Friday 2 December 2016

शुक्र ग्रह का रत्न हीरा

कठोरता में हीरे के मुकाबले कोई खनिज या रत्न नहीं टिकता है वरन् ऐसे गुण विद्यमान होते हैं जो इसे ज्योतिष में महत्वपूर्ण बना देते हैं। गरुड़ पुराण में कहा गया है कि सर्वश्रेष्ठ हीरा वह है जो विशेष प्रकार की दमकयुक्त हो। अगर जातक की कुंडली में शुक्र अशुभ स्थान में हो, तो जातक जीवन भर धन वैभव व विवाह संबंधी परेशानियों से ग्रस्त रहते हैं। ऐसे में अशुभ और क्षीण शुक्र को प्रभावी और शक्तिशाली बनाने के लिए हीरा धारण करने की सलाह दी जाती है, परंतु यह भी सत्य है कि हीरा भाग्यवान लोग ही धारण कर पाते हैं। आमतौर पर हीरा श्वेत रंग का ही होता है पर अनेक रंगों में भी यह मिलता है जिसके अनेक उपयोग हैं: - बसंती हीरा गेंदा, गुलदाऊदी या पुखराज के रंग का होता है और इसे स्वयं भगवान शिव धारण करते हैं। - कमलापति हीरा अनार या गुलाब रंग के कमल पुष्प के वर्ण का होता है, जिसे विष्णु भगवान धारण करते हैं। - हंस या बगुले के पंख के समान तथा दूध व दही के समान श्वेतवर्ण के हंसपति हीरा को ब्रह्मदेव धारण करते हैं। - वज्रनील हीरा पक्षी के समान श्वेत नीलवर्ण का होता है और इसे इन्द्रदेव धारण करते हैं। - वनस्पति हीरा सिरस पत्र के रंग की तरह होता है जिसे यमराज धारण करते हैं। - हीरा को धारण करने के लिए पूर्वाषाढ़ा या पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र सर्वश्रेष्ठ होता है। उस दिन शुक्रवार होना चाहिए। इसे प्राण-प्रतिष्ठित करवाकर ही धारण करना उचित है। चिकित्सा में हीरों का प्रयोग विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों में हीरों का प्रयोग भिन्न-भिन्न तरह से किया जाता है। आयुर्वेद में हीरों को जलाकर उनकी भस्म तैयार करते हैं जो शहद या अन्य दवाइयों के साथ मिलाकर रोगी को खिलाते हैं। यूनानी चिकित्सा पद्धति में आयुर्वेद की भस्मों के समान इन हीरों के कुश्ते तैयार किये जाते हैं। होमियोपैथी में हीरों से दवाई तैयार की जाती है जिसकी विधि इस प्रकार है: हीरा रत्नौषधि जल: लगभग तीस मिलीलीटर की एक शीशी लेकर उसमें एक ड्राम शुद्ध स्पिरिट डाल दी जाती है। उसमें वह हीरा डाल दिया जाता है, जिससे दवाई तैयार करनी है और उसे 7 दिन तक अंधेरे में रख दिया जाता है। उसके बाद उस शीशी को अच्छी तरह हिलाया जाता है और स्पिरिट किसी दूसरी शीशी में डालकर उसमें शुगर मिल्क की बनी गोलियां डाल दी जाती हैं। जब उसी शीशी को हिलाया जाता है तो हीरे से बनी दवाई का असर उसमें आ जाता है। जिस हीरे को शीशी में डाला गया था, वह फिर संभाल के रख लिया जाता है, क्योंकि उसकी शक्ति समाप्त नहीं होती और जितनी बार चाहें उसका इस्तेमाल कर सकते है।

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