Friday 4 November 2016

मातृनवमी श्राद्ध

श्राद्धपक्ष का एक दिन महिलाओं को समर्पित होता है। इस दिन को मातृनवमी के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि परिवार में जिन महिलाओं की मृत्यु हुई है उनकी आत्मा की संतुष्टि के लिए यह तिथि उत्तम है। आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि पर पितृगणों की प्रसन्नता हेतु ‘नवमी का श्राद्ध’ किया जाता है। यह तिथि माता और परिवार की विवाहित महिलाओं के श्राद्ध के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है। नवमी तिथि का श्राद्ध मूल रूप से माता के निमित्त किया जाता है। इस श्राद्ध के दिन का एक और नियम भी है। इस दिन पुत्रवधुएं भी व्रत रखती हैं, यदि उनकी सास अथवा माता जीवित नहीं हो तो। इस श्राद्ध को सौभाग्यवती श्राद्ध भी कहा जाता है। शास्त्रानुसार नवमी का श्राद्ध करने पर श्राद्धकर्ता को धन, संपत्ति व ऐश्वर्य प्राप्त होता है तथा सौभाग्य सदा बना रहता है।
मातृ नवमी के श्राद्ध की विधि इस प्रकार है-
नवमी श्राद्ध में पांच ब्राह्मणों और एक ब्राह्मणी को भोजन करवाने का विधान है। सर्वप्रथम नित्यकर्म से निवृत होकर घर की दक्षिण दिशा में हरा वस्त्र बिछाएं। पितृगण के चित्र अथवा प्रतीक हरे वस्त्र पर स्थापित करें। पितृगण के निमित, तिल के तेल का दीपक जलाएं, सुगंधित धूप करें, जल में मिश्री और तिल मिलाकर तर्पण करें। अपने पितरों के समक्ष गोरोचन और तुलसी पत्र समर्पित करना चाहित्य। श्राद्धकर्ता को कुआसन पर बैठकर भागवत गीता के नवें अध्याय का पाठ करना चाहित। इसके उपरांत ब्राह्मणों को लौकी की खीर, पालक, मूंगदाल, पूड़ी, हरे फल, लौंग-इलायची तथा मिश्री अर्पित करें। भोजन के बाद सभी को यथाशक्ति वस्त्र, धन-दक्षिणा देकर उनको विदा करने से पूर्व आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए।

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