Monday 20 June 2016

स्वप्न का वास्तविक जीवन से महत्व........

सपनों के विश्लेषण के संबंध में ‘सिगमंड फ्रायड’ का कथन है कि ‘सपने उन दमित इच्छाओं को व्यक्त करते हैं जो मस्तिष्क के अंधेरे कोने में घर किये रहते हैं’ परंतु आधुनिक विज्ञान एवं आधुनिक वैज्ञानिकों के मत फ्रायड के मत से एकदम भिन्न हैं। इससे पूर्व कि स्वप्नों के विषय में वैज्ञानिकों का मत जाना जाय, यहां यह जान लेना उचित होगा कि वैज्ञानिकों को सपनों के विषय में जानकारी जुटाने की आवश्यकता क्यों हुई? बिना इसे जाने स्वप्नों के विषय में फलित ज्योतिष का मत ही जान सकते हैं। परंतु आधुनिक वैज्ञानिकों एवं ऋषि-महर्षि रूपी वैज्ञानिकों में कितनी समानता है, इसे नहीं जान पायेंगे। फलतः स्वप्न एवं उनके फलों के विषय में स्पष्टता नहीं आ पायेगी। ब्रितानी मनोवैज्ञानिक एवं कम्प्यूटर मनोवैज्ञानिक क्रिस्टोफर इवांस ने मानव मस्तिष्क की तुलना कम्प्यूटर से की थी। स्वप्न एवं उनके फल दोनों ही अलग-अलग प्रकार के नेटवर्क हैं जो विद्युतीय संकेतों को लाने ले जाने का कार्य करते हैं। दोनों में ही ये संकेत विभिन्न स्विचों और फाटकों से गुजरते हुए अंत में एक सार्थक रूप ले लेते हैं। स्वप्नों के विषय में विगत पांच हजार वर्षों से बराबर शोध हो रहा है और अभी तक अधिकांश गुत्थियां ज्यों की त्यों उलझी हुई हंै कि ‘क्या स्वप्नों का वास्तविक जीवन में कोई महत्व है भी या नहीं। कुछ लोगों की यह धारणा है कि स्वप्न वास्तव में भविष्य के पथ प्रदर्शक हैं और जब व्यक्ति उलझ जाता है व जहां उसे कोई रास्ता दिखाई नहीं देता, वहां स्वप्न उसकी बराबर मदद करते हैं। इस संबंध में आधुनिक वैज्ञानिकों का कथन है कि, हमारे मस्तिष्क के आसपास चैबीस करोड़ रक्त वाहनियों और शिराओं की मोटी पट्टी बनी हुई है जो मानव चेतन और अचेतन व दृष्य और अदृष्य बिंबों को लेकर उस पट्टी पर सुरक्षित जमा रखते हैं और समय आने पर वे बिंब ही स्वप्न का आकार लेकर व्यक्ति के सामने प्रकट होते हैं। रूसी वैज्ञानिकों का भी मत है कि, ‘स्वप्न को व्यर्थ का समझ कर टाला नहीं जा सकता। वास्तव में स्वप्न पूर्ण रूप से यथार्थ और वास्तविक होते हैं। यह अलग बात है कि हम इसके समीकरण सिद्धांत व अर्थों को समझ नहीं पाते।’ दूसरी बात यह है कि ‘स्वप्न कुछ क्षणों के लिए आते हैं और अदृश्य हो जाते हैं, जिससे कि व्यक्ति प्रातःकाल तक उन स्वप्नों को भूल जाता है। परंतु यह निश्चित है कि एक स्वस्थ व्यक्ति, प्रत्येक रात्रि में तीन से सात स्वप्न अवश्य देखता है। अमेरिका के प्रसिद्ध स्वप्न विशेषज्ञ ‘जाॅर्ज हिच’ ने पुस्तक ड्रीम में प्रमाणों सहित यह स्पष्ट किया है कि, ”व्यक्ति स्वप्नों के माध्यम से ही अपने जीवन में पूर्णता प्राप्त कर सकता है, प्रकृति ने मानव शरीर की रचना इस प्रकार से की है कि, “जहां मानव के जीवन में गुत्थियां और परेशानियां हैं, बाधायें और उलझनें हैं, वहीं उन उलझनों या समस्याओं का हल भी प्रकृति स्वप्नों के माध्यम से दे देती है। मानव शरीर के अंदर दो प्रकार की स्थितियां होती हैं चेतन व अवचेतन मन जैसा कि सर्व विदित है। चेतन मन जहां बाहरी दृश्य और परिवेश को स्वीकार कर जमा करता रहता है, वहीं आंतरिक मन हमारे पूर्व जन्मों की घटनाओं से पूर्ण रूप से संबंधित रहता है। इसमें अब तो कोई दो राय नहीं है कि व्यक्ति का बार-बार जन्म और बार-बार मृत्यु होेती है। हमारे आर्ष ऋषि आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने भी ‘चर्पटपंजरिका’ में कहा है ”पुनरपि जननं, पुनरपि मरणं, पुनरपि जननी जठरे शयनं“ पिछले जीवन के कार्यों, दृष्यों और घटनाओं का प्रभाव भी वह जीवन में प्राप्त करता रहता है, उसे वहन करता रहता है। यह अचेतन मन ही स्वप्नों का वास्तविक आधार है और इस अचेतन मन के पास अपनी बात को बताने या समझाने का और कोई रास्ता नहीं है, फलस्वरूप वह निद्राकाल में मानव को चेतावनी भी देता है, उन दृष्यों को स्पष्ट भी करता है और उसका पथ प्रदर्शन भी करता है। इस दृष्टि से अचेतन मन व्यक्ति के लिए ज्यादा सहयोगी और जीवन निर्माण में सहायक होता है। स्वप्न एक पूर्ण विज्ञान है हमारे जीवन की कोई भी घटना व्यर्थ नहीं है, सावधान और सतर्क व्यक्ति प्रत्येक घटना से लाभ उठाता है, वह उसको व्यर्थ समझकर नहीं छोड़ता। यदि जीवन में सफलता और पूर्णता प्राप्त करनी है तो जहां चेतन अवस्था में उसके जीवन के कार्य प्रयत्न तो सफल व सहायक हो हीे जाते हैं, इसके अलावा स्वप्नों के माध्यम से भी वह अपनी समस्याओं का निराकरण कर सकता है। संसार में देखा जाय तो स्वप्नों ने व्यक्ति के जीवन में बहुत बड़े-बड़े परिवर्तन किये हैं और वैज्ञानिक शोधों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। फ्रांस के दार्शनिक डी. मार्गिस की आदत थी कि वे बराबर काम में जुटे रहते थे और काम करते ही जब गणित के किसी समीकरण या विज्ञान की किसी समस्या का समाधान नहीं मिलता था तो वे वहीं काम करते-करते सो जाते, तब ‘स्वप्न’ में उन समस्याओं का समाधान उन्हें मिल जाता था। इससे यह सिद्ध होता है कि वास्तव में ही स्वप्न अपने आपमें एक अलग विज्ञान है। उसको उसी प्रकार से ही समझना होगा। कभी-कभी स्वप्न सीधे और स्पष्ट रूप से नहीं आते अपितु वे गूढ़ रहस्य के रूप में निद्राकाल में आते हैं और वे स्वप्न उन्हें स्मरण रहते हैं। व्यक्ति को चाहिए कि वह उस स्वप्न का अर्थ समझे व स्वप्न विशेषज्ञ से सलाह लें और उसके अनुसार अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त करें। स्वप्नों के स्वरूप: फलित ज्योतिष में स्वप्नों को विश्लेषणों के आधार पर सात भागों में बांटा गया है:- 1. दृष्ट स्वप्न, 2. श्रृत स्वप्न, 3. अनुभूत स्वप्न, 4. प्रार्थित स्वप्न, 5. सम्मोहन स्वप्न, 6. काल्पनिक स्वप्न एवं 7. भावित स्वप्न। इनमें से उपरोक्त छः प्रकार के स्वप्न निष्फल होते हैं क्योंकि ये सभी छः प्रकार के सवप्न असंयमित जीवन जीने वाले व्यक्तियों के स्वप्न होते हैं। विश्व में आज 99.99 प्रतिशत लोग असंयमित जीवन ही अधिक जीते हैं। यही कारण है कि ये असंयमित जीवन जीने वाले लोग स्वप्नों की भाषा न समझकर स्वप्न विज्ञान की खिल्लियां उड़ाते रहते हैं। स्वप्नों के बारे में इनकी धारणायें नकारात्मक सोच वाली ही होती है ऐसे लोग स्वप्न ज्योतिष की खिल्ली उड़ाते हुए कहते देखे जाते हैं कि कहीं सपने भी सच होते हैं। सातवें प्रकार के भावित स्वप्न ही सच होते हैं जो संयमित जीवन जीने वालों को ही अधिक दिखाई देते हैं ये स्वप्न कुछ अजीबो गरीब भी होते हैं, जो कभी देखे न गये हों, सुने न गये हो जो भविष्य में घटित घटनाओं का पूर्वाभास कराये वे ही स्वप्न भाविक स्वप्न होते हैं और वे फलदायी स्वप्न होते हैं। पाप रहित, मां स्वप्नेश्वरी साधना द्वारा देखे गये मंत्र घटनाओं का पूर्वाभास कराते हैं मानव का प्रयोजन इसी प्रकार के भाविक स्वप्नों से ही है। सपनों के आधार पर फलकथन का इतिहास भी अत्यंत प्राचीन है। तुलसीकृत ‘रामचरितमानस’ में त्रेतायुग की महान विदुषी ‘त्रिजटा’ नाम की राक्षसी एक राक्षसी होते हुए भी एक महान विदुषी थीं। वे स्वयं के द्वारा देखे गए स्वप्न के आधार पर रावण एवं उनकी लंकापुरी का भविष्य भगवती मां सीता को बताते हुए कहती है- सपने बावर लंका जारी। जातुधान सेवा सब मारी।। खर आरूढ़ नगन दससीसा। मुण्डित सिर खंडित भुज बीसा।। एहि विधि सो दच्छिन दिसि जाई। लंका मनहुं विभीषण पाई।। नगर फिरी रघुबीर दुहाई। तब प्रभु सीता बोलि पठाई।। सह सपना मैं कहऊं पुकारी। होइहिं सत्य गये दिन चारी।। सुंदरकांड जैन धर्म के चैबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के जन्म से पूर्व उनकी माताओं को सोलह स्वप्नों को माध्यम से गर्भस्थ जीव के पुण्यात्मा होने का आभास होता था। जैन पुराणों में इसका विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। प्रायः यह माना जाता है कि प्रातःकाल देखे गये सभी स्वप्न सत्य सिद्ध होते हैं यह मिथ्या भ्रम है। इस भ्रम की पृष्ठभूमि में सूर्योदय से पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में देखे गए स्वप्नों का अतिशीघ्र फलदायी होता है न कि सूर्योदय के बाद का। सूर्योदय के बाद आठ-दस बजे तक सोते हुए स्वप्न देखने वालों के सभी स्वप्न व्यर्थ ही होते हैं जो असंयमित जीवन जीने वालों के होते हैं। इस भ्रम की पृष्ठभूमि में ही अत्यंत ही अशुभ व बुरे-बुरे स्वप्न अत्यंत ही अनिष्टकारी व अशुभ होते हैं। रात्रि के प्रथम प्रहर में देखे गए स्वप्न एक वर्ष में द्वितीय प्रहर में देखे गए स्वप्न आठ महीनों में, तृतीय प्रहर में देखे गए स्वप्न तीन महीनों में और चतुर्थ प्रहर में देखे गए स्वप्न एक माह में फल देते हैं और वे ही स्वप्न शुभ फल देते हैं जो सातवें प्रकार के भाविक स्वप्न होते हैं। सपने कब आते हैं ? सपने कब आते हैं ? नींद को दो स्थितियों में बांटा गया है। प्रथम स्थिति रैपिड आई मूवमेंट (आर. ई. एम.) है। अधिक तर स्वप्न नींद की इसी अवस्था में ही आते हैं। इस नींद की अवधि में शरीर की मांस पेशियां बिल्कुल शिथिल रहती हैं लेकिन आंखें बंद पलकों के अंदर तेजी से हिलती-डुलती रहती हैं। मस्तिष्क तरंगों की मानीटरिंग से पता चलता है कि जाग्रत अवस्था की अपेक्षा इस स्थिति में मस्तिष्क अधिक क्रियाशील रहता है। प्रत्येक व्यक्ति एक रात में चार से सात बार तक आर.ई.एम. प्रकार की नींद लेता है। आर.ई.एम. नींद की अवधि दस से बीस मिनट तक की होती है और आर. ई. एम. नींद की स्थिति नींद आने के लगभग 90 मिनट के पश्चात् प्रारंभ होती है। यदि कोई व्यक्ति रात्रि में लगभग दस बजे सोता है तो सामान्य रूप से यह रात्रि के द्वितीय प्रहर का आरंभ होगा। यदि आधुनिक वैज्ञानिकों द्वारा बतायी गई उक्त समयावधि से गणना करें अर्थात् 10$3=13 या रात्रि एक बजे से आर. ई. एम. निद्रा आना प्रारंभ होगा तो 1$3=4 बजे रात्रि के अंतिम प्रहर ही आर. ई. एम. निद्रा का समय होगा। इसी निद्रा अवधि में स्वप्न आते हैं यह वैज्ञानिक भी सिद्ध कर चुके हैं। स्पष्ट है कि आर्ष ऋषि महर्षियों का गहन मनन चिंतन कल्पनाओं से अधिक गहन एवं गंभीर था। इससे यह भी सिद्ध होता है कि विभिन्न तिथियों, ग्रहों, नक्षत्रों की गतियों, महादशांतर्दशाओं में देखे गए स्वप्नों के फलों में अनादिकाल से ज्योतिषीय अध्ययनों द्वारा स्वप्न विज्ञान के गूढ़ से गूढ़तम ज्ञान हमारे महान ऋषि महर्षियों द्वारा शास्त्रों व पुराणों में वर्णित किये गए हैं। जो आधुनिक ऋषि-महर्षियों एवं भौतिक विज्ञानियों के शोधों से भी मेल खाता है।

भोग कारक शुक्र और द्वादशेश भाव

द्वादश भाव को प्रान्त्य, अन्त्य और निपु ये तीन संज्ञायें दी जाती हैं और द्वादश स्थान (बारहवां) को त्रिक भावों में से एक माना जाता है, अक्सर यह माना जाता है कि जो भी ग्रह बारहवें भाव में स्थित होता है वह ग्रह इस भाव की हानि करता है और स्थित ग्रह अपना फल कम देता है। बलाबल में भी वह ग्रह कमजोर माना जाता है, लेकिन शुक्र ग्रह बारहवें भाव में धनदायक योग बनाता है और यदि मीन राशि में बारहवें भाव में शुक्र हो तो फिर कहना ही क्या? कारण यह है कि शुक्र बारहवें भाव में काफी प्रसन्न रहता है क्योंकि बारहवां भाव भोग स्थान है और शुक्र भोगकारक ग्रह, इसी कारण इस भाव में शुक्र होने से भोग योग का निर्माण करता है, चंद्र कला नाड़ी की मानें तो- व्यये स्थान गते कात्ये नीचांशक वर्जिते। भाग्याधिपेन सदृष्टे निधि प्राप्तिने संशयः।। यानि- शुक्र द्वादश स्थान में स्थित हो और नवमेश द्वारा दृष्ट हो तो ऐसा मनुष्य निधि की प्राप्ति करता है। अर्थात शुक्र की द्वादश स्थान में स्थिति अच्छी मानी गई है। भावार्थ रत्नाकार में कहा गया है- शुक्रस्य षष्ठं संस्थानं योगहं भवति ध्रुवम्। व्यय स्थितस्य शुक्रस्य यथा योगम् वदन्ति हि।। अर्थात - शुक्र छठे स्थान में स्थित होकर उतना ही योगप्रद है जितना की वह द्वादश भाव में स्थित होकर योगप्रद है। उत्तरकालामृत में कहा गया है कि - ‘षष्टस्थो शुभ कृत्कविः यानि छठे स्थान में शुक्र की स्थिति इसलिये अच्छी मानी जाती है, क्योंकि बारहवें भाव में उसकी पूर्ण दृष्टि रहती है, जिस कारण वह भोगकारी योग बनाता है। इस तरह शुक्र की बारहवें भाव में स्थिति भोग योग बनाती है और भोग बिना धन के संभव नहीं है अतः यही भोग योग धन योग भी बन जाता है। जिन व्यक्तियों के बारहवें भाव में शुक्र स्थित होता है, वे बहुधा योग सामग्री द्वारा अपना जीवन सुविधा से चला लेते हैं। यदि अधिक धनी न हों तो दरिद्री को भी प्राप्त नहीं होता। परंतु जब यह ग्रह शुक्र लग्न के साथ सूर्य लग्न से व चंद्र लग्न से भी द्वादश हो या किन्हीं दो लग्नों में द्वादश स्थान में स्थित हो तो दो लग्नों से द्वादश स्थान में होने के कारण शुक्र दुगुना योगप्रद हो जाता है और तीनों लग्नों से द्वादश हो तो सोने पर सुहागा वाली बात होगी, ऐसी स्थिति में शुक्र अतीव शुभ योग देने वाला, महाधनी बनाने वाला बन जाता है- भावार्थ रत्नाकर के अनुसार - यह भाव कारको लग्नाद् व्यये तिष्ठति चेद्यदि। तस्य भावस्थ सर्वस्य भाग्य योग उदीरितः।। यानि - इस भाव से जातक को विषयक बातों का लाभ होगा, जिस भाव का कारक लग्न से द्वादश भाव में स्थित हो शुक्र जाया (पत्नी) भाव का कारक ग्रह है, अतः जिन जातकों के बारहवें भाव में शुक्र रहता है, उन्हें स्त्री सुख में कभी कमी नहीं होगी, प्रायः ऐसे व्यक्तियों की पत्नी दीर्घजीवी हुआ करती है। शुक्र की यह भी एक विशेष स्थिति होती है कि जब वह किसी ग्रह के बारहवें भाव में स्थित होता है, तब शुक्र अपनी अंतर्दशा में इस ग्रह का फल करता है, जिसके कि वह बारहवें स्थित होता है यानि की अगर शुक्र सूर्य से बारहवें हो और सूर्य की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा चल रही हो तो वह सूर्य का शुभ फल देगा, इस नियम के मुताबिक शुक्र की सबसे अच्छी स्थिति तब होगी जब वह किसी जातक की कंडली में गुरु से द्वादश होगा। गुरु और शुक्र परस्पर शुभ ग्रह हैं। सामान्य नियम के अनुसार परस्पर शत्रु ग्रह अपनी दशांतर्दशा में विपरीत फल देते हैं जबकि गुरु से शुक्र द्वादश प्रायः करोड़पतियों की ही कुंडली में पाया जाता है। यदि गुरु लग्नों का भी स्वामी हो अर्थात धनु अथवा मीन सूर्य व चंद्र हो, तब शुक्र की भुक्ति करोड़ों, अरबों रूपये देने वाली होगी। यदि शुक्र वृष या तुला राशि का होकर बारहवें भाव में केतु के साथ हो तो हद से ज्यादा शुभकारी भोग योग बनाता है, जो कि जातक को सुखी जीवन देता है। केतु जब-जब किसी शुभ ग्रह-बुध, गुरु, शुक्र के साथ जिस भाव में बैठता है, उस भाव संबंधी फल जातक को बहुत देता है। अतः फलादेश करते समय जन्मपत्री में बुध गुरु, शुक्र व केतु की स्थितियों को भी अवश्य ध्यान में रखें। अंत में कहना यथेष्ट होगा- ग्रहराज्यं प्रयच्छति ग्रहाराज्यं हरान्ति च। ग्रहस्तु त्यातितं सर्व जगदेव तच्चराचरम्।। अर्थात्- ग्रह ही राज्य देते हैं, ग्रह ही राज्य का हरण कर लेते है, संसार का समस्त चराचर ग्रहों के प्रभाव से युक्त है।

त्रिशांश कुंडली एवं अरिष्ट काल

पाराशर मुनि ने जीवन के विभिन्न पहलुओं पर शुभाशुभ विचार करने हेतु वर्ग कुंडलियों की उपयोगिता बताई है। जन्मपत्रिका से किसी घटना का संकेत मिलता है तो उसकी पुष्टि संबंधित वर्ग कुंडली से होती है। ऐसी वर्ग कुंडली है त्रिशांश अर्थात क्ध्30। जातक के जीवन में रोग, दुर्घटना एवं घोर संकट की पुष्टि त्रिशांश कुंडली द्वारा अच्छे ढंग से हो सकती है। आइए जानें कैसे करें त्रिशांश गणना एवं त्रिशांश कुंडली के आधार पर फल कथन ... भचक्र से आने वाले शुभाशुभ उर्जा का प्रभाव समस्त चराचर जीव जगत पर पड़ता है। इससे हमारा शरीर भी अछूता नहीं है। शुभ प्रभाव होने पर हम प्रसन्नता एवं स्वस्थ अनुभव करते हैं और नकारात्मक प्रभाव से अप्रसन्न एवं अस्वस्थ अनुभव करते हैं और नकारात्मक प्रभाव से अप्रसन्न एवं अस्वस्थ अनुभव करते हैं। ज्योतिष में लग्न को देह एवं चंद्र को मन माना है। अतः जन्म लग्न एवं चंद्र की स्थिति अर्थात इन पर पड़ने वाले शुभाशुभ प्रभाव से इस बात का अनुमान लगाया जाता है कि व्यक्ति स्वस्थ, प्रसन्नचित्त रहेगा अथवा रोगी, क्लांत एवं चिंतित रहेगा। यदि जन्म लग्न पर शुभ प्रभाव है और चंद्र पर अशुभ प्रभाव है तो व्यक्ति का शरीर बाहर से तो स्वस्थ दिखाई दे सकता है परंतु मानसिक रूप से कमजोरी, पीड़ा, बेचैनी एवं मानसिक रोग हो सकते हैं। इसी प्रकार चंद्र पर शुभ प्रभाव हो एवं जन्म लग्न पर अशुभ प्रभाव हो तो व्यक्ति में उत्साह, अच्छी मानसिक क्षमताएं एवं उर्वर मस्तिष्क हो सकता है लेकिन शरीर साथ न दें। अतः व्यक्ति का जन्म लग्न-लग्नेश एवं चंद्रमा शुभ एवं बली होना आवश्यक है। इनमें से एक भी कमजोर एवं पीड़ित हुआ तो जन्मपत्रिका कमजोर की श्रेणी में आ जाती है और कुंडली में उपस्थित राजयोग भी अपना पूर्णफल देने में असमर्थ होते हैं। सामान्यतया हम लग्न कुंडली से कोई किसी घटना के शुभाशुभ को देखते हैं और उसकी पुष्टि नवांश कुंडली द्वारा करते हें। नवांश से स्त्री विचार एवं ग्रह की क्षमता जांची जा सकती है। प्रायः ऐसा देखने में आ रहा है कि समस्त घटनाओं की पुष्टि करने में नवांश सदैव सहायक नहीं होता है। पाराशर मुनि ने जीवन के विभिन्न पहलुओं पर शुभाशुभ विचार करने हेतु वर्ग कुंडलियों की उपयोगिता बताई है। जन्मपत्रिका से किसी घटना का संकेत मिलता है तो उसकी पुष्टि संबधित वर्ग कुंडली से होती है। ऐसी ही एक वर्ग कुंडली है त्रिशांश अर्थात् डी-30। जिसका उपयोग जातक के जीवन में होने वाले अरिष्ट की जानकारी हेतु किया जाता है। त्रिशांश कुंडली प्रायः त्रिशांश कुंडली का उपयोग स्त्री का चरित्र, स्वभाव ज्ञात करने में किया जाता है परंतु पाराशर मुनि के अनुसार अरिष्ट अर्थात् रोग, दुर्घटना एवं घोर संकट की पुष्टि त्रिशांश कुंडली द्वारा अच्छे ढंग से हो सकती है। त्रिशांश की गणना पांच-पांच अंशों का एक त्रिशांश माना गया है और सभी विषम राशियों में क्रमशः 5, 5, 8, 7 अंशों में क्रमशः मेष, कुंभ, धनु, मिथुन एवं तुला का त्रिशांश तथा सभी सम राशियों में क्रमशः 5, 7, 8, 5, 5 अंशों में वृष, कन्या, मीन, मकर एवं वृश्चिक का त्रिशांश होता है। त्रिशांश एवं अरिष्टकाल ज्योतिष के अनुसार किसी भी जन्मपत्रिका में अरिष्ट, रोग एवं रोग पीड़ित अंग का अनुमान निम्न बिन्दुओं के आधार पर लगाया जाता है कि 1. जन्म लग्न पर पाप प्रभाव हो, 2. लग्नेश बलों में कमजोर, पीड़ित, नीच, अस्त, पाप मध्य, 6,8,12वें भाव में हो, 3. भाव एवं भावेश तथा कालपुरूष की संबंधित राशि एवं उसका स्वामी तथा कारक एक साथ पीड़ित होने पर उस राशि एवं भाव को व्यक्त करने वाले अंग में रोग पीड़ा होने का अनुमान लगाया जाता है। 4. यह रोग 6,8,12वें एवं मारक भाव तथा इनसे संबंध रखने वाले ग्रहों की दशान्तर्दशा में संभव होता है और इसकी पुष्टि त्रिशांश में करनी चाहिए। प्रायः ऐसा माना जाता है कि त्रिशांश लग्नेश के शुभयुक्त, शुभदृष्ट होने एवं शुभ भावों में होने से व्यक्ति का जीवन दुर्घटना एवं अनिष्ट रहित होता है।

केमद्रुम योग

जन्मकुंडली में यदि चंद्रमा से द्वादश तथा द्वितीय भाव में सूर्य, राहु-केतु के अतिरिक्त कोई अन्य ग्रह स्थित न हो तो 'क्रेमद्रुम' नामक अशुभ योग निर्मित होता है। इसे ज्योतिष ग्रंथों में सर्वाधिक अशुभ माने जाने वाले योगों में शामिल किया गया है। लेकिन केमद्रुम योग राज योग कब बन जाता है, केमद्रुम योग के बारे में ऐसी मान्यता है कि यह योग जिस जातक की कुंडली में निर्मित होता है उसे आजीवन संघर्ष और अभाव में ही जीवन यापन करना पड़ता है। इसीलिए ज्योतिष के अनेक विद्वान इसे 'दुर्भाग्य का प्रतीक' कहकर परिभाषित करते हैं। लेकिन यह अवधारणा पूर्णतः सत्य नहीं है। व्यवहार में ऐसा पाया गया है कि कुंडली में गजकेसरी, पंचमहापुरुष जैसे शुभ योगों की अनुपस्थिति होने पर भी केमद्रुम योग से युक्त कुंडली के जातक कार्यक्षेत्र में सफलता के साथ-साथ यश और प्रतिष्ठा भी प्राप्त करते हैं। ऐसे में क्या कहा जाये। क्या शास्त्रों में लिखी बातों को असत्य या निर्मूल कहकर केमद्रुम योग की परिभाषा पर प्रश्न चिह्न लगा दिया जाये। वस्तुतः सत्यता यह है कि केमद्रुम योग के बारे में बताने वाले अधिकांश विद्वान इसके नकारात्मक पक्ष पर ही अधिक प्रकाश डालते हैं। जो पूर्णतः असैद्धांतिक एवं अवैज्ञानिक है। यदि हम इसके सकारात्मक पक्ष का गंभीरतापूर्वक विवेचन करें तो हम पाएंगे कि कुछ विशेष योगों की उपस्थिति से केमद्रुम योग भंग होकर राजयोग में परिवर्तित हो जाता है। शास्त्रों में कतिपय ऐसे योगों का उल्लेख भी मिलता है जिनके प्रभाव से केमद्रुम योग भंग होकर राजयोग में बदल जाता है। केमद्रुम योग को भंग करने वाले प्रमुख योग निम्नलिखित हैं। 1. चंद्रमा पर बुध या गुरु की पूर्ण दृष्टि हो अथवा लग्न में बुध या गुरु की स्थिति या दृष्टि हो। 2. चंद्रमा और गुरु के मध्य भाव-परिवर्तन का संबंध बन रहा हो। 3. चंद्रमा-अधिष्ठित राशि का स्वामी चंद्रमा पर दृष्टि डाल रहा हो। 4. चंद्रमा-अधिष्ठित राशि का स्वामी लग्न में स्थित हो। 5. चंद्रमा-अधिष्ठित राशि का स्वामी गुरु से दृष्ट हो। 6. चंद्रमा-अधिष्ठित राशि का स्वामी चंद्रमा से भाव परिवर्तन का संबंध बना रहा हो। 7. चंद्रमा-अधिष्ठित राशि का स्वामी लग्नेश, पंचमेश, सप्तमेश या नवमेश के साथ युति या दृष्टि संबंध बना रहा हो। 8. लग्नेश, पंचमेश, सप्तमेश और नवमेश में से कम से कम किन्ही दो भावेशों का आपस में युति या दृष्टि संबंध बन रहा हो। 9. लग्नेश बुध या गुरु से दृष्ट होकर शुभ स्थिति में हो। 10. चंद्रमा केंद्र में स्वराशिस्थ या उच्च राशिस्थ होकर शुभ स्थिति में हो।

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Sunday 19 June 2016

How different astrological solutions work????

Astrological knowledge equips us with the knowledge about various remedial measures, which is necessary to protect us from the miseries of life. These remedial measures are meant to propitiate the planets and for getting better results with peaceful life. An eminent astrologer should be able to give the solution to all sorts of problems and complications in one’s life.Rightly has some body affirmed, “To be forewarned is to be forearmed.” When we know it in advance that something negative is likely to happen to us we prepare ourselves to face that or avert that by equipping ourselves with necessary tools and weapons for our protection.It is only in Hindu Astrology that we have been provided with many methods and procedures that can alleviate our grief, pain and miseries by the grace of God. In no other stream of fortune telling, this unique system of adopting remedial measures to mitigate our sorrow is dealt with in such a detail.In the Hindu God- Trinity, Lord Shiva has been assigned a special place as he has been termed as ‘Ashutosh’ (one who is pleased very easily). In the famous Hindu sacred epic- Ramcharita Manas, it has been mentioned about lord Shiva that- भावी मेटि सकहिं त्रिपुरारी (Only Lord Shiva is capable of changing the course of Destiny). There are many ways to appease lord Shiva like doing Maharudrabhisheka, offering poojas and archanas. Lord Shiva bestows his boon and blessings very easily to those who wear ‘ Rudraksha’.Similarly it is said that "कलौ चण्डी विनायकौ" which means that in Kaliyuga Lord Ganapati and Goddess Chandi give instant and very effective results. Therefore lots of people recite Durgasaptashatichandi when they are under the influence of malefic planets. Goddess Chandi (Durga) frees one from poverty, sorrow, distress, disease and fear. Goddess Chandi is worshipped in every Hindu family specially during Navratras. Lord Ganpati is very popular among devotees because he overcomes obstacles and bestows Riddhi, Siddhi and Buddhi. When a person faces trouble equivalent to death or the fear of death, accident or disease Mahamrityunjaya Yagya is recommended.Hindu Astrology is matchless because it contains a vast treatise of remedies for controlling and propitiating the ill effects of planets in a very effective and scientific manner, which is not found in any other stream of knowledge.Remedies are available as per the requirements and need of all types of human beings as well as for the community, nation and the globe. Full-blown options are available to suit everybody’s need and interest.As in the medical science a disease is first of all diagnosed and then cured by proper medications. So, is also done in case of astrological remedial measures. However, remedy adopted, as per the astrology and occult sciences, is primarily based on faith healing. Faith healing has got a special mention in the Christianity also.A human- being suffers from many types of ailments, sorrow, grief, hazards and so on. They go for getting out of this undesired situation by adopting various methods as suggested by astrologers and fortune-tellers. Their concerns are mainly in the fields of - health, wealth, education, career, well-being and welfare, marriage and romance, children, and averting ailments, etc.Hindu Astrology is mainly based on nine planets including two shadow planets Rahu and Ketu. (Moon’s Nodes) and twelve Zodiacs. It has been established that all these planets transiting various signs (Zodiacs) affect all the activities of the world at micro and macro levels. Some planets have been termed as ‘Shubha’ (auspicious) and some others as ‘Ashubha’ (inauspicious). These inauspicious or malefic planets in various permutation and combinations create problems for human- beings as per the respective dasha and transits. However, planets, which cause problems, can be propitiated by adopting certain remedial measures for the concerned planets.There are many examples and references in Ancient Indian Texts and Scriptures showing the efficacy of various remedial measures like doing Homa, Japa, chanting Stotra and recitation of Mantra, observing special fast etc. to get the desired boon or results. The great Indian King Dasharatha had attained the boon of progeny by only performing requisite Putreyasthi Yagya, in the able direction of the greatest of sage’s Vasistha.Sage Markandeya averted great fury of death by chanting Mahamrityunjaya Mantra. King of Nepal remained in the royalty because of the possession of real Ekmukhi Rudraksha, inspite of bad yoga in the natal chart.The infallibility of these remedies has been matchless and recorded at many places. So, with the advent of information technology and scientific gadgets like computer and Microchips, a better research and advancement have been quite conspicuous in this lesser explored area of providing relief to the suffering humanity in general. In our universe everything whether it is land, air, water, fire, insects, worms, moths, animal or stone, crystal and metal or else colors, fragrance, shape, size, movement or our earth and planets or stars all of them have some POWER or ENERGY which can do miracle.Miracle is not supernatural or unnatural it is something extra, additional and different but very natural but also beyond nature and different from that. Miracle is as natural as a stone and is as real as us, our breath and as powerful as is Sun.Miracle of stones is the use of powers for bringing the change of choice and this is the best example of naturality of miracle because nothing can be more suitable than a rock in a serial wise beginning. This whole discussion was focused to convince that every object in this universe is having some positive or negative energy.Now we can realize that stones have some hidden power, radiations and energies in them. Different stones are having different types of energies in them, which can bring changes in us. So our treasure of stones or Gems can help us a lot. Similarly Rudrakshas also have electromagnetic properties, which influence human physiology.Rudraksha Kavach is considered as a more powerful remedial tool because it is made to enhance the positive qualities and to eradicate the negativities that are there in the life of a person.Yantras have mystical powers in them and therefore they protect us like a shield.Mantras create vibrations inside us and thus enhance our personality and intellect. After that different Rosaries are there which are used for reciting different mantras for achieving a specific objective. Seers also say that a rosary of 108 beads gives accomplishment of all Siddhis. For a specific purpose or problem a specific Gem, Rudraksha, Mantra, Yantra or Talisman etc. in the form of Ring, Locket, crystal or Coin is there. So benefits are multiple.By worshipping Parad Shivlinga one gets blessings of Lord Shiva quickly because impact of worship of Parad Shivlinga is one thousand crore times more than the worship of any other Shivlinga.

निर्धनता की समस्या: ज्योतिष्य नजरिये से

भारत की अन्य सामाजिक समस्यायों में निर्धनता की समस्या अत्यंत प्रमुख है निर्धनता मतलब व्यक्ति द्वारा अपने आश्रितों का अनुपयुक्त भरण-पोषण से है। निर्धनता एक दशा है जिसमें व्यक्ति अनुपयुक्त आय के कारण अथवा मुर्खतापूर्ण व्यय के कारण अपने जीवन स्तर को अपनी शारीरिक और मानसिक कुशलता के योग्य बनाए रखने में अपने को असमर्थ पाता है तथा अपने आश्रितों को अपने समाज के स्तर के अनुकूल बनाए रखने में असमर्थ रहता है इसके आधार पर यह निष्कर्ष प्राप्त किया जा सकता है की निर्धनता एक सामाजिक समस्या है जो व्यक्ति के आर्थिक असमर्थता की ओर संकेत करती है। सरकार द्वारा गरीबी उन्मूलन के तमाम प्रयास के बावजूद दशा जस की तस है। हम भ्रष्टाचार या अन्य कारक जिसके कारण आज तक व्यवस्था में परिवर्तन नहीं हो सका पर चर्चा नहीं करेंगे हम इसके ज्योतिषीय कारण देखा जाए तो लग्नस्थ राहु के कारण नीतियों में नियत की कमी तथा लग्नेश शुक्र के सूर्य के साथ तीसरे स्थान में होने के कारण सही मनोबल का अभाव ही आज भी देश में निर्धनता का प्रमुख कारण है। ये बात देश या व्यक्ति पर एक जैसी लागू होती हैं अतः यदि इस राष्टव्यापी समस्या को समाप्त करना हो तो इमानदार प्रयास तथा राहु की शांति करानी चाहिए।

जब अच्छों का साथ छूटे और सलाह बुरी लगे: तो दिखाएॅ अपनी कुंडली

जब अच्छो का साथ छूटे और सलाह बुरी लगे तो दिखाएॅ अपनी कुंडली:
जब भी किसी का समय खराब आता है तो उसके जीवन में सद्संग तथा सद्व्यवहार दोनो कम होते हैं या समाप्त होने लगते हैं। बुरे समय का सबसे पहला असर बुद्धि पर पड़ता है और वह बुद्धि को विपरित करके भले को बुरा व बुरे को भला दिखलाने लगता है। विनाशकाल समीप आ जाने पर बुद्धि खराब हो जाती है, अन्याय भी न्याय के समान दिखने लगती है। मनुष्य का जीवन उसके निर्णयों पर आधारित है। हर व्यक्ति को दो या अधिक रास्तों में से किसी एक को चुनना पड़ता है और बाद में उसका वही चुनाव उसके आगे के जीवन की दिशा और दशा को निर्धारित करता है। एक सही व सामयिक निर्णय राष्ट्र, संस्था व व्यक्ति के जीवन को समृद्धि के शिखर पर पहुँचा सकता है तो गलत निर्णय बर्बादी के कगार पर ले जा सकता है। कुशलता का अर्थ ही सही काम, सही ढंग से, सही व्यक्तियों द्वारा, सही स्थान व सही समय पर होना है। निर्णय लेना अनिवार्य है किन्तु सही समय पर सही निर्णय लेना सक्षम व कुशल प्रबंधक का ही कार्य है। इसे हम ज्योतिषीय गणना में कालपुरूष की कुंडली द्वार उसके लग्नेष, तृतीयेष, भाग्येष और एकादषेष द्वारा देख सकते हैं। अगर किसी जातक की कुंडली में ये स्थान उच्च तथा उसके स्वामी अनुकूल स्थिति में हों तो उसके निर्णय सही साबित होते हैं और अगर क्रूर ग्रहों से आक्रांत होकर पाप स्थानों पर बैठ जाये तो निर्णय गलत हो जाता है। किंतु कई बार ऐसे विपरीत बैठे ग्रह दषाओं में लिए गए निर्णय बेहद कष्टकारी साबित होते हैं, जिसे कहा जा सकता है कि विनाष काले विपरीत बुद्धि। जैसे किसी की राहु की दषा प्रारंभ हो रही हो या होने वाली हो तो वह नौकरी छोड़ने या व्यापार करने का निर्णय ले ले, जिसमें हानि की संभावना शतप्रतिषत होती है। अतः किसी को अपनो के विरोध का सामना करना पड़े तो उसे ग्रह शांति जरूर करानी चाहिए।

आपका बच्चा ओवरईटर तो नहीं हो रहा है??? कराएं कुंडली विश्लेषण

किसी भी बच्चें में यदि लग्न में राहु या गुरू अथवा शुक्र राहु के साथ लग्न में हों या इसी प्रकार के योग दूसरे, तीसरे अथवा एकादष स्थान में बन जाए साथ ही लग्नेष शुक्र छठवे, आठवे या बारहवें स्थान में आ जाए तो ऐसे लोग ओवरईटर के षिकार होते हैं अथवा राहु के कारण कम्प्यूटर, मोबाईल जैसे इलेक्टानिक गैजेट के शौकिन होते हैं, जिससे शारीरिक कार्य नहीं होती और कई बार डिप्रेषन के कारण लोगो से कम मिलना अथवा घर में रहकर खाते रहने के आदी हो जाते हैं जिससे मोटापा बढ़ सकता है। इसे भी कुंडली के अष्टम भाव या अष्टमेष के लग्न में होने अथवा राहु से पापक्रांत होने से देखा जा सकता है। मोटापे या स्थूलता से ग्रस्त बच्चों में पहली समस्या यह होती है कि वे आमतौर पर भावुक होते हैं या मनोवैज्ञानिक रूप से समस्याग्रस्त होते हैं। बच्चों में मोटापा जीवन भर के लिए खतरनाक विकार भी उत्पन्न कर सकता है जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, ह्रदय रोग, निद्रा रोग और अन्य समस्याएं। कुछ अन्य विकारों में यकृत रोग, यौवन का जल्दी आना, या लड़कियों में मासिक धर्म का जल्दी शुरू होना, आहार विकार, त्वचा में संक्रमण और अस्थमा और श्वसन से सम्बंधित अन्य समस्याएं शामिल हो सकती हैं। इससे उनके आत्मविश्वास में कमी आती है और वे अपने आत्मसम्मान को कम महसूस करते हैं और अवसाद से भी ग्रस्त हो सकते हैं। अगर आपके परिवार में किसी बच्चे में ऐसी स्थिति दिखाई दे तो उसकी कुंडली का विष्लेषण कराया जाकर ग्रहों की स्थिति के अनुसार उचित ग्रहषांति, बच्चें के व्यवहार एवं खानपान, रहनसहन में परिवर्तन करने के आलावा भृगु कालेंद्र पूजन कराकर इस समस्या से बचा जा सकता है।

शिवजी के अर्धनारीश्वर रूप की पूजा से पायें चंद्र-राहु के दोष से मुक्ति

शिवजी के अर्धनारीश्वर रूप की पूजा से पायें चंद्र-राहु के दोष से मुक्ति -
वाम मार्ग को भगवान् शिव का मार्ग कहा जाता है। यह मार्ग प्रकृति के कृतित्व निर्माण के लिए जाना जाता है, इसके माध्यम से बिना किसी भ्रम के पुनरोत्पादन, पुनर्निर्माण, विकास और क्रियात्मकता का मार्ग खुलता है। भगवान शिव जो वाम मार्ग का अनुयायी कहा जाता है, वे अर्धनारीश्वर हैं, जिसका अर्थ है - जो आधा स्त्री हो और आधा पुरुष हो।
अविचारं शक्त्युच्छिष्ठ पिबेच्छक्रपुरो यदि।
घोरञ्च नरकं याति वाममार्गात्पतेद्ध्रुवं॥
अर्थात् एक शक्तिशाली और सक्रिय (शिष्य) अपने जाति, पंथ, अभिमान, अहंकार, धन, आदि के प्रभाव में नौ (देवी नौ महिलाओं, जो माँ देवी दुर्गा के नौ रूपों के बराबर माना जाता है) देवियों का अपमान करता है तो वह अपनी शक्ति और ऊर्जा खो देता है, चाहे वह स्वयं देवताओं का राजा इंद्र ही क्यों न हो। यदि इंद्र भी ऐसा करेगा तो वह भी अपनी सत्ता और राज्य खो देता है। अतः जिनकी भी कुंडली में चंद्रमा राहु से पापाक्रांत होता है, उन्हें इसका दोष लगता है अतः किसी की भी कुंडली में ऐसी स्थिति बने तो उसे स्त्रीजाति का अपमान नहीं करना चाहिए एवं चंद्रमा की प्रियता के लिए रूद्राभिषेक कराना चाहिए। आज शिवाधिवास और श्रावणमास की समाप्ति में इस प्रकार से किया गया पूजन आपके जीवन में सभी कष्टों से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगा।

आपके मापदंड एवं जीवन में कष्ट-जाने अपनी कुंडली से

जब भी कोई व्यक्ति या व्यवस्था न्यूनतम न्याय की अवहेलना कर निरंकुश होता है, तब-तब विनाश निश्चित होता है। जो लोग भी मूल्यों से परे जाकर सामान्य हित के खिलाफ होकर स्व हित का निर्णय लेते हैं तो उसे दण्ड भोगना पड़ता है। आपको चाहने वाले तब तक आपके साथ रहेंगे जब तक आप अपनी मर्यादाओं के अनुशासन पर खरे उतरते रहेंगे, अन्यथा पतन निश्चित होगा...। मतलब बहुत साफ है जो भी लक्ष्मण रेखा के अंदर रहेगा, वही सुरक्षित रहेगा। शनि साथ ही गुरू उंचे मानदंडों का पुनस्र्थापन कर रहे हैं। अतः जिस की भी कुंडली में शनि एवं गुरू की स्थिति विपरीत कारक है, उसके जीवन में परेशानियों एवं कष्ट का समय हो सकता है। अतः यदि आप परेशान या कष्ट जोकि कार्यक्षेत्र से लेकर सामाजिक अथवा परिवार से लेकर स्वास्थ्य तक कुछ भी हो सकता है तो अपनी कुंडली का विश्लेषण कराकर शनि एवं गुरू को अनुकूल करने हेतु ग्रह शांति, मंत्रजाप तथा उक्त ग्रहों से संबंधित दान कर अपने जीवन में अनुकूलता जा सकते हैं। 

हिप बोन और बैक बोन की चोटों से कैसे बचें: करें ज्योतिष्य उपाय

खतरनाक हिप बोन और बैक बोन की चोटों से बचने का ज्योतिषीय उपाय-
बाइक से गिरने, फर्श पर स्लिप होने और खानपान में गड़बड़ी जैसे विभिन्न कारणों से हड्डी टूटने की घटनाएं होती हैं। हाथ की कलाई, पैर और कूल्हे में फ्रेक्चर दुपहिया वाहनों से होने वाली दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा देखने में आता है। सड़क हादसों में घायल होने वाले सिर पर चोट लगने से भले ही बच जाएं, लेकिन शरीर के बाकी हिस्सों की चोटों से नहीं बच सकते, जो काफी गंभीर हो सकती हैं। ये चोटें व्यक्ति को अपाहिज तक बना सकती हैं। इसमें सबसे ज्यादा खतरनाक हिप बोन (कूल्हे की हड्डी) और बैक बोन (रीढ़ की हड्डी) की चोट होती है। ये दोनों फ्रेक्चर बेहद गंभीर किस्म के होते हैं, जो किसी भी मरीज को बाकी उम्र के लिए काम करने और चलने-फिरने से लाचार कर सकते हैं। हिप बोन फ्रेक्चर में सबसे बड़ी परेशानी यह होती है कि कूल्हे की हड्डी का निचला और पतला हिस्सा बहुत छोटे-छोटे टुकड़ों में टूटता है, जिसे बैग ऑफ बोन्स के नाम से भी जाना जाता है। ऐसे मरीजों को फिर से पैरों पर खड़े होने लायक बनाना नामुमकिन-सा हो जाता है, क्योंकि इसी हिस्से में टांग की हड्डी कूल्हे के साथ जुड़ी होती है। इसी प्रकार हाथ या रीढ़ की हड्डी के साथ होता है। इस प्रकार के चोटों को ज्योतिषीय गणना से आसानी से देखा जा सकता है। अगर किसी व्यक्ति के लग्नेश, द्वितीयेश, तृतीयेश, एकादशेश मंगल होकर अपने स्थान से छठवे आठवे या बाहरवे स्थान पर हो जाए तो इस प्रकार के चोटों की संभावना होती है। क्योंकि लग्नेश मंगल होगा तो अष्टमेश भी होगा जिसके कारण इस प्रकार के दोनों चोटों के लगने की संभावना होती है अतः अगर मंगल इस प्रकार हो जाए तो जातक को तुला दान कराना, मंगल के मंत्रों का जाप हनुमान मंदिर में बैठकर करना एवं गायों की सेवा करना चाहिए।

कैसे करें अपने समय का मैनेजमेंट: जाने ज्योतिषी द्वारा

कैसे करें अपने समय का मैनेजमेंट जाने ज्योतिषी द्वारा-
आपने लोगो को सुना होगा कि हमारे पास तो समय ही नहीं बचता तो कोई अपने कार्य की प्राथमिकता ही तय नहीं कर पाता। यदि आप भी कार्य के बोझ या कार्य के सहीं तरीके के संचालन से परेशान है जिसके कारण आपको लगातार कार्य करते रहने के बावजूद भी लाभ तथा प्रोत्साहन के बदले तनाव और कार्य ना करने का ताना सुनना पड़े तो सबसे पहले अपने नियमित दिनचर्या का अवलोकन करें, इसके लिए अपनी कुंडली के एकादश स्थान का विश्लेषण कर देखें कि कहीं उस स्थान पर राहु तथा उस स्थान का स्वामी ग्रह राहु से पापाक्रंात या छठवे, आठवे या बारहवे स्थान पर तो नहीं है इसके अलावा लग्न तथा तीसरे स्थान का विश्लेषण करा कर पता करें कि कहीं ऐसी ही स्थिति इन स्थानों तथा ग्रहों के साथ तो नहीं यदि इस प्रकार की स्थिति बनती है तो आपके कार्य की शैली तथा समय का प्रबंधन सही ना होने के कारण आपको अपने कार्य का केंडिट नहीं मिल पाता बल्कि उसके स्थान पर हानि सहनी पड़ती है। अतः समय का प्रबंधन सहीं करने के लिए कुंडली के ग्रहों की शांति, राहु के मंत्रों का जाप तथा अनुशासन में रहकर कार्य की समयसीमा तथा प्राथमिकता तय करें।

छोटे बच्चों को असाध्य रोग-कारण पितृदोष

हिंदू दर्शन के अनुसार, मृत्यु के बाद मात्र यह भौतिक शरीर ही नष्ट होता है, सूक्ष्म शरीर जन्म-जन्मांतरों तक आत्मा के साथ संयुक्त रहता है। यह सूक्ष्म शरीर ही जन्म-जन्मांतरों के शुभ-अशुभ संस्कारों का वाहक होता है। ये संस्कार मनुष्य के पूर्वजन्मों से ही नहीं आते, अपितु माता-पिता के संस्कार भी उसमें (सूक्ष्म शरीर में) प्रविष्ट होते हैं, जिससे मनुष्य का व्यक्तित्व इन दोनों से ही प्रभावित होता है। प्राचीन काल में हमारा प्रत्येक कार्य संस्कार से आरम्भ होता था। किंतु आधुनिकता के चक्कर में पड़कर हम संस्कारों को नजरअंदाज कर देते हैं, जिसका लंबे अंतराल में प्रभाव दिखाई देता है। किसी बच्चे के जन्म के पीछे उस वंश का अंश होता है अतः यदि किसी बच्चे में जन्म से या तत्काल बाद से कोई गंभीर बीमारी दिखाई दे या स्वास्थ्यगत कष्ट हो तो दिखाए कि उसकी कुंडली में प्रमुख ग्रह कहीं राहु से पापाक्रांत तो नहीं हैं। क्योंकि गंभीर बीमारी की स्थिति कुंडली में स्पष्ट दिखाई देती है तथा उस बीमारी की शुरूआत का समय भी कुंडली में गोचर होता है। क्योंकि राहु अनुवाशिंक दोष का वाहक होता है अतः प्रमुख ग्रह एवं उस स्थान का ग्रह राहु से आक्रांत हो तो जिस स्थान तथा ग्रह को राहु आक्रांत करता है, उस स्थान तथा ग्रह से संबंधित बीमारी होती है। बच्चे को यदि कोई बीमारी दिखाई दे तो चिकित्सकीय सलाह के साथ कुंडली का परीक्षण कराया जाना चाहिए। साथ ही संबंधित ग्रह की शांति के साथ पितृशांति भी कराया जाना विशेषलाभकारी होता है।






सफलता में देरी का कारण: जाने ज्योतिष द्वारा

जीवन को समृद्धशाली एवं सुखहाल बनाने के लिए व्यक्ति को सुशील, सदाचारी एवं संस्कावान होना आवश्यक है, यही वह कारण हैं जिनके द्वारा आत्मविश्वास एवं बौद्धिक क्षमता का विकास होता है। जब भी किसी कर्म की शुरूआत दृढ़ निष्चय और सकारात्मक उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए होती है तो सबसे पहले वह समय सीमा का निर्धारण कर अपने समय का अधिक से अधिक लाभ उठाता है वह निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होता है वहीं उसके विपरीत यदि उसके जीवन में अपने या परिवार या समाज द्वारा बनाई गई मर्यादा रेखा का उल्लंघन होता है, तब उसके जीवन में असफलता प्राप्त होती है। इस असफलता अथवा सफलता में कमी या देरी को किसी व्यक्ति की कुंडली में प्रथमतः उसके एकादष स्थान, तीसरा स्थान एवं उसके गोचर की दषाओं के द्वारा जाना जा सकता है। यदि किसी की कुंडली में एकादष स्थान पर शनि या राहु होकर विपरीत भाव में बैठ जाए तो ऐसे बच्चे के जीवन में अनुषासन विलुप्त हो जाता है और इसी समय यदि राहु, शनि या शुक्र की दषा भी चल जाए तो ये सोने में सुहागा का कार्य करता है अतः किसी भी उम्र में यदि इस तरह के विपरीत भाव दिखाई दें तो जीवन में असफलता को रोकने और योग्यता तथा लक्ष्य के अनुकूल सफलता प्राप्ति के लिए ग्रहों की शांति कराना, मंत्रों का जाप एवं व्रत रखना चाहिए।

कुंडली से जाने क्यूँ नहीं बन पाता अपना घर......

क्यों नहीं बन पाता स्वयं का मकान जाने कुंडली से -
हर व्यक्ति की चाह होती है कि उसका अपना मकान है। आधी से ज्यादा दुनिया किराये के मकानों में रहती है और कई लोगो का पूरा जीवन अपने मकान का स्वप्न देखते हुए ही बीत जाता है तो कुछ किरायेदार, जबरदस्ती मकान मालिक बने बैठे हैं। इसका भी ज्योतिषीय कारक होता है। जन्मपत्री में भूमि का कारक ग्रह मंगल है। जन्मपत्री का चैथा भाव भूमि व मकान से संबंधित है। घर का सुख देखने के लिए मुख्यतः चतुर्थ स्थान को देखा जाता है। साथ ही गुरु, शुक्र और चंद्र के बल का विचार भी किया जाता है। जब चतुर्थेश उच्च का, मूलत्रिकोण, स्वग्रही, उच्च का शुभ ग्रहों से युत हो तो अवश्य ही मकान सुख मिलेगा। जब भी मकान से संबंधित इन क्षेत्रों का स्वामी षष्ठम स्थान में हो जाता है तो मकान से संबंधित ऋण अर्थात् किराया पटाने का योग बनता है अर्थात् मकान किराये पर रहता है अतः यदि इस प्रकार चतुर्थेष और षष्ठेष का योग किसी भी प्रकार से बना रहे तो व्यक्ति ताउम्र किराये के मकान में बिता देता है। वहीं यदि इस योग में चर राषि हो तो मकान बदलते रहने का योग बनता है और अचल राषि हेाने पर किराये का भी मकान स्थिर प्रवृत्ति का होता है। जब छठवे स्थान का स्वामी चतुर्थ स्थान में गुरू के साथ गोचर में आ जाए या इस प्रकार का योग बने तो किराये के मकान का ही स्वामी बनने का योग बनता है। इस प्रकार कुंडली के विष्लेषण से किराये के मकान में रहने या उसी मकान का स्वामी बनना ज्ञात किया जा सकता है।

Sitare Hamare Saptahik Rashifal 20 26 June 2016

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Tuesday 14 June 2016

क्या आप अपना काम सहीं समय पर पूरा नहीं कर पाते -जाने अपनी कुंडली से -

क्या आप अपना काम सहीं समय पर पूरा नहीं कर पाते -जाने अपनी कुंडली से -
कई लोग अपना रूटिन का कार्य भी दौड़ते भागते पूरा करते हैं तो कई लोग बड़े इत्मीनान से सावधानी के साथ अपना कार्य गुणवत्ता के साथ पूर्ण करते हैं। कई बार लोग बिल की लाईन में भी अंतिम तिथि को पहुॅचते हैं और परेशान होते है। वहीं कुछ आराम से कार्य समय पर निपटाकर सुख से रहते हैं। समय की शक्ति अद्भुत है। धन से भी महत्वपूर्ण है, समय की संपदा। इसलिए समय को व्यर्थ न जाने दीजिए। समय ही महानता के उच्चतम शिखर तक चढ़ने का सोपान है और सूर्य जैसे ग्रहों के अनुरूप नियम तथा नियमित रह कर समय का सदुपयोग करने से ही सफलता प्राप्त हो सकती है अतः किसी की कुंडली में एकादष स्थान से उसके समय के मूल्य को आंका जा सकता है। जिस भी व्यक्ति की कुंडली में एकादष स्थान का स्वामी उच्च, शुभ तथा अनुकूल स्थान पर हो अथवा शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो ऐसा जातक अपने कार्य में नियमित होता है तथा यदि उसका तीसरा स्थान भी शुभ हो तो ऐसे जातक की एकाग्रता भी अच्छी होती है यदि इसके साथ ही भाग्य स्थान भी अनुकूल हो तो ऐसे जातक को सफलता प्राप्ति में आसानी होती है अतः यदि आपका भाग्य अनुकूल हो साथ ही तीसरा स्थान एकाग्रता भी दे रहा हो तो एकादष स्थान को अनुकूल करने से आपको अवष्य ही सफलता प्राप्त हो सकती है। यदि आप अपने समय का सदुपयोग ना कर पा रहे हों तो एकादष स्थान के स्वामी ग्रह तथा उस स्थान पर उपस्थित ग्रह की स्थिति तथा उस स्थान से संबंधित ग्रह की दषा और अंतरदषा की जानकारी प्राप्त कर उससे संबंधित ग्रह शांति, मंत्रजाप तथा दान से आप अपने जीवन में समय का सदुपयोग कर अपने जीवन में सफलता प्राप्ति का रास्ता आसान कर सकते हैं। साथ ही कालपुरूष की कुंडली के अनुसार शनि की शांति, मंत्रजाप तथा काली वस्तुओं के दान करने चाहिए।

आपकी महत्वाकांक्षा कहीं आपको पतन के मार्ग पर तो नहीं ले जा रहीं???

आपकी महत्वाकांक्षा कहीं आपको पतन के मार्ग पर तो नहीं ले जा रहीं???
महत्वाकांक्षा ही व्यक्ति से नैतिक-अनैतिक, वैधानिक-अवैधानिक, सामाजिक-असाजिक कार्य कराती है। महत्वाकांक्षी होना अच्छी बात है किंतु अति सर्वत्र वर्जयेत् अर्थात् अपनी सामथ्र्य से अधिक की चाह अथवा गलत तरीके से महत्वाकांक्षा की पूर्ति पतन की ओर ले जा सकती है। कई बार ये महत्वाकांक्षा कानूनी शिकंजे का कारण भी बनती है। कइ विषय पर्र बार सामान्य कारण तो कई बार कोई विवाद, कोई गुनाह, संपत्ति से संबंधित झगड़े इत्यादि का होना आपकी कुंडली में स्पष्ट परिलक्षित होता है। अगर इस प्रकार के कोई प्रकरण न्यायालय तक पहुॅच जाए तो उसमें जय प्राप्त होगी या पराजय का मुॅह देखना पड़ सकता है अथवा सामाजिक प्रतिष्ठा प्रभावित हो सकती है इसका पूर्ण आकलन ज्योतिष द्वारा किया जाना संभव है। सामान्यतः कोर्ट-कचहरी, शत्रु प्रतिद्वंदी आदि का विचार छठे भाव से किया जाता है। सजा का विचार अष्टम व द्वादश स्थान से इसके अतिरिक्त दसम स्थान से यश, पद, प्रतिष्ठा, कीर्ति आदि का विचार किया जाता है। साथ ही सप्तम स्थान में साझेदारी तथा विरोधियों का प्रभाव भी देखा जाता है। इन स्थान पर यदि कू्रर, प्रतिकूल ग्रह बैठे हों तो प्रथमतया न्यायालयीन प्रकरण बनती है। इनकी दशाओं एवं अंतदशाओं में निर्णय की स्थिति में जय-पराजय का निर्धारण किया जा सकता है। इसके साथ ही षष्ठेश एवं अष्टमेश किस स्थिति में है उससे किस प्रकार का प्रकरण होगा तथा क्या फल मिलेगा इसका निर्धारण किया जा सकता है। जिन ग्रहों की विपरीत स्थिति या परिस्थितियों में कष्ट उत्पन्न हों, उसके ग्रहों की स्थिति, दशाओं का ज्ञान कर उसके अनुरूप आवश्यक उपाय जीवन में कष्टों की समाप्ति कर जीवन सुखमय बनाता हैं

आपत स्थिति से बचाव हेतु करें महामृत्युंजय मंत्र जाप -

महामृत्युंजय मंत्र जप व उपासना का बहुत ही महत्व है। किसी प्रकार की अनिष्ट की आशंका हो अर्थात् अष्टमस्थ राहु की दशा चल रही हो, मारकेश आदि की दशा चल रही हो या लगने पर, किसी भी प्रकार की भयंकर बीमारी से आक्रान्त होने पर मतलब रोगेश की दशा, अंतरदशा, अपने बन्धु-बन्धुओं तथा इष्ट-मित्रों पर किसी भी प्रकार का संकट आने वाला हो। किसी प्रकार से वियोग होने पर, स्वदेश, राज्य व धन सम्पत्ति विनष्ट होने की स्थिति में, अकाल मृत्यु की शान्ति एवं अपने उपर किसी तरह की मिथ्या दोषारोपण लगने पर, उद्विग्न चित्त एंव धार्मिक कार्यो से मन विचलित होने पर महामृत्युंजय मन्त्र का जप स्त्रोत पाठ, भगवान शंकर की आराधना से सद्बुद्धि, मनःशान्ति, रोग मुक्ति एंव सवर्था सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है। काम्य उपासना के रूप में भी इस मंत्र का जप किया जाता है। यह मंत्र निम्न प्रकार से है-
एकाक्षरी (1) मंत्र- हौं। त्र्यक्षरी (3) मंत्र- ॐ जूं सः। चतुराक्षरी (4) मंत्र- ॐ वं जूं सः। नवाक्षरी (9) मंत्र- ॐ जूं सः पालय पालय। दशाक्षरी (10) मंत्र- ॐ जूं सः मां पालय पालय।
वेदोक्त मंत्र- महामृत्युंजय का वेदोक्त मंत्र निम्नलिखित है-
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृताम् ॥
इस मंत्र में 32 शब्दों का प्रयोग हुआ है और इसी मंत्र में ॐ लगा देने से 33 शब्द हो जाते हैं। इसे श्त्रयस्त्रिशाक्षरी या तैंतीस अक्षरी मंत्र कहते हैं। श्री वशिष्ठजी ने इन 33 शब्दों के 33 देवता अर्थात् शक्तियाँ निश्चित की हैं जो कि निम्नलिखित हैं।
इस मंत्र में 8 वसु, 11 रुद्र, 12 आदित्य 1 प्रजापति तथा 1 वषट को माना है। क्योंकि शब्द ही मंत्र है और मंत्र ही शक्ति है। इस मंत्र में आया प्रत्येक शब्द अपने आप में एक संपूर्ण अर्थ लिए हुए होता है और देवादि का बोध कराता है। अतः आपद स्थिति से बचाव हेतु महामृत्युंजय जप साधना ही एक मात्र उपाय है। इस प्रकार जीवन में कुछ भी असामान्य हो तो अर्थात् ग्रह दशाएॅ अनुकूल ना हो तो महामृत्युंजय जाप से कष्टों से बचा जा सकता है।

क्या आप बार बार असफल हो रहे हैं???? ले ज्योतिष्य सुझाव

ज्योतिषीय गुणाभाग द्वारा बचें असफल होने से -
जब भी असफलता या खराब रिजल्ट का सामना करना पड़ता है तब लगभग सभी इसका दोष दूसरो को या परिस्थिति या अपने भाग्य को दे तो देते हैं किंतु कभी भी आत्मविश्लेषण करने का प्रयास नहीं करते। जब भी किसी की कुंडली का परीक्षण किया जाए तो दिखाई देता है कि वह व्यक्ति यदि असफल है तो इसके पीछे का वास्तविक कारण क्या हो सकता है। जैसे कि किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु की दशा चल रही हो और उसकी कुंडली में राहु लग्न, तीसरे, अष्टम, भाग्य स्थान में हो तो उसके जीवन में निरंतर प्रयास की कमी तथा अपनी क्षमता का वास्तविक ज्ञान का अंदाजा लगाये बिना कम प्रयास तथा कम क्षमता के साथ बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के प्रयास में असफलता को दर्शाता है इसी प्रकार यदि शुक्र की दशा चल रही हो तो भौतिक संसाधन के प्रति झुकाव के कारण अपने लक्ष्य में निरंतर ना रहना भी असफलता का कारण हो सकता है। यदि शनि की दशा चले और शनि तीसरे, सातवे या दसम स्थान में हो तो मानसिक भटकाव के कारण सफलता में थोड़ी कमी रह जाती है। अतः यदि सफलता प्राप्त करनी है तो कुंडली का विश्लेषण कराया जाकर उक्त ग्रहो की शांति कराना चाहिए। चलित दशाओं के मंत्रों का जाप, दान एवं रत्न धारण करने से असफलता से बचा जाकर सफलता पायी जा सकती है।

क्या आपके होनहार बच्चे का प्रदर्शन खराब हो रहा है-दिखाएॅ कुंडली

क्या आपके होनहार बच्चे का प्रदर्शन खराब हो रहा है-दिखाएॅ उसकी कुंडली
स्कूल षिक्षा तक बहुत अच्छा प्रदर्षन करने वाला अचानक अपने एजुकेषन में गिरावट ले आता है तथा इससे कैरियर में तो प्रभाव पड़ता ही है साथ ही मनोबल भी प्रभावित होता हैं अतः यदि आपके भी उच्च षिक्षा या कैरियर बनाने की उम्र में पढ़ाई प्रभावित हो रही हो या षिक्षा में गिरावट दिखाई दे रही हो तो सर्वप्रथम व्यवहार तथा दैनिक रूटिन पर नजर डालें। इसमें क्या अंतर आया है, उसका निरीक्षण करने के साथ ही कुंडली किसी विद्धान ज्योतिष से दिखा कर यह पता करें कि क्या कुंडली में शनि, राहु या शुक्र प्रभावकारी है। यदि कुंडली में शनि, राहु या शुक्र दूसरे, तीसरे, अष्टम या भाग्यस्थान में हो साथ ही इनकी दषा, अंतरदषा या प्रत्यंतरदषा चल रही हो तो गणित या फिजिक्स जैसे विषय की पढ़ाई प्रभावित होती है साथ ही ऐसे लोगों के जीवन में कल्पनाषक्ति प्रधान हो जाती है। युवा उम्र का असर उस के साथ ही इन ग्रहो का प्रभावकारी होना एजुकेषन या कैरियर में बाधक हो सकता है। यदि इस प्रकार की बाधा दिखाइ्र दे तो शांति के लिए भृगुरा पूजन साथ ही हनुमान चालीसा का पाठ एवं नियमित तौर पर काउंसिलिंग कराने से कैरियर की बाधाएॅ समाप्त होकर अच्छी सफलता प्राप्त की जा सकती है।




युवा बच्चों का बिगड़ता हुआ व्यवहार.........उसके ज्योतिष्य उपाय

युवा बच्चो का व्यवहार तथा ज्योतिषीय उपाय-
हर अभिभावक की दिली तमन्ना होती है कि उनके बच्चो को कभी किसी चीज की कमी ना हों, जो उन्हें नहीं हासिल हुआ, उसका अभाव उनके बच्चे को कभी भी ना हों। इसी चाहत में वे मांग करने के पहले से ही अपने बच्चे की सभी ख्वाहिशे पूरी करने का प्रयास करते हैं। बच्चों को जरूरत से ज्यादा साधन संपन्न करने के कारण बच्चो में संघर्ष का भाव नहीं रह जाता, जिससे उन्हें अच्छा करने या बड़ा बनने की उत्सुकता नहीं पनप पाती और वे जीवन में सफल होने के लिए कोई प्रयास नहीं करते। अगर आपका भी बच्चा सभी सुख सुविधा में जी रहा है और मेहनत करने से जी चुरा रहा हो तो देखें कि क्या उसके व्यवहार में एक अच्छा नागरिक या समाज तथा परिवार के प्रति कर्तव्यबोध है यदि नहीं तो सबसे पहले उसके जीवन से सुखसाधन कम कर संर्घष का माहौल प्रदान करें। किसी भी बच्चे की कुंडली में अगर लग्न, तीसरे, एकादश अथवा द्वादश स्थान में राहु या शुक्र हो तथा युवा उम्र में इन ग्रह दशा चल जाये तो सुख सुविधा का दुरूपयोग होता है। इसी प्रकार यदि लग्न, तीसरे, पंचम, सप्तम, दशम स्थान में शनि हो तथा शनि की दशा चल जाए तो सुविधासंपन्न करना घातक हो सकता है। अतः अपने बच्चे की कुंडली दिखाने के उपरांत ही उसके जीवन में आवश्यक सुविधा का समावेश करें तथा इस प्रकार की ग्रह दशाओं में ग्रह की शांति के साथ अपने बच्चे की काउंसिलिंग कराना तथा भृगुराशांति कराना चाहिए। मंगल के मंत्रों का जाप करना भी आवश्यक उपाय है।




समाज पर बढ़ता व्यसन का असर.....

समाज पर बढ़ता व्यसन का असर और उसके ज्योतिषीय कारण और निवारण
किसी भी जातक के जन्म कुंडली में ग्रहों की स्थिति के अलावा उसके ग्रह दषाओं के अनुरूप उसका व्यवहार तथा कर्म निर्धारित होता है... चूॅकि इंसान के जीवन में ग्रहो का प्रभाव होता है अतः ग्रहो की स्थिति एवं उनकी दशाएॅ अंतरदशाएॅ तथा उसकी ग्रह दषाओं का पूरा असर उसके जीवन पर दिखाई देता है...किसी भी व्यक्ति की मनःस्थिति के साथ उसके जीवन में परिस्थिति का बहुत महत्व होता है। अतः यदि किसी का तृतीयेश अथवा पंचमेश विपरीत कारक हो या सप्तमेश अथवा द्वितीयेश की स्थिति भी अथवा अनुकूल ना हो अथवा क्रूर ग्रहों से पापाक्रांत होकर छठवे आठवे या बारहवे स्थान पर हो जाए तो व्यक्ति कमजोर मानसिकता का होता है अतः ऐसी स्थिति में परेशानी या कष्ट की स्थिति में मानसिक संबल या परेशानी को दूर रखने के लिए व्यसन करने लगते हैं। कई बार शौक में भी व्यसन की आदत लत बन जाती है। इस प्रकार यदि व्यसन जीवन में परेशानी का सबब बन रहा हो तो ग्रह दशाओं का विश्लेषण कराया जाना चाहिए। उन ग्रह की शांति विशेषकर बुध की शांति, मंत्रजाप तथा दान करने से व्यसन से मुक्ति पाई जा सकती है।

आप क्यूँ अंधविश्वास के फेर में आ जाते है????

आप क्यूँ अंधविश्वास के फेर में आ जाते है???? जाने इसके ज्योतिष्य कारण व् उपाय
कोई छिक के डर से रूक जाता है तो किसी को बिल्ली का रास्ता काटना अपशकुन लगता है तो कोई टोक देने से नाराज हो जाता है ऐसी कई बातें हैं जो बहुत छोटी होते हुए भी कई बार हानि या परेशानी का सबब बन सकती हैं अतः किसी भी जातक में आस्था या विश्वास कब अन्धविश्वास में बदल जायेगा इसकी गणना उस जातक की कुंडली के नवम भाव से देखा जाता है यदि नवम भाव और तीसरा भाव कमजोर, नीच या क्रूर ग्रहों से पापाक्रांत हो तो व्यक्ति परेशानी या हताशा की स्थिति में आस्था से अंधविश्वास की राह में चला जाता है... यदि कोई व्यक्ति जरूरत से ज्यादा अंधविष्वासी हो तो उसके तीसरे तथा नवम स्थान का अंकलन कर उसके अनुरूप उपाय करने से इन अंधविष्वासों से छुटकारा पाया जा सकता है....कालपुरूष की कुंडली में नवम स्थान गुरू का है अतः जगत्गुरू श्रीकृष्ण की उपासना, पूजा तथा दही माखन का दान करने से इस प्रकार के अंधविश्वास से बचा जा सकता है...

क्या आपका बच्चा लगातार मोबाईल पर होता है????जाने ज्योतिष्य कारण व् उपाय

अगर आपका बच्चा लगातार मोबाईल पर होता है तो दिखाये उसकी कुंडली-
ये पूरा ब्रह्माण्ड चुंबकीय शक्ति पर ही टीका है इसका एक रूप इलक्ट्रोमेगनेटिक फोर्स भी है। वैज्ञानिक धारणाएँ भी हैं कि विनाश का कारण चुम्बकीय शक्ति का असन्तुलन है। मोबाइल टावर से निकालने वाली तरंगों से कई दिक्कतें हो सकती हैं। इससे सिरदर्द, सिर में झनझनाहट, लगातार थकान महसूस करना, चक्कर आना, डिप्रेशन, नींद न आना, आंखों में ड्राइनेस, काम में ध्यान न लगाना, कानों का बजना, सुनने में कमी, याददाश्त में कमी, पाचन की गड़बड़ी, अनियमित धड़कन, जोड़ों में दर्द, लंबे समय के बाद प्रजनन क्षमता में कमी, कैंसर, ब्रेन ट्यूमर और मिसकैरेज की आशंका भी हो सकती है। मोबाईल पर लगातार लगे रहना फोन पर बातें, गेम खेलना आजकल हर बच्चे का शौक बन गया है। कम उम्र में इस प्रकार की स्थिति लगातार बीमारी ही नहीं सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन को भी बाधित करती है। इस प्रकार मोबाईल पर लगातार व्यस्त रहने को अगर ज्योतिष से देखा जाए तो किसी भी व्यक्ति के लग्न, तीसरे अथवा एकादश स्थान में राहु हो तो ऐसी स्थिति में एडिकशन की हद तक चला जाता है। अतः राहु की शांति कराकर जीवन में आत्मनियंत्रण करने से परेशानी से बचा जा सकता है।

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Monday 13 June 2016

पारिवारिक जीवन में कष्ट....कराएं पितृ दोषों की शांति

शुचिनाम श्रीमतां गेहे योग भ्रष्ट प्रजायते अर्थात् जो परम् भाग्यषाली हैं वे श्रीमंतो के घर में जन्म लेते हैं... जिन बच्चों का ग्रह नक्षत्र उत्तम होता है, उनका जन्म तथा परवरिष भी उसी श्रेणी का होता है... कहा तो यहाॅ तक जाता है कि जिस व्यक्ति के प्रारब्ध में कष्ट लिखा होता है उसका जन्म विपरीत ग्रह नक्षत्र एवं कष्टित परिवार में होता है... गरूड पुराण में वर्णन है और देखने में भी आया है कि जिनके प्रारब्ध उत्तम नहीं होते उन्हें बचपन से ही कष्ट सहना होता है.... उनका जन्म परिवार के विपरीत परिस्थितियों में होता है और जिन्हें बड़ी उम्र में कष्ट सहना होता है, उनका कार्य व्यवसाय या बच्चों का भाग्य बाधित हो जाता है... इससे जाहिर होता है कि आपका प्रारब्ध कभी ही आप पर असर दिखा सकता है...अतः अपने भाग्यवृद्धि तथा सुख समृद्धि हेतु अपने कर्म अच्छे रखने चाहिए..इसके साथ ही पितृदोष की शांति कराना चाहिए तथा अन्नदान करना चाहिए।

कैसे रखे खुद को सेल्फ मोटिवेट......ज्योतिष्य उपाय

किसी भी जातक का लग्न और तीसरा स्थान यदि उच्च, स्वग्रही या मित्रराषि में हो तो ऐसे लोग सेल्फ मोटिवेटिव होते हैं और अपनी उन्नति के लिए लगातार प्रयास करते हुए अपने कार्य में महारत हासिल करते रहते हैं। यदि गुरू या शुभ ग्रह लग्न में अनुकूल हो तो व्यक्ति को स्वयं ही ज्ञान व आध्यात्म के रास्ते पर जाने को प्रेरित करता है। यदि इसपर पाप प्रभाव न हो तो व्यक्ति स्व-परिश्रम तथा स्व-प्रेरणा से ज्ञानार्जन करता है। अपने बड़ों से सलाह लेना तथा दूसरों को भी मार्गदर्षन देने में सक्षम होता है। यदि गुरू का संबंध तीसरे स्थान या बुध के साथ बनें तो वाणी या बातों के आधार पर प्रेरित होकर सफल होता है वहीं यदि गुरू का संबंध मंगल के साथ बने तो कौषल द्वारा मार्गदर्षक प्राप्त करता है शुक्र के साथ अनुकूल संबंध बनने पर कला या आर्ट के माध्यम से उन्नति प्राप्त करता है चंद्रमा के साथ संबंध बनने पर लेखन द्वारा सफलता पाता है। अतः लग्न या तीसरे स्थान का उत्तम स्थिति में होना सफलता का द्योतक होता है। लग्नेष या तृतीयेष यदि 6, 8 या 12 भाव में हो तो प्रायः ऐसे लोगों को स्वप्ररेणा से वंचित ही रहना पड़ता है। वही यदि लग्न में राहु या शनि जैसे ग्रह हों तो बच्चा अपनी मर्जी का करने का आदि होता है, जो भी अनुषासन के बाहर रहकर कार्य करता है। अगर ऐसे जातको को जो किसी भी प्रकार से स्वप्रेरणा या स्वविवेक के अधीन कार्य करने के आदी नहीं होते, ऐसे बच्चे जिनके अभिभावक अपने बच्चों के पीछे लगकर उन्हें कार्य कराते हैं, उनकी कुंडलियों का विष्लेषण कराकर प्रारंभ से ही उनके जीवन में सेल्फ मोटिवेषन लाने का प्रयास करना चाहिए साथ ही अगर ऐसी स्थिति ना बने तो कुंडली के ग्रहों का विष्लेषण कराया जाकर उचित उपाय लेने से स्वयं कार्य करने तथा अनुषासन में रहकर उन्नति के रास्ते खुलते हैं।

करें पूर्ण समय का सदुपयोग....पाएं जीवन में सफलता......

समय की शक्ति अद्भुत है। खोया हुआ मान, स्वास्थ्य, भूली हुई विद्या, छिना हुआ धन फिर आ सकता है, परंतु बीता हुआ समय कदापि नहीं लौट सकता। धन से भी महत्वपूर्ण है, समय की संपदा। इसलिए समय को व्यर्थ न जाने दीजिए। समय ही महानता के उच्चतम शिखर तक चढ़ने का सोपान है और सूर्य जैसे ग्रहों के अनुरूप नियम तथा नियमित रह कर समय का सदुपयोग करने से ही सफलता प्राप्त हो सकती है अतः किसी की कुंडली में एकादष स्थान से उसके समय के मूल्य को आंका जा सकता है। जिस भी व्यक्ति की कुंडली में एकादष स्थान का स्वामी उच्च, शुभ तथा अनुकूल स्थान पर हो अथवा शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो ऐसा जातक अपने कार्य में नियमित होता है तथा यदि उसका तीसरा स्थान भी शुभ हो तो ऐसे जातक की एकाग्रता भी अच्छी होती है यदि इसके साथ ही भाग्य स्थान भी अनुकूल हो तो ऐसे जातक को सफलता प्राप्ति में आसानी होती है अतः यदि आपका भाग्य अनुकूल हो साथ ही तीसरा स्थान एकाग्रता भी दे रहा हो तो एकादष स्थान को अनुकूल करने से आपको अवष्य ही सफलता प्राप्त हो सकती है। यदि आप अपने समय का सदुपयोग ना कर पा रहे हों तो एकादष स्थान के स्वामी ग्रह तथा उस स्थान पर उपस्थित ग्रह की स्थिति तथा उस स्थान से संबंधित ग्रह की दषा और अंतरदषा की जानकारी प्राप्त कर उससे संबंधित ग्रह शांति, मंत्रजाप तथा दान से आप अपने जीवन में समय का सदुपयोग कर अपने जीवन में सफलता प्राप्ति का रास्ता आसान कर सकते हैं। साथ ही कालपुरूष की कुंडली के अनुसार शनि की शांति, मंत्रजाप तथा काली वस्तुओं के दान करने चाहिए।


जीवन में लिए गए निर्णय ही आपके भविष्य का निर्धारण करते हैं............

आपके निर्णय ही करते हैं आपके भविष्य का निर्धारण -
मनुष्य का जीवन उसके निर्णयों पर आधारित है। हर व्यक्ति को दो या अधिक विकल्पों में से किसी एक को चुनता है और बाद में उसका वही चुनाव उसके आगे के जीवन की दिशा और दशा को निर्धारित करता है। एक सही व सामयिक निर्णय जीवन को समृद्धि के शिखर पर पहुँचा सकता है तो गलत निर्णय बर्बादी के कगार पर ले जा सकता है। कुशलता का अर्थ ही सही काम, सही ढंग से, सही व्यक्तियों द्वारा, सही स्थान व सही समय पर होना है। निर्णय लेना अनिवार्य है किन्तु सही समय पर सही निर्णय लेना सक्षम व कुशल प्रबंधक का ही कार्य है। इसे हम ज्योतिषीय गणना में कालपुरूष की कुंडली द्वार उसके लग्नेष, तृतीयेष, भाग्येष और एकादषेष द्वारा देख सकते हैं। अगर किसी जातक की कुंडली में ये स्थान उच्च तथा उसके स्वामी अनुकूल स्थिति में हों तो उसके निर्णय सही साबित होते हैं और अगर क्रूर ग्रहों से आक्रांत होकर पाप स्थानों पर बैठ जाये तो निर्णय गलत हो जाता है। किंतु कई बार ऐसे विपरीत बैठे ग्रह दषाओं में लिए गए निर्णय बेहद कष्टकारी साबित होते हैं, जिसे कहा जा सकता है कि विनाष काले विपरीत बुद्धि। जैसे किसी की राहु की दषा प्रारंभ हो रही हो या होने वाली हो तो वह नौकरी छोड़ने या व्यापार करने का निर्णय ले ले, जिसमें हानि की संभावना शतप्रतिषत होती है।

क्या आपके इनकम में बार बाधाएँ आ रही है????????जाने ज्योतिष्य वजहों से........

जब आये इनकम में बाधा तब करें ज्योतिषीय उपाय -
आज के भौतिक युग में प्रत्येक व्यक्ति की एक ही मनोकामना होती है की उसकी आर्थिक स्थिति सुदृढ रहें तथा जीवन में हर संभव सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती रहे। किसी व्यक्ति के पास कितनी धन संपत्ति होगी तथा उसकी आर्थिक स्थिति तथा आय का योग तथा नियमित साधन कितना तथा कैसा होगा इसकी पूरी जानकारी उस व्यक्ति की कुंडली से जाना जा सकता है। व्यक्ति की कुंडली में क्रमशः दूसरे व ग्यारहवें भाव को धन स्थान व आय स्थान कहा जाता है। इसके साथ ही आर्थिक स्थिति की गणना के लिए चैथे व दसवें स्थान की शुभता भी देखी जाती है। यदि इन स्थानों के कारक प्रबल हों तो अपना फल देते ही हैं। निर्बल होने पर अर्थाभाव बना रहता है विशेषतर यदि धनेश सुखेश या लाभेश छठे आठवें या बारहवें स्थान में हो या इसके स्वामियों से युति करें तो धनाभाव कर्ज व परेशानी बनी ही रहती है। जब भी आय में बाधा आयें या खर्चे बढ़ने लगे तो अपनी कुंडली का विश्लेषण कराकर आवश्यक ज्योतिषीय उपाय लेना चाहिए। जिसमें विशेषकर ऋणमोचक मंगल स्त्रोत का पाठ, मंगल का व्रत तथा लाल वस्तुओं का दान करना चाहिए।

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Sunday 12 June 2016

बदनामी का सामना क्यों करना पड़ता है........ जाने ग्रह दशाओं से

बदनामी किसी भी इंसान के लिए सबसे बुरा वक्त कहा जा सकता है। कई बार जीवन में आप कुछ भी गलत नहीं कर रहे होते हैं किंतु जब कालचक्र की गति विपरीत होती है, तब उसके निशाने पर आ ही जाते हैं। सामान्य वक्त में कुछ जातक जरूर कुछ गलत या कार्य या गतिविधियों में लिप्त होते हैं हालांकि तब उन पर कोई भी दाग प्रत्यक्षतः नहीं लगता और वह साफ-साफ बच निकलता है किंतु बुरा वक्त उन्हें भी नहीं छोड़ता और ऐसे में उनका छोटा अपराध भी जग जाहिर हो जाता है। एक और परिस्थिति तब आती है जबकि आप तो किसी के बारे में अच्छा सोचते हों और अच्छा करते भी हों किंतु वही इंसान आपके बारे में गलत धारणा बैठा ले.........राहु अथवा द्वितीयेश, तृतीयेश, अष्टमेश या भाग्येश के ग्रहों का संबंध या दृष्टि संबंध बने या शनि, गुरू जैसे ग्रह राहु से पापाक्रांत हो और उन ग्रहों की दशाएॅ चले तो व्यक्ति मतिभ्रम का शिकार बनता है, अपने को श्रेष्ठ समझने लगता है और परिणामस्वरूप उसके द्वारा अक्सर गलतियां ही होती हैं। राहु जब किसी क्रूर या पापी ग्रह के साथ होते हैं तो ऐसे में उनका बुरा प्रभाव अधिक भयावह रूप से सामने आता है..........यदि किसी जातक की जन्म कुण्डली के अनुसार ऐसी स्थिति बने तो ऐसे में उसे कलंक, बेवजह बदनामी का सामना करना ही पड़ता है। यदि इस दरमियान किसे जातक का आचरण सही नहीं है तो उसे इसका दण्ड जरूर मिलता है......अतः जानते बुझते या अनजाने में भी इस प्रकार की स्थिति बन रही हो, तो जातक को पितृशांति करानी चाहिए। पापाक्रांत ग्रहों को शांत करने के लिए मंत्रजाप, दान तथा व्रत-पूजन करना चाहिए।

कठिन परिस्थितियों का सामना करें अपनी कुंडली के ग्रहयोग को मजबूत करें

जब जीवन की कठिन परिस्थितियां हमें लम्बे समय तक पीड़ा पहुंचाती है तो हम असहाय महसूस करने लगते हैं और जीवन में एक निराशावादी दृष्टिकोण अपना लेते हैं. हमारा दिमाग हमें यह विश्वास दिला देता है कि हमारी समस्याएं काफी गम्भीर है और इसे कभी भी खत्म नहीं किया जा सकता है कठिनाई एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत व्यक्ति सुदृढ़, प्रबुद्ध एवं अनुभवी बनता है। कठिनाइयाँ जीवन की कसौटी हैं, जिनमें हमारे आदर्श, नैतिकता एवं शक्तियों का मूल्यांकन होता है। मनुष्य जब तक जीवित है, उसे परिवर्तनशील उतार -चढ़ाव और बनने-बिगड़ने वाली अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना ही होगा। विपत्तियाँ संसार का स्वाभाविक धर्म है। वे आती हैं और सदा आती रहेंगी। इन कठिनाईयों के आने से निराषावादी बन रहे हों तो अपनी कुंडली के तृतीय भाव का विष्लेशण कराकर उस स्थान पर उपस्थित ग्रह और उसके स्वामी ग्रह की स्थिति का आकलन कर उन ग्रहों को अनुकूल बनाकर निराषावादी दृश्टिकोण से निकलकर आषापूर्ण प्रक्रिया को अपनाते हुए परिस्थितियों को अपनी क्षमता के अनुसार उपाय लेने से जीवन में उपस्थित कठिनाईयों से दूर रहा जा सकता है।

सफलता पाने के ज्योतिषीय मंत्र -

सफलता पाने के ज्योतिषीय मंत्र -
जिंदगी में सफलता पाने में दो चीजें बेहद अहम भूमिका निभाती हैं, समय और ᅤर्जा। सही समय पर अगर आप अपनी ᅤर्जा को सकारात्मक दिशा में मोड़ दें, तो दुनिया में कोई भी ताकत आपको आपकी इच्छित सफलता पाने से नहीं रोक सकता। आप की इस स्वप्न को पूरा करने में ज्योतिषीय गणना का बेहद अहम योगदान होता है। सबसे पहले आप पता करें की आपकी उर्जा की दिशा और दशा क्या है, इसके लिए अपनी कुंडली के लग्न, तीसरे एवं भाग्यस्थान के ग्रहों का विश्लेषण करालें साथ ही समय अर्थात् अपनी कुंडली में चल रही ग्रह दशाओं का आकलन कराकर पता लगा लें कि आपके लिए इस समय और इस समय की उर्जा किस क्षेत्र में आपके लिए सफलता का मार्ग प्रशस्त करेगी। इस प्रकार ज्योतिषीय गणना आपके जीवन में सफलता का स्वाद जरूर चखा देगी। अतः तत्काल ज्योतिषीय गणना करायें और मनचाही सफलता प्राप्त करें।

उच्च शिक्षा में विषय चयन में परेशानियाँ?????????ले ज्योतिष्य सलाह

किस विषय का चयन कर आगे पढ़े ????
अगर कोई जातक ग्यारहवीं में गया हो या फिर काॅलेज में आगे पढ़ाई जारी रखनी है तो हर किसी का एक ही सवाल होता है कि किस विषय में आगे पढ़ाई जारी रखी जाए। अगर यहीं प्रश्न आपके दिमाग में भी पैदा हो रहा हो तो अपनी कुंडली या अपने बच्चे की कुंडली दिखाकर यह ज्ञात कर लें कि आगे किस फिल्ड में पढ़ाई जारी रखी जाए जिससे लगातार सफलता मिले और पढ़ाई समाप्त होने के उपरांत रोजगार भी आसानी से और अच्छी प्राप्त हो सकें। तब सबसे यह देख लें कि आपकी भविष्य में क्या दशा चलने वाली है अगर काॅलेज में प्रवेश करते ही आपकी शुक्र, राहु अथवा शनि की दशा चलेगी तो निश्चित ही आपको पढ़ाई में बाधा आ सकती है अतः तकनिकी विषय में पकड़ अच्छी होने के बावजूद भी इन ग्रह दशाओं में सफलता प्राप्त करना मुश्किल होता है साथ ही अगर ये ग्रह लग्न, तीसरे, पंचम, सप्तम अथवा एकादश स्थान पर हों तो पढ़ाई में बाधा आती ही है। इसके अलावा आपकी कुंडली में उच्च के ग्रह कौन से हैं जो आपकी आय के साधन बनेंगे, उन ग्रहों से संबंधित विषय में पढ़ाई कर अपने जीवन में निरंतर सफलता प्राप्त की जा सकती है।

क्या लगातार आपके इलेक्टानिक उपकरण ख़राब हो रहे हैं????????ले ज्योतिष्य सलाह...............

क्या आपके यहाॅ इलेक्टानिक वस्तुएॅ लगातार खराब हो रही है -
ग्रह, नक्षत्र अपनके जीवन पर ही नहीं वरन् अपसे जुझी वस्तुओं पर भी पूरा प्रभाव डालते हैं। अगर आपका मोबाईल लगातार खराब हो रहा हों इसके अलावा आपके घर पर फ्रीज, आॅरो, टीवी, लाईट इत्यादि इलेक्टानिक वस्तुएॅ लगातार रिपेयर में जा रही हों अथवा एक चीज सुधरवाने पर दूसरी बिगड़ रही हो, तो यह बहुत सामान्य बात नहीं है। इस प्रकार से वस्तुओं के लगातार खराब होने का ज्योतिषीय कारक होता है। अगर आपकी भी इलेक्टानिक चीजें लगातार खराब हो रही हों अथवा एक के बाद एक चीजें मरम्मत में जा रही हों तो अपनी कुंडली का ज्योतिषीय विश्लेषण किसी विद्धान आचार्य से कराकर देख लें कि कहीं आपकी राहु की दशा तो नहीं चल रही है और आपकी कुंडली में राहु लग्न, दूसरे, तीसरे, छठवे, आठवे, भाग्य या एकादश स्थान पर तो नहीं है। अगर इन स्थानों पर राहु हो और राहु की दशा चलें तो घर पर अव्यवस्था चलती है और चीजें लगातार मरम्मत में जाती रहती है। अतः वस्तुओं के मरम्मत कराने के साथ राहु की शांति, सूक्ष्म जीवों की सेवा करनी चाहिए।

क्या आपके अपने बाॅस से नहीं पटती????????जाने ज्योतिष्य वजह...........

बाॅस से नहीं पटतीः ज्योतिषीय कारक-
कई बार अच्छा कार्य करने के बाद भी बाॅस खुश नहीं होते और कमी निकालते रहते है। किसी किसी को कार्यबोझ अधिक होने के बाद भी बाॅस छोटी-छोटी बातें जैसे छुट्टी स्वीकृत करना जैसे कार्यो के लिए भी सहयोग नहीं करते वहीं कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें बाॅस हर संभव सहयोग तथा कार्य ना करने पर ही पसंद करते हैं। इसके पीछे ज्योतिषीय कारण देखा जाए तो यदि किसी जातक के दशम स्थान जहाॅ से बाॅस तथा कर्म का क्षेत्र देखा जाता है। यदि उस स्थान का स्वामी सूर्य या शनि होकर किसी भी प्रकार से एक दूसरे से पापाक्रांत हो जाए तो ऐसे में बाॅस से कभी नहीं पटती उसी प्रकार यदि सूर्य या शुक्र अथवा गुरू या शुक्र हो जाए तो भी इसी प्रकार की स्थिति बनती है। इसी प्रकार यदि लग्न, चतुर्थ, अष्टम अथवा दशम स्थान में शनि हो तो ऐसे में बाॅस के साथ इगो के कारण नापंसदी बनती है। इस प्रकार यदि आपके भी बाॅस से पटरी नहीं जम रही हो तो अपनी कुंडली का विश्लेषण कराकर सूर्य, शनि जैसे ग्रहों की शांति कराकर अपने बाॅस से दोस्ती की जा सकती है।

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Saturday 11 June 2016

क्यूँ होते है रिश्तों में अनबन??????जाने ज्योतिष द्वारा

प्रेम में पंगा क्यू ????
सृष्टि के आरंभ से ही नर और नारी में परस्पर आकर्षण विद्यमान रहा है, जिसे आधुनिक काल में प्रेम का नाम दिया जाता है। जब भी कोई अपनी पसंद रखता तब वह प्रेम करता है। यह प्रेम जब माता-पिता, भाई-बहनों, दोस्त-रिष्तेदारों से हो सकता है तब किसी से भी होता है। ज्योतिषीय रूप देखा जाए तो प्रेम करने हेतु लग्न, तीसरे, पंचम, सप्तम, दसम या द्वादष स्थान में शनि अथवा गुरू, शुक्र, चंद्रमा, राहु या सप्तमेष अथवा द्वादषेष शनि से आक्रांत हो तो ऐसे लोगों को प्यार जरूर होता है। चूॅकि शनि स्वायत्तषासी बनाता है अतः प्रेम के बाद स्वयं की स्वेछा से कार्य करने के कारण अपने प्यार से ही पंगा भी कर लेते हैं। अतः जो ग्रह प्यार का कारक है वहीं ग्रह प्यार में पंगा भी देता है। अतः अगर किसी के प्यार में पंगा हो जाए तो उसे तत्काल शनि की शांति कराना चाहिए। इसके साथ शनि के मंत्रों का जाप, काली चीजों का दान एवं व्रत करना चाहिए। इससे प्यार हो और वह प्यार निभ भी जाए

क्या आपको मन नहीं लगता?????जाने ज्योतिष्य उपाय................

मन नहीं लगता -
मन नहीं लगता या नहीं लग रहा ये अकसर सुनने में आता है। मन अति चंचल है। कहा जाता है कि मन के हारे हार है और मन के जीते जीत। अतः मन किसी व्यक्ति में इतना मायने रखता है। और कई बार मन कुछ भी करने को नहीं करता है। मन की भटकन को रोकने के लिए ज्योतिष कारगर साबित होता है। मन को हम कुंडली के तीसरे स्थान से देखते है। अगर किसी का तीसरा स्थान विपरीत स्थिति में या कू्रर ग्रहों के साथ हो तो ऐसा व्यक्ति मन के अधीन रहने का आदी होता है और अपने जीवन में अनुषासन नहीं रख पाता जिसके कारण सफलता प्राप्ति नहीं होती और परेषान रहता है। वहीं यदि किसी का तीसरा स्थान अनुकूल स्थिति में और सौम्य ग्रह हो या सौम्य ग्रह की दृष्टि हो तो ऐसे लोग हमेषा मन को काबू में रख पाते हैं। अतः यदि आपका मन भी बहुत चंचल हो तो अपने तीसरे स्थान के ग्रहों का विष्लेषण कराकर उस ग्रह की शांति कराना चाहिए साथ ही तीसरे स्थान का स्वामी बुध होता है अतः बुद्धि को साकारात्मक रखने एवं लगातार क्रियाषील रहने के लिए बुध से संबधित मंत्रजाप, दान करना भी मन को रूकने में सफल हो सकता है।

दान करें जीवन का कल्याण होगा

कीर्तिभवति दानेन तथा आरोग्यम हिंसया त्रिजशुश्रुषया राज्यं द्विजत्वं चाऽपि पुष्कलम। पानीमस्य प्रदानेन कीर्तिर्भवति शाश्वती अन्नस्य तु प्रदानेन तृप्तयन्ते कामभोगतः।। दान से यश, अहिंसा से आरोग्य तथा ब्राह्मणों की सेवा से राज्य तथा अतिशय ब्रह्मत्व की प्राप्ति होती है। जलदान करने से मनुष्य को अक्षय कीर्ति प्राप्त होती है। अन्नदान करने से मनुष्य को काम और भोग से पूर्ण तृप्ति मिलती है। दानी व्यक्ति को जीवन में अर्थ, काम एवं मोक्ष सभी कुछ प्राप्त होता है। कलयुग में कैसे भी दिया गया दान मोक्षकारक होता है। तुलसी दासजी ने कहा है- प्रगट चार पद धर्म कहि कलिमहि एक प्रधान येन केन विधि दिन्है दान काही कल्याण। दान की महिमा का अन्त नहीं संसार से कर्ण जैसा उदाहरण दानी के रूप में कोई नहीं। दान के विषय में चर्चा करने से पूर्व एक बात स्पष्ट करना चाहते है। कमाएं नीति से, खर्च करें रीति से, दान करें प्रीति से। ‘‘दान मगर कल्याण’’ यह वाक्य सामान्यतः हमें सुनने को मिल जाता है, किन्तु सामान्य व्यक्ति के मन में अनेकों प्रश्न उठ खड़े होते हैं- 1. दान क्या है ? 2. दान क्यों करें ? 3. दान का महत्व क्या है ? 4. दान कैसे करें ? 5. दान किसको करें ? 6. दान का फल क्या होता है ? परमात्मा ने प्रत्येक प्राणी को जीवित रहने के लिए, परिवार का पालन पोषण करने के लिए जीविका प्रदान की है लेकिन संसार में ऐसे प्राणियों की भी कमी नहीं है जो अत्यन्त निर्धन हैं, लाचार हैं, असहाय हैं, अपंग हैं तथा अशक्त हैं। उन प्राणियों के जीवन की रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है क्योंकि परम पिता परमेश्वर ने हमें इस योग्य बनाया है कि हम अपने परिवार के पालन पोषण के साथ-साथ, अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद भी, अन्य मजबूर तथा अशक्त लोगों की मदद कर सकें। मनुष्य के अतिरिक्त जीव-जन्तु जो स्वयं अपने भोजन की व्यवस्था नहीं कर सकते हैं, उनकी जिम्मेदारी भी भगवान ने मानव को दी है। इसलिए मानव मात्र का परम कर्तव्य है कि वह अपने परिवार के अतिरिक्त जीव-जंतुओं आदि के लिए भी भोजन का प्रबन्ध करे युग के अनुसार दान देने के तरीकों में भी परिवर्तन आया है जैसे- 1. सतयुग में दान- आदर के साथ श्रद्धापूर्वक किसी के घर जाकर दिया जाता था। यह उत्तम दान कहलाता है। 2. त्रेता युग में दान- इस युग में पात्र को अपने घर बुलाकर सम्मान पूर्वक दान दिया जाता था। 3. द्वापर युग में- याचना करने पर अर्थात मांगने के बाद दान दिया जाता था। 4. कलयुग में दान- तहलकर अर्थात काम लेने के बाद दान दिया जाता है जो लगभग निष्फल होता है । अतः हर युग में दान का महत्व रहा है। अलग-अलग ढंग से दान किया जाता रहा है परन्तु जब हमको ज्ञान हो चुका है तो क्यों न उत्तम प्रकार का दान आदर सहित दरिद्र के घर जाकर सम्मान पूर्वक दिया जाये, जिसका पूर्ण फल प्राप्त होता है। परमात्मा भी प्रसन्न होंगे तथा आपको भी खुशी मिलेगी। दान क्यों करें ? - लगभग सभी धर्मों के अनुसार हमें अपनी आय का कुछ भाग अवश्य ही दान करना चाहिए। ऐसा सभी धर्म ग्रन्थों में लिखा हुआ है तथा हम अपने पूर्वजों तथा बुजुर्गों से सुनते आए हैं कि हमें अपनी कमाई में से कुछ न कुछ भाग अवश्य ही दान करना चाहिए। भोजन बनाने के बाद भगवान को भोग लगाए बिना ग्रहण करना पाप समान माना जाता है। अतः भगवान को भोग लगाने के बाद आश्रित जीव-जंतुओं का भाग निकालना चाहिए। इस क्रिया को हम सभी के पूर्वज (दादी, नानी आदि) करते चले आए हैं। किसी भी त्योहार, तिथि विशेष (अमावस्या, पूर्णिमा, एकादशी आदि) पर तो ब्राह्मण, पंडित, पुजारी आदि को भोजन कराकर दक्षिणा देना हमारा परम कर्तव्य माना जाता है। हमारे शास्त्रों के अनुसार भी इस प्रकार से किया गया दान आवश्यक तथा उत्तम होता है। इस प्रथा को हम अपने आस पास सभी स्थानों पर देखते चले आए हैं। दान किसी पर अहसान करके नहीं करना चाहिए क्योंकि यह तो हमारी स्वेच्छा तथा श्रद्धा पर निर्भर होता है तथा दान देते समय अपने दुखों, कष्टों, दारिद्र््य आदि को कम किया जाना ही जातक का उद्देश्य होता है। अनिष्ट ग्रहों की शांति तथा विभिन्न प्रकार के कष्ट निवारण के लिए भी दान किया जाता है। अपनी आय का कुछ भाग दान करने से आत्म शुद्धि तथा धन की वृद्धि अवश्य ही होती है। यह परम सत्य है कि दान अपने स्वयं के कल्याण के लिए ही किया जाता है। दान से दरिद्रता दूर होती है, यहाँ तक कि अगला जन्म तक सुधर जाता है। दान देने से कभी भी कमी नहीं आती है क्योंकि किसी भी प्रकार से किया गया दान कभी भी खाली नहीं जाता है अपितु अगले जन्म तक उसका फल-प्रतिफल प्राप्त होता है। दान पुण्य कर्मों के एकत्रीकरण का उपाय भी है तथा अपने द्वारा किए गए अशुभ कर्मों का पाश्चाताप भी है। अशुभ कर्मों के निवारण के अनेकों सहज व सटीक उपाय हैं परन्तु उन सभी में सबसे महत्वपूर्ण उपाय दान है। अतः दान जब भी किया जाये सबको दिखाकर, प्रचार प्रसार करके कभी नहीं करना चाहिए, इस प्रकार से किया गया दान व्यर्थ हो जाता है क्योंकि सभी जानते हैं कि दान इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि एक हाथ से दान किया जाये तो दूसरे हाथ को पता भी न चले। इसीलिए हमारे समाज ने गुप्त दान को सबसे अधिक महत्वपूर्ण स्थान दिया है। इस सम्बन्ध में एक छोटी सी कथा प्रचलित है- सीताराम नामक व्यक्ति मृत्योपरांत जब यमराज के दरबार मे पहुँचा तो यमराज ने फैसला सुनाते हुये कहा कि आप नर्क में जाइए तो सीताराम अड़ गया कि मैं नर्क में नहीं जाऊँगा। मैंने तो पृथ्वी पर रहकर अनेकों धार्मिक कार्य किए हैं, असीमित दान किया है, अनेकों मंदिर, धर्मशालाएँ, विद्यालय आदि बनवाए हैं, अनेकों यज्ञ आदि किए हैं, निर्धनों को कम्बल बांटे हैं तथा अनेकों बार लंगर आदि की व्यवस्था की है तब फिर मुझे नर्क में क्यों भेजा जा रहा है। यमराज ने हँसकर कहा कि तुमने ठीक ही कहा है कि तुमने अनेकों धार्मिक तथा कल्याणकारी कार्य किए हैं, परन्तु तुमने वे सभी कार्य अपना नाम कमाने अर्थात अपनी प्रसिद्धि के लिए किए हैं। सीताराम तुमने ध्यान नहीं दिया कि तुमने स्थान-स्थान पर अपना नाम लिखवाया है अर्थात तुम्हारे द्वारा किया गया प्रत्येक दान स्वार्थ से परिपूर्ण था तथा स्वार्थ पूर्वक किया गया दान दान नहीं कहलाता है। अतः तुम्हें नर्क भोगना ही पड़ेगा। इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि दान हमेशा गुप्त रूप से करना चाहिए, दान के बारे में किसी को भी पता नहीं चलना चाहिए तभी हम दान के उचित फल के भागीदार होंगे। गीता में भी कहा गया है कि कर्म करके फल की इच्छा भगवान के ऊपर छोड़ देनी चाहिए। कहा भी है- दान दीन को दीजिये, जासे मिटे दरिद्र की पीर। औषधि वाको दीजिये, जासे होवे निरोगी शरीर ।। दान किसको दें ? -यह भी एक विशिष्ट प्रश्न है। दान देने के मुख्यतः दो नियम हैं जिनका हमें दान देते समय ध्यान रखना चाहिए - प्रथम - श्रद्धा तथा द्वितीय - पात्रता। श्रद्धा से तात्पर्य है कि हमारा कितना मन है अर्थात हमारी कितनी क्षमता है। क्षमता से कम या अधिक दिया गया दान दान नहीं अपितु पाप कहलाता है। इसको हम एक उदाहरण से भली भाँति समझ सकते हैं, यदि किसी जातक की क्षमता पचास रूपये दान करने की है तो उसे पचास रूपये ही दान करने चाहिए। पचास के स्थान पर दस रूपये अथवा सौ रूपये दान करना दान नहीं अपितु पाप है। दान कार्य शुद्ध तथा प्रसन्न मन से किया जाना चाहिए। बिना श्रद्धा के मुसीबत अथवा बोझ समझ कर दान कभी भी नहीं करना चाहिए, इससे तो अच्छा है कि दान कार्य किया ही न जाये। किसी को अहसान जताकर कभी भी दान नहीं देना चाहिए। शुद्ध हृदय से दान देने से अपने हृदय को भी शांति मिलती है तथा दान लेने वाला भी खुश होकर मन से दुआ देता है, यह जरूरी नहीं कि उस दुआ की शब्दों के द्वारा ही अभिव्यक्ति हो। दान का दूसरा नियम पात्रता है अर्थात हम दान किसको दे रहे हैं वह दान की हुई वस्तु का उपभोग कर पाएगा या नहीं। इस तथ्य को हम इस प्रकार से समझ सकते हैं कि किसी देहात में बान से बुनी चारपाई पर सोने वाले व्यक्ति को शहर में डनलप के गद्दे पर यदि सोने के लिए कहा जाये तो उसे सारी रात नींद नहीं आएगी करवटें ही बदलता रहेगा। इसी प्रकार गरीब भिक्षुक को जो फटे-पुराने वस्त्रों में रहता है यदि नया वस्त्र पहनने को दिया जाये तो वह वस्त्र उसको काटेगा, वह उस वस्त्र को पहन नहीं पाएगा या तो वह उसे बेच देगा या फेंक देगा, उसे तो फटे पुराने घिसे हुये ही वस्त्र पसन्द आएंगे। भरे पेट वाले को भोजन खिलाने से उसके मन से कोई दुआ नहीं निकलती है अपितु यदि भूखे पेट वाले दरिद्र व्यक्ति को भोजन खिलाया जाये तो वह पूर्णतः तृप्त होकर मन से दुआएँ ही देगा। दान भोजन का ही नहीं किसी भी वस्तु का हो सकता है। रोगी के लिए औषधि, अशिक्षित के लिए शिक्षा, भूखे को भोजन, निर्वस्त्र को वस्त्र कहने का तात्पर्य यह है कि जिस के पास जिस वस्तु की कमी है और वह उसको प्राप्त करने में असमर्थ है तो अमुक जातक को अमुक वस्तु की व्यवस्था करा देना भी दान ही श्रेणी में आता है। अतः दान देते समय विशेष ध्यान देना चाहिए कि दान उचित पात्र को ही दिया जाये। विभिन्न ग्रहों का दान किसको कब दें ? - दान क्या दें ? - नव ग्रहों की शांति के लिए ज्योतिष शास्त्र में अनेक उपाय सुझाए गए हैं जैसे- मंत्र, जाप, हवन, दान, औषधि स्नान, तीर्थ, व्रत, यंत्र-मंत्र, नग आदि। इनमें से दान सबसे सरलतम उपाय है जो जातक को अपनी कुण्डली विश्लेषण के उपरान्त अनिष्ट ग्रहों की शांति के लिए समय-समय पर करते रहना चाहिए। पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार मानव को सुख दुख प्राप्त होते हैं। मानव अनेकों प्रकार की समस्याओं का सामना करता रहता है। पूर्णतः कष्ट निवारण का तो कोई भी सामथ्र्य नहीं रखता है किन्तु उपाय दान आदि से कष्ट कम अवश्य हो जाता है। नवग्रहों से सम्बन्धित दान की जाने वाली वस्तुओं के विषय में यों अधिकांश लोग जानते हैं फिर भी जन साधारण की जानकारी के लिए यह जानकारी उपयोगी एवं आवश्यक सिद्ध हो सकती है। दान का फल किसी वस्तु का दान करने से क्या फल मिलता है, इसको हम निम्न तालिका से जान सकते हैं। जिस वस्तु या खाद्य पदार्थ का दान किया जाता है, उस दिन उसका भोग-उपभोग नहीं करना चाहिए। वस्तु या पदार्थ त्याग के दिन इच्छानुसार बढ़ाए जा सकते हैं, जैसे- तीन दिन, एक सप्ताह, एक माह अथवा चालीस दिन या चातुर्मास। यदि आपका धन कहीं अटका हुआ है तो- 1. पूर्णिमा के दिन चन्द्र ग्रह के निमित्त दान करें। 2. सोमवार के दिन सफेद वस्त्रों का दान करें। 3. मंगलवार के दिन चैराहे पर सरसों का तेल डालें। 4. बुधवार के दिन गणेश जी को लड्डू का भोग लगाकर बाल गोपालों को बांटे/दान करें। 5. शनिवार के दिन अदरक अथवा सरसों के तेल का दान करें। दान के नियम- 1. दान उचित पात्र को ही दें। 2. दान श्रद्धापूर्वक दें। 3. दान शुद्ध हृदय से दें। 4. दान किसी भी प्रकार का प्रचार करके न करें। 5. दान अपनी कुण्डली का विश्लेषण कराके उचित पात्र को दें। 6. दान दिन/ वार के अनुसार करें। 7. दान शत्रु ग्रहों का न करें। 8. दान उच्च के ग्रहों का न करें। 9. दान नीच के ग्रहों का अवश्य ही करें। 10. दान कुण्डली में स्थित षष्टम, अष्टम तथा द्वादश भावों के स्वामियों का हमेशा करें। 11. दान सवेरे के समय बिना मुंह जूठा किए अर्थात् बिना खाये-पिये ही करें। 12. दान घर से बाहर निकलते समय ही देना चाहिए। 13. दान अनजान/अजनबी व्यक्ति को ही करना चाहिए। 14. दान किसी दरिद्र व जरूरतमन्द को ही करें। 15. दान ऐसे व्यक्ति को करना चाहिए जो दोबारा न दिखे या न मिले। 16. दान की गई वस्तु को उस दिन ग्रहण न करें। 17. दान अपनी क्षमता के अनुसार ही करें। 18. दान करके कभी भी न जताएं। 19. दान इस प्रकार से करें कि एक हाथ से करें तो दूसरे हाथ को पता भी न चले। 20. दान करके भूल जाएं उसे कभी याद न करें। 21. दान का हिसाब न लगाएं।

अस्त ग्रहों का कुंडली पर प्रभाव

सूर्य को ग्रहों का राजा कहा जाता है। जो ग्रह सूर्य से एक निष्चित अंषों पर स्थित होने पर अपने राजा के तेज और ओज से ढंक जाता है और क्षितिज पर दृष्टिगोचर नहीं होता तो उसका प्रभाव नगण्य हो जाता है। भारतीय फलित ज्योतिष में ग्रहों की दस अवस्थाएं हैं। दीप्त, स्वस्थ, मुदित, शक्त, षान्त, पीडित, दीन, विकल, खल और भीत। जब ग्रह अस्त हो तो विकल कहलाता है। अस्त होने का दोष सभी ग्रहों को है। सूर्य से ग्रह के बीच एक निष्चित अंषों की दूरी रह जाने पर उस ग्रह को अस्त होने का दोष माना जाता है। चन्द्रमा जब सूर्य से 12 अंष के अंतर्गत होता है तो अस्त माना जाता है। इसी प्रकार मंगल 7 अंषों पर, बुध 13 अंषों पर, बृहस्पति 11 अंषो पर, शुक्र 9 अंष और शनि 15 अंष में आ जाने पर अस्त होते हैं। ये प्राचीन मान्यताएं हैं। वर्तमान में कुछ विद्वानों का मत है कि ग्रह को तभी अस्त मानना चाहिये जबकि वह सूर्य से 3 अंष या इससे कम अंषों की दूरी पर हो। जो ग्रह सूर्य से न्यूनतम अंषों से पृथक होगा उसे उसी अनुपात में अस्त होने का दोष लगेगा। चन्द्रमा और बुध अस्त होने की स्थिति:- बुध प्रायः अस्त रहता है क्योंकि वह सूर्य के निकट रहता है। यही कारण है कि इसे अस्त होने का दोष नहीं लगता। बुध और सूर्य की युति को बुधादित्य योग के नाम से जाना जाता है। यह एक शुभ योग है। चन्द्रमा पृथ्वी का उपग्रह है। प्रत्येक माह की पूर्णिमा के उपरांत चंद्रमा और सूर्य के मध्य के अंष कम होने लगते हैं। अमावस्या के समय चन्द्रमा और सूर्य लगभग समान अंषों पर होते हैं। चंद्रमा जब सूर्य से 12 अंशों से कम दूर होता है तो अस्त होने का दोष माना जाता है परन्तु चन्द्रमा को तभी शुभ फलदायी समझना चाहिये जबकि वह न्यूनतम 70 अंष दूर हो। यदि चंद्रमा और सूर्य के बीच इससे कम अंशों का अन्तर होता है तो चंद्रमा स्वयं बली न होकर उस राषि या ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है जिस से कि वह प्रभावित हो। यह शुभ स्थिति नहीं है। चंद्रमा जितना सूर्य के निकट होगा उतनी उसकी कलायें कम होंगी। अस्त ग्रह जीवन के दो पहलुओं पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। जन्म लग्न में विभिन्न भावांे से अलग-अलग पहलुओं को देखा जाता है। जब कोई ग्रह अस्त होता है तो उसके नैसर्गिक गुण प्रभावित होते हैं। साथ ही वह जिस भाव का स्वामी होता है उसके फलांे में भी विलंब करता है। जैसे यदि बृहस्पति अस्त है और वह सप्तमेष है तो न केवल स्त्री सुख में बाधा बल्कि जातक में भी विवेकषीलता का अभाव होगा। इस प्रकार जब शुक्र चतुर्थेष होकर अस्त हो और अष्टमस्थ हो तो जातक में यौन शक्ति का अभाव होता है। यौन रोग होते हैं, माता के सुख में न्यूनता आती है। वाहन और भवन सुख में भी कमी आती है। अस्त ग्रह को बली नहीं समझना चाहिये। यदि सूर्य से अस्त ग्रह का अंषात्मक अंतर 3 अंष से अधिक है तो अस्त होने का दोष नष्ट हो जाता है। अस्त ग्रह सदैव दुष्फल देते हैं। कुछ स्थितियां ऐसी भी होती हैं जबकि अस्त ग्रह जिसका वह स्वामी है, के लिये शुभ स्थिति में होता है। सभी भावों में गुण दोष होते हैं परन्तु त्रिक भावों में अषुभ फलों की अधिकता होती है। हमारे विद्वानों का मानना है कि अस्त ग्रह त्रिक भावों 6-8-12 में हों तो फलों की वृद्धि होती है अर्थात ये भाव अपने अषुभ परिणामों को प्रकट नहीं कर पाते। इसका दूसरा पक्ष भी है। जब इन भावों अर्थात 6-8-12 के स्वामी अस्त हों तो समृद्धि आती है और सफलता मिलती है। यह स्थिति विपरीत राजयोग होती है।

नक्षत्र और उसके द्वारा फलकथन

नक्षत्र तारा समूहों से बने हैं। आकाश में जो असंख्य तारक मंडल विभिन्न रूपों और आकारों में दिखलाई पड़ते हैं, वे ही नक्षत्र कहे जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र में ये नक्षत्र एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। इनमें हमारे सूर्य से भी कई गुना बड़े सूर्य तथा तारे हैं। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में नक्षत्रों की संख्या 27 मानी गई है, कहीं अभिजीत को लेकर 28 भी मानते हैं। 27 और 28 दोनों का उपयोग प्राचीन काल से आज तक हो रहा है। इनमें से प्रत्येक नक्षत्र का क्षेत्र 13 अंश 20 कला का है। इस प्रकार 27 नक्षत्रों में 360 अंश पूरे होते हैं। ‘अभिजित’ नक्षत्र का क्षेत्र इन्हीं के मध्य उत्तराषाढ़ा के चतुर्थ चरण और श्रवण के आरंभ के 1/15 भाग को मिला कर होता है। इसका कुल क्षेत्र 4 अंश 13 मिनट 20 सेकेंड है। नक्षत्रों का हमारे जीवन तथा हमारे व्यक्तित्व पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। हमारे जातक शास्त्र के अध्याय 9 श्लोक संख्या 85, 86, 87,88, 89, 90 तथा 91 में प्रत्येक नक्षत्र में जन्मे मनुष्य के स्वभाव तथा व्यक्तित्व के बारे में साफ-साफ लिखा है। श्लोक संख्या 85 अश्विन्यामतिबुद्ध वित्तविनयपज्ञ्र यशस्वी सुखी याम्यक्र्षे विकलोऽन्यदारनिरतः क्रूरः कृतघ्नो धनी। तेजस्वी बहुलोद्भवः प्रभुसमोऽमूर्खश्च विद्याधनी नक्षत्र तारा समूहों से बने हैं। आकाश में जो असंख्य तारक मंडल विभिन्न रूपों और आकारों में दिखलाई पड़ते हैं, वे ही नक्षत्र कहे जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र में ये नक्षत्र एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। इनमें हमारे सूर्य से भी कई गुना बड़े सूर्य तथा तारे हैं। रोहिण्यां। पररन्ध्रवित् कृशतनुर्बोधी परस्त्रीरतः।। अर्थात्- अश्विनी नक्षत्र में जन्म हो तो मनुष्य बहुत बुद्धिमान, धनी, विनीत, यशस्वी, सुखी होता है। भरणी नक्षत्र में जन्म हो तो विकल, बेहाल, परस्त्रीरत, क्रूर, कृतघ्न व धनी होता है। कृत्तिका नक्षत्र में तेजस्वी, राजा के समान, बुद्धिमान, विद्यारूपी धनवाला होता है। रोहिणी नक्षत्र में दूसरों के दोषों को जानने वाला, पतला शरीर, बुद्धिमान, परस्त्रीरत होता है। श्लोक संख्या 86 चान्द्रे सौग्यमनोऽदनः कुटिलदृक् कामातुरो रोगवान् आद्र्रा यामध्नश्चला ऽ कबलः क्षुद्रक्रियाशीलवान्। मूढ़ात्मा च पुनर्वसौ धनबलख्यातः कविः कामुकः तिष्ये विप्रसुरप्रियः सधनधी राजप्रियो बन्धुमान्।। अर्थात - मृगशिरा नक्षत्र में सौम्य विचारों वाला,भ्रमणशील, तीव्र नजरों वाला अर्थात् नजर से ही दूसरों को प्रभावित करने वाला, कामातुर, रोगी होता है। आद्र्रा नक्षत्र में धनहीन, चंचल विचारों वाला, बहुत बलशाली, निन्दित कार्य करने वाला होता है। पुनर्वसु नक्षत्र में किसी-किसी बात में अनाड़ी, प्रसिद्ध धनी, कवि हृदय व कामुक होता है। पष्य मबा्र ह्मणा व दवे ताआ का सत्कार करन वाला, धनी व बु द्धमानराजपिय्र , बंधु-बांधवों से युक्त होता है। श्लोक संख्या 87 सार्पो मूढ़मतिः कृतघ्नवचनः कोपी दुराचारवान् गर्वी पष्यरतः कलत्रवशगा मानी मधायां धनी। फल्गुन्यां चपलः कुकर्मचरितस्त्यागी दृढ़ः कामुको भोगी चोत्तरफल्गुनीभजनितो मानी कृतज्ञः सुधीः। अर्थात् - आश्लेषा नक्षत्र में मूढ़बुद्धि, कृतघ्नतापूर्ण वचन बोलने वाला, क्रोधी, दुराचारी होता है। मघा नक्षत्र में घमंडी, पुण्यकर्मों में रत, स्त्री क वश म रहन वाला, स्वाभिमानी, धनी होता है। पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में चंचल बुद्धि, कुकर्मी, त्यागी, दृढ़ विचारों वाला व कामुक होता है। उत्तराफाल्गुनी में भोगवान्, मानी, कृतज्ञ व सद्बुद्धि वाला होता है। श्लोक संख्या 88 हस्तक्र्षे यदि कामधर्मनिरतः प्राज्ञोपकर्ता धनी चित्रायामतिगुप्तशीलनिरतो मानी परस्त्रीरतः। स्वात्यां देवमहीसुरप्रियकरो भोगी धनी मन्दधीः गर्वी दारवशो जितारिरधिकक्रोधी विशाखोद्भवः ।। अर्थात् - हस्त नक्षत्र में सांसारिक भोगों में रत, बुद्धिमान, जनों का उपकारी, धनी होता है। चित्रा नक्षत्र में बहुत गुप्त रूप से आचरण करने वाला, छुपा रूस्तम, स्वाभिमानी, परस्त्री में रत होता है। स्वाति नक्षत्र में देवों व ब्राह्मणों का हितकारी, भोगवान, मंदबुद्धि, धनी होता है। विशाखा नक्षत्र में घमंडी, स्त्री के वश में रहने वाला, शत्रुजेता, अधिक क्रोधी होता है। श्लोक संख्या 89 मैत्रे सुप्रियवाग् धनी सुखरतः पूज्यो यशस्वी विभुः ज्येष्ठायामतिकोपवान् परवधूसक्तो विभुर्धार्मिकः। मूलक्र्षे पटुवाग्विधूतकुशलो धूर्तः कृतघ्नो धनी पूर्वाषाढ़भवोऽविकारचरितो मानी सुखी शान्तधीः।। अर्थात् - अनुराधा नक्षत्र म प्रियभाषी, धनी, सुखभोगों वाला, पूज्य, यशस्वी, समर्थ होता है। ज्येष्ठा नक्षत्र में बहुत क्रोधी, परस्त्री में रत, समर्थ व धार्मिक होता है। मूल नक्षत्र में कुशल वक्ता, शुभहीन, धूर्त, कृतघ्न व धनी होता है। पूर्वाषाढ़ नक्षत्र में विकृत चरित्रवाला, मानी, सुखी व शांत मन होता है। श्लोक संख्या 90 मान्यः शान्तगुणः सुखी च धनवान् व श् व क्ष जः प डितः श्राण् या द्विजदेवभक्तिनिरतो राजा धनी धर्मवान्। आ श् लुर्वसुमान् वसूडुजनितः पीनोरूकंठः सुखी कालज्ञः शततारको द्भवनरःशान्तोऽल्पभुक्साहसी।। अर्थात्- उत्तराषाढा़ नक्षत्र म मान्यवर, शान्तचित्त, गुणवान्, सुखी, धनी व विद्व न होता है। श्रवण नक्षत्र में ब्राह्मणों व देवताओं की भक्ति से युक्त, राजा, धनी व धार्मिक होता है। धनिष्ठा नक्षत्र में आशावान्, धनवान्, मोटी गर्दन वाला, सुखी होता है। शतभिषा नक्षत्र म उत्पन्न व्यक्ति समय की चाल को पहचानने वाला अथवा ज्योतिषी, शांत, कम खाने वाला, साहसी होता है। श्लोक संख्या 91 पूर्वप्रोष्ठपदि प्रगल्भवचनो धूर्तो भयार्तो मृदु श्चाहिर्बुध्न्यजमानवो मृदुगुणस्त्यागी धनी पंडितः। रेवत्यामुरूलांछनोपगतनुः कामातुर सुन्दरो। मंत्री पुत्रकलमित्रसहितो जातः स्थिरश्रीरतः।। अर्थात- पूर्वभाद्रपद नक्षत्र में प्रगल्भ वचन बोलने वाला, धूर्त, भयभीत, कोमल स्वभाव वाला होता है। उत्तरभाद्रपद में कोमल स्वभाव वाला, त्यागशील, धनी व विद्वान होता है। रेवती नक्षत्र में जन्म होने पर जांघों में चिह्न वाला, कामातुर, सुंदर, मंत्री (मंत्र प्रयोक्ता या सलाहकार), स्त्री, पुत्र, मित्रों से युक्त, स्थिर स्वभाव, धन लालसा वाला होता है।

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Friday 10 June 2016

क्या शादी बार बार टूट रही है???????कराएं कुंडली विश्लेषण

शादी टूट रही हो तो करायें कुंडली का विष्लेषण -
विवाह की उम्र में अच्छा जीवनसाथी मिल जायें और विवाह तय हो जाएॅ। इससे ज्यादा खुशी का पल पूरे परिवार के कुछ नहीं होता किंतु कई बार सब कुछ अच्छा चलते चलते अचानक किसी मामूली बात पर भी रिश्ता टूट जाता है। सामाजिक तौर पर कारण चाहे जो भी बताया जाए, किंतु सच है कि ज्योतिषीय दृष्टि से देखा जाए तो किसी जातक की कुंडली में अगर लग्न, तीसरे, पंचम, सप्तम या दसम स्थान पर शनि हो अथवा गुरू, शुक्र, चंद्रमा जैसे सौम्य ग्रह शनि से आक्रांत हो अथवा शनि की दशा चल रही हो तो रिश्ता तय होकर टूट सकता है। अतः कुंडली का विवेचन किसी विद्धान ज्योतिष से कराकर पहले ग्रह शांति कराना चाहिए, इसके लिए लड़के का अर्क विवाह के साथ कात्यायनी मंत्र का जाप और लड़की का कुंभ विवाह के साथ मंगल का व्रत करने से विवाह लगने में आने वाली परेशानी से बचा जा सकता है साथ ही योग्य जीवनसाथी का साथ मिलने के योग बनते हैं।

बच्चों के व्यव्हार से परेशान ??????करे ज्योतिष्य उपाय.........

बच्चों के व्यवहार से परेषान होकर हाॅस्टल में डालने के फैसले पर करें पुर्नविचार और करायें कुंडली का विष्लेषण -
ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चे के व्यवहार तथा दोस्ती या गलत आदतों के कारण बच्चों को हाॅस्टल में डालने का फैसला करते हैं या बच्चा अपने दोस्तो का देखा देखी बाहर पढ़ने की जिद करता है। अगर ऐसा है, तो सोचने की बात है कि अगर आप अपने बच्चे को नियंत्रित नहीं कर पा रहे हैं और भी अभिभावको ने भी यहीं फैसला लिया होगा, जो अपने बच्चो से परेषान होंगे और ऐसे बच्चो का पूरा समूह एक जगह एकत्रित होकर आखिर क्या कर सकता है। आखिर बाहर पढ़ने के नाम पर दिखावा क्यों करें? लाखों खर्च करके बाहर के कथित संस्थानों में एडमिशन लेने की बजाय घर-शहर के करीब रहते हुए अपेक्षाकृत किसी बेहतर संस्थान में पढ़ाई करके भी करियर की राह चमकदार बनाई जा सकती है। किंतु बच्चें और कई बार अभिभावक भी इसके लिए सोचे बिना अपने बच्चें को घर से दूर भेजते हैं किंतु बाहर जाकर बच्चा पढ़ाई से दूर डिप्रेषन और गलत संगत का षिकार हो जाता है। अतः किसी भी बच्चे को घर से दूर रहने के लिए उसके ज्योतिषीय विष्लेषण कराया जाकर उसके लग्न, तीसरा और एकादष स्थान का विष्लेषण कराकर देखें कि अगर उसका तीसरा या एकादष स्थान छठवे, आठवें या बारहवें स्थान अथवा सातवें स्थान पर हो जाए तो ऐसे लोग दूसरों के उपर भरोसा कर अपना जीवन खराब कर बैठते है। अतः ऐसी स्थिति में दूर भेजने के अपने फैसले से पूर्व कुंडली दिखा लें।