ज्योतिष ‘‘विज्ञान’’ एवं ‘‘अध्यात्म’’ का मित्र या ‘मिश्रित’ रूप है। रोग के क्षेत्र में चिकित्सा विज्ञान के साथ ही ज्योतिष विज्ञान के ग्रह एवं नक्षत्रों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में नौ ग्रहों के लिए नौ रंग एवं नौ रत्नों की प्राथमिकता प्रमाणित है। ग्रहों की प्रतिकूल स्थिति उत्पन्न होने से मनुष्य पर पड़ने वाले विभिन्न ग्रहों की किरणें एवं विकिरण में भारी उथल-पुथल होते हैं एवं मानव जीवन में तरह-तरह की समस्याओं के साथ ही विभिन्न रोगों का समावेश हो जाता है। हमारे ऋषि- महर्षियों ने ज्योतिष विज्ञान में इन विषयों को समाहित किया है। अब हमें इसका अध्ययन कर अनुभव प्राप्त करना है। ज्योतिष विज्ञान बीमारी की अवधि एवं उसके कारण बताने में समर्थ है क्योंकि भारतीय ज्योतिष शास्त्र एवं चिकित्सा शास्त्र का गहरा संबंध है जिसके अध्ययन से बताया जा सकता है कि इस ग्रह की दशा में इस तरह की बीमारी हो सकती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार रोगों की उत्पत्ति, अनिष्ट ग्रहों के प्रभाव से एवं पूर्व जन्म के अवांछित संचित कर्मों के प्रभाव से बताई गई है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्मकुंडली में लग्न, द्वितीय, षष्ठ, अष्टम एवं द्वादश स्थान बड़ा प्रभावशाली होते हैं जबकि कुंडली के षष्ठेश एवं अष्टमेश रोग, बीमारी, तरह-तरह की शारीरिक परेशानी, दुर्घटना के साथ ही मृत्यु तक की परेशानी को बताने वाले मुख्य भाव हैं। इन दोनों भाव में बैठे अनिष्ट ग्रहों से उत्पन्न रोग एवं परेशानी के लिए पूजा-पाठ, हवन, मंत्र-जाप, यंत्र धारण, विभिन्न प्रकार के रत्न का धारण, दान आदि साधन बताये गये हैं। कुंडली के लग्न, द्वितीय, षष्ठम, सप्तम, अष्टम एवं द्वादश भाव में बैठे ग्रह अधिकतर रोग उत्पन्न करते हैं जिसमें कुंडली के षष्ठ एवं अष्टम भाव का महत्वपूर्ण स्थान है। कुछ सटीक बीमारियां जिसका कुंडली से अध्ययन कर अगर कुंडली न हो तो हस्तरेखाओं में भी आयु रेखा एवं विभिन्न ग्रहों के स्थान पर उपस्थित सूक्ष्म रेखाओं एवं चिह्न से रोगों का पता लगाया जा सकता है और उसका सटीक निदान किया जा सकता है। विभिन्न रोगों के निदान में विभिन्न रत्न एवं उपरत्न का भी महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि रत्नों में ग्रहों को नियंत्रण करने की अद्भुत क्षमता होती है। वैदिक ग्रंथों के अनुसार मानव शरीर पंच तत्व से बना है। ग्रहों के उथल-पुथल से किसी भी तत्व की न्यूनता एवं अधिकता होने पर उस तत्व विशेष से संबंधित विकार रोग के रूप में उत्पन्न होते हैं जो पूर्ण रूपेण ग्रहों पर आधारित है। अतः इस पंच तत्व का संतुलन भी शरीर को निरोग रखता है। आधुनिक वर्तमान अनुसंधान रत्नों के महत्व को स्वीकारता है। अगर वैज्ञानिक स्थिति से देखें तो रत्नों के अंदर कार्बन, एल्युमिनियम, बेरियम, कैल्सियम, तांबा, हाइड्रोजन, लोहा, फास्फोरस, मैंगनीज, पोटाशियम, गंधक एवं जस्ता होता है। आकाश में भ्रमण कर रहे ग्रह भी अपने विशेष ताप एवं राशियों से इन रत्नों में उपयुक्त तत्व की प्रमुखता देते हैं जिससे ये रत्न ग्रहों एवं रोगों को संतुलित करने की क्षमता रखते हैं। रत्न के इतने प्रभावी होने का कारण रत्नों के प्रकाश परावर्तन की क्षमता होती है। इसलिए प्रकाश की किरणों के संपर्क में आते ही प्रकाश के परावर्तन एवं अपवर्तन की क्रिया से झिल-मिलाने लगते हैं। कुछ ग्रह रत्नों में स्वर्ण आभा होती है जो रात्रि में प्रकाशवान होते हैं। सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु एवं केतु के लिए माणिक (रूबी), मोती, मूंगा, पन्ना, पुखराज, हीरा, नीलम, गोमेद, लहसुनिया जैसे रत्न एवं इसके विभिन्न उपरत्न अनुकूल प्रभाव के लिए उपयोग किया जाता है। इनकी प्रतिकूल अवस्था में उत्पन्न रोग-आंख, हृदय रोग, दर्द की परेशानी सूर्य की प्रतिकूल अवस्था में, चंद्रमा में ठंड एवं एलर्जी, मासिक परेशानी स्त्रियों में, मंगल से उच्च रक्तचाप, रक्त से संबंधित रोग, बुध-वाणी की समस्याएं, चर्म रोग, मानसिक एवं न्यूरो की समस्याएं, बृहस्पति-मोटापा, लीवर की परेशानी, तथा लीवर से संबंधित विभिन्न बीमारियां, शुक्र-मधुमेह, गुप्त रोग, मोटापा, शनि-पेट की समस्याएं, तरह-तरह की खतरनाक बीमारी, कैंसर आदि, राहु-चर्म रोग, पेट की समस्याएं मानसिक अस्थिरता, बेचैनी की समस्याएं, उदर की समस्याएं, केतु-गैस्ट्रीक, गठिया, दर्द की परेशानी, मूत्र एवं संबंधित रोग के वाहक होते हैं। रोगों से संबंधित अनिष्ट ग्रहों का दान एवं उससे संबंधित अन्न या वस्तु का जल प्रवाह करने से, मंत्र का जाप एवं हवन करने से, यंत्र को धारण करने से, रत्न उपरत्न को धारण करने से ग्रह पर अनुकूल प्रभाव होने से रोगों में भी काफी परिवर्तन आता है और व्यक्ति धीरे-धीरे ठीक हो जाता है। कुछ जटिल रोगों में ज्योतिषीय उपाय से काफी प्रभाव पड़ता है। इससे इतना तो जरूर होता है जो रोग नियंत्रण में रखता है।
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Sunday, 5 March 2017
मीन मार्च 2017 मासिक राशिफल
महीने के प्रारंभ में आपकी राशि में ही उच्च का शुक्र होने से प्रेम संबंधों में अत्यधिक निकटता रहेगी। आप अपने व्यक्तित्व के प्रभाव से विपरीत लिंग वाले व्यक्तियों को सरलता से आकर्षित कर सकेंगे। हालांकि, आपके व्यय स्थान में स्थित सूर्य के कारण वरिष्ठ अधिकारियों, प्रतिष्ठित लोगों, सरकार अथवा कानून से जुड़े अधिकारियों से परेशानी रहेगी। उनके साथ किसी विषय में विवाद हो सकता है तथा इस दिशा में खर्च की संभावना भी रहेगी। आपके विचारों में भी नकारात्मकता देखने को मिलेगी। मंगल आपकी राशि से दूसरे स्थान में भ्रमण करेगा। जिसका भ्रमण पारिवारिक विवाद उत्पन्न कर सकता हैं। अध्ययन में विघ्न आएंगे, आँखों में दर्द होगा। दुर्जन, चोर तथा अग्नि से धनहानि होने की संभावना बन रही है। महीने के उत्तरार्ध में सूर्य व बुध दोनों ही आपकी राशि में आ जाएंगे, जहां शुक्र वक्री होगा। प्रेम संबंधों में सावधान रहना होगा। विशेष रूप से अहं का टकराव हो सकता है। कर्म स्थान में स्थित शनि के कारण प्रोफेशनल मोर्चे पर भी आप धीमी परंतु स्थिर गति से आगे बढ़ेंगे। शुक्र वक्री होने से वैवाहिक जीवन में तकलीफें नहीं हो इसका ध्यान रखें। आपकी राशि में सूर्य का भ्रमण होने से स्वास्थ्य के विषय में ध्यान रखें। हाई ब्लडप्रेशर, हृदय रोग, थकावट, पेट के रोग तथा आंख संबंधी तकलीफ उत्पन्न हो सकती है। मित्रों, सगे-स्नेहियों के साथ कहासुनी होने से से मानसिक परिताप होगा।
व्यवसाय संबंधी- आपके प्रोफेशनल कार्य धीमे पर एक निश्चित गति से आगे बढ़ेंगे। शुरूआत के समय में आप सरकार की ओर से किसी इन्क्वारी या कानूनी झमेलों में फंस सकते हैं। सरकारी नौकरी के मोर्चे की बात करें तो माह के पहले पखवाड़े में सावधानी रखने की सलाह है। भागीदारी के कार्य, नया करार करनने और संयुक्त साहस शुरू करने के लिए वर्तमान समय खूब उत्तम है।
धन स्तिथि- इस महीने की शुरूआत खर्च के साथ हो रही लगती है। पर अंत में आप अपने आय-व्यय की स्थिति को संतुलन में ला सकते हैं। खासकर कि 11 तक कानूनी या सरकारी मामलों में आपके खर्च होंगे। पैतृक मिल्कियत संबंधित मामलों में भी आपकी पराजय होने की आशंका है। 15 तारीख के बाद आप अपनी बौद्धिक प्रतिभा से कमाई कर सकेंगे। वरिष्ठ और अधिकारी वर्ग का साथ मिलेगा। हाल में वसूली के कार्यों और लोन लेते समय लोगों के साथ विनम्रता से पेश आएं।
स्वास्थ्य संबंधी- आपके रोग स्थान में ही राहु का भ्रमण चलते रहने से आपको अपनी सेहत के प्रति सावधानी तो बरतनी ही होगी। उसमें भी महीने के प्रथम पखवाड़े में सूर्य, केतु और बुध के व्यय स्थान में होने से आपकी स्थिति और भी विकट होने की आशंका है। आपको हुए रोग का समुचित निदान नहीं मिल पाने की वजह से आपके दिन अत्यदिक तकलीफदेह बीत सकते हैं। आपकी मानसिक चंचलता और अनिद्रा की परेशानियां बढ़ेंगी। माईग्रेन, अाँखों में सूजन, पीठ दर्द वगैरह की संभावना है। ब्लडप्रेशर और हृदय की धड़कनों से संबंधित अनियमितताएं भी आपका दिमाग खराब कर सकती है।
व्यवसाय संबंधी- आपके प्रोफेशनल कार्य धीमे पर एक निश्चित गति से आगे बढ़ेंगे। शुरूआत के समय में आप सरकार की ओर से किसी इन्क्वारी या कानूनी झमेलों में फंस सकते हैं। सरकारी नौकरी के मोर्चे की बात करें तो माह के पहले पखवाड़े में सावधानी रखने की सलाह है। भागीदारी के कार्य, नया करार करनने और संयुक्त साहस शुरू करने के लिए वर्तमान समय खूब उत्तम है।
धन स्तिथि- इस महीने की शुरूआत खर्च के साथ हो रही लगती है। पर अंत में आप अपने आय-व्यय की स्थिति को संतुलन में ला सकते हैं। खासकर कि 11 तक कानूनी या सरकारी मामलों में आपके खर्च होंगे। पैतृक मिल्कियत संबंधित मामलों में भी आपकी पराजय होने की आशंका है। 15 तारीख के बाद आप अपनी बौद्धिक प्रतिभा से कमाई कर सकेंगे। वरिष्ठ और अधिकारी वर्ग का साथ मिलेगा। हाल में वसूली के कार्यों और लोन लेते समय लोगों के साथ विनम्रता से पेश आएं।
स्वास्थ्य संबंधी- आपके रोग स्थान में ही राहु का भ्रमण चलते रहने से आपको अपनी सेहत के प्रति सावधानी तो बरतनी ही होगी। उसमें भी महीने के प्रथम पखवाड़े में सूर्य, केतु और बुध के व्यय स्थान में होने से आपकी स्थिति और भी विकट होने की आशंका है। आपको हुए रोग का समुचित निदान नहीं मिल पाने की वजह से आपके दिन अत्यदिक तकलीफदेह बीत सकते हैं। आपकी मानसिक चंचलता और अनिद्रा की परेशानियां बढ़ेंगी। माईग्रेन, अाँखों में सूजन, पीठ दर्द वगैरह की संभावना है। ब्लडप्रेशर और हृदय की धड़कनों से संबंधित अनियमितताएं भी आपका दिमाग खराब कर सकती है।
मकर मार्च 2017 मासिक राशिफल
महीने की शुरूआत में प्रवास करने का मौका मिलेगा। हालांकि, 4 तारीख के दौरान पितातुल्य व्यक्तियों को तकलीफ हो सकती है। पेट के रोगों में से मुक्ति मिलेगी। वैवाहिक जीवन में भी प्रेम की वृद्धि होगी। अविवाहित व्यक्तियों के जीवन में कोई नया व्यक्ति आ सकता है। इस समय प्रॉपर्टी, घर, साधन, सुख- सुविधा में वृद्धि हो सकती है। हालांकि, इसके बाद के सप्ताह में आपके किसी भी कार्य में विलंब होने से मन चंचल व विह्वल रहेगा। अपने काम में भाग्य का भी पर्याप्त साथ नहीं मिलेगा। कार्यक्षेत्र तथा नौकरी के लिए उत्तम समय रहेगा। नौकरी में मान प्रतिष्ठा मिलेगी। यात्रा कर सकते हैं। ग्रेजुएट तथा पोस्ट ग्रेजुएट का कोर्स कर रहे विद्यार्थियों के लिए अत्यधिक उत्तम सप्ताह कहा जा सकता है। महीने के उत्तरार्ध में जातक के दिन हंसी-मजाक, मौज-मस्ती और बातचीत में व्यतीत होंगे। अपने कार्यक्षेत्र में उत्साहपूर्वक और सकारात्मक दृष्टिकोण से कार्य करने का प्रयास करेंगे। घबराहट व गुस्से में वृद्धि होगी। आवश्यकता से अधिक दौड़धूप रहने के कारण थकावट महसूस होगी। इस दौरान कार्य की योजना में अस्त-व्यस्तता के कारण आप बेचैनी का अनुभव करेंगे। पैसे के लेन-देन मत करें। अपने से वरिष्ठ अधिकारियों से लाभ होता दिखाई देगा। सरकार से संबंधित कामकाज सरलता से पूर्ण होते महसूस होंगे।
व्यवसाय संबंधी- सेल्स एवं मार्केटिंग से जुड़े लोगों को पहले पखवाड़े में खूब ध्यान रखना होगा। आपके मुंह से निकले शब्द अर्थ का अनर्थ मचाते हुए कॅरियर को भी खतरे में डाल सकते हैं। आपके पास अधिक से अधिक पैसे कमाने के अवसर आएंगे। पर धन प्राप्ति के इन समस्त मार्गों का चयन काफी सोच-समझकर करें नहीं तो आफत की चपेट में आ सकते हैं। नौकरी में आकस्मिक परिवर्तन का दौर रहेगा। रियल एस्टेट, कृषि, वाहन और मशीनरी के कार्यों में महीने के उत्तरार्ध में तेजी का लाभ उठा सकेंगे।
धन सम्बन्धी-हाल में आपकी इनकम में अवरोध आएगा। आपका सारा पैसा कहां खप जाएगा इसका आपको पता ही नहीं चलेगा। शुरू के दो सप्ताह अमूमन एेसी ही स्थिति रहने की संभावना है। धन की वसूली करते समय अपने अहं भाव को कंट्रोल में रखें। बोलचाल के समय आपके शब्दों से मिठास टपकनी चाहिए वर्ना आपके पैसे फंस जाने की संभावना है। नए निवेश के लिए उत्तरार्ध का समय अनुकूल है। जातकों अगर आपके जन्म के ग्रहों का साथ आपको मिल रहा है तो यह समय आपके लिए धन प्राप्ति का योग वाला हो सकता है। इनकम के स्रोंतों में अचानक से परिवर्तन की संभावना है।
स्वास्थ्य संबंधी- जो जातक किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं उनके ऊपर उपचार का कम असर दिखाई पड़ने की संभावना है। शुरू के चरण में दांत व मसूड़ों में दुखाव, कंधे के स्नायुओं के खिंचने, जीभ में छाले पड़ने, गर्दन में दुखाव और वाणी से संबंधित प्रोब्लेम्स होने की संभावना है। उत्तरार्ध के समय में मुसाफिरी में फालूत की मुसीबतों को दावत मत दीजिए। दिनांक 21 के बाद आपको मानसिक अनिश्चितता और अनिद्रा जैसी शिकायतें हो सकती हैं।
व्यवसाय संबंधी- सेल्स एवं मार्केटिंग से जुड़े लोगों को पहले पखवाड़े में खूब ध्यान रखना होगा। आपके मुंह से निकले शब्द अर्थ का अनर्थ मचाते हुए कॅरियर को भी खतरे में डाल सकते हैं। आपके पास अधिक से अधिक पैसे कमाने के अवसर आएंगे। पर धन प्राप्ति के इन समस्त मार्गों का चयन काफी सोच-समझकर करें नहीं तो आफत की चपेट में आ सकते हैं। नौकरी में आकस्मिक परिवर्तन का दौर रहेगा। रियल एस्टेट, कृषि, वाहन और मशीनरी के कार्यों में महीने के उत्तरार्ध में तेजी का लाभ उठा सकेंगे।
धन सम्बन्धी-हाल में आपकी इनकम में अवरोध आएगा। आपका सारा पैसा कहां खप जाएगा इसका आपको पता ही नहीं चलेगा। शुरू के दो सप्ताह अमूमन एेसी ही स्थिति रहने की संभावना है। धन की वसूली करते समय अपने अहं भाव को कंट्रोल में रखें। बोलचाल के समय आपके शब्दों से मिठास टपकनी चाहिए वर्ना आपके पैसे फंस जाने की संभावना है। नए निवेश के लिए उत्तरार्ध का समय अनुकूल है। जातकों अगर आपके जन्म के ग्रहों का साथ आपको मिल रहा है तो यह समय आपके लिए धन प्राप्ति का योग वाला हो सकता है। इनकम के स्रोंतों में अचानक से परिवर्तन की संभावना है।
स्वास्थ्य संबंधी- जो जातक किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं उनके ऊपर उपचार का कम असर दिखाई पड़ने की संभावना है। शुरू के चरण में दांत व मसूड़ों में दुखाव, कंधे के स्नायुओं के खिंचने, जीभ में छाले पड़ने, गर्दन में दुखाव और वाणी से संबंधित प्रोब्लेम्स होने की संभावना है। उत्तरार्ध के समय में मुसाफिरी में फालूत की मुसीबतों को दावत मत दीजिए। दिनांक 21 के बाद आपको मानसिक अनिश्चितता और अनिद्रा जैसी शिकायतें हो सकती हैं।
धनु मार्च 2017 मासिक राशिफल
प्रारंभिक चरण में जो लोग बैंकिंग, फाइनेंस अथवा सर्राफे के काम से जुड़े हैं वे हर दस्तावेजी प्रक्रिय में सतर्कता रखें। आर्थिक लेनदेन का लिखित हिसाब रखें। जैसे-जैसे समय बीतता जाएगा वैसे-वैसे अनुकूलता बढ़ती जाएगी। विद्यार्थियों को विद्या अध्ययन के दौरान थोड़ा गुस्सा रहेगा, पर कुल मिलाकर अध्ययन में मन एकाग्र होता हुआ महसूस होगा। प्रथम सप्ताह में शुक्र वक्री होने से मौज-शौक के माल-सामान का व्यापार करने वालों तथा होटल-मोटेल का व्यवसाय करने वालों को ध्यान रखना जरूरी है। कागज, कपड़े तथा स्टेशनरी का व्यवसाय करने वालों लोगों का लापरवाही नहीं बरतने का संदेश दे रहे हैं। दूसरे सप्ताह से आपके विचारों में सकारात्मकता रहेगी और कामकाज में भी आत्मविश्वास और उमंग के साथ आगे बढ़ने का एप्रोच रखें। बुध का मीन राशि अर्थात् नीच राशि में प्रवेश हो रहा है जो वैवाहिक जीवन में तथा भागीदारी की पेढ़ी में भागीदारों के साथ व्यवहार बिगड़ने का संकेत दे रहा है। बुजुर्गों को संतान संबंधी अनुकूलता बढ़ेगी। शेयर तथा सट्टे में रुचि रखने वाले जातकों की विश्लेषण शक्ति बढ़िया रहने से अल्प अवधि में अल्प नफा के दृष्टिकोण के साथ सौदा करके नफा प्राप्त कर सकेंगे। तरीख 15 से सूर्य के मीन राशि में प्रवेश से परिवार के सामाजिक तथा व्यावसायिक कार्यों को वेग मिलेगा। नया व्यापार शुरू करने अथवा वर्तमान कार्य में नई पद्धति अपनाने, नई नौकरी के अवसर खोजने के लिए समय अनुकूल होता महसूस होगा। जिनको पानी से डर लगता हो, उन्हें इस समय विशेष संभलना होगा। अंतिम सप्ताह में विदेश में काम करने वाले जातकों के अटके हुए कार्यों अथवा करार का हल निकलेगा आएगा। प्रोफेशनल प्रयोजन से छोटा तथा लंबा प्रवास शुरू करने के लिए समय उत्तम दिखाई दे रहा है।
व्यवसाय संबंधी- आपकी प्रोफेशनल सक्सेस काफी अच्छी रहने की संभावना है। पर हाल में नए अवसरों को फटाफट लपक लेने से अच्छा यही रहेगा कि आप खूब सोच-समझकर एेसा कोई फैसला करें। बिजनेस में किसी प्रकार के जोखिम महीने के उत्तरार्ध में ही उठाएं। वैसे वर्तमान कार्यों में ही संलग्न रहने के लिए उत्तम समय है। भाग्य का साथ कम मिलने से आपको उतना आर्थिक लाभ नहीं मिल पाएगा। हाल में की गई मेहनत आपको लाभ कराएगी। कंसल्टिंग, प्रिंटिंग डिजाइनिंग, पेपर, गारमेंट्स, टेक्सटाइल, डेकोरेशन, डेकोरेशन की चीजों में आप उत्तम प्रगति कर सकेंगे।
धन संबंधी- मित्रों व भाई-बहन के साथ आर्थिक व्यवहार के मामले में आपका मन व्यथित हो सकता है। शार्ट डिस्टेंस में आपका एक्सपेंडिचर बढ़ेंगा। यात्राओं में भी नुकसान होने का अंदेशा है। परिवार की खुशी के लिए आप किसी महंगी चीज की खरीद कर सकते हैं। महीने के उत्तरार्ध में पैतृक संपत्तियों से संबंधित कार्यों के संपन्न होने की संभावना है। आपकी आमदनी मर्यादित रहेगी। निवेश से संबंधित निर्णय 15 तारीख के बाद ही लें, अन्यथा आपके पैसे वेस्ट हो सकते हैं। लगाए गए पैसों के हिसाब से मुनाफा नहीं मिल पाएगा।
स्वास्थ्य संबंधी-कुल मिलाकर आपकी हेल्थ अच्छी रहेगी। पर मुसाफिरी करते वक्त आपकी सेहत के बिगड़ने या आपके द्वारा की गई गल्तियों के कारण चोट लगने की भी संभावनाए रहेंगी। संतान प्राप्ति से संबंधित मामलों का इस दौरान समाधान होने की संभावनाए कम हैं। प्रेग्नेंट विमेंस भी अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें। 15 तारीख के बाद फेफड़े और छाती से संबंधित प्रश्नों के खड़े होने की आशंका है। शरीर में पित्त की मात्रा बढ़ने और पानी से उत्पन्न होने वाले रोगों के भी उत्पन्न होने का खतरा बना रहेगा।
व्यवसाय संबंधी- आपकी प्रोफेशनल सक्सेस काफी अच्छी रहने की संभावना है। पर हाल में नए अवसरों को फटाफट लपक लेने से अच्छा यही रहेगा कि आप खूब सोच-समझकर एेसा कोई फैसला करें। बिजनेस में किसी प्रकार के जोखिम महीने के उत्तरार्ध में ही उठाएं। वैसे वर्तमान कार्यों में ही संलग्न रहने के लिए उत्तम समय है। भाग्य का साथ कम मिलने से आपको उतना आर्थिक लाभ नहीं मिल पाएगा। हाल में की गई मेहनत आपको लाभ कराएगी। कंसल्टिंग, प्रिंटिंग डिजाइनिंग, पेपर, गारमेंट्स, टेक्सटाइल, डेकोरेशन, डेकोरेशन की चीजों में आप उत्तम प्रगति कर सकेंगे।
धन संबंधी- मित्रों व भाई-बहन के साथ आर्थिक व्यवहार के मामले में आपका मन व्यथित हो सकता है। शार्ट डिस्टेंस में आपका एक्सपेंडिचर बढ़ेंगा। यात्राओं में भी नुकसान होने का अंदेशा है। परिवार की खुशी के लिए आप किसी महंगी चीज की खरीद कर सकते हैं। महीने के उत्तरार्ध में पैतृक संपत्तियों से संबंधित कार्यों के संपन्न होने की संभावना है। आपकी आमदनी मर्यादित रहेगी। निवेश से संबंधित निर्णय 15 तारीख के बाद ही लें, अन्यथा आपके पैसे वेस्ट हो सकते हैं। लगाए गए पैसों के हिसाब से मुनाफा नहीं मिल पाएगा।
स्वास्थ्य संबंधी-कुल मिलाकर आपकी हेल्थ अच्छी रहेगी। पर मुसाफिरी करते वक्त आपकी सेहत के बिगड़ने या आपके द्वारा की गई गल्तियों के कारण चोट लगने की भी संभावनाए रहेंगी। संतान प्राप्ति से संबंधित मामलों का इस दौरान समाधान होने की संभावनाए कम हैं। प्रेग्नेंट विमेंस भी अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें। 15 तारीख के बाद फेफड़े और छाती से संबंधित प्रश्नों के खड़े होने की आशंका है। शरीर में पित्त की मात्रा बढ़ने और पानी से उत्पन्न होने वाले रोगों के भी उत्पन्न होने का खतरा बना रहेगा।
Friday, 3 March 2017
वृश्चिक मार्च 2017 मासिक राशिफल
आपकी राशि का अधिपति मंगल पांचवें में शुक्र के साथ भ्रमण कर रहा है, जो आपके लिए अति शुभ फलदायक है। नये प्रेम-संबंध की संभावना है। फिलहाल, विद्यार्थी जातक भी सृजनात्मकता के साथ खूब उत्तम प्रगति कर सकते हैं। संतान प्राप्ति के इच्छुक जातकों के लिए समय आशाभरा प्रतीत हो रहा है। हालांकि, आपके व्यवहार में गुस्से को नियंत्रण में रखना पड़ेगा। नौकरीपेशा लोगों को इंसेंटिव अथवा अवार्ड के रूप में फायदा होगा। शुरूआत के चरण में जिनको एसिडिटी अथवा पैर में, आंख में जलन की समस्या है उन्हें संभलना पड़ेगा। दूसरे सप्ताह में कोर्ट- कचहरी के विषयों में सफलता की संभावना अधिक रहेगी। धार्मिक यात्रा का कार्यक्रम बनेगा और इसलिए सुमगता रहेगी। महीने के दूसरे पखवाड़े में आपकी राशि से पंचम स्थान में सूर्य, बुध और शुक्र की युति होने से आपको हृदय और मन में नया रोमांच और उत्साह महसूस होगा। बुध, शुक्र का भ्रमण आपको नये संपर्क कराएगा। लोगों के साथ आपका एप्रोच और दृष्टिकोण परिवर्तित होगा। महीने के अंतिम सप्ताह में विद्यार्थी जातकों को भावी अध्ययन की योजना बनाने में थोड़ा समय राह देखने की सलाह है। स्पोर्ट्स में रुचि रखने वाले जातक इस समय अच्छा परफॉरमेंस दे सकेंगे। आपके प्रेम संबंधों में विशेष रूप से अहं का टकराव नहीं इसका ध्यान रखना होगा। शेयर बाजार अथवा सट्टे संबंधी गतिविधियों की तरफ आप आकर्षित होंगे, परंतु दूसरे की बातों अथवा अफवाहों पर भरोसा करने के बदले योजनापूर्वक सौदा करने की सलाह है।
व्यवसाय संबंधी-जो लोग पारिवारिक कामकाजों से जुड़े हैं उनको महीने के शुरूआत में दिशाहीनता का अनुभव होगा। सरकारी काम करने वाले अथवा सरकारी नौकरी से जुड़े जातकों को कामकाज में बोरियत महसूस होगी। हालांकि, माह के उत्तरार्ध में आप जोश व उत्साह के साथ आगे बढ़ेंगे। शेयर बाजार व गैंबलिंग की तरफ ध्यान दे पाएंगे। यदि योजनापूर्वक इस दिशा में साहस करेंगे तो लाभ निश्चित है। मशीनरी, बागवानी के कार्य, कृषि, वाहन और रियल एस्टेट कंपनी में कार्यरत जातकों को प्रगति के अच्छे अवसर मिल सकते हैं।
धन स्थिति-आपके धन स्थान में विद्यमान शनि के कारण आमदनी विलंब से होना स्वाभाविक है। तिस पर शुरूआत के पखवाड़े में परिवार हेतु जो धन खर्च करेंगे उसका यश नहीं मिल पाने का गम रहेगा पुश्तैनी संपत्ति के प्रश्न15 तारीख के बाद हल करने की कोशिश करेंगेत तो फायदे में रहेंगे। अपने प्रिय को प्रसन्न करने हेतु धन खर्च करेंगे। एेसे समय निवेश पर अधिक ध्यान देने की गुजारिश करते हैं। नौकरी कर रहे लोग कार्यस्थल पर उत्साह से काम करते हुए अपनी नियमित आवक में चार चाँद लगा सकते हैं।
स्वास्थ्य-स्वास्थ्य का विचार करें तो विशेषकर कंधे के स्नायुओं में दुखाव, गर्दन की समस्या, एसिडि़टी, आँखों और पावों में सजून इत्यादि की समस्याओं में सावधानी लेनी होगी। संतान के इच्छुक जातकों के लिए15 तारीख तक का समय अनुकूल है। जिन्हें छाती और फेफड़े इत्यादि की समस्या है उनको पहले पखवाड़े में उपचार में जरा भी लापरवाही नहीं बरतने की गणेशजी बलपूर्वक आग्रह करते हैं।
व्यवसाय संबंधी-जो लोग पारिवारिक कामकाजों से जुड़े हैं उनको महीने के शुरूआत में दिशाहीनता का अनुभव होगा। सरकारी काम करने वाले अथवा सरकारी नौकरी से जुड़े जातकों को कामकाज में बोरियत महसूस होगी। हालांकि, माह के उत्तरार्ध में आप जोश व उत्साह के साथ आगे बढ़ेंगे। शेयर बाजार व गैंबलिंग की तरफ ध्यान दे पाएंगे। यदि योजनापूर्वक इस दिशा में साहस करेंगे तो लाभ निश्चित है। मशीनरी, बागवानी के कार्य, कृषि, वाहन और रियल एस्टेट कंपनी में कार्यरत जातकों को प्रगति के अच्छे अवसर मिल सकते हैं।
धन स्थिति-आपके धन स्थान में विद्यमान शनि के कारण आमदनी विलंब से होना स्वाभाविक है। तिस पर शुरूआत के पखवाड़े में परिवार हेतु जो धन खर्च करेंगे उसका यश नहीं मिल पाने का गम रहेगा पुश्तैनी संपत्ति के प्रश्न15 तारीख के बाद हल करने की कोशिश करेंगेत तो फायदे में रहेंगे। अपने प्रिय को प्रसन्न करने हेतु धन खर्च करेंगे। एेसे समय निवेश पर अधिक ध्यान देने की गुजारिश करते हैं। नौकरी कर रहे लोग कार्यस्थल पर उत्साह से काम करते हुए अपनी नियमित आवक में चार चाँद लगा सकते हैं।
स्वास्थ्य-स्वास्थ्य का विचार करें तो विशेषकर कंधे के स्नायुओं में दुखाव, गर्दन की समस्या, एसिडि़टी, आँखों और पावों में सजून इत्यादि की समस्याओं में सावधानी लेनी होगी। संतान के इच्छुक जातकों के लिए15 तारीख तक का समय अनुकूल है। जिन्हें छाती और फेफड़े इत्यादि की समस्या है उनको पहले पखवाड़े में उपचार में जरा भी लापरवाही नहीं बरतने की गणेशजी बलपूर्वक आग्रह करते हैं।
तुला मार्च 2017 मासिक राशिफल
महीने के आरंभ में कुंभ राशि में सूर्य-बुध और केतु युति में रहेंगे। जबकि छठे भाव में शुक्र और मंगल की युति रहेगी। प्रिय व्यक्ति के साथ मुलाकात के लिए वर्तमान समय ठीक नहीं है। शेयर बाजार में निवेश करने से भी दूर ही रहना चाहिए। संतान को लेकर चिंता सताएगी। अचानक कहीं बाहर जाना होगा अथवा तो पर्याप्त मानसिक आराम नहीं मिलेगा जिसका असर आपके शारीरिक स्वास्थ्य पर रहेगा। सूर्य-केतु की युति होने से अप्रत्याशित लाभ की आशा भ्रम सिद्ध होगी। नौकरी पेशा लोगों को नये अवसर मिलने का समय है। हाल की नौकरी में भी आप पूरे जोश व उत्साह से काम करेंगे और सृजनात्मक विचारों के साथ काम करके आपके वरिष्ठजनों को प्रभावित करेंगे। द्वितीय सप्ताह में स्वास्थ्य की संभाल रखनी पड़ेगी। पेट में जलन अथवा एसिडिटी जैसी समस्या होगी। इस समय में मंगल आपके सप्तम भाव में आएगा जिससे दांपत्य जीवन और भागीदारी के कार्यों में आपको ध्यान रखना पड़ेगा। किसी सामाजिक काम की तरफ आप अधिक ध्यान देंगे। महीने के मध्य में आपका मन व्यर्थ के विचार में अधिक तल्लीन रहेगा। नौकरी के स्थल पर वरिष्ठजनों की तरफ से उत्तम सहयोग मिलेगा। बुध भी छठे भाव में शुक्र के साथ युति में आने से प्रोफेशनल मोर्चे पर सृजनात्मक विचार अधिक आएंगे। महीने के अंतिम चरण में बुध सप्तम स्थान में मंगल के साथ युति में आएगा जो भागीदारी में नए विचारों को गति प्रदान करेगा। दांपत्यजीवन में नीरसता बढ़ेगी। ननिहाल पक्ष का कोई विवाद है तो उसका हल निकलेगा।
व्यवसाय-नौकरी वर्ग पूरे महीने के दरमियान अपनी कल्पनाशक्ति और सृजनात्मक शक्ति की प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए कमाई करेंगे। महीने के उत्तरार्ध मेंं आपका बौद्धिक स्तर बढ़ेंगा। अधिकारयों के साथ महत्वपूर्ण प्रोजक्ट पर चर्चा करके अपने हूनर से अपना दिल जीत लेंगे। आपकी व्यवसायिक स्थिति इस महीने के दौरान निरंतर बदलती रहेगी। प्रगति के मार्ग पर आगे निरंतर बढ़ते नजर आएंगे। भागीदारी के कार्यों में कोई भी निर्णय लेते समय अपने नेचर पर कंट्रोल करने की जरूरत होगी।
धन स्थिति-हाल में आपकी आवक की तुलना में खर्च का प्रमाण अधिक रहेगा। धार्मिक कार्यों और जनसेवा के कार्यों में आप अधिक रूचि लेंगे। हाथ में आया लाभ अज्ञात कारणों से आपके ले लिया जा सकता है। फिर भी नौकरीवर्ग और फुटकर काम कर रहे जातकों को 15 तारीख के बाद थोड़ी राहत रहेगी। जीवन साथी के नाम इन्वेस्टमेंट करने की चाह रखेंगे। प्रोफेशनल मोर्चे पर नया साहस करने अथवा व्यवसायिक कारणों से निवेश करने में विलंब का सामना करना पड़ेंगा। मुसाफिरी में खर्च की तुलना में कम लाभ मिलने की शिकायत रहेगी।
स्वास्थ्य-महीने के पूर्वार्ध में आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। पर उत्तरार्ध में आपके रोग स्थान में सूर्य व बुध की शुक्र के साथ युति होगी। साथ ही गुरू वक्री होकर आपके व्यय स्थान में पहले से ही रहेगी। इस समय के दौरान रीढ़ की हड्डी में दुखाव, पीठ दर्द, दांत या मसूड़ों में दर्द, त्वचा या गुप्त भागों के रोग, डायबिटीज और मोटापे की समस्याओं में काफी सजग रहना होगा। मौसमी बीमारियों के साथ-साथ आप फूड पोइज़निंग के भी शिकार हो सकते हैं।
व्यवसाय-नौकरी वर्ग पूरे महीने के दरमियान अपनी कल्पनाशक्ति और सृजनात्मक शक्ति की प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए कमाई करेंगे। महीने के उत्तरार्ध मेंं आपका बौद्धिक स्तर बढ़ेंगा। अधिकारयों के साथ महत्वपूर्ण प्रोजक्ट पर चर्चा करके अपने हूनर से अपना दिल जीत लेंगे। आपकी व्यवसायिक स्थिति इस महीने के दौरान निरंतर बदलती रहेगी। प्रगति के मार्ग पर आगे निरंतर बढ़ते नजर आएंगे। भागीदारी के कार्यों में कोई भी निर्णय लेते समय अपने नेचर पर कंट्रोल करने की जरूरत होगी।
धन स्थिति-हाल में आपकी आवक की तुलना में खर्च का प्रमाण अधिक रहेगा। धार्मिक कार्यों और जनसेवा के कार्यों में आप अधिक रूचि लेंगे। हाथ में आया लाभ अज्ञात कारणों से आपके ले लिया जा सकता है। फिर भी नौकरीवर्ग और फुटकर काम कर रहे जातकों को 15 तारीख के बाद थोड़ी राहत रहेगी। जीवन साथी के नाम इन्वेस्टमेंट करने की चाह रखेंगे। प्रोफेशनल मोर्चे पर नया साहस करने अथवा व्यवसायिक कारणों से निवेश करने में विलंब का सामना करना पड़ेंगा। मुसाफिरी में खर्च की तुलना में कम लाभ मिलने की शिकायत रहेगी।
स्वास्थ्य-महीने के पूर्वार्ध में आपका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। पर उत्तरार्ध में आपके रोग स्थान में सूर्य व बुध की शुक्र के साथ युति होगी। साथ ही गुरू वक्री होकर आपके व्यय स्थान में पहले से ही रहेगी। इस समय के दौरान रीढ़ की हड्डी में दुखाव, पीठ दर्द, दांत या मसूड़ों में दर्द, त्वचा या गुप्त भागों के रोग, डायबिटीज और मोटापे की समस्याओं में काफी सजग रहना होगा। मौसमी बीमारियों के साथ-साथ आप फूड पोइज़निंग के भी शिकार हो सकते हैं।
कन्या मार्च 2017 मासिक राशिफल
इस महीने में मंगल आपकी राशि से आठवें स्थान में भ्रमण करेगा जिससे वाहन चलाने में ध्यान रखें। आकस्मिक चोट लग सकती है। आपको अभी स्वास्थ्य की भी संभाल करनी पड़ेगी, क्योंकि गर्मीजन्य रोग इसके अलावा जिनको बवासीर, स्नायुओं में तनाव अथवा जोड़ों का दर्द हो उनको रोग उत्पन्न होने की संभावना रहेगी। जिन क्षेत्रों में गिरने-चोट लगने की संभावना अधिक हो उनसे जुड़े जातकों को विशेष ध्यान रखना होगा। नौकरी पेशा लोगों के काम की प्रशंसा होगी। आप बौद्धिकता से अपनी प्रगति का मार्ग प्रशस्त कर सकेंगे और वरिष्ठ अधिकारियों और वरिष्ठ कर्मचारियों का खूब बढ़िया सहयोग मिलेगा। विदेश में अथवा जन्मभूमि से दूर प्रोफेशनल कार्यों में कम्युनिकेशन बढ़ेगा और इससे बढ़िया लाभ भी होंगे। महीना के मध्य में आपके सप्तम स्थान में बुध और शुक्र की युति आपको गोचर में राजयोग जैसा फल दे सकती है। आर्थिक रूप से लाभकारी होगा। नियमित के अलावा अतिरिक्त आय करने के आपके प्रयास कारगर सिद्ध होंगे। सेल्स, मार्केटिंग, शिक्षण, कंसल्टेंसी सहित वाणी संबंधी कार्य से जुड़े हुए व्यक्तियों को लाभ होगा। हालांकि, हालांकि महीने के उत्तरार्ध में सूर्य भी राशि बदलकर आपके सप्तम स्थान में आएगा जिससे भागीदारी के कार्यों तथा दांपत्य जीवन में अहं के कारण संबंध में तनाव नहीं आए इसकी सावधानी बरतनी होगी। नौकरी पेशा लोगों को अभी कुटिल लोगों से संभलना कर रहना होगा। महीने के अंत में इस अवधि के दौरान बुध आपकी राशि से आठवें स्थान में आ रहा है जो आकस्मिक धन लाभ कराएगा। धार्मिक और गूढ़ विषयो में आपकी रुचि बढ़ेगी और इसलिए अधिक अध्ययन करने का प्रयास करेंगे।
व्यवसाय संबंधी-इस महीने खास तौर से यंत्र से संबंधित कामकाजों में आपको लिए दुष्कर समय दिखाई पड़ता है। वहीं मनोरंजन, अभिनय, कलाजगत और सृजनात्मक कार्यों से जुड़े जातक यदि अपने-अपने कार्यों में भागीदारी को आगे बढ़ाएंगे तो सफलता की देवी उनको वर माला पहना सकती है। विदेश या दूर के स्थानों में काम कर रहे लोगों को विघ्नों से साबका पड़ सकता है। व्यवसायिक मोर्चे पर आपकी तर्क शक्ति अच्छी रहेगी।
धन संबंधी-इस महीने आप भागीदारी के कार्यों से अच्छा लाभ हासिल कर सकते हैं। जीवन साथी के नाम से किए गए निवेश द्वारा अच्छा खासा लाभ मिलेगा। विवाहितों को ससुराल पक्ष की तरफ से कोई आर्थिक लाभ मिलने के योग बनेंगे। नौकरी कर रहे लोगों को महीने के पूर्वार्ध में अभी तक किये गये कार्यों के फलस्वरूप वरिष्ठ अधिकारियों की कृपा के साथ-साथ आर्थिक लाभ भी मिलेगा। हालांकि, मशीनरी और इलेक्ट्रोनिक की चीजों में खर्च बढ़ने की संभावना है।
स्वास्थ्य- आपको अपने शरीर की सेहत का भी थोड़ा बहुत ध्यान रखना चाहिए। मास के पूर्वार्ध में आपके रोग स्थान में केतु, सूर्य और बुध इकट्ठाहो रहे हैं। साथ ही महीने भर मंगल आपकी कुंडली के अष्टम स्थान में स्थित रहेगा। हमारे जो जातक मशीनरी अथवा प्रवास से संबंधित कार्यों से वास्ता रखते हैं वे अपने आपको दुर्घटनाजनक स्थितियों से बचाएं। एसिडिटी, पाचन समस्या, रीढ़ की हड्डियों में दुखाव, पीठ दर्द, दांतों में पीड़ा तथा मुंह में छाले पड़ने जैसी समस्याएं रहेंगी।
व्यवसाय संबंधी-इस महीने खास तौर से यंत्र से संबंधित कामकाजों में आपको लिए दुष्कर समय दिखाई पड़ता है। वहीं मनोरंजन, अभिनय, कलाजगत और सृजनात्मक कार्यों से जुड़े जातक यदि अपने-अपने कार्यों में भागीदारी को आगे बढ़ाएंगे तो सफलता की देवी उनको वर माला पहना सकती है। विदेश या दूर के स्थानों में काम कर रहे लोगों को विघ्नों से साबका पड़ सकता है। व्यवसायिक मोर्चे पर आपकी तर्क शक्ति अच्छी रहेगी।
धन संबंधी-इस महीने आप भागीदारी के कार्यों से अच्छा लाभ हासिल कर सकते हैं। जीवन साथी के नाम से किए गए निवेश द्वारा अच्छा खासा लाभ मिलेगा। विवाहितों को ससुराल पक्ष की तरफ से कोई आर्थिक लाभ मिलने के योग बनेंगे। नौकरी कर रहे लोगों को महीने के पूर्वार्ध में अभी तक किये गये कार्यों के फलस्वरूप वरिष्ठ अधिकारियों की कृपा के साथ-साथ आर्थिक लाभ भी मिलेगा। हालांकि, मशीनरी और इलेक्ट्रोनिक की चीजों में खर्च बढ़ने की संभावना है।
स्वास्थ्य- आपको अपने शरीर की सेहत का भी थोड़ा बहुत ध्यान रखना चाहिए। मास के पूर्वार्ध में आपके रोग स्थान में केतु, सूर्य और बुध इकट्ठाहो रहे हैं। साथ ही महीने भर मंगल आपकी कुंडली के अष्टम स्थान में स्थित रहेगा। हमारे जो जातक मशीनरी अथवा प्रवास से संबंधित कार्यों से वास्ता रखते हैं वे अपने आपको दुर्घटनाजनक स्थितियों से बचाएं। एसिडिटी, पाचन समस्या, रीढ़ की हड्डियों में दुखाव, पीठ दर्द, दांतों में पीड़ा तथा मुंह में छाले पड़ने जैसी समस्याएं रहेंगी।
सिंह मार्च 2017 मासिक राशिफल
इस महीने की शुरूआत में दांपत्यजीवन में अधिक तकलीफें उत्पन्न होंगी। संबंधों में दरार पड़ेगी। क्लेश व तकरार होगी। जीवनसाथी के साथ बेकार की बहसबाजी भी होगी। मित्रों के साथ भी किसी कारण से मतभेद उत्पन्न होंगे। मानहानि होती दिखाई देगी। इन दिनों में बीमारी होने की संभावना होने से तबियत की विशेष संभाल रखने की सलाह है। इन दिनों में पिता का भाग्य अच्छा नहीं रहेगा, इसलिए कोई तकलीफ उत्पन्न हो सकती है। इस सप्ताह में विशेष रूप से नौकरीपेशा जातकों को सहकर्मियों का सहयोग का मिलेगा। काम में भाग्य का साथ नहीं मिलेगा। नौकरी में भी तकलीफ हो सकती है। वरिष्ठ अधिकारियों के साथ विवाद होने का भय है। मनमुटाव के प्रसंग बनेंगे। छोटी यात्रा होने का योग है। विद्यार्थी वर्ग के लिए थोड़ा खराब समय होने से उन्हें अधिक मेहनत करनी पड़ेगी। महीना के अतिंम दिनों में अधिक एकाग्रता के साथ अध्ययन में ध्यान देने से अपेक्षित सफलता प्राप्त कर सकेंगे। इस समय पैतृक संपत्ति अथवा जमीन संबंधी विषय में जातकों को फायदा होगा। अचानक खर्चे आएंगे जिसके कारण पैसे की तंगी का अनुभव करेंगे। काम की कोई कद्र नहीं होगी। मानहानि होगी। यशकीर्ति नहीं मिलेगी। संतान के अध्ययन के ऊपर अथवा कैरियर के लिए खर्च होगा।
व्यवसाय संबंधी-व्यवसाय से जुड़े जातकों को महीने के आरंभ में कठिन परिस्थितियों का सामना करना होगा। पिता का भाग्य हाल में आपका साथ कम देगा। नौकरी कर रहे लोगों के लिए अपेक्षाकृत कम प्रतिकूल समय कहा जाएगा। कानूनी या सरकारी प्रश्न महीने के उत्तरार्ध में आपको गहन चिंता में डाल सकते हैं। दिनांक23 के बाद भाग्य का साथ भी मिलने की संभावना है। प्रोफेशनल कारणों से लंबी अवधि के प्रवास के योग हैं।
धन स्थिति-महीने के शुरू का सप्ताह आर्थिक मोर्चे पर लाभदाई प्रतीत होता है। आप अपनी वाणी के प्रभाव से उधारी या लोन से संबंधित कार्य पूरे कर सकेंगे। नये साहस करने का विचार कर रहे जातकों को पहले पखवाड़े में निर्णय लेना बेहतर रहेगा। भागीदारी के कार्यों में आगे बढ़ने जैसा माहौल नहीं है। जो लोग पहले से ही भागीदारी में उनको दूसरों के भरोसे काम नहीं छोड़ना चाहिए। डेली इनकम के प्रयासों में 20 तारीख के बाद बढ़ोत्तरी होगी।
स्वास्थ्य संबंधी-स्वास्थ्य सुख के मामले में थोड़े विपरीत दौर से गुजरना पड़ सकता है। अष्टम भाव में शुक्र और सप्तम भाव बुध,केतु और सूर्य के कारण कुछ खास मजा नहीं आएगा। महीने के उत्तरार्ध में बुध व सूर्य का राशि परिवर्तन अष्टम भाव में होने से समस्याओं में देखते-ही-देखते सुधार आने की टकटकी मत लगाएं। खासकर कि हृदय से संबंधित बीमारी, ब्लडप्रेशर, एसिडिटी, त्वचा और आंखों में सूजन, स्नायुओं में दुखाव और घुटने में दुखाव होने की फरियाद होने की संभावना है।
व्यवसाय संबंधी-व्यवसाय से जुड़े जातकों को महीने के आरंभ में कठिन परिस्थितियों का सामना करना होगा। पिता का भाग्य हाल में आपका साथ कम देगा। नौकरी कर रहे लोगों के लिए अपेक्षाकृत कम प्रतिकूल समय कहा जाएगा। कानूनी या सरकारी प्रश्न महीने के उत्तरार्ध में आपको गहन चिंता में डाल सकते हैं। दिनांक23 के बाद भाग्य का साथ भी मिलने की संभावना है। प्रोफेशनल कारणों से लंबी अवधि के प्रवास के योग हैं।
धन स्थिति-महीने के शुरू का सप्ताह आर्थिक मोर्चे पर लाभदाई प्रतीत होता है। आप अपनी वाणी के प्रभाव से उधारी या लोन से संबंधित कार्य पूरे कर सकेंगे। नये साहस करने का विचार कर रहे जातकों को पहले पखवाड़े में निर्णय लेना बेहतर रहेगा। भागीदारी के कार्यों में आगे बढ़ने जैसा माहौल नहीं है। जो लोग पहले से ही भागीदारी में उनको दूसरों के भरोसे काम नहीं छोड़ना चाहिए। डेली इनकम के प्रयासों में 20 तारीख के बाद बढ़ोत्तरी होगी।
स्वास्थ्य संबंधी-स्वास्थ्य सुख के मामले में थोड़े विपरीत दौर से गुजरना पड़ सकता है। अष्टम भाव में शुक्र और सप्तम भाव बुध,केतु और सूर्य के कारण कुछ खास मजा नहीं आएगा। महीने के उत्तरार्ध में बुध व सूर्य का राशि परिवर्तन अष्टम भाव में होने से समस्याओं में देखते-ही-देखते सुधार आने की टकटकी मत लगाएं। खासकर कि हृदय से संबंधित बीमारी, ब्लडप्रेशर, एसिडिटी, त्वचा और आंखों में सूजन, स्नायुओं में दुखाव और घुटने में दुखाव होने की फरियाद होने की संभावना है।
कर्क मार्च 2017 मासिक राशिफल
महीने के शुरूआती सप्ताह में भाग्य स्थान में उच्च की राशि में मंगल के साथ युति में स्थित शुक्र अभी वक्री होने से आपकी मानसिक चिंता बढ़ाएगा। धन की हानि होने की प्रबल संभावना रहेगी। भाग्य अपेक्षा से कम साथ दे रहा हो ऐसी शिकायत रहेगी। नौकरीपेशा लोगों के हाथ में लिए गए कामकाज धीमी गति से आगे बढ़ेंगे। व्यापारियों को भी सरकारी अथवा कानूनी विवादों के कारण विलंब अथवा अवरोध आ सकते हैं। फिलहाल, बुजुर्गों का स्वास्थ्य आपके लिए चिंता का कारण बनेगा। दूसरे सप्ताह के बाद बुध और शुक्र आपके नवम स्थान में युति में आएगा, जबकि मंगल राशि परिवर्तन करने कर्मस्थान में चला जाएगा जिससे कोई लाभदायी समाचार मिलने की संभावना है। विशेषकर, रिअल एस्टेट, कृषि, मशीनरी, इंजीनियरिंग आदि से जुड़े हुए जातक कोई महत्वपूर्ण निर्णय ले सकेंगे। स्वास्थ्य का विचार करें तो, इस समय आपको खानपान पर भी ध्यान देना पड़ेगा। 15 तारीख से सूर्य का मीन राशि में परिवर्तन आपके लिए लाभदायी सिद्ध हो सकता है। धंधे में खर्च की मात्रा बढ़ेगी परंतु यह आप अच्छे अभिप्राय से करेंगे। महीने की विगत अवधि के दौरान प्रेम संबंधों में निकटता बढ़ने का संकेत है। आपको धर्म, कर्म और अध्यात्म आदि में अधिक रुचि होगी। अंतिम दिनों में विशेषकर शैक्षणिक, बैंकिंग और साहित्य से जुड़े जातकों के लिए प्रोफेशनल मोर्चे पर आशाभरा समय प्रतीत हो रहा है।
धन सम्बन्धी- आपकी आय में उल्लेखनीय वृद्धि करने या अचानक लाभ मिलने की इस समय आशा मत रखें। ये भी हो सकता है कि बिना ठीक से सोचे-विचारे आपके द्वारा लिये गये निर्णयों और साहस की वजह से आर्थिक नुकसान होने की संभावना बढ़ जाए। दैनिक आमदनी में 20 तारीख के बाद इजाफा होगा। 15 तारीख के बाद कानूनी मामलों में खर्च आने की संभावना है।
व्यवसाय स्थिति-प्रोफेशनल मामलों में इस मंथ की शुरूआत बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती। नौकरी कर रहे लोगों को उनके सीनियर लोगों द्वारा प्रमाणित किया जा सकता है। कारोबारी अपने धंधों में कानूनी या सरकारी लफड़ों के कारण ठीक से ध्यान नहीं दे पाएंगे। भागीदारी के कामकाज अथवा दस्तावेजी प्रक्रियाओं को पहले सप्ताह में खत्म हो जाने दें। महीने के उत्तरार्ध में धंधे में बड़ा खर्च आ सकता है।
स्वास्थ्य संबंधी-लंबी अवधि का विचार करें तो विद्यार्थी जातकों के लिए विपरीत समय है। इसकी वजह यह है कि आपके अष्टम स्थान में बुध, सूर्य और केतु की युति के कारण आप भ्रम के शिकार रहेंगे। शिक्षण से संबंधित किसी भी कार्यों के निर्णय में विलंब हो सकता है। 15 तारीख के बाद आपकी ग्रहणशक्ति बढ़ जाने से आप रिसर्च से संबंधित कार्यों में गहाराई से उतरेंगे।
धन सम्बन्धी- आपकी आय में उल्लेखनीय वृद्धि करने या अचानक लाभ मिलने की इस समय आशा मत रखें। ये भी हो सकता है कि बिना ठीक से सोचे-विचारे आपके द्वारा लिये गये निर्णयों और साहस की वजह से आर्थिक नुकसान होने की संभावना बढ़ जाए। दैनिक आमदनी में 20 तारीख के बाद इजाफा होगा। 15 तारीख के बाद कानूनी मामलों में खर्च आने की संभावना है।
व्यवसाय स्थिति-प्रोफेशनल मामलों में इस मंथ की शुरूआत बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती। नौकरी कर रहे लोगों को उनके सीनियर लोगों द्वारा प्रमाणित किया जा सकता है। कारोबारी अपने धंधों में कानूनी या सरकारी लफड़ों के कारण ठीक से ध्यान नहीं दे पाएंगे। भागीदारी के कामकाज अथवा दस्तावेजी प्रक्रियाओं को पहले सप्ताह में खत्म हो जाने दें। महीने के उत्तरार्ध में धंधे में बड़ा खर्च आ सकता है।
स्वास्थ्य संबंधी-लंबी अवधि का विचार करें तो विद्यार्थी जातकों के लिए विपरीत समय है। इसकी वजह यह है कि आपके अष्टम स्थान में बुध, सूर्य और केतु की युति के कारण आप भ्रम के शिकार रहेंगे। शिक्षण से संबंधित किसी भी कार्यों के निर्णय में विलंब हो सकता है। 15 तारीख के बाद आपकी ग्रहणशक्ति बढ़ जाने से आप रिसर्च से संबंधित कार्यों में गहाराई से उतरेंगे।
Wednesday, 1 March 2017
मिथुन मार्च 2017 मासिक राशिफल
महीने के आरंभ में मीन राशि में मंगल, शुक्र जबकि भाग्य स्थान में सूर्य और बुध के साथ केतु की युति है। शुरूआत की इस अवधि के दौरान आपके कार्यक्षेत्र में वृद्धि होगी। आर्थिक लाभ भी मिलेंगे और आनंद के प्रसंग भी आ सकते हैं। कहीं न कहीं भाग्य का साथ अपेक्षाकृत कम मिल रहा हो ऐसी भी शिकायत रहेगी। ननिहाल से लाभ होगा। तारीख 5 और 6 के दिन कोई नया काम मत करें। महत्वपूर्ण निर्णय भी नहीं लें। महीने की शुरूआत में ही मंगल राशि बदलकर ग्यारहवें में चला जाएगा, जो जन्मभूमि से दूर के कामकाज में गति बढ़ाएगा। आगामी समय विवाह के इच्छुक जातकों के लिए आशाभरा कहा जा सकेगा। अचल संपत्ति से संबंधित काम होंगे। वाहन का क्रय-विक्रय कर सकेंगे। महीने के मध्य में सूर्य आपके कर्मस्थान में आएगा। इस समय बुध भी इसके साथ युति में होगा, जबकि पहले से इस कर्मस्थान में स्थित शुक्र वक्री चल रहा होगा। इस समय आपकी प्रोफेशनल प्रयोजनों से संबंधित गतिविधियाँ अधिक होंगी। सृजनात्मक विषयों अथवा बौद्धिक विषयों से जुड़े जातक बढ़िया प्रगति कर सकेंगे। माता के साथ फिलहाल किसी विषय में मनमुटाव की संभावना रहेगी। महीने के अंत में इस अवधि के दौरान विशेष रूप से पाचन, मोटापा, डायबिटीज़ आदि से जुड़ी बीमारियों के सिर उठाने की संभावना रहेगी। दुर्घटनाओं से भी संभलना पड़ेगा।
व्यवसाय संबंधी-व्यवसाय में आप नयी पद्धति या नये स्थान के संदर्भ में गंभीरता से विचारेंगे। भाग्य का साथ कम मिलेगा। आपका काम के प्रति समर्पण निश्चित रूप से कमाई कराएगा। विशेष रूप से शेयर बाजार, नाटक, सिनेमा, सौंदर्य प्रसाधन, आर्किटेक्ट, डिजाइनिंग, फैशन और होटल से संबंधित जातक कमाई कर सकेंगे। 15 तारीख तक आपके भीतर कुछ नया साहस करने की आकांक्षा पैदा होगी। आपको सलाह है कि अपने कोई भी निर्णय जल्दबाजी या किसी दूसरों के बहकावे में आकर मत लीजिए।
आर्थिक स्थिति -आपकी आर्थिक स्थिति में इस महीने निरंतर उतार-चढ़ाव की संभावना नजर आती है। परिवार की मांगों को पूरा करने और वैभवशाली सुविधाओं की इच्छापूर्ति के लिए आप धन खर्च करेंगे। महीने के पूर्वार्ध में आप अपने व्यवसाय में अपने प्रोडक्ट या सेवा की गुणवत्ता को बढ़ाने, वर्क के कवरेज को बढ़ाने, नए अवसरों के सृजन हेतु खर्च कर सकते हैं। इसे लेकर आपकी कोई लंबी यात्रा भी होने की संभावना है।
स्वास्थ्य संबंधी-महीने के शुरूआत का समय आपको स्वास्थ्य के मामले में चिंता कराए एेसा लगता नहीं है। हालांकि, रीढ़ की हड्डी, पीठ दर्द और कंधे के स्नायुओं के कष्ट में आपको 15 तारीख तक सावधानी रखनी होगी। जो लोग पहले से ही किसी बीमारी से पीड़ित हैं उनके हेल्थ में सुधार आने की भी उम्मीद है। उत्तरार्ध के समय में पाचन संबंधी समस्या अथवा फ़ूड पोइज़निंग हो जाने की आशंका को देखते हुए स्वास्थवर्धक भोजन और आराम को रोजमर्रा की आदतों में शामिल करने की सलाह है।
व्यवसाय संबंधी-व्यवसाय में आप नयी पद्धति या नये स्थान के संदर्भ में गंभीरता से विचारेंगे। भाग्य का साथ कम मिलेगा। आपका काम के प्रति समर्पण निश्चित रूप से कमाई कराएगा। विशेष रूप से शेयर बाजार, नाटक, सिनेमा, सौंदर्य प्रसाधन, आर्किटेक्ट, डिजाइनिंग, फैशन और होटल से संबंधित जातक कमाई कर सकेंगे। 15 तारीख तक आपके भीतर कुछ नया साहस करने की आकांक्षा पैदा होगी। आपको सलाह है कि अपने कोई भी निर्णय जल्दबाजी या किसी दूसरों के बहकावे में आकर मत लीजिए।
आर्थिक स्थिति -आपकी आर्थिक स्थिति में इस महीने निरंतर उतार-चढ़ाव की संभावना नजर आती है। परिवार की मांगों को पूरा करने और वैभवशाली सुविधाओं की इच्छापूर्ति के लिए आप धन खर्च करेंगे। महीने के पूर्वार्ध में आप अपने व्यवसाय में अपने प्रोडक्ट या सेवा की गुणवत्ता को बढ़ाने, वर्क के कवरेज को बढ़ाने, नए अवसरों के सृजन हेतु खर्च कर सकते हैं। इसे लेकर आपकी कोई लंबी यात्रा भी होने की संभावना है।
स्वास्थ्य संबंधी-महीने के शुरूआत का समय आपको स्वास्थ्य के मामले में चिंता कराए एेसा लगता नहीं है। हालांकि, रीढ़ की हड्डी, पीठ दर्द और कंधे के स्नायुओं के कष्ट में आपको 15 तारीख तक सावधानी रखनी होगी। जो लोग पहले से ही किसी बीमारी से पीड़ित हैं उनके हेल्थ में सुधार आने की भी उम्मीद है। उत्तरार्ध के समय में पाचन संबंधी समस्या अथवा फ़ूड पोइज़निंग हो जाने की आशंका को देखते हुए स्वास्थवर्धक भोजन और आराम को रोजमर्रा की आदतों में शामिल करने की सलाह है।
वृषभ मार्च 2017 मासिक राशिफल
महीने के प्रारंभ में दसवें भाव में से सूर्य-बुध-केतु का भ्रमण हो रहा है। धनेश-पंचमेश के दसवें भाव में से भ्रमण होने से जो जातक जमीन-मकान के काम से जुड़े हैं उनको बड़ा कॉन्ट्रैक्ट मिलने का योग है। दसवें भाव में केतु का भ्रमण होने से प्रतिस्पर्धी और अहित चाहने वाले आपको पराजित करने का प्रयास करेंगे। बौद्धिक कौशल्य के कार्य जैसे कि शिक्षण, बैंकिंग, लेखन, पत्रकारिता आदि में विशेष सावधानी रखें। आपके सातवें – बारहवें स्थान का स्वामी मंगल दूसरे सप्ताह से बारहवें भाव से भ्रमण करेगा। जीवनसाथी की तबीयत नरम-गरम रहेगी। वैवाहिक जीवन में मतभेद उत्पन्न होगा अथवा जीवनसाथी से वियोग होगा। अप्रत्याशित खर्च आएगा। छोटे भाई बहनों के साथ मेलमिलाप होगा। ससुराल पक्ष से किसी लाभ की अपेक्षा रख सकते हैं। महीने के मध्य में विशेष रूप से आनंद-प्रमोद, खाने-पीने और घूमने-फिरने में खर्च अधिक होगा। आप अत्यधिक भावनाशील रहेंगे। आप किसी प्रतियोगिता में भाग ले सकेंगे। महीने के उत्तरार्ध में सूर्य आपके ग्यारहवें स्थान में आएगा। प्रेमीजनों के संबंधों में अहं के कारण दरार पड़ने की संभावना अधिक रहेगी। बारहवें स्थान में मंगल के होने से गुस्सा और आवेश भी अधिक रहेगा। इस समय वायु जनित रोग होने की संभावना रहेगी। महीने के अंत में इस अवधि के दौरान आपकी सामाजिक सक्रियता अधिक रहेगी। नौकरी में नए अवसर मिल सकते हैं।
व्यवसाय संबंधी-महीने के शुरूआत के दो सप्ताह में आप कोई बड़ा निर्णय लेना टालें। सरकारी काम करते समय सजग रहें। रियल एस्टेट से संबंधित कार्यों से दूरी बनाएं। तारीख15 के बाद शेयर बाजार, ट्रेडिंग इत्यादि में निरर्थक साहस न करें। काम में अवरोध व विलंब की संभावना अधिक रहेगी। हालांकि, नौकरी में लोगों को राहतें रहेंगी।
धन संबंधी- धन का प्रवाह अटक-अटक कर आएगा। आपने भले ही तन-मन-धन से प्रयास किया हो, पर मनचाहा परिणाम नहीं मिल पाने से आपको मन-ही-मन निराशा हो सकती है। व्यवसायिक मोर्चे पर सरकारी कामकाज अथवा कानूनी उलझनों के कारण आपके कार्यों के अटकने की संभावना रहेगी। सृजनात्मक और कला से संबंधित क्षेत्र में नौकरी कर रहे लोगों को लाभ मिल पाएगा।
स्वास्थ्य संबंधी- स्वास्थ्य में इस महीने व्यवसायिक व्यस्तता और काम के भार के कारण थकान, बोरियत और सुस्ती महसूस होने की आशंका है। हालांकि, किसी बड़े रोग की आशंका नजर नहीं आती। अगर आप काम के साथ-साथ आराम को अपनी जीवन शैली का हिस्सा नहीं बनाएंगे तो कोई खास दिक्कत नहीं आने पाएगी। नेत्र पीड़ा, पैरों के तलुवे में सूजन, एसिडिटी वगैरह की समस्या सप्ताह के पहले दो सप्ताह में थोड़ी हो सकती है।
व्यवसाय संबंधी-महीने के शुरूआत के दो सप्ताह में आप कोई बड़ा निर्णय लेना टालें। सरकारी काम करते समय सजग रहें। रियल एस्टेट से संबंधित कार्यों से दूरी बनाएं। तारीख15 के बाद शेयर बाजार, ट्रेडिंग इत्यादि में निरर्थक साहस न करें। काम में अवरोध व विलंब की संभावना अधिक रहेगी। हालांकि, नौकरी में लोगों को राहतें रहेंगी।
धन संबंधी- धन का प्रवाह अटक-अटक कर आएगा। आपने भले ही तन-मन-धन से प्रयास किया हो, पर मनचाहा परिणाम नहीं मिल पाने से आपको मन-ही-मन निराशा हो सकती है। व्यवसायिक मोर्चे पर सरकारी कामकाज अथवा कानूनी उलझनों के कारण आपके कार्यों के अटकने की संभावना रहेगी। सृजनात्मक और कला से संबंधित क्षेत्र में नौकरी कर रहे लोगों को लाभ मिल पाएगा।
स्वास्थ्य संबंधी- स्वास्थ्य में इस महीने व्यवसायिक व्यस्तता और काम के भार के कारण थकान, बोरियत और सुस्ती महसूस होने की आशंका है। हालांकि, किसी बड़े रोग की आशंका नजर नहीं आती। अगर आप काम के साथ-साथ आराम को अपनी जीवन शैली का हिस्सा नहीं बनाएंगे तो कोई खास दिक्कत नहीं आने पाएगी। नेत्र पीड़ा, पैरों के तलुवे में सूजन, एसिडिटी वगैरह की समस्या सप्ताह के पहले दो सप्ताह में थोड़ी हो सकती है।
मेष मार्च 2017 मासिक राशिफल
महीने के पूर्वार्ध में पंचमेश सूर्य कुंभ राशि में रहकर आर्थिक अवरोध तथा संतान संबंधी चिंता कराएगा। पंचम स्थान में राहु होने से और सामने सूर्य की दृष्टि से प्रणय जीवन में भी आपके बीच अहं और अविश्वास बढ़ेगा, जिससे तनाव की संभावना में वृद्धि होगी। मंगल आपकी राशि में आने से आपमें जोश और उत्साह बढ़ेगा और कोई भी काम करने में आप खूब रुचि लेंगे। हालांकि, इस समय आपमें गुस्से की मात्रा बढ़ेगी। एेसे में किसी भी व्यक्ति के साथ व्यवहार में उग्रता न आए इसका विशेष ख्याल रखें। षष्ठेश बुध के कुंभ राशि में होने से कामकाज एवं व्यवसायिक क्षेत्र में प्रगति देखने को मिलेगी। भाग्येश तथा व्ययेश गुरू आपकी राशि से छठ्ठी कन्या राशि में है जिससे कामकाज में वृद्धि होगी। आपकी मेहनत के अनुसार मुनाफा मिल सकेगा। हालांकि, खर्च पर नियंत्रण रखकर बचत करने के लिए उत्तम समय है । महीने के उत्तरार्ध में सूर्य राशि बदलकर मीन राशि में आएगा जो आपके लिए सरकारी और कानूनी खर्च में वृद्धि होने का संकेत दे रहा है। इस समय आपकी प्रतिष्ठा खंडित नहीं हो इसका ख्याल रखना पड़ेगा। शुक्र के व्यय स्थान में होने से मनोरंजन और विलासी गतिविधियों में आवश्यकता से अधिक खर्च हो सकता है। बुध भी मीन राशि में आएगा जिससे आपके विचारों में नकारात्मकता आने की संभावना है। उधार-वसूली के कार्य में कहीं न कहीं पीछे हटने की संभावना बढ़ सकती है।
व्यवसाय संबंधी- महीने के उत्तरार्ध में आप कामकाज में उत्साह से आगे बढ़ेंगे। पहले की तुलना में थोड़ी प्रगति भी होगी। पर उत्तरार्ध के समय में कामकाज में सरकारी या कानूनी अड़चनें भी आ सकती हैं। आपकी संस्था में सरकारी इन्क्वायरी आने या आपके ऊपर मिथ्या आरोप लगाए जाने का खतरा रहेगा। जन्मभूमि से दूर के स्थानों पर काम कर रहे जातकों और मल्टीनेशनल कंपनी के कार्यों में अवरोध आएगा। इनमें अचानक से कोई बड़ा परिवर्तन आने की संभावना रहेगी।
धन संबंधी- आपके धन स्थान का मालिक शुक्र इस समय व्यय स्थान में है। शुक्र के इस समय वक्री रहने से मनोरंजन और विलासी प्रवृत्तियों में खूब खर्च होगा। आवक मर्यादित रहेगी। महीने का उत्तरार्ध सरकारी व कचहरी के कामों के निपटारे में बीतेगा। पैतृक संपत्तियों से जुड़े मुद्दों का हल होना मुश्किल रहेगा। संतान संबंधित खर्च भी रहेंगे। भाग्य का साथ कम मिलने से आता-आता लाभ अटक जाने का अंदेशा रहेगा।
स्वास्थ्य संबंधी-त्वचा व गुप्त भागों की समस्या में आपको काफी ध्यान रखना होगा। डायबिटीज व पाचन संबंधी रोग आपको परेशान करेंगे। महीने के उत्तरार्ध में पीठ के दर्द की फरियाद रहेगी। इस महीने खासकर कि आकस्मिक चोट, बिजली के करंट से अपना बचाव करना होगा। आँखों में सूजन और रक्त परिभ्रमण संबंधी फरियादें रहेंगी। आपके नकारात्मक विचारों का असर आपके स्वास्थ्य पर दिखाई देगा।
व्यवसाय संबंधी- महीने के उत्तरार्ध में आप कामकाज में उत्साह से आगे बढ़ेंगे। पहले की तुलना में थोड़ी प्रगति भी होगी। पर उत्तरार्ध के समय में कामकाज में सरकारी या कानूनी अड़चनें भी आ सकती हैं। आपकी संस्था में सरकारी इन्क्वायरी आने या आपके ऊपर मिथ्या आरोप लगाए जाने का खतरा रहेगा। जन्मभूमि से दूर के स्थानों पर काम कर रहे जातकों और मल्टीनेशनल कंपनी के कार्यों में अवरोध आएगा। इनमें अचानक से कोई बड़ा परिवर्तन आने की संभावना रहेगी।
धन संबंधी- आपके धन स्थान का मालिक शुक्र इस समय व्यय स्थान में है। शुक्र के इस समय वक्री रहने से मनोरंजन और विलासी प्रवृत्तियों में खूब खर्च होगा। आवक मर्यादित रहेगी। महीने का उत्तरार्ध सरकारी व कचहरी के कामों के निपटारे में बीतेगा। पैतृक संपत्तियों से जुड़े मुद्दों का हल होना मुश्किल रहेगा। संतान संबंधित खर्च भी रहेंगे। भाग्य का साथ कम मिलने से आता-आता लाभ अटक जाने का अंदेशा रहेगा।
स्वास्थ्य संबंधी-त्वचा व गुप्त भागों की समस्या में आपको काफी ध्यान रखना होगा। डायबिटीज व पाचन संबंधी रोग आपको परेशान करेंगे। महीने के उत्तरार्ध में पीठ के दर्द की फरियाद रहेगी। इस महीने खासकर कि आकस्मिक चोट, बिजली के करंट से अपना बचाव करना होगा। आँखों में सूजन और रक्त परिभ्रमण संबंधी फरियादें रहेंगी। आपके नकारात्मक विचारों का असर आपके स्वास्थ्य पर दिखाई देगा।
तनाव और असफलता में सहयोगी ज्योतिषीय परामर्ष -
तनाव और असफलता किसी भी उम्र या किसी भी परिस्थिति में व्यक्ति को अपने गिरफ्त में ले सकती है। छोटे बच्चे का असहज व्यवहार, जिसमें अपने अध्ययन, खेल अन्य अवसरों पर असहजता या मिलजुल कर कार्य ना कर पाने के कारण निरंतर आलोचना का षिकार होने से तनाव या सामाजिक परिस्थिति से या दुर्भागयवष अपराध का षिकार होने से मिला तनाव अथवा अधिगम की मंदगति के कारण अपेक्षाओं पर खरा ना उतरने पर किये जाने वाले सौतेले व्यवहार के कारण तनाव या बढ़ती उम्र में आपसी रिष्तों के बीच आपसी समझ ना होने अथवा अपनो द्वारा पर्याप्त केयर अथवा प्यार ना मिलने से मिले अकेलेपन से उत्पन्न तनाव कभी अधिक कार्य का दबाव से उत्पन्न तनाव या निरंतर रिष्तों में बढ़ती दूरी का तनाव या करीबियों के व्यवहार से उत्पन्न तनाव हर आयुवर्ग में पाया जा सकता है। इसलिए यह माना जा सकता है कि समस्याओं, आवष्यकताओं, संवेदनषीलता आदि का जातक की आयु, लिंग एवं विकासात्मक संदर्भ के साथ सीधा संबंध होता है। किसी व्यक्ति का व्यवहार या उसकी सफलता-असफलता आदि उसके अपने प्रयास, मानसिक दक्षता के साथ पारिवारिक एवं परिवेषीय स्थिति पर भी निर्भर करती है। किसी व्यक्ति की समस्या में प्रायः उसके परिजन, मित्र, अध्यापक, धर्मगुरू या झाड़फूक, विषेषज्ञ या तांत्रिक द्वारा सहायता दी जाती है किंतु बहुधा समस्या यथावत् बनी रह जाती है या कई बार जटिल या विकृत रूप ले लेती है। किसी जातक के व्यक्तित्व, व्यवहार, संज्ञान, अनुभूति एवं अंतर्वैयक्तिक व्यवहार से जुड़ी समस्याओं के निराकरण में ज्योतिष परामर्ष विषेष लाभकारी होता है। किसी जातक की कुंडली में अगर लग्नेष, तृतीयेष, चतुर्थेष, सप्तमेष, अष्टमेष या भाग्येष विपरीत स्थिति या षष्ठम, अष्टम अथवा द्वादष भाव में हो अथवा राहु से आक्रंात हो या नीचगत अथवा क्रूर ग्रहों के साथ हो तो व्यक्ति को उस ग्रहों की स्थिति अनुसार ग्रह स्थिति एवं ग्रह दषाओं का विपरीत फल भोगना हेाता है। अतः व्यक्ति की कुंडली का विष्लेषण कर इस प्रकार के तनाव से बचने हेतु ज्योतिष परामर्ष का लाभ प्राप्त जीवन में असफलता तथा हानि से बचाव का कारगर तरीका हो सकता है।
क्या आपकी सफलता में सहायक होगा अच्छे गुरू का साथ -
किसी भी व्यक्ति के जीवन में षिक्षा ग्रहण करने से लेकर जीवन में सफलता प्राप्त करने तक एक गुरू का होना आवष्यक है। मार्गदर्षन हेतु गुरू का साथ महत्वपूर्ण होता है। कहा जाता है कि प्रथम गुरू माता होती है जोकि संसार से परिचित कराती है उसी प्रकार जीवन में यष व उन्नति प्राप्ति हेतु गुरू का साथ जीवन संघर्ष को कम करता है। कई बार व्यक्ति को कोई अच्छा मार्गदर्षन प्राप्त नहीं होता परंतु वह व्यक्ति फिर भी सफलता प्राप्त करने में सफल होता है। किसी व्यक्ति को जीवन में सफलता हेतु गुरू का साथ मिलेगा या उसका गुरू कौन होगा, कब प्राप्त होगा तथा किस सीमा तक सफलता प्राप्ति में सहायक होगा इसका पता व्यक्ति की कुंडली से जाना जा सकता है। ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पिति ग्रह को गुरू भी कहा जाता है वहीं जीवन में अध्यापकों, दार्षनिकों, लेखकों आदि को गुरू कहा जाता है। वेद में गुरू को समस्त देवताओं तथा ग्रहों का गुरू माना जाता है। किसी व्यक्ति की सफलता में गुरू का अहम हिस्सा होता है। सामान्यतः जिन व्यक्तियों की कुंडली में गुरू केंद्र या त्रिकोण का स्वामी होता है। विषेषतः मेष, कर्क और वृष्चिक लग्न की कुंडली में गुरू शुभ भावों में स्थित हो तो व्यक्ति को अच्छे गुरू का मार्गदर्षन अवष्य प्राप्त होगा। यदि गुरू पंचम या नवम में स्थित हो तो गुरू की कृपा से भाग्योदय होता है। यदि गुरू चतुर्थ या दषम भाव में हो तो क्रमषः माता-पिता ही गुरू रूप में मार्गदर्षन व सहायता देते हैं। गुरू यदि 6, 8 या 12 भाव में हो तो गुरू कृपा से प्रायः वंचित ही रहना पड़ता है।
यदि गुरू लग्न में अनुकूल हो तो व्यक्ति को स्वयं ही ज्ञान व आध्यात्म के रास्ते पर जाने को प्रेरित करता है। यदि गुरू पर पाप प्रभाव न हो तो व्यक्ति स्व-परिश्रम तथा स्व-प्रेरणा से ज्ञानार्जन करता है। दूसरों को भी मार्गदर्षन देने में सक्षम होता है। अच्छे सलाहकार भी बनने में सफल होता है। यदि गुरू का संबंध तीसरे स्थान या बुध के साथ बनें तो व्यक्ति वाणी के द्वारा मार्गदर्षन में सफल होता है वहीं यदि गुरू का संबंध मंगल के साथ बने तो व्यक्ति कौषल द्वारा मार्गदर्षक बनता है शुक्र के साथ अनुकूल संबंध बनने पर कला या आर्ट के माध्यम से मार्गदर्षक बनता है चंद्रमा के साथ संबंध बनने पर लेखन द्वारा मार्गदर्षन बनता है। अतः गुरू का उत्तम स्थिति में होना अच्छे मार्गदर्षक की प्राप्ति या मार्गदर्षन में सफलता का द्योतक होता है।
यदि गुरू लग्न में अनुकूल हो तो व्यक्ति को स्वयं ही ज्ञान व आध्यात्म के रास्ते पर जाने को प्रेरित करता है। यदि गुरू पर पाप प्रभाव न हो तो व्यक्ति स्व-परिश्रम तथा स्व-प्रेरणा से ज्ञानार्जन करता है। दूसरों को भी मार्गदर्षन देने में सक्षम होता है। अच्छे सलाहकार भी बनने में सफल होता है। यदि गुरू का संबंध तीसरे स्थान या बुध के साथ बनें तो व्यक्ति वाणी के द्वारा मार्गदर्षन में सफल होता है वहीं यदि गुरू का संबंध मंगल के साथ बने तो व्यक्ति कौषल द्वारा मार्गदर्षक बनता है शुक्र के साथ अनुकूल संबंध बनने पर कला या आर्ट के माध्यम से मार्गदर्षक बनता है चंद्रमा के साथ संबंध बनने पर लेखन द्वारा मार्गदर्षन बनता है। अतः गुरू का उत्तम स्थिति में होना अच्छे मार्गदर्षक की प्राप्ति या मार्गदर्षन में सफलता का द्योतक होता है।
पुखराज से पाएँ सफलता
वृश्चिक लग्न या राशि दोनों का स्वामी मंगल होने से जातक में साहस व बल अधिक होता है। ये तुनक मिजाज वाले भी होते हैं। मंगल यदि लग्न में हो तो इनमें अन्य की अपेक्षा साहस अधिक होगा। ऐसे जातक पुलिस प्रशासन, सेना, संगठन, राजनीति, चिकित्सा विशेषतः हड्डी रोग में अच्छी सफलता पाने वाले होते हैं। गुरु की लग्न पर पंचम दृष्टि पड़े तो ये विद्या के क्षेत्र में अच्छी सफलता पाते हैं। इनकी संतान भी उत्तम पढ़ी-लिखी होती है एवं अपनी संतान से स्नेह करने वाले होते हैं। मनोरंजन की दुनिया में हो तो अच्छी सफलता पाने वाले होते हैं। ये अच्छे वकील, जज या प्रशासनिक सेवाओं में भी सफलता पाने वाले होते हैं। गुरु की सप्तम दृष्टि पड़ने से इनका चेहरा गोल होता है व सिर के बाल कुछ कम होते हैं। ये धर्म-कर्म को मानने वाले ईमानदार व्यक्तित्व के होते हैं। इनकी महत्वकांक्षा भी अधिक होती है। इन्हें मित्रों भाइयों से विशेष लाभ नहीं मिलता है। भाग्यभाव से गुरु की दृष्टि पड़े तो ये अपने विवेक के द्वारा प्रत्येक कार्य में अच्छी सफलता पाने वाले होते हैं। धर्म-कर्म में आस्थावान व गुरुजनों की सेवा करने वाले और मान-सम्मान पाने वाले होते हैं। ऐसी स्थितिवाले जातक यदि पुखराज पहनें तो बहुत सफलता पाते हैं। वाद-विवाद व प्रतियोगिता परीक्षाओं में भी सफल होते हैं। कर्क राशि या वृश्चिक राशि हो तो मोती के साथ पुखराज पहनकर अच्छा लाभ पाया जा सकता है। जिनकी वृश्चिक राशि या वृश्चिक लग्न है और विवाह के क्षेत्र में बाधा आ रही है तो वे पुखराज व मूँगा पहनें विवाह योग शीघ्र बनने लगेंगे। उच्च प्रशासनिक सेवा वाले जातक के लिए पुखराज पहनना सफलतादायक होगा। धनु लग्न या राशि वाले, मीन लग्न या राशि वाले, कर्क लग्न या राशि वाले, सिंह लग्न या राशि वाले, मेघ लग्न या राशि वाले पुखराज व मूँगा पहनकर लाभ पा सकते हैं।
नक्षत्रों के प्रभाव से आर्थिक संकट
वर्तमान दौर में प्रत्येक व्यक्ति को किसी ना किसी रूप में आर्थिक परेषानी तथा कमी का सामना करना पड़ता है। आज के आधुनिक दौर में सभी आवष्यक कार्यो जैसे दैनिक दैनिंदन कार्य, बच्चों की षिक्षा विवाह के लिए हो या मकान वाहन के लिए आर्थिक संकट हो सकता है। इन परिस्थितियों में कई बार कर्ज लेना जरूरी हो गया है। कई बार कुछ कर्ज आसानी से चुक जाते हैं तो कई कर्ज बोझ बढ़ाने का ही कार्य करते हैं। अतः यदि कर्ज लेते समय नक्षत्र, लग्न एवं राषि पर विचार करते हुए अपनी ग्रह दषाओं के अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थितियों का निर्णय लेते हुए कर्ज लिया जाए तो बोझ ना होकर ऐष्वर्या तथा उन्नति बढ़ाने का साधन भी बन सकता है। अतः 27 नक्षत्रों में से 1.अष्विनी, 2.मृगषिरा, 3.पुनवर्सु, 5.चित्रा, 6.विषाखा, 8.अनुराधा, 9.श्रवण, 10.ज्येष्ठा, 11.धनिष्ठा, 12.षतभिषा, 13.रेवती ये नक्षत्र कर्ज हेतु उचित नक्षत्र हैं, जिनमें लिया गया कर्ज चुकाने में कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता वहीं पर हस्त, भरणी, पुष्य, स्वाति इत्यादि नक्षत्र कर्ज लेने हेतु प्रतिकूल फल देते हैं। उसी प्रकार चर लग्न में कर्जा लेना इसलिए उचित होता है क्योंकि इस लग्न में कर्ज आसानी से चुक जाता है किंतु इस लग्न में कर्ज देना उचित नहीं होता। वहीं पर द्विस्वभाव लग्न में लिया गया कर्ज चुकान के उपरांत भी चुका हुआ नहीं दिखता। स्थिर लग्न में लिया गया कर्ज चुकाने में बहुत कष्ट, विवाद की संभावना होती है अतः इन लग्नों में कर्ज लेने से बचना चाहिए। उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में अपनी राषि तथा ग्रह स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए कर्ज लेना या देना चाहिए। अगर कोई ग्रह प्रतिकूल हैं उनकी स्थिति तथा दषाओं में कर्ज लेने से बचना ही तनाव से मुक्ति का सरल उपाय है।
शनि पीड़ित होने से उत्पन्न समस्याएं
ग्रहों की चर्चा आते ही अधिकांश लोगों का ध्यान ‘‘शनि’’ की ओर ही आकर्षित होता है तथा एक भय की दृष्टि से इसे देखते हैं। जबकि सत्यता इससे कहीं अलग है क्योंकि शनिदेव को भगवान शिव के द्वारा दण्डाधिकारी का पद मिला हुआ है अब यदि दण्डाधिकारी सबके सामने अपना कोमल हृदय प्रस्तुत करेंगे तो अपराधियों को दण्ड देने में और मनुष्य द्वारा किये गये गलत कर्म का दण्ड देने में व्यवधान उत्पन्न होगा और सृष्टि संचालन बाधित हो जायेगा तो शनि का क्रूर या क्रोधी स्वभाव केवल गलत कर्मों को नष्ट करने के लिए है शनि की साढ़ेसाती और ढैया में मनुष्य के गलत कर्म या भूल आदि का फल प्राप्त होता है यदि साढ़ेसाती जीवन में न आये तो हमारे गलत कर्म के परिणाम एकत्रित होते रहेंगे जिन्हें आगे हमें भोगना पड़ेगा इसलिए शनि की साढ़ेसाती साथ के साथ ही परिणाम देकर गलत कर्मों को भस्म करती है और मनुष्य को संघर्ष की अग्नि में तपाकर परिपक्वता की स्वर्ग सी चमक भर देती है। ज्योतिषीय दृष्टि कोण: हमारे जीवन से जुड़े बहुत से अहम घटक शनि के अंतर्गत आते हैं। यदि हमारी कुंडली में शनि पीड़ित या निर्बल स्थिति में हो तो उनसे संबंधित विभिन्न समस्याएं होती हैं। आजीविका: यदि कुंडली में शनि नीच राशि में है त्रिक भाव में है मंगल या केतु के प्रभाव से पीड़ित है या पूर्णतः अस्त हो तो ऐसी स्थिति में व्यक्ति संघर्ष करने पर भी आजीविका क्षेत्र में उन्नति कर पाता। बार-बार क्षेत्र बदलने पड़ते हैं तथा आजीविका में उतार-चढ़ाव सदैव आते रहते हैं। व्यापारिक क्षेत्र में: यदि शनि कुंडली में पीड़ित है तो ऐसे व्यक्ति को लोहे, मशीनों, पुर्जों, पैट्रोल, कोयला, गाड़ी, कैमिकल आदि के व्यापार में उन्नति नहीं होती अतः शनि निर्बल होने पर इन व्यापारों को नहीं करना चाहिए। स्वास्थ्य की दृष्टि में: यदि शनि नीच राशि (मेष) में है या छठे, आठवें बारहवें भाव में है या षष्टेश और अष्टमेश से प्रभावित है तो ऐसे में व्यक्ति का पेट, पाचन तंत्र सदैव बिगड़ा रहता है तथा जोड़ों के दर्द जैसे कमर, घुटने कोहनी आदि की समस्या भी रहती है इसके अतिरिक्त बालों की समस्या तथा वात रोगों से भी व्यक्ति परेशान रहता है। जनता के समर्थन में: राजनीति के संबंध में भी शनि की भूमिका होती है क्योंकि शनि जनता का नैसर्गिक कारक है अतः शनि कुंडली में पीड़ित हो तो व्यक्ति को जनता का समर्थन पाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है। अतः कुंडली में शनि बलहीन या पीड़ित हो तो जीवन में बहुत सी आवश्यक चीजों का अभाव हो जाता है अतः ज्योतिष और सृष्टि सचांलन में शनि की एक अहम भूमिका है उपरोक्त स्थितियों में शनि के मंत्र, पूजन, व्रत, सेवा आदि करके स्थिति को सुधारा जा सकता है।
Tuesday, 28 February 2017
कुंडली में दशाफल
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में फल शब्द कर्मफल का वाचक एवं बोधक है। क्योंकि कर्मफल वर्तमान जीवन में उसके घटनाचक्र के रूप में घटित होते हैं, अतः जीवन में घटित होने वाली घटनाओं को अथवा जीवन के घटनाचक्र को भी फल कहते हैं। कर्मफल जन्म जन्मांतरों में अर्जित कर्मों का फल होता है, जिसे यह शास्त्र ठीक उसी प्रकार अभिव्यक्ति देता है जैसे दीपक अंधकार में रखे हुए पदार्थों का स्पष्ट रूप से बोध करा देता हो। कर्मवाद के सिद्धांतानुसार जन्म जन्मांतरों में अर्जित कर्म तीन प्रकार के होते हैं- संचित, प्रारब्ध एवं क्रियमाण। इन त्रिविध कर्मों के फल को जानने के लिए ज्योतिष शास्त्र के प्रवर्तक महर्षियों ने तीन पद्धतियों का आविष्कार एवं विकास किया है, जिन्हें होराशास्त्र में योग, दशा एवं गोचर कहा जाता है। संचित कर्म परस्पर विरोधी होते हैं। इसलिए उनके फल के सूचक योग भी परस्पर विरोधी होते हैं। संचित कर्म एवं ग्रहयोग में कार्य-कारण संबंध हैं। जैसे काली मिट्टी से काला घड़ा, लाल मिट्टी से लाल घड़ा, पीली मिट्टी से पीला घड़ा या सफेद धागे से सफेद कपड़ा और रंगीन धागे से रंगीन कपड़ा बनता है; उसी प्रकार परस्पर विरोधी संचित कर्मों के परिणाम के सूचक योग भी परस्पर विरोधी होते हैं। इस प्रसंग में अरिष्टयोग एवं उसके भंग तथा राज योग एवं उसके भंग को उदाहरणस्वरूप प्रस्तुत किया जा सकता है। इस विषय में एक बात ध्यान में रखने योग्य है कि सभी कर्मों का फल मनुष्य को वर्तमान जीवन में नहीं मिलता, अपितु योगों के समस्त फल को भोगने के लिए कई जन्म लग जाते हैं। अतः समस्त योगों का फल मनुष्य को उसके जीवन-काल में नहीं मिलता। समस्त योगों में से केवल उन्हीं योगों का फल मनुष्य को मिलता है जिनकी दशा उसके जीवन-काल में आती है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि मनुष्य को उसकी कुंडली के सभी योगों का फल नहीं मिल पाता, इसलिए जीवन के घटनाचक्र का पूर्वानुमान करने में योगों के फल की अपेक्षा दशा-फल अधिक उपयोगी होता है। दशाफल के भेद: जातक ग्रन्थों में तीन प्रकार के दशाफलों का उल्लेख मिलता है। Û सामान्य फल Û योगफल एवं Û स्वाभाविक फल सामान्य फल: दशाकाल में ग्रहों का जो फल उनकी स्थिति, युति, दृष्टि, बल, अवस्था आदि के अनुसार जातकों को मिलता है, वह सामान्य फल कहलाता है। यह सामान्य फल चालीस विविध आधारों पर निर्णीत होने के कारण 40 प्रकार का होता है। इस फल के निर्णायक प्रमुख आधार इस प्रकार हैं- 1. परमोच्च 2. उच्च 3. आरोही 4. अवरोही 5. परम नीच 6. नीच 7. मूलत्रिकोण 8. स्वगृही 9. अतिमित्र गृही 10. मित्रगृही 11. समगृही 12. शत्रुगृही 13. अतिशत्रु गृही 14. उच्च नवांशस्थ 15. नीच नवांशस्थ 16. वर्गोत्तमस्थ 17. शत्रु नवांशस्थ 18. शुभ षष्ठ्यांशस्थ 19. पाप षष्ठ्यांशस्थ 20. परिजातदिवसर्गस्थ 21. शुभ द्रेष्काणस्थ 22. क्रूर द्रेष्काणस्थ 23. उच्चस्थ के साथ 24. शुभ ग्रह के साथ 25. पाप ग्रह के साथ 26. नीचस्थ ग्रह के साथ 27. शुभदृष्ट 28. पाप दृष्ट 29. स्थानबली 30. दिग्बली 31. कालबली 32. चेष्टाबली 33. नैसर्गिकबली 34. क्रूराक्रान्त 35. बलहीन 36. मार्गी 37. वक्री 38. अवस्थानुसार 39. राशि में स्थिति के अनुसार तथा 40. भाव में स्थिति के अनुसार। योगफल: होराग्रंथों में अनेक प्रकार के योगों का वर्णन मिलता है। ‘‘सर्वेषां च फल स्वपाके’’ इस नियम के अनुसार सब योगों का फल उन योगकारक ग्रहों की दशा-अंतर्दशा में मिलता है। ये योगफल विशेष फल हैं, क्योंकि जिस जातक की कुंडली में जो-जा योग होते हैं, उनका फल उसे उन-उन ग्रहों की दशा-अंतर्दशा में मिलता है। होराग्रंथों में प्रतिपादित सभी योगों की संख्या और उनके भेदोपभेदों का कहीं भी एक स्थान पर संकलन नहीं हो पाया है। फिर भी अनेक प्रसिद्ध एवं उपलब्ध होराग्रन्थों के कोष का निर्माण करने के लिए किए गए एक संकलन में प्रमुख योगों की संख्या 832 मिलती है। इस संख्या में द्विग्रह आदि योग, अरिष्टयोग, अरिष्टभंग योग, आयु योग, षोडशवर्ग योग, संन्यास योग और स्त्री योग का समावेश नहीं है। 832 योगों से अलग योगों को निम्नलिखित 22 वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है। 1. प्रमुख योग (लगभग 832) 2. द्विग्रह योग 3. त्रिग्रह योग 4. चतुर्ग्रह योग 5. पंचग्रह योग 6. षड्ग्रह योग 7. सप्तग्रह योग 8. अष्टग्रह योग 9. अरिष्ट योग 10. अरिष्टभंग योग 11. षोडशवर्ग योग 12. राजयोग 13. स्त्रीजातक योग 14. रोग योग 15. अल्प-मध्य-दीर्घायु योग 16. धन योग 17. दरिद्री-भिक्षु-रेका योग 18. व्यवसाय योग 19. कारकांश योग 20. स्वांश योग 21. पद योग एवं 22. उपपद योग। इन 22 प्रकार के योगों के ग्रहों की दशा-अंतर्दशा में इनका योगफल मिलता है। स्वाभाविक फल: ग्रहों के आत्म भावानुरूपी फल को स्वाभाविक फल कहते हैं। यह फल मुख्य रूप से भाव संबंध एवं सधर्म पर आधारित होता है। दशाफल में सामान्य एवं योगफल की तुलना में यह स्वाभाविक फल निर्णायक होता है। ग्रहों का सामान्य फल एवं योगफल इन दोनों में बहुधा विरोधाभास लगा रहता है; जैसे कोई भी ग्रह उच्च राशि में होने पर नीच आदि के नवांश में तथा नीच राशि में होने पर उच्च आदि के नवांश में हो सकता है। इसी प्रकार कोई भी ग्रह केंद्र में स्थितिवशात् पंच महापुरुष योग बनाने के साथ रेका योग या मारक योग बना सकता है अथवा मालिका योग के साथ-साथ कालसर्प योग बना सकता है। संभवतः इन्हीं कारणों से लघुपाराशरी में ग्रहों के सामान्य एवं योगफल का विचार नहीं किया गया। इन सब विरोधाभासों को ध्यान में रखकर इससे बचने तथा फल में एकरूपता रखने के लिए ही लघुपाराशरी में विंशोत्तरी दशा के आधार पर ग्रहों के स्वाभाविक फल का प्रतिपादन किया गया है।3 ग्रहों के स्वाभाविक फल की यह प्रमुख विशेषता है कि इसमें परिवर्तन होता तो है किंतु वह सकारण होता है और उसकी तर्कपूर्ण व्याख्या की जा सकती है। ग्रहों के सामान्य एवं योगफल में विरोधाभास जितना सांयोगिक है, उनके स्वाभाविक फल में उतना सांयोगिक नहीं है। स्वाभाविक फल में विरोधाभास लगता है पर होता नहीं है- जैसे योगकारक ग्रहों से संबंध होने पर पापी ग्रह भी अपनी अंतर्दशा में योगज फल देते हैं।4 यहां प्रथम दृष्टि में लगता है कि योगकारक ग्रह की दशा में पापी ग्रह की अंतर्दशा में योगज फल मिलना एक विरोधाभास है, क्योंकि योगकारक एवं पापी ग्रह आपस में विरुद्ध धर्मी होते हैं। किंतु वास्तव में इन दोनों का पारस्परिक संबंध इस विरोधाभास को दूर करने में सक्षम है। कारण यह है कि कोई भी ग्रह अपना आत्मभावानुरूपी (स्वाभाविक) फल अपनी दशा और अपने संबंधी या सधर्मी ग्रह की अंतर्दशा में देता है।(5) इस नियम के अनुसार योगकारक ग्रह का योगज फल उसकी दशा में उसके संबंधी (पाप या शुभ) ग्रह की अंतर्दशा में मिलना नियम, तर्क एवं युक्तिसंगत है। इसलिए कहा जा सकता है कि स्वाभाविक फल में विरोधाभास लगता है पर होता नहीं है। ग्रहों का आत्मभावानुरूपी या स्वाभाविक फल: ग्रहों का आत्मभावानुरूपी या स्वाभाविक फल वह है जो ग्रहों के भाव-स्वामित्व, उनके आपसी संबंध एवं सधर्म आदि पर आधारित होता है। जैसे समय एवं परिस्थितियों के दबाव वश व्यक्ति की मानसिकता में कभी-कभी कुछ अंतर दिखलाई देने पर भी उसके स्वभाव में अंतर नहीं पड़ता, लगभग उसी प्रकार ग्रहों के स्वाभाविक फल में बहुधा कोई अंतर नहीं पड़ता। एक बात अवश्य है कि इस स्वाभाविक फल का निर्णय करने की प्रक्रिया में कभी-कभी कुछ अंतर दिखलाई देता है जैसे केन्द्राधिपत्य दोष; सदोष केन्द्र-त्रिकोणेश एवं पापी ग्रह, जिनका स्वाभाविक फल शुभ नहीं होता, त्रिकोणेश से संबंध होने पर परम शुभफलदायक हो जाते हैं6 अथवा मारक ग्रहों से त्रिषडायाधीश शनि का संबंध होने पर मारक ग्रह अमारक हो जाते हैं।7 वस्तुतः यह अंतर प्रक्रिया की गतिशीलता का अंग या प्रक्रिया की विविध अवस्थाओं का गुण है, क्योंकि निर्णय की समस्त प्रक्रिया से निर्णीत होकर निकलने के बाद ग्रह का स्वाभाविक फल बदलता नहीं है। यह अलग बात है कि स्वाभाविक मिश्रित फल में ही विरोधाभास की कल्पना कर उसमें विरोधाभास खोजने या प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाए। वस्तुतः मिश्रित फल मिलाजुला होता है। अतः इसमें विरोधाभास लगना स्वाभाविक है, किंतु इसमें मिश्रण एक सुनिश्चित मात्रा में होता है और वह तर्क पर आधारित होता है न कि संयोग पर। इसलिए मिश्रित फल के मिश्रण तथा उसकी मात्रा का निर्धारण तर्क एवं नियम के द्वारा किया और बतलाया जा सकता है। स्वाभाविक फल के प्रमुख आधार: स्वाभाविक फल का निर्धारण छः आधारों पर किया जाता है- 1. स्वभाव 2. अन्यभाव 3. योगज 4. सधर्म 5. दृष्टि एवं 6. युति। इन छः आधारों पर नियम एवं उपनियमों की प्रक्रिया (अनुशासन) से गुजरने के बाद निर्णीत फल स्वाभाविक फल कहलाता है। इस फल का नाम स्वाभाविक इसलिए है कि इसके निर्णय के उक्त आधारों में सर्वप्रथम एवं सर्वप्रमुख आधार स्व-भाव है। यहां स्वभाव का अर्थ अपना भाव है न कि ग्रह की प्रकृति। इसलिए स्वभाव अर्थात अपने भाव आदि उक्त छः तत्वों पर आधारित फल को स्वाभाविक फल कहा जाता है। स्वभाव: ग्रह के अपने भाव को, जिसका वह स्वामी है, स्वभाव या अपना भाव कहते हैं। इस भाव का गुण-धर्म ग्रह के शुभाशुभ फल का निर्धारक होता है। जैसे सभी ग्रह त्रिकोण के स्वामी होने पर शुभ फल और त्रिषडाय के स्वामी होने पर पाप फलदायक होते हैं8 तथा भाग्य भाव से बारहवें भाव का स्वामी होने से अष्टमेश शुभफल नहीं देता।9 अन्य भाव: ग्रह के फल निर्णय का दूसरा आधार उसका दूसरा भाव है। जिस प्रकार एक भाव उसके शुभाशुभ फल का निर्णायक होता है उसी प्रकार दूसरा भाव भी निर्णायक होता है।10 जैसे यदि अष्टमेश लग्न का भी स्वामी हो तो शुभ फल देता है।11 द्विद्र्वादशे अपने अन्य भाव के गुण धर्मानुसार शुभाशुभफल देता है।12 नैसर्गिक क्रूर ग्रह केन्द्रेश के साथ-साथ त्रिकोणेश हो तो शुभफल होते हैं13 तथा केन्द्रेश एवं त्रिकोणेश यदि अष्टमेश एवं लग्नेश हों तो उनके संबंधमात्र से योगज फल नहीं मिलता। योगज: यदि केंद्र एवं त्रिकोण के स्वामियों में आपसी संबंध हो तो दोषयुक्त होने पर भी वे योगकारक हो जाते हैं15 और इस प्रकार दोष होने पर भी परम शुभफल मिलता है। इसलिए योगकारकता को स्वाभाविक फल का आधार माना जाता है। इसी प्रकार ‘केंद्र या त्रिकोण में स्थित राहु अथवा केतु का त्रिकोणेश या केन्द्रेश से संबंध उन्हें योगकारक बना देता है।16 सधर्मी: समान गुण-धर्म वाले ग्रह परस्पर सधर्मी होते हैं। जैसे त्रिकोणेश त्रिकोणेशों का, केन्द्रेश केन्द्रेशों का त्रिषडायाधीश त्रिषडायाधीशों का द्विद्र्वादशेश द्विद्र्वादशेशों का, कारक कारकों का तथा मारक मारकों का सधर्मी होता है। यह सधर्मी फल निर्णय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अतः स्वाभाविक फल का एक आधार माना जाता है, जैसे केन्द्राधिपति अपनी दशा एवं त्रिकोणेश की भुक्ति में शुभफल देता हैं।17 राहु एवं केतु नवम या दशम में हों तो संबंध न होने पर भी पापग्रह की अंतर्दशा में मारते हैं।19 यहां संबंध न होते हुए भी सधर्मता के प्रभाववश फल मिल रहा है। दृष्टि: ग्रहों की परस्पर दृष्टि एक महत्वपूर्ण आधार है जो दृष्टि संबंध या अन्यतर दृष्टि संबंध द्वारा ग्रहों के फल में महत्वपूर्ण परिवर्तन कर देती है। अतः दृष्टि को दशाफल का प्रमुख आधार माना जाता है। उदाहरणार्थ यदि राहु व केतु केंद्र अथवा त्रिकोण में स्थित हांे और वे यथाक्रमेण त्रिकोणेश या केन्द्रेश से युत या दृष्ट हों तो योगकारक होते हैं।20 वस्तुतः चतुर्विध संबंधों में दो संबंध -दृष्टिसंबंध एवं अन्यतर दृष्टि संबंध - दृष्टि पर आधारित होते हैं। अतः दृष्टि को दशाफल का आधार माना गया है। युति: ग्रहों की आपसी युति दशाफल का निर्णायक आधार है क्योंकि इसकी ग्रहों के शुभाशुभ फल का निर्धारण करने में निर्णायक भूमिका होती है। यथा द्वितीयेश एवं द्वादशेश अन्य ग्रहों के साहचर्य (युति) के अनुसार शुभाशुभ फल देते हैं।21 राहु एवं केतु जिस भावेश से युत हों, उसके अनुसार शुभाशुभ फल देते हैं।22 इसके अलावा चतुर्विध संबंधों में युति एक संबंध है जो ग्रहों के फल में कभी-कभी चमत्कार या स्वभाव फल अन्य भाव योगज सधर्म दृष्टि युति परिवर्तन पैदा करती है। अतः युति का दशाफल के निर्धारण का प्रमुख आधार माना गया है। स्वाभाविक फल के प्रमुख आधार छः या चार: इस प्रसंग में कुछ लोग कह सकते हैं कि यदि स्वभाव, अन्य भाव, संबंध एवं सधर्म इन चारों को स्वाभाविक फल का आधार मान लिया जाए तो योग, दृष्टि एवं युति का संबंध में अंतर्भाव होने के कारण उन सभी का इन चारों में समावेश हो जाएगा और स्वाभाविक फल के निर्धारण में कोई कठिनाई नहीं आएगी, अपितु आधारों की संख्या छः से घट कर चार हो जाने पर सुविधा रहेगी। किंतु योग, दृष्टि एवं युति के साथ संबंध को आधार मानने से लघुपाराशरी के कुछ प्रसंग अछूते रह जाते हैं। जैसे द्वितीयेश एवं द्वादशेश - अन्य ग्रहों के साहचर्य (युति) से शुभाशुभ फल देते हैं या राहु एवं केतु जिस भावेश से युत हों वैसा शुभाशुभ फल देते है23 आदि। योगकारता के प्रसंग को छोड़कर अन्यत्र युति एवं दृष्टि के फल से दो ग्रहों में से एक प्रभावित होता है जबकि युति दृष्टि दोनों संबंधों को प्रभावित करता है। अतः युति एवं दृष्टि का संबंध में अंतर्भाव करने से द्वितीयेश, द्वादशेश राहु एवं केतु के शुभाशुभ फल के निर्णय में कठिनाइयां आ सकती हैं। इसलिए स्वाभाविक फल के निर्धारण हेतु चार आधार न मान कर उक्त छः आधारों को ही मानना समीचीन होगा। उक्त आधारों की कसौटी का परिणाम: स्वाभाविक फल के उक्त छः आधारों की कसौटी पर कसकर निर्णय करने के परिणामस्वरूप ग्रह छः प्रकार का होता है- शुभ, योगकारक, पापी, मारक, सम एवं मिश्रित। शुभ ग्रह के दो भेद होते हैं - शुभ तथा अतिशुभ। पापी ग्रह के तीन भेद होते हैं पापी, केवल पापी, परम पापी। शुभ: जो ग्रह लग्नेश, पंचमेश या नवमेश हो किंतु त्रिषडायाधीश न हो, वह शुभफलदायक होने के कारण शुभ कहलाता है जैसे मेष लग्न में मंगल, सूर्य एवं गुरु। अतिशुभ: जो ग्रह केंद्र एवं त्रिकोण दोनों भावों का स्वामी हो, वह स्वतः कारक होने के कारण अतिशुभ माना जाता है। जैसे वृष एवं तुला लग्न में शनि, कर्क एवं सिंह लग्न में मंगल तथा मकर एवं कुंभ लग्न में शुक्र अति शुभ होता है। पापी: तृतीय, षष्ठ एवं एकादश भावों के स्वामी तथा मारकेश ग्रह पापी कहलाते हैं जैसे मेष लग्न में शनि एवं शुक्र। केवल पापी: जिस ग्रह की दोनों राशियां त्रिषडाय में हों या जिस ग्रह की एक राशि त्रिषडाय एवं दूसरी राशि द्विद्र्वादश में हो, वह ग्रह केवल पापी कहा जाता है। केवल पाप स्थान का स्वामी होने के कारण उसकी संज्ञा केवल पापी होती है जैसे मेष लग्न में बुध, वृष में चंद्रमा, मिथुन में सूर्य, तुला में गुरु, धनु में शनि तथा कुंभ लग्न में गुरु आदि। परम पापी: जिस ग्रह की एक राशि अष्टम में तथा दूसरी त्रिषडाय में हो, वह परम पापी कहलाता है जैसे वृष लग्न में गुरु, कन्या में मंगल, वृश्चिक में बुध एवं मीन लग्न में शुक्र। कारक: जिन दो केंद्रेशों एवं त्रिकोणेशों में परस्पर संबंध हो और उनमें से कोई अष्टम या एकादश भाव का स्वामी न हो, वे केन्द्रेश एवं त्रिकोणेश कारक कहलाते हैं। यदि केंद्र में स्थित राहु या केतु का त्रिकोणेश से संबंध हो अथवा त्रिकोण में स्थित राहु या केतु का केन्द्रेश से संबंध हो तो वे भी कारक कहलाते हैं। मारक: द्वितीयेश, सप्तमेश, द्वितीय एवं सप्तम में स्थित त्रिषडायाधीश और द्वितीयेश या सप्तमेश से युत त्रिषडायाधीश प्रमुख मारकेश होते हैं। इसके अलावा विशेष स्थिति में व्ययेश, व्ययेश से संबंधित ग्रह, अष्टमेश एवं केवल पापी ग्रह भी मारकेश हो जाते हैं। सम: जो ग्रह शुभ या अशुभ फल नहीं देते, वे सम कहलाते हैं। उदाहरणार्थ मिथुन एवं सिंह लग्नों में स्वराशिस्थ चंद्रमा, कर्क एवं कन्या में स्वराशिस्थ सूर्य और द्वितीय या द्वादश में स्थित अकेला राहु या केतु। मिश्रित: जिस ग्रह की एक राशि त्रिकोण में और दूसरी त्रिषडाय या अष्टम में हो, वह मिश्रित कहलाता है। क्योंकि वह दोनों भावों का मिलाजुला फल देता है, अतः उसकी संज्ञा मिश्रित होती है, जैसे मिथुन एवं कन्या लग्नों में शनि, कर्क एवं सिंह लग्नों में गुरु तथा मकर एवं कुंभ लग्नों में बुध। इस प्रकार उक्त छः आधारों की कसौटी पर जांच-परखकर देखने पर यह निर्णय होता है कि ग्रह शुभ, कारक, पापी, मारक, सम या मिश्रित है। इस अंतिम निर्णय के आधार पर उसका आत्मभावानुरूपी या स्वाभाविक फल निश्चित हो जाता है।
Monday, 27 February 2017
कर्म और किस्मत
ज्योतिषीय दृष्टिकोण से अगर कुंडली में योग नहीं है तो फल मिलने की संभावना नहीं है, यानि आपकी किस्मत में वह फल नहीं है और मिल भी नहीं सकते। और अगर कुंडली में संभावना या योग है तो आपकी किस्मत में वह फल लिखे हैं और अनुकूल दशा-गोचर पर आपको वह फल प्राप्त होने चाहिये। परन्तु कई बार ऐसा भी देखा गया है कि अनुकूल फल या अपेक्षानुसार फलों की प्राप्ति नहीं हो पाती है। प्रश्न है, कि क्या किस्मत में लिखा यूँ ही बिना कुछ किये मिल सकता है, जैसे निम्न चित्र में व्यक्ति सपनों से ही सभी प्रकार के फलों के कामना कर रहा है? ज्योतिष शास्त्र का आधारभूत सिद्धांत है कि मनुष्य कर्म करने के लिये पैदा हुआ है और अपने कर्मों के अनुरूप वह जन्म-जन्मान्तरों में फल भोगता है। श्रीमद्भगवतगीता के अनुसार, सारा मनुष्य समुदाय प्रकृतिजन्य गुणों द्वारा उत्पन्न हुआ है और मनुष्य कर्म करने के लिये बाध्य है और कर्म करना और कर्म करते रहना मनुष्य का प्राकृतिक गुण है। मनुष्य का अधिकार केवल कर्म करने में ही है, फल मिलेंगे या नहीं यह तो उसके अधिकार क्षेत्र में ही नहीं आता। नियत कर्मों के बारे में के अनुसार कोई कर्म न करने से कर्म करना श्रेष्ठ है और बिना कर्म किये तो शरीर निर्वाह भी नहीं हो सकता है। इसीलिये, किस्मत में लिखा पाने की बात तो बहुत दूर की है। चलो यह तो साफ हो रहा है, कि हमें कर्म तो करना ही है क्योंकि कर्म करने के लिये हम बाध्य हैं। तो क्या हम उदासीन भाव से कर्म करें और इसे एक बंधन मानें, क्या इस भांति किये कर्मों से भी हमें किस्मत में लिखा प्राप्त हो सकता है? कर्म किस प्रकार करने हैं उसके बारे में भी बहुत कुछ लिखा गया है। ठळ टप्प्.14 के अनुसार सात्विक, राजसिक और तामसिक गुणों से बनी यह माया है जिसके वशीभूत सामान्य मनुष्य कर्म करता है और जो मनुष्य ईश्वर को समर्पित होकर कर्म करते हैं वह इस माया को पार कर लेते हैं, क्योंकि उन्हें ईश्वर की स्वीकृति एवं आश्रय प्राप्त हो जाता है। प्राचीन समय में किसी कार्य को करने से पूर्व यज्ञ आदि करने का प्रचलन था, उसका भी तात्पर्य कार्य सिद्धि के लिये ईश्वर की स्वीकृति या आशीर्वाद लेना ही था। किस्मत और कर्म के कनेक्शन में कुछ अधिक विस्तार से समझाया है। इसमें सभी कर्मों की सिद्धि या फल की प्राप्ति के लिये पाँच कारण बताये गये हैं। कर्ता होना चाहिये, अर्थात पात्रता होनी चाहिये जो त्रिगुणों के आधार पर बनती है और उसी से आप अपने लक्ष्य के बारे में सोच पाते हैं और उसे निर्धारित कर पाते हैं। हर व्यक्ति का लक्ष्य अलग होता है क्योंकि लक्ष्य निर्धारित करने की शक्ति का मूल आधार है पात्रता। इन्द्रियाँ से तात्पर्य है विविध योजनाओं का होना और उनको कार्यान्वित करना। सभी ज्ञानेन्द्रियों, कर्मेन्द्रियों, मन, अहंकार और बुद्धि का जिस प्रकार संतुलित प्रयोग सभी सुख एवं मोक्ष की प्राप्ति करा सकता है, उसी प्रकार योजनाओं को भी कार्यान्वित करने से मनुष्य अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होता है। इसे एक साधना की भांति भी समझ सकते हैं। विविध चेष्टाओं से तात्पर्य है कि निरंतर मेहनत करना और विपरीत परिस्थितियों में भी मेहनत करते रहना। पांचवें कारण पर मनुष्य का वश नहीं है और पांचवें कारण का अस्तित्व उससे पूर्व के चार कारणों के बाद ही आता है। इसका अर्थ यह है, कि अगर प्रथम चार कारण नहीं हैं तो पंचम कारण का तो सवाल ही नहीं उठ सकता चाहे आपकी किस्मत में कुछ भी लिखा हो, किस्मत में लिखा प्राप्त करने के लिये प्रथम चार कारण तो होने ही चाहिये जो कि मनुष्य के बस में ही हैं और मनुष्य को अपने कर्मों को एक सीमा के अन्दर चयन करने की स्वतंत्रता भी है। हालांकि, इसमें कोई संदेह नहीं है कि किस्मत में लिखे अनुसार ही मनुष्य के समक्ष इस प्रकार का वातावरण निर्मित हो ही जाता है, जिससे वह अपने प्रारब्ध में लिखे फलों को पाने और कर्म करने के लिये प्रवृत्त हो सके। निष्कर्ष यह है कि कर्म और किस्मत का एक गहरा संबंध है और किस्मत में लिखे पूर्ण फल तभी मिल सकते हंै जब ठळ ग्टप्प्प्.14 के पाँचों कारण उपलब्ध हों जिसमें से प्रथम चार मनुष्य के अधीन और पंचम ईश्वर के अधीन है।
कुंडली में शनि का गोचर फल
कुंडली में यदि शनि ग्रह बलशाली हो तो जातक को आवासीय सुख प्रदान करता है। दुर्बल शनि शारीरिक दुर्बलता-शिथिलता, निर्धनता, प्रमाद एवं व्याधि प्रदान करता है शनि ग्रह किसी भी एक राशि में लगभग 2 वर्ष 6 माह विचरण करते हुये लगभग 30 वर्ष में 12 राशियों का भोग करते हैं। शनि ग्रह के इस राशि भ्रमण को ही गोचर कहते हैं। शनि ग्रह का किसी एक राशि में भ्रमण करने से शुभ या अशुभ फल भी 2 वर्ष 6 माह तक ही रहता है। शनि ग्रह के चंद्रमा की राशि (जिस राशि में चंद्रमा स्थित हो) से भिन्न-भिन्न भाव में भ्रमण करने से किस-किस प्रकार का कर्मफल प्राप्त होता है
1. शनि जब चंद्र राशि में होता है:- उस समय जातक की बौद्धिक क्षमता क्षीण हो जाती है। दैहिक एवं आंतरिक व्यथायें प्रखर होने लगती है। अत्यंत आलस्य रहता है। विवाहित पुरूष को धर्मपत्नी तथा विवाहित स्त्री को पति एवं आत्मीय जनों से संघर्ष रहता है। मित्रों से दुख प्राप्त होता है, गृह-सुख विनष्ट होता है। अनपढ़ एवं घातक वस्तुओं से क्षति संभव है, मान-प्रतिष्ठा धूल-धूसरित होती है, प्रवास बहुत होते हैं। असफलतायें भयभीत करती हैं, दरिद्रता का आक्रमण होता है, सत्ता का प्रकोप होता है, व्याधियां पीड़ित करती हैं।
2. चंद्र राशि से शनि जब द्वितीय स्थान में होता है: स्वस्थान का परित्याग होता है, दारूण दुख रहता है, बिना प्रयोजन विवाद व संघर्ष होते हैं। निकटतम संबंधियों से अवरोध उत्पन्न होता है। विवाहित पुरूष की धर्मपत्नी तथा विवाहित स्त्री के पति को मारक पीड़ा सहन करनी पड़ती है। दीर्घ काल का दूर प्रवास संभव होता हैं, धनागम, सुखागम बाधित होते हैं आरंभ किये गये कार्य अधूरे रहते हैं।
3. चंद्र राशि से शनि जब तृतीय स्थान में होता है: भूमि का पर्याप्त लाभ होता है, व्यक्ति स्वस्थ, आनंद व संतुष्ट रहता है। एक अनिर्वचनीय जागृति रहती है, धनागम होता है, धन-धान्य से समृद्धि होती है। आजीविका के साधन प्राप्त होते हैं। समस्त कार्य सहजता से संपन्न होते हैं। व्यक्ति शत्रु विजयी सिद्ध होता है, अनुचर सेवा करते हैं, आचरण में कुत्सित प्रवृत्तियों की अधिकता होती है। पदाधिकार प्राप्त होते हैं।
4. चंद्र राशि से शनि जब चतुर्थ स्थान में होता है:- बहुमुखी अपमान होता है। समाज एवं सत्ता के कोप से साक्षात्कार होता है, आर्थिक कमी शिखर पर होती है। व्यक्ति की प्रवृत्तियां स्वतः धूर्ततायुक्त एवं पतित हो जाती है, विरोधियों एवं व्याधियों का आक्रमण पीड़ादायक होता है। नौकरी में स्थान परिवर्तन अथवा परित्याग संभव होता है, यात्राएं कष्टप्रद होती हैं। आत्मीय जनों से पृथकता होती है, पत्नी एवं बंधु वर्ग विपत्ति में रहते हैं।
5. चंद्र राशि से शनि जब पंचम स्थान में होता है: मनुष्य की रूचि कुत्सित नारी/ नारियों में होती है। उनकी कुसंगति विवेक का हरण करती है, पति का धर्मपत्नी और पत्नी का पति से प्रबल तनाव रहता है, आर्थिक स्थिति चिंताजनक होती है, व्यक्ति सुविचारित कार्यपद्धति का अनुसरण न कर पाने के कारण प्रत्येक कार्य में असफल होता है। व्यवसाय में अवरोध उत्पन्न होते हैं, पत्नी वायु जनित विकारों से त्रस्त रहती है। संतति की क्षति होती है, जातक जन समुदाय को वंचित करके उसके धन का हरण करता है। सुखों में न्यूनता उपस्थित होती है शांति दुर्लभ हो जाती है, परिवारजनों से न्यायिक विवाद होते हैं।
6. चंद्र राशि से शनि जब षष्ठ स्थान में होता है- शत्रु परास्त होते हैं, आरोग्य की प्राप्ति होती है, अनेकानेक उत्तम भोग के साधन उपलब्ध होते हैं, संपत्ति, धान्य एवं आनंद का विस्तार होता है, भूमि प्राप्त होती है, आवासीय सुख प्राप्त होता है। स्त्री वर्ग से लाभ होता है।
7. चंद्र राशि से शनि जब सप्तम स्थान में होता है- कष्टदायक यात्राएं होती हैं, दीर्घकाल तक दूर प्रवास व संपत्ति का विनाश होता है, व्यक्ति आंतरिक रूप से संत्रस्त रहता है, गुप्त रोगों का आक्रमण होता है, आजीविका प्रभावित होती है, अपमानजनक घटनायें होती हैं, अप्रिय घटनायें अधिक होती हैं, पत्नी रोगी रहती है, किसी कार्य में स्थायित्व नहीं रह जाता।
8. चंद्र राशि से शनि जब अष्टम स्थान में होता है- सत्ता से दूरी रहती है, पत्नी/पति के सुख में कमी संभव है, निन्दित कृत्यों व व्यक्तियों के कारण संपत्ति व सम्मान नष्ट होता है, स्थायी संपत्ति बाधित होती है, कार्यों में अवरोध उपस्थित होते हैं, पुत्र सुख की क्षति होती है, दिनचर्या अव्यवस्थित रहती है। व्याधियां पीड़ित करती हैं। व्यक्ति पर असंतोष का आक्रमण होता है।
9. चंद्र राशि में शनि जब नवम् स्थान में होता है - अनुचर (सेवक) अवज्ञा करते हैं, धनागम में कमी रहती है। बिना किसी प्रयोजन के यात्राएं होती हैं, विचारधारा के प्रति विद्रोह उमड़ता है, क्लेश व शत्रु प्रबल होते हैं, रूग्णता दुखी करती है, मिथ्याप्रवाह एवं पराधीनता का भय रहता है, बंधु वर्ग विरूद्ध हो जाता है, उपलब्धियां नगण्य हो जाती है, पापवृत्ति प्रबल रहती है, पुत्र व पति या पत्नी भी यथोचित सुख नहीं देते।
10. चंद्र राशि से शनि जब दशम स्थान में होता है: संपत्ति नष्ट होकर अर्थ का अभाव रहता है। आजीविका अथवा परिश्रम में अनेक उठा-पटक होते हैं। जन समुदाय में वैचारिक मतभेद होता है। पति-पत्नी के बीच गंभीर मतभेद उत्पन्न होते हैं, हृदय व्याधि से पीड़ा हो सकती है, मनुष्य नीच कर्मों में प्रवृत्त होता है, चित्तवृत्ति अव्यवस्थित रहती है, असफलताओं की अधिकता रहती है।
11. चंद्र राशि से शनि जब दशम स्थान में होता है: संपत्ति नष्ट होकर अर्थ का अभाव रहता है। आजीविका अथवा परिश्रम में अनेक उठा-पटक होते हैं। जन समुदाय में वैचारिक मतभेद होता है। पति-पत्नी में गंभीर मतभेद उत्पन्न होते हैं, हृदय व्याधि से पीड़ा हो सकती है, मनुष्य नीच कर्मों में प्रवृत्त होता है, चित्तवृत्ति अव्यवस्थित रहती है, असफलताओं की अधिकता रहती है।
12. चंद्र राशि से शनि जब एकादश स्थान में होता है: बहुआयामी आनंद की प्राप्ति होती है। लंबे समय के रोग से मुक्ति प्राप्त होती है, अनुचर आज्ञाकारी व परिश्रमी रहते हैं, पद व अधिकार में वृद्धि होती है, नारी वर्ग से प्रचुर संपत्ति प्राप्त होती है, पत्थर, सीमेंट, चर्म, वस्त्र एवं मशीनों से धनागम होता है, स्त्री तथा संतान से सुख प्राप्त होता है।
13. चंद्र राशि से शनि जब द्वादश स्थान में होता है: विघ्नों तथा कष्टों का अंबार लगा रहता है, धन का विनाश होता है। संतति सुख हेतु यह भ्रमण मारक हो सकता है अथवा संतान को मृत्यु तुल्य कष्ट होते हैं। श्रेष्ठजनों से विवाद होता है, शरीर गंभीर समस्याओं से ग्रस्त रहता है, सौभाग्य साथ नहीं देता, व्यय अधिक होता है, जिस कारण मन उद्विग्न रहने से सुख नष्ट हो जाते हैं।
1. शनि जब चंद्र राशि में होता है:- उस समय जातक की बौद्धिक क्षमता क्षीण हो जाती है। दैहिक एवं आंतरिक व्यथायें प्रखर होने लगती है। अत्यंत आलस्य रहता है। विवाहित पुरूष को धर्मपत्नी तथा विवाहित स्त्री को पति एवं आत्मीय जनों से संघर्ष रहता है। मित्रों से दुख प्राप्त होता है, गृह-सुख विनष्ट होता है। अनपढ़ एवं घातक वस्तुओं से क्षति संभव है, मान-प्रतिष्ठा धूल-धूसरित होती है, प्रवास बहुत होते हैं। असफलतायें भयभीत करती हैं, दरिद्रता का आक्रमण होता है, सत्ता का प्रकोप होता है, व्याधियां पीड़ित करती हैं।
2. चंद्र राशि से शनि जब द्वितीय स्थान में होता है: स्वस्थान का परित्याग होता है, दारूण दुख रहता है, बिना प्रयोजन विवाद व संघर्ष होते हैं। निकटतम संबंधियों से अवरोध उत्पन्न होता है। विवाहित पुरूष की धर्मपत्नी तथा विवाहित स्त्री के पति को मारक पीड़ा सहन करनी पड़ती है। दीर्घ काल का दूर प्रवास संभव होता हैं, धनागम, सुखागम बाधित होते हैं आरंभ किये गये कार्य अधूरे रहते हैं।
3. चंद्र राशि से शनि जब तृतीय स्थान में होता है: भूमि का पर्याप्त लाभ होता है, व्यक्ति स्वस्थ, आनंद व संतुष्ट रहता है। एक अनिर्वचनीय जागृति रहती है, धनागम होता है, धन-धान्य से समृद्धि होती है। आजीविका के साधन प्राप्त होते हैं। समस्त कार्य सहजता से संपन्न होते हैं। व्यक्ति शत्रु विजयी सिद्ध होता है, अनुचर सेवा करते हैं, आचरण में कुत्सित प्रवृत्तियों की अधिकता होती है। पदाधिकार प्राप्त होते हैं।
4. चंद्र राशि से शनि जब चतुर्थ स्थान में होता है:- बहुमुखी अपमान होता है। समाज एवं सत्ता के कोप से साक्षात्कार होता है, आर्थिक कमी शिखर पर होती है। व्यक्ति की प्रवृत्तियां स्वतः धूर्ततायुक्त एवं पतित हो जाती है, विरोधियों एवं व्याधियों का आक्रमण पीड़ादायक होता है। नौकरी में स्थान परिवर्तन अथवा परित्याग संभव होता है, यात्राएं कष्टप्रद होती हैं। आत्मीय जनों से पृथकता होती है, पत्नी एवं बंधु वर्ग विपत्ति में रहते हैं।
5. चंद्र राशि से शनि जब पंचम स्थान में होता है: मनुष्य की रूचि कुत्सित नारी/ नारियों में होती है। उनकी कुसंगति विवेक का हरण करती है, पति का धर्मपत्नी और पत्नी का पति से प्रबल तनाव रहता है, आर्थिक स्थिति चिंताजनक होती है, व्यक्ति सुविचारित कार्यपद्धति का अनुसरण न कर पाने के कारण प्रत्येक कार्य में असफल होता है। व्यवसाय में अवरोध उत्पन्न होते हैं, पत्नी वायु जनित विकारों से त्रस्त रहती है। संतति की क्षति होती है, जातक जन समुदाय को वंचित करके उसके धन का हरण करता है। सुखों में न्यूनता उपस्थित होती है शांति दुर्लभ हो जाती है, परिवारजनों से न्यायिक विवाद होते हैं।
6. चंद्र राशि से शनि जब षष्ठ स्थान में होता है- शत्रु परास्त होते हैं, आरोग्य की प्राप्ति होती है, अनेकानेक उत्तम भोग के साधन उपलब्ध होते हैं, संपत्ति, धान्य एवं आनंद का विस्तार होता है, भूमि प्राप्त होती है, आवासीय सुख प्राप्त होता है। स्त्री वर्ग से लाभ होता है।
7. चंद्र राशि से शनि जब सप्तम स्थान में होता है- कष्टदायक यात्राएं होती हैं, दीर्घकाल तक दूर प्रवास व संपत्ति का विनाश होता है, व्यक्ति आंतरिक रूप से संत्रस्त रहता है, गुप्त रोगों का आक्रमण होता है, आजीविका प्रभावित होती है, अपमानजनक घटनायें होती हैं, अप्रिय घटनायें अधिक होती हैं, पत्नी रोगी रहती है, किसी कार्य में स्थायित्व नहीं रह जाता।
8. चंद्र राशि से शनि जब अष्टम स्थान में होता है- सत्ता से दूरी रहती है, पत्नी/पति के सुख में कमी संभव है, निन्दित कृत्यों व व्यक्तियों के कारण संपत्ति व सम्मान नष्ट होता है, स्थायी संपत्ति बाधित होती है, कार्यों में अवरोध उपस्थित होते हैं, पुत्र सुख की क्षति होती है, दिनचर्या अव्यवस्थित रहती है। व्याधियां पीड़ित करती हैं। व्यक्ति पर असंतोष का आक्रमण होता है।
9. चंद्र राशि में शनि जब नवम् स्थान में होता है - अनुचर (सेवक) अवज्ञा करते हैं, धनागम में कमी रहती है। बिना किसी प्रयोजन के यात्राएं होती हैं, विचारधारा के प्रति विद्रोह उमड़ता है, क्लेश व शत्रु प्रबल होते हैं, रूग्णता दुखी करती है, मिथ्याप्रवाह एवं पराधीनता का भय रहता है, बंधु वर्ग विरूद्ध हो जाता है, उपलब्धियां नगण्य हो जाती है, पापवृत्ति प्रबल रहती है, पुत्र व पति या पत्नी भी यथोचित सुख नहीं देते।
10. चंद्र राशि से शनि जब दशम स्थान में होता है: संपत्ति नष्ट होकर अर्थ का अभाव रहता है। आजीविका अथवा परिश्रम में अनेक उठा-पटक होते हैं। जन समुदाय में वैचारिक मतभेद होता है। पति-पत्नी के बीच गंभीर मतभेद उत्पन्न होते हैं, हृदय व्याधि से पीड़ा हो सकती है, मनुष्य नीच कर्मों में प्रवृत्त होता है, चित्तवृत्ति अव्यवस्थित रहती है, असफलताओं की अधिकता रहती है।
11. चंद्र राशि से शनि जब दशम स्थान में होता है: संपत्ति नष्ट होकर अर्थ का अभाव रहता है। आजीविका अथवा परिश्रम में अनेक उठा-पटक होते हैं। जन समुदाय में वैचारिक मतभेद होता है। पति-पत्नी में गंभीर मतभेद उत्पन्न होते हैं, हृदय व्याधि से पीड़ा हो सकती है, मनुष्य नीच कर्मों में प्रवृत्त होता है, चित्तवृत्ति अव्यवस्थित रहती है, असफलताओं की अधिकता रहती है।
12. चंद्र राशि से शनि जब एकादश स्थान में होता है: बहुआयामी आनंद की प्राप्ति होती है। लंबे समय के रोग से मुक्ति प्राप्त होती है, अनुचर आज्ञाकारी व परिश्रमी रहते हैं, पद व अधिकार में वृद्धि होती है, नारी वर्ग से प्रचुर संपत्ति प्राप्त होती है, पत्थर, सीमेंट, चर्म, वस्त्र एवं मशीनों से धनागम होता है, स्त्री तथा संतान से सुख प्राप्त होता है।
13. चंद्र राशि से शनि जब द्वादश स्थान में होता है: विघ्नों तथा कष्टों का अंबार लगा रहता है, धन का विनाश होता है। संतति सुख हेतु यह भ्रमण मारक हो सकता है अथवा संतान को मृत्यु तुल्य कष्ट होते हैं। श्रेष्ठजनों से विवाद होता है, शरीर गंभीर समस्याओं से ग्रस्त रहता है, सौभाग्य साथ नहीं देता, व्यय अधिक होता है, जिस कारण मन उद्विग्न रहने से सुख नष्ट हो जाते हैं।
Sunday, 26 February 2017
मन के हारे हार है मन के जीते जीत !!!
मनुष्य की समस्त जीवन प्रक्रिया का संचालन उसके मस्तिष्क द्वारा होता है। मन का सीधा संबंध मस्तिष्क से है। मन में हम जिस प्रकार के विचार धारण करते हैं हमारा शरीर उन्हीं विचारों के अनुरूप ढल जाता है। हमारा मन-मस्तिष्क यदि निराशा व अवसादों से घिरा हुआ है तब हमारा शरीर भी उसी के अनुरूप शिथिल पड़ जाता है। हमारी समस्त चैतन्यता विलीन हो जाती है ।
परंतु दूसरी ओर यदि हम आशावादी हैं और हमारे मन में कुछ पाने व जानने की तीव्र इच्छा हो तथा हम सदैव भविष्य की ओर देखते हैं तो हम इन सकारात्मक विचारों के अनुरूप प्रगति की ओर बढ़ते चले जाते हैं। मन के द्वारा संचालित कर्म ही प्रधान और श्रेष्ठ होता है। मन के द्वारा जब कार्य संचालित होता है तब सफलताओं के नित-प्रतिदिन नए आयाम खुलते चले जाते हैं। मनुष्य अपनी संपूर्ण मानसिक एवं शारीरिक क्षमताओं का अपने कार्यों में उपयोग तभी कर सकता है जब उसके कार्य मन से किए गए हों। मनुष्य के मन, मस्तिष्क और शरीर पर मौसम, ग्रह और नक्षत्रों का प्रभाव रहता है। कुछ लोग इन प्रभाव से बच जाते हैं तो कुछ इनकी चपेट में आ जाते हैं। बचने वाले लोगों की सुदृढ़ मानसिक स्थिति और प्रतिरोधक क्षमता का योगदान रहता है। इस प्रकार स्वास्थ्य एक प्रकार से मनःस्थिति पर निर्भर करता है। स्कीन से जुड़ी ज्यादातर बीमारियों का कारण मन के कमजोर होने के कारण इरीटेट होने से होता है वहीं कैंसर जैसी बीमारियों का कारण भी मन के कमजोर होने से किए गए व्यसन के द्वारा होता है। अतः जीवन में स्वास्थ्य प्राप्ति हेतु मन को सुदृढ़ करना आवश्यक है। अतः यदि किसी का मन कमजोर हो अर्थात् तीसरे स्थान का स्वामी छठवे, आठवे या बारहवे स्थान पर हो जाए तो कमजोर मन के कारण व्यक्ति व्यसन का शिकार होता है वहीं यदि इस स्थान पर शनि हो अथवा शनि की दृष्टि हो तो कमजोर मानसिकता के कारण स्कीन में जलन या खुजली जैसी बीमारियाॅ होती है। अतः मन को मजबूत कर बीमारियों से बचा जा सकता है। इसके लिए ज्योतिषीय उपाय करना चाहिए जिसमें मन के तीसरे स्थान के कारक ग्रह की शांति, शनि एवं बुध के मंत्रों का जाप एवं काली चीजों का दान करना चाहिए।
परंतु दूसरी ओर यदि हम आशावादी हैं और हमारे मन में कुछ पाने व जानने की तीव्र इच्छा हो तथा हम सदैव भविष्य की ओर देखते हैं तो हम इन सकारात्मक विचारों के अनुरूप प्रगति की ओर बढ़ते चले जाते हैं। मन के द्वारा संचालित कर्म ही प्रधान और श्रेष्ठ होता है। मन के द्वारा जब कार्य संचालित होता है तब सफलताओं के नित-प्रतिदिन नए आयाम खुलते चले जाते हैं। मनुष्य अपनी संपूर्ण मानसिक एवं शारीरिक क्षमताओं का अपने कार्यों में उपयोग तभी कर सकता है जब उसके कार्य मन से किए गए हों। मनुष्य के मन, मस्तिष्क और शरीर पर मौसम, ग्रह और नक्षत्रों का प्रभाव रहता है। कुछ लोग इन प्रभाव से बच जाते हैं तो कुछ इनकी चपेट में आ जाते हैं। बचने वाले लोगों की सुदृढ़ मानसिक स्थिति और प्रतिरोधक क्षमता का योगदान रहता है। इस प्रकार स्वास्थ्य एक प्रकार से मनःस्थिति पर निर्भर करता है। स्कीन से जुड़ी ज्यादातर बीमारियों का कारण मन के कमजोर होने के कारण इरीटेट होने से होता है वहीं कैंसर जैसी बीमारियों का कारण भी मन के कमजोर होने से किए गए व्यसन के द्वारा होता है। अतः जीवन में स्वास्थ्य प्राप्ति हेतु मन को सुदृढ़ करना आवश्यक है। अतः यदि किसी का मन कमजोर हो अर्थात् तीसरे स्थान का स्वामी छठवे, आठवे या बारहवे स्थान पर हो जाए तो कमजोर मन के कारण व्यक्ति व्यसन का शिकार होता है वहीं यदि इस स्थान पर शनि हो अथवा शनि की दृष्टि हो तो कमजोर मानसिकता के कारण स्कीन में जलन या खुजली जैसी बीमारियाॅ होती है। अतः मन को मजबूत कर बीमारियों से बचा जा सकता है। इसके लिए ज्योतिषीय उपाय करना चाहिए जिसमें मन के तीसरे स्थान के कारक ग्रह की शांति, शनि एवं बुध के मंत्रों का जाप एवं काली चीजों का दान करना चाहिए।
क्यों हो जाता है नवजात शिशु को पीलिया - जाने ज्योतिषीय कारण
हिंदू दर्शन के अनुसार, मनुष्य के जन्म के पीछे उस वंश का अंश होता है अतः यदि किसी बच्चे में जन्म से या तत्काल बाद से कोई गंभीर बीमारी दिखाई दे या स्वास्थ्यगत कष्ट हो तो दिखाए कि उसकी कुंडली में प्रमुख ग्रह कहीं राहु से पापाक्रांत तो नहीं हैं। क्योंकि गंभीर बीमारी की स्थिति कुंडली में स्पष्ट दिखाई देती है तथा उस बीमारी की शुरूआत का समय भी कुंडली में गोचर होता है। क्योंकि राहु अनुवाशिंक दोष का वाहक होता है अतः प्रमुख ग्रह एवं उस स्थान का ग्रह राहु से आक्रांत हो तो जिस स्थान तथा ग्रह को राहु आक्रांत करता है, उस स्थान तथा ग्रह से संबंधित बीमारी होती है। नवजात बच्चे को ज्यादातर पीलिया दिखाई देता है, यदि पीलिया ज्यादा परेशानी का सबब बने तो देखें कि कहीं बच्चे के लग्न, दूसरे, तीसरे, एकादश स्थान पर शनि और उसपर क्रूर ग्रह की दृष्टि तो नहीं है। इसके अलावा भी बच्चे को यदि कोई बीमारी दिखाई दे तो चिकित्सकीय सलाह के साथ कुंडली का परीक्षण कराया जाना चाहिए। साथ ही संबंधित ग्रह की शांति के साथ पितृशांति भी कराया जाना विशेषलाभकारी होता है।
Saturday, 25 February 2017
वास्तु अनुसार बच्चों का कमरा
माता-पिता की यह उत्कट अभिलाषा होती है कि बच्चों को हर प्रकार की सुख-सुविधा उपलब्ध कराएं, अच्छी से अच्छी शिक्षा प्रदान करें, खेलकूद-मनोरंजन की समुचित व्यवस्था करें ताकि बच्चों का समग्र विकास हो सके। बच्चों का कमरा उनके लिए मनोरंजन, मस्ती और उल्लास का केंद्र होता है। उनका रूम जितना अधिक वास्तु सम्मत होगा उतना ही अधिक वे ऊर्जावान होंगे तथा अपनी क्रिएटिविटी का सकारात्मक उपयोग अपनी पढ़ाई-लिखाई, खेलकूद, अनुशासन आदि जीवन के हर क्षेत्र में बखूबी कर पाएंगे। जीवन में सफलता के चरमोत्कर्ष पर पहुंचने के लिए आॅल राउंडर बनना जरूरी है और यह तभी संभव है जब उनका रूम पूर्णरूपेण वास्तु सम्मत हो जिससे कि अपने रूम में मनोरंजन, मस्ती एवं उल्लास के साथ-साथ आराम एवं सुखद नींद की भी अनुभूति कर सकें। वास्तु सम्मत रूम का तात्पर्य है सभी सामानों एवं अवयवों जैसे स्टडी टेबल, बेड, बाथरूम आदि का समंजन उचित स्थान एवं दिशा में करना। सभी सामानों का उचित स्थानों पर प्लेसमेंट बच्चों के मन में सकारात्मक सोच, ऊर्जा एवं स्फूर्ति विकसित करता है जिससे वे हंसमुख रहकर अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित होते हैं। आज के आधुनिक परिप्रेक्ष्य में बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण, वैश्वीकरण आदि के कारण संकुचित होते भूखंड में वास्तु का ध्यान लोग नहीं रख पाते। यही कारण है कि बच्चों के व्यवहार में अनुशासन हीनता, उग्रता, हिंसात्मक विचारों की अभिवृद्धि होती जा रही है। इसका एक प्रमुख कारण वास्तु नियमों की अवहेलना है। अतः यदि आप अपने बच्चों का बेहतर भविष्य चाहते हैं तथा यदि आप चाहते हैं कि वे आज्ञाकारी हों, विकासशील हों तथा उनकी सोच सकारात्मक हो तो निम्नांकित निर्देशानुसार उनके कक्ष की व्यवस्था करें: चिल्ड्रेन्स रूम के लिए उपयुक्त दिशाएं बच्चों का कमरा पश्चिम दिशा में सर्वश्रेष्ठ है किंतु विकल्प के तौर पर उत्तर-पश्चिम भी श्रेष्ठ है। अतः चिल्ड्रेन्स रूम के लिए इन्हीं दो दिशाओं को प्राथमिकता देनी चाहिए। रखें कि सोते वक्त उनका सिर दक्षिण दिशा में हो। यदि दक्षिण में सिर रखना संभव न हो तो पूर्व दिशा में भी सिर रखकर सोना उपयुक्त है। स्टडी एरिया एवं स्टडी टेबल स्टडी के लिए बच्चों के कमरों में उत्तर-पूर्व का कोना यथेष्ट है। स्टडी एरिया बिल्कुल साफ-सुथरा एवं कबाड़ मुक्त होना चाहिए। इससे बच्चों की पढ़ाई में रूचि बढ़ती है तथा उनका संकेन्द्रण भी बढ़ता है। साफ-सुथरा एवं कबाड़ मुक्त स्टडी एरिया होने से बच्चों के दिमाग में नये-नये विचारों का उदय होता है तथा उनकी रचनात्मक गतिविधियां बढ़ती हैं। स्टडी टेबल को इस प्रकार व्यवस्थित करें कि पढ़ते समय बच्चे का मुंह उत्तर, पूर्व अथवा उत्तर-पूर्व दिशा की ओर रहे। पूर्व दिशा को सबसे शुभ दिशा माना जाता है क्योंकि यह बच्चों को ध्यान केन्द्रित करने में सहायक होता है। स्टडी टेबल को दीवार से बिल्कुल सटाकर न रखें। दीवार एवं टेबल के बीच कम से कम 3’’ की दूरी आवश्यक है। स्टडी टेबल रेगुलर शेप का अर्थात् आयताकार अथवा वर्गाकार ही होना चाहिए। गोल, अंडाकार अथवा कोई अन्य आकार का स्टडी टेबल न रखें। स्टडी टेबल के ऊपर ऐसा ग्लास न रखें जो बच्चे का प्रतिबिंब बनाए। स्टडी टेबल का साइज न अधिक बड़ा और न ही अधिक छोटा होना चाहिए। यदि स्टडी टेबल पूर्वाभिमुख है तो लाइट अथवा लैंप दक्षिण-पूर्व दिशा की ओर रखें और यदि स्टडी टेबल उत्तराभिमुख है तो उत्तर-पश्चिम में लाइट अथवा लैंप रखना उपयुक्त है। टी. वी., कंप्यूटर/लैपटाॅप बच्चों के कमरों में टी. वी., कंप्यूटर/ लैपटाॅप आदि न रखें। इससे बच्चों का ध्यान भटकता है तथा वे पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते। किंतु स्थानों पर प्लेसमेंट बच्चों के मन में सकारात्मक सोच, ऊर्जा एवं स्फूर्ति विकसित करता है जिससे वे हंसमुख रहकर अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित होते हैं। आज के आधुनिक परिप्रेक्ष्य में बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण, वैश्वीकरण आदि के कारण संकुचित होते भूखंड में वास्तु का ध्यान लोग नहीं रख पाते। यही कारण है कि बच्चों के व्यवहार में अनुशासन हीनता, उग्रता, हिंसात्मक विचारों की अभिवृद्धि होती जा रही है। इसका एक प्रमुख कारण वास्तु नियमों की अवहेलना है। अतः यदि आप अपने बच्चों का बेहतर भविष्य चाहते हैं तथा यदि आप चाहते हैं कि वे आज्ञाकारी हों, विकासशील हों तथा उनकी सोच सकारात्मक हो तो निम्नांकित निर्देशानुसार उनके कक्ष की व्यवस्था करें: चिल्ड्रेन्स रूम के लिए उपयुक्त दिशाएं बच्चों का कमरा पश्चिम दिशा में सर्वश्रेष्ठ है किंतु विकल्प के तौर पर उत्तर-पश्चिम भी श्रेष्ठ है। अतः चिल्ड्रेन्स रूम के लिए इन्हीं दो दिशाओं को प्राथमिकता देनी चाहिए। रखें कि सोते वक्त उनका सिर दक्षिण दिशा में हो। यदि दक्षिण में सिर रखना संभव न हो तो पूर्व दिशा में भी सिर रखकर सोना उपयुक्त है। स्टडी एरिया बिल्कुल साफ-सुथरा एवं कबाड़ मुक्त होना चाहिए। इससे बच्चों की पढ़ाई में रूचि बढ़ती है तथा उनका संकेन्द्रण भी बढ़ता है। साफ-सुथरा एवं कबाड़ मुक्त स्टडी एरिया होने से बच्चों के दिमाग में नये-नये विचारों का उदय होता है तथा उनकी रचनात्मक गतिविधियां बढ़ती हैं। स्टडी टेबल को इस प्रकार व्यवस्थित करें कि पढ़ते समय बच्चे का मुंह उत्तर, पूर्व अथवा उत्तर-पूर्व दिशा की ओर रहे। पूर्व दिशा को सबसे शुभ दिशा माना जाता है क्योंकि यह बच्चों को ध्यान केन्द्रित करने में सहायक होता है। स्टडी टेबल को दीवार से बिल्कुल सटाकर न रखें। दीवार एवं टेबल के बीच कम से कम 3’’ की दूरी आवश्यक है। स्टडी टेबल रेगुलर शेप का अर्थात् आयताकार अथवा वर्गाकार ही होना चाहिए। गोल, अंडाकार अथवा कोई अन्य आकार का स्टडी टेबल न रखें। स्टडी टेबल के ऊपर ऐसा ग्लास न रखें जो बच्चे का प्रतिबिंब बनाए। स्टडी टेबल का साइज न अधिक बड़ा और न ही अधिक छोटा होना चाहिए। यदि स्टडी टेबल पूर्वाभिमुख है तो लाइट अथवा लैंप दक्षिण-पूर्व दिशा की ओर रखें और यदि स्टडी टेबल उत्तराभिमुख है तो उत्तर-पश्चिम में लाइट अथवा लैंप रखना उपयुक्त है। टी. वी., कंप्यूटर/लैपटाॅप बच्चों के कमरों में टी. वी., कंप्यूटर/ लैपटाॅप आदि न रखें। इससे बच्चों का ध्यान भटकता है तथा वे पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते।
कुंडली में पंचम,नवम एवं द्वादश भाव में संबंध....
हिंदू ज्योतिष कर्म तथा पुनर्जन्म के सिद्धांत पर आधारित है। यह तथ्य प्रायः सभी ज्योतिषी तथा ज्ञानीजन अच्छी तरह से जानते हैं। मनुष्य जन्म लेते ही पूर्व जन्म के परिणामों को भोगने लगता है। जैसे फल फूल बिना किसी प्रेरणा के अपने आप बढ़ते हैं उसी तरह पूर्वजन्म के हमारे कर्मफल हमें मिलते रहते हैं। हर मनुष्य का जीवन पूर्वजन्म के कर्मों के भोग की कहानी है, इनसे कोई भी बच नहीं सकता। जन्म लेते ही हमारे कर्म हमें उसी तरह से ढूंढने लगते हैं, जैसे बछड़ा झुंड में अपनी मां को ढूढ़ निकालता है। पिछले कर्म किस तरह से हमारी जन्मकालीन दशाओं से जुड़ जाते हैं, यह किसी भी व्यक्ति की कुंडली में आसानी से देखा जा सकता है। कुंडली के प्रथम, पंचम और नवम भाव हमारे पूर्वजन्म, वर्तमान तथा भविष्य के सूचक हैं। इसलिए जन्म के समय हमें मिलने वाली महादशा/ अंतर्दशा/ प्रत्यंतर्दशा का संबंध इन तीन भावों में से किसी एक या दो के साथ अवश्य जुड़ा होता है। यह भावों का संबंध जन्म दशा के किसी भी रूप से होता है - चाहे वह महादशा हो या अंतर्दशा हो अथवा प्रत्यंतर्दशा। दशा तथा भावों के संबंध के इस रहस्य को जानने की कोशिश करते हैं पंचम भाव से। पंचम भाव, पूर्व जन्म को दर्शाता है। यही भाव हमारे धर्म, विद्या, बुद्धि तथा ब्रह्म ज्ञान का भी है। नवम भाव, पंचम से पंचम है अतः यह भी पूर्व जन्म का धर्म स्थान और इस जन्म में हमारा भाग्य स्थान है। इस तरह से पिछले जन्म का धर्म तथा इस जन्म का भाग्य दोनों गहरे रूप से नवम भाव से जुड़ जाते हैं। यही भाव हमें आत्मा के विकास तथा अगले जन्म की तैयारी को भी दर्शाता है। जिस कुंडली में लग्न, पंचम तथा नवम भाव अच्छे अर्थात मजबूत होते हैं वह अच्छी होती है क्योंकि भगवान श्री कृष्ण के अनुसार ”धर्म की सदा विजय होती है“। द्वादश भाव हमारी कुंडली का व्यय भाव है। अतः यह लग्न का भी व्यय है। यही मोक्ष स्थान है। यही भाव पंचम से अष्टम होने के कारण पूर्वजन्म का मृत्यु भाव भी है। मरणोपरांत गति का विचार भी फलदीपिका के अनुसार इसी भाव से किया जाता है। दशाओं के रूप में कालचक्र निर्बाध गति से चलता रहता है। ”पद्मपुराण“ के अनुसार ”जो भी कर्म मानव ने अपने पिछले जन्मों में किए होते हैं उसका परिणाम उसे भोगना ही पड़ेगा“। कोई भी ग्रह कभी खराब नहीं होता, ये हमारे पूर्व जन्म के बुरे कर्म होते हैं जिनका दंड हमें उस ग्रह की स्थिति, युति या दशा के अनुसार मिलता है। इसलिए हमारे सभी धर्मों ने जन्म मरण के जंजाल से मुक्ति की कामना की है। जन्म के समय पंचम, नवम और द्वादश भावों की दशाओं का मिलना निश्चित होता है।
Thursday, 23 February 2017
विवाह के लिए सार्थक समय
भारतीय संस्कृति में विवाह को एक ऐसा पवित्र संस्कार माना गया है जो कि समाज में नैतिकता और मानव जीवन में निरंतरता बनाये रखने के लिए आवश्यक है। प्राचीन काल में विवाह की प्राथमिकताएं कुछ हट कर थी। उपरोक्त के अतिरिक्त कन्याओं का अल्प आयु में विवाह विलासी और कामुक राजाओं, सामंतों तथा अंग्रेज शासकों की कुदृष्टि से बचाने के लिए किये जाते थे, परंतु आधुनिक समय में ये समस्याएं नहीं हैं। अतः वर्तमान परिस्थितियों में विवाह की आयु को तीन खंडों में 1. शीघ्र विवाह (18 से 23 वर्ष तक), 2. उचित सामान्य विवाह (24 से 28 वर्ष तक), 3. देरी से विवाह (29 वर्ष के पश्चात) विभाजित करके विचार करेंगे। प्राचीन ग्रंथों में जैसे बृहत् पाराशर होराशास्त्र के अध्याय 19, श्लोक 22 में जो सूत्र दिया है उसके अनुसार विवाह 5वें या 9वें वर्ष में होगा तो इसे आधुनिक समय की परिस्थितियों में परिवर्तित करके शीघ्र विवाह की आयु (18 से 23 वर्ष तक) वाले फलकथन के साथ ही अध्याय में 22 से 34वें सूत्र तक जो भी वर्णित किया गया है उसमें सप्तम भाव, सप्तमेश तथा कारक ग्रह शुक्र आदि के ऊपर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के कारण विवाह में देरी आदि को नहीं लिया गया है। बृहत्पाराशर होराशास्त्र के अध्याय 19 जमाभाव फलाअध्याय के श्लोक या सूत्र संख्या 22 से 34 में विवाह के समग्र ज्ञान के लिए सूत्र/योग दिये गये हैं जो कि निम्न हैं: सप्तमेश शुभग्रह की राशि में बैठा हो और शुक्र अपने उच्च राशि का या स्वक्षेत्र में स्थित हो तो उस जातक का प्रायः 5वें या 9वें वर्ष में विवाह योग आता है (श्लोक 22)। सप्तम भाव में सूर्य हो और सप्तमेश शुक्र से युत हो तो प्रायः 7 या 11वें वर्ष में विवाह योग होता है (श्लोक 23)। द्वितीय भाव में शुक्र हो और सप्तमेश एकादश स्थान में हो तो 10 या 16वें वर्ष में प्रायः जातक का विवाह योग आता है (श्लोक 24)। लग्न या केंद्र में शुक्र हो और लग्नेश शनि की राशि में स्थित हो तो 11वें वर्ष में जातक का विवाह योग होता है (श्लोक 25)। लग्न से केंद्र में शुक्र हो और शुक्र से सप्तम भाव में शनि हो तो प्रायः 19 या 22वें वर्ष में उस जातक का विवाह योग होता है। (श्लोक 26)। चंद्रमा से सप्तम में शुक्र हो और शुक्र से सप्तम में शनि हो तो 18वें वर्ष में विवाह योग होता है (श्लोक 27)। धनेश लाभ स्थान में हो और लग्नेश दशम भाव में स्थित हो तो 15वें वर्ष में जातक का विवाह योग होता है (श्लोक 28)। धनेश लाभ स्थान में और लाभेश धन स्थान (राशि) में स्थित हो तो जातक का 13वें वर्ष में विवाह योग होता है (श्लोक 29)। अष्टम भाव के सप्तम भाव में शुक्र हो और अष्टमेश मंगल के साथ हो तो जातक 22 या 27वें वर्ष में विवाह योग प्राप्त करता है (श्लोक 30)। लग्नाधिपति सप्तमेश के नवमांश में हो और सप्तमेश द्वादश भाव में स्थित हो तो उस जातक का विवाह 23 या 26वें वर्ष में होता है (श्लोक 31)। अष्टमेश लग्न के नवमांश में होकर सप्तम भाव में शुक्र के साथ बैठा हो तो 25 या 33वें वर्ष में उस जातक का विवाह योग होता है (श्लोक 32)। भाग्य भाव से नवम में शुक्र हो या उन दोनों स्थानों में से किसी एक स्थान में राहु बैठा हो तो 31 या 33वें वर्ष में स्त्री लाभ होता है (श्लोक 33)। नवम भाव से सप्तम भाव में शुक्र हो और शुक्र से सप्तम में सप्तमेश स्थित हो तो जातक 27 या 30वें वर्ष में विवाह योग प्राप्त करता है (श्लोक 34)। उपरोक्त श्लोकों का यदि काल पुरुष की नैसर्गिक कुंडली को ध्यान में रखकर विश्लेषण किया जाये तो संक्षेप में निम्न तथ्य ज्ञात होंगे कि: सप्तम भाव, सप्तमेश, द्वितीय भाव, द्वितीयेश एवं कारक ग्रह शुक्र/गुरु का संबंध शुभ ग्रहों, राशियों एवं भावों से हो तो विवाह शीघ्र ही कम आयु में संभव हो पाता है। जब सप्तम भाव, सप्तमेश, द्वितीय भाव, द्वितीयेश तथा कारक ग्रह शुक्र/गुरु पर शनि की दृष्टि, युति या शनि की राशियों (मकर/कुंभ) का प्रभाव हो तो विवाह में देरी होती है। जब सप्तम भाव, सप्तमेश, द्वितीय भाव, द्वितीयेश एवं कारक ग्रह शुक्र/गुरु पर अशुभ भावों के स्वामियों या क्रूर या वक्री ग्रहों या राहु/केतु का प्रभाव हो तो विवाह में ज्यादा देरी होती है या विवाह ही नहीं हो पाता। विवाह के योगों का अध्ययन करने के पश्चात यह देखना होगा कि जातक के विवाह के लिए उचित दशा-अंतर्दशा कौन सी होगी साथ ही विवाह समय गोचर भी स्वीकृति दे रहा है अथवा नहीं क्योंकि, योग दशा तथा गोचर तीनों की सम्मिलित स्वीकृति ही विवाह के संस्कार करायेगी।
चतुर्थ भाव में शनि एवं उसके ज्योतिष्य फल
ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह के अनेक नाम हैं - सूर्य पुत्र, अस्ति, शनैश्चर इत्यादि। अन्य ग्रहों की अपेक्षा जो ग्रह धीरे-धीरे चलता हुआ दिखाई देता है उसे ही हमारे ऋषि मुनियों ने ‘‘शनैश्चर ‘‘अथवा ’शनि’ कहा है। पाश्चात्य ज्योतिष में इसे ‘‘सैटर्न’’ कहते हैं। जनसाधारण में इसे सर्वाधिक आतंकवादी ग्रह के रूप में जाना जाता है। ऐसी धारणा है कि शनि की महादशा, ढैया अथवा साढ़ेसाती कष्टकारी या दुःखदायी ही होती है। भारतीय ज्योतिष में शनि को न्यायाधीश माना गया है। किंतु ‘शनि’ एक ऐसा ग्रह है जो विपत्तियाँ, संघर्षों और कष्टों की अग्नि में तपाकर जातक को अतिशय साहस और उत्साह देता है तथा उसके श्रम एवं अच्छे कर्मों का पूर्ण फल और शुभत्व भी प्रदान करता है। ‘‘जातक परिजाता’’ में दैवज्ञ वेद्यनाथ जी ने शनि को ‘‘चतुष्पदो भानुसुत’’ कहा है। 6, 8, 12 भाव इसके अपने भाव हैं। यह पश्चिम दिशा का स्वामी ग्रह है, मकर तथा कुंभ राशि का स्वामी है। शनि ग्रह से वात्-कफ, वृद्धावस्था, नींद, अंग-भंग पिशाच बाधा आदि का विचार करना चाहिए। शनि से प्रभावित व्यक्ति अन्वेषक, ज्योतिषी, ठेकेदार, जज इत्यादि हो सकता है, मेष राशि में नीच तथा तुला राशि में उच्च स्थिति में होता है। पुष्य, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद इसके नक्षत्र हैं। अन्य ग्रहों के समान शनि ग्रह के भी कुंडली के 12 भावों और 12 राशियों में भिन्न-भिन्न फल होते हैं। वैसे प्रथम भाव में शनि यदि उच्च राशिस्थ अथवा स्वगृही है तो जातक को धनी, सुखी बनाता है। द्वितीय भाव में नेत्र रोगी, तृतीय में बुद्धिमान, चतुर्थ में भाग्यवान, बुद्धिमान एवं अपयशी भी बनाता है। इसी प्रकार द्वादश भावों में शनि के पृथक-पृथक फल बताये गये हैं। किंतु यहां पर में केवल चतुर्थ भावस्थ शनि के बारे में एक विचित्र एवं स्वानुभूत सत्य बताने की चेष्ट है। जैसा कि सर्वविदित है कि चतुर्थ भाव मातृ कारक भाव माना गया है। माता से संबंधित ज्ञान कुंडली के चतुर्थ भाव से प्राप्त करना चाहिए। अनेकानेक कुंडलियों का अध्ययन करने के बाद देखा गया कि शनि यदि चतुर्थ भाव में होगा तो ऐसे जातक को अपनी माता का सुख कम मिलता है तथा उसके जीवन में किसी एक ऐसी महिला का पदार्पण अवश्य होता है जिसे वह अपनी माता के समान ही सम्मान देता है और अपनी मां के होते हुए भी वह अपना सम्पूर्ण आदर, प्रेम व सम्मान उस स्त्री को देता है जिसे वह मातृतुल्य समझता है। चतुर्थ भावस्थ शनि वाला जातक ऐसी स्त्री को मां मानता है अर्थात उसके जीवन में एक से अधिक माताओं का प्यार होता है। यह महिला कोई भी हो सकती है, उसकी मौसी, चाची, बुआ या यहां तक भी देखने में आया है कि दोनों का कहीं से कोई भी संबंध नहीं है फिर भी कभी उससे बात हुई और धीरे-धीरे ये मां और बेटे के संबंध इतने मधुर हो जाते हैं कि यथार्थ में उनका प्रेम मां बेटे जैसा हो जाता है। यह एक शोध का विषय है जो क्रमशः कई कुंडलियों का लगातार अध्ययन करने के बाद पाया गया है। अब इस कथन की सत्यता को स्थापित करने के लिए कुछ कुंडलियों की ज्योतिषीय व्याख्या करते हैं - सर्वप्रथम देखते हैं युग पुरुष-मर्यादा पुरोशोत्तम भगवान श्रीरामचंद्र जी की जन्म पत्रिका - भगवान श्रीरामचंद्र की कुंडली कर्क लग्न की है। माता का कारक ग्रह चंद्रमा स्वयं लग्न में और चतर्थ भाव में उच्चस्थ शनि । शनि और चन्द्र का केंद्रस्थ संबंध और माता का कारक कुंडली में (शुक्र) नवम् भाव में गुरु की राशि में उच्चस्थ। चतुर्थ भावस्थ शनि ने चार-चार माताएं प्रदान की।
Wednesday, 22 February 2017
सफल शिक्षक शिक्षिका बनने के ग्रह योग
शिक्षक का हमारे समाज में महत्वपूर्ण स्थान होता है। किसी भी छात्र को योग्य बनाने व उसको शारीरिक व मानसिक तौर पर सक्षम बनाने में शिक्षक की अहम भूमिका होती है। जैसा कि हमारे शास्त्रों में विदित है माता-पिता के पश्चात वह गुरु ही है जो छात्र का मार्गदर्शन करके उसको भविष्य के लिए तैयार करता है जिससे वह भविष्य में आने वाली चुनौतियों का सामना कर सके व उसे सफलता प्राप्त हो सके। अतः गुरु का स्थान देवता से पूर्व कहा गया है। ज्योतिष शास्त्र में अध्यापन क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिये कुंडली में गुरु तथा बुध का बली होना आवश्यक है। गुरु ज्ञान के कारक माने जाते हैं तथा बुध बुद्धि के कारक होते हैं। कुंडली में इन दोनों ग्रहों की शुभ स्थिति तथा इनका लग्न, धन, विद्या, रोग व सेवा, कर्म, लाभ स्थान से किसी भी प्रकार युति, दृष्टि संबंध स्थापित होने पर व्यक्ति को अध्यापन क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। यदि इस योग में ‘गुरु’ विशेष रूप से बली हैं तो व्यक्ति समाज में विशेष स्थान प्राप्त करता है। यदि लग्न कुंडली के अतिरिक्त नवमांश, दशमांश, चतुर्विंशांश कुंडली में भी गुरु तथा बुध का युति व दृष्टि संबंध बने तो व्यक्ति अध्यापन क्षेत्र में समृद्धि, संपत्ति अर्जित करता है। धन स्थान, सेवा स्थान, कर्म स्थान को अर्थ स्थान की संज्ञा दी गयी है। इन स्थानों व इनके स्वामियों का संबंध गुरु से बनने पर व्यक्ति अध्यापन क्षेत्र द्वारा धन अर्जित करता है। यदि इस योग में गुरु का संबंध सूर्य से बने तो व्यक्ति सरकारी सेवा से लाभ अर्जित करता है। अध्यापन में सफलता प्रप्त करने के योग - यदि कुंडली में हंस योग, भद्र योग उपस्थित हो तो व्यक्ति अध्यापन क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। - गुरु तथा बुध के मध्य स्थान परिवर्तन योग बनने पर सफलता प्राप्त होती है। यह योग धन, पंचम, दशम व लाभ भाव के मध्य बनने पर अच्छी सफलता प्राप्त होती है और व्यक्ति संपत्ति व समृद्धि अर्जित करता है। - गुरु व बुध की केंद्र में स्थिति, दोनों का एक दूसरे से युति व दृष्टि संबंध इस क्षेत्र में सफलता प्रदान करता है। - लग्न तथा चंद्र कुंडली से लग्नेश, पंचमेश, दशमेश का संबंध गुरु तथा बुध से बनने पर अध्यापन क्षेत्र द्वारा जीविका अर्जन होती है। - फलदीपिका के अनुसार यदि दशमेश के नवमांश का अधिपति गुरु हो तो व्यक्ति गुरु के क्षेत्र (शिक्षा क्षेत्र) द्वारा जीविका प्राप्त करता है। - यदि कुंडली में गजकेसरी योग उपस्थित हो तथा उसका संबंध धन, पंचम, दशम स्थान से बन रहा हो। - लग्न कुंडली, नवमांश कुंडली, दशमांश कुंडली में गुरु व बुध का दृष्टि व युति संबंध बनने पर अध्यापन क्षेत्र में अच्छी सफलता मिलती है। - सूर्य का धन स्थान, पंचम, सेवा, कर्म में गुरु व बुध से संबंध सरकारी सेवा प्राप्त करने में सफलता प्रदान करता है।
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