Wednesday 1 March 2017

तनाव और असफलता में सहयोगी ज्योतिषीय परामर्ष -

तनाव और असफलता किसी भी उम्र या किसी भी परिस्थिति में व्यक्ति को अपने गिरफ्त में ले सकती है। छोटे बच्चे का असहज व्यवहार, जिसमें अपने अध्ययन, खेल अन्य अवसरों पर असहजता या मिलजुल कर कार्य ना कर पाने के कारण निरंतर आलोचना का षिकार होने से तनाव या सामाजिक परिस्थिति से या दुर्भागयवष अपराध का षिकार होने से मिला तनाव अथवा अधिगम की मंदगति के कारण अपेक्षाओं पर खरा ना उतरने पर किये जाने वाले सौतेले व्यवहार के कारण तनाव या बढ़ती उम्र में आपसी रिष्तों के बीच आपसी समझ ना होने अथवा अपनो द्वारा पर्याप्त केयर अथवा प्यार ना मिलने से मिले अकेलेपन से उत्पन्न तनाव कभी अधिक कार्य का दबाव से उत्पन्न तनाव या निरंतर रिष्तों में बढ़ती दूरी का तनाव या करीबियों के व्यवहार से उत्पन्न तनाव हर आयुवर्ग में पाया जा सकता है। इसलिए यह माना जा सकता है कि समस्याओं, आवष्यकताओं, संवेदनषीलता आदि का जातक की आयु, लिंग एवं विकासात्मक संदर्भ के साथ सीधा संबंध होता है। किसी व्यक्ति का व्यवहार या उसकी सफलता-असफलता आदि उसके अपने प्रयास, मानसिक दक्षता के साथ पारिवारिक एवं परिवेषीय स्थिति पर भी निर्भर करती है। किसी व्यक्ति की समस्या में प्रायः उसके परिजन, मित्र, अध्यापक, धर्मगुरू या झाड़फूक, विषेषज्ञ या तांत्रिक द्वारा सहायता दी जाती है किंतु बहुधा समस्या यथावत् बनी रह जाती है या कई बार जटिल या विकृत रूप ले लेती है। किसी जातक के व्यक्तित्व, व्यवहार, संज्ञान, अनुभूति एवं अंतर्वैयक्तिक व्यवहार से जुड़ी समस्याओं के निराकरण में ज्योतिष परामर्ष विषेष लाभकारी होता है। किसी जातक की कुंडली में अगर लग्नेष, तृतीयेष, चतुर्थेष, सप्तमेष, अष्टमेष या भाग्येष विपरीत स्थिति या षष्ठम, अष्टम अथवा द्वादष भाव में हो अथवा राहु से आक्रंात हो या नीचगत अथवा क्रूर ग्रहों के साथ हो तो व्यक्ति को उस ग्रहों की स्थिति अनुसार ग्रह स्थिति एवं ग्रह दषाओं का विपरीत फल भोगना हेाता है। अतः व्यक्ति की कुंडली का विष्लेषण कर इस प्रकार के तनाव से बचने हेतु ज्योतिष परामर्ष का लाभ प्राप्त जीवन में असफलता तथा हानि से बचाव का कारगर तरीका हो सकता है।

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