हिन्दू पंचांगानुसार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को ‘नरसिंह द्वादशी’ मनाई जाती है। इसी दिन भगवान् विष्णु ने नरसिंह (नृसिंह) अवतार लिया था, जिस कारण यह दिन विशेष रूप से भगवान् नरसिंह को समर्पित है और ‘नरसिंह द्वादशी’ के नाम से जाना जाता है। कुछ श्रद्धालुजन इस दिन को ‘गोविन्द द्वादशी’ भी कहते हैं। मान्यता है कि नरसिंह द्वादशी के दिन सच्चे मन से भगवान् नरसिंह का व्रत व पूजन करने से समस्त पापों का नाश होता है।
नरसिंह द्वादशी व्रत व पूजन विधि
नरसिंह द्वादशी व्रत का आरम्भ एक दिन पूर्व एकादशी से होता है। प्रातः काल शीघ्र जागकर स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके पश्चात् पूजा स्थल पर भगवान् नरसिंह और माँ लक्ष्मी की प्रतिमाएं स्थापित करें। धूप, दीप, फल, फूल, मिष्ठान, गंगाजल, नारियल इत्यादि से उनकी पूजा करें। व्रत का संकल्प लें और पूजन करते समय 108 बार निम्न नृसिंह मन्त्र का जाप करें –
ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्। नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम्॥
पूजन के पश्चात् पूरे दिन अन्न-जल ग्रहण किये बिना व्रत रखें, यदि ऐसा संभव न हो तो जल, दूध व फल ग्रहण कर सकते हैं। अगले दिन प्रातः भगवान् नरसिंह और माँ लक्ष्मी की पूजा-उपासना करें। तत्पश्चात् व्रत का पारण करें।
नरसिंह (नृसिंह) अवतरण की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक हिरण्यकशिपु नाम का दैत्य था। भगवान् विष्णु ने उसके भाई हिरण्याक्ष का वध किया था, इसलिए वह उनसे अत्यधिक क्रोधित था और अपने भाई की मृत्यु का प्रतिकार (बदला) लेना चाहता था। यहाँ तक कि उसने अपने राज्य में भगवान् विष्णु की पूजा करने पर प्रतिबन्ध भी लगा दिया था। उसका आदेश था कि उसके राज्य में विष्णु की पूजा करना तो दूर, कोई विष्णु का नाम तक नहीं लेगा। हिरण्यकशिपु ने कठिन तप करके ब्रह्मा जी से एक अनोखा वरदान प्राप्त किया था, जिसके फलस्वरूप उसकी मृत्यु हो पाना लगभग असंभव था।
हिरण्यकशिपु का पुत्र, प्रह्लाद, भगवान् विष्णु का परम भक्त था और निरंतर उनके नाम का जाप करता था। अपने पुत्र के इस आचरण से हिरण्यकशिपु बहुत क्रोधित था। उसने अनेकों बार उसे ऐसा करने के लिए मना किया था। किन्तु, प्रह्लाद ने उसकी एक नहीं सुनी। अंततः हिरण्यकशिपु ने अपने सैनिकों को प्रह्लाद का वध करने का आदेश दे दिया। इसके उपरांत भी प्रह्लाद ने विष्णु जी की भक्ति नहीं छोड़ी। जब सैनिकों ने प्रह्लाद को मारने की कोशिश की तब भगवान् विष्णु ने उसकी रक्षा की। अतः हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को मरवाने के अनेक प्रयत्न किये, यहाँ तक कि इसके लिए अपनी राक्षसी बहन की भी सहायता ली किन्तु उसके सब प्रयास असफल रहे। अंततः हिरण्यकशिपु अपना धैर्य खो बैठा और उसने क्रोधित स्वर में प्रह्लाद से पूछा कि – “तुम प्रतिक्षण जिस विष्णु की पूजा करते हो, जिसका नाम जपते हो, क्या वास्तव में उसका कोई अस्तित्व भी है और यदि है, तो कहाँ है तुम्हारा वो भगवान्?” प्रह्लाद ने उत्तर दिया – “प्रभु नारायण तो सर्वव्यापी हैं, सृष्टि के कण-कण में उनका वास है।” तब हिरण्यकशिपु ने एक खम्भे की ओर संकेत करते हुए प्रह्लाद से पूछा – “क्या उस खम्भ (खम्भे) में भी तुम्हारा भगवान् विष्णु विद्यमान है।” प्रह्लाद ने हाँ में सिर हिला दिया।
नरसिंह द्वादशी व्रत व पूजन विधि
नरसिंह द्वादशी व्रत का आरम्भ एक दिन पूर्व एकादशी से होता है। प्रातः काल शीघ्र जागकर स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके पश्चात् पूजा स्थल पर भगवान् नरसिंह और माँ लक्ष्मी की प्रतिमाएं स्थापित करें। धूप, दीप, फल, फूल, मिष्ठान, गंगाजल, नारियल इत्यादि से उनकी पूजा करें। व्रत का संकल्प लें और पूजन करते समय 108 बार निम्न नृसिंह मन्त्र का जाप करें –
ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्। नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम्॥
पूजन के पश्चात् पूरे दिन अन्न-जल ग्रहण किये बिना व्रत रखें, यदि ऐसा संभव न हो तो जल, दूध व फल ग्रहण कर सकते हैं। अगले दिन प्रातः भगवान् नरसिंह और माँ लक्ष्मी की पूजा-उपासना करें। तत्पश्चात् व्रत का पारण करें।
नरसिंह (नृसिंह) अवतरण की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक हिरण्यकशिपु नाम का दैत्य था। भगवान् विष्णु ने उसके भाई हिरण्याक्ष का वध किया था, इसलिए वह उनसे अत्यधिक क्रोधित था और अपने भाई की मृत्यु का प्रतिकार (बदला) लेना चाहता था। यहाँ तक कि उसने अपने राज्य में भगवान् विष्णु की पूजा करने पर प्रतिबन्ध भी लगा दिया था। उसका आदेश था कि उसके राज्य में विष्णु की पूजा करना तो दूर, कोई विष्णु का नाम तक नहीं लेगा। हिरण्यकशिपु ने कठिन तप करके ब्रह्मा जी से एक अनोखा वरदान प्राप्त किया था, जिसके फलस्वरूप उसकी मृत्यु हो पाना लगभग असंभव था।
हिरण्यकशिपु का पुत्र, प्रह्लाद, भगवान् विष्णु का परम भक्त था और निरंतर उनके नाम का जाप करता था। अपने पुत्र के इस आचरण से हिरण्यकशिपु बहुत क्रोधित था। उसने अनेकों बार उसे ऐसा करने के लिए मना किया था। किन्तु, प्रह्लाद ने उसकी एक नहीं सुनी। अंततः हिरण्यकशिपु ने अपने सैनिकों को प्रह्लाद का वध करने का आदेश दे दिया। इसके उपरांत भी प्रह्लाद ने विष्णु जी की भक्ति नहीं छोड़ी। जब सैनिकों ने प्रह्लाद को मारने की कोशिश की तब भगवान् विष्णु ने उसकी रक्षा की। अतः हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को मरवाने के अनेक प्रयत्न किये, यहाँ तक कि इसके लिए अपनी राक्षसी बहन की भी सहायता ली किन्तु उसके सब प्रयास असफल रहे। अंततः हिरण्यकशिपु अपना धैर्य खो बैठा और उसने क्रोधित स्वर में प्रह्लाद से पूछा कि – “तुम प्रतिक्षण जिस विष्णु की पूजा करते हो, जिसका नाम जपते हो, क्या वास्तव में उसका कोई अस्तित्व भी है और यदि है, तो कहाँ है तुम्हारा वो भगवान्?” प्रह्लाद ने उत्तर दिया – “प्रभु नारायण तो सर्वव्यापी हैं, सृष्टि के कण-कण में उनका वास है।” तब हिरण्यकशिपु ने एक खम्भे की ओर संकेत करते हुए प्रह्लाद से पूछा – “क्या उस खम्भ (खम्भे) में भी तुम्हारा भगवान् विष्णु विद्यमान है।” प्रह्लाद ने हाँ में सिर हिला दिया।
हिरण्यकशिपु ने अपनी गदा से उस खम्भे पर प्रहार कर दिया। उसी क्षण उस खम्भे में से भगवान् विष्णु एक भयंकर और अत्यंत क्रोधित नृसिंह (नर और सिंह का मिश्रित स्वरुप) के अवतार में प्रकट हुए। उन्होंने हिरण्यकशिपु को पकड़ा और उसके शरीर को चीरकर उसका वध कर डाला। उसके पश्चात् भगवान् नरसिंह ने प्रह्लाद को आशीर्वाद दिया। इस प्रकार भगवान् विष्णु ने नृसिंह अवतार धारण कर अपने भक्त की रक्षा की और एक दैत्य का संहार भी किया।
भगवान् नरसिंह सदैव अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। नरसिंह द्वादशी व्रत को विधि-विधान से करने वाले मनुष्य के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इस व्रत के प्रभाव से भय दूर हो जाता है, आत्मविश्वास बढ़ता है और साहस की प्राप्ति होती है।
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