माघ माह के शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा से गुप्त नवरात्र की शुरूआत होती है और इसमें नवमी को श्री महानंदा नवमी व्रत किया जाता है। माना जाता है कि इस दिन अज्ञात कारणों से किसी के जीवन में सुख-समृद्धि की कमी हुई हो तो इस नवरात्र में नवमी के दिन महानंदा नवमी की पूजा व्रत तथा दान-मंत्र जाप करने से व श्री की देवी की पूजन विधि विधान से करने से दारिद्रय सामाप्त होकर संपन्नता तथा विष्णुलोक की प्राप्ति होती हैं इस दिन पूजनस्थल के मध्य में एक बड़ा अखण्ड दीपक जलाकर रात्रि जागरण एवं ओं हृीं महालक्ष्म्यै नमः इस महालक्ष्मी मंत्र का जप करना चाहिए तथा ब्रम्ह मूहुर्त में घर का कूड़ा रखकर सूपे में रखकर बाहर ले जाना चाहिए, इसे अलक्ष्मी का विसर्जन कहते हैं तथा हाथ-पैर धोकर दरवाजे पर खडे होकर महालक्ष्मी का आवाहन करना चाहिए। रात्रि में पूजन के उपरांत व्रत का पारण करना तथा कुॅवारी कन्या से आशीर्वाद लेना विशेष शुभ होता है।
जिस किसी की भी कुंडली में अष्टम स्थान में राहु या शुक्र, द्वितीयेश, एकादशेश, भाग्येश या धनप्रदाता ग्रह राहु से पापाक्रांत होकर विपरीत कारक हो तो उसे गुप्त नवरात्र में श्री की देवी की विधिवत पूजा कर महानंदा नवमी व्रत का पालन, कुंवारी कन्याओं को भोज और महालक्ष्मी के मंत्रों का जाप तथा विधि विधान से हवन पूजा करना चाहिए इससे दारिद्रय समाप्त होकर श्री की प्राप्ति होती है।
जिस किसी की भी कुंडली में अष्टम स्थान में राहु या शुक्र, द्वितीयेश, एकादशेश, भाग्येश या धनप्रदाता ग्रह राहु से पापाक्रांत होकर विपरीत कारक हो तो उसे गुप्त नवरात्र में श्री की देवी की विधिवत पूजा कर महानंदा नवमी व्रत का पालन, कुंवारी कन्याओं को भोज और महालक्ष्मी के मंत्रों का जाप तथा विधि विधान से हवन पूजा करना चाहिए इससे दारिद्रय समाप्त होकर श्री की प्राप्ति होती है।
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