आइ. ए. एस. तथा आइ. पी. एस बनने के ज्योतिषीय योग प्रश्नः सरकारी नौकरी में आई. ए. एस., आइ. पी. एस. जैसे उच्च पदाधिकारी बनने के ज्योतिषीय योगों की सोदाहरण चर्चा करें। भारत देश को स्वतंत्र हुए छ दशक व्यतीत हो चुके हैं, परंतु हमारे मन मस्तिष्क पर आज भी नौकरशाहों का प्रभुत्व विद्यमान है। आज भी आई. ए. एस. तथा आई. पी. एस. जैसे उच्च सरकारी पदों पर बैठे व्यक्तियों का वर्चस्व बरकरार है। हम उन्हें आज भी राजा की श्रेणी में ही देखते हैं। यह स्वभाविक भी है, क्योंकि ऐसे व्यक्तियों की जन्मकुंडली का अध्ययन करने पर स्पष्ट हो जाता है कि उनकी जन्मकुंडली में ऐसे अनेक प्रकार के राजयोग तथा उच्च पदाधिकारी योग विद्यमान होते हैं। आज राजतंत्र तो प्रायः संपूर्ण संसार में समाप्त हो चुका है। विशिष्ट वैभव योग, लक्ष्मी योग, शौर्य योग वाले जातक ही इन पदों को सुशोभित करते हैं। किसी भी प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षा में सफलता के लिये व उच्च पदाधिकारी जैसे आई. ए. एस, तथा आई. पी. एस आदि पदों पर प्रतिष्ठित होने के लिये ज्योतिष शास्त्र के अनुसार लग्न, दशम, षष्ठ स्थानों का कुंडली में प्रबल होना एवं इन भावों के भावेशों का शक्तिशाली होना अत्यंत आवश्यक है। सफलता के लिये पूर्ण रूपेण समर्पित होना तथा पराक्रम व साहस का होना भी अनिवार्य है। यह तृतीय भाव, भावेश व उसका कुंडली में उत्तम स्थान पर प्रतिष्ठित होना भी महत्वपूर्ण है। सबसे महत्वपूर्ण स्थान लग्न है, उसका बलवान व सशक्त होने के साथ-साथ लग्नेश का उत्तम स्थान पर होना परम आवश्यक है। कुंडली में लग्न के बाद दशम स्थान का महत्व है। यह कर्म का भाव है। इस भाव और भावेश की प्रबलता यह दर्शाने के लिये आवश्यक है कि व्यक्ति जीवन में किस व्यवसाय को अपने जीविकोपार्जन के लिए अपनाएगा तथा वह कितना सफल होगा। यूं तो दशम् स्थान लग्न के बाद सबसे महत्वपूर्ण होता है। प्रायः जिन भावों के स्वामी दशम् में होते हैं, उनको भी पर्याप्त बल मिल जाता है। यदि दशम में शुभ ग्रह हों और दशम का स्वामी बलवान होकर अपनी राशि में या मित्र राशि में स्थित होकर केंद्र या त्रिकोण में बैठे या लग्न का स्वामी बलवान होकर दशम में बैठे तो जातक का राजा के समान भाग्य होता है। और वह दीर्घायु भी होता हे। उसके यश का बहुत विस्तार होता है और उसकी प्रवृत्ति भी धर्म, कर्म में होती है। -(फलदीपिका) नभसि शुभखगे वा तत्पतौ केंद्रकोणे, बलिनि निजगृहोच्चे कर्मगे लग्नपे वा। महित पृथुयशाः स्याद्धर्म कर्म प्रवृत्तिः नृपति सदृशभाग्यं दीर्घामायुश्च तस्य॥ (फलदीपिका अ. 16- पद 27) सबले कर्मभावेशे स्वोच्चे स्वांशे स्वराशिशे जातस्तातसुखोनादयो यशस्वी शुभकर्मकृत॥ (बृ. हो. शा. अध्याय 23-श्लोक नं. 2) दशमेश सबल हो, अपनी राशि, उच्च राशि अथवा अपने ही नवांश में होने पर जातक पिता का सुख पाने वाला तथा यशस्वी एवं शुभ कर्म करने वाला होता है। स्वस्वाभिना वीक्षितः संयुतो वा बुधेन वाचस्पतिना प्रदिष्टः। स एव राशि बलवान् किल स्वाच्छेषैर्यदा दृष्ट युता न चात्र॥ (फलित मार्तण्ड. प्र. अध्याय श्लो-23) जो राशि अपने स्वामी से दृष्ट या युक्त हो अथवा बुध व गुरु से दृष्ट हो, वह लग्न राशि निश्चय करके बलवान होती है। अर्थात स्वस्वामी बुध, गुरु के अतिरिक्त अन्य ग्रहों से दृष्ट अथवा युक्त हो तो निर्बल होती है। बलवान लग्नेश तथा सशक्त दशमेश यदि लग्न व दशम् में हों तो निश्चय ही व्यक्ति उच्च पदों पर नियुक्ति पाता है। यहां पर अच्छे अन्य योग कुंडली में होने पर व्यक्ति के जीवन में यश, कीर्ति व शक्ति और लक्ष्मी की प्राप्ति होना निश्चित है। साथ ही साथ इन स्थानों पर सूर्य का प्रभुत्व होने पर राजपत्रित अधिकारी व राजनेता एवं मंगल का प्रभुत्व होने पर पुलिस अथवा सेना में उच्च पद प्राप्ति के निश्चित संकेत मिलते हैं। बुध का भी इसमें महत्वपूर्ण योग है। प्रायः आई. ए. एसआदि पदों पर कार्य करने वाले जातकों की कुंडली में बुध-आदित्य योग अवश्य ही होता है। बृहस्पति का भी उच्च सम्मानित पद, यश एवं कीर्ति तथा शुभ कर्म करने वाले लोगों पर अच्छा प्रभाव देखा जाता है। दशम् भाव की 6, 7, 9, 12 वें भाव पर अर्गला होती हैं जिनके द्वारा दुश्मन, नौकर, वैभव तथा निद्रा प्रभावित होती है। उदाहरणतया चाणक्य ने कहा है कि, जिस राजा के कर्मचारी वफादार होते हैं; उसे कभी परास्त नहीं किया जा सकता है।'' यदि छठा भाव तथा भावेश दशम् भाव पर अच्छा प्रभाव डाल रहे हैं। तो शत्रु परास्त होंगे तथा सेवक स्वामीभक्त होंगे। उच्च पदाधिकारी की सफलता छठे भाव के अनुकूल होने पर भी बहुत कुछ निर्भर है। इस भाव पर भी या तो गुरु की दृष्टि अथवा उपस्थिति प्रायः ऐसे अधिकारियों को सफल बनाती है। अतः इन सभी व्यवसायों की कुंडली का अध्ययन करते समय छठे भाव का अवश्य ही अध्ययन किया जाना चाहिये। एकादश, प्रथम, द्वितीय और अष्टम की दशम भाव पर अर्गला होती है। अतः यह भाव भी महत्वपूर्ण है। पंचम भाव दशम से आठवां होने के कारण कार्य का प्रारंभ तथा उसकी अवधि को प्रभावित करता है। पंचम भाव शक्ति, राज्य करने की योग्यता, सम्मान जो कोई व्यक्ति अपनी योग्यता के कारण पाता है; को दर्शाता है। यह पूर्व पुण्य, उच्च शिक्षा का भी भाव है। अतः नई नौकरी की शुरूआत भी पंचम् भाव से ही देखी जाती है। आर्थिक त्रिकोण 2, 6, 10 वें भाव पर निर्भर करता है। अतः इनका प्रभाव अवश्य ही महत्वपूर्ण होता है। यूं तो दशम भाव में कोई भी ग्रह उत्तम फल देने में स्वतंत्र होता है, लेकिन नवांश, दशमांश कुंडली का भी लग्न कुंडली की भांति भली प्रकार, सभी तरह के योगों का अध्ययन करने पर ही पूर्णतया फल-कथन किया जाना चाहिए।
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