कारकांश लग्न में सूर्य व राहु की युति हो व शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो व्यक्ति विषवैद्य अर्थात चिकित्सक होता है। कारकांश लग्न में सूर्य व शुक्र दोनों की दृष्टि हो तो व्यक्ति राजा अथवा सरकार का विश्वसनीय होता है। कारकांश लग्न व केतु दोनों पर शुक्र की दृष्टि हो तो व्यक्ति दीक्षा ग्रहण करता है कर्मकाण्डी, यज्ञ, हवन करने वाला होता है।कारकांश लग्न में केतु हो उस पर बुध शनि की दृष्टि हो तो जातक नपुंसक होता है। यदि शुक्र बुध की दृष्टि हो तो जातक दासी पुत्र (नजायज संतान) होता है। कारकांश लग्न में केतु केवल शनि द्वारा दृष्ट हो तो वह व्यक्ति कपटी होता है अर्थात् जैसा वह दिखता है वैसा नहीं होता।यदि कारकांश लग्न से चतुर्थ भाव में चंद्र हो और उस पर शुक्र, मंगल, केतु (किसी भी एक की) दृष्टि हो तो व्यक्ति कुष्ट रोगी होता है। कारकांश लग्न से चतुर्थ में केतु हो तो जातक सूक्ष्म यंत्रों को बनाने वाला (घड़ी साज) मंगल हो तो हथियार रखने वाला शनि हो तो निशानेबाज (धर्नुधारी) राहु हो तो लोहे से समान बनाने वाला होता है।कारकांश लग्न से पंचम भाव में शुुक्र हो तो व्यक्ति कवि, वक्ता या साहित्यकार होता है यदि गुरु हो तो बहुत से विषयों का जानकार विद्वान होता है। यदि शुक्र चंद्र हो तो लेखक, मंगल हो तो तर्कशास्त्री, वकील तथा सूर्य हो तो वेदों का ज्ञाता एवं गायक होता है।कारकांश से सप्तम भाव में गुरु और चंद्र हो तो जातक की पत्नी सुंदर व उसे चाहने वाली होती है, शनि हो तो उम्र में बड़ी रोगी अथवा तपस्विनी होती है। बुध हो तो गायन, वादन कला में निपुण होती है। (10) कारकांश से दशम भाव में बुध हो या बुध की दृष्टि हो तो जातक अपने पेशे में प्रसिद्ध होता है यदि बुध हो और उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो जातक वकील, जज होता है अर्थात विवादों को हल करने वाला होता है। कारकांश लग्न से बाहरवें सूर्य और केतु हो तो जातक शिव भक्त चंद्र हो तो गौरी भक्त, मंगल हो तो कार्तिकेय, बुध और शनि हो तो विष्णु भक्त, गुरु हो तो शिव गौरी (दोनों) शुक्र हो तो लक्ष्मी भक्त या उपासक होता है, राहु हो तो तामसिक भक्ति केतु हो तो गणेश भक्ति वाला होता है। इस प्रकार बहुत से अन्य योग भी दिये गये हैं जिनसे काफी कुछ जानकारी व्यक्ति विशेष के बारे में जानी जा सकती है यहां यह भी ध्यान रखें कि यह सारे फलादेश आज के संदर्भ में समयानुसार परिवर्तन के साथ समझे जा सकते हैं वहीं दृष्टि यहां पर जैमिनी मानी गई है पराशरीय नहीं। आइये अब कुछ उदाहरण से इन्हें समझने का प्रयास करते हैं। यहां आत्मकारक ग्रह चंद्रमा है जो नवांश में मिथुन राशि में ही है अतः कारकांश लग्न मिथुन हुआ जिसके प्रभाव से जातक गायन का शौक रखता है (व्यवसायिक गायन भी किया है) तथा लग्न पर शुक्र चंद्र के प्रभाव से जीविका विद्या द्वारा (शिक्षण व्यवसाय) अर्जित करता है। राहु केतु के पंचम पर प्रभाव होने से जातक गणित विषय की अच्छी जानकारी रखता है। आत्मकारक ग्रह चंद्रमा है जो नवांश में वृश्चिक राशि में गया है अतः कारकांश लग्न वृश्चिक हुआ तथा जिस पर मंगल चंद्र व राहु का प्रभाव है, जातक मां के सुख से वंचित रहा (वृश्चिक लग्न) तथा अग्नि व रसायन धातु कार्य करने वाला (स्वर्णकार) मंगल प्रभाव समस्त भोगों को भोगने वाला धनी (चंद्र प्रभाव) रहा है पचंम भाव पर गुरु का प्रभाव तथा कर्म भाव में शनि ने उन्हें अपने क्षेत्र में बहुत प्रसिद्धि व कई विषयों का जानकार बनाया है। जातक वास्तु, ज्योतिष व धर्म संबंधी जानकारी विद्वता से रखते हैं। आत्मकारक शुक्र है जो मेष राशि नवांश में है अतः कारकांश लग्न मेष हुआ। जिस पर शुक्र चंद्र का स्पष्ट प्रभाव है जातक के पास बहुत चल अचल सम्पत्ति है तथा जातक विद्या के क्षेत्र (शुक्र चंद्र प्रभाव) में है दशम पर सूर्य सरकार द्वारा लाभ दर्शाता है। यह जातक दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर है लग्न कुंडली पर ज्यादातर व्यवसाय का योग दिखता है नौकरी का नहीं अतः कारकांश लग्न सटीक फल दर्शा रहा है। आत्मकारक शुक्र नवांश में मिथुन राशि में है अतः कारकांश लग्न मिथुन हुआ जिस पर सूर्य बुध का प्रभाव है वही दशम पर भी सूर्य बुध का ही प्रभाव है बुध का मुख्य प्रभाव दशम व लग्न पर होने से जातक वकील से जज बना, पचंम भाव में मंगल, शुक्र व राहु केतु के प्रभाव ने कानून विद्या की अच्छी जानकारी व तर्क ज्ञान में दक्षता तथा वक्ता बनाया है। आत्मकारक मंगल है जो सिंह नवांश में है अतः कारकांश लग्न सिंह हुआ जिस पर गुरु मंगल का प्रभाव है जिससे जातक समझदार, व्यवहारिक व जोशीला है दशम शनि (केन्द्र भाव) जातक को प्रसिद्ध एवं अपने कार्य में दक्ष बना रहे हैं पंचम भाव पर राहु, केतु व बुध नीच के प्रभाव से जातक ने ज्यादा शिक्षा नहीं पाई है वहीं नवम भाव सूर्य (उच्च) से सरकार से लाभ तथा बड़ों का आदर सम्मान करना सिखाया है। यह पत्रिका सचिन तेंदुलकर की है। लग्न पर सूर्य शुक्र प्रभाव सरकार से जबरदस्त लाभ एवं सम्मान दिलवाता है। लग्न कुंडली में सप्तमेश नीच राशि होकर बैठा है, विवाह कारक शुक्र सूर्य से अष्टम में पीड़ित है (सूर्य कारकांश लग्न या स्वामी है) गुरु सप्तमेश की शनि (पंचमेश) पर दृष्टि भी है जो आयु में बड़ी जीवन साथी होना तथा प्रेम संबंध होना बता रही है।
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