कोर्ट कचहरी व मुकदमे ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ जाने से हर कोई बचना चाहता हैं। लेकिन कुछ परिस्थितिया ऐसी बन जाती हैं जिनके कारण व्यक्ति को न्यायालय जाना पड जाता हैं। कोई व्यक्ति अपने जीवन में कितनी बार और कब कब कोर्ट कचहरी के चक्कर लगायेगा यह जन्म कुंडली में ग्रहो की स्थिति पर निर्भर करता हैं। कई बार यह देखा हैं की शुभ ग्रहो की दशा में भी न्यायालय जाना पड जाता हैं महत्वाकांक्षा ही व्यक्ति से नैतिक- अनैतिक, वैधानिक- अवैधानिक, सामाजिक-असाजिक कार्य कराती है साथ ही किसी विषय पर विवाद, कोई गुनाह, संपत्ति से संबंधित झगड़े इत्यादि का होना आपकी कुंडली में स्पष्ट परिलक्षित होता है। अगर इस प्रकार के कोई प्रकरण न्यायालय तक पहुॅच जाए तो उसमें जय प्राप्त होगी या पराजय का मुॅह देखना पड़ सकता है इसका पूर्ण आकलन ज्योतिष द्वारा किया जाना संभव है। सामान्यतः कोर्ट-कचहरी, शत्रु प्रतिद्वंदी आदि का विचार छठे भाव से किया जाता है। सजा का विचार अष्टम व द्वादश स्थान से इसके अतिरिक्त दसम स्थान से यश, पद, प्रतिष्ठा, कीर्ति आदि का विचार किया जाता है। साथ ही सप्तम स्थान में साझेदारी तथा विरोधियों का प्रभाव भी देखा जाता है। इन सभी स्थान पर यदि क्रूर, प्रतिकूल ग्रह बैठे हों तो प्रथमतया न्यायालयीन प्रकरण बनती है। इनकी दशाओं एवं अंतदशाओं में निर्णय की स्थिति में जय-पराजय का निर्धारण किया जा सकता है।
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