Tuesday 20 September 2016

अनंत चतुर्दर्शी व्रत

हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि संसार को चलाने वाले प्रभु कण-कण में व्याप्त हैं. ईश्वर जगत में अनंत रूप में विद्यमान हैं. दुनिया के पालनहार प्रभु की अनंतता का बोध कराने वाला एक कल्याणकारी व्रत है, जिसे 'अनंत चतुदर्शी' के रूप में मनाया जाता है. भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी को 'अनंत चतुर्दशी' कहा जाता है. इस दिन अनंत भगवान (श्रीहरि) की पूजा करके बांह पर अनंत सूत्र बांधा जाता है. भक्तों का ऐसा विश्वास है कि अनंत सूत्र धारण करने से हर तरह की मुसीबतों से रक्षा होती है. साथ ही हर तरह से साधकों का कल्याण होता है.
अनंत चतुर्दशी का महात्म्य
ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल से इस व्रत की शुरुआत हुई. जब पांडव जुए में अपना राज्य गवांकर वन-वन भटक रहे थे, तो भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनन्त चतुर्दशी व्रत करने को कहा. कष्टों से मुक्त‍ि पाने के लिए धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों व द्रौपदी के साथ इस व्रत को किया. तभी से इस व्रत का चलन शुरू हुआ.
व्रत करने वाले श्रद्धालु भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण रूप की पूजा करते हैं. अनंत स्वरूप चौदह गांठों वाले अनंत सूत्र की विधिपूर्वक पूजा करने और व्रत की कथा सुनने के बाद इसे बांहों पर बांधा जाता है. पूजा के बाद पुरुष सूत्र को अपने दाहिने हाथ पर, जबकि स्त्रि‍यां बाएं हाथ पर बांधती हैं.
भारत के कई भागों में इस व्रत का चलन है. पूर्ण विश्वास के साथ व्रत करने पर यह अनंत फलदायी होता है.
अनंत चतुर्दशी की पूजन विधि:
अनंत चतुर्दशी के पूजन में व्रतकर्ता को प्रात:स्नान करके व्रत का संकल्प करना चाहिए पूजा घर में कलश स्थापित करना चाहिए, कलश पर भगवान विष्णु का चित्र स्थापित करनी चाहिए इसके पश्चात धागा लें जिस पर चौदह गांठें लगाएं इस प्रकार अनन्तसूत्र (डोरा) तैयार हो जाने पर इसे प्रभु के समक्ष रखें इसके बाद भगवान विष्णु तथा अनंतसूत्र की षोडशोपचार-विधिसे पूजा करनी चाहिए तथा अनन्तायनम: मंत्र क जाप करना चाहिए. पूजा के पश्चात अनन्तसूत्र मंत्र पढकर स्त्री और पुरुष दोनों को अपने हाथों में अनंत सूत्र बांधना चाहिए और पूजा के बाद व्रत-कथा का श्रवन करें. अनंतसूत्र बांधने लेने के बाद ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए और स्वयं सपरिवार प्रसाद ग्रहण करना चाहिए.

अनंत सूत्र बांधने का मंत्र इस तरह है:
अनंत संसार महासमुद्रे
मग्नं समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंतरूपे विनियोजयस्व
ह्यनंतसूत्राय नमो नमस्ते।।

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