Sunday 26 February 2017

मन के हारे हार है मन के जीते जीत !!!

मनुष्य की समस्त जीवन प्रक्रिया का संचालन उसके मस्तिष्क द्वारा होता है। मन का सीधा संबंध मस्तिष्क से है। मन में हम जिस प्रकार के विचार धारण करते हैं हमारा शरीर उन्हीं विचारों के अनुरूप ढल जाता है। हमारा मन-मस्तिष्क यदि निराशा व अवसादों से घिरा हुआ है तब हमारा शरीर भी उसी के अनुरूप शिथिल पड़ जाता है। हमारी समस्त चैतन्यता विलीन हो जाती है ।
परंतु दूसरी ओर यदि हम आशावादी हैं और हमारे मन में कुछ पाने व जानने की तीव्र इच्छा हो तथा हम सदैव भविष्य की ओर देखते हैं तो हम इन सकारात्मक विचारों के अनुरूप प्रगति की ओर बढ़ते चले जाते हैं। मन के द्वारा संचालित कर्म ही प्रधान और श्रेष्ठ होता है। मन के द्वारा जब कार्य संचालित होता है तब सफलताओं के नित-प्रतिदिन नए आयाम खुलते चले जाते हैं। मनुष्य अपनी संपूर्ण मानसिक एवं शारीरिक क्षमताओं का अपने कार्यों में उपयोग तभी कर सकता है जब उसके कार्य मन से किए गए हों। मनुष्य के मन, मस्तिष्क और शरीर पर मौसम, ग्रह और नक्षत्रों का प्रभाव रहता है। कुछ लोग इन प्रभाव से बच जाते हैं तो कुछ इनकी चपेट में आ जाते हैं। बचने वाले लोगों की सुदृढ़ मानसिक स्थिति और प्रतिरोधक क्षमता का योगदान रहता है। इस प्रकार स्वास्थ्य एक प्रकार से मनःस्थिति पर निर्भर करता है। स्कीन से जुड़ी ज्यादातर बीमारियों का कारण मन के कमजोर होने के कारण इरीटेट होने से होता है वहीं कैंसर जैसी बीमारियों का कारण भी मन के कमजोर होने से किए गए व्यसन के द्वारा होता है। अतः जीवन में स्वास्थ्य प्राप्ति हेतु मन को सुदृढ़ करना आवश्यक है। अतः यदि किसी का मन कमजोर हो अर्थात् तीसरे स्थान का स्वामी छठवे, आठवे या बारहवे स्थान पर हो जाए तो कमजोर मन के कारण व्यक्ति व्यसन का शिकार होता है वहीं यदि इस स्थान पर शनि हो अथवा शनि की दृष्टि हो तो कमजोर मानसिकता के कारण स्कीन में जलन या खुजली जैसी बीमारियाॅ होती है। अतः मन को मजबूत कर बीमारियों से बचा जा सकता है। इसके लिए ज्योतिषीय उपाय करना चाहिए जिसमें मन के तीसरे स्थान के कारक ग्रह की शांति, शनि एवं बुध के मंत्रों का जाप एवं काली चीजों का दान करना चाहिए।

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