हिंदू ज्योतिष कर्म तथा पुन:जन्म के सिद्धांत पर आधारित है। यह तथ्य प्रायः सभी ज्योतिषी तथा ज्ञानीजन अच्छी तरह से जानते हैं। मनुष्य जन्म लेते ही पूर्व जन्म के परिणामों को भोगने लगता है। जैसे फल फूल बिना किसी प्रेरणा के अपने आप बढ़ते हैं उसी तरह पूर्वजन्म के हमारे कर्मफल हमें मिलते रहते हैं। हर मनुष्य का जीवन पूर्वजन्म के कर्मों के भोग की कहानी है, इनसे कोई भी बच नहीं सकता। जन्म लेते ही हमारे कर्म हमें उसी तरह से ढूंढने लगते हैं, जैसे बछड़ा झुंड में अपनी मां को ढूढ़ निकालता है। पिछले कर्म किस तरह से हमारी जन्मकालीन दशाओं से जुड़ जाते हैं, यह किसी भी व्यक्ति की कुंडली में आसानी से देखा जा सकता है। कुंडली के प्रथम, पंचम और नवम भाव हमारे पूर्वजन्म, वर्तमान तथा भविष्य के सूचक हैं। इसलिए जन्म के समय हमें मिलने वाली महादशा/ अंतर्दशा/ प्रत्यंतर्दशा का संबंध इन तीन भावों में से किसी एक या दो के साथ अवश्य जुड़ा होता है। यह भावों का संबंध जन्म दशा के किसी भी रूप से होता है - चाहे वह महादशा हो या अंतर्दशा हो अथवा प्रत्यंतर्दशा। दशा तथा भावों के संबंध के इस रहस्य को जानने की कोशिश करते हैं पंचम भाव से। पंचम भाव, पूर्व जन्म को दर्शाता है। यही भाव हमारे धर्म, विद्या, बुद्धि तथा ब्रह्म ज्ञान का भी है। नवम भाव, पंचम से पंचम है अतः यह भी पूर्व जन्म का धर्म स्थान और इस जन्म में हमारा भाग्य स्थान है। इस तरह से पिछले जन्म का धर्म तथा इस जन्म का भाग्य दोनों गहरे रूप से नवम भाव से जुड़ जाते हैं। यही भाव हमें आत्मा के विकास तथा अगले जन्म की तैयारी को भी दर्शाता है। जिस कुंडली में लग्न, पंचम तथा नवम भाव अच्छे अर्थात मजबूत होते हैं वह अच्छी होती है क्योंकि भगवान श्री कृष्ण के अनुसार ”धर्म की सदा विजय होती है“। द्वादश भाव हमारी कुंडली का व्यय भाव है। अतः यह लग्न का भी व्यय है। यही मोक्ष स्थान है। यही भाव पंचम से अष्टम होने के कारण पूर्वजन्म का मृत्यु भाव भी है। मरणोपरांत गति का विचार भी फलदीपिका के अनुसार इसी भाव से किया जाता है। दशाओं के रूप में कालचक्र निर्बाध गति से चलता रहता है। ”पद्मपुराण“ के अनुसार ”जो भी कर्म मानव ने अपने पिछले जन्मों में किए होते हैं उसका परिणाम उसे भोगना ही पड़ेगा“। कोई भी ग्रह कभी खराब नहीं होता, ये हमारे पूर्व जन्म के बुरे कर्म होते हैं जिनका दंड हमें उस ग्रह की स्थिति, युति या दशा के अनुसार मिलता है। इसलिए हमारे सभी धर्मों ने जन्म मरण के जंजाल से मुक्ति की कामना की है। जन्म के समय पंचम, नवम और द्वादश भावों की दशाओं का मिलना निश्चित होता है। यह शोध कार्य 100 से अधिक पत्रियों पर किया गया है जिसमें 80 प्रतिशत पत्रियों के यह प्रत्यक्ष रूप से देखा गया। 20 प्रतिशत पत्रियों में यह अप्रत्यक्ष रूप से पंचम, नवम तथा द्वादश भावों को प्रभावित कर रहा है। पैरामीटर 1. पंचम, नवम, द्वादश भाव 2. उक्त तीनों भावों के स्वामी तथा उनमें स्थित ग्रह 3. महादशा/ अंतर्दशा/प्रत्यंतर्दशा। इनमें से कोई भी एक जो इन भावों से संबंध बनाए।
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