Monday 4 July 2016

ज्योतिष के मिथक ‘‘नाड़ी दोष’ की पुनः व्याख्या क्यों नहीं ???

ज्योतिषषास्त्र के बहुत से मिथक हैं, जिनमें से एक प्रमुख है जिसपर खुली बहस होनी चाहिए वह है ‘‘नाड़ी दोष’’। खासकर जब ज्योतिष को विज्ञान मानते हों तो फिर तर्क की कसौटी पर मान्यताओ को कसना चाहिए। जहाँ पर 18 गुन विवाह का न्यूनतम पैमाना हो वहाॅ 28 और 32 गुणों में तलाक होना एक विडम्बना ही है..... नाड़ी की व्याख्या करने वाले बड़े गर्व से इसे संतान की वजह और कभी वैचारिक ऐक्यता की वजह बना कर बहुत से अच्छे सम्बन्धों को मना कर देते है। यह भी एक बड़ा सवाल है कि सिर्फ ब्राम्हणो में ही नाड़ी दोष क्यों ? बाकि जातियो पर ये असर कारक क्यों नहीं होता? क्या विवाह के मेलापक में जातिगत आधार इसे विज्ञान की जगह मान्यता की श्रेणी में नहीं खड़े नहीं कर रहे है ? इस पर भी समाधान कराने से ये दोष दूर भी हो सकते है ! बहुत सारे प्रश्न लोग मुझसे करते है मैं वही प्रश्न ज्यो का त्यों समाज के सामने रख रहा हूॅ। विवाह मानव जीवन का सबसे महत्वपूर्ण संस्कार है। इस संस्कार में बंधने से पूर्व वर एवं कन्या के जन्म नामानुसार गुण मिलान करके की परिपाटी है। गुण मिलान नही होने पर सर्वगुण सम्पन्न कन्या भी अच्छी जीवनसाथी सिद्व नही होगी और नंबर के आधार पर नकार दिया जाता है। गुण मिलाने हेतु मुख्य रुप से अष्टकूटों का मिलान किया जाता है। ये अष्टकुट है वर्ण, वश्य, तारा, योनी, ग्रहमैत्री, गण, राशि, नाड़ी। विवाह के लिए भावी वर-वधू की जन्मकुंडली मिलान करते नक्षत्र मेलापक के अष्टकूटों (जिन्हे गुण मिलान भी कहा जाता है) में नाडी को सबसे महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है। वैदिक ज्योतिष के मेलापक प्रकरण में गणदोष, भकूटदोष एवं नाडी दोष - इन तीनों को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है। यह इस बात से भी स्पष्ट है कि ये तीनों कुल 36 गुणों में से (6़7़8=21) कुल 21 गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं और शेष पाँचों कूट (वर्ण, वश्य, तारा, योनि एवं ग्रह मैत्री) कुल मिलाकर (1़2़3़4़5=15) 15 गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं। अकेले नाडी के 8 गुण होते हैं, जो वर्ण, वश्य आदि 8 कूटों की तुलना में सर्वाधिक हैं। इसलिए मेलापक में नाड़ी दोष एक महादोष माना गया है। समाज में होते लगातार तलाक इस वर्षो से स्थापित धारणा, पर पुनः विचार करने को मजबूर कर रहे है। आप कहेंगे की समाज में बदलते परिवेश मान्यताए और कानून इसके लिए दोषी है, पर इससे बात नहीं बनती। बल्कि हमें भी अपने ज्योतिषीय नियमो में बदलाव लाने के लिए प्रेरित करती हैं। जैसे ज्यादातर सामाजिक कानूनो की इन दिनों समीक्षा हो रही है हमे भी एक बार फिर से चिंतन करना होगा, नियमो की पुनः व्याख्या करनी होगी, और गुण मेलापक को अर्थात् ज्योतिष को विज्ञान साबित करने के लिए यह करना आवष्यक भी है।

No comments: