषि हो और उसमें कोई क्रूर ग्रह अवस्थित हो। गुरू वृष या वृश्चिक राषि में हो तथा बुध के साथ युति कर रहा हो अथवा समसप्तम में हो। राहु मंगल से सप्तम मंे, बुध मंगल से पंचम में तथा चंद्रमा बुध से केंद्र में हो। मंदगति ग्रह यदि एक दूसरे से केंद्र, षडाष्टक अथवा त्रिकोण भावों मंे हो, अथवा युति संबंध बना रहा हो। चंद्रमा तथा बुध की युति हो एवं दूसरे की राषि या क्षेत्र में हो अथवा एक ही ग्रह के नक्षत्र में हो। सूर्य के सतह पर आने वाले ज्वार-भाटीय आवेगों का आधिक्य भी भूकंप की संभावना उत्पन्न करता है। सूर्य की सतह पर दिखने वाले धब्बों में होने वाले विषिष्ट परिवर्तन भी भूकंप का संकेत देते हैं। ज्योतिषश्षास्त्र की शकुन शाखा के द्वारा भी भूकंप का पूर्वानुमान किया जा सकता है। प्रायः देखा गया है कि भूकंप से ठीक पूर्व पषु पक्षियों के व्यवहार मंे काफी परिवर्तन आ जाता है। अपेक्षाकृत अधिक संवेदनशील पक्षी यथा-काक, कबूतर, चील आदि का व्यवहार बदल जाता है। ये समूह में शोर करते हुए उड़ने लगते हैं। कुत्ते तथा गाय आदि भी उच्च स्वर में बोलने लगते हैं। आधुनिक मुख्यधारा के वैज्ञानिकों ने भी स्वीकार किया है कि जापान के समुद्री तट पर आए सुनामी से ठीक पहले वहाँ पाए जाने वाले डाॅल्फिन तथा शार्क मछलियों के व्यवहार में काफी परिवर्तन आ गया था। कोई मन्दगति ग्रह वक्री से मार्गी हो रहा हो अथवा मार्गी से वक्री, यह कालावधि भूकंप की दृष्टि से अत्यधिक संवेदनषील मानी गई है। भूकंप प्रायः पूर्णिमा अथवा अमावस्या के समीपस्थ तिथियों को आता है। ज्योतिष षास्त्र की उपरोक्त विधियों का आश्रय लेकर वातावरण तथा मौसम में होने वाले आकस्मिक परिवर्तन का फलादेश सहज ही किया जा सकता है और मानवता के कल्याण में इस शास्त्र का प्रयोग ही श्रेष्ठतम सिद्ध होता है।

Saturday 18 February 2017

कुंडली में द्वादश भाव

जन्मकुंडली के बारह भाव मानव जीवन के विभिन्न अवयवों को दर्शाते हैं। किसी भाव के फल का विचार करते समय सर्वप्रथम उस भाव और भावेश के बल का आकलन किया जाता है। जिस भाव में उसके स्वामी या शुभ ग्रह की स्थिति हो, या उनकी दृष्टि पड़ती हो, तब वह भाव बलवान होकर शुभ फलदायक होता है। इसके विपरीत स्थिति में वह भाव निर्बल होकर शुभ फल नहीं देता है। जब भाव का स्वामी स्वोच्च, मित्र या स्वराशि में स्थित होकर शुभ भावाधिपतियों से संबंध बनाता है तब वह बलवान होता है और अपने स्वामित्व भाव का उत्तम फल देता है। भावेश का बली होना भाव की शुभता बढ़ाता है। भाव व भावेश के साथ ही उस भाव के ‘नित्य कारक’ ग्रह का भी आंकलन आवश्यक होता है। ‘भाव कारक’, ‘वस्तु कारक’, ‘योग कारक’ व ‘जैमिनी कारक’ सर्वथा भिन्न हैं। महर्षि पाराशर ने प्रत्येक भाव का एक ‘नित्य कारक’ निर्धारित किया था - सूर्यो गुरुः कुजः सोमो गुरुभौमः सितः शनिः। गुरुंचन्द्रसुतो जीवो मन्द´च भावकारकाः।। परंतु कालांतर में रचित ज्योतिष ग्रंथों में वर्णित ‘नित्य भावकारक’ इस प्रकार हैं- प्रथम भाव -सूर्य, द्वितीय भाव-बृहस्पति, तृतीय भाव-मंगल, चतुर्थ भाव - चंद्र व बुध, पंचम भाव -बृहस्पति, षष्ठ भाव -शनि व मंगल, सप्तम भाव - शुक्र, अष्टम भाव - शनि, नवम भाव - सूर्य व बृहस्पति, दशम भाव - सूर्य, बुध, बृहस्पति व शनि, एकादश भाव - बृहस्पति, द्वादश भाव - शनि। फलदीपिका ग्रंथ (15, 25) के अनुसार- तस्मिन भावे कारके भावनाथे वीर्योपेते तस्य भावस्य सौरव्यम्। अर्थात्, ”जब भाव, भावेश और कारक तीनों बलवान हों तब उस भाव का अच्छा फल व्यक्ति को प्राप्त होता है।“ ‘भाव प्रकाश’ ग्रंथ के अनुसार- भवन्ति भावभावेशकारका बलसंयुताः। तदा पूर्ण फलं द्वाभ्याम एकेनाल्प फलं वदेत्।। अर्थात् ” यदि भाव, भाव का स्वामी तथा भाव का कारक तीनों बलवान हों तब उस भाव का पूर्ण फल कहना चाहिए, और यदि तीन में से दो बलवान हों तो आधा फल कहना चाहिए, तथा केवल एक ही बलवान होने पर बहुत थोड़ा फल होता है। ‘जातक पारिजात’ ग्रंथ (अ. 2-51) ने प्रचलित भाव कारकों का विवरण देने के बाद अगले श्लोक (अ. 2-52) में कहा है कि यदि शुक्र, बुध और बृहस्पति लग्न से क्रमशः सप्तम, चतुर्थ और पंचम भाव में हानिप्रद होते हैं तथा शनि अष्टम भाव में शुभ फल करता है। ज्ञातव्य है कि उपरोक्त ग्रह इन भावों के कारक माने गये हैं। परंतु ‘भावार्थ रत्नाकर’ ग्रंथ के रचयिता श्री रामानुजाचार्य ने निम्न श्लोक में सभी कारक ग्रहों को संबंधित भाव में हानिकारक बताया है- सर्वेषु भाव स्थानेषु तत्त्द भावादिकारकः। विद्यते तस्यभावस्य फलमस्वंल्पमुदीरितय्।। अर्थात्, ”सभी कारक ग्रह अपने संबंधित भाव में स्थित होने पर उस भाव के फल को बहुत कम करते हैं।“ उपरोक्त शलोक कालांतर में ”कारको भाव नाशाय“ नामक लोकोक्ति के रूप में प्रचलित हो गया। इसी आधार पर बृहस्पति का पंचम भाव में होना पुत्र अभाव का सूचक, शुक्र की सप्तम भाव में स्थिति वैवाहिक सुख का अभाव सूचक, तथा छोटे भाई के कारक मंगल ग्रह का तृतीय भाव में सिथति छोटे भाई के अभाव का सूचक कहा जाता है। अपवाह स्वरूप केवल शनि ग्रह का अष्टम (आयु) में होना दीर्घायु देता है। ‘कारको भाव नाशाय’ के पीछे जो हेतु है उस पर विचार करने से ज्ञात होता है कि जब किसी भाव का कारक उसी भाव में स्थित होता है तब साझे विषय के दो द्योतक (भाव व कारक) इकट्ठे होंगे और उन पर किसी पापी ग्रह का प्रभाव होने पर उनके साझे तथ्य की हानि होगी। वहीं शनि ग्रह की अष्टम आयु) भाव में स्थिति अपनी धीमी चाल से आयु को बढ़ायेगा। अनुभव में भी आता है कि जब भाव में उसका कारक शत्रु राशि में या अशुभ प्रभावी होने पर ही उस भाव के फल में कमी आती है। परंतु जब कोई ग्रह उस भाव में स्थित हो जिसका वह कारक है और वह स्वराशि अथवा मित्र राशि में स्थित हो वा शुभ दृष्ट हो तब अवश्य ही भाव फल की वृद्धि होती है। जैसे तृतीय भाव में मंगल यदि स्वराशि या मित्र राशि में हो और शुभ दृष्ट हो तो जातक का भाई अवश्य होता है। इसी प्रकार चतुर्थ भाव में चंद्रमा शुभ राशि में शुभ दृष्ट होने पर माता दीर्घजीवी होती है तथा सप्तम भाव में शुभ राशि स्थित व दृष्ट शुक्र वैवाहिक सुख देता है। 

Pisces monthly horoscope for february 2017



You will need oodles of discipline and determination this February. “A dream doesn’t become reality through magic; it takes sweat, determination and hard work.” It was a wise man who uttered these pearls of wisdom. Discipline should be closely followed by diligence in your work. Make determined efforts to soar over difficult conditions and keep marching on road to progress. Those employed need to observe strict work discipline to remain in the forefront and keep growth prospects alive. With malefic posited in important houses, be prepared to put in that extra effort to achieve desired results. Single ones may make plans to elope with sweetheart amid resistance from family. Those married will need to do something special to please their spouse. The second week will bring a lull with no major development to look forward to. Around the third week, businessmen will be motivated to approach and convince high worth customers. With mighty Sun being afflicted at this point, you need to be careful about health issues. At the end of the month, you need to take some time off to speculate and meditate. Meditation has a surprising number of benefits. It improves your health, reduces stress, helps concentration and sharpen your memory and increases creativity. With obstacles becoming routines, you need to be absolutely composed and mentally robust to take on the world. Amidst this work stress, you should not forget the importance of family and family bonds. It is highly recommended that you have regular meetings with family to remain aware about their requirements and aspirations.
Career and Business-Business people will have to be on guard and perform consistently. Though you will not have a satisfying turn over in your business, you must continue to keep hope and persevere. You will have to convince your customers that you will do anything to keep the business relation compatible. Those employed are expected to work with integrity and sincerity. In this way you too will be able to keep your position safe and secured for a long time. You efforts will be recognized by your colleagues. Even if you are not noticed by your boss, continue to work diligently.
Money and finances-Your past savings and investments will bring in rich dividends. You may also receive the money that you had lent someone years back. This adds to your monetary gain. Now you will be in a good financial health. The extra money that you have gained will tempt you to splurge it on pleasures and comforts. You need to prioritize your needs before spending. Remember to put back some money in safe avenues. However don’t go in for major financial involvement or investment.
Health issues-You will be smitten by a fitness guru and will go to any extreme to maintain your health and physique. Your concern about your health will keep you fit in the days to come. There is no major threat seen to your health. However some minor health issues will trouble you. Immediately seek the consultation of a physician and start the treatment for a fast cure. You will have to forgo your duties for some days in order to get enough rest. Diabetic and those prone to acidity will have to be careful. At the end of the month your health will greatly improve.

Aquarius monthly horoscope for february 2017

This February, be cautious about work and money. In spite of situations not being encouraging financially, you will be determined to move ahead. Remember every dream will be challenged. Rarely, a dream or goal comes true easily and effortlessly, without delays, problems or hurdles. So proceed diligently. Short term travel for work and business is likely on 4th, and it shall be favourable for profits. Planet of communication Mercury shall now be placed in the 12th House from your Sign – this is a supportive alignment for ones looking for new love or physically intimate relations. Those employed may not be satisfied with a present assignment, and may look for better opportunities, after 7th. You may be eager to find a more challenging job that would broaden your expertise. You won’t mind job hopping at this juncture. Thankfully, planets are supportive on this count. Businessmen will be keen to experiment with new ideas, and explore new territories. Getting new customers for your business is hard work, but it is necessary. Around 13th or 14th, you may be gripped by a sense of uncertainty. The most difficult part of uncertainty is the inability to plan and feel in control. If you are dealing with uncertainty, you are probably stressed. Maybe, you need to work on some stress reducing techniques. It may help you be better prepared to tackle whatever comes your way. Fortunately, with time you will be able to shake off this skepticism, and get immersed in work. For those employed, some exciting opportunity may be in the offing. On the personal front, stars may not be very supportive, around mid-month till the month end. There may be a family issues calling for your attention. If you are the provider, you may have to increase provisions and resources for your family needs. Married ones may have some conflicts with their better halves. Thankfully, things look up in the fourth week. New professionals may get suitably employed. Barring a few hiccups, progressive forces will work effectively at this point.
Career and Business-Are you getting choked up in your workplace? Don’t delay, as it is the right time to push yourself out and move to greener pastures. You will get a platform to show your inherent talents and abilities. You will rise high and perform very well in your new workplace. Planets here also favour business persons to move ahead on the road to progress, achieving higher growth. There are immense potentialities if you explore new avenues. You will also strike a powerful deal with important clients.
Money and finances-A monetary profit is likely to come your way. Don’t let it slip out from your hands. At the same time be prudent in the dealings. You need to handle your financial matters delicately in order to enjoy the monetary gains. Though you feel not stand to earn handsome gains, you will be fairly comfortable. You will have to seek help from a mentor to help you earn profits from your investments. Once your planets obtain a proper position in your Natal chart you will be comfortable.
Health issues-You might suddenly experience some illness contracted from some viral infections. You must consult your doctor for the same. During this period your resistance power is very fragile. Hence you will be prone to illness. Those have acidity problem will be constantly nagged of this issue. You might experience heavy indigestion and bloating. This could be due to faulty eating habits. Change your diet and avoid late night dinners. Too much of aerated drinks can also be the cause. It will be easy for you to deal with this issue.

Capricon monthly horoscope for February 2017

On the 1st, you will be completely charged up. Moon moves to join Mars in the fiery Sign Aries, the 4th House from your Sign. Mars’ influence may make you a little impatient, and you may start itching for an interesting change. At home and in the matters of heart, you will be open and outgoing. Physical intimacy and happiness quotient will be high in personal relationships till 5th. Overall, in February you will be extraordinarily motivated to go beyond. You will be internally driven to think of diverse possibilities for achieving your dreams. You will explore and challenge yourselves to better your prospects. Instead of focusing on what’s not working and bad experiences, you will focus on the positives and what’s doable. Well, that’s great! Businessmen should gear up for balancing a overwhelming workload, in the first half of February. You will be juggling multiple deals and pushing your venture forward. However, with all these tasks at hand, you need to be careful, while handling matters related to finances and family. According to planetary configurations, this is a good time to buy a house. But, before you sign on the dotted line to secure your dream home, know exactly what you are buying. If you try to wait for too long, though, you’re probably going to miss it. Crafty Mercury along with mighty Sun in the 2nd House will provide necessary intelligent inputs to help you take advantage of opportunities coming your way. An increase in your personal and habitual expenses is indicated by planets. Professionals will also have to put their nose to the grind and accept busy work schedules. February ushers in happy tidings for relationships. Anyway mid-month is Valentine’s Day. Those in a love relationship will be eager to take the matter forward and tie the knot. Those married will be guided by the stars to resolve differences tactfully. According to the planets, they could be visited by a stork here and be expecting a child. With regards to health, slow digestion could become a bother.
Career and Business-Opportunities are galore for those in business. You must see where and when you can strike it big. Planning for the same will be very easy as Mercury is all set to show you the way. You will be busy in this procedure. Definitely, a great opportunity will present itself and you will have encouraging growth along with monetary gains. Travel to overseas nations for closing a deal is in the offing. Even those employed will be busy with meeting deadlines. This is because Venus is in your sign and it keeps you busy. You will have to make sincere efforts to work with improved efficiency.
Money and finance-You will be having a lot of monetary gains in the coming days. This is an area which will need planning from your side. There will be money stacked in avenues and it will be due to you. You must see that it is dispatched on time to avoid financial losses. As the money flow increases, you are now to make a priority list of the things you need to shop for. There are chances that you may have to give your house a face lift. So store some money for this expenditure. Don’t go in for any major financial investment for the time being.
Health issues-Though there won’t be any worries for you this month, you have to watch out for minor ailments that can trouble you. The increased pollution can cause respiratory diseases. Take precautions else you will have trouble. If prone to acidic problem you will not get respite for the time being. Take care of your eating habits. With Sun and the Moon being afflicted by malefic, you will even be susceptible to viral infection. Other health issues can also trouble you. Take enough preventive measures to combat the illness.

Sagittarius monthly horoscope for february 2017

Successful people think out of the box. That could your maxim for the month of February. Driven by the desire to succeed and accomplish something, you will be keen to think differently, innovatively. Don’t just see problems, see opportunities. Go beyond obstacles, seeking solutions to fulfill your vision. To make a mark, you need to think creatively. Hurdles may crop up in your day to day work and affect your performance. But do not get deterred, be determined to move ahead. Let not little hiccups mar your dreams or become stumbling blocks. You need to nurture a strong will. Those employed may get irritated by constant hammering by immediate boss. His dominating traits may show up in the form of impatience, tactlessness, intolerance and unrealistic expectations. Try looking at the positives and bright side, as you may need to wait for a more favourable planetary configurations. In the coming days, you will be entrusted with an outstation assignment. If you handle this successfully, you will not only receive kudos from your boss but are likely to better placed in your organisation. Short term travel by business person will also yield encouraging results. Stars seem more supportive of your new ideas, post 14th. Some of your bright plans could help you. The third week of the month brings a lull, with no major development in sight. Single ones may succeed in forging a new relationship. This may develop over time into a close alliance. However, love and happiness eludes those married. You could walk around the house ignoring your partner and wallow in your loveless life separately. February ends on a quiet, uneventful note.
Career and business- Business people need to explore new areas where they can make more profits through sales. Your planets will support you in your endeavors. Travel will bring you in touch with influential customers. However, no major deal will take place this month. Those doing a job will face hardships due to extended hours and extra burden. This can hamper your performance. Your superior will put you under immense pressure to work still hard. You are advised to remain motivated come what may be. You will be posted outstation for some important task. This will give you an opportunity to prove your worth.
Money and finances- It will take some time before you are in any luck for financial gains. As the planets will align by the second week, you will have encouraging monetary gains. Mercury will assist you in the prudent planning of your finances. Without going in for a major investment, you will have to tactfully and intelligently park your money in safe avenues. This process will be a little challenging and time consuming. Don’t waste your money too much in spending on entertainment and luxuries.
Health issues-Those suffering from joint pains will be troubled by the excreting pain. You should not take an overdose of painkillers to reduce the pain. External medication should be applied. Consult a physiotherapist for the same. Diabetics need to strictly follow diet instructions of the physician. Do not stop any medicines. Also be particular about your diet. Others will have a good general health. Only be careful towards any ailment that can show its symptoms. Immediately seek medical attention even if it is a minor cold.

Libra monthly horoscope for February 2017

February 2017 looks set to be a dynamic and peppy month for you. You will feel optimistic and action oriented, and shall try your best to accelerate the pace of work and progress. Your energy levels will be up. The beginning of the month will see you brimming with ideas and plans. On 4th, enhancing intimacy in a relationship may be on your mind. But soon, one of your key priorities shall be to increase effective communication with influential people. Business networking is a really valuable way to expand your knowledge, learn from the success of others, attain new clients and tell others about your business. Hobnobbing with influential people can provide a useful source of connections and open many doors for improvement of business. The planetary configurations are favourable for professionals on 8th through 12th. You will enjoy cordial and close interactive relations with your bosses and higher ups. Some good encouraging opportunity seems to be in the offing. You may get an occasion to showcase your talent. Businessmen are likely to invest money for development purposes. Ensure you have a long-term source of income that covers all your necessities, before investing. Get your existing budget on track and then invest prudently. Mighty Sun and Mercury together shall provide necessary intelligence and logic. Getting on the path that leads to wealth begins with a thoughtfully constructed plan and diligent execution of that plan. Health stars may turn a bit troublesome, in the latter half of the month, which is when you must stay guarded. Managing weight issues and blood sugar levels may be a challenge. Do focus on enhancing your fitness.
Career and business-Those employed will have to rise above their current position. Look out for more challenging opportunities that can bring out the best in you. At the same time, you will get some exciting opportunity to showcase your talent, in present assignment. If you are not comfortable in the current place and position, move out. Take a chance and your planets will support you in this. Those in business should be well prepared to negotiate big profitable deals. You will keen to experiment with new ideas for development. Your work will be methodical and efficient.
Finance issues-A neutral month as far as money and finance are concerned. There will be no major monetary gains. At the same time, you will not have any crisis. Your earlier savings and returns will see you through very comfortably. Around mid-month when you get some monetary gains think wisely and invest some of it for the rainy day. You will be tempted to invest along with a partner. Act wisely and with due deliberation. Plan with the long term in view.
Health issues-You will not be happy with the way your stars foretell your health. You will have some minor health issues that will nag you and drain out the energy in you. This is because of the Sun will be in opposition to Rahu. Planetary positions here are indicative for some trouble for diabetics. In view of this do not deviate from diet prescribed by your physician. Have a regular check up to keep a tab on fluctuations. Even those having digestion problem will have issues and not feel too comfortable. Include fiber-rich veggies and grain in your diet.

Virgo monthly horoscope for february 2017

February opens on a good note for you. Ones looking for employment shall have the planets in their favour. Energies and attention will be on personal and love front on 3rd and 4th. Ones still unattached too may get a wonderful opportunity enjoy with a new found crush/ love. However, your work sphere may still remain frenetic, making you work for long hours. Get ready for a hectic time after 6th. Some developments will be delightful, others may be distressing. You will have to learn to cope and balance both. Those employed, in particular, may find themselves weighed down by huge work load. Your ability to deal with it can mean the difference between success and failure. Now is the time to pull out all the stops and rake up all your resources. Here, freshers may not be happy with position offered in a new assignment. You need to work on a game-plan for your future actions. Step back, assess where you want to be in your job or career and dig deeper to find a resolution. Businessmen may get a call sometime mid-month from a high worth customer. Use your tact and convincing skills to fix this deal. Around second week, differences with one in a close relationship may make you anxious. Remember, successful people understand the importance of human relationships, and work hard to build a healthy bond. During this phase, businessmen will have a tough time motivating their staff. You will need to provide your employees with the drive they need to perform to the best of their ability. But, some of your efforts may go waste as the presence of Saturn brings in disruptive forces. In the third week there will be a bit of lull, with no major development. Finally, at the end of the month, your mind may be swirling with future growth prospects. But, you are tired and de-motivated at this juncture to give your best. Work may take a back-seat. Love birds will have an enjoyable time together.
Career and business-Those in business will be on cloud nine as they will get an offer to strike a deal with a high-profile customer. Your work will increase as you will have to meet the demands of your customers on time. You will have difficulty in achieving the results you want. But you have to gear up your staff for more hard work. Those employed will have an equally busy schedule as you race with time to meet the deadlines. There will be many hurdles as you work to prove your efficiency. This is due to the disruptive influence of Saturn.
Money and finance- You will have a windfall as lady fortune smiles at you. You will stand to inherit a vast fortune and this will keep you on a high pedestal as far as your financial condition is concerned. You know nothing is permanent, so invest the fortune safely. Retrogression of benevolent Jupiter will delay monetary gains in the coming week. But you will remain in a healthy financial condition. You will stand to earn gains from your earlier investments. Your regular earnings will not be affected. You will have to wait for the right time to invest.
Health-It will be a healthy week for many in general. Those prone to pain in joints will have some issues. They will have difficulty in managing the pain. Take medication for relief. In the second week, health may seem to be fragile due to Mercury and Sun being afflicted. Though not a major issue, you must remain watchful. The affliction of the moon and the Sun is expected to stay for another week so health issues will persist. Those middle aged troubled for long can heave a sigh of relief as they will find a cure for their illness.

Friday 17 February 2017

Leo monthly horoscope for February 2017

February 2017 looks like a promising month for you. Growth possibilities seem assured and advancement seems to be in the offing. Mars in own sign fiery Aries along with Venus will work well in pushing ahead your prospects. What you need to do is to take matters in your own hands and give yourself the best possible chance to apply your skills to new projects and opportunities. Streamline your routine and see how it can work wonders for your productivity. So, put your nose to the grindstone and let the stars do their work. In the second week, businessmen and professionals, in particular, will encounter favourable and well-dispose times. There may a big ticket deal waiting in the wings, but you may have to be a bit more patient. Losing control of your patience will not only hurt you, but also those around you. It can also raise your stress level and damage relationships. There is an occasion for everything, and a time for every activity under heaven. Business people in foreign trade and professionals handling offshore projects may gain here. Those employed may get the right exposure. If your bosses ask for volunteers for a project that’s outside your purview, don’t be afraid to speak up and take on the challenge. It could be a huge opportunity. Here, freshers may also get suitable opportunity for employment to display their skills. Planets around the third week could induce new ideas to move ahead. Remember, you become successful over time from all the little things you do every day. So, take small steps towards your goals from today. The end of the month will see progressive forces working effectively in your favour. Planetary positions signify better times ahead.
Business horoscope-Both business men and those employed will prosper in their work and strike it big. There will be a lot of opportunities wherein you can prove your efficiency. You will have a lot of exposure to enhance your skills. Travels will keep you busy in your work. The presence of strong Mars along with lovely Venus, in the ninth house, is indicative of better times ahead for you. Those employed will be motivated to do their best. Soon you will be indispensable to your company. You will stand a chance of promotion. A lot of deals will keep those in business busy.
Finance-Resorting to malpractices to earn quick monetary gain is not a solution to improve your financial condition. You will land in severe financial crunch doing so. You have to concentrate on earning your regular income. As your inflow of income will be meager, you must refrain from undertaking any major financial investment. You will have to keep money on hand to deal with any emergency. Around mid-month, your monetary gains will show a marked improvement as you stand to earn a good deal of hard cash. Any decision related to money matters should be dealt with tact.
Health-You will not be able to enjoy very good health condition this month due to planetary positions. As Sun gets afflicted you will have to remain very careful about your health. If need be, consult a specialist to find a permanent cure to the problem. In case of joint pain, you will have to take calcium supplements along with a good diet. You may be even prone to some viral infection. Take lot of precautions and preventive measures to reduce the effect of the infection. Adequate rest will help to get on your feet faster. You may experience weakness.

Cancer monthly horoscope for February 2017

Make hay, while the sun shines should be your mantra, as February begins. It’s a good time, and till 5th you can hope to have stars in your favour, largely. Striking major deals and contracts will be possible now. You may also be entrusted with some major responsibility. Take it on with pride and zest. Love stars, however, seem to be resting for now, as career and work matters may remain at the centre-stage. Stars are in your favour and usher in upbeat moments that should keep you delighted and motivated for a good part of the month. If you could see down the days of February, you would be able to see some good opportunities coming your way. The picture looks encouraging. Mars and Venus together in the 10th House from your Sign will back your efforts at work. Along with businessmen, those employed can also expect cheerful days. You will become more adept at efficiency and you will be able to focus on things that will bring happiness, satisfaction and profit. By creating standard routines in your schedule and a disciplined approach, you will be able to achieve objectives in record time. If you have set your eyes for big goals, then you need to plan exhaustively, and take into account prevailing ground realities. Remain open minded to constructive criticism from well wishers. Push yourself beyond your comfort zone. If you are keen to change your job, do so now as planetary positions support a shift. On the personal front, issues could crop up that could distress or weigh you down. Health too needs care and attention. On 24th, you may pass up a love opportunity, as work may take over your psyche entirely. Well, take time out to relax, at least. Cosmic forces may not be on your side, as the month ends. So, stop pushing, where it won’t relent.
Business horoscope-You will perform well in your workplace. Your peers too will appreciate your performance. Your contribution to the company will be highly praised. When the workload increases, continue to work in the same spirit. Around mid-month, the heavy work will weigh you down. You will have to stay back and even sacrifice your weekends to meet the deadlines. You are expected to put your best foot forward. Business men will have to increase their output to meet the demands from the market. This will call for work round the clock.
Finance issues-Beginning of the month may not welcome huge monetary gains. But it will suffice to meet your immediate needs. Your planetary positions forecast a strong financial gain soon. There will be an opportunity to gain a lot of money, however, it all depends on how you take the deal forward. It is wise to seek intervention from an accountant. As your planet align matters will improve all the more and suddenly there will be an influx of money. Now is the time to think of re-investment after keeping aside some for enjoying the comforts.
Health horoscope-The middle-aged people will be affected by some old illness. You need to restart your medication and things will sort out. If you are already suffering from some health issues, it will continue for some time. You need to take medication for the same. Common cold and cough will trouble those prone to catching a cold. Adequate rest is needed. There is no major threat seen for you. You will have a comfortable month. Even those with digestive disorder need to be careful. Overall a good healthy month for others.