गीता जयंती एक प्रमुख पर्व है हिंदु पौरांणिक
ग्रथों में गीता का स्थान सर्वोपरि रहा है. गीता ग्रंथ का प्रादुर्भाव मार्गशीर्ष
मास में शुक्लपक्ष की एकादशी को कुरुक्षेत्र में हुआ था. महाभारत समय श्री कृष्ण
द्वारा अर्जुन को ज्ञान का मार्ग दिखाते हुए गीता का आगमन होता है. इस ग्रंथ में
छोटे-छोटे अठारह अध्यायों में संचित ज्ञान मनुष्यमात्र के लिए बहुमूल्य रहा है.
अर्जुन को गीता का
ज्ञान देकर कर्म का महत्व स्थापित किया इस प्रकार अनेक कार्यों को करते हुए एक
महान युग परवर्तक के रूप में सभी का मार्ग दर्शन किया.मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की
एकादशी को गीता जयंती के साथ साथ मोक्षदा एकादशी भी कहा जाता है. मोक्षदा एकादशी
का व्रत करने वाले व्यक्ति को एकादशी के नाम के अनुसार मोक्ष प्राप्ति के योग बनते
हैं.
इसी दिन
गीता जयन्ती होने से श्रीमदभगवद गीता की सुगन्धित फूलों द्वारा पूजा, कर गीता का पाठ करना चाहिए. विधिपूर्वक
गीता व भगवान विष्णु की पूजा करने पर यथा शक्ति दानादि करने से पापों से मुक्ति
मिलती है तथा शुभ फलों की प्राप्ति होती है. गीता जयंती के दिन श्री विष्णु जी का
पूजन करने से उपवासक को आत्मिक शांति व ज्ञान की प्राप्ति होती है व मोक्ष मार्ग
प्रश्स्त होता है.
कर्म की अवधारणा को
अभिव्यक्त करती गीता चिरकाल से आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितना तब रही. विचारों
को तर्क दृष्टी के द्वारा बहुत ही सरल एवं प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत किया गया है
संसार के गुढ़ ज्ञान तथा आत्मा के महत्व पर विस्तृत एवं विशद वर्णन प्राप्त होता
है.
गीता में अर्जुन के मन में
उठने वाले विभिन्न सवालों के रहस्यों को सुलझाते हुए श्री कृष्ण ने उन्हें सही एवं
गलत मार्ग का निर्देश प्रदान करते हैं. संसार में मनुष्य कर्मों के बंधन से जुड़ा
है और इस आधार पर उसे इन कर्मों के दो पथों में से किसी एक का चयन करना होता है.
इसके साथ ही परमात्मा तत्त्व का विशद वर्णन करते हुए अर्जुन की शंकाओं का समाधान
करते हैं व गीता का आधार बनते हैं
गीता जयंती का महत्व
गीता आत्मा एवं परमात्मा के
स्वरूप को व्यक्त करती है. कृष्ण के उपदेशों को प्राप्त कर अर्जुन उस परम ज्ञान की
प्राप्ति करते हैं जो उनकी समस्त शंकाओं को दूर कर उन्हें कर्म की ओर प्रवृत करने
में सहायक होती है. गीता के विचारों से मनुष्य को उचित बोध कि प्राप्ति होती है यह
आत्मा तत्व का निर्धारण करता है उसकी प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है. आज के
समय में इस ज्ञान की प्राप्ति से अनेक विकारों से मुक्त हुआ जा सकता है. आज जब मनुष्य भोग विलास, भौतिक सुखों, काम वासनाओं में जकडा़ हुआ है और एक दूसरे का
अनिष्ट करने में लगा है तब इस ज्ञान का प्रादुर्भाव उसे समस्त अंधकारों से मुक्त
कर सकता है क्योंकी जब तक मानव इंद्रियों की दासता में है, भौतिक आकर्षणों से घिरा हुआ है, तथा भय, राग, द्वेष एवं क्रोध से मुक्त नहीं है तब तक उसे शांति एवं
मुक्ति का मार्ग प्राप्त नहीं हो सकता.
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