Sunday 19 June 2016

छोटे बच्चों को असाध्य रोग-कारण पितृदोष

हिंदू दर्शन के अनुसार, मृत्यु के बाद मात्र यह भौतिक शरीर ही नष्ट होता है, सूक्ष्म शरीर जन्म-जन्मांतरों तक आत्मा के साथ संयुक्त रहता है। यह सूक्ष्म शरीर ही जन्म-जन्मांतरों के शुभ-अशुभ संस्कारों का वाहक होता है। ये संस्कार मनुष्य के पूर्वजन्मों से ही नहीं आते, अपितु माता-पिता के संस्कार भी उसमें (सूक्ष्म शरीर में) प्रविष्ट होते हैं, जिससे मनुष्य का व्यक्तित्व इन दोनों से ही प्रभावित होता है। प्राचीन काल में हमारा प्रत्येक कार्य संस्कार से आरम्भ होता था। किंतु आधुनिकता के चक्कर में पड़कर हम संस्कारों को नजरअंदाज कर देते हैं, जिसका लंबे अंतराल में प्रभाव दिखाई देता है। किसी बच्चे के जन्म के पीछे उस वंश का अंश होता है अतः यदि किसी बच्चे में जन्म से या तत्काल बाद से कोई गंभीर बीमारी दिखाई दे या स्वास्थ्यगत कष्ट हो तो दिखाए कि उसकी कुंडली में प्रमुख ग्रह कहीं राहु से पापाक्रांत तो नहीं हैं। क्योंकि गंभीर बीमारी की स्थिति कुंडली में स्पष्ट दिखाई देती है तथा उस बीमारी की शुरूआत का समय भी कुंडली में गोचर होता है। क्योंकि राहु अनुवाशिंक दोष का वाहक होता है अतः प्रमुख ग्रह एवं उस स्थान का ग्रह राहु से आक्रांत हो तो जिस स्थान तथा ग्रह को राहु आक्रांत करता है, उस स्थान तथा ग्रह से संबंधित बीमारी होती है। बच्चे को यदि कोई बीमारी दिखाई दे तो चिकित्सकीय सलाह के साथ कुंडली का परीक्षण कराया जाना चाहिए। साथ ही संबंधित ग्रह की शांति के साथ पितृशांति भी कराया जाना विशेषलाभकारी होता है।






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