Friday 9 September 2016

गणेश चतुर्थी कथा

भगवान विनायक के जन्मदिवस पर मनाया जानेवाला महापर्व भारत के सभी राज्यों में हर्सोल्लास और भव्य तरीके से आयोजित किया जाता है. बप्पा के आगमन पर पूरे देशवासी जोर शोर से तैयारियां करते हैं. बुद्धि और बल के लिए पूजे जाने वाले भगवान गणेश की जन्मकथा भी बहुत ही रोचक है...
गणेश चतुर्थी की कथा
कथानुसार एक बार मां पार्वती स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक सुंदर बालक को उत्पन्न किया और उसका नाम गणेश रखा. फिर उसे अपना द्वारपाल बना कर दरवाजे पर पहरा देने का आदेश देकर स्नान करने चली गई. थोड़ी देर बाद भगवान शिव आए और द्वार के अन्दर प्रवेश करना चाहा तो गणेश ने उन्हें अन्दर जाने से रोक दिया. इसपर भगवान शिव क्रोधित हो गए और अपने त्रिशूल से गणेश के सिर को काट दिया और द्वार के अन्दर चले गए| जब मां पार्वती ने पुत्र गणेश जी का कटा हुआ सिर देखा तो अत्यंत क्रोधित हो गई. तब ब्रह्मा, विष्णु सहित सभी देवताओं ने उनकी स्तुति कर उनको शांत किया और भोलेनाथ से बालक गणेश को जिंदा करने का अनुरोध किया. महामृत्युंजय रुद्र उनके अनुरोध को स्वीकारते हुए एक गज के कटे हुए मस्तक को श्री गणेश के धड़ से जोड़ कर उन्हें पुनर्जीवित कर दिया. इस तरह से मां गौरी को अपना पुत्र वापस मिल गया और उनका क्रोध भी शांत हो गया.
दूसरी कथा के अनुसार
श्रीगणेश की जन्म की कथा भी निराली है और दूसरी कथा के अनुसार वराहपुराण के अनुसार भगवान शिव पंचतत्वों से बड़ी तल्लीनता से गणेश का निर्माण कर रहे थे. इस कारण गणेश अत्यंत रूपवान व विशिष्ट बन रहे थे. आकर्षण का केंद्र बन जाने के भय से सारे देवताओं में खलबली मच गई. इस भय को भांप शिवजी ने बालक गणेश का पेट बड़ा कर दिया और सिर को गज का रूप दे दिया.

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