विरक्त और निर्मोही व्यक्ति को छोड़ के ऐसा कोई व्यक्ति नही है. जिनको धन-प्राप्ति की आकांक्षा ना हो. सब लोग उनके लिए सतत प्रयत्नशील होते है. फिर भी हम देखते है की कठिन से कठिन मेहनत करने के बावजूद भी यथा-योग्य धन नहीं मिलता. सिर्फ जीवन की आवश्यकता अनुसार मिलता है या फिर आवश्यकता के हिसाब से नहीं मिलता. और जब आवश्यकता से कम मिलता है तो हमें उसके लिए कर्ज लेना पड़ता है। जन्म-कुंडली में दों भाव (स्थान) धन-विषयक है. (१) द्वितीय - धन स्थान (२) एकादशम - लाभ। ग्यारवें भाव को आय का भाव माना गया है। कर्ज लेना आज के युग में बुरा या कष्टकारी नहीं है किंतु कई बार योजना या परिस्थिति के अनुकूल ना होने से यही कर्ज दुख, परेषानी तथा अपयष का कारण भी बनता हैं। ज्योतिष में अर्थ प्राप्ति और अर्थ संचय का ज्ञान जन्म पत्रिका के प्रथम, द्वितीय, पंचम, नवम, दषम और एकादष भाव से होता है। प्रथम भाव से जातक के संपूर्ण व्यक्तित्व व स्वास्थ्य का आकलन करते हैं। द्वितीय भाव से जातक के संचय धन, पंचम से धन प्राप्ति हेतु आचरण, नवम से धन प्राप्ति हेतु भाग्य, दषम से व्यवसाय तथा एकादष भाव से लाभ का ज्ञान होता है। इन स्थानों के स्वामी ग्रह के अनुकूल या प्रतिकूल स्थिति से धन की स्थिति का आकलन किया जा सकता है साथ ही इन स्थानों पर स्थित ग्रह की अनुकूलता या प्रतिकूलता का प्रभाव भी जातक के धन संबंधी विषय पर पड़ता है। चूॅकि छठवे स्थान से ऋण देखा जाता है अतः उपरोक्त स्थानों से संबंधित ग्रह का संबंध किसी भी प्रकार से छठवे स्थान से बनना उसके ऋण या कर्ज की स्थिति को प्रदर्षित करता है। यदि जातक की कुंडली में छठा भाव या छठवे भाव का स्वामी अस्त, नीच, शत्रुराषि या पीड़ित या कमजोर हो तो व्यक्ति कर्ज से मुक्त रहता है इसके विपरीत कर्ज लेने से लेकर पटने की दषा, ग्रहों की स्थिति तथा संबंध जीवन को सुखमय या दुखमय बनाती हैं। कई बार छठवे स्थान का स्वामी अनुकूल होने पर कर्ज से समृद्धि का भी कारक होता है। ज्योतिषीय मान्यता है कि कर्ज से संबंधित ग्रहों या स्वामियों का राहु से संबंध या राहु का अष्टम या भाग्य स्थान में होने भी आकस्मिक हानि दर्षाती है अतः कर्ज लेकर हानि उठाकर दोहरे कष्ट हो सकते हैं। यदि कोई जातक कर्ज से बहुत परेषान है साथ ही कर्ज किसी भी विधि से उतर ना रहा हो तो जातक को कर्ज मुक्ति हेतु निम्न उपाय करने से लाभ होगा। निम्न मंत्र पढ़े
‘‘ सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वितः मनुष्यों मत्प्रसादेन भविष्यति न संषयः’’
इसके साथ ही शनिवार का व्रत, काली वस्तुओं विशेषकर तिल का दान और शनि मंत्र अथवा कर्ज मुक्ति का मंत्र जाप करना चाहिए।
‘‘ सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वितः मनुष्यों मत्प्रसादेन भविष्यति न संषयः’’
इसके साथ ही शनिवार का व्रत, काली वस्तुओं विशेषकर तिल का दान और शनि मंत्र अथवा कर्ज मुक्ति का मंत्र जाप करना चाहिए।
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