Thursday 3 November 2016

रखें आभार का भाव और करें अहंकार को दूर

भारतीय संस्कृति में व्यक्ति को हिन्दू धर्म में प्रकृति को हर तरह से पूजा गया है, चाहे वह वायू, जल, पृथ्वी, अग्नि या आकाश हो. चाहे वह पहाड़ हो या कोई जीव जन्तु या हमारी वन्य सम्प्रदा, इस प्रकार से हम प्रकृति के हर रूप की पूजा करते है, अर्थात् हमारी संस्कृति में ही आभार का भाव है, जो भी हमें कुछ देता है हम उसकी पूजा करते हैं। देवता अर्थात् जो देता है वहीं देवता है। इसलिए प्रकृति के वे तत्व जो हमें जीवित रखने में सहयोग देते हैं हम उसे देवता मानकर उसके प्रति कृतज्ञ होते हैं। साथ ही उपकारी के प्रति आभार का भाव रखना ही कृतज्ञ होना है। किंतु अंहकार के कारण किसी के प्रति कृतज्ञता का भाव नहीं आता और हम जो मिला उसके लिए थैंक्सफुल होने की अपेक्षा जो प्राप्त नहीं है उसके लिए दूसरो अथवा ईष्वर को दोष देते रहते हैं। अथवा जो मिला उसमें अपना ही कर्म मानकर किसी के प्रति कृतज्ञ ना होना भी अहंकार का प्रतीक है। अतः यदि इसे कुंडली से देखा जाए तो लग्न, तीसरा अथवा भाग्य भाव का कारक ग्रह यदि प्रतिकूल हो तो ऐसे लोग किसी के भी प्रति कृतज्ञ नहीं होते। वहीं अगर लग्न, तीसरे स्थान में सूर्य अथवा शनि जैसे ग्रह होकर विपरीत कारक हों तो ऐसे लोग अहंकार के कारण कृतध्न होते हैं। अतः यदि आपके जीवन में थैंक्स की कमी हो अथवा आपके लिए धन्यवाद शब्द महत्वपूर्ण ना हो तो कई यह आपके जीवन में सफलता में कमी का कारण भी हो सकता है क्येांकि लग्न, तीसरे अथवा भाग्यभाव यदि विपरीत हो तो सफलता प्राप्ति में कमी या देरी होती है। अतः सफलता प्राप्ति हेतु अपने जीवन में कृतज्ञता का समावेष कर जीवन में सुख-समृद्धि तथा शांति प्राप्त की जा सकती है।

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