'चन्द्र नाडी हैं में अधि योग के चन्द्रग्रधियोग में उत्पन्न होने वाला मनुष्य विख्यात, धनी और यशस्वी होता है । वह छोड़े, पालकी तथा अन्य वाहनादि से संयुक्त, सुशील पुत्रों वाला, सुशीला स्वी वाला, भाग्यवान, महान एवं कीर्ति, प्रभाव, साहस बाला तथा देषा/देशान्तर में प्रसिद्ध होता है । शास्त्रों में जहां अधि योग का उल्लेख हुआ है, वहां प्राय चन्द्रऱधियोणा से ही अभिप्राय है । कहीं-कहीं लम्माधियोग का भी उल्लेख मिलता है । यदि चन्द्र से छठे, सातवें तथा आठवें स्थान में सभी नैसर्गिक शुभ ग्रह स्थित हो, उन पर पाप ग्रहों का प्रभाव न हो और वे सूर्य से कू हो, तो मनुष्य राजाओं का भी राजा अर्थात् बहुत धनवान, बलवान एबं ऐश्चर्यंवान होता है । वस्तुत: चंद के बलवान होने से मनुष्य को धन की जितनी प्राप्ति होती है, उतनी किसी अन्य योग से नहीं होती । दरिद्गतादायक "शकट योग' की नींव में चन्द्र की निर्बलता छिपी रहती है । केमदुम भी एक दरिद्रतादायक रोग है । यहा भी चन्द के दोनों ओर शुभ प्रभाव की अनुपस्थिति ही दरिद्रता का भूल कारण बनती है । चन्दाधियोग की शुभता इस कारण से नहीं होती कि नैसर्गिक शुभ ग्रहों की स्थिति किन्हीं विशिष्ट स्थानों में है । इस शुभता का कारण उल्लिखित स्थिति द्वारा चन्द की यल वृद्धि होती है । इस योग के अनुसार, जब कोई नैसर्गिक शुभ ग्रह चन्द्र है सप्तम में स्थित हो, तो उसकी शुभ दृष्टि का लाभ चन्द को पहुंचेगा । अतएव चन्द्र बलवान हो जाएगा । इसी प्रकार चन्द से छठे स्थान में स्थित शुभ ग्रह की स्थिति चन्द से द्वादश स्थान पर और उससे अष्टम स्थान में स्थित शुभ ग्रह की स्थिति चन्द से द्वितीय स्थान पर अपनी अपनी पूर्ण सप्तम दृष्टि द्वारा शुभ प्रभाव डालेगी ।इसका परिणाम यह होगा कि चन्द के दोनों ओर शुभ प्रभाव पडेगा । इस प्रकार चन्द को सुनफा, अनफा एवं दुर्धरा-त्तीनों रोगों की राजा प्राप्त होगी । इसके लिए यह जरूरी है कि चन्द से छठे, सातवें एवं आठवें…तीनों स्थानों में शुभ ग्रह स्थित हों, तभी यह शुभ रोग बनेगा । यदि चन्द से मसम स्थान में सभी शुभ ग्रह हों तो फल अच्छा होगा, किन्तु चन्दाधियोग की शर्तें पा नहीं होंगी । इस सन्दर्भ में एक बात अवश्य याद रखनी चाहिए । गुरु, शुक्र, बुध आदि शुभ यह जो चन्द्र से छठे, प्तातवें तथा आठवें हो, वे भी निर्जल न हों । क्योंकि यदि वे निर्बल हुए तो उनकी दृष्टि का चन्द को बहुत कम लाभ मिलेगा। इसलिए चन्द्रग्रधियोग पूर्ण रूप से फल नहीं दे सकेगा । इस विषय में 'सारावली' में कहा गया है कि उक्त तीनों शुभ ग्रह सूर्यं से दृपु होने चाहिए । क्योंकि शुक्र तथा बुध दो ऐसे ग्रह हैं, जिनके सूर्य के समीप रहने के कारण निर्बल तथा क्षीण हो जाने की अधिक सम्मावना रहती है ।
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