कुंडली में यदि शनि ग्रह बलशाली हो तो जातक को आवासीय सुख प्रदान करता है। दुर्बल शनि शारीरिक दुर्बलता-शिथिलता, निर्धनता, प्रमाद एवं व्याधि प्रदान करता है शनि ग्रह किसी भी एक राशि में लगभग 2 वर्ष 6 माह विचरण करते हुये लगभग 30 वर्ष में 12 राशियों का भोग करते हैं। शनि ग्रह के इस राशि भ्रमण को ही गोचर कहते हैं। शनि ग्रह का किसी एक राशि में भ्रमण करने से शुभ या अशुभ फल भी 2 वर्ष 6 माह तक ही रहता है। शनि ग्रह के चंद्रमा की राशि (जिस राशि में चंद्रमा स्थित हो) से भिन्न-भिन्न भाव में भ्रमण करने से किस-किस प्रकार का कर्मफल प्राप्त होता है
1. शनि जब चंद्र राशि में होता है:- उस समय जातक की बौद्धिक क्षमता क्षीण हो जाती है। दैहिक एवं आंतरिक व्यथायें प्रखर होने लगती है। अत्यंत आलस्य रहता है। विवाहित पुरूष को धर्मपत्नी तथा विवाहित स्त्री को पति एवं आत्मीय जनों से संघर्ष रहता है। मित्रों से दुख प्राप्त होता है, गृह-सुख विनष्ट होता है। अनपढ़ एवं घातक वस्तुओं से क्षति संभव है, मान-प्रतिष्ठा धूल-धूसरित होती है, प्रवास बहुत होते हैं। असफलतायें भयभीत करती हैं, दरिद्रता का आक्रमण होता है, सत्ता का प्रकोप होता है, व्याधियां पीड़ित करती हैं।
2. चंद्र राशि से शनि जब द्वितीय स्थान में होता है: स्वस्थान का परित्याग होता है, दारूण दुख रहता है, बिना प्रयोजन विवाद व संघर्ष होते हैं। निकटतम संबंधियों से अवरोध उत्पन्न होता है। विवाहित पुरूष की धर्मपत्नी तथा विवाहित स्त्री के पति को मारक पीड़ा सहन करनी पड़ती है। दीर्घ काल का दूर प्रवास संभव होता हैं, धनागम, सुखागम बाधित होते हैं आरंभ किये गये कार्य अधूरे रहते हैं।
3. चंद्र राशि से शनि जब तृतीय स्थान में होता है: भूमि का पर्याप्त लाभ होता है, व्यक्ति स्वस्थ, आनंद व संतुष्ट रहता है। एक अनिर्वचनीय जागृति रहती है, धनागम होता है, धन-धान्य से समृद्धि होती है। आजीविका के साधन प्राप्त होते हैं। समस्त कार्य सहजता से संपन्न होते हैं। व्यक्ति शत्रु विजयी सिद्ध होता है, अनुचर सेवा करते हैं, आचरण में कुत्सित प्रवृत्तियों की अधिकता होती है। पदाधिकार प्राप्त होते हैं।
4. चंद्र राशि से शनि जब चतुर्थ स्थान में होता है:- बहुमुखी अपमान होता है। समाज एवं सत्ता के कोप से साक्षात्कार होता है, आर्थिक कमी शिखर पर होती है। व्यक्ति की प्रवृत्तियां स्वतः धूर्ततायुक्त एवं पतित हो जाती है, विरोधियों एवं व्याधियों का आक्रमण पीड़ादायक होता है। नौकरी में स्थान परिवर्तन अथवा परित्याग संभव होता है, यात्राएं कष्टप्रद होती हैं। आत्मीय जनों से पृथकता होती है, पत्नी एवं बंधु वर्ग विपत्ति में रहते हैं।
5. चंद्र राशि से शनि जब पंचम स्थान में होता है: मनुष्य की रूचि कुत्सित नारी/ नारियों में होती है। उनकी कुसंगति विवेक का हरण करती है, पति का धर्मपत्नी और पत्नी का पति से प्रबल तनाव रहता है, आर्थिक स्थिति चिंताजनक होती है, व्यक्ति सुविचारित कार्यपद्धति का अनुसरण न कर पाने के कारण प्रत्येक कार्य में असफल होता है। व्यवसाय में अवरोध उत्पन्न होते हैं, पत्नी वायु जनित विकारों से त्रस्त रहती है। संतति की क्षति होती है, जातक जन समुदाय को वंचित करके उसके धन का हरण करता है। सुखों में न्यूनता उपस्थित होती है शांति दुर्लभ हो जाती है, परिवारजनों से न्यायिक विवाद होते हैं।
6. चंद्र राशि से शनि जब षष्ठ स्थान में होता है- शत्रु परास्त होते हैं, आरोग्य की प्राप्ति होती है, अनेकानेक उत्तम भोग के साधन उपलब्ध होते हैं, संपत्ति, धान्य एवं आनंद का विस्तार होता है, भूमि प्राप्त होती है, आवासीय सुख प्राप्त होता है। स्त्री वर्ग से लाभ होता है।
7. चंद्र राशि से शनि जब सप्तम स्थान में होता है- कष्टदायक यात्राएं होती हैं, दीर्घकाल तक दूर प्रवास व संपत्ति का विनाश होता है, व्यक्ति आंतरिक रूप से संत्रस्त रहता है, गुप्त रोगों का आक्रमण होता है, आजीविका प्रभावित होती है, अपमानजनक घटनायें होती हैं, अप्रिय घटनायें अधिक होती हैं, पत्नी रोगी रहती है, किसी कार्य में स्थायित्व नहीं रह जाता।
8. चंद्र राशि से शनि जब अष्टम स्थान में होता है- सत्ता से दूरी रहती है, पत्नी/पति के सुख में कमी संभव है, निन्दित कृत्यों व व्यक्तियों के कारण संपत्ति व सम्मान नष्ट होता है, स्थायी संपत्ति बाधित होती है, कार्यों में अवरोध उपस्थित होते हैं, पुत्र सुख की क्षति होती है, दिनचर्या अव्यवस्थित रहती है। व्याधियां पीड़ित करती हैं। व्यक्ति पर असंतोष का आक्रमण होता है।
9. चंद्र राशि में शनि जब नवम् स्थान में होता है - अनुचर (सेवक) अवज्ञा करते हैं, धनागम में कमी रहती है। बिना किसी प्रयोजन के यात्राएं होती हैं, विचारधारा के प्रति विद्रोह उमड़ता है, क्लेश व शत्रु प्रबल होते हैं, रूग्णता दुखी करती है, मिथ्याप्रवाह एवं पराधीनता का भय रहता है, बंधु वर्ग विरूद्ध हो जाता है, उपलब्धियां नगण्य हो जाती है, पापवृत्ति प्रबल रहती है, पुत्र व पति या पत्नी भी यथोचित सुख नहीं देते।
10. चंद्र राशि से शनि जब दशम स्थान में होता है: संपत्ति नष्ट होकर अर्थ का अभाव रहता है। आजीविका अथवा परिश्रम में अनेक उठा-पटक होते हैं। जन समुदाय में वैचारिक मतभेद होता है। पति-पत्नी के बीच गंभीर मतभेद उत्पन्न होते हैं, हृदय व्याधि से पीड़ा हो सकती है, मनुष्य नीच कर्मों में प्रवृत्त होता है, चित्तवृत्ति अव्यवस्थित रहती है, असफलताओं की अधिकता रहती है।
11. चंद्र राशि से शनि जब दशम स्थान में होता है: संपत्ति नष्ट होकर अर्थ का अभाव रहता है। आजीविका अथवा परिश्रम में अनेक उठा-पटक होते हैं। जन समुदाय में वैचारिक मतभेद होता है। पति-पत्नी में गंभीर मतभेद उत्पन्न होते हैं, हृदय व्याधि से पीड़ा हो सकती है, मनुष्य नीच कर्मों में प्रवृत्त होता है, चित्तवृत्ति अव्यवस्थित रहती है, असफलताओं की अधिकता रहती है।
12. चंद्र राशि से शनि जब एकादश स्थान में होता है: बहुआयामी आनंद की प्राप्ति होती है। लंबे समय के रोग से मुक्ति प्राप्त होती है, अनुचर आज्ञाकारी व परिश्रमी रहते हैं, पद व अधिकार में वृद्धि होती है, नारी वर्ग से प्रचुर संपत्ति प्राप्त होती है, पत्थर, सीमेंट, चर्म, वस्त्र एवं मशीनों से धनागम होता है, स्त्री तथा संतान से सुख प्राप्त होता है।
13. चंद्र राशि से शनि जब द्वादश स्थान में होता है: विघ्नों तथा कष्टों का अंबार लगा रहता है, धन का विनाश होता है। संतति सुख हेतु यह भ्रमण मारक हो सकता है अथवा संतान को मृत्यु तुल्य कष्ट होते हैं। श्रेष्ठजनों से विवाद होता है, शरीर गंभीर समस्याओं से ग्रस्त रहता है, सौभाग्य साथ नहीं देता, व्यय अधिक होता है, जिस कारण मन उद्विग्न रहने से सुख नष्ट हो जाते हैं।
1. शनि जब चंद्र राशि में होता है:- उस समय जातक की बौद्धिक क्षमता क्षीण हो जाती है। दैहिक एवं आंतरिक व्यथायें प्रखर होने लगती है। अत्यंत आलस्य रहता है। विवाहित पुरूष को धर्मपत्नी तथा विवाहित स्त्री को पति एवं आत्मीय जनों से संघर्ष रहता है। मित्रों से दुख प्राप्त होता है, गृह-सुख विनष्ट होता है। अनपढ़ एवं घातक वस्तुओं से क्षति संभव है, मान-प्रतिष्ठा धूल-धूसरित होती है, प्रवास बहुत होते हैं। असफलतायें भयभीत करती हैं, दरिद्रता का आक्रमण होता है, सत्ता का प्रकोप होता है, व्याधियां पीड़ित करती हैं।
2. चंद्र राशि से शनि जब द्वितीय स्थान में होता है: स्वस्थान का परित्याग होता है, दारूण दुख रहता है, बिना प्रयोजन विवाद व संघर्ष होते हैं। निकटतम संबंधियों से अवरोध उत्पन्न होता है। विवाहित पुरूष की धर्मपत्नी तथा विवाहित स्त्री के पति को मारक पीड़ा सहन करनी पड़ती है। दीर्घ काल का दूर प्रवास संभव होता हैं, धनागम, सुखागम बाधित होते हैं आरंभ किये गये कार्य अधूरे रहते हैं।
3. चंद्र राशि से शनि जब तृतीय स्थान में होता है: भूमि का पर्याप्त लाभ होता है, व्यक्ति स्वस्थ, आनंद व संतुष्ट रहता है। एक अनिर्वचनीय जागृति रहती है, धनागम होता है, धन-धान्य से समृद्धि होती है। आजीविका के साधन प्राप्त होते हैं। समस्त कार्य सहजता से संपन्न होते हैं। व्यक्ति शत्रु विजयी सिद्ध होता है, अनुचर सेवा करते हैं, आचरण में कुत्सित प्रवृत्तियों की अधिकता होती है। पदाधिकार प्राप्त होते हैं।
4. चंद्र राशि से शनि जब चतुर्थ स्थान में होता है:- बहुमुखी अपमान होता है। समाज एवं सत्ता के कोप से साक्षात्कार होता है, आर्थिक कमी शिखर पर होती है। व्यक्ति की प्रवृत्तियां स्वतः धूर्ततायुक्त एवं पतित हो जाती है, विरोधियों एवं व्याधियों का आक्रमण पीड़ादायक होता है। नौकरी में स्थान परिवर्तन अथवा परित्याग संभव होता है, यात्राएं कष्टप्रद होती हैं। आत्मीय जनों से पृथकता होती है, पत्नी एवं बंधु वर्ग विपत्ति में रहते हैं।
5. चंद्र राशि से शनि जब पंचम स्थान में होता है: मनुष्य की रूचि कुत्सित नारी/ नारियों में होती है। उनकी कुसंगति विवेक का हरण करती है, पति का धर्मपत्नी और पत्नी का पति से प्रबल तनाव रहता है, आर्थिक स्थिति चिंताजनक होती है, व्यक्ति सुविचारित कार्यपद्धति का अनुसरण न कर पाने के कारण प्रत्येक कार्य में असफल होता है। व्यवसाय में अवरोध उत्पन्न होते हैं, पत्नी वायु जनित विकारों से त्रस्त रहती है। संतति की क्षति होती है, जातक जन समुदाय को वंचित करके उसके धन का हरण करता है। सुखों में न्यूनता उपस्थित होती है शांति दुर्लभ हो जाती है, परिवारजनों से न्यायिक विवाद होते हैं।
6. चंद्र राशि से शनि जब षष्ठ स्थान में होता है- शत्रु परास्त होते हैं, आरोग्य की प्राप्ति होती है, अनेकानेक उत्तम भोग के साधन उपलब्ध होते हैं, संपत्ति, धान्य एवं आनंद का विस्तार होता है, भूमि प्राप्त होती है, आवासीय सुख प्राप्त होता है। स्त्री वर्ग से लाभ होता है।
7. चंद्र राशि से शनि जब सप्तम स्थान में होता है- कष्टदायक यात्राएं होती हैं, दीर्घकाल तक दूर प्रवास व संपत्ति का विनाश होता है, व्यक्ति आंतरिक रूप से संत्रस्त रहता है, गुप्त रोगों का आक्रमण होता है, आजीविका प्रभावित होती है, अपमानजनक घटनायें होती हैं, अप्रिय घटनायें अधिक होती हैं, पत्नी रोगी रहती है, किसी कार्य में स्थायित्व नहीं रह जाता।
8. चंद्र राशि से शनि जब अष्टम स्थान में होता है- सत्ता से दूरी रहती है, पत्नी/पति के सुख में कमी संभव है, निन्दित कृत्यों व व्यक्तियों के कारण संपत्ति व सम्मान नष्ट होता है, स्थायी संपत्ति बाधित होती है, कार्यों में अवरोध उपस्थित होते हैं, पुत्र सुख की क्षति होती है, दिनचर्या अव्यवस्थित रहती है। व्याधियां पीड़ित करती हैं। व्यक्ति पर असंतोष का आक्रमण होता है।
9. चंद्र राशि में शनि जब नवम् स्थान में होता है - अनुचर (सेवक) अवज्ञा करते हैं, धनागम में कमी रहती है। बिना किसी प्रयोजन के यात्राएं होती हैं, विचारधारा के प्रति विद्रोह उमड़ता है, क्लेश व शत्रु प्रबल होते हैं, रूग्णता दुखी करती है, मिथ्याप्रवाह एवं पराधीनता का भय रहता है, बंधु वर्ग विरूद्ध हो जाता है, उपलब्धियां नगण्य हो जाती है, पापवृत्ति प्रबल रहती है, पुत्र व पति या पत्नी भी यथोचित सुख नहीं देते।
10. चंद्र राशि से शनि जब दशम स्थान में होता है: संपत्ति नष्ट होकर अर्थ का अभाव रहता है। आजीविका अथवा परिश्रम में अनेक उठा-पटक होते हैं। जन समुदाय में वैचारिक मतभेद होता है। पति-पत्नी के बीच गंभीर मतभेद उत्पन्न होते हैं, हृदय व्याधि से पीड़ा हो सकती है, मनुष्य नीच कर्मों में प्रवृत्त होता है, चित्तवृत्ति अव्यवस्थित रहती है, असफलताओं की अधिकता रहती है।
11. चंद्र राशि से शनि जब दशम स्थान में होता है: संपत्ति नष्ट होकर अर्थ का अभाव रहता है। आजीविका अथवा परिश्रम में अनेक उठा-पटक होते हैं। जन समुदाय में वैचारिक मतभेद होता है। पति-पत्नी में गंभीर मतभेद उत्पन्न होते हैं, हृदय व्याधि से पीड़ा हो सकती है, मनुष्य नीच कर्मों में प्रवृत्त होता है, चित्तवृत्ति अव्यवस्थित रहती है, असफलताओं की अधिकता रहती है।
12. चंद्र राशि से शनि जब एकादश स्थान में होता है: बहुआयामी आनंद की प्राप्ति होती है। लंबे समय के रोग से मुक्ति प्राप्त होती है, अनुचर आज्ञाकारी व परिश्रमी रहते हैं, पद व अधिकार में वृद्धि होती है, नारी वर्ग से प्रचुर संपत्ति प्राप्त होती है, पत्थर, सीमेंट, चर्म, वस्त्र एवं मशीनों से धनागम होता है, स्त्री तथा संतान से सुख प्राप्त होता है।
13. चंद्र राशि से शनि जब द्वादश स्थान में होता है: विघ्नों तथा कष्टों का अंबार लगा रहता है, धन का विनाश होता है। संतति सुख हेतु यह भ्रमण मारक हो सकता है अथवा संतान को मृत्यु तुल्य कष्ट होते हैं। श्रेष्ठजनों से विवाद होता है, शरीर गंभीर समस्याओं से ग्रस्त रहता है, सौभाग्य साथ नहीं देता, व्यय अधिक होता है, जिस कारण मन उद्विग्न रहने से सुख नष्ट हो जाते हैं।
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