Tuesday 21 February 2017

मित्र सप्तमी का पर्व चर्म तथा नेत्र रोगों से मुक्ति

मित्र सप्तमी का त्योहार मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन मनाया जाता है। सूर्य देव की पूजा का पर्व सूर्य सप्तमी एक प्रमुख हिन्दू पर्व है। सूर्योपासना का यह पर्व संपूर्ण भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता रहा है। सूर्य भगवान के अनेक नाम हैं जिनमें से उन्हें मित्र नाम से भी संबोधित किया जाता है, अतः इस दिन सप्तमी को मित्र सप्तमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भास्कर भगवान की पूजा-उपासना की जाती है। भगवान सूर्य की आराधना करते हुए लोग गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर के किनारे सूर्य देव को जल देते हैं।
पौराणिक महत्व -
सूर्य देव को महर्षि कश्यप और अदिति का पुत्र कहा गया है। इनके जन्म के विषय में कहा जाता है कि एक समय दैत्यों का प्रभुत्व बढने के कारण स्वर्ग पर दैत्यों का आधिपत्य स्थापित हो जाता है। देवों की दुर्दशा देखकर देव-माता अदिति भगवान सूर्य की उपासना करती हैं। अदिति की तपस्या से प्रसन्न हो भगवान सूर्य उन्हें वरदान देते हैं कि वह उनके पुत्र रूप में जन्म लेंगे तथा उनके देवों की रक्षा करेंगे। इस प्रकार भगवान के कथन अनुसार देवी अदिति के गर्भ से भगवान सूर्य का जन्म होता है। वह देवताओं के नायक बनते हैं और असुरों को परास्त कर देवों का प्रभुत्व कायम करते हैं। नारद मुनि के कथन अनुसार जो व्यक्ति मित्र सप्तमी का व्रत करता है तथा अपने पापों की क्षमा मांगता है सूर्य भगवान उससे प्रसन्न हो उसे पुनः नेत्र ज्योति प्रदान करते है। इस प्रकार यह मित्र सप्तमी पर्व सभी सुखों को प्रदान करने वाला व्रत है। सप्तमी व्रत भगवान सूर्य की उपासना का पर्व है। सप्तमी के दिन इस पर्व का आयोजन मार्गशीर्ष माह के आरंभ के साथ ही शुरू हो जाता है। इस पर्व के उपलक्ष्य में भगवान सूर्य की पूजा का विशेष महत्व होता है। मित्र सप्तमी व्रत में भगवान सूर्य की पूजा उपासना की जाती है, इस दिन व्रती अपने सभी कार्यों को पूर्ण कर भगवान आदित्य का पूजन करता है व उन्हें जल से अघ्र्य दिया जाता है। सूर्य भगवान का षोडशोपचार पूजन करते हैं। पूजा में फल, विभिन्न प्रकार के पकवान एवं मिष्ठान को शामिल किया जाता है। सप्तमी को फलाहार करके अष्टमी को मिष्ठान ग्रहण करते हुए व्रत पारण करें। इस व्रत को करने से आरोग्य व आयु की प्राप्ति होती है। इस दिन सूर्य की किरणों को अवश्य ग्रहण करना चाहिए। पूजन और अघ्र्य देने के समय सूर्य की किरणें अवश्य देखनी चाहिए। मित्र सप्तमी महत्व मित्र सप्तमी पर्व के अवसर पर परिवार के सभी सदस्य स्वच्छता का विशेष ध्यान रखते हैं। मित्र सप्तमी पर्व के दिन पूजा का सामान तैयार किया जाता है जिसमें सभी प्रकार के फल, दूधकेसर, कुमकुम बादाम इत्यादि को रखा जाता है। इस व्रत का बहुत महत्व रहा है। इसे करने से घर में धन धान्य की वृद्धि होती है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है। इस व्रत को करने से चर्म तथा नेत्र रोगों से मुक्ति मिलती है।

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