Monday 27 February 2017

कर्म और किस्मत

ज्योतिषीय दृष्टिकोण से अगर कुंडली में योग नहीं है तो फल मिलने की संभावना नहीं है, यानि आपकी किस्मत में वह फल नहीं है और मिल भी नहीं सकते। और अगर कुंडली में संभावना या योग है तो आपकी किस्मत में वह फल लिखे हैं और अनुकूल दशा-गोचर पर आपको वह फल प्राप्त होने चाहिये। परन्तु कई बार ऐसा भी देखा गया है कि अनुकूल फल या अपेक्षानुसार फलों की प्राप्ति नहीं हो पाती है। प्रश्न है, कि क्या किस्मत में लिखा यूँ ही बिना कुछ किये मिल सकता है, जैसे निम्न चित्र में व्यक्ति सपनों से ही सभी प्रकार के फलों के कामना कर रहा है? ज्योतिष शास्त्र का आधारभूत सिद्धांत है कि मनुष्य कर्म करने के लिये पैदा हुआ है और अपने कर्मों के अनुरूप वह जन्म-जन्मान्तरों में फल भोगता है। श्रीमद्भगवतगीता के अनुसार, सारा मनुष्य समुदाय प्रकृतिजन्य गुणों द्वारा उत्पन्न हुआ है और मनुष्य कर्म करने के लिये बाध्य है और कर्म करना और कर्म करते रहना मनुष्य का प्राकृतिक गुण है। मनुष्य का अधिकार केवल कर्म करने में ही है, फल मिलेंगे या नहीं यह तो उसके अधिकार क्षेत्र में ही नहीं आता। नियत कर्मों के बारे में के अनुसार कोई कर्म न करने से कर्म करना श्रेष्ठ है और बिना कर्म किये तो शरीर निर्वाह भी नहीं हो सकता है। इसीलिये, किस्मत में लिखा पाने की बात तो बहुत दूर की है। चलो यह तो साफ हो रहा है, कि हमें कर्म तो करना ही है क्योंकि कर्म करने के लिये हम बाध्य हैं। तो क्या हम उदासीन भाव से कर्म करें और इसे एक बंधन मानें, क्या इस भांति किये कर्मों से भी हमें किस्मत में लिखा प्राप्त हो सकता है? कर्म किस प्रकार करने हैं उसके बारे में भी बहुत कुछ लिखा गया है। ठळ टप्प्.14 के अनुसार सात्विक, राजसिक और तामसिक गुणों से बनी यह माया है जिसके वशीभूत सामान्य मनुष्य कर्म करता है और जो मनुष्य ईश्वर को समर्पित होकर कर्म करते हैं वह इस माया को पार कर लेते हैं, क्योंकि उन्हें ईश्वर की स्वीकृति एवं आश्रय प्राप्त हो जाता है। प्राचीन समय में किसी कार्य को करने से पूर्व यज्ञ आदि करने का प्रचलन था, उसका भी तात्पर्य कार्य सिद्धि के लिये ईश्वर की स्वीकृति या आशीर्वाद लेना ही था। किस्मत और कर्म के कनेक्शन में कुछ अधिक विस्तार से समझाया है। इसमें सभी कर्मों की सिद्धि या फल की प्राप्ति के लिये पाँच कारण बताये गये हैं। कर्ता होना चाहिये, अर्थात पात्रता होनी चाहिये जो त्रिगुणों के आधार पर बनती है और उसी से आप अपने लक्ष्य के बारे में सोच पाते हैं और उसे निर्धारित कर पाते हैं। हर व्यक्ति का लक्ष्य अलग होता है क्योंकि लक्ष्य निर्धारित करने की शक्ति का मूल आधार है पात्रता। इन्द्रियाँ से तात्पर्य है विविध योजनाओं का होना और उनको कार्यान्वित करना। सभी ज्ञानेन्द्रियों, कर्मेन्द्रियों, मन, अहंकार और बुद्धि का जिस प्रकार संतुलित प्रयोग सभी सुख एवं मोक्ष की प्राप्ति करा सकता है, उसी प्रकार योजनाओं को भी कार्यान्वित करने से मनुष्य अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होता है। इसे एक साधना की भांति भी समझ सकते हैं। विविध चेष्टाओं से तात्पर्य है कि निरंतर मेहनत करना और विपरीत परिस्थितियों में भी मेहनत करते रहना। पांचवें कारण पर मनुष्य का वश नहीं है और पांचवें कारण का अस्तित्व उससे पूर्व के चार कारणों के बाद ही आता है। इसका अर्थ यह है, कि अगर प्रथम चार कारण नहीं हैं तो पंचम कारण का तो सवाल ही नहीं उठ सकता चाहे आपकी किस्मत में कुछ भी लिखा हो, किस्मत में लिखा प्राप्त करने के लिये प्रथम चार कारण तो होने ही चाहिये जो कि मनुष्य के बस में ही हैं और मनुष्य को अपने कर्मों को एक सीमा के अन्दर चयन करने की स्वतंत्रता भी है। हालांकि, इसमें कोई संदेह नहीं है कि किस्मत में लिखे अनुसार ही मनुष्य के समक्ष इस प्रकार का वातावरण निर्मित हो ही जाता है, जिससे वह अपने प्रारब्ध में लिखे फलों को पाने और कर्म करने के लिये प्रवृत्त हो सके। निष्कर्ष यह है कि कर्म और किस्मत का एक गहरा संबंध है और किस्मत में लिखे पूर्ण फल तभी मिल सकते हंै जब ठळ ग्टप्प्प्.14 के पाँचों कारण उपलब्ध हों जिसमें से प्रथम चार मनुष्य के अधीन और पंचम ईश्वर के अधीन है।

No comments: