Tuesday, 14 April 2015

युवा क्षमता प्रोन्नयन से नवीन सृष्टि का निर्माण


प्रोवाइजेशन अव्यवस्था, अराजकता व विपरीत परिस्थितियों का विवेकपूर्ण समाघान का तकनीक है। वास्तव में संपूर्ण जीवन एक प्रयोगशाला है तथा इंप्रोवाइजेशन मनुष्य के द्वारा विषमताओं का अविष्कृत समाधान है। भारतीय परिवेश में यह अत्यंत समीचीन संदर्भित एवं आवश्यक है, अर्वाचीन मंगलयान के निर्माण इंप्रोवाइजेशन का सटीक उदाहरण है। इसे ज्योतिषीय नजरिये से देखें तो इस वक्त जब उच्च के बृहस्पति एवं शनि हैं तो इस समय समाज को प्रोन्नयन की नितांत आवश्यकता है साथ ही यहीं वह समय है, जब प्रोन्नयन द्वारा नवीन सृष्टि का निर्माण संभव है। और इसे सीखने के लिए विदेश जाने की जरूरत नहीं है क्योंकि प्रोन्नयन सीखा नहीं जाता वरन किया जाता है अत: देश को प्रोन्नयन या नवाचार की जरूरत है जिसे इसी जगह पर रहकर किया जा सकता है। युवा ही इस कर्म को पूर्ण कर सकते हैं। आज के युग में मानव जीवन, वैज्ञानिक उपलब्धियों और उन सब का दैनिक जीवन में उपयोग पर आधारित है। अत: लोगों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं नवीन तरीके अपनाने की प्रवृत्ति और उनसे संबंधित मामलों पर निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में भागीदारी हेतु उन्हें सक्षम बनाना अनिवार्य हो गया है। हम अपने परम्परागत ज्ञान का ना सिर्फ संरक्षण करें बल्कि इस परम्परागत ज्ञान का प्रौधोगिकी विकास, नये रोजगारों के सृजन एवं औद्योगिकरण के क्षेत्र में उपयोग के साथ अभूतपूर्व अवसर भी प्रदान करें और उन अवसरों का फायदा उठाने के लिए मानव संसाधन को नए ढंग से विकसित करने का प्रयास करें। इंप्रोवाइजेशन ना सिर्फ आज की आवश्यकता है बल्कि आने वाली पीढिय़ों के लिए भी जरूरी होगा कि वे नए विचारों को सतत् सृजनशीलता के साथ आत्मसात कर सकें, यह सब ना सिर्फ शिक्षा के द्वारा बल्कि नवीन प्रयोग तथा उनके उपभोग से ही संभव है। बाजार के असीमित अविनियमन के कारण तथा इसके प्रतिकूल प्रभावों पर ध्यान न देने से अब तक बचे हुए भौतिक संसाधन भी अपने अंत की ओर अग्रसर हैं अगर हम अभी से स्थानीय स्तर पर मौजूद संसाधनों का सदुपयोग कर साथ ही वर्तमान में प्राप्त ऊर्जा, उत्पादन, परिवहन व्यवस्था, भोजन और पानी की व्यवस्थाओं के लिए नयी प्रौद्योगिकी तथा पद्धति के विकास पर ही ध्यान केन्द्रित करें, जिन सब का विकास संरक्षित ज्ञान आधारित तरीके के साथ नवीन प्रयोग करने से ही होगा। वर्तमान आर्थिक एवं वैश्विक संकट के दोनों पहलुओं, मुनाफा बनाने के लिए वित्तीय तथा प्रौद्योगिक नवाचार को कायम रखने तथा ठोस संसाधनों और इनसे सम्बंधित अभियांत्रिकी का दोहन करने का समाधान खोजना चाहिए, जिनका दोष हर बार रोजगार मूलक शिक्षा में कमी के कारण को दिया जाता रहा है। प्रतिस्पर्धात्मक ज्ञान, अर्थव्यवस्था का क्षेत्र है। ऐसी स्थिति जिसमे नवाचार एवं संसाधनों की सुरक्षा हेतु शोध एवं प्रौद्योगिकीय विकास की बात करना आर्थिक एवं राजनैतिक तौर पर मजबूत बनने के लिए जरूरी बन गया है। ये नीतियां जनता के गमनागमन तथा इसके माध्यम से प्राप्त हो सकने वाले नवीनीकरण पर आक्रामक नियंत्रण तथा ज्ञान को औपचारिक शोध एवं सामुदायिक औजार के रूप में मान्यता प्राप्त ज्ञान से सम्बद्ध कर देने से रास्ता निकाला जा सकता है। आज का युवा वर्ग देश की बढ़ती हुई बेरोजगारी से पूर्णत: वाकिफ है। जहाँ निजी क्षेत्र में वेतन बहुत कम है वहीं उच्चतर पेशेवर शिक्षा महंगी होती जा रही है साथ ही किसी प्रकार उस शिक्षा को प्राप्त करने के बावजूद भी जीवनचर्या हेतु आवश्यक संसाधन जुटाया जा सके यह कोई जरूरी नहीं। रोजगार प्राप्ति के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। छात्रों में योग्यता व रोजगार के लिए बढ़ती हुई होड़ से परेशानी व हताशा हैं। उन्हें निराश होने की जरूरत नहीं है बल्कि अपने आस-पास मौजूद संसाधनों में से एक विकल्प उन उत्साही, संघर्षशील व परिश्रमी युवाओं के लिए खुला है जिनकी या तो नौकरी में रुचि नहीं है या इस प्रतियोगी युग ने अपने लिए बढिय़ा-सा रोजगार हासिल करने में स्वयं को असमर्थ महसूस करते हैं। इसमें आपको नौकरी की तलाश में दर-दर भटकना भी नहीं पड़ेगा बल्कि आप अपने स्वयं मालिक होंगे। अपनी रुचि, प्रतिभा व क्षमता के मुताबिक अपने क्षेत्र का चयन कर सकते हैं। जिसके लिए आपकी शैक्षिक व पेशेवर योग्यताएं आपके उज्जवल भविष्य की राह में मददगार साबित होंगी। क्षेत्र इतना व्यापक है कि आकाश भी छोटा पड़ जाए। स्वरोजगार का व्यापक क्षेत्र है। इसमें आप अपनी योग्यता तथा पसंद के अनुसार अपने बजट के मुताबिक क्षेत्र चुन कर अपने जैसे युवाओं के साथ मिलकर उस क्षेत्र में नवीन तकनीक तथा संसाधनों के साथ इंप्रोवाइजेशन करने की शुरू कर सकते हैं, यह इंप्रोवाइजेशन ना सिर्फ विदेश की ओर दृष्टि रखें हुए लोगो का बल्कि विभिन्न साधनों पर आश्रित युवाओं को एक दिशा देगा जो कि सिर्फ सरकारी या निजी कंपनियों में कार्यरत होने की आकांक्षा रखते हैं और पूरा जीवन जिंदगी की आपाधापी में गुजार देते हैं, उन युवाओं को अपने स्थानीय स्तर पर प्राप्त सामान्य साधन तथा उसपर नवीन तकनीक का विकास कर बदलाव लाने की आवश्यकता है, अब जब वृश्चिक के शनि हैं इस वक्त ही व्यक्ति अपने निजी जीवन तथा समाजिक जीवन में नवाचार कर सकता है तथा उच्च के कर्कगत वृहस्पति होने से उस नवाचार द्वारा सफलता पायी जा सकती है, जिससे ना सिर्फ उनका भला होगा, बल्कि देश में विकास की लहर आयेगी और जिससे ना सिर्फ स्वयं का बल्कि एक समूह के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव लाया जा सकता है और यही नवाचार या प्रोन्नयन ही देश के विकास में सहभागी होकर दिशा तथा दशा बदल सकता है और इसे करने के लिए कहीं भी जाने की आवश्यकता नहीं है, इसे अपनी ही धरती पर किया जा सकता है, और यही देश तथा यहा के युवाओं के भविष्य को संरक्षित करेगा।

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नहीं मिला योग्य जीवन साथी


गल में एक पेड़ के नीचे एक वृद्ध गुरु अपने युवा शिष्य के साथ बैठा था। चारों ओर घास का मैदान था। इसमें सैकड़ों सफेद गुलाब के फूल खिले थे। युवक कुंवारा था और अक्सर गुरु के पास सत्संग के लिए आता रहता था। अध्यात्म और धर्म की बातें चल रही थी तभी चर्चा के बीच अचानक युवक ने विषय बदल दिया और गुरु से पूछा- ''गुरूजी, मेरा अध्ययन पूरा हो चुका है। मैंने अपने पिता का व्यवसाय संभाल लिया है और इन दिनों मेरे विवाह की बात भी चल रही है। लेकिन कई युवतियों को देखकर भी मैं अपने लिए कोई योग्य जीवन साथी नहीं तलाश सका। आप बताएं कि मैं क्या करूं?
गुरुजी बोले- ''बेटा, तुम एक काम करो। मैदान में अंतिम छोर तक एक चक्कर लगाओ। जो गुलाब का फूल तुम्हें सबसे खुबसूरत लगे, वह मेरे लिए तोड़कर ले आओ। बस एक शर्त है कि आगे बढ़ा कदम पीछे नहीं मुडऩा चाहिए। युवक गया और थोड़ी देर बाद, खाली हाथ लौट आया। गुरु ने पूछा- ''तुम कोई फूल नहीं लाए?
शिष्य ने जवाब दिया- ''गुरु जी, मैं एक के बाद एक फूल देखता आगे बढ़ा। जब कोई सुंदर फूल देख उसे तोडऩे के लिए झुकता तो मेरे मन में यह ख्याल आता कि हो सकता है आगे इससे भी बेहतर फूल हो। मैदान के अंत में मुझे कुछ सुंदर फूल दिखे भी, लेकिन पास जाकर देखा तो वे मुरझाए हुए थे। उन्हें लाने की मेरी इच्छा ही न हुई। इसलिए मुझे खाली हाथ लौट आना पड़ा।
गुरु ने कहा- ''बेटा, जिंदगी भी ऐसी ही है। यदि सबसे योग्य ढूंढने में लगे रहोगे तो अंत में तुम्हारे हाथ मुरझाए फूल भी नहीं आएंगे। युवक गुरु का संकेत समझ गया।

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केशान्त संस्कार


हिन्दू धर्म के अनुसार सभी व्यक्तियों के लिए 16संस्कार बहुत महत्व रखते हैं। धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टि से भी इन संस्कारों का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। गुरु शंकराचार्य के अनुसार ''संस्कारों हि नाम संस्कार्यस्य गुणाधानेन वा स्याद्दोषापनयनेन वा अर्थात मानव को गुणों से युक्त करने तथा उसके दोषों को दूर करने के लिए जो कर्म किया जाता है, उसे ही संस्कार कहते हैं। इन संस्कारों के बिना एक मानव के जीवन में और किसी अन्य जीव के जीवन में विशेष अंतर नहीं है। ये संस्कार व्यक्ति के दोषों को खत्म कर उसे गुण युक्त बनाते हैं।
सनातन अथवा हिन्दू धर्म की संस्कृति संस्कारों पर ही आधारित है। हमारे ऋषि-मुनियों ने मानव जीवन को पवित्र एवं मर्यादित बनाने के लिये संस्कारों का आविष्कार किया। धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टि से भी इन संस्कारों का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। भारतीय संस्कृति की महानता में इन संस्कारों का महती योगदान है।
केशान्तकर्मणा तत्र यथोक्त-चरितव्रत:।
शास्त्रों में वर्णित सोलह संस्कारों में एक संस्कार है केशान्त संस्कार। केशान्त संस्कार को गोदान संस्कार भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म संस्कारों में केशान्त संस्कार एकादश संस्कार है।
बालक का प्रथम मुंण्डन प्राय: पहले या तीसरे वर्ष में हो जाता है। यह बात पहले ही कही जा चुकी है। प्रथम मुंण्डन का प्रयोजन केवल गर्भ के केशमात्र दूर करना होता है।
उसके बाद इस केशान्त संस्कार में भी मुंडन करना होता है। जिससे बालक वेदारम्भ तथा क्रिया-कर्मों के लिए अधिकारी बन सके अर्थात वेद-वेदान्तों के पढऩे तथा यज्ञादिक कार्यों में भाग ले सके। इसलिए कहा भी है कि शास्त्रोक्त विधि से भली-भाँति व्रत का आचरण करने वाला ब्रह्मचारी इस केशान्त-संस्कार में सिर के केशों को को कटवाता है।
बालक जब 16वर्ष का हो जाता है तब यह संस्कार किया जाता है। वास्तव में यह संस्कार गुरूकुल में वेदाध्ययन पूर्ण करने के पश्चात सम्पन्न किया जाता था। इस संस्कार में छात्र दाढ़ी बनाते थे उसके पश्चात पवित्र जल में स्नान करते थे। इन क्रियाओं के बाद छात्रों को स्नातक की उपाधि दी जाती थी एवं उन्हें गृहस्थ आश्रम में प्रवेश की आज्ञा दी जाती थी।
इस संस्कार में दाढ़ी बनाने के पश्चात उन बालों को या तो गाय के गोबर में मिला दिया जाता था या गौशाला में गढ्ठा खोदकर दबा दिया जाता था अथवा किसी नदी में प्रवाहित कर दिया जाता था। इस प्रकार की क्रिया इसलिए की जाती थी ताकि कोई तांत्रिक उन बालों पर अपनी तान्त्रिक क्रिया के द्वारा उसे नुकसान न पहुंचा सके। इस संस्कार के बाद गुरू को गाय दान दिया जाता था। यह संस्कार शुभ मुहुर्त देखकर आयोजित किया जाता था। गुरुकुल में वेदाध्ययन पूर्ण कर लेने पर आचार्य के समक्ष यह संस्कार सम्पन्न किया जाता था। वस्तुत: यह संस्कार गुरुकुल से विदाई लेने तथा गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने का उपक्रम है। वेद-पुराणों एवं विभिन्न विषयों में पारंगत होने के बाद ब्रह्मचारी के समावर्तन संस्कार के पूर्व बालों की सफाई की जाती थी तथा उसे स्नान कराकर स्नातक की उपाधि दी जाती थी। केशान्त संस्कार शुभ मुहूर्त में किया जाता था।
मुहुर्त का आंकलन :
केशान्त संस्कार उस मुहुर्त में किया जाता था जिसमें स्वाती, पुनर्वसु, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा, हस्त, अश्विनी, पुष्य, मृगशिरा, रेवती, चित्रा और ज्येष्ठा में से कोई नक्षत्र मौजूद होता। इन नक्षत्रों में से किसी नक्षत्र की मौजूदगी में यह संस्कार आयोजित किया जाता था। आप भी इस संस्कार के लिए इन नियमों को अपना सकते हैं।
तिथि:
द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी और त्रयोदशी तिथि को इस संस्कार हेतु उपयुक्त तिथि माना जाता था आज भी छात्र उपरोक्त नक्षत्र और तिथि का ध्यान करते हुए वार और लग्न को दखते हुए पहली बार दाढ़ी बनाएं तो उनके लिए शुभ होगा।
वार:
वार के रूप में इस संस्कार के लिए सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार को शुभ माना गया है।
लग्न :
केशान्त संस्कार के लिए मुहुर्त देखते समय लग्न का विचार करना भी बहुत आवश्यक होता था। इस संस्कार के लिए शुभ लग्न तब माना जाता था जबकि जन्म राशि और जन्म राशि से अष्टम राशि के लग्न नहीं हों, अर्थात इस संस्कार के लिए सभी लग्न शुभ माने जाते थे सिर्फ जन्म राशि और उससे आठवीं राशि के लग्न का त्याग किया जाता था।
निषेध:
इस संस्कार के लिए चन्द्र एवं तारा शुद्धि का विचार करना आवश्यक होता था। चतुर्थ, अष्टम एवं द्वादश का चन्द्र होने पर चन्द्र दोष होता है अत: इनका त्याग किया जाता था। तृतीय, पंचम एवं सप्तम का तारा भी दोषपूर्ण होता था अत: इनका भी त्याग किया जाता था।

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कर्म का भोग ही है जन्म की वजह

‘‘कथम उत्पद्यते मातुः जठरे नरकागता गर्भाधि दुखं यथा भुंक्ते तन्मे कथय केषव’’ गरूड पुराण में उक्त पंक्तियाॅ लिखी हैं, जिससे साबित होता है कि गर्भस्थ षिषु के ऊपर भी ग्रहों का प्रभाव शुरू हो जाता है... गर्भ के पूर्व कर्मो के प्रभाव से माता-पिता तथा बंधुजन तथा परिवार तय होते हैं... इसी लिए कहा जाता है कि शुचिनाम श्रीमतां गेहे योग भ्रष्ट प्रजायते अर्थात् जो परम् भाग्यषाली हैं वे श्रीमंतो के घर में जन्म लेते हैं... जिन बच्चों का ग्रह नक्षत्र उत्तम होता है, उनका जन्म तथा परवरिष भी उसी श्रेणी का होता है... कहा तो यहाॅ तक जाता है कि जिस व्यक्ति के प्रारब्ध में कष्ट लिखा होता है उसका जन्म विपरीत ग्रह नक्षत्र एवं कष्टित परिवार में होता है... गरूड पुराण में वर्णन है और देखने में भी आया है कि जिनके प्रारब्ध उत्तम नहीं होते उन्हें बचपन से ही कष्ट सहना होता है.... उनका जन्म परिवार के विपरीत परिस्थितियों में होता है और जिन्हें बड़ी उम्र में कष्ट सहना होता है, उनका कार्य व्यवसाय या बच्चों का भाग्य बाधित हो जाता है... इससे जाहिर होता है कि आपका प्रारब्ध कभी ही आप पर असर दिखा सकता है...अतः अपने भाग्यवृद्धि तथा सुख समृद्धि हेतु अपने कर्म अच्छे रखने चाहिए....


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Get rid of you life problems Get solutions to them


अगर आपके जीवन में कोई परेशानियां हैं जैसे फाइनान्स,बिज़्नेस,व्यापार में बार बार हानि,व्यापार में बाधा,कोर्ट कचेरी का विवाद,आकस्मिक हानि,शारीरिक पीड़ा, मानसिक तनाव,व्यसन से मुक्ति,बच्चों की पढ़ा,शत्रुओं से छुटकारा,विवाह में विलंभ,वास्तु,,ग्रह दोष,वास्तु दोष आदि किसी भी समस्या से परेशान हैं तो घबराइये मत तुरंत संपर्क करे प्रख्यात ज्योतिष प्रिया शरण त्रिपाठी से जो आपके जीवन की हर परेशानियों को दूर करने का समंधन बतायेंगे और आपकी जीवन की खुशियाँ और आनंद लौट आयेगा तो देर किस बात की तुरंत संपर्क करें प्रख्यात प्रिया शरण त्रिपाठी से और अपनी हर समस्या का समाधान पाइये


If you are facing problems like finance problem,business problem,getting continue losses,legal disputes,continuosly facing health problems,mentally ill or stressed,children education,getting rid of your enemies,Delay in marriage,grah dosh,vastu dosh,mangal dosh etc……so don't get worried come to famous astrologer Pt. Priya Sharan Tripathi(Pt.P.S. Tripathi) who have all solutions to your poblems and your life will get rich of happiness. So don't waste your time come and get solution to your problem….

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प्रोन्नयन से नवीन सृष्टि का निर्माण


प्रोन्नयन से नवीन सृष्टि का निर्माण
इंप्रोवाइजेशन अथवा प्रोन्नयन - अव्यवस्था, अराजकता व विपरीत परिस्थितियों के क विवेकपूर्ण समाधान की तकनीक है। वास्तव में संपूर्ण जीवन एक प्रयोगशाला है तथा इंप्रोवाइजेशन मनुष्य के द्वारा विषमताओं का आविष्कृत समाधान है। भारतीय परिवेश में यह अत्यंत आवश्यक है। बीते दिनों में पत्थरों से बने शस्त्र और आज के मंगलयान, इंप्रोवाइजेशन का सटीक उदाहरण है। इसे ज्योतिषीय नजरिये से देखें तो इस वक्त जब उच्च के बृहस्पति एवं शनि हैं तो इस समय समाज को प्रोन्नयन की नितांत आवश्यकता है साथ ही यही वह समय है, जब प्रोन्नयन द्वारा नवीन सृष्टि का निर्माण संभव है। और इसे सीखने के लिए विदेश जाने की जरूरत नहीं है क्योंकि प्रोन्नयन सीखा नहीं जाता वरन किया जाता है। देश को प्रोन्नयन की जरूरत है जिसे इसी जगह पर रहकर किया जा सकता है। युवा ही इस कार्य को पूरा कर सकते हैं।
आज के मानव का दैनिक जीवन वैज्ञानिक उपलब्धियों पर आश्रित है। अत: युवाओं को इस दिशा में प्रेरित कर उन्हें उत्पादक और स्वाभिमानी तथा समाज के लिए उपयोगी बना सकते हैं। असल में देश में लगभग पचास करोड़ युवा हैं जिनमें लगभग बीस करोड़ के आसपास ऐसे युवा होंगे जो शिक्षित होंगे पर अपनी योग्यता के अनुकूल उन्हें रोजगार हासिल नहीं होगा। यानि वे समाज के लिए कम उत्पादक या अनुत्पादक होंगे। उसी की तुलना में वे आय प्राप्त कर रहे होंगे और अपेक्षाकृत कम प्रतिष्ठित जीवन जीने के लिए बाध्य होंगे। परिणामस्वरूप उनमें तनाव, ईष्र्या, क्रोध, असंतुष्टि या अपराध भी पनप सकता है। शायद यही वजह हैं देश में भ्रष्टाचार, बेरोजगारी या बढ़ते अपराध के। यदि हमारी व्यवस्था ने शीध्र ही इसका समाधान नहीं ढूंढ़ा तो इसके परिणाम घातक हो सकते हैं। एक सर्वे के अनुसार पढ़े लिखे शिक्षित दस प्रतिशत बच्चों को कम्पनियां सीधे कैम्पस में लेती हैं परंतु नब्बे प्रतिशत पढ़े लिखे बच्चे नौकरी की तलाश में भटकते हैं। वहीं शासन के द्वारा प्रतिवर्ष राज्य और केन्द्र के कुल मिलाकर नौकरियों का आकड़ा भी इतना नहीं होता कि जिससे इन बेरोजगारों को नौकरी मिल सके। मतलब बहुत साफ है कुछ करना होगा। प्रोन्नयन इस परेशानी को बहुत जल्द हल कर सकता है बशर्ते सरकार-समाज एक साथ खड़े होकर प्रयास करे। आज बाजार में जिस तरह का कौशल चाहिए वो अधिकतर पढ़े लिखे बच्चों में नहीं है। यानि प्रोन्नयन से हम बच्चों में आवश्यकता अनुरूप तकनीक और अनुभव पैदा कर सकते हैं। हालांकि सरकार ने इस ओर अपना लक्ष्य पहले ही स्पष्ट कर दिया है। स्किल डेव्लपमेंट प्रोग्राम इसी लिये चलाया जा रहा है। मगर मेरी नजर में ये एक ट्रेनिंग प्रोग्राम है और प्रोन्नयन इससे कुछ अलग है। जब तक कि बच्चे वैचारिक रूप से नया करने के लिए तत्पर नहीं होंगे, तब तक ये बाजार में उपयोगी साबित नहीं होंगे। यानि स्कूल और कॉलेज में प्रोन्नयन तकनीक के द्वारा वैचारिक आत्मनिर्भरता, मौलिकता एवं नये अनुसंधानों के प्रति युवाओं में रुझान पैदा किया जा सकता है। इसलिये आज देश को प्रोन्नयन तकनीक की बहुत जरूरत है। इसे किन्ही अर्थों में नवाचार भी कहा है परंतु प्रोन्नयन तकनीकि रूप से इससे भी भिन्न है। इसकी आवश्यकता शिक्षकों और राजनैतिज्ञों के लिए भी है ताकि वे क्रमश: अपने शैक्षिणिक संस्थान व समाज में इस तकनीक के द्वारा आत्मनिर्भरता एवं अनुसंधान की ओर प्रत्येक व्यक्ति को प्रेरित कर सकते हैं। प्रोन्नयन की आवश्यकता शालेय स्तर से ही है, यहां पर बच्चा अपनी सभी जिज्ञासाओं को, सभी तर्कों को या अपने छोटे अनुसंधानों को मूर्त रूप में प्रयोग करके प्राप्त करे, इसके लिए सरकारों को प्रोन्नयन तकनीक के अनुरूप शालेय स्तर से ही प्रयोगशालाओं का निर्माण करना होगा और बाल्य काल से ही प्रत्येक छात्र को प्रोन्नयन के लिए प्रेरित करना होगा। आज शालेय स्तर प्रोजेक्ट्स बनवाये जाते हैं पर ज्यादातर प्रोजेक्ट्स बाजार से खरीद लिये जाते हैं या अभिभावकों के द्वारा बनाये जाते हैं जो कतई उचित नहीं है। दूसरा प्रोन्नयन तकनीक से छात्रों में नेृतत्व क्षमता का भी विकास हो सकता है। ये लेखन, कला, विज्ञान, खेल सभी जगह पर एक सा प्रभावकारी है। ये ईश्वर के द्वारा इस संसार को सदा आनंदित, प्रफुल्लित, नया, उर्जावान बनाये रखने के लिए दी गई प्रेरणारूपी कृपा है।

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अनिन्द्रा और ज्योतिष


यह आधुनिक बीमारी है। बहुत व्यस्त है, बहुत धनी है, उन्हे नींद की गोला खानी पड़ती है। शरीर का संचालन मस्तिष्क करता है। हमारे विचार, भाव, कर्म आदि को स्नायु संस्थान संचालित करते है। चन्द्रमा ह्रदय, फेफड़ा एवं पेट का स्वामी है। क्रोध आना ऐसा भाव है, जिससे मन असंतुलित हो जाता है, रक्त चाप बढ़ जाता है, मस्तिष्क की स्नायु प्रणाली प्रभावित होती है। मस्तिष्क, फेफड़ा एवं पेट ठीक हो तो यह बीमारी नही होती। कुण्डली में निम्न ग्रहों के संयोग से यह रोग उत्पन्न होता है -
1. सूर्य, मंगल लग्न में हो तथा पापी ग्रहों से दृष्ट हो।
2. मंगल, शुक्र 12 वें भाव में हो।
3. 12 वां भाव 12 वीं राशि एवं उसका स्वामी पीडि़त हो, तो वह बीमारी होती है, क्योंकि
यह भाव शयन का है।
4. सूर्य, मंगल, चन्द्रमा 8 वें में पानी ग्रह से दृष्ट हो, तो यह रोग होता है।
उपाय -
आधुनिक चिकित्सा के साथ-साथ निम्न उपाय भी लाभकारी है -
1. मोती 6 रत्ती या पन्ना 5 रत्ती या सफेद मोती 12 रत्ती पहने।
2. सूर्यदेव के चरणों में समर्पण एवं आराधना करें।
3. काल या दुर्गा की आराधना या अन्य जप करें।
4. कमरे के पर्दे, चादर आदि हरे या नीले रंग के लगायें।

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दमा


लहसुन दमा के इलाज में काफी कारगर साबित होता है। 30 मिली दूध में लहसुन की पांच कलियां उबालें और इस मिश्रण का हर रोज सेवन करने से दमे में शुरुआती अवस्था में काफी फायदा मिलता है।
अदरक की गरम चाय में लहसुन की दो पिसी कलियां मिलाकर पीने से भी अस्थमा नियंत्रित रहता है। सबेरे और शाम इस चाय का सेवन करने से मरीज को फायदा होता है।
दमा रोगी पानी में अजवाइन मिलाकर इसे उबालें और पानी से उठती भाप लेंए यह घरेलू उपाय काफी फायदेमंद होता है। 4ण्5 लौंग लें और 125 मिली पानी में 5 मिनट तक उबालें। इस मिश्रण को छानकर इसमें एक चम्मच शुद्ध शहद मिलाएँ और गरमण्गरम पी लें। हर रोज दो से तीन बार यह काढ़ा बनाकर पीने से मरीज को निश्चित रूप से लाभ होता है।
180 मिमी पानी में मुट्ठीभर सहजन की पत्तियां मिलाकर करीब 5 मिनट तक उबालें। मिश्रण को ठंडा होने देंए उसमें चुटकीभर नमकए कालीमिर्च और नीबू रस भी मिलाया जा सकता है। इस सूप का नियमित रूप से इस्तेमाल दमा उपचार में कारगर माना गया है।
अदरक का एक चम्मच ताजा रसए एक कप मैथी के काढ़े और स्वादानुसार शहद इस मिश्रण में मिलाएं। दमे के मरीजों के लिए यह मिश्रण लाजवाब साबित होता है। मैथी का काढ़ा तैयार करने के लिए एक चम्मच मैथीदाना और एक कप पानी उबालें। हर रोज सबेरेण्शाम इस मिश्रण का सेवन करने से निश्चित लाभ मिलता है।
दमा का अटैक में सावधानी
सीधे बैठें और आराम से रहें
तुरंत सुनिश्चित मात्रा में रिलीवर दवा लें
पांच मिनट के लिए रुकेंए फिर भी कोई सुधार न हो तो दोबारा उतनी दवा लें।

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रोग और निदान


मनुष्य के मन मस्तिष्क और शरीर पर मौसम ग्रह और नक्षत्रों का प्रभाव लगातार रहता है। कुछ लोग इन प्रभाव से बच जाते हैं तो कुछ इनकी चपेट में आ जाते हैं। बचने वाले लोगों की सुदृढ़ मानसिक स्थिति और प्रतिरोधक क्षमता का योगदान रहता है। लाल किताब अनुसार हम जानते हैं कि किस ग्रह से कौन.सा रोग उत्पन्न होता है।
कुंडली का खाना छह और आठ का विश्लेषण करने के साथ की ग्रहों की स्थिति और मिलान अनुसार ही रोग की स्थिति और निवारण को तय किया जाता है। प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में यह स्थितियाँ अलग.अलग होती है। यहाँ प्रस्तुत है सामान्य जानकारी जिसका किसी की कुंडली से कोई संबंध है या नहीं यह किसी लाल किताब के विशेषज्ञ से पूछकर ही तय किया जा सकता है।
ग्रहों से उत्पन्न बीमारी, पेट की गैस और फेफड़े की बीमारियाँ।
1 बृहस्पति पेट की गैस और फेफड़े की बीमारियाँ।
2 सूर्य मुँह में बार.बार थूक इकट्ठा होना झाग निकलना धड़कन का अनियंत्रित होना शारीरिक कमजोरी और रक्त चाप।
3 चंद्र दिल और आँख की कमजोरी।
4 शुक्र त्वचा ,दाद खुजली का रोग।
5 मंगल रक्त और पेट संबंधी बीमारीए नासूरए जिगरए पित्त आमाशय भगंदर और फोड़े होना।
6 बुध चेचक नाड़ियों की कमजोरी जीभ और दाँत का रोग।
7 शनि नेत्र रोग और खाँसी की बीमारी।
8 राहु बुखारदिमागी की खराबियाँ, अचानक चोट, दुर्घटना आदि।
9 केतु रीढ़,जोड़ों का दर्द, शुगर, कान, स्वप्न दोष, हार्नि,या, गुप्तांग संबंधी रोग आदि।
रोग का निवारण
1 बृहस्पति, केसर का तिलक रोजाना लगाएँ या कुछ मात्रा में केसर खाएँ।
2 सूर्य बहते पानी में गुड़ बहाएँ।
3 चंद्र किसी मंदिर में कुछ दिन कच्चा दूध और चावल रखें या खीर.बर्फी का दान करें।
4 शुक्र गाय की सेवा करें और घर तथा शरीर को साफ.सुथरा रखें।
5 मंगल बरगद के वृक्ष की जड़ में मीठा कच्चा दूध 43 दिन लगातार डालें। उस दूध से भिगी मिट्टी का तिलक लगाएँ।
6 बुध 96 घंटे के लिए नाक छिदवाकर उसमें चाँदी का तार या सफेद धागा डाल कर रखें। ताँबे के पैसे में सूराख करके बहते पानी में बहाएँ।
7 शनि बहते पानी में रोजाना नारियल बहाएँ।
8 राहु जौ सरसों या मूली का दान करें।
9 केतु मिट्टी के बने तंदूर में मीठी रोटी बनाकर 43 दिन कुत्तों को खिलाएँ।

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ज्योतिष शास्त्र में कष्ट निवारण हेतु उपाय


ज्योतिष शास्त्र में कष्ट निवारण हेतु अनेक उपाय सुझाये गये है, परन्तु उनका अनुसरण देश, काल एवं परिस्थिति को ध्यान में रखकर करना चाहिए। हमेशा किसी भी पूजा या जप से पहले गणेश स्मरण या जप अनिवार्य है। इष्टदेव का ध्यान कर निर्धारित विधि का अनुसरण करना चाहिए। नीचे कुछ उपाय का एकत्रीकरण कर एक साथ दिया जा रहा है -
1. हनुमान चालीसा - हनुमान चालीसा की रचना गोस्वामी तुलसीदास ने की थी। भय,
बाधा एवं कष्टों में विशेष रुप से मंगल एवं शनि के अनिष्ट निवारण हेतु हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए।
2. हनुमान बाहुक - हनुमान बाहुक मानस रोग, मोह, काम , क्रोध एवं राग, द्वेष आदि
बाधाएं भी निवृत्त हो जाती है। पु़त्र लाभ भी होता है।
3. हनुमान बाण - हनुमान बाण के पाठ से शत्रुदमन एवं लौकिक बाधाएं दूर होती है।
4. सुन्दर काण्ड - मंगल एवं शनि के अनिष्ट निवारण एवं साढ़े साती में यह पाठ
लाभदायक है।
5. गायत्री मंत्र - गायत्री मंत्र एक महाशक्ति है। लगभग समस्त मुनियों ने इस मंत्र से
अलौकिक एवं अद्वुत शक्ति प्राप्त की है। इससे आशीर्वाद एवं शाप देने की शक्ति स्वतः आ जाती है। 108 बार जपने से सर्व पाप नष्ट हो जाते है व 1000 बार जपने से महादोष नष्ट होता है। 1 लाख जपने से सात जन्मों का पाप कटता है।
ऊँ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमही।
धियो यो नः प्रचोदयात्।
6. मनोकामनापूर्ति - सफलता या मनोकामना के लिए स्वयं उपासना करना सर्वोत्तम उपाय है। शरीर की रक्षा हेतु शाबर मंत्र जो स्वयं सिध्द है प्रतिदिन जप करें। 108 बार गणपति मंत्र (ऊँ गं गणपतये नमः) का जप करें।
7. महामृत्युन्जय जाप - महामृत्युन्जय जाप मृतसंजीवनी मंत्र है। जो शक्ति को जागृत
करता है। इसी मंत्र से भार्गव शुक्र राक्षसों को जीवनदान दिया करते थे। पूरा मंत्र इस प्रकार है -
ऊँ हौम् ऊँ जूं ऊँ सः ऊँ भूः ऊँ भुवः ऊँ स्वः ऊँ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवध्र्दनम्।
ऊर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृताम्।।
ऊँ स्वः ऊँ भुवः ऊँ भूः ऊँ सः ऊँ जूं ऊँ हौम् ऊँ।।
8. पवित्र गौरीव्रत - माता सीता ने यह व्रत कर साक्षात् नारायण को प्राप्त कर लिया था। यह व्रत मार्गशीर्ष में ही किया जाता है। विधि विधान से मां पार्वती के सामने आसन में बैठ कर ध्यान लगाकर प्रतिदिन 11 माला का जप करना चाहिए। 6 माह में शादी हो जाएगी।
हे गौरी शंकर अर्धांगिनी यथा त्वं शंकरप्रिया।
तथा मां कुरु कल्याणि कान्तकान्तां सुदुर्लभाम्।।
9. दुर्गा उपासना - जब कभी हम कठिनाई में हो या मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करना हो तो शतचण्डी या नवचण्डी का पाठ करना चाहिए।
10. बगलामुखी - बगलामुखी एक शक्तिशाली मंत्र है। हर क्षेत्र में विजय प्राप्त करने हेतु यह मंत्र उपयोगी है।

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पागलपन




यह मानस रोग के साथ-साथ मस्तिष्क रोग भी है। इसे उन्माद भी कहते है। अनुष्ठान पध्दति केे अनुसार लग्न में चन्द्रमा को जब शनि या राहु देखते हो, तो जातक अपने को अकेला अनुभव करता है, जिससे रोग का आरम्भ होता हैं। यह रोग निराशा, दुःख, दर्द, शोक या पिशाच आदि से भी होता हैं। इस रोग के मुख्य लक्षण है - अधिक भोजन, हंसना, शोर मचाना, गाना, ज्यादा पानी पीना, ज्यादा बात करना, कभी-कभी अधिक बुध्दिमानी का कार्य करना आदि। जातक की लग्न कुण्डली में ग्रहों का निम्न संयोग इस बीमारी के लिए उत्तरदायी है -
1. लग्न में बृहस्पति।
2. शनि, मंगल सप्तम में, चन्द्रमा शनि या राहु के साथ 12 वों भाव में।
3. शनि लग्न में मंगल 5 या 7 वें में।
4. अत्यधिक कमजोर चन्द्रमा, पापी ग्रह लग्न 5 या 9 में।
5. शनि लग्न में, मंगल 3,6,8,12 भाव में।
6. कमजोर बुध 3,6,8,12 भाव में।
7. अष्टम का स्वामी चन्द्रमा या शुक्र के साथ 2,6,8,11,12 में।
8. राहु या केतु मंगल के साथ हो या उसे दूषित करते हो।
9. चन्द्रमा, बुध लग्न में।
10. सूर्य लग्न में, मंगल के साथ, राहु या शनि 8 वें में।
11. कमजोर चन्द्रमा मंगल के साथ, राहु या शनि 8 वें में।
12. चन्द्रमा, बुध एक साथ 6,8,12 में।
13. सूर्य, चन्द्रमा, लग्न या 5 या 9 में।
14. चन्द्रमा, शनि, केतु एक साथ मंगल से दृष्ट हों।
15. बृहस्पति, शनि 12 वें भाव में।
सामुद्रिक शास्त्र में इस रोग के निम्न लक्षण बताये गये है -
1. शनि पर्वत पर लाली एवं नक्षत्र का चिन्ह हो।
2. शनि पर्वत पर चन्द्रमा का निशान तथा पर्वत उत्पन्न हो।
3. मस्तिष्क रेखा पर यव हो।
4. आयु रेखा नीली तथा नख छोटे एवं लाल हो।
5. चन्द्रमा तथा मंगल पर्वत उत्पन्न हो।
6. मध्यमा के दूसरे पर्व पर नक्षत्र का निशान हो।
7. आयु रेखा को बहुत सी रेखा काटती हो।
8. शनि की अंगुली का पर्व अधिक लम्बा हो।
उपाय -
इस रोग की चिकित्सा ज्यादा महंगी और इस रोग को ठीक होने में ज्यादा समय लगता है। रंग, औषधि, स्नान, यज्ञ, दान आदि से भी इसकी चिकित्सा की जाती है। ज्योतिष के अनुसार इस रोग के निम्न उपाय है -
1. पन्ना 6 रत्ती, पीला पोखराज 4 रत्ती, मोती 5 रत्ती का पहनना चाहिए।
2. जब चन्द्रमा वृष में हो तो अनन्तमूल की जड़ लाल कपड़े में गले में धारण करें।
3. रोगी के कमरे में पर्दा, चादर हरे रंग का प्रयोग करें।
4. लाल रंग से रोगी को बचाये।
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यात्रा मुहूर्त


यात्रा मुहूर्त के बारे में बता रहा हूँ ।जिसके अंतर्गत चंद्रमा ,योगिनी ,भद्रा तथा दिक्शूल का विचार प्रमुख रूप से किया जाता है ।आठ दिशाएं होती है पूर्व और दक्षिण के बीच के कोण को अग्नि कोण ,दक्षिण और पश्चिम के मध्य नैरित्य्य दिशा ,पश्चिम और उत्तर के मध्य वायव्य तथा उत्तर पूर्व के मध्य को ईशान दिशा कहते है ।सोमवार और शनिवार को पूर्व दिशा में दिक्शूल होता है अर्थात यात्रा नहीं करनी चाहिए ,गुरुवार (वीरवार )को दक्षिण ,रवि तथा शुक्र को पश्चिम बुध और मंगल को उत्तर दिशा में यात्रा वर्जित है ।मेष ,सिंह ,धनु राशि का चन्द्रमा पूर्व में ,वृष कन्या मकर का चन्द्रमा दक्षिण में ,मिथुन तुला कुम्भ का चन्द्रमा पश्चिम में ,कर्क वृश्चिक मीन का चन्द्रमा उत्तर में निवास करता है ,सामने चन्द्र धन का लाभ ,पीछे चन्द्र धन का विनाश ,दाहिने सुख और सम्पत्ति, वाम (उलटे हाथ ) मृत्यु तुल्य कष्ट देता है ।चतुर्दशी को पूर्व ,अष्टमी को अग्नि कोण सप्तमी को दक्षिण ,पूर्णिमा को नैरित्य ,चतुर्थी को पश्चिम में,दशमी को वायव्य कोण ,एकादशी को उत्तर तथा तृतीया को इशान कोण में भद्रा का निवास होता है सामने भद्रा हो तो यात्रा नहीं करनी चाहिए 

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हनुमान


लाल देह लाली लसै ,अरु धरी लाल लंगूर ,बज्र देह दानव दलन जय जय जय कपि सूर … वाल्मीकि रामायण के अनुसार हनुमान एक वानर वीर थे।
(वास्तव में वानर एक विशेष मानव जाति ही थी, जिसका धार्मिक लांछन (चिह्न) वानर अथवा उसकी लांगल थी।
पुरा कथाओं में यही वानर (पशु) रूप में वर्णित हैं।)
भगवान राम को हनुमान ऋष्यमूक पर्वत के पास मिले थे। हनुमान जी राम के अनन्य मित्र, सहायक और भक्त सिद्ध हुए।
सीता का अन्वेषण करने के लिए ये लंका गए। राम के दौत्य(सन्देश देना, दूत का कार्य) का इन्होंने अद्भुत निर्वाह किया। राम-रावण युद्ध में भी इनका पराक्रम प्रसिद्ध है।
रामावत वैष्णव धर्म के विकास के साथ हनुमान का भी दैवीकरण हुआ। वे राम के पार्षद और पुन: पूज्य देव रूप में मान्य हो गये। धीरे-धीरे हनुमंत अथवा मारूति पूजा का एक सम्प्रदाय ही बन गया है।
कहते है अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता अस बर दीन जानकी माता यानि जो भी हनुमान जी का पूजक होगा उसे सभी सिद्धियाँ प्राप्त होंगी 'हनुमत्कल्प' में इनके ध्यान और पूजा का विधान पाया जाता है। रामभक्तों द्वारा स्नान ध्यान, भजन-पूजन और सामूहिक पूजा में हनुमान चालीसा और हनुमान जी की आरती के विशेष आयोजन किया जाता हैं।
अप्सरा पुंजिकस्थली (अंजनी नाम से प्रसिद्ध) केसरी नामक वानर की पत्नी थी। वह अत्यंत सुंदरी थी तथा आभूषणों से सुसज्जित होकर एक पर्वत शिखर पर खड़ी थी। उनके सौंदर्य पर मुग्ध होकर वायु देव ने उनका आलिंगन किया। व्रतधारिणी अंजनी बहुत घबरा गयी किंतु वायु देव के वरदान से उसकी कोख से हनुमान ने जन्म लिया। जन्म लेने के बाद हनुमान ने आकाश में चमकते हुए सूर्य को फल समझा और उड़कर लेने के लिए आकाश-मार्ग में गये। मार्ग में उनकी टक्कर राहु से हो गयी। राहु घबराया हुआ इन्द्र के पास पहुंचा और बोला- 'हे इन्द्र, तुमने मुझे अपनी क्षुधा के समाधान के लिए सूर्य और चंद्रमा दिए थे।
आज अमावस्या है, अत: मैं सूर्य को ग्रसने गया था, किंतु वहां तो कोई और ही जा रहा है।' इन्द्र क्रुद्ध होकर ऐरावत पर बैठकर चल पड़े। राहु उनसे भी पहले घटनास्थल पर गया। हनुमान ने उसे भी फल समझा तथा उसकी ओर झपटे। उसने इन्द्र को आवाज़ दी। तभी हनुमान ने ऐरावत को देखा। उसे और भी बड़ा फल जानकर वे पकड़ने के लिए बढ़े । इन्द्र ने क्रुद्ध होकर अपने वज्र से प्रहार किया, जिससे हनुमान की बायीं ठोड़ी टूट गयी और वे नीचे गिरे। यह देखकर पवनदेव हनुमान को उठाकर एक गुफ़ा में चले गये। संसार-भर की वायु उन्होंने रोक ली। लोग वायु के अभाव से पीड़ित होकर मरने लगे। मनुष्य-रूपी प्रजा ब्रह्मा के पास गयी। ब्रह्मा विभिन्न देवताओं को लेकर पवनदेव के पास पहुंचे। उनके स्पर्शमात्र से हनुमान ठीक हो गये। साथ आए देवताओं से ब्रह्मा ने कहा- 'यह बालक भविष्य में तुम्हारे लिए हितकर होगा। अत: इसे अनेक वरदानों से विभूषित करो।'
इन्द्र ने प्रसन्नता से स्वर्ण के कमल की माला देकर कहा- 'मेरे वज्र से इसकी हनु टूटी है, अत: यह हनुमान कहलायेगा। मेरे वज्र से यह नहीं मरेगा।'
सूर्य ने अपना सौंवा भाग हनुमान को दे दिया और भविष्य में सब शास्त्र पढ़ाने का उत्तरदायित्व लिया।
यम ने उसे अपने दंड से अभय कर दिया कि वह यम के प्रकोप से नहीं मर पायेगा।
वरुण ने दस लाख वर्ष तक वर्षादि में नहीं मरने का वर दिया।
कुबेर ने अपने अस्त्र-शस्त्रों से निर्भय कर दिया।
महादेव ने किसी भी अस्त्र से न मरने का वर दिया।
ब्रह्मा ने हनुमान को दीर्घायु बताया और ब्रह्मास्त्र से न मरने का वर दिया। साथ ही यह वर भी प्रदान किया कि वह इच्छानुसार रूप धारण करने में समर्थ होगा।
विश्वकर्मा ने अपने बनाये अस्त्र-शस्त्रों से उसे निर्भय कर दिया।
वर-प्राप्ति के उपरांत हनुमान उद्धत भाव से घूमने लगे। यज्ञ करते हुए मुनियों की सामग्री बिखेर देते या उन्हें तंग करते। पिता वायु और केसरी के रोकने पर भी वे रूकते नहीं थे। अंगिरा और भृगुवंश में उत्पन्न ऋषियों ने क्रुद्ध होकर उन्हें शाप दिया कि ये अपने बल को भूल जायें। जब कोई उन्हें फिर से याद दिलाए तब उनका बल बढ़े।
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गणेश


गणेश भारत के अति प्राचीन देवता हैं। ऋग्वेद में गणपति शब्द आया है। यजुर्वेद में भी ये उल्लेख है। अनेक पुराणों में गणेश की विरुदावली वर्णित है। पौराणिक हिन्दू धर्म में शिव परिवार के देवता के रूप में गणेश का महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्रत्येक शुभ कार्य से पहले गणेश की पूजा होती है। गणेश को यह स्थान कब से प्राप्त हुआ, इस संबंध में अनेक मत प्रचलित है।
धार्मिक मान्यतानुसार हिन्दू धर्म में गणेश जी सर्वोपरि स्थान रखते हैं। सभी देवताओं में इनकी पूजा-अर्चना सर्वप्रथम की जाती है। श्री गणेश जी विघ्न विनायक हैं। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेश जी का जन्म हुआ था। ये शिव और पार्वती के दूसरे पुत्र हैं। भगवान गणेश का स्वरूप अत्यन्त ही मनोहर एवं मंगलदायक है। वे एकदन्त और चतुर्बाहु हैं। अपने चारों हाथों में वे क्रमश: पाश, अंकुश, मोदकपात्र तथा वरमुद्रा धारण करते हैं। वे रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा पीतवस्त्रधारी हैं। वे रक्त चन्दन धारण करते हैं तथा उन्हें रक्तवर्ण के पुष्प विशेष प्रिय हैं। वे अपने उपासकों पर शीघ्र प्रसन्न होकर उनकी समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं। एक रूप में भगवान श्रीगणेश उमा-महेश्वर के पुत्र हैं। वे अग्रपूज्य, गणों के ईश, स्वस्तिकरूप तथा प्रणवस्वरूप हैं।
अनन्त नाम
निम्नलिखित बारह नाम अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। इन नामों का पाठ अथवा श्रवण करने से विद्यारम्भ, विवाह, गृह-नगरों में प्रवेश तथा गृह-नगर से यात्रा में कोई विघ्न नहीं होता है।
सुमुख
एकदन्त
कपिल
गजकर्णक
लम्बोदर
विकट
विघ्ननाशक
विनायक
धूम्रकेतु
गणाध्यक्ष
भालचन्द्र
विघ्नराज
द्वैमातुर
गणाधिप
हेरम्ब
गजानन

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लाभ के योग (Source of Income):


ग्यारहवाँ स्थान आय स्थान कहलाता है। इस स्थान में स्थित राशि व ग्रह पर आय स्थिति निर्भर करती है। इसका स्वामी निर्बल होने पर कम आय होती है। यदि यह स्थान शुभ राशि का है या शुभ ग्रह से दृष्ट है तो आय सही व अच्छे तरीके से होती है। यदि यहाँ पाप प्रभाव हो तो आय कुमार्ग से होती है। दोनों तरह के ग्रह होने पर मिलाजुला प्रभाव रहता है।
इसी तरह यदि लाभ भाव में कई ग्रह हो या कई ग्रहों की दृष्टि हो तो आय के अनेक साधन बनते हैं। हाँ, यदि शुभ आयेश पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो या आयेश कमजोर हो तो आय के साधन अवरुद्ध ही रहते हैं। आयेश शुभ ग्रहों के साथ हो, शुभ स्थान में हो तो भी आय के साधन ‍अच्छे रहते हैं।
* शनि-मंगल के कारण बनने वाले योग व्यक्ति को साधारण धनवान बनाते हैं।
* सूर्य-चंद्रमा से बनने वाले योग व्यक्ति को लखपति बना देते हैं।
* बुध, बृहस्पति और शुक्र से बनने वाले योग व्यक्ति को अथाह धन-संपदा का लाभ करा

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शुभ धन दायक योग:


शुभ धन दायक योग:
1. शुक्र का एक या अधिक लगनो से बारहवेम भाव में विराजमान होना.
2. लग्न दूसरे नवें और ग्यारहवें भाव के बलवान स्वामियों का परस्पर युति अथवा द्रिष्टि द्वारा संबन्ध होना.
3. पाराशरीय योगों के बाहुल्य होना,जैसे नवें,दसवें भाव के स्वामियों का सम्बन्ध चौथे पांचवें भावों के स्वामियों का सम्बन्ध,शुभ सप्तमेश और नवमेश का सम्बन्ध,सप्तमेश और पंचमेश का आपसी सम्बन्ध भी ध्यान में रखना पडता है.
4. खराब भावों तीसरे,छठे,आठवें,और बारहवें, के स्वामियों का अपनी राशियों से बुरे भावों अथवा दूसरे बुरे भावों में विराजमान होना,और केवल बुरे भावों के बुरे ग्रहों के द्वारा ही देखा जाना,उदाहरण के लिये मेष लग्न हो और बुध आठवें भाव में पडा हो,और शनि के पाप प्रभाव में हो तो बुध बहुत ही कमजोर हो जायेगा,कारण वह एक तो अनिष्टदायक आठवें भाव में है,दूसरे वह शत्रु राशि में है,तीसरे वह शनि द्वारा द्रिष्ट है,चौथे वह छठे स्थान से तीसरा होकर छठे के लिये बुरा है,ऐसी स्थिति में बुध की यह निर्बल स्थिति तीसरे और छठे भावों की अशुभता को खत्म करने के कारण विपरीत राजयोग को पैदा करेगी और धन दायक स्थिति पैदा करेगी.
5. लग्न के स्वामी चन्द्र लग्न के स्वामी,सूर्य लग्न के स्वामी,और नवमांश में लग्न,चन्द्र लग्न,और सूर्य लग्न, के स्वामियों का परस्पर सम्बन्ध भी धन के मामले में सूचना देगा.
6. शुक्र का गुरु द्वारा बारहवें बैठना.
7. चार अथवा चार से अधिक भावों के स्वामियों द्वारा खुद को देखा जाना.
8. अधियोगों की उपस्थिति यानी सूर्य से लग्न से चन्द्र से सातवें और आठवें शुभ ग्रहों की स्थिति का होना.
9. सुदर्शन पद्धति से तीनो ही लग्नों से किसी ग्रह का शुभ बन जाना.
10. किसी भी शुभ ग्रह द्वारा मूल्य का प्राप्त कर लेना,अर्थात दूसरे और ग्यारहवें स्थान के अधिपति गुरु द्वारा युक्त होना या देखा जाना,अथवा बुध द्वारा युक्त होना या देखा जाना,अथवा सूर्य,चन्द्र या नवांश के राशि स्वामी का गुरु के द्वारा अधिष्ठित होना.
11. सूर्य अथवा चन्द्र का नीच भंग होना.
12. किसी उच्च ग्रह का शुभ स्थान में होना तथा उस स्थान के स्वामी का पुन: उच्च में जाना

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आर्थिक घाटे (Financial Losses):


आर्थिक घाटे (Financial Losses):
पंचम शनि शनि की साढेसाती (Shani Sade Sati) व ढैया (Shani Dhaiya) के आर्थिक मामलों के लिए अच्छा नही समझा जाता है. इसके अतिरिक्त शनि की एक और स्थिति है जो आर्थिक स्थिति के सबसे अधिक प्रभावित करती है. जिसे पंचम शनि (Pancham Shani) के नाम से जाना जाता है.
कुण्डली मे चन्द्र से पांचवे घर मे शनि के गोचर करने के पंचम शनि (Pancham Shani) का नाम दिया गया है.
सामान्य रुप से कुण्डली पांचवे घर क उच्च शिक्षा, संतान व प्रेम प्रसंग का घर माना जाता है. ज्योतिषिय अध्ययन से यह ज्ञात हुआ है की आर्थिक रुप से देखने पर शनि की साढेसाती (Shani Sade Sati) व ढैया (Shani Dhaiya) से भी अधिक कष्टकारी है शनि का चन्द्र से पांचवे घर पर गोचर करना है.
पांचवे घर मे शनि को इसलिए आर्थिक रुप से अच्छा नही समझा जाता है. क्योंकी पांचवे घर से शनि अपनी तीसरी दृष्टि से सांतवे घर के देखते है. जो साझेदारी व्यापार का घर है. शनि के देखने से इस घर से मिलने वाले शुभ फलों मे कमी आती है. और साझेदारी व्यापार लाभ के स्थान पर हानि देने की स्थिति मे आ जाता है.
शनि की सांतवी दृष्टि ग्यारहवे घर जिसे आय का घर कहते है. पर होने से व्यक्ति की आय मे कमी होती है. आय रुक रुक कर आती है. तथा बडे भाईयों से भी संबध खराब होते है. व्यक्ति के अपनी मेहनत का पूरा फल न मिल पाने के कारण व्यक्ति निराशा मे घिर जाता है. और अपनी मेहनत मे कमी करने लगता है. जो उसकी बर्बादी की पहली सीढी बनता है.
पांचवे घर पर शनि के गोचर मे शनि अपनी दसंवी दृष्टि से दूसरे घर के देखता है. दूसरा घर धन का घर है. इससे व्यक्ति के संचय के देखा जाता है. इस घर मे शनि के गोचर से पूरे ढाई साल तक व्यक्ति के धन प्राप्ति की संभावनाएं मात्र स्वपन बनकर रह जाती है.
यह भी देखने मे आया है की ढाई वर्ष के समाप्त होते होते व्यक्ति ऋण के नीचे इस कदर दब जाता है की स्थिति चिन्ताजनक हो जाती है. जिस प्रकार शनि की साढेसाती (Shani Sade Sati) व ढैया (Shani Dhaiya) की अवधि आर्थिक मामलों के लिए लाभ दायक भी हो सकती है . उसी प्रकार पंचम शनि (Pancham Shani) भी लाभ दायक हो सकते है. परन्तु शनि से मात्र लाभ की कामना करना दिन मे तारे तलाशने के समान है.

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