वैवाहिक जीवन को सुखद रूप से व्यतीत करने के लिए दांपत्य सुख और संतान सुख के तथ्यों पर विचार करना अति आवश्यक है क्योंकि यह वैवाहिक जीवन का मूल स्रोत, स्तंभ है। जीवनसाथी के चयन में थोड़ी सी सतर्कता से वैवाहिक जीवन के परमानंद में डूबा जा सकता है। वैवाहिक जीवन का बंधन कितना पाक एवं पावन है तथा विवाह की दीर्घ अवधि निर्बाध दोनों युगल पूर्ण करने में सक्षम हैं या नहीं, इन सभी के अनुमान का ज्ञान होना अति आवश्यक है। यदि आप ज्योतिष के कुछ सर्वमान्य सिद्धांतों से पूर्ण रूप से अवगत हो जाएं, तो निश्चय ही आप अपने जीवनसाथी का चुनाव तथा अपने प्रणय संबंध को प्रेमी या प्रेमिका के साथ जीवन पर्यंत निर्धारित कर सकते हैं, अन्यथा लुट जाने के बाद, बर्बाद हो जाने के बाद, अपमानित, तिरस्कृत, लज्जित होने के बाद और अंततः मिट जाने के अलावा, आप के हाथ में कुछ नहीं होगा। सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि किसी विद्वान ज्योतिषी से कुंडली मिलान करा लें। यह वैवाहिक जीवन की खुशहाली के लिए प्रथम कसौटी है। परंतु मात्र गुण मिलान ही अच्छे जीवन साथी के चुनाव में सहायक नहीं है। प्रत्येक जातक के जन्मांग में ज्योतिषीय योग व कुयोग होते हैं। सप्तमेश केंद्र अथवा त्रिकोण में स्थित हो और यदि स्वयं सप्तमेश या द्वितीयेश की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक अपनी पत्नी तथा धन के पूर्ण सुख का भोग करता है। शुक्र केंद्र, त्रिकोण या स्वराशि में हो और द्वितीयेश अथवा सप्तमेश चतुर्थ भाव में हो तो जातक आदर्श दांपत्य सुख पायेगा। - सशक्त शुक्र, कलत्र भाव में बुध से युत या दृष्ट हो, तो जातक अत्यंत कामुक होगा। प्रेम दिखावा होगा तथा वैवाहिक जीवन असंतुलित होगा। शनि एवं राहु यदि शुक्र से संबंध बना लें तो जातक के प्रेम में वासना का मिश्रण होगा तथा उसके अनेक प्रेम-संबंध होंगे। यदि सप्तम का स्वामी षष्ठ, अष्टम या द्वादश में हो और पंचम का स्वामी किसी अन्य भाव में हो (सप्तमेश के साथ न हो) तो निश्चय है कि प्रेम विवाह या विवाह के बाद जातक का दांपत्य जीवन कष्ट पूर्ण होगा। सप्तमेश पाप ग्रह युक्त हो या शुक्र और सप्तमेश एक ही भाव में अन्य ग्रहों विशेषतः पापी ग्रह से युक्त हों, तो जातक के एक से अधिक प्रणय संबंध होते हैं। यही स्थिति सप्तमेश और चतुर्थेश के एक साथ होने तथा पाप ग्रहों से युक्त होने पर होती है। यदि शुक्र द्वितीय, षष्ठ या सप्तम भाव में पाप ग्रहों से युक्त हो तो जातक पत्नी के अतिरिक्त अन्य स्त्रियों से अनैतिक संबंध रखता है। यदि सप्तमेश अपनी नीच राशि में हो और सप्तम में पाप ग्रह हो, तो जातक की दो पत्नियां होने की संभावना बलवती होगी। यदि सप्तमेश षष्ठ, अष्टम या द्वादश में हो या निर्बल हो या चतुर्थ भाव में हो और लग्नेश अष्टम या द्वादश में हो तो पत्नी की मृत्यु शीघ्र हो सकती है अथवा बिछोह निश्चित है। लग्न से या चंद्र लग्न से सप्तम भाव पर शनि और बुध दोनों की दृष्टि हो तो जातक का पत्नी से बिछोह शीघ्र होगा। सप्तम भाव पर किसी वक्री या पाप ग्रह की दृष्टि हो, तो जातक का दांपत्य जीवन कलह व कष्टपूर्ण होगा। शुक्र नीच राशि में हो, दशम का स्वामी निर्बल होकर 6-8 या 12 भाव में हो तो पत्नी की मृत्यु विवाह के बाद शीघ्र संभावित है। शनि-मंगल सप्तम भाव में हो और सप्तमेश शनि की राशि में हो, तो जीवन साथी का आचरण संदेहजनक होगा, किंतु यदि सप्तमेश शुभ ग्रह हो, तो निश्चिंत रहें, आपकी जीवन संगिनी गुणवती और सदाचारिणी पत्नी की भूमिका का निर्वहन करेगी। यदि गुरु सप्तम में हो और लग्नेश बलशाली हो, तो भी यही फल होगा। जन्म या विवाह के समय लग्न, चंद्र और शुक्र से मंगल की सप्तम और अष्टम में स्थिति वैवाहिक जीवन के लिए अशुभ है। यदि लग्नेश, सप्तमेश और उस राशि का स्वामी जिसमें सप्तमेश स्थित हो, सशक्त हो और उन पर कोई कुप्रभाव न हो, तो वैवाहिक जीवन सुखपूर्ण व्यतीत होता है। दांपत्य सुख के लिए सप्तम भाव के साथ द्वितीय भाव का भी बलवान होना आवश्यक है। सप्तम भाव में शुभ ग्रहों की दृष्टि शुभता को बढ़ाती है। सप्तम भाव, सप्तमेश व कारक ग्रह शुक्र (पुरुष जातक) के लिए गुरु (स्त्री जातक के लिए) पर सूर्य, शनि, राहु का प्रभाव हो, तो तलाक होता है। परंतु यदि इनके साथ-साथ नीच ग्रहों का या मंगल का क्रूर प्रभाव हो, तो तलाक न होकर जीवनसाथी की मृत्यु होती है। इसके अतिरिक्त यदि पति या पत्नी के सप्तम भाव में विच्छेदी ग्रहों का क्रूर प्रभाव हो, शुक्र व गुरु भी विच्छेदी ग्रह युक्त या दृष्ट हों, तो परस्पर तलाक हो सकता है। सप्तम भाव नीच ग्रह से प्रभावित हो, शुक्र भी नीच राशि में हो, सप्तमेश या कारक भी नीच राशि का हो, तो कभी भी पत्नी का सुख नहीं मिलता है। पत्नी बिछोह सहन करना ही पड़ेगा। सप्तम भाव, सप्तमेश तथा शुक्र तीनों पीड़ित व निर्बल हों, शुभ युति या दृष्टि न हो, तो जीवन-साथी का सुख नहीं मिलता। - लग्नेश नीच का हो, लग्नस्थ नीच राशि का ग्रह हो, लग्न पर नीच ग्रह की दृष्टि हो, गुरु शत्रु ग्रहों के प्रभाव में हो, लग्न में निर्बल चंद्र हो, सप्तम भाव में नीच ग्रहों की दृष्टि हो तो स्त्री विधवा हो जाती है। जीवनसाथी के चयन में ज्योतिष की भूमिका सर्वाधिक होती है। विवाह के बंधन में बंधने से पूर्व किसी योग्य ज्योतिषी से संपर्क करना चाहिए।
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